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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नव तत्वादिक श्रद्धा ज्ञाने, कुश्रद्धानी फेरवणी; सद्गुरु संगत करतां सहेजे, समकित श्रद्धा होय घणी, ते माटे श्रद्धालु लोको, आदरजो गुरु स्पर्शमणि. ॥८॥ असद्गुरुनी संगत थातां, सुश्रद्धाथी नहीं फरो, सर्वोत्तम सद्गुरु छे नौका, पामी पाणी सहेज तरो; जल्दी खटपट लटपट त्यागी, चेतन हीरो हाथ धरो, ज्ञान क्रिया बेथी छे मुक्ति, जिन वाक्यामृत पान करो.॥९॥ कलिकालमां भक्ति मोटी, देव गुरुनी साचवजो, षड् द्रव्योनुं ज्ञान करीने, मुक्तिपुरी सन्मुख थनो; कलिकालनां कौतुक देखी, धर्म क्रियाने नहीं त्यजो, जगमा सर्वोत्तम जिन दर्शन, अन्तरंग बाहिरंग भजो. ॥१०|| परोपकारे मनटुं धर, जूठ वेण नहि उच्चरवां, धर्म करतां धाड पडे तो, पाछां पगलां नहि भरवां; धनवंता पापि जन देखी, पाप कर्म नहि आचर, पापे जय धर्मे क्षय रभसा, वेण कदा नहि उच्चरवं. ॥ ११ ॥ वात वातमा लडी न पडवू, कपट कळाने परिहरवी, धर्मी जनने स्हाय करीने, सद्भक्ति दीलमां वरवी; परनी निन्दा कदी न करवी, वृद्ध वाक्यने अनुसरवं. मोटा जननुं मानन करवू, विना प्रयोजन नहि फरवं. ॥१२॥ शत्रु मित्रमा समान दृष्टि, धर्म कार्यमां यन करो, ज्ञान ध्यानमा दिवस गाळो, मुक्तिपुरीनो मार्ग खरो; आतम ते परमातम साचो, अनन्त शक्ति प्रगट करो, बुद्धिसागर अवसर पामी, सिद्ध सनातन सत्य वरो. ॥१३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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