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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨૪૮ दोषीना दोषोनी सामुं, कदी न देखो भव्य, परगुण परमाणु पर्वत सम, गणजो ए कर्तव्यः धन्य तेह डाह्या रे, निन्दाना थकी डरनारा. भाव करुणा जलधि आतम, करजो निर्मल दील, परनुं सारुं मनमां प्याऊं, ए उत्तम जन शील; बुद्धिसागर भावे रे, परम सुख वरनारा. धीराना पदनो राग. केम उँघे छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परपंचात . श्रीराना पदनो राग. परनी पंचातेरे, नथी भलुं कोइ काळे, जीवलड | तूं जाणीने, पडिश नहि जंझाळे; अमुक दोषी अमुक डाो, तेनी शी पंचात, पंचाते परनी निन्दाथी, मुरख खाइश लात; पडे तेने वागेरे, परमां शुं मन घाले. For Private And Personal Use Only इच्छो० ४ घमांशुं ? जंघे रे, मिथ्या रंण अंधारी, उधम अथडायो रे, शुद्ध बुद्ध सहु हारी; मोहे पर पुद्गलनी संगे, भूल्यो चेतन भान, साचा श्री सद्गुरुनी संगत, पाम्या वण अज्ञान; बाह्यमां भमीने रे, भूल कीधी बहु भारी. जाग जाग चेतन निज दिलमां, पामी सद्गुरु योग, अंतरमां उतर्याथी रहेजे, भोगवशे सुख भोग; बुद्धिसागर जागी रे, लहो शीव वहु प्यारी. उंघ० ॥ २ ॥ उघ० ॥ १ ॥ इच्छो० ५ परनी. ॥ १ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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