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वेळा मळी छे ज्ञानयोगे चढती छे क्षणवारमां. . ॥९॥ खरावरीनो खेल छे आ समजील्यो संसारमां; पामी अरे तुं मनुष्य भा देशोन्नतिने हार मां, देशोन्नतिमा स्हाय करशो सर्व देवो प्रेमथी; देशोन्नति दीक्षा थकी छे व्रत धर्या ते नेमथी. ॥१०॥ निज देशना शुभ ग्रंथ वांची देशनी दाझे चढो निज अतुल बळथी आत्मभागे शत्रुनी साथे वढो, जय नादी देशोन्नतिमां बुद्धिसागर धर्म छे अध्यात्म भावे भव्य शिक्षा समजतां शिव शर्म छ.।। ११ ॥
सहुनुं सारु इच्छो.
धीराना पदनो राग. इच्छो म हुनुं मारु रे, करुणाना करनारा, सारं छे सहुने प्या रे, दया दिल धरनारा. इच्छो० कर्माधीन दोपी छे दुनियां, खेले माया खेल, मोह मदिरा दोपे बुरा, दोष न जुवे समजेल; दोषीना दोष टालो रे, सकल जीव दिल प्यारा. इच्छो० १ कोइ न शत्रु जीवो जाणो, निमित्त कारण होय, दुःख मुख कारण कर्म खरुं छे, ज्ञानथकी अवलोय; दोष दृष्टि टालो रे, सत्यने समजनारा. इच्छो० २ में नौलमां ने पामो, गुग अवगुणनी दृष्टि, दोष दृष्टथी दोपी थासो, गुण दृष्टि गुण सृष्टिः मातानी दृष्टि राखो रे, भंवादाधे तरनारा. इच्छो० ३
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