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जन जागजो मन ज्ञानथी झट संपनां कामो करो, परतंत्रताने त्यागीने निज तंत्रता मनमा धरो; परदेशीभोना पासथी मुखवास नाठो आपगो, परदेशीओना रागथी निज देश नह सोहामणो. ॥४॥ निज देशना घातक बन्या परदेशीओना प्रेममां, निज देशना पापी बन्या परदेशी धोनी रहममा परदेशीओ लक्ष्मी हरे छे, दशनी बहु जारथी, परतंत्रतानी बेडीमां फूलो फरी शुं तोरथी. ॥५॥ निज देशने हार्या थकी हायुज सघळं जाणनो, निज देशने जीत्या थकी जीत्युंज सघर्छ आणजो; निज देशनो घातक वने ते मानवी नहि ढोर छे, निज देशनो शत्रु वने जे मानवी नहि चोर छे. ॥६॥ निज देशनी भव्योन्नतिमां भाग लेवो जोरथी, निज देशनी भव्योन्नतिमां भाग लेवो तोरथी: विद्या विनय विवेकथी विचार करवा देशना; झट रागने बहु द्वेष हरवा मूळ कापो के शना. ॥७॥ बहु धैर्यथी निज देशनी ध्याने रहो गुलतानपां; निज देशनी उन्नतिना उपाय सों ज्ञानमां, निज देशना आवेशमां उपाय करशो सोगणा; वेळा गई आवे नहि राखो नहि कांइ मणा. निज देशनो उद्धार करवा धर्म बंधु जागनो; अन्तर प्रदेशी आतमानी उन्नतिमा लागजो, आत्मोन्नतिथी देश सघळो सुधरशे क्षणवारमा
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