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धर्मनी मित्रा गुणदायी सर्व मित्रतामां अभयकुमार आर्द्रा पेठे वखणाइ छे; मूर्खनी मित्राइ कोइ काळमां न कर भाइ, मूर्खनी मित्राइ दील दुःखतति क्यारी छे; घरडानी लाकडीने आंधळानी आंख जेवो, श्रीनिधि सुधर्मी मित्र पुण्ययोगे यारी छे. ॥ २ ॥
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आत्माने स्वरूप रमणतानी प्रेरणा.
छप्पय छंद.
चेतन चतुर सुजाण चित्तमां चेती लेजे, ब्रह्मानुभव रंगे सङ्गे निशदिनं रहेजेः पर निजमां समभाव चेतना ध्याने वाळो, चिन्मय चेतन रटन करीने जीवन गाळो; अनुभवयोगे पामीर ते चिदानन्द शाश्वत खरो, बुद्धिसागर ध्यानयाने भवसागरने झट तरो ॥ १ ॥ अखण्ड स्थिर उपयोग आत्ममां प्रकटे ज्यारे, झळके ज्योति शुद्ध ब्रह्मनी घटमां व्यारे; पडे न परमां चेन घेन विषयादिक नासे, फरतां हरतां ध्यान योगथी स्थिरता भासे; शब्द विषयथी दूर छे ते चेतनता समजो खरी, बुद्धिसागर सत्य ज्योति चेतननी दिलमां धरी ॥२॥
व्यवहार धर्मनी महत्ता.
छप्पय छंद.
मूकीने व्यवहार धर्म केइक भूल्या,
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