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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३ गुरुना हुकमने तो मान बहु आपवाथी, गुरु आण प्रतिपाल सुशिष्य गणाय छे; गुरुना विनय विना शिष्य छे सूकर सम, कांह्या कान कूतरीनी अवस्था पमाय छे. शाणो के सरदार होय नृपतिके रंक होय, गुरुना विनय विना गमार गणाय छे; गुरुना विनय थकी सहु ज्ञान सांपडे छे, गुरुना विनयं विना दुःख वहु पाय छे; गुरुनो विनय (शिवपुर पन्थ प्रकट छे, सद्गुरु प्रेमभाव विनय शृंगार छे; धीनिधि कहे छे दील विनयने धारवाथी, विमल सफल जगजन अवतार छे. मित्रलक्षण. मनहरछंद. संकटमां सहाय करे स्वार्थ नहि दील घरे, दोप सहु ढांके अने मुखे गुण गाय छे; मित्रनो उदय देखी दीलमां आनन्द घरे, हित शिख आपवाथी कबु न रीसाय छे; समय सुजाण होय मित्रना न दोष जोय, गुह्यवात मित्रनी ते क्यांय न प्रकाशतो. दीर्घदृष्टि गुणवन्त नीतिमान लज्जावन्त, मित्र महा अवतार सृमित्र प्रभासतो. समचित्त कुलवय धर्म जाति नीति वित्त, मित्रनी मित्राइ जगमांहि सुखदायी छे; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ १ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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