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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ विनयामत ॥ मनहरछंद. विनयथी मान जाय विनयथी सुख थाय, विनयथी विद्या सहु भणवाथी ओव छे; विनयथी वेर जाय विनयथी झेर जाय, विनेय सुशिष्य मनमांहि बहु भावे छे; मन्त्रमांहि नवकार खगमांहि हंस सार, सहु गुगमांहि तेम विनय विख्यात छे; विनयथी यश थावे सहुलोक गुण गावे, विनय विहीन जन रासभनो भ्रात छे. विनय विवेक तात विनयथी उच्चजात, विनयथी नात जातमांहि सुख पावे छे; विनयथी क्रोध जाय मन- इच्छित थाय, विनयथी शिवपुर झट जन जावे छे; आवळनां फूल जेवो विनय विनानो जन, मोरपूठ जेवो जन विनय विनानो छे; धीनिधि कहे छे सहुगुण आववानुं द्वार, विनय विनय एक गुणतो मनानो छे. ॥१॥ ॥२॥ - -- - गुरु विनय. मनहरछेद. गुरुनो विनय मुखकारी दुःखहारी अहो, गुरुनो विनय गुण घणा दील लावे छे गुरुना विनयविना शिवपुर दूर बहु, गुरुना विनय थकी दोष सहु जावे छे; For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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