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॥ विनयामत ॥
मनहरछंद. विनयथी मान जाय विनयथी सुख थाय, विनयथी विद्या सहु भणवाथी ओव छे; विनयथी वेर जाय विनयथी झेर जाय, विनेय सुशिष्य मनमांहि बहु भावे छे; मन्त्रमांहि नवकार खगमांहि हंस सार, सहु गुगमांहि तेम विनय विख्यात छे; विनयथी यश थावे सहुलोक गुण गावे, विनय विहीन जन रासभनो भ्रात छे. विनय विवेक तात विनयथी उच्चजात, विनयथी नात जातमांहि सुख पावे छे; विनयथी क्रोध जाय मन- इच्छित थाय, विनयथी शिवपुर झट जन जावे छे; आवळनां फूल जेवो विनय विनानो जन, मोरपूठ जेवो जन विनय विनानो छे; धीनिधि कहे छे सहुगुण आववानुं द्वार, विनय विनय एक गुणतो मनानो छे.
॥१॥
॥२॥
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गुरु विनय.
मनहरछेद. गुरुनो विनय मुखकारी दुःखहारी अहो, गुरुनो विनय गुण घणा दील लावे छे गुरुना विनयविना शिवपुर दूर बहु, गुरुना विनय थकी दोष सहु जावे छे;
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