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वचनामृत. नकामो समय गाळवाथी पाछळथी पश्चातापपात्र बनवू पडे छे. समयनी किंमत नथी. समयनी अमूल्यता समज्या विना जीव चेती शकतो नथी. फोगट गप्पा मारवाथी महत्ता प्राप्त थती नथी. धर्मकार्यमांज स्वजीवननी साफल्यता उत्तम पुरुषो समजे छे. कोइनी आजीजी नहि करतां प्रमाणीकपणाथी आत्मोन्नति करवामां प्रयत्नशील थवं. वक्ताना हृदयनो मर्म जाण्याथी सुज्ञपणुं प्राप्त थाय छे. वक्तार्नु हृदय अवगाहवामा परीक्षकनी हुंशियारी छे. वक्ता अने श्रोतानां हृदय भिन्न होय तो मर्मास्वाद चखातो नथी. श्रीतानां हृदय प्रकाशवामां वक्तानी हुंशियारी छे. सर्व ज्ञानमा अनुभवज्ञान उत्तम छे. ज्ञानिनुं हृदय भव्य जीवोने उत्तम प्रकाश आपे छे. स्वयंभुरमणसमुद्रनुं अवगाहन थाय पण ज्ञानिना हृदयतुं अवगाहन थंq दुर्लभ छे. मनुष्य क्षणे क्षणे न, शीखे छे. पोतानी उत्तमता अन्यने देखाडवा करतां पोताना आत्माने देखाडवी तेमांज कार्यदक्षता छे. वक्ताना वचनपर श्रद्धा थयाविना भक्तिभाव उत्पन्न थतो नथी. योग्यता विण सद्गुणनी प्राप्ति थती नथी विचार, उच्चार अने आचार ए त्रण वस्तु एकस्थाने होय तो पूर्ण भाग्यनुं चिन्ह जाणवं. नीतिधर्मनुं स्वरुप वीतरागमभुए यथार्थ कर्वा छे.विनयभक्ति विना आत्मशक्ति खीलती नथी. हे गौतम, समय मात्रपण मा प्रमाद कर, आ वाक्यनी उत्तमता पुनः पुनः विचारवा योग्य छे.
धर्मोनतिमा प्रभावना उत्तम अंग छे. आध्यात्मिक ज्ञान वाळू जीवन सत्यसुख आपे छे. कार्य अने ध्यानी चित्तनी एकाग्रतायी कार्यसिद्धि करे छे. श्री वीर प्रभुए आत्मशक्तिनं अद्भूत स्वरुप
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