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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीसंखेश्वर पार्थ जिनेश्वर, मंगल माला करशोरे, भणनारा सुणनारा भक्तो, परम प्रभुता वरशोरे. श्री. ।। १६३॥ आत्मज्योति. धीरानो राग. जागी झळहळ ज्योतिरे, शोधी लीधुं सत्य मोति; खलकमा अलखनेरे, काठ्यो मेंतो झट गोती. जागी. अनंतज्ञानी असंख्यप्रदेशी, चिदानंद घनराय, अनुभव नयणे नीरखी नेहे, बीजाने न कहाय; कुमति तो नाठीरे, आघे जइ बहु रोती. जागी. ॥ १॥ प्रेम करीने प्रेमी परख्यो, परख्यो आपोआप, पंचभूतथी न्यारो नकी, शमिया सहु संताप; भ्रमणानी खोटीरे, उतरी छे पनोती. जागी. ॥ २ ॥ वीजके झबूक मोति, परोइ ले हुशियार, शुद्ध चेतना क्षयोपशमनी, वीजली चमके सार; बुद्धिसागर ज्ञानेरे, लोकालोक विष्णोति. जागी. ॥ ३ ॥ “संकटमां समता" ___ धीराना पदनो राग. संकट पडे समतारे, राख जीव धैर्य धरी; सुख दुःख कारणरे, कर्म एक दील धरी. टेक. सुख दुःख वादळछाया पेठे, क्षणमां आवे जाया निमित्त कारण अन्यजनो त्यां, क्रोध कहो केम थाय. धर्मीनी कसोटीरे संकट क्षण भव्य खरी; संकट. ॥ १ ॥ ताप पडयाथी मेघज वरसे, संकट समये धीर, For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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