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लब्धि सिद्धि तणुं स्थान तुं आतमा, जाग चेतन प्रभु शुद्ध भावे; उंघ नहि आतमा अलखना पन्थमां, अनुक्रमे योग सिद्धि मुहावे.
योग. ॥८॥ अलखनी धूनमां भासता दिनमणि, भक्ति उत्साहथी यत्न धारो; बुद्धिसागर सदा ज्योतमां जागजे, शुद्ध चेतन प्रभु चित्त प्यारो.
योग. ॥९॥
आत्माने सत्यशिक्षा.
झुलणाछन्द. सत्याशिक्षा सदा आतमा मानजे, नित्य आनन्दना भोग माटे; ज्ञानि सङ्गे रहो ज्ञान साचुं लहो, चालजे मोक्षनी सत्य वाटे.सत्य.१ मूर्ख सङ्गत तजो देव अर्हन् भजो, शरणुं गुरुन करो भव्य प्राणी देह ममता तजो मोक्ष साधन सजो, सत्य सिद्धान्तनो सार ताणी.
सत्य. ॥२॥ मोह माया हरो ध्यान उत्तम धरो, जाप अजपा जपो तत्त्वरागी; वास एकान्त ध्याने सदा राचिए, शुद्ध रूपे सदा चित्त जागी.
सत्य. ॥३॥ कटुकता लींबनी भोगनी तेहवी, दुःखदायी तजोने विकारो, भोग मारब्धना वेदिए बाह्यथी,भिन्न अन्तरथकी दील धारो. सत्य.४ भोग रोगो करी लेखवो मन विषे, मोहना हेतुने दूर वारो; श्वास उश्वासमां आयु जावे अरे, त्वरित चेतन अरे भव्य तारो.
__सत्य. ॥ ५॥ जाय परभावमां श्वास उश्वासरे, भव्य भूले अरे शुं विचारी; , पामि मानवपणुं चेतजे चित्तमां, भूलतां दुःख पामीश भारी. सत्य.६
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