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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साह्य करोने प्रभु शरणुं तमारू, तारोने सांभळी पोकारो, बुद्धिसागर व्हारे आवोने वापजी, करजो सेवकनो उद्धारोरे. नेमजी ॥ ४ ॥ आवश्यकस्मृतिः अर्ह अह समरतां, लाहिए भवनो पार; सत्यदेव अरिहन्त छे, तेनो मुज आधार. ॥१॥ सूतां खातां बेसतां, चालंतां अरिहन्त; जे भाव प्राणी समरशे, थाशे शर्म अनन्त. ॥२॥ अरिहन्त महामन्त्र छे, स्मरजो नर ने नार; मङ्गल मोटु जाणिए, होवे जग जयकार. ॥३॥ मनुष्य भव पामी भवी, दो करवानां काम; देनेका टुकडा भला, जपना आतमराम. ॥ ४ ॥ बुद्धिसागर ज्ञानथी, वे वातो दिल धार; दयाधर्म हृदये धरि, जपवो श्री नवकार. ॥५॥ बुद्धिसागर वात दोय, समजी घटमां धार; दया धर्मनी सेवना, करवो परउपकार. ॥६॥ मुसाफर जीव जगतमां, दान धर्म कर भाइ; आंख मिचाए कल्पना, जूठी एह सगाइ. ॥७॥ आतम ते परमातमा, घट घट रहे समाइ; बुद्धिसागर प्रेमथी, कुंचि गुरुए बताइ. ॥८॥ करवानुं बहु काम छे, पामी मनु अवतार; मोहे मुंझी शुं मरे, चेती आतम तार. ॥९॥ ज्ञान विण जीव अंध छे, सान विना ते ढोर; For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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