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रुडो धर्म तो कर्मनो क्लेश टाळे,
रुडो धर्म तो दुर्मति शिघ्र टाळे रुडा धर्मधी होय सर्वत्र सिद्धि, रुडा धर्मधी होय छे सर्व सिद्धि, कहे धन धर्म छे विश्व सारो, सदा भव्य लोको दॉले धर्म धारो.
प्रभु स्तुति.
भुजंगी छंद.
अरे देवना देव आनंद दाता, प्रभु तुं वडो मातने त्रात भ्राता; सदा हस्त जोडी प्रभु हं नम हूं, प्रभु पादपद्मे सदा हुं रमुं छं. धरी ध्याने दोषना वृन्द टाळ्या, घरी ध्यानने कर्मना वर्ग खाळ्याधरी ध्यानने केवल ज्ञान लीधुं, घरी ध्यानने ब्रह्मनुं दान दी. धरी ध्यानने सिद्ध सौधे सुहाया, घरी ध्यानने मुक्तिनां शर्म पाया; चिदानन्दरुपे प्रभु तं सुहायो, महा योगितुं चित्तमां नित्य आयो. अरुपी असंख्य प्रदेशी प्रमाता, प्रभु तुं सदा तत्त्वनुं दानदाता; तव ध्यानथी ध्येयरूपे प्रभासे,
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