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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्बर निर्जर मोक्ष तत्त्वनो, साचो छ चेतन आधार; ज्ञेय सदा छे तत्त्वो साचां, चउ निक्षेपे छे अवतार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार.॥ २॥ जड चेतन वे तत्वो कहिए, वे तत्त्वोमां सर्व समाय, विवेक दृष्टि प्रकटन अर्थ, सप्त तत्त्व पण छे सुखदाय; सात नयोथी सप्ततत्वनो, समजो गुरुगमथी विस्तार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार. ॥ ३ ॥ आश्रवना वे भेदो पाडे, पुण्य पाप बे तत्त्वो थाय, नवतत्वो सिद्धान्ते गायां, ज्ञानीने सर्वे समजाय; सापेक्षे तत्त्वोनी व्हेंचण, करशे आगमनो भणनार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार ॥४॥ नव तत्त्वोना भेद घणा छे, जिन आगममां भाख्या सार, षड्द्रव्योमा तत्त्व समातां, भाखे श्री गौतम गणधार; बुद्धिसागर तत्त्वोनुं नव, वर्णन करतां नावे पार, समजी चेतन सम्यग् ज्ञाने, भवजलधि तरशो नरनार. ॥५॥ .राग कान्हरो. पद. आतम अनुभव रटना लागी, सुरता अन्तरमा स्थिर जागी आतम. ॥ १॥ चिद्घन चेतन मनमां व्यावो, सोऽहंसोऽहं पदथी गावो आतमः ॥ २॥ जळपडुजवत् अन्तरन्यारो, स्थिर उपयोग होय उजियारो. आतमः ॥३॥ समतासरोवर हंसा खेले, संवरथी आस्रव हडसेले. आतमः ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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