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गुरु उठे उभो थाय गुरु बेठा बाद बेसे, गुरुर्नु श्रद्धान धरे दीलमांहि नेमथी. सामु कदी बोले नहि गुरुना विनयवंत, गुरुगुण गाइ मनमांहि हरखाय छे महा उपकारी गुरु सदाय शरण सत्य, गुरु गम ज्ञान लही शिष्य सुख पाय छे. गुरु वचनानुसार प्रवृत्ति करे छे नित्य, गुरुनां दर्शन करे त्यारे हरखाय छे; गुरु उपदेश लही चेतनने तारवाज, संयम सुसाधवाने चित्त बहु च्हाय छे. गुरुना सेवन थकी विनेय मुशिष्य होय, गुरु आणा पालवाथी सुगति पमाय छे; तन मन धन थकी गुरु बहुमान करे, धीनिधि मुशिष्य शिव पुरमांहि जाय छे.
संयत सद्गुरु लक्षण.
मनहरछंद. पञ्चव्रत धारनार द्वेष राग वारनार, मुविहित परम्पर संयम स्वीकार छ; पश्चाचार पाळनार दोष वृन्द टाळनार, जिनवाणी उपदेशे दोष हरनार छे.
चेतननुं ज्ञान करे चेतननुं ध्यान धरे, चिदानन्द चेतनमा स्थिरता मुहाय छे आचार विचार अने उच्चारमा उत्तमज, मुनिवर सद्गुरु सन्त तो गणाय छे.
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