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॥३॥
जगत्मां मोहनी बाजी, रह्यो शुं तेहमां राजी, कायररे मन केम कंपे, कायरनां वेण शुं जंपे. जगत्मां चेतजे व्हेलो, समय तो जाय छे छेल्लो, धरीने जन्म शुं धार्यु, धरीने जन्म शुं वायु. विवेके वात परखाशे, तदातो सन्य सुख थाशे, मुद्धचन्धि धर्मनी वाटे, चलोने भव्य शीर साटे.
॥४॥
॥५॥
मन्त.
गजल. हमारे सन्तनी सेवा, हमारे सन्त छे देवा, हमारे सन्तने मळवू, हमारे सन्तथी हळवं. हमारे सन्तधी शांति, टळे छे सन्तथी भ्रांति, मुणीशु सन्तनी वाणी, सुधा सम दीलमां जाणी. ॥२॥ करीशुं सन्तनी भक्ति, लहीशुं आत्मनी शक्ति, हमारे संत सौभागी, जगतमां सन्त वैरागी. जगत्मां सन्त छे प्यारा, जगत्थी सन्त छे न्यारा, हमारे सन्तनी यारी, ठरीशं, दोपने ठारी. हमारे संतथी वातो, भली छे सन्तनी जातो. बुद्धचन्धि सन्तनी सेवा, मुनीश्वर सन्त छे मेवा. ॥५॥
वचननी टेक पाळ्या विषे.
गजल. वदेला वेंणने पाळे, खरे ते धन्य कलि काळे, बदेला वाक्यमा शूरा, खरेखर सन्त छे पूरा.
॥१॥
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