________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१२ मंडप रचना बहु बनी, जाणे स्वर्गविमान;
विजयवावटा फरकता, फररर करना गान. सुखसागर भव्य ल्हेरो रे उछळे, शोभा संसदूनी न
जाय कही. जैन० २ दश दिक कीर्ति विस्तरी, कोन्फरन्सनी आज;
शासन देवनी स्हायथी, सुधरशे शुभ काज. सत्य विचार संघ मनमांहि आवशे, पुण्य उदय आज
प्रेमे लही. जैन० ३ ऋद्धि सिद्धि मुख मळो, पामो धार्मिक ज्ञान;
बुद्धिसागर संपथी, थाशे सहु कल्याण. जय जय बोलो जिन शासन देवनी, शांति कल्याणमयी
थावो मही. जैन०४ म्हाला वीर जीनेश्वर जन्म जरा नीवारजोरे-ए राग. जैनो सुखकर स्त्री केळवणी झट फेलावशोरे, जैनोन्नतिनुं कारण पहेलु मनमा लावशोरे. मास्तिक विद्यानी फेरवणी, धार्मिक विद्यानी मेळवणी, साची विज्ञप्ति आ निश्चय चित्त ठरावशोरे. जैनो ॥१॥ स्त्री केळवणी सहु दुःख हरणी, अंधकार नाशक जेम तरणि, घर सुधारो स्त्री सुधर्याथी पावशोरे. जैनो० ॥२॥ बच्चांनी सुधारक पहेली, केळवणी आपान बहली; विकथा व्हेमो सर्वे दूर हठावशोरे. जैनो० ॥ ३ ॥ देशोन्नतिनुं कारण पहेलं, स्त्री केळवणी जाणो सहेनु, विनति साची दिलमां भव्य वधावशोरे. जैना० ।। ४ ।। धर्म झनुनने अंगे धारी, देशोन्नतिनुं मूल विचारी; स्त्री केळवणी सरस नियम मुधरावशोरे. जैनो० ॥५॥
For Private And Personal Use Only