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जिनवरनिगदितसमय समय सत्य, समकित मुधारसपान मुखकार छ अमूल्य समय मुख समाधिमां गाळ जीव, धीनिधि विचार सार धन्य अवतार छे.
॥२॥
ॐ नमः
मनहरछंद. मति श्रुत ज्ञान दोय परोक्ष प्रमाण छेज, मति ज्ञान व्यवहारमा प्रत्यक्ष गणाय छे; श्रुत ज्ञान सुखकारी दुःखहारी दयावन्त, उपकारी पञ्च ज्ञानमांहि श्रुत थाय छे. साकार छे श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाणाहि, साकार ने निराकार मतितो कहाय छे; साकारोपयोगे ध्यान प्रगटे केवल ज्ञान, विशेषोपयोगरूप साकार भणाय छे. देशथी प्रत्यक्ष अवधिने मनः पर्यवज, उपयोग भेद दोय अवधि मुहाय छे; साकारोपयोग मनःपर्यव प्रकट छ, रूपिना विषयमांहि ज्ञान वे ग्रहाय छे. प्रत्यक्ष रुपिनुं ज्ञान अनुमान थकी अन्य, अवधि असंख्य भेद सूत्रमा जणाय छे; लोकालोकभासक प्रत्यक्ष एक केवल छे, धीनिधि उपयोगथी पञ्चम पमाय छे.
॥१॥
॥२॥
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