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|| भजनपद द्वितीय भाग संग्रह ॥ ॥ उद्देश भूमिका. ॥
काव्यमा अदभूत शक्ति रहेली छे, आनंदनुं स्थान काव्य छे, सर्व काव्यमा श्रेष्ट काव्य आत्मज्ञाननुं छे. आत्मज्ञानथी आत्मानी उन्नति थाय छे, ज्ञान ध्यान वैराज्य नीति विगेरे सद्गुणोथी जग उन्नति भूतकाळ इ हती वर्तमानमां थाय छे अने भविष्य मां थशे, आत्मानी अनंतशक्तियाने खीलववा माटे आत्मज्ञाननो अपूर्व महिमा छे, उच्च विषयोनां काव्यो आत्माओने उच्च करे छे. आत्मानुं उच्च जीवन आत्मानंदथी थाय छे. अमानंदनी खुमारी आत्मप्रभुनी उपासनाथी थाय छे. कोइ कोइ समयमां आत्मामांथी कोइ कोइ विषयनी स्फुरणा प्रगटी नीकले छे. भिन्न भिन्न विषयो - नीभिन्न भिन्न स्फुरणाओ द्रव्य क्षेत्र काळ भावधी काव्य छंदमां उत्पन्न भेली तेनो संग्रह आ भजन संग्रह द्वितीय भागमां करवा मां आव्यो छे, स्वाभाविक स्फुरणाओनुं जे उत्थान थाय छे, तेमां अपूर्व आनंदशक्ति रहेली छे के ते स्फुरणामय भजनाने वांचतां गातां श्रवण करतां भव्यजीवोने विद्युत्नी पेठे चमत्कारी असर थाय छे, तेनो अनुभवीओने अनुभव थाय छे, जेटला प्रमाणमां आत्मज्ञान ध्यानना उच्चाशयथी हृदय खेडायलुं होय छे, तेटला प्रमाणमां हृदयमांथी उच्चाशयनी आत्मज्ञान ध्यान वैराग्य नीति विगेरे गायनद्वारा स्फुरणाओ बहार प्रकाशे छे, अमारु चातुर्मास संवत् १९६३ नी सालनुं साणंदमां हतं. त्यांथी विहार करी गोधावीमां मास कल्प कर्यो हतो ते समये, छंद विगेरेमां केटलाक आद्यना ६० पानामां लखेला उद्गारो नीकळ्या हता, त्यार बाद गोधावीथी विहार करी कारतक वदी ७ ना रोज अमदावाद आववानुं थयुं हतुं ते प्रसंगे ६० थी १५० सुधीना भजन पद जोडायां हतां, त्यारवाद अमदावादथी पोशवदी १२ ना रोज विहार करी शाहीबागमां शेठ लल्लुभाई रायजीना बंगलामां केदलांक पदो, गायनो विगेर
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