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प्रभुनी भक्तिथी शक्ति, प्रगटती आत्मनी व्यक्ति;
प्रभुने वदतां शान्ति, प्रभुने वदतां कांति. प्रभुजी रहेमना दरिया, प्रभुजी ज्ञानथी भरिया: सेवकनां कष्ट कापोने, सेवकने सुख आपोने. प्रभुना ध्यानथी तरशु, अनंतां सिद्ध सुख वरशं; बुद्धयन्धि बाळने तारो, हृदयनी अर्ज अवधारो.
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॥ ५ ॥
॥ ६ ॥
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सम्प महिमा.
गझल.
॥ १ ॥
अगत्मा संपमां सुखो टलेले संपथी दुःखो, जगत्मां संपथी सारु, मळे छे संपथी प्यारु. जगतमां संपथी शान्ति टळे छे संपथी भ्रान्ति, जगत्मा संपथी सुमति, टले छे संपथी कुमति. ॥ २ ॥ जगत्मां संप छे मोटो, टले छे क्लेशनो गोटो,
॥ ४ ॥
जगत्मां संप गुणकारी, जगत्मां संप मुखकारी ॥३॥ धर्याथी संप सुख धाशे, धर्याथी संप दुःख जाशे, भला संपे रहो जंपे, नहि को क्लेशी कंपे. उदयनुं चिन्ह छे साधुं सदा सुसंपमां राचु, शुभोदय सर्व ले एमां, रहो राची सदा तेमां ॥ ५ ॥ सदानुं शर्म थानारु, सदानुं दु:ख जानारु, मळे छे संपथी साचं, टले छे संपथी काचं. ॥ ६॥ जगतमां संप छे भारी, करो सहु संपनी यारी, टळे छे संपथी क्लेशो, सुखी छे संपथी देशो• ॥ ७ ॥ सहुथी संप छे मीठो, नहि को तेह सम दीठो, सुजन सह संपथी राजे, उदयनी टोकमां गाजे. ॥ ८ ॥