Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 16
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Catalog link: https://jainqq.org/explore/520516/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान मोहरिते सच्चवयणस्स पलिमंथू (ठाणंगसूत्त, ५२९ ) मुखरता सत्यवचननी विघातक छे' प्राकृतभाषा अने जैन साहित्य विषयक संपादन, संशोधन,माहिती वगेरेनी पत्रिका संकलनकार : आचार्य विजयशीलचन्द्रसूरि• हरिवल्लभ भायाणी DDN 5 0 . . . . . . . . .1 .1.] શ્રી હેમચંદ્રાચાર્ય कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृतिसंस्कार शिक्षणनिधि अहमदाबाद Jairteacatiorrherrettura Formate-&-Persurarserom www.jainellorary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोहरिते सच्चवयणस्स पलिमंथू (ठाणंगसुत्त, ५२९) 'मुखरता सत्यवचननी विघातक छे' अनुसंधान प्राकृतभाषा अने जैनसाहित्य विषयक संपादन, संशोधन, माहिती वगेरेनी पत्रिका संपादको : विजयशीलचन्द्रसूरि हरिवल्लभ भायाणी - શ્રી હેમચંદ્રાચાર્ય कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि अहमदाबाद २००० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान १६ संपर्क : हरिवल्लभ भायाणी २५/२, विमानगर, सेटेलाईट रोड, अहमदाबाद - ३८० ०१५ पत्र-व्यवहार : अतुल एच. कापडिया A-9, जागृति फ्लेट, महावीर टावर पाछळ, पालडी, अमदावाद-३८०००७ फोन : ६५८८८७९ प्रकाशक : कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि, अहमदाबाद, २००० किंमत : रू. ६०-०० प्राप्तिस्थान : सरस्वती पुस्तक भंडार ११२, हाथीखाना, रतनपोल, अहमदाबाद - ३८० ००१ मुद्रक : क्रिष्ना ग्राफिक्स किरीट हरजीभाई पटेल ९६६, नारणपुरा जूना गाम, अहमदाबाद - ३८० ०१३ (फोन : ७४९४३९३) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन प्रस्तुत अंकमां केटलीक अद्यावधि अप्रकाशित संस्कृत-प्राकृत कृतिओ प्रकाशित करी छ । विशेष तो 'देशीनाममालासारोद्धार' एक महत्त्वनी कृति छे, केम के तेथी हेमचंद्रीय 'देशीनाममाला'ना पाठांतरो प्राप्त थाय छे । कर्ता विमलसूरिने 'देश्यदीप' नाम अभिप्रेत होवानुं जणाय छे । जैन अने प्राकृत साहित्यमां रस धरावनार सौ आ अंकनो आदर करशे एवी आशा छे विजयशीलचन्द्रसूरि हरिवल्लभ भायाणी Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 227 अनुक्रणिका १. श्रीधनहर्षशिष्यकृत-विज्ञप्तिका लेख -विजयशीलचन्द्रसूरि 1 २. भुवनसुन्दरी कथायां वर्णितानि सामुद्रिकशास्त्रकथितलक्षणानि -विजयशीलचन्द्रसूरि 28 ३. श्रीविमलसूरिकृत-देशीनाममालोद्धारः -सा. दीप्तिप्रज्ञाश्री 32 ४. ललितविस्तर -डॉ. प्रीतम सिंघवी 217 ५. व्यंग्यहीयाली -श्री भवरलाल नाहय 224 ६. केटलांक संशोधनो-प्रकाशनो विषे माहिती ७. माहिति विभाग १. मुनिश्रीजंबूविजयजीए हाथ धरेली योजना -हरिवल्लभ भायाणी 230 २. जैनविद्या -हरिवल्लभ भायाणी 231 ३. पाणिनिकृत-अष्टाध्यायी -हरिवल्लभ भायाणी 231 ४. 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास'- नवसंस्करण -जयंत कोठारी ५. प्राचीन-मध्यकालीन साहित्य -जयंत कोठारी ८. पत्रचर्चा (१) विहंगावलोकन -मुनि भुवनचन्द्र 236 (२) सारस्वतोल्लास : एक दृष्टिपात -मुनि भुवनचन्द्र 240 श्रद्धांजलि (१) पं. श्रीदलसुख मालवणिया 245 (२) पं. श्रीअमृतलाल भोजक 234 संग्रह 235 247 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीधनहर्षशिष्यकृतः विज्ञप्तिकालेखः ॥ -सं. विजयशीलचन्द्रसूरि जैन श्रमण-परंपरामां विज्ञप्तिपत्रो लखवानी एक समृद्ध प्रणालिका मध्ययुगमां हती, जेना लीधे आपणने अनेक काव्यमय श्रेष्ठ रचनाओ तेमज ऐतिहासिक माहिती वर्णवतां दस्तावेजी लेखो तथा चित्रो पण प्राप्त थयां छे. विज्ञप्तिपत्रो मुख्यत्वे त्रणेक प्रयोजनोथी लखातां : १. पर्युषणापर्व वीती जाय, पछी गच्छनायकनी क्षमापना करवाना प्रयोजनथी; २. गच्छपतिने पधारवानी के पोताना क्षेत्र (गाम) माटे चातुर्मास माटे साधु मोकलवानी विनंतीना प्रयोजनथी; ३. शिष्यो द्वारा गुरुभक्तिथी प्रेरित. आ प्रकारना विज्ञप्तिपत्रो-लेखोनी संख्या घणा मोटी छे, परंतु शोधको/ अभ्यासीओनी प्रतीक्षा करती ते सामग्री विविध भंडारोमां सचवाई पडी छे. ___ अहीं तेवो ज एक अप्रगट विज्ञप्ति-लेख प्रस्तुत थाय छे. सामान्यतया आवा लेखो ओळियां (Scroli)ना रूपमां जोवा मळे छे. पण आ लेख प्रतना स्वरूपे मळ्यो छे, अने वळी ते अधूरो पण छे. आ अंगे विभिन्न अटकळो थई शके : लेख-कर्ताए प्रथम आनो खरडो आ रूपे लख्यो होय अने ते अधूरो रही गयो होय. अथवा कोईए मूळ लेखनी नकल उतारी होय अने ते अधूरी ज रही गई होय. लेख-कर्ताए पोतानुं नाम नथी आप्युं, पण पोतानी ओळख 'धनहर्षना शिष्य' (८६) तरीके आपी छे. वळी, तेओ जे गच्छपति प्रत्ये लेख पाठवे छे, तेओनुं स्पष्ट नाम पण क्यांय जणावतां नथी; 'तातपाद' के 'तात' तरीके ज वर्णन आप्युं छे. एक ठेकाणे 'तपागणपते !' (२४) अने एक स्थाने 'चन्द्रगणाधिप' (३३) तरीके गुरुने कर्ता वर्णवे छे, ते परथी गच्छनायक चन्द्रकुलना अने तपागच्छना वडा होवानुं सूचित थाय छे. आम छतां, एक स्थळे तेमणे गुरु माटे 'कमाजन्मनः (१२७) एवं विशेषण प्रयोज्युं छे, ते सूचवी जाय छे के आ लेख 'कमाशा' शेठना पुत्र-विजयसेनसूरिगुरु उपर लखवामां आव्यो छे. पत्रलेखननो समय जो के निर्देशायो नथी, परंतु स्वाभाविक रीते ज अनुमानी शकाय छे के श्रीहीरविजयसूरिना स्वर्गारोहण पछी ज, १६५२ पछी ज Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 2 आ लेख लखायो होवो जोईए; ते विना सेनसूरि महाराज माटे 'तातपाद' शब्दनो प्रयोग असंभवित छे. हीरगुरुनी विद्यमानतामां तेमनो निर्देश आ शब्दथी थतो होवाना दाखला मळ्या छे. एटले लागे छे के तेमनी विद्यमानता पछी सेनगुरु माटे पण आ प्रयोग शिष्यवृन्दे चालु कर्यो हशे . अने आ लेख जहांगीर बादशाहना शासन- काळमां लखायो होवानुं पण मालूम पडे छे. पद्य १०३मां 'तातपादे नृपति पासेथी १२ दिननो अमारि पट्ट प्राप्त करेलो तदनुसार अहीं पण अमारिपडह वगडाव्यो हतो' तेवो निर्देश छे. तेनो इतिहास एवो छे के अकबरना देहान्त पछी जहांगीरना शासनमां, अकबर द्वारा प्रस्थापित अमारिघोषणानी व्यवस्थामां त्रुटी आवेली. तेथी विजयसेनसूरिए फरीथी तेने प्रतिबोध करीने १२ दिवसनो अमारि-पट्ट प्राप्त करेलो. लेखगत १०३मा पद्यमां ते घटनानो ज संदर्भ होवानुं मानी शकाय तेवुं छे. प्रसंगोपात्त नोंधवं जोईए के जहांगीरे आपेल ते फरमान - वेळानी घटनानुं आंखेदेख्यं चित्रांकन, दरबारी चित्रकार उस्ताद शालिवाहने कर्तुं हतुं, जे आजे अमदावादमां विद्यमान छे. ते फरमानना संदर्भों तथा चित्रो धरावता विज्ञप्तिपत्र साथै संकळायेला विवेकहर्ष गणिने याद करीए तो, प्रस्तुत विज्ञप्तिलेख तेमनी रचना होय तो बनवाजोग छे. लेख लखनारा अमदावादमां चातुर्मास छे (८४) अने गच्छपति पत्तनपाटण बिराजे छे (८३) ते तो स्पष्ट ज छे. लेखना प्रारंभे १८ पद्यो मंगलाचरणनां छे, जेमां श्रीशान्तिनाथनी स्तुति छे. तेमांये प्रथम आठ पद्योनो प्रारंभ 'स्वस्ति' शब्दथी थाय छे, ते तो अद्भुत लागे छे. १९मा पद्यमां गूर्जर देशनुं वर्णन छे, तेमां तेने अकबर - प्रशासित देश तरीके वर्णव्यो छे. आ 'अकब्बरो यं प्रशास्ति' एवो निर्देश छे के आ लेख अकबरनी हयातीमां ज लखायो होवानुं, ते परथी, लागे. परंतु १२ दिनना अमारिपत्रवाळा संदर्भ साथे मेळवतां आवुं मंतव्य यळवुं ज पडे; आ प्रकारनुं वाक्य ए कविनी विचित्र वर्णनशैलीनो नमूनो पण गणाय, अने अकबर प्रत्येना रूढ सद्भावनी टेववश थली अभिव्यक्ति तरीके पण आने मानी शकाय. आ पछी ६४ पद्योमां 'पत्तन' नुं वर्णन थयुं छे, जेमां, २० - २३वप्र (किल्ला) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .3 वर्णन; २४-३३-परिखा(खाई) वर्णन; २५-३९ सरस्वती नदीनुं वर्णन; ४०-४६ गायो, वर्णन; ४७-५१ महिषी (भेस) वर्णन; ५२-५६ श्राद्ध (श्रावक) वर्णन; ५७-६३ श्राद्धी (श्राविका)वर्णन; ६४-६८ जिनमन्दिर वर्णन; ६९-८३ उपाश्रय वर्णन-आम पेटावर्णनो छे. आमां पद्य ४४मां चोरी माटे 'चतुरिका' शब्द प्रयोजायो छे, ते ध्यानार्ह छे. ५९मां श्राविकाओना सेंथामां पूरेला सिन्दूरनो निर्देश छे. उपाश्रय-वर्णनमांउपाश्रयो चूनाथी धोळेला, भीत पर हाथीनां सौम्य चित्रो छे, धूप-सुगंधथी ते महेकता होवामुं, मोतीजडेला चंदरवा-पुंठियां बांधेला होय वगेरेनुं वर्णन माहितीसभर तेमज रसप्रद छे. तो उपाश्रयमां वसता साधुओनी कामगीरीनी वातो पण नोंधपात्र छे. कर्ता जणावे छे : आचार्य (पूज्यपादः) वाचकोने, वाचको पंडितोने अने पंडितो शिष्योने भणावता हता. वळी ते बधा शब्दशास्त्र, शब्दकोश, तर्कशास्त्र, जिनगमो वगेरे भणे-भणावे छे, तेमज जूना-नवां शास्त्रोनुं लेखन, वाचन, योजना तेम ज शोधन पण चाली रह्यां छे. पद्य ८३मां श्रीतातपादनो तथा पत्तननो अने ८४मां धर्मधाम तेमज अहम्मद राजाए स्वनाम उपरथी स्थापेल 'अहम्मद' शहेरनो उल्लेख थयो छे. ८६मां धनहर्षशिष्य विज्ञप्तिका करी रह्यानी नोंध छे. ८७-९३मां प्रातः-वर्णन अने ९४९७मां रवि-वर्णन थयुं छे. ९८-९९मां लेखकार पोतानी धर्मचर्याना विशेष- बयान आपे छे के 'हुं व्याख्यानमां, श्रीमानतुंगाचार्ये रचेल 'शीलभावना' ग्रंथ परनी श्रीरविप्रभाचार्यकृत टीकार्नु वाचन करूं छु. आ मानतुंगाचार्य कया ? तेमज तेमनो आ ग्रंथ कयो ? तेनो ऊहापोह तथा शोध थवा जोईए, तेम सूचन कर उचित छे. रविप्रभाचार्ये सं. १२२९मां 'शीलभावना' ग्रंथ पर वृत्ति रच्यानो उल्लेख तो 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' (पृ. १७५)मां मळे ज छे. . ___ १००मा पद्यमां साधुओ-साध्वीओनुं अध्ययन तथा योगोद्वहन सुखे प्रवर्ततुं होवानी वात जणावी छे. १०१मां वार्षिक पर्वनो, २मां नव व्याख्याने कल्पसूत्रवांचननो, ३मां १२ दिनना अमारि पत्रनो, ४ थी ७मां अमारिघोषणानो निर्देश छे. ८मां भाविकोए करेल ३०, १५, १०, ८, ५ उपवास-तपस्यानो, ९मां ६४ स्नात्र Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ 4 भणायांनो अने १०मां १७ प्रकारी पूजा भणायानो उल्लेख थयो छे. ११मां याचकोने दाननी, १२मां साधर्मिकवात्सल्यनी, १३मां चैत्यपरिपाटीनी अने १४मां तातपादना पसाये आ बधुं रूडुं थयानी वात वर्णवी छे. ११५ थी ४१ सुधीनां पद्योमां गुरुनुं वर्णन थयुं छे, जे गुरुभक्तिनो श्रेष्ठ नमूनो पूरो पाडे छे. ४२- ४७ मां तातपादने लेख (पत्र) लखवानी विज्ञप्ति तथा ते माटेनी तीव्र उत्कंठा व्यक्त थई छे. १४८मां पोतानी वन्दना तातपादने सदैव छे तेम निरूपे छे. १४९ थी १६२ पद्योमां अमदावादना श्रद्धावंत गुरुभक्त श्रावकोनी दीर्घ नामावली छे. तेमां देवचंद तथा समर्थ - ए बे श्रावकोए पाटणमां पूज्यने वांद्या होवानी (५२) यादी छे; श्रावकोनां नाम साथे जोडेल अटकोमां जणाती विशेषता आवी छे : वखारियां - वक्षस्कारिक (४९), गाला- गल्लक (५२), परीख - परीक्षक (५५) इत्यादि. श्रावक - नामावली पूर्ण थतां ज ' इति श्राद्धनामानि लखेल छे, अने प्रति पूर्ण थाय छे. आम एक रसप्रद कृति अपूर्णतामां ज पूर्ण थाय छे. जे प्रतना आधारे आ संपादन थयुं छे ते प्रत खंभातना श्रीविजयनेमिसूरिज्ञानशाळा - भंडारनी छे. पांच पानानी आ प्रत त्यांनी यादीमां 'पत्तननगरवर्णनं ' एवा नामे नोंधाएली छे. प्रत ऊधईथी कोरायेली छे. प्रांते, एक मुद्दो नधुं के आ लेख मात्र विज्ञप्ति - लेख ज छे, लेख नहि. केम के आमां क्यांय क्षमायाचनानी वात छे नहीं. विज्ञप्ति-लेखनुं छंदोवैविध्य ध्यानपात्र छे, तो कविनी प्रसन्न कल्पनाशक्ति पण तेमने एक नीवडेल पद्यकार/ काव्यकार तरीके स्थापी आपे तेवी छे. विज्ञप्ति - लेखः ॥ स्वस्ति श्रीकरिणी यदीयविलसत्पादद्वयी सोमजा मध्ये नर्मविधिं चकार चतुरा दीप्रप्रभाम्भोभरैः । विघ्नालीनलिनीनिबर्हणकरी श्रेयस्विनां शङ्करी व्यापत्संहतिदुः सपत्त्रपूतनासन्त्राससम्पादिनी ॥ १ ॥ स्वस्ति श्रीदिविषद्रवीव दिविषद्रेहं यदीयक्रमद्वन्द्वं तारतरत्विषा विलसितं व्यद्योतयद् भास्वती । क्षमापना - Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .5 तस्याऽनन्तचिदः प्रभारमहसस्त्रैलोक्यपूज्यस्य चेत्यादौ भासयतः परं त्रिजगती चित्रं न तन्मन्महे ॥२॥ स्वस्तिश्रीश्चरणद्वयं भगवतो यस्यातिविभ्राजयांचक्रे तां प्रति तत्सितत्विषमिव श्रेष्ठा तमी तं च सा । इत्यन्योन्यसुदीप्यदीपकमहासम्बन्धसम्बन्धिनौ तौ निःशेषरसास्पृशां वृषजुषां स्यातां प्रसन्नौ सदा ॥३॥ स्वस्तिश्रीजलधिर्ददात्यसुमतां मुक्तिश्रियं पावनामाख्यानं स्मृतमेव तच्चरणयोरभ्यर्चनं किं पुनः । दृष्टः सन्तमसश्छिदां प्रकुरुते प्रागग्रजोऽहिद्विषस्तत्कि वाच्यमिहास्ति पुष्करमणौ पद्यां दशोः सङ्गते ॥४॥ स्वस्तिश्रीयंतरन् यदीयचरणा अर्णासि पाथोभृतः कामं कल्पनगाः समीहितभरान् प्राणस्पृशां भूयसाम् । तन्मध्ये हि पदानवैमि रुचिरान् सद्दानशौण्डान् यतः पाथोदाः कतिमास एव ददते कल्पा अमुष्मिन् भवे ॥५॥ स्वस्तिश्रीकरणं यदीयचरणं(ण)द्वन्द्वस्य चर्चाविधि विज्ञायाऽतिविदध्युरद्भुततया स्वप्नास्तमेवादरात् । दण्डं कुम्भनिबन्धनं घटकृतो निश्चित्य तनिर्मितं कुर्वीरंश्च निबन्धनेन हि विना कृत्यं न कुत्राप्यहो ! ॥६॥ स्वस्तिश्रीः श्रयति स्म मोदनिवहैर्यं योगिनं स्वःसदां वृन्दैर्वन्द्यपदद्वयं शममयं निःशेषनष्टामयम् । पाथोनाथमिवापगामृतलिहां नीराधिनाथाङ्गजाराजीवं च सरोरुहासनसुताश्वेतच्छदं व्योमगम् ॥७॥ स्वस्तिश्री: परिपूरितस्य विलसत्पादद्वयाम्भोरुहे यस्याऽस्वप्नगणाः सदा शुशुभिरे किं नाम पुष्पन्धयाः । विस्फारङ्गुलिपत्रसुन्दरतरे रङ्गत्प्रभाभासुरे रेखादम्भमृणालदण्डकलिते लक्ष्मीविनासोचिते ॥८॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .6 रसास्पृशामर्हणामाददानं यं दानशौण्डं प्रवदन्ति सन्तः । यः पर्यणैषीद्वरसिद्धिकामिनी, तथापि यो ब्रह्मवतां धुरि स्थितः ॥९॥ द्विधा समस्तान् प्रजघान यो द्विषस्तथाप्यमन्युप्रथितावदातभाक् । यो निर्मिमीते नहि कस्यचिन्नति तथाप्यमानीति वचस्विनोऽब्रुवन् ॥१०॥ न स्थाणुभावं न च भीमभावं न चैकदक्त्वं न च षण्ढभावम् । बरीभरीति स्म न बभ्रुभावं शिवो महेशोऽपि हि शङ्करोऽपि ॥११॥ न चैकपात् त्वं शिपिविष्टभावं न रुद्रभावं न च शूलिभृत्त्वम् । दरीधरीति स्म न गोपतित्वं महाव्रती शम्भुरपीश्वरोऽपि ॥१२॥ शिवश्रीपरीरम्भविद्वन्मनस्कं प्रणेमुश्चतुःषष्टिराखण्डला यम् । ददे यश्च तेषामनन्तां समृद्धि भवत्येव नान्तर्गडुः शिष्टसेवा ॥१३॥ ब्रुवाणस्य तत्त्वं ददानस्य चेष्टं ददाना अभीष्टं सतां पारिजाताः । लभन्ते स्म यस्योपमां नैव जातु प्रपन्ना यतः सन्ति ते मूकभावम् ।।१४।। क्षमस्व तापं हि हिरण्यरेतसस्तथापि कार्तस्वर ! नाप्स्यसि त्वम् । औपम्यमग्रस्य जिनेन्द्रवर्मणः प्रभूतभासो भवतो भुवस्तले ॥१५।। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ अनुसंधान-१६.7 जिनाधिराजस्य तनोस्तुलामहं दरीधरीमि स्म न जातु भूतले । इतीव हेतोः कनकं हि दिव्यति विशेत् कृशानौ कथमन्यथा हि तत् ॥१६॥ विश्वाधीश्वरविश्वसेनतनयः श्रीशान्तितीर्थेश्वरश्चक्रे यः शुचिकेवलेन निबिडाज्ञानक्षयं भूस्पृशाम् । स्वीयेनेव करोत्करेण नलिनीनाथस्तमिश्रक्षयं तापेनेव निजेन सप्तकिरणो निःशेषजाड्यच्छिदाम् ॥१७॥ इति नुतिपथं नीतो भक्त्याऽचिरातनुसम्भवस्त्रिदशवृषभैनित्यस्तुत्यक्रमाम्बुजयामलः । प्रशमितमहामोहं लब्धापुनर्भवसम्पदं जगति वितरन् शान्ति शान्ति प्रणम्य तमीश्वरम् ॥१८॥ इति अष्टादशभिः काव्यैः श्रीशान्तिनाथवर्णनम् ॥ पृथ्वीपालः प्रथितमहिमाऽकब्बरो यं प्रशास्ति श्रेयःस्थानं स जयतु चिरं गूर्जरो नाम देशः । मुक्ताक(का)र्तस्वरवरमणीमुख्यसम्पन्निधानं दस्युव्रातैरकलितपथः सर्वनीवृत्प्रधानः ॥१९॥ अथ पत्तननगरवर्णनम् ॥ तत्र प्रथमं वप्रवर्णनं यथाअपि सहनसमूहैर्भूरिशौर्यैरभ(भे)द्यो मणिमयकपिशीर्षश्रेणिसंशोभितश्रीः । कनकघटितसालो राजते यत्र पूते किमु धरणिमृगाक्ष्याः कंकणं वृत्तवृत्तम् ! ॥२०॥ न विशति परमोषी यत्र सालस्य सत्त्वानहि सदनमणौ वा विद्यमाने तमिश्रम् । उदयमियति पत्यौ रोचिषां क्षोणिपीठे न हि विशति शरीरे शीतवेगव्यथा वा ॥२१॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .8 इति मनसि विमर्शो जायते कोविदानां नगरमभि निरीक्ष्य प्रोच्छ्रितं वृत्तसालम् । किमु निधिमभिवेष्टुं नायको दृक्श्रुतीनामकृत वलयभावं लोभधर्माभिभूतः ॥२२॥ जनपददयितस्यानन्दवृन्दप्रदात्री किमुत नगरयोषिद् वप्रदम्भान्नितम्बे । अधरदखिलचीरं वा कलापं कलापं निजनिगरणशोभं वासमुक्ताकलापम् ॥२३॥ इति चतुर्भिः काव्यैर्वप्रवर्णनम् ॥ अथ परिखावर्णनं यथास्वर्णरत्नमणिभिर्विनिर्मिता संयुताऽतिविशदैः कुशेशयैः । नीरपूरनिभृता च खातिका यत्र सर्वगुणधाम्नि दिद्युते ॥२४॥ गत एव विहितो विधिनाऽयं, कोविदाः ! कपटतः परिखायाः । श्रीअकब्बरनृपस्य विरोधि-क्षोणिनाथहरिणग्रहणार्थम् ।।२५।। दुर्ग एष लभते प्रतिबिम्बं खातिकापयसि किं वद विद्वन् ! । तिग्मसानुमहसा बहुतप्तः स्नातुकाम इव स प्रविवेश ॥२६॥ वप्रसंनिधिगता च खातिका भात्यशेषगुणवारिवारिधिः । किं सितद्युतिमुखी निजं धवं सङ्गताऽङ्गुलिगतेव मुद्रिका ॥२७॥ वृत्तवप्रपरिखे प्रविभातः कुण्डले श्रवणयोः पुरलक्ष्याः । पादयो[स्तु] कटके अथवा ते सज्जिते इति वदन्ति विदग्धाः ॥२८॥ पुरि यत्र मनोरमश्रियां लसतो वरवप्रखातिके । शयने दयिताङ्गने यथा सविधे सविधे स्थिते उभे ॥२९॥ स्थितेन मूर्धन्यसमेन भासते वृत्तेन वप्रेण वरेण्यखातिका । हृदीश्वरेणेव सरोरुहानना द्विजातिजातेन यथा रसज्ञका ॥३०॥ संवीक्षितुं पुरमनोहरतां सुलङ्कावप्रः समागत इहाऽतिहठादरक्षि । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ 9 कृत्वा कराग्रवलयं परिखाच्छलेन भूयोषिता हि सुनरं नहि कापि जह्यात् ॥३१॥ यत्र चारुपरिखा व्यभासयद् दुर्गमुत्तममहीधराचलम् । किं चकासयति नो विकूणिका वक्त्रमालपममोत्तरं सुधीः ||३२|| या विराजति पुरीव मानिनी तद्गलः किमुत दुर्ग एषकः । खातिकोपरि वशात् सुरेखया संयुतोऽस्ति मम नैव संशयः ||३३|| इति दशभिः काव्यैः परिखावर्णनम् ॥ अथ सरस्वतीसरिद्वर्णनं यथा यत्रिवासिजनतासुचातुरी - निर्जिता वहति शारदा पयः । न ब्री (ब्रवी) ति जनपादघट्टिता क्षालयत्यशुचिचीवराण्यहो ! ||३४|| यत्र वासमधिगच्छति स्वयं स्थानपावनतया सरस्वती । मानवा यदि हि तन्निवासिनः कोविदाः किल न तत्र कौतुकम् ॥३५॥ यत्र बालतरुणा स्थविरा वा येऽपि सन्ति निखिलाः सुधियस्ते । आजनुर्विहितसारशारदो-पासिनां हि कविता न चित्रकृत् ||३६|| यत्र पूर्जनविवेकचारुतालोकनाय समियाय हंसगा । सा प्रवाहमिषतस्ततः परं तत्र च स्थितगतीव रागतः ||३७|| यत्र पावनपयः प्रपूरिता मत्तषट्चरणपद्मसङ्गता । गर्जतीत्यथ च युक्तमीदृशं स्वे धवेऽपि हि तथैव दर्शनात् ॥३८॥ यत्र नादिवणिगादियोगतः शिक्षितादरमहाविसर्जना | भाति हंसगसुता तदीयका द्योगतश्च विबुधा नरोऽभवन् ॥३९॥ इति षड्भिः काव्यैः सरस्वतीसरिद्वर्णनम् ॥ अथं गोवर्णनम् - स्तनैश्चतुर्भिः समलङ्कृता सदाऽस्ति वल्लभा यत्र गवां ततिर्नृणाम् । कुतूहलं तद्विदुषां न जायते यतः स्तनद्वन्द्वयुताऽपि वल्लभा ॥४०॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 10 अहं [तु] जाने हिमवालुकाभिर्गात्राणि यासां परियोजितानि । माहा (? गाव ?) स्ततो बिभ्रति य[त्र] पाण्डुतां वाच्यं पुनः किं हि तदीयनृणाम् ॥४१॥ कोवि (टि) सयरिंशदियं सुधाभुजां यदियलाङ्गलकचान्निषेवते । पयस्यसेव्यन्त यदा हि मानवैस्तासां गवां तत् कुतुकं न मन्महे ॥४२॥ पयोधराणां तु चतुष्टयेनो द्विरत् पयो वीक्ष्य यदीयमूधः । वक्त्रैश्चतुर्भिः प्रथ[य]न् श्रुतिध्वनि धातेति जानन्ति बुधा हृदि स्वके ||४३|| असमया ह्युषया सह कन्यया किल विवाहयितुं सुपयो वरम् । चतुरिका विहितेव विरञ्चिना स्तनचतुष्कमिषात् सुरभिव्रजे ॥४४॥ यत् पातुमीयुः समलोकपालकां सुधां परित्यज्य चतुःस्तमो (नो) पधेः । जानामि यत् पुंसवनं सुधाधिकं सहस्रशो यत्र विभाति (न्ति) धेनवः ॥४५॥ कनकरत्नविभूषितकूणिका, चरणयोजितनूपुरभूषणा । अपि गलस्थितमौक्तिकमालिका स्तनयुता सुमुखीव हि सुव्रता ॥ ४६ ॥ इति सप्तभिः काव्यैर्गोवर्णनम् ॥ अथ महिषीवर्णनम् - यासामतिश्यामतनुत्वचाममून् (?) पयोभृतः पीनपयोधनव्रजान् । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 11 निरीक्ष्य पार्वे सरसः समुद्गताः कारस्करा इत्यवधार्यते बुधैः ।।४७॥ क्षीराज्यदघ्नां सलिलाधिनायकाः स्वश्यामतानिर्जितषट्पदश्रियः । सद्वाव(ल?)धिघ्राणविषाणलोचनाः नित्यं महिष्यः प्रविभान्ति यत्र ताः ॥४८॥ क्षीरक्षीरजपादनीरहविषां येषामिहार्थो भवेदानेया स्वकधाम्नि तैरियमिति प्रज्ञापनार्थं स्फुटम् । वक्षोजन(न्म)स्पृ[श]त्पयोनिधिमितान् देवः पयोजासनो यस्यां सा महिषीततिः शितितनुर्यत्राऽतिविभ्राजते ॥४९।। यस्यां पीनमधश्चतुःपरिलसद्वक्षोरुहैः संयुतं पातालात् किमथानिनीषुरुरगं क्ष्माभारभुग्नं बहिः । कृत्वाऽधो निजमाननं प्रतिदिवा दन्तैः खनन् काश्यपी पीयूषाशनभर्तृसिन्धुर इवाऽज्ञायि प्रबुधै(?)र्जनैः ॥५०॥ खादन्नेव तृणाद्यसारनिचयं पाथः पिबन्नात्मना यादृक् तादृगलं परोपकृतये दक्षो महिष्युत्करः ।। मानां वितरत्यमेयसुपयो यत्राभिरामे श्रिया तद्वासी ह्युपकारकृद् यदि जना(न)श्चित्रं न तन्मे भवेत् ॥५१।। इति पञ्चभिः काव्यैर्महिषीवर्णनम् ॥ ___ अथ श्राद्धवर्णनम् । यथाशिवसुखकरं सम्यक्त्वेनाश्रितं व्रतपञ्चकं प्रथममणुकं मुक्तेर्बीजं तथा च गुणत्रिकम् । भवभयभिदादक्षं शिक्षाव्रतस्य चतुष्टयं दधति सकले धर्मे दाढ्यं यके परमार्हताः ॥५२॥ वरत[]मणीस्वर्णश्वेतोत्करैर्निभृताश्रया अभिनवपरिष्कारवातैरलङ्कृतमूर्तयः । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 12 मृगमदभरप्रोद्यच्चन्द्रभृशं सुरभीकृतैः सितरुचिसमस्वच्छैश्चीरैर्विराजितविग्रहाः ॥५३॥ प्रविजितमनोजन्मानः स्वैर्मनोरमविग्रहे निखिलसुगुणैर्युक्ता मुक्तास्तमोवृजिनवजैः । जिनवरवचोवृन्दं शृण्वत्यजत्रमनुत्तरं . परमसुधियः श्रद्धाभाजो मुखाद् व्रतिनां विभोः ॥५४॥ निजवितरणैर्येषां कल्पद्रुमा इव धिक्कृतात्रिदिवनिलयं जग्मुर्मन्ये प्रणश्य भुवस्तथा । . सकलसुखदं वयं तुर्यव्रतं प्रतिपालयन्त्यसममहिमं यत्र श्राद्धाः सुदर्शनसाधुवत् ॥५५।। कठिनकर्मवातोद्भेदप्रवीणमलं तपःपटलमतुलं श्रद्धावन्तस्तपन्ति मुदां भरात् । दुरितकदलीकन्दच्छेदप्रधानकुठारिकां विशदचरिता यत्र श्राद्धा भजन्ति सुभावनाम् ॥५६॥ इति पञ्चभिः काव्यैः श्राद्धवर्णनम् ॥ अथ श्राद्धीवर्णनम् - शिरोभालश्रोत्राम्बकमुखरदोद्यनिगरणस्फुरद्वक्षो बाहाकरकरशिखांहिप्रभृतिषु । परिष्कारवातं विविधवसुकार्तस्वरकृतं दधत्यो द्योतन्ते नलिननयना यत्र शतशः ॥५७॥ लसद्वक्षोजन्मद्वयकपटकुम्भस्थलयुता वरस्वर्णश्रोत्राभरणयुगघण्टातिसुखमाः। कलापव्याजेनानघतनुकघण्टालिकलिता निजप्राणाधीशाङ्कुशवरवशा दीप्रदशनाः ॥५८॥ प्रवेणीलाङ्गलाः क्रमणरुचिरन्यासनिपुणाः । सुधाज्योतिर्वक्त्राः करटिललना भान्ति सततम् । सुसिन्दूरस्नेहो]त्करपरिविलिप्तस्वकशिरः Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 13 प्रदेशाः सद्वस्तप्रथितमहिमा यत्र रुचिरे ॥ ५९ ॥ तथा याभिः स्वाभिर्गतिभिरनिशं सिन्धुरवरा जिता एताश्चैतान् परिदधति नारीभसिचये । किमन्यच्चातुर्य परिवदति तासां बुधजनो यकाभिः स्वर्योषाः स्वकगुणवितानैः प्रविजिताः ॥ ६० ॥ सुकृतिसदने यस्मिन्नित्यं विभान्ति मृगीदृशोऽधिकमिभमृगीदृग्भ्यो यत् तन्त्र कौतुकमस्ति नः । निजकवदने दन्तश्रेणीं वपुः कनकप्रभं सुकरयुगलं शुभ्रं वक्त्रं त्विमाः किल बिभ्रति ॥ ६१ ॥ वितरणगुणत्प्रो (प्रो) द्यत्पाणि वचः श्रवच्छूर्ति (?) (श्रवणश्रुति) जिनवरगुरुश्राद्धादीनां गुणावलिकीर्तनात् । वदनममलं स्वं कुर्वन्ति क्षणादतिपावनं नलिननयनाः श्रद्धालूनां वसन्ति हि यत्र ताः ॥६२॥ सामायिकादिसमधर्मक्रियासु दक्षा श्रीमज्जिनेन्द्रपदपूजनभव्यभक्तिः । विद्योतते बहुततिः सदुपासिकानामम्बेव या शमवतां शिवसौख्यादानाम् ॥६३॥ इति सप्तभि: काव्यैः श्राद्धीवर्णनम् ॥ अथ श्रीजिनमन्दिरवर्णनम् । यथा -- अर्हद्धाम्नां पटलमसमं वीक्ष्य विध्वस्तपीडं प्रेम्णां वृन्दं सुकृतिभविनः प्राप्नुवन्ति प्रकामम् । चक्रवाता इव परिवृढं मंक्षु पाथोजिनीनां यद्वा ज्योत्स्ना प्रियसमुदया यामिनीप्राणनाथम् ॥६४॥ व्यक्तं वीथी विलसतितरां श्रीजगन्नाथधाम्नाहो भीतं व्रजति सकलं दूरतो यां समीक्ष्य | चिन्तारत्नावलिमिव महादुर्विधत्वं नराणां या पञ्चाननततिमलं सिन्धुराणां स्मयित्वम् ॥६५॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 14 कुरङ्गनाभीहिमवालुकां(कानां) सत्काकतुण्डोत्तमचन्दनानाम् । सकेसराणां शुभगन्धगर्भ'मर्हगुणां(णानां) पटलं चकास्ति ॥६६॥ यत्र श्रेयोऽवति वरमणीमण्डलैर्मण्डितक्ष्मश्चञ्चच्चामीकरजिनवरौक:कलापश्चकास्ति । निःशेषैनश्चयमसुमतां प्रोद्दलन् दृग्गतः सन् मुक्ताजालव्रजपरिलसज्जालकश्रेणिरम्यः ॥६७॥ यत्रेशानक्षितिधरसमुत्तुङ्गदेवाधिदेवावासश्रेणिः स्फुरति विहिता शिल्पिना साररत्नैः । किं कैवल्यत्रिदिवनिगमज्ञापने दीपपङ्क्तिर्यद्वा तिर्यग्-निरयकुगतिद्वाररोधार्गलेयम् ॥६८।। इति पञ्चभिः काव्यैः श्रीजिनमन्दिरवर्णनम् ॥ अथोपाश्रयवर्णनम् । यथायत्कुड्यदेशेषु बहिर्गतेषु विशेषतश्चित्रितसामयोनीन् । अत्यद्भुतानेकपदे निरीक्ष्य बिभ्यन्ति(?) साक्षात् करिणः प्रयान्तः ॥६९॥ यदीयकुड्यानि सुधाविलिप्तान्यहनिशं भान्ति सुपाण्डुराणि । विभावरीनायकमण्डलानि लवा यथा वा हिमवालुकानाम् ॥७०॥ यदीयकुड्येषु मनोरमाणां वातायनानां प्रविभान्ति वीथ्यः । वक्त्रेषु पाथोजभुवोऽम्बकानां व्योम्नः प्रदेशेषु यथा च भानाम् ॥७१॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 15 यदीयकुड्यानि सुधातिनिर्मलान्यालोक्य विज्ञा इति जानते हृदि । एतानि तारैरिव निर्मितानि किं देवेन पाथोरुहजन्मना स्वयम् ॥७२।। दशार्धवर्णैरुपशोभितानां सवाससां मूल्यबहुत्वभाजाम् । चन्द्रोदया यत्र मुमुक्षुधाम्नि व्योम्नीन्द्रचापा इव विस्फुरन्ति ।।७३।। कास्मीरजन्मोत्तमकाकतुण्डसद्गन्धधूलीहरिचन्दनानाम् । सौरभ्यलुब्धास्त्रिदशाः [गता]गति वितन्वते यत्र तपस्विभिर्भूते ॥७४|| मुक्ताफलैरालिखिताष्टमङ्गलप्रकीर्णकच्छत्रविचित्रचित्रकम् । वितानमाभाति मुनीशमूर्धनि व्योमेव नक्षत्रततिप्रपूरितम् ॥७५॥ स्तम्भाभिरामगुणवृक्षविराजमानः पार्श्वद्वयस्थिततृणध्वजकोटिपात्रः । चन्द्रोदयोपधिवरेण्यसिताम्बरेण संशोभितो गुरुनियामकयोगयुक्तः ॥७६।। विभ्राजते मुनिनिकाय्यपरायपोतो यस्तारयत्यनुदिनं समदेहभाजः । यत्र स्फुरत्तरमनुष्यपयोधिनाथे संपूरिते सकलया कलयाऽब्धिपुत्र्या ॥७७॥ सुस्तम्भदम्भक्रमणोऽधिरोहणी वरः कुवाटश्रवणातिशोभनः । पक्षद्वयस्थाणुवरेण्यवातायनेक्षणो नीवनिषद्विजन्मा ॥७८॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अनुसंधान-१६ . 16 अलम्बनस्थापितरश्मिगूमा मुमुक्षुधामाग्रिमसामयोनिः । शीर्षाग्रसंस्थापितकुम्भकुम्भो विभासते सारसुधातिशुभ्रः ॥७९|| अनूचानपादा नृणां पूज्यपादाः क्वचिद्वाचकान् पाठ्यन्त्यग्रशास्त्रम् । कचिद्वाचकाः कोविदान् पाठयन्ति कचित् कोविदाः पाठयन्ति स्वशिष्यान् ॥८॥ कचिच्छब्दशास्त्रं कचिनामकोशः कचित्तर्कशास्त्रं क्वचित्तीर्थपोक्तिः । स्वयं भण्यते भाण्यते तत्त्वविद्भिः क्षमावद्भिरत्याहतस्वप्रमादैः ।।८१॥ कचिल्लेखयन्ति कचिद्वाचयन्ति 'क्कचिद् योजयन्ति क्कचिच्छोधयन्ति । नवीनाऽनवीनानि शास्त्राणि वाचंयमा यत्र शास्त्राब्धिमीना अमानाः ॥८२।। इति चतुर्दशभिः काव्यरुपाश्रयवर्णनम् ॥ इत्याद्यनेकैः शुभवर्ण्यवस्तुभिः संपूरिते भूरिसुखश्रियां पदे । श्रीतातपादाम्बुजपूतरेणुके गुणाधिके श्रीमति तत्र पत्तने ॥८३|| इति चतुःषष्ट्या काव्यैः पत्तनवर्णनम् ॥ श्रीमत्तातक्रमकजयुगोपास्तिनिःशेषदक्षश्राद्धश्राद्धीजनसमुदयैः संभृताद्धर्मधाम्नः । सश्रीकाऽहम्मदनृमणिना वासितात् स्वस्य नाम्ना सश्रीकाऽहम्मद]नगरतो नामयाथार्थ्यभाजः ॥८४॥ आनन्दवृन्दसहितं विनयं प्रबर्ह स्नेहेन कञ्चकितगात्रलताभिरामम् ।। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 17 सोत्कण्ठमानसमहीनमहीनभक्तिव्यक्त्यद्भुतं सबहुमानममानमानम् ॥८५।। आवर्त्तकै रविमितैः सहितैः प्रकामं भक्त्याऽभिवन्द्य वरवन्दनकैस्तु तातान् । संयोज्य पाणियुगलं निजभालदेशे विज्ञप्तिकां वितनुते धनहर्षशिष्यः ॥८६॥ नभस्तः प्रणश्यन्ति यत्रातिदूरे समग्रग्रहाणां गणा हीनभासः । प्रतापप्रकर्षस्पृशो रत्नगर्भाविभोर्विद्विषां पंक्तयो चाखिलानाम् ॥८७॥ ज्योतिर्नष्टं तारकाणां वरिष्टं यत्रोद्गच्छद्घर्मरश्मिप्रभावात् । अर्णोयोगादर्पणानां यथा वा मन्त्रोच्चाराद् वा यथा दृग्श्रुतीनाम् ॥८८॥ यियासवः सन्ति सुधाशनाध्वनो यस्मिन् समागच्छति तारकोत्कराः ।। द्विजा यथा स्यात् कि[ल] विस्त्रसागमे समीरवृन्दाच्च कुशाग्रबिन्दवः ॥८९॥ निरीक्ष्य यं सन्तमसव्रजा ययुः प्रणश्य दूरे जननीलरोचिषः । क्षणाद् यथा दृग्श्रवणं प्लवङ्गमाः पाटच्चरा वा दृढदुर्गपालकम् ॥९०॥ अनेकपौघा विषमाननं यथा कुम्भीनसा वा विनतातनूभवम् । मितम्पचा मार्गणमापतन्तं त्रिकालविद्वत्कमघप्रकर्षाः ॥११॥ इति प्रातर्वर्णनम् ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 18 सुविस्मिताम्भोजभरे स्वकस्वकादुत्थाय नीडात् प्रचलद् द्विजव्रजे । द्विजातिजातेन सुपठ्यमानऋगादिवेदे प्रसरत्प्रकाशे ॥९२॥ प्रणष्टपाटच्चरचक्रवाले विधीयमानाऽसमधर्मवृ(कृ)त्ये । मुक्तप्रमीले समजन्तुजातैर्जाते प्रभाते किल तत्र पूते ॥१३॥ इति प्रातवर्णनम् ॥ यदीयकान्तेः पुरत: सुधीभिनिरीक्ष्यते शीतमयूख एषः । प्रभाविहीनः किल पाडु(ण्डु)रच्छदच्छविर्न कस्यापि दृशोः प्रमोदकृत् ॥९४|| कवलयति कलापं तामसं यः करौघैभजति विकचभावं यं निरीक्ष्याऽब्जपंक्तिः । भवति जलतिनेमी येन तेजस्विनीयं स्पृहयति हृदि यस्मै सन्ततिर्मानवानाम् ॥१५॥ व्रजति निखिलजाड्यं क्षीणभावं च यस्माद् विषयहयरथाङ्गैः स्यन्दनो यस्य नित्यम् । अनिमिषपथपारं प्राप्तवान् श्रोणिसूतः प्रविलसति हि यस्मिन् प्रग्रहाणां सहस्रम् ॥९६।। बुधपरिवृढकाष्ठाभामिनीभव्यभालस्थलतिलकसमाभेऽम्भोजिनीप्राणनाथे । उदयमियति विश्वोद्योतके दीप्रभानौ प्रमुदितसमचक्रद्वन्द्वचित्तेऽतिवित्ते ॥९७॥ इति रविवर्णनम् ॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .19 अभिगतनवतत्त्वैर्लब्धधर्मस्वरूपैनिजतनुजितकामैस्तातभक्तौ सुधीभिः । परमसुकृतलीरार्हतैश्च प्रवीणमतिनलिनमुखीभिः संभृतायां सभायाम् ॥९८।। श्रीमानतुङ्गाभिधरसूरिकुञ्जरैविनिर्मिता या शुचिशीलभावना । रविप्रभाचार्यकृतां तदीयवृत्तिं पवित्रामथ वाचयामि ॥१९॥ वाचंयमानां च तपस्विनीनां प्रारब्धशास्त्राध्ययनं सुखेन । तथा च योगोद्वहनं मनोरममित्यादिकृत्यं सुकृतस्य जायते ॥१००।। सद्धर्मभूवल्लभवासमन्दिरे समग्रपङ्के चिकिलाहेश्वरे । भव्याङ्गभृत्कैरवशीतरोचिषि प्राप्ते क्रमाद् वार्षिकपुण्यपर्वणि ॥१०१।। समीप्सितार्था]वलिपूर्तिकल्पद्रुमोपमानं शुचिकल्पसूत्रम्। प्रभावनापूर्वमपूर्वभावतो नवक्षणैर्भूरिमहैरवाचयम् ॥१०२॥ लब्धानि तातैर्वसुधापुरन्दरात् त्रिनेत्रपुत्राम्बक(१२)सम्मितान्यलम् । दिनानि यावत् पटहः प्रघोषितः समग्रजीवाभयदानहेतवे ॥१०३॥ ओजस्विमन्यूत्करसामयोनि व्यापाद्यते स्मार्हतपञ्चवक्त्रैः । उक्ता अमारिप्रविधायकास्तथाप्यहो ! यशः पुण्यभरैरवाप्यते ॥१०४॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 20 श्रद्धालुभिर्भीमगुणैः स्मयोल्ल द्वको (?) निवृत्तो मृदुतासिधारया | उक्ता अमारिप्रविधायकास्तथाप्यहो ! यशः पुण्यभरैरवाप्यते ॥ १०५ ॥ माया भुजङ्गी निहता प्रबर्हश्राद्धैः प्रकामं समदुःखकर्त्री । उक्ता अमारिप्रविधायकास्तथाप्यहो ! यशः पुण्यभरैरवाप्यते ॥१०६ ॥ श्रद्धालुनागैः प्रहताश्च लोभप्लवङ्गमाः फालकृतिप्रबुद्धाः । उक्ता अमारिप्रविधायकास्तथाप्यहो ! यशः पुण्यभरैरवाप्यते ॥१०७॥ षड्न्यूनषड्वर्गतदर्धकैोष्ट - मिताष्र्ष्टपैञ्चाद्युपवासवृन्दम् । विधाय भव्यैर्दुरितं निराकृतं स्वदेहतो मन्दिरतो यथा रजः ॥ १०८ ॥ स्त्रात्राणि चैकाधिकसप्तवर्गमितानि जातानि जिनेन्द्र धाम्नि । विघ्नौघवारांनिधिपानकुम्भोद्भवप्रकाशानि मनोरमाणि ॥ १०९ ॥ समीरण- स्वान्तगुणैर्मितास्तताजिनार्हणा: श्राद्धवराः प्रचक्रिरे । अभीष्टमुक्त्यब्जमुखीवशक्रिया भवाब्धिमज्जज्जनताबहित्रकम् ॥ ११० ॥ सद्याचकानां गुणवाचकानामर्हदुरूणां गुणमन्दिराणाम् । द्युम्नानि भूयांसि मनोमतानि `मुदा ददुः श्राद्धावराः प्रकामम् ॥ १११ ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .21 साधर्मिकाणामशनानि(दि)वस्तुभिविधाय भक्तिं परमार्हता मुदा । द्युम्नं स्वकं जन्म निकेतनं तथा पवित्रयामासुरनेकभङ्गिभिः ।।११२।। समग्रतीर्थेश्वरमन्दिरेषु त्रिकालविद्-बिम्बनमस्क्रियार्थम् । पञ्चारवोद्घोषणपूर्वकं शिशुजगाम सङ्घन युतः प्रमोदभाक् ॥११३।। इत्याद्यनेकं शुभपर्वपुण्यकृत्यं हि निर्विघ्नतया बभूव । अकब्बरक्ष्मापतिदत्तमानश्रीतातनामस्मरणप्रसादात् ॥११४।। अथ श्रीगुरुवर्णनम् ॥ विस्फुर्जद्विजशुक्तिजोऽरुणरदाच्छादोपधिप्रस्फुरद्रक्ताङ्कोऽम्बकमीनभासुरतरः पूर्णोऽशुपाथश्चयैः । लक्ष्मी-श्रीपतिसेवितः प्रतिदिनं सद्भारतीवीचिभिगर्जिध्वानमहो सृजन् विजयतां यद्वक्त्रदुग्धोदधिः ॥११५॥ अत्यन्ताग्ररदावलीभि(नि?)भघटीमालाभिरामः सदा चक्षुषूर्वहयामलः प्रविलसद्माणप्रणालीश्रितः । भालोद्भूतविशालपावनलसल्लेखासुकुल्याधर सप्तक्षेत्रसुसेचनाय विधिना वक्त्रारघट्टोऽघटि ॥१६॥ नासावंशविराजिनीं श्रुतिलतापत्रावलीपूरितां दन्ताच्छादसुपल्लवां द्विजशुमां भ्रूभङ्गिभृङ्गावलीम् । दृग्द्वन्द्वस्तबकां युतां घृणिजलै रन्तुं हि भाग्यश्रियो यस्य स्फारमुखप्रसूनलतिकावार्टी व्यघात् पद्मभुः(भूः) ॥११७॥ नासाकूपकभासुरं श्रुतियुगारित्रं सुवक्त्राम्बरव्याजप्रोच्छ्रितशुभ्रचीवरधरं रेखात्रिकाद् रश्मिभृत् ।। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 22 प्रोद्यद्वक्त्रबहित्रकं दृढतरं बाभात्यसाधारणं दष्ट्वैतद्वितरन्ति मानवगणाः संसारवारांनिधिम् ।।११८॥ स्वामिंस्त्वद्वदनं विराजतितरां मापालचूडामणिस्तन्मूर्ध्यातपवारणं हि भवितुं भालस्थलं त्वीहते । विस्फूर्जद्विजधोरणी सुमतति सासु दण्डायते दृग्वालव्यजनद्वयं च सुभटाः कान्तिव्रजा लक्षशः ॥११९।। वृत्तस्तारतरद्विजोडुसहितो बाभाति वक्त्रोल्लसज्जम्बूद्वीप इहाग्रनक्रदिविषद्भूमीधरानुत्तरः । दृग्द्वन्द्वाऽमलपुष्पदन्तकलितोऽलीकाऽमृतांधस्सरिद्युक्तोऽन्तःस्थरसज्ञकाविषधराधीशेन विभ्राजितः ॥१२०।। पूज्य ! त्वन्मुखभूधवप्रसृमप्रोद्यत्तरः प्रग्रहव्याजानेकजिताहवोद्भटभटवातात् प्रणश्य क्षणात् । शङ्केऽहं परिवेषसालमतुलं प्रावीविशच्चन्द्रमाः निर्यात्येष ततः परं नहि कदाप्याश्चर्यकृत् तत् सताम् ॥१२१।। स्पर्धाऽकारि मुधा मया गुरुलसद्वक्त्राम्बुजेन स्वयं तेनाऽयं दुरितेन दुर्गतिगतौ दुःखीभविष्याम्यहम् । निश्चित्येति हृदि स्वके दरभरात् पाथोरुहं कम्पते स्पर्धा नो महता समं गुणकरी दोषाय सा केवलम् ॥१२२॥ शीतादेः सहनात्ययस्य पिकजं नाप्नोत् त्वदीयाननौपम्यं तज्जनितादसातनिवहान्तित्यक्षु तस्मादसून् । जग्रा[हा]त्मपलाशकैतवकरे क्ष्वेडं द्विरेफच्छलाज्जानन्तीति कुशाग्रतीक्ष्णमतयो ये सन्त्यनन्तातले ॥१२३॥ त्व[व]क्त्रेण समं तपागणपते ! स्पर्धा व्यधाद् भूयसी पद्यं तद्भवदुःकृतक्षयकृते सत्पात्रपाणौ वरे । सत्पारिप्लवपुष्पभुक्ततिमिषात् क्षाली गृहीत्वाभिधां तच्छंशोजपतीव कोविदवरा इत्येव संविद्रते ॥१२४।। उत्पेदेऽनिमिषापगापयसि किं पाथोरुहं विज्ञ हे ! जानीषे, शृणुताप्लवाय, स पुनः कस्मै वद प्राज्ञराट् ! । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 23 उच्छेदाय मलस्य, कुत्कुत इह, त्वं कौतुकं चेच्छृणु प्रस्फुर्जद्गुरुवक्त्रनेत्रपरमस्पर्धाभरात् प्राकृतात् ॥१२५।। श्वेताम्भोरुहि(ह)संगतानतिशितीन् संवीक्ष्य पुष्पव्रता(जा)न् निश्चिन्वन्ति हि मानसे निजनिजे मेधाविनोऽनारतम् । येन[नाऽकारि?] समं मुखेन सुगुरोः स्प र्धाभरः प्रोच्चकैस्तस्माल्लेगुरमुष्य दुःकृतचयाः किं मूर्तिमन्तोऽभितः ॥१२६।। त्वं जानासि सखे ! कुतः सितरुचिः संक्षीयते ? नो, अहं जाने मित्र !, वद त्वमेव, रुचिशो[ऽद:?] श्रूयतां, सोऽवदत् । बाहल्याद् वृजिनस्य, तच्च भण भोः ! कस्मान्मधा स्पर्धनात् तत् केनास्ति, मुखेन, स(क)स्य स पुनः, श्रीमत्कमाजन्मनः ॥१२७|| सवृत्तः सकलः सितः स्वजनुषः पद्मासगर्भः स्वयं यद् ग्रस्येत विधुंतुदेन हिमरुक् तद्यौक्तिकं मन्महे । संहर्ष चकृवान् मुखेन सुगुरोः साकं यतोऽयं कुधीन स्यात् किं वद् कोविदप्रतिवचस्तज्जन्मनः पापकात् ।।१२८।। पात्यन्ते हिमवालुकाकणगणे कृष्णानि यत् पञ्चषट् तद् दृष्ट्वा विमृशन्ति पण्डितजना एवं स्वके मानसे । त्वद्वक्त्रस्य गुरो ! लसत्परिमलस्पोद्भवात् पातकात् लोहोद्भूतघनप्रहारनिचयान् स प्राप्तवान् चा(बा)लिशः ॥१२९॥ मा गर्वं कुरु पूर्णताविषयकं राकेयशीतयुते ! यत् त्वत्तोऽप्यधिकोऽस्ति मद्गुरुमुखस्फाराऽमृतप्रगहः । आधिक्यं कथमित्यवैहि स दिवा रात्रौ च धामाग्रिमः पूर्णोऽक्षीणतनुर्विधुन्तुदमुखी ग्रासः कलङ्कोज्झितः ॥१३०॥ यद्रात्रौ स्वकरप्रसारणघ(ध)र(?)स्तत् किं शशिन् ! याचितुं तत् किं ब्रूहि सखे ! यदस्ति कुतुकं तच्छूयतां कोविदाः । अत्यन्ताधिकरोचिषो गुरुमुखादभ्यर्थये प्रग्रहाऽनङ्कस्याव्रियतां यकैर्बत मया तान् दापयन्तु क्षणात् ॥१३१॥ कार्यं ते कथमस्ति हे हिमरुचि(चे) !, जानीत यूयं न कि ? नो नो, दुःखभरात, स एव भवतः कस्कः ?, शृणुध्वं च तम् । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 24 वक्त्रेन्दुजितवांश्च मां भुवि रुचा श्रीमद्गुरोकॊम्न्यलं स्वर्भाणोस्तु बिभोमि शम्भुशिरसि प्रोत्सप्पिकण्ठोरगात् ॥१३२॥ श्रीमदच्चन्द्रगणाधिपाग्रवदनस्फूर्जत्कियज्ज्योतिषां स्तेयं कर्तुमिव प्रसारयति नक्तं [भो ! नूनं ?] शशी स्वान् करान् । तद् बुध्वा परिवेषचारसदनेऽक्षप्सीद्विधिस्तं ततः प्रारभ्येति निरीक्ष्य कोऽपि कुरुतां नो स्तेयभावं कदा ॥१३३॥ घृष्टा ग्रावणि ते तनूर्मलयजार्चिष्मत्प्रवेशोऽजनि स्पष्टं हे वरकाकतुण्ड ! नितरां यन्मर्दनं ते शशिन् ! । तत् कस्मात् ? शृणु सादरं गुरुमुखश्वासाधिकस्पर्धनात् तच्छ्रुत्वा स्म जहत्यशेषमपि तत् सातार्थिनस्ते पुरः ॥१३४॥ भो मुक्ताफलचक्रवाल ! भवता यन्मग्नमम्भोनिधौ यद्वेधादिमहाव्यथां च सहसे तबीजमज्ञासिषम् । तत् किं ? ब्रूहि, शृणु त्वया किल पुरा स्पर्धा मुधा निर्ममेऽत्यन्तं शुभ्रतरैद्विजैश्च सुगरोनिर्ग्रन्थचूडामणेः ॥१३५॥ हे रक्ताङ्क ! चयत्वमे.... ती धन्योऽसि येन त्वया कृत्वा रक्तरदच्छदः शमिविभोळवर्ण्यते शिक्षितैः । तत्पुण्यादिव लब्धवानसि सखे ! सौभाग्यभङ्गी ता(त)था त्वत्पा[द?][ग्रह]णोद्यताः कजदृशः सन्तीह सर्वा यथा ॥१३६॥ त्वं जानासि हि नैव मन्दिरमणे ! यद्वारुणः पञ्जरे स्पष्टं कष्टभरे पपान निबिडे कस्मादघा... त् । शुश्रूषा भवतोऽस्ति चेच्छृणु तदा श्रीमद्गुरो सिकास्पर्धा मुग्धतया व्यधायि भवता तां विद्धि तत्कारणम् ॥१३७॥ आत्मीयकीर्तिपरिपूरितदिग्विभागा ये सन्ति भूमिवलये भुवनावतंसाः । श्रीमानकब्बरधराधिपतिनिरीक्ष्य यान् मोदमाप तरणीनिव चक्रवाकः ॥१३८॥ स्वात्मा तपश्चरणचारुगुणप्रकयनितः सरिदधीश इवाग्ररत्नैः । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .25 नन्तुं जनाश्च सकलाः स्पृहयन्ति येभ्यो बहिर्मुखा इव मुदा जगदीश्वरेभ्यः ॥१३९॥ दूरे व्रजन्ति जगतां दुरितानि येभ्यः पाथोजिनीपरिवृढेभ्य इवांस्रकाराः । येषां निपीय वचनामृतसङ्गभाजः संप्राप्नुवन्ति विबुधत्वमहो ! अनेके ॥१४०॥ येषु ध्रुवं नहि गुणान् प्रतिवक्तुमीशः कोऽपि स्वबुद्धिपरितजितफल्गुनीजः । किं वारिधिष्विव मणीन् मरुतां पथेषु ज्योतींषि वा गणयितुं क्षमते हि कश्चित् ? ॥१४१॥ तैस्तातपादैर्गुणवर्धमानैः पयोदनादैनिहताभिमानैः । नश्यद्विषादैनरनम्यमानैः पयोजपादैः सितपत्रियानैः ॥१४२॥ अभीष्टदान (धु)तरूपमान-स्सदा युतैश्चारुगुणैरमानैः । तमस्तमोवासरकृत्समान-र्यशोवितानैर्व्वतवत्प्रधानैः ॥१४३।। स्वमूर्तिमत्पाटवसत्परिच्छद-प्रबर्हनैरुज्यसमाधिसूचकः । तथाविधोदन्तविशेषगर्भितः प्रसद्य लेखस्त्वरितं प्रसाद्यताम् ॥१४४॥ जगच्चक्षुषं वा रथाङ्गाभिधाना यथा स्तोककाः संमदाद्वारिवाहम् । चकोराः सुधाज्योतिष संस्मरन्ति, तथा संस्मरामो भवद्भव्यलेखम् ॥१४५।। यथाऽहर्मुखे वेदगर्भाः स्ववेदं, विनेया यथा स्वं गुरुं भूरिभक्त्या । रस(सा)लक्षमाजं यथा काकपुष्टास्तथा संस्मरामो भवद्भव्यलेखम् ॥१४६॥ यथा लब्धवर्णाः स्वकं शास्त्रवृन्दं यथाऽनेकपाः सल्लकीशाखिखण्डम् । यथा मानसं मानसौक:कलापास्तथा संस्मरामो भवद्भव्यलेखम् ॥१४७॥ भूमीतलावनतमौलिविराजितस्य श्रीतातपादगुणसंस्मृतितत्परस्य । तातैः सदा निजविनेयकणस्य कामं स्वज्ञानगोचरतया प्रणतिविधेया ॥१४॥ अथावत्यश्राद्धनामानि ॥ अत्रत्यानघसंघधूर्वहसमः श्रीआब्दिके पर्वणि प्रत्यब्दं समसंघभक्तिकरणप्रावीण्यलब्धोदयः । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ 26 वक्षस्कारिकसूरजी: प्रणमति श्रीतातपादाम्बुजं लत्पुत्रा वर भाणजीर्वृषमतिः सद्भोजजीः कान्हजीः ॥१४९॥ सम्यग् बुद्धिर्दानवान् राउलाह्व स्तस्य भ्राता वर्धमानाभिधानः । साहा वासाः सच्चतुर्थाभिधानः श्रीमत्तातान् वन्दते भूरिभक्त्या ॥ १५०॥ लाडकासुजयमल्ल - नानजी नामकाश्च वृषकृत्यतत्पराः । ब्रह्मपालकसुधर्मदासकस्तत्सहोदरसगालनामवान् ॥१५१॥ सामायिकादिनिपुणो वरुआभिधानो देवाच्च चंद इति गल्लकनामधेयः । सद्देवचन्द्र - वृषकारि समर्थसंज्ञौ याभ्यां हि पत्तनपुरे प्रणताश्च ताताः ॥ १५२॥ दोसी हीरा भाणिआ भोजिआहा दोसी मूलानामकः पुंजिआह्नः । अत्रागत्यैतेऽधुना धर्मकृत्यं कुर्वन्ति द्राक् सादरं धर्मदक्षाः || १५३ ॥ देवाभिधानस्तनुजस्तदीयः श्रीपालनामा नमति स्म तातान् । अर्हत्सपर्यानिपुणः सधूआ श्रीचंदनामा च तदङ्गजन्मा ॥ १५४॥ परीक्षको वासनामधेयस्तत्सोदरः सद्बधुआभिधानः । लषाभिधानश्च चतुर्थनामा मुमुक्षु - सेवानिपुणः सदैव ॥ १५५ ॥ मानाङ्गजन्मसहितो लषमाभिधानः सद्वानरस्तदनुजन्मसुवीरजीकः । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 27 दोसी लषाभिध-जसा-जयमल्लसंज्ञास्तुर्यस्तथा जयतमाल इति प्रसिद्धः ॥१५६।। गोईनामा संघवी भाउकाह्वस्तेजःपालो भोटुकः श्रीपतिश्च । हांसानामश्राद्धहर्षाभिधानौ वीराबानो ब्रह्मविद् ब्रह्मचारी ॥१५७।। सत्संघराज-विमलाभिध-लालजीकाः कीकाभिधश्च पटुको वरमेघनामा । श्राद्धस्तथा च जगमालवरेण्यनामा तत्सोदरो जयतमाल इति प्रसिद्धः ॥१५८॥ दोसी बचाभिध-तनूजमकाभिधानो दोसी छनाभिध बदाभिध सीचकाह्वाः । सोथाभिधान-जयताभिध-वर्धमाना वेला-गलाह्व-जयवंत-सुहीरजीकाः ॥१५९॥ कीकाह्वानो वच्छराजाभिधानो तेजःपालो वस्तपालाभिधानः । साहा देवा काहआ काह्निआह्वा देवाच्चन्द्रो वीरचन्द्राभिधानः ॥१६०॥ विद्यापुरीयः शवजीश्च वाघजीस्तौ तातपादौ नम[तः सु] भावतः । श्रीमल्लसंज्ञश्च वरेण्यराउलआसाभिधानो वरवीरदासः ॥१६१॥ विमला गरुआ जयचंद धना विमला कमला ... जसाः । धनुआ वनुआभिधभूपतयः सहसात्करणो जयवंत इह ॥१६२॥ इति श्राद्धनामानि ॥ प्रतिरत्र पूर्णा । लेखस्तु अत्रैव स्थगित: स्यादिति कल्प्यते ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवनसुंदरीकथायां वर्णितानि सामुद्रिकशास्त्रकथितलक्षणानि // . सं. विजयशीलचन्द्रसूरि वि.सं. ९७५मां नागेन्द्रकुलना आचार्य विजयसिंहसूरिए 8911 गाथाप्रमाण, प्राकृतभाषाबद्ध भुवणसुंदरीकहा नामे अद्भुत कथाग्रन्थनी रचना करी छे. अद्यावधि अप्रगट आ ग्रन्थ हाल मुद्रणाधीन छे. आ कथाग्रंथमां एक स्थळे कर्ताए मनुष्यनां सामुद्रिक देहलक्षणोनुं रोचक-शास्त्रीय वर्णन कर्यु छे, ते अहीं आपवामां आवे छे. संस्कृत भाषामां तो आ विषयना ग्रन्थो होय छे. प्राकृतमां आ विषय भाग्ये ज खेडाण थयुं छे, तेथी आ संदर्भ रसिकजनोने रसप्रद बनशे तेवी आशाथी अत्रे प्रकाशित करवामां आवे छे. अस्सेयकोमलतले कमलोदराभे, लीणंगुलीरुइरतंबनहेसु पण्ही / उण्हे सिराविरहिए य निगूढगुप्फे, कुम्मुन्नए य चरणे वसुहाहिवस्स // 1 // परिविरलसण्हरोमाहिं वट्टजंघाहिं हुंति नरनाहा / करिकरसमाणऊरू मंसल-समजाणुणो पुरिसा // 2 // रोमेगेगं कूवए पत्थिवाणं, दो दो नेए बंभणाणं बुहेहिं / ते नायव्वे दुत्थियाणं बहूणि, रोमा एवं पूइया निंदिया य // 3 // तुच्छे होइ धणी अवच्चरहिओ जो थूललिंगो नरो / वामं वंकगए सुयत्थरहिओ अन्नत्थ पुत्तेसरो / दारिद्दी अइलंबलिंगकहिओ लिंगे सिरासंगए तुच्छावच्च-धणो हवेज्ज सुहिओ गंठिम्मि थूले नरो // 4 // कुसुमसमसुक्कगंधा विनेया पत्थिवा न संदेहो / महुगंधा य धणड्डा मच्छदुगंधा य बहुदुक्खा // 5 // तणुसुक्को बहुधूओ बहुसुक्को बहुसुओ नरो होइ / बहुसुरओ दीहाऊ इयरो तुच्छाउओ होइ // 6 // Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ * 29 निस्सोअइ थूलफिओ मंडूयफिओ य होइ धणवंतो / सिंहकडी नरनाहो करहकडी य सदारिदो // 7 // समजठरा धणवंता हस्सवक्केहिं भोयपरिहीणा / समकुच्छी भोयड्डा उन्नयकुच्छी य नरनाहो // 8 // जे विसमकुच्छिपुरिसा ते किर मायाविणो विणिद्दिट्ठा / सप्पोदरा दरिद्दा हवंति बहुभक्खगा तहय // 9 // परिमंडलुन्नएणं गंभीरेणं च सुत्थिया होति / तुच्छ-अदिस्स-अणुननाहीवलएण पुण दुहिया // 10 // विसमबलिणो मणुस्सा अगम्मगामी य हुंति पावा य / समबलिणो पुण सुहिणो परदारपरम्मुहा होंति // 11 // पासेहिं मउय-मंसल-पयक्खिणावत्तरोमजुत्तेहिं। हुंति नरामरवइणो विवरीएहिं च बहुदुक्खा // 12 // आपीयउवचिएहिं मज्झनिमग्गेहिं हुंति नरनाहा / दीहेहिं चुच्चुएहिं विसमेहि य हुंति धणहीणा // 13 // हिययं समुन्नयं मंसलं च पिहुलं च होइ रायाण / विसमहियया दरिद्दा सत्थनिवाएहि य मरंति // 14 // कंबुग्गीवो राया महिसग्गीवो य होइ रणसुहडो / लंबग्गीवो य नरो बहुभक्खी होइ पयईए // 15 // पिट्ठमभग्गमरोमं पुहईनाहाण होइ विनेयं / अस्सेयण-पीणु-नय-सुयंधकक्खा य धनाण // 16 // विउले अव्वुच्छिन्ने सुसिलिटे अंसए नरिंदस्स / निम्मंसरोमनिचिए विसमे उण इयरलोयस्स // 17 // करिकरसरिसे वट्टे आजाणुपलंबिरे य पीणे य / रायाणं चिय बाहू इयराणं रोमसे हस्से // 18 // Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ * 30 गूढमणिबंधसुदिढा सम्मं सुसिलिट्ठसंधिसंजुत्ता / हत्था नरनाहाणं विवरीया होंति इयराण // 19 // हत्थंगुलिणो सरला चिराउसाणं हवंति सुकुमारा / सण्हा मेहावीणं थूला परक्कम्मकारीण // 20 // हुति नहा दरसोणा अपुफिया अवणयंग्गभागा य / रायाणं इयरेसिं विवरीया होंति विनेया // 21 // अइकिसदीहं चिबुयं अधणाणं मंसलं च सुपमाणं / रायाणं विनेयं अणुब्भडं संगयावयवं // 22 // अहरेहिं अवक्केहिं बिंबाकारेहिं हुंति रायाणो / फुडिय-विवन्नविखंडिय-रुक्खेहिं य हुंति धणहीणा // 23 / / निद्धा पमाणदीहा तिक्खग्गा हुति सुंदरा दसणा / जीहा रत्ता दीहा लण्हा सरिसा य रायाण // 24 // सोमं समुज्जलं अमलिणं च चंदोवमं नरिंदाणं / विवरीयमधन्नाणं होइ मुहं लक्खणविहीणं // 25 // निम्मंस-आयएहिं या रोमस-विउलेहिं हुंति कन्नेहिं / रायाणो ससिरेहि हुस्सेहिं य हुंति पावनरा // 26 // संपुन्न-समंसल-कूचरहियगंडेहि नरवई हुंति / सरला य सण्हविवरा समुन्नया नासिया धन्ना // 27 // पउमदलदीहरेहिं रत्तंतेहिं च हुंति रायाणो / नयणेहिं पिंगलेहि मज्जारसमेहि कूरमणा // 28 // अद्धिंदुसमनिडाला रायाणो हुँति सयलमहिवलए / धणहीणा विन्नेया पुरिसा जे विसमभालयला // 29 // च्छत्तागारसिरा जे रायाणो हुँति नत्थि संदेहो / आकुंचिय-घण-निद्धा अप्फुडिया सुंदरा केसा // 30 // Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 31 एयं संखेवेणं सामुद्दयसत्थलक्खणाणुगयं । कहियं कुमार ! तुह कोउएण, अन्नं पि निसुणेसु ॥ ३१ ॥ तिन्नि गहीराणि सया विउलाइ य हुंति तिन्त्रि वत्ताई । चत्तारि य रहस्साइं पंच य सुहुमाई दीहाई ॥३२॥ छच्चुन्नयाई सत्त य आरत्ताइं च संपयमिमस्स । गाहादुगस्स कमसो, विवरणमेयं निसामेह ||३३|| नाभी - सर - सत्ताइं य गंभीराई च तिन्नि धन्नाई । वयणं उरं निडालं तिन्नि य विउलाई संसंति ||३४|| पिट्टं लिंगं जंघं गीवा चत्तारि होंति ह्रस्साई । केस-दसणंगुली - पव्व- नहंतया पंच सुहुमाणि ||३५|| हणु-नयण - थणंतर-बाहू - नासिया होंति पंच दीहाई रायाणं चिय बहुसो न उणो सामन्नपुरिसाण ||३६|| हिययं कक्खा - नह - नासिया य वयणं च कंधराबंधो । इय हुँति उन्नयाई कुमर ! पसत्थाइं छच्चेव ||३७|| नयत-पाय-कर-जीह नहा- हरोट्ठा तालू य हुंति सुहया इह सत्तरत्ता । एयाणि जस्स नरनाह ! हवंति अंगे सल्लक्खणाणि पुरिसस्स स चक्कवट्टी ||३८|| असयं छनउई चउरासीइ य अंगुलपमाणं । उत्तम - मज्झिम- हीणाण देहपमाणं मणुस्साण ॥ ३९॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीविमलसूरिकृत देशीनाममाला-उद्धारः ॥ सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री श्रीहेमचन्द्राचार्यनी “देशीनाममाला"मां अनेक देश्य शब्दोनो संग्रह थयो छे, जेना आधारे विद्वानो अनेक शब्दप्रयोगोना अर्थाने उकेली शके छे. तेना आधारे शब्दकोशनी पद्धतिथी बनेल एक अप्रकाशित ग्रंथनुं यथामति संपादन करीने अहीं मूकेल छे. आ संपादनमां क्यांय कांई पण त्रुटी होय तो विद्वानो सुधारशे तेवी विज्ञप्ति. प्राकृत व्याकरण, अध्ययन करती हती, त्यारे पूज्य आ. श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराजे आ देशीनाममाला उद्धारनी हस्तलिखित प्रतिना फोट तथा झेरोक्स कोपीओ मने आपी अने अभ्यासनी साथे साथे आनी नकल करवानुं तथा मुद्रित कोश ग्रंथो साथे सरखावतां जईने संपादन करवानुं निर्देश्युं. __तदनुसार नकल करी; पाठांतर लीधा; "देशीशब्दकोश" (लाडनू) साथे शब्दो मेळववा महेनत करी. कृतिनुं नाम ज सूचवे छे के ते "देशीनाममाला"आधारित छे, एटले तेमांना बधा शब्दो आमां छे एम मानीने तेनी साथे मेळववानो श्रम कर्यो नथी. पण 'देशी शब्दकोश' साथे तो मेळवेल ज छे. केटलाक शब्दो एवा जड्या के जेनी नोंध दे.श.को.मां नथी मळी. आवा शब्दोनी आगळ में ★ आq चिह्न मूक्युं छे. अर्थोमां वधघट के फेरफार तरफ बहु ध्यान आप्युं नथी. ओ-उ ना तथा अनुस्वारना के तेवा अन्य वर्णसम्बन्धी फेरफारो घणा जोवा मळे छे, पण अहीं ते दृष्टिए कोई नोंधो करी नथी. कदाच ते बीजा अभ्यासनो विषय, मारा माटे, बने. दे.ना.उ.ना कर्ता श्रीविमलसूरि होवा- अंतिम पद्यथी जाणी शकाय छे. तेओ कया गच्छना हता अने कया सैकामां के समयमां थया हशे ते जाणी शकातुं नथी. कर्तानो उद्देश 'दे.ना.' ना शब्दोनो तेमज अर्थोनो बोध सहुने थाय ते माटे वर्णानुक्रमे दे.ना.गत शब्दो (सार्थ)नोंधवानो रह्यो छे (पुष्पिका-पद्यो). अने ते पद्योमा कर्ता आ रचनाने देश्यदीप तरीके ओळखावे छे. संभव छे के कर्ताने ते ज नाम अभिप्रेत होय. परंतु अहीं तो हस्तप्रतिलेखकोए पोतानी पुष्पिकामां जे Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 33 नाम आप्युं छे, ते नाम ज राखेल छे. आ संपादनमा चार प्रतिओनो उपयोग को छे. आदर्श प्रति तरीके वडोदराना 'प्रवर्तक मुनि कांतिविजयजी शास्त्रसंग्रह'नी प्रतिने स्वीकारेल छे. जो के घणे स्थळे एवं पण बन्युं छे के ज्यां आ आदर्श प्रतिनो पाठ नीचे मूकवो पड्यो होय; अने हजी पण केटलांक स्थळो संदिग्ध छे ज. अन्य प्रतिओमां- पाटणना संघना भंडारनी हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभंडारगत प्रति (पा. संज्ञक प्रति); पाटण- सागरगच्छना उपाश्रयनी प्रति(सा.संज्ञक प्रति); अमदावादना - डेलाना उपाश्रयना भंडारनी प्रति (डे. संज्ञक प्रति)- एम त्रण प्रतिओनो उपयोग करेल छे. प्रतिओमां मात्र पा. प्रतिमां प्रांते लेखन संवत् मळे छे (संवत् १६४०), बीजी प्रतिओमां नहि. परंतु आदर्शभूत प्रति प्रायः १५मा शतकमां लखाएली होवार्नु मने जणाववामां आव्युं छे, ते परथी आ ग्रंथ १४मा शतकमां के ते पूर्वे रचायो होय तेवू मानवा माटे मन ललचाय दे. बाकी तो विद्वानो आ विषे प्रकाश पाडे ते ज बरोबर गणाय. आ शब्दकोश लखतां लखतां 'केऽपि', 'कश्चित्', 'केचित्', 'अन्ये', 'अन्यः' एवा प्रयोगो वडे सूचित मतांतरो बहु जोवामां आव्यां. तेथी ख्याल आव्यो के देशी शब्दोना पण विधविध कोशो ते समये होवा जोईए. जो के 'धनपाल', 'गोपाल', 'सातवाहन' जेवा कर्ताओनां नामो पण आमां उल्लेखेला छे ज, जे परथी ते बधाना पण कोशो हशे तेम मार्नु छु. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्हम् श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥ अनन्तलब्धिनिधानाय श्रीगौतमस्वामिने नमः ॥ णमो परमगुरुनेमिसूरीणं ॥ अथ द्विस्वराः अज्जो श्रीहेमचन्द्रसूर्युक्त-देश्यशब्दसमुच्चयात् । अकाराद्यादयः शब्दा लिख्यन्ते द्विस्वरादिकाः ॥१ ॥ उदीदूदेदनुस्वारा - द्यन्तत्वं स्यादियोगतः । शब्दानामक्षराधिक्य - मपि 'क' प्रत्ययादिह || २ || अज्जा अलं 44 अणू अंको निकटम् । श्रीविमलसूरिरचितः देशीनाममालाउद्धारः ॥ ॥ नमः सरस्वत्यै ॥ अल्ला, अव्वा, अम्मा त्रयो जननीवाचकाः । अक्को अक्का 'अह जिनः । गौरीति आर्याशब्दात् । दिनम् । शालिभेदः, उकारान्त | अम्बार्थस्तु संस्कृतसमः । अप्पो पिता । अहं अत्र च दूतः । भगिनी । दुक्खम् । असौ । ऋणम् । अणं १. अण- पाप दे. को. । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अडो ★ अण ★ अयि अच्छं ★ अअं सम्भावने । " - एते निपाताः । अत्यर्थं शीघ्रं च । विस्तारितम् । आदरणीयं त्यक्तं च । अज्झा असती, शुभा नववधूः, तरुणी च । एतत्-शब्दस्य एषेति रूपम् । 'अज्झो एष' इति द्रोणः । अट्टं कृशो गुरुः शुक्र (कः) सुखं धृष्टोऽलसो ध्वनिरसत्यं च। देवरभार्या पतिभगिनी पितृष्वसा च । अण्णी जननी पितृष्वसा श्वश्रूः सखी च । सूचनादिष्वर्थेषु निपात्यः ॥ घूकः । उकारान्तोऽयम् । जलम् । प्रसवदुक्खे नित्ये दृष्टे च । अल्पप्रवाहे मृदुनि च । अत्यर्थं च दीर्घं मुसलं लोहं मुसलं च । भीतः । वणिक् । अत्ता अव्वो आहू आऊ आवि आलं आअं इग्गो इब्भो इर इल्लो अत्र इणं इणमो एतत् । इन्हि इदानीं । इल्ली ईश उंडं अनुसंधान - १६ •35 कूपः । नञर्थे । - २. अ आद. । ४. विचित्रं पा. डे. सा. । ५. वर्यत्राणं किलार्था (र्थः) । एते निपाताः । दरिद्रः । कोमलं, प्रतीहारः, कृष्णवर्णो 'लवित्रं च । शार्दूलः । सिंहो वर्षत्राणं च । कीलकः । गम्भीरम् । ३. विषमं पा. डे. सा. । वर्षशाणं आ. । पा. डे. सा. मु. ww Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्छू उकं उच्छो उड्डो उरं उच्चं उम्बा उडू उंबी अत्र उब्भं ★ उब्भो उअ उस्सा उक्का उल्ली उव्वा उद्दं ६. उचोक्षम अनुसंधान - १६ • 36 वातः । इक्षुवाची तु संस्कृतात् । पादपतनम् । अन्त्रावरणम् । कूपादिखनकः । आ. । आरम्भः । नाभितलम् । बन्धनम् । ऊअ( आ ) यूका । ऊलो ऊरो एलो एक्को ओली तृणपरिवारणम् । पक्वगोधूमः । ऊर्ध्वम् । यूयम् । पश्य । एते निपाताः । शब्दस्तु धेनुवाची उस्त्राशब्दभवः । कूपतुला । चुल्ली | धर्मः । जलमानुषं ककुदं च । - कुलपरिपाटी । पंक्तिवाची तु आलीशब्दात् । उ (ओ) ज्झं "अचौक्षम् । उ (ओ)प्पो' मण्यादेः शाणादौ तेजनम् । उ (ओ) अं वार्ता | ओरं चारु । गतिभङ्गः । ग्रामः संघश्च कुशलः । स्नेहपरः । ७. उप्पा सा. । Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 37 ★ओचं गजादेर्बन्धार्थं खातम् । ओसा निशाजलं हिमं च । अथ कादयः स्वरक्रमेणकत्ता अन्धक-द्यूत-कपट्टकाः । कंदी मूलकशाकम् । ★कत्तू कामः । कंची मुशलाग्रोर्मिका। कल्ला मद्यम् । कली शत्रुः इकारान्तः । कज्जं कार्यम् । कस्सो कम्पः । कंदो दृढो मत्तश्च । “शूरणमित्यन्ये । कंडो दूर्व्वलो मृतः फेनश्च । कंठ सूकरो मर्यादा च । केडो( कंडो?) क्षीणो मृतश्च । कोची(कंची?) नीलवर्णा । काओ वेध्यम् । यो येन गुणेन११ लक्ष्यते स उपमानभूतः पदार्थ इत्यन्ये । ध्वान्तम् । कारा लेखा । कारं कटु । काही इति तु भविष्यन्ती च प्रत्यये कृगो रूपम् । किण्णं शोभमानम् । शूकरः । अत्रकिर किलार्थे कालं किरो शूक. ८. कर्ता - आ. । १०. सूरणं - डे. सा. पा. । ९. अन्धिक - डे. पा. सा. मु. । ११. गुणो न लक्षते - आ.। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 38 कीणो( किणो-देको.) कीस द्वौ प्रश्ने । एते निपाताः । किरी सूकरः संस्कृतात् । किन्हें सूक्ष्मवस्त्रं, स्वेतवर्णं च । कीलं स्तोकम् । कीरः शुकः । कीला नववधू । सुरतकाले उर:प्रहणनविशेषश्च । कुंतः शुकः । कुंडं वेणुमयमिक्षुपीडनकाण्डम् । आश्चर्यम् । कुक्खी कुक्षिः । कुक्षिशब्दस्य तु प्राकृते कुच्छीत्येव भवति । कुल्हो शृगालः । कुंभी सीमन्तालकादिः केशरचना । कुदं १३ प्रभुतम् । कुंती मञ्जरी । कुट्टा चंडी। ★अत्र कुडो घट इति कुटशब्दात् । कुल्लो ग्रीवा । अशक्तश्छिनपुच्छश्च । हृतानुगमनं हृतत्याजकश्च । सैन्यपश्चाद्भागः । पाशः । कुई कुबे कूरं भक्तमिति संस्कृतात् । कूवो हृतानुगमनं हृतत्याजकश्च । केआ रज्जुः । केली असती । कंदः । कोणू लेखा । १२. पिलनम् - सा. । १३. कुटुं - आ. । केऊ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोट्टै कोणो कोलो १५ अत्र ★ कोओ कोट्टी कोसो खड्डा खल्ला कोप्पो अपराधः । कण्णो गृहकोण: । खड्ड खणं खली खट्ट १८ खुल्लं खुड्डो २० -२१ खुत्तं खुण्णं खुंपा अनुसंधान - १६ • 39 नगरम् । कृष्णवर्ण: । 'लकुट' इत्यन्ये । ग्रीवा । १४. कुट्टे - आ. । १५. कोला- आ. । १६. कोलो - आ. । १७. खेणं आ. । खड खद्धं १९ खल्लं खव्वो खवो द्वौ वामकर - रासभयोः प्रत्येकम् । खंड मस्तकं मद्यभाण्डं च । चक्रवाक इति लोकशब्दात् । दोहविषमा स्खलना च । कुसुम्भरक्तम्, जलधिश्च । खानिः । चर्म्म | स्मश्रु । खत्तं द्वौ खाते । तिलपिण्डी । तीमनम् । तृणम् । भुक्तम् । वृत्तिछिद्रम् विलासच | कुटी । लघु । त्रुटितम् । निमग्नम् । वेष्टितम् । तृणादिमयं वृष्टिनिवारणम् । १८. खर्ड - डे. पा. सा. मु. १९. खेद्धं आ. । २०. खुड्ड पा. सा. । २१. खुत्तं - सा. । Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयं गंडो अनुसंधान-१६ . 40 खोट्टी दासी । खोडो सीमार्थकाष्ठं धार्मिमकः खञ्जश्च । खोलो लघुगर्दभो वस्त्रैकदेशश्च । गंजो गल्लः । गड्डी गन्त्री। गज्जो यवः । गढो दुर्गम् । गहूं शय्या । घूर्णिणतं मृतं च। वनं दाण्डपाशिको लघुमृगो नापितश्च । गत्तं ईषा पंकेश्च । गाणी गवादनी । गुंफो गुप्तिः । इच्छा। गुंठी नीरंगी। शतपदी। गुलं चुम्बनम् । गुद्रं(गुंड देको.) मुस्तोद्भवं तृणम् । गुंठो अधमहयः । गुंपा गुंदा द्वौ बिन्दौ अधमे च । गुच्छा बिन्दौ अधमे उत्तरोष्ट(ष्ठे) स्मश्रुणि च । गुत्ती बंधनमिच्छावचनं लता शिरोमाल्यं च । गेज्जं४ मथितम् । पंको यवश्च । गोआ गर्गरी । ग्रामणी । 'भट्ट' इत्यन्ये । २२. पंचकश्च - आ. । २४. गिज्जं -- आ. । २३. वंचन - आ.। २५. गिड़े - आ. । गुम्मी गुंफी गे९२५ गोहो प्र Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोरा अनुसंधान-१६ .41 गोंडं वनम् । गोच्छा गोंठी गोंडी गोंजी चत्वारो मञ्जर्याम् । गोलो'६ साक्षी । गोल्हा बिम्बी। गोली मंथनी । गोवी बाला । गोसं प्रभातम् । गोला गौ, गोदावरी सामान्येन नदी सखी च । हलपद्धतिश्चक्षुः ग्रीवा च । गोणा साक्षी वृषभश्च । घण्णो वक्षःस्थलम् । रक्त इत्यन्ये । घल्लो अनुरक्तः । घंघो गृहम् । गोष्ठी । कौसुंभवस्त्रं नद्यादितीर्थं, वेणुश्च । घारी शकुनिकाख्यः पक्षी । घारो २ प्राकार ॥ घियं८ भर्त्तितम् । घिट्टो कुंजः (कुब्जः) । घोरि शलभभेदः । घोरो नाशित२९, गृध्रपक्षी च । तर्कुः । चंगं चारु । चडो शिखा । दारुहस्तः । घडी चत्तो २६. गोला - आ. सा. । २७. प्रकारः - आ. । २८. घिय - आ. । घिअं - सा. डे. । २९. नासितो - सा. । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंभो चच्चा चासो चाडो चारो ३२ चिल्ला चिच्चो चिलो चिच्चं चिच्चि चिक्का चीही चुक्को चूड चेडो " चेंचा ३०. हलकृष्ट - सा. । ३२. चालो - डे. । ३४. चुप्पा आ. ३६ चूओ - पा. । अनुसंधान - १६ 42 हलाकृष्टभूरेखा । स्थासको हस्ततलाघातश्च । हलकृष्टभूरेखा । मायावी | चुप्पो चुंछो ३५ चुल्ली अत्र ★ चुच्छं तुच्छमिति तुच्छशब्दजम् । चुलो शिशुर्दासश्च । चूडो वलयावली । स्तनशिखा । पियालवृक्षो गुप्तिरिच्छा च । शकुनिकाख्यः पक्षी । चिपटनाशः (सः) । बालः । रमणम् । अग्निः । अल्पं वस्तु तनुधारा च । मुस्तोद्भवम् तृणम् । मुष्टिः । सस्नेहः । परिशोषितः । शिला । बालः । अम्लिका । ३१. तलं सा । तल डे. ३३. चिपिटनाश: - पा. । चिपिटनासः ३५. चुंठो ३५ चोटो आ. डे. । ३८. चिं 341. ! आ. देको ! चंचा सा. डे. मु. पा. सा. । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छद्दी छडा छंटो४३ छासी अनुसंधान-१६ . 43 चोटी२९ शिखा । चोज्जं० आश्चर्यम् । चोदो बिल्वः । चोत्तं १ प्रतोदः । चोलो वामनः । छल्ली त्वक् । शय्या । विद्युत् । ★छणो उत्सव.२ इति 'क्षण' शब्दात् । जलच्छटा शीघ्रश्च । तक्रम् । छारो रिक्षः४४ । छाही आकाशम् । च्छायार्थस्तु च्छायाशब्दात् । छाऊ(ओ) बुभुक्षितः कृशश्च । छाणं धान्यादिमिलन् गोमयं वस्त्रं च । छाणी तु लिङ्गव्यत्ययात् । छाया कीर्तिर्धमरी च । ★छाहो समूहो विक्षेपश्च । (गगन; छाहि- छांह-छाया, देको.) । छिद्दो लघुमत्स्यः । छिल्ली शिखा । छिन्नं स्पृष्टम् । जार। छिव्वं कृत्रिमम्। छिलं छिद्रं कुटी वृत्यन्तरं च । छिडं०६ चूडा छत्रं धूपयंत्रं च । छिप्पं भिक्षा पुच्छं च । छिनो ३९. चोट्टी - सा. । ४१. चोत - पा. सा. । ४३. छटो - पा. सा. । ४५. आकासम् - पा. सा. । ४०. चुलं - आ. । ४२. उच्छव - पा.सा. । ४४. रुक्षः - डे. । ४६. छिंडं - पा. सा. । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेंडा अनुसंधान-१६ .44 छिक्कं स्पृष्टं क्षुतं च । छंदं बहु । बलाका । छिंडी लघुरथ्या । छेणी८ स्तोकपुष्पमाला । . छेलो छागः । छेओ अन्तो देवस्च । छेयो स्थासकश्चौस्च । शिखा नवमालिका च । छोब्भो पिशुनः । छोहो समूहो विक्षेपश्च । जंगा गोचरभूमिः। जच्चो पुरुषः । जंभो तुषः । जण्हं अल्पपिठरं कृष्णं च । जाडी गुल्मम् । जाई सुरा । छेकः । जोरं यः किल(ले)त्यर्थे । जोक्खं मलिनम् । जोओ४९ चन्द्रः । जोग्गा चाटु । नक्षत्रम् । जोई विद्युत् । जोवो बिन्दुः स्तोकं च । झडी निरन्तरवृष्टिः । झंखो तुष्टः । ४७. छिक्का - आ. । ४८. छेली - मु.। ४९. जोउ - पा. सा. । जुण्णो जोड़ें Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झला झंटी झसो झत्थं झाडं झीरा झीणं झुंखो झुत्ती झुटुं झेरं झोट्टी टंकः अनुसंधान - १६ 45 मृगतृष्णा ५० । लघूर्ध्वकेशाः । टंकच्छिन्नमयस्तटस्तटस्थो दीर्घगंभीरच १ । गतं नष्टं च । लतागहनम् । लज्जा । अंग कटश्च । वाद्यविशेष ( : ) । छेदः । अदुर्धमहिषी । खगश्चित्रं (खड्गच्छित्रं), "खातं, जंघा खनित्रं भित्तिस्तट च । टा अधमोऽश्वः । टिप्पी ५४ - टिप्पं द्वौ तिलके "टिप्पं शिरसि स्तबक' इत्यन्ये । टुंटो छिन्नहस्तः । टेंट ५६ टोलो ठो ठाणो ठिक्कं डक्कं डव्वो५७ असत्थ (य)म् । कुटिलम् । जरघण्टः । द्यूतस्थानम् । शलभः । पिशाच इत्यन्ये । निर्द्धनः । मानः । शिश्नम् । दन्तगृहीतम् । दष्टार्थे तु 'दष्ट' शब्दभवम् । वामकरः । ५०. मृगतृष्णी - पा. सा. । ५१. गभीरच पा. I ५२. ऊष्टं - पा. सा. डे. । ५३. घातं पा. सा. । ५४. टिटिप्पं ५५. टिक्कं - डे. । ५६. टंटा ५७. डावो पा. सा. । सा. । सा. । डवो - डे / Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डप्फं डल्लं डीरं डोलो अनुसंधान-१६.46 स्यूतवस्त्रखंडानि । →डंडीत्यन्ये । डलो लोष्टः । ५१सिल्लम् । पिटिका । डवो वामकर । डाली शाखा । डाऊ फलिहंसकवृक्षो गणपतिप्रतिमाविशेषश्च । डिंडी० स्यूतवस्त्रखंडानि । डिंडीत्यन्ये । कन्दलः । डीणं अवतीर्णम् । डंबोपर श्वपच:६३ । डुंधो उदञ्चनं नालिकेरमयम् । चक्षुः । डोला शिबिका । दारुहस्तः । डोंगी स्थासकस्तांबूलभाजनविशेषश्च । भेरी। ढंकः काकः । ढंटो पङ्को निरर्थकश्च । ढंका हर्षः कूपतुला च । ढेंकी६८ बलाका । ढेप९ निर्धनः । णत्था नाशिकारज्जुः । ५८. "एतन्मध्यगतं न. आ. पा. सा. । ६४. डोली - पा. । ५९. सेलं - पा. डे. । ६५. डोउ - डे. । डाउ - पा. । ६०. डिडं - पा. । डंडं -- सा. । ६६. डांगी - आ. । ६१. डंडीत्यन्ये - पा. सा. । ६७. ढेंका - डे. । ६२. डुंवो - आ. । ६८. ढेकी - डे. । ६३. स्वपचः - आ. सा. । ६९. ढोलो - डे. । डोओ५ ढड्डो Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 4. अनुसंधान-१६ . 47 णव्वो आयुक्तः अधिकारीत्यर्थः । णद्धो०० आरूढः । णंदा णंदी द्वौ गवि । अत्र★णक्खा निक्खः । ★णवि१ वैपरीत्ये । ★ण अवधारणे। एते निपाताः । णंदं इक्षुनिपीलकांडं कुंडमित्यर्थः । णको घ्राणं मूकश्च । ग्राहार्थस्तु 'नक्र'शब्दात् । णण्णो कूपो दुर्जनो ज्येष्ठो भ्राता च । णाऊ७२ गवितः । णिज्जो सुप्तः । णिडो पिशाचः । णिग्गा हरिद्रा । णिक्खो चोर स्वर्णं च । णिव्वं ककुदं व्याजश्च । पटलान्ते 'नीव्र'राब्दात् । णीइ३ गच्छति । णूला शाखा । णेड्डु नीडमिति 'निडशब्दात् । णोव्वोय आयुक्तः । णोमी रज्जूः । तंबा पृष्टम् । तग्गं सूत्रकंकणम६ । ३. * * 3 व गौः । तंटं ७०. णेद्धो - आ.। ७१. णे - आ. पा. । ७२. णाओ - सा. । णाउ - पा. डे. । णाअ - मु.। ७३. णिइ - आ. । ७४. णूतो - डे.। ७५. णव्वो - आ. । ७६. कंकणकं - पा. । कंकेणकम् - सा. डे.। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • तपणं तट्टी तमो तंड तलं तल्लं तत्ती ताला तित्ती तिव्वं तुंगी तुही ९ तुच्छं तुप्पो तुरी तूउ‍ तूहं तेड्डो तोसं थग्घो थो थरो थरु अनुसंधान - १६ •48 उत्पलम् । वृत्तिः । शोकः । कठि (वि)क: ७७ तालकं शिरोहीनं स्वराधिकं च । ग्रामेशः शय्या च । पल्वलम् । बरुकाख्यतृणं शय्या च । तत्परता आदेशश्च । लज्जा: । सारम् । दुस्सहं, अत्यर्थमित्यन्ये । रात्रिः । शूकरः । अंशुष्कम् । कौतुकं विवाहः सर्षपो प्रक्षितं स्निग्धः कुतुपश्च । पीनं तूलिकोपकरणं च । इक्षुकर्मकः । तीर्थमित्यादेशः प्रोकृते । शलभ (:) पिशाचश्च । धनम् । (अ) गाधः । निलयः । दधिसार ५ । दघ्न उपरि सारमित्यर्थः । ८५ त्सरुः । ७७. कविकेतालकं - आ. । ७८. लाजा. पा. सा. डे. । ७९. तुणी - पा. । तुष्णी - सा. । ८०. अवमुकम् - सा. । ८१. तुओ - डे. । ८२. प्रकृतेः - पा. । ८३. तिड्डो - आ. । ८४. थाहो - आ. । ८५. दधिशिरः - पा. । दधिशरः डे. । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थट्टी थुण्णो० अनुसंधान-१६ . 49 थंबो६ विषमम् । थक्को अवसर । थवो द्वौ पशौ। थसो विस्तीर्णः । थवी प्रसेविका । थामो विस्तीर्णं ८८ । थारो घनः । थाहो स्थानं अगाधजलं विस्तीर्णं च । दीर्घ इत्यन्ये । थिण्णो९ निस्नेहो निर्दयो दप्तश्च । दृप्तः । परिवर्तितः । थूरी तन्तुवायोपकरणम् । अश्वः । ९स्तंभ इति तु स्थूणा'शब्दात् । थूहो प्रासादशिखरं चातको वल्मीकं च । थेवो बिन्दुः स्तोकार्थस्तु 'स्तोक' शब्दात् । थेरो ब्रह्मा । ★थेणो चौर इति तु स्तेन'शब्दात् । थोरो क्रमपृथुपरिवर्तुलः । स्थूलार्थस्तु 'स्थूल शब्दात् । थोहं बलम् । थोलो वस्त्रैकदेशः । थोओ९२ रजको मूलकश्च । दरं अर्धम् । थुलो ८६. थंब - पा. सा. डे. । ८७. थेवो - आ. । ८८. विस्तीर्णः - पा. डे. । ८९. थिणो - पा. सा. । थणो - डे. । ९०. थणो - पा. । ९१. स्तंभः - पा. डे. । ९२. थोउ। - पा. डे. । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .50 दव्वं ( दयं) जलम् । शोक इत्यन्ये । दंतो पर्वतैकदेशः । दवो गद्गदः । परिहासार्थस्तु 'द्रव्य'शब्दात् । द्रवशब्दात् । दवाग्नौ तु संस्कृतः । दच्छं४ तीक्ष्णम् । दंडी सूत्रकनकम् । कंथेत्यन्ये । दसू६ शोकः । दाओ७ प्रतिभूः । दारो८ कटिसूत्रम् । दिउ-दिओ ९९दिनं । दुलं वस्त्रम् । दुत्ति शीघ्रम् । दुत्थं-दुक्खं द्वौ जघने । दुली कूर्मः । ★दुहं असुखमिति दुक्खशब्दात् । दुक्खम् कटी च । दूणो हस्ती । कटिसूत्रम् । दोग्गं युग्मम् । दोसो अर्धे कोपश्च । तूलम् । धव्वो धंगो भ्रमरः । ९३. दग्धं - पा. डे.। ९७. दाउ - पा. डे. । ९४. दछं - पा. । . ९८. दोरो - आ. । ९५. दंथेत्यन्ये - आ. । ९९. दिन्नं - पा. । ९६. दत्ता - पा. डे. । १००. कटीसूत्रम् - आ. दुग्गं दोरो धरं वेगः । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धुत्तो पड्डी अनुसंधान-१६ . 51 धउ पुरुषः । यान्तोऽयम् । धंधा लज्जा । धणी भार्या । पर्याप्ति-र्बद्धोऽपि निःशंका(को) यत्र च । धारं लघु । धारा रणमुखम् । धाडी निरस्तम् । विस्तीर्णम् । धूणो गजः । ★धूआ भगिनी, 'दुहितृ'शब्दात् । प्रथमप्रसूता । पच्छी पिटिका । ★पलं स्वेदः । ग्रामस्थानम् । (पदं देशी.) धवलम् । पज्जा अधिरोहिणी । अधिकारार्थस्तु प्रबन्धभेदवाचक- पर्याय शब्दभवः । मार्गे तु पद्याशब्दभवः । पत्ती पुलिंदशिरस्थपर्णपुटम् । पंती केशरचना । पक्को दृप्तः समर्थश्च । पासी चूला । पारी दोहभाण्डम् । रथचक्रम् । दिक् । पावो सर्पः । १. धओ - मु. २. धंधी - डे. ३. 'यत्र च' इत्यनन्तरं-छ ॥१००॥ इति आ. ॥ ४. धुतो - डे. ५. पलं - पा. डे. (देशीशब्दकोशेऽपि) ॥ . ६. पाउं - पा. । पाओ - मु. । पाउ पाली Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिच्छी पिंचू अनुसंधान-१६ . 52 पाणो चण्डालः । पासं अक्षि विशोभं च । केऽपि दंडकुंतयोरपीच्छन्ति । पालो शौण्डिको जीर्णश्च । पाऊ भक्तं इक्षुश्च । चूला । पिण्ही क्षामा । पिब्बं जलम् । पक्वकरीरम् । पिल्हं लघुपक्षिरूपम् । पिंडी मञ्जरी । पीणं चतुरस्रं । इक्षुपीडनयंत्रम् । पीई तुरंगः । पुंडे पकारान्तोऽयं शब्दो व्रजेत्यर्थः । पुंढो गतः । पुष्पा(प्फा) पितृष्वसा । पुत्थं मृदु । पुल्ली व्याघ्रः सिंहश्च । पिशाचगृहीता। पूणी तूलालता । हस्ती । पूरी तन्तुवायोपकरणम् । दधि । पूअ सातवाहनः शुकचित्रकश्च । पेटो गडुलसुरा । पूआ पूणो पूअं ७. सिंघश्च - आ. । सा. डे. । ८. पूयं - पा. । ९. पेंट्टा-पा. । पेटा-डे. । पेंढा (दे.श.को.) । १०. गडुलासुरा - पा. । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेड्डा पेड्डो " पेंड पोट्टं पोच्चं पोंडो पोत्ती पोओ १३ फग्गु४ फडं फली फिक्की १५ फिप्पं (पं) फिडो" फुक्का फुंटा" फुक्की फूओ " फेल्लो फेसो फोसो फोफो बंधो ★ बंभो ११. पेडो पा. । १२. काच्चः आद. । १३. पोउ - डे. । - १४. फग्गू: १५. फिकी - डे. । -- अनुसंधान - १६ 53 भित्तिद्वारं महिषी च । महिष इत्यन्ये । खंडवलयश्च । उदरम् । सुकुमारम् । यूथेश: । १२काचः । धववृक्षः, लघुसर्पश्च । शिशुवाची तु पोत' शब्दात् । वसंतोत्सवः । सर्पवपुः फणश्च । लिंगं वृषभश्च । हर्षः । कृत्रिमम् । वामनः । मिथ्या । केशबन्धः। रजकी । लोहकारः । दरिद्रः । त्रासः सदभावश्च । उद्गमः । 'फोओ”, इत्यन्ये । भीषयितुं शब्दः । भृत्यः । वर्ध्रः२० पा. । फग्गू - डे. । १६. फिडो १७. फुंटो १८. फूड - डे । १९. फोउ - पा. । २०. वध्रः पा. । आ. । आ । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बप्पो ★बाहिं बाणः बुत्ती बुक्का बोलो बोडो बोव्वं बोंदी बुंदी बेली बेडोर बेडा२२ अनुसंधान-१६ .54 सुभटः । पितेत्यन्ये । बहिः शब्दस्यादेशः । सुभगः पनशश्च । ऋतुमती । मुष्टिः । व्रीहिमुष्टिरित्यन्ये । कलकलः दंत्योष्ठ्यादिरयमित्यन्ये । धाम्मिकः । तरुण इत्यन्ये । क्षेत्रम्। रूपं मुखं वपुश्च । 'बोदं' मुखमित्यन्ये । चुम्बनं सूकस्श्च । स्थूणा । नौः दंत्योष्ठ्यादिरियमित्यन्ये । स्मश्रुः। ऋक्षः । लिप्तम् । असती । भेरी । भागिनेयः । वृन्ताकम् । मुण्डनम् । आमलकम् । छिन्नमूर्धा मागधमण्डनम् , सखा दौहित्रश्च । शिरीषवृक्ष, अटवी, असती, गन्त्री च । ज्येष्ठभगिनीपतिः । बिभेतेरादेशः । कृष्णम् । भल्लू भग्गं भंभी भंभा भव्यो ★भंटर भडं४ भदं भंडो भंडी भाओ२५ भाइ भिगं २१. बेडा - पा. डे. ।। २२. बेड्डा - पा. । २३. भट्ट - डे. । भडं मु. । २४. भंड्र्यु - आ। २५. भाउ - पा. डे.. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 55 भित्तं द्वारं गृहं च । भअं२६ भूर्जम् । भुक्खा क्षुत् । भुंडो७ सूकरः । भूओ२८ यंत्रवाहकः । भेडो२९ भेज्जो द्वौ सभये । भोओ० भाटि। मंती विवाहगणकः । मंठो१ ३२शठः । मंडी पिधानिका३३ । मंचो बंधः । मंठो बध(बन्ध) इत्यन्ये । पश्चात् । मच्चं मलः । मलो स्वेदः । मट्टो शृंगहीनः । मट्ठो अलसः । अंडम् । मम्मी मातुलानी। सुरा । मज्जा मर्यादा । मऊ पर्वतः । मरो मशको घूकश्च । मड्डा हठ आज्ञा च । मडो कंठो३४ मृतश्च । मग्गो मंखो मई २६. भुवं - आ. । २७. भंडो - डे. । २८. भुउ - पा. । २९. भिडो - डे. । ३०. भोउ - पा. । भेउ - डे. । ३१. मंडो - पा.। ३२. शण्डः - पा. । ३३. पिधाग्रिका - पा. । ३४. कंडो - पा. । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .56 मामा-मामी द्वौ मातुलान्याम् । माला माई रोमशः। कुंदपुष्पम् । ज्योत्स्ना । माहं माई मुब्भो मुंडी मुद्दी मुणी मार्थे । मामि सख्यामंत्रणो प्राकृते । माढी सन्नाह इति ।'माढि'शब्दात् । (दे.श.को.पृ.४९०) मालो आरामो मंजुः मंचश्च । मीअं समकालम् । गृहमध्येऽर्धतिर्यग्दारुः । मुंडा५ मृगी। नीरंगी । चुम्बितम् । अगस्तितरुः । मूसा लघुद्धारम् । मर्यादा । *मेंढी मेढी मेली त्रयः संहतौ । (मेंढी - मेषी इति दे.श.को.)। मेढो वणिक्सहायः । मेंठो हस्तिपकः । मोडोरे६ जूटः । मोचं अर्धजंघी। मोरो श्चपच:३७, जंडालो वा । मोओ२८ अधिगतश्चिर्भटादीनां बीजकोशश्च । रंगं पुः । ३९रत्ती आज्ञा । ३५. मुंडो - आ.। ३८. मोउ - डे.। ३६. मोढो-कूट: - पा. ।। ३९. रंती - पा. डे. । ३७. स्वपचश्चंडालो वा - सा. डे. आ. । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राला अनुसंधान-१६ . 57 रप्फो वल्मीकः । रंभो अंदोलन, रज्जुरित्यन्ये । रा कंगुः । प्रधानम् । कंगुः । चटकः । राडी संग्रामः । राहो दयितो निरंतर शोभितः सनाथः पलितश्च । रिंडी कंथाप्राया । रिप्फ पृष्टम् । रिग्गो प्रवेशः । रिक्खो रिच्छो द्वौ वृद्धौ, ऋक्षवाचकौ तु रिक्ख-रिच्छशब्दौ । रिक्खा जरेत्येके । रिकं स्तोकम् । काकः । ४२पक्वम् । समूहः । खड्गार्थस्तु 'रिष्टि 'शब्दात् । रीढं अवगणनम् । रुंढो किं(कि)तवः । रुंहो विपुलः मुखस्श्च । तूलम् । अर्कतरुः । रेणी रोलैं तंदुलपिष्टम् । रोडं गृहप्रमाणम् । रिहो गि रुवी रोरो ४०. रिक्खो - मु. । ४१. रिद्धं - मु. । ४२. पिक्कम् - डे. । ४३. रिद्धि - मु. । ४४. रिष्ट - डे. । ४५. रुंढो - मु. विना । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोद्धं अनुसंधान-१६ . 58 ★रोझो रोहितः । (गेझ-रोझ इत्यर्थे, दे.श.को.पृ.४९३) । रोलो कलहो रुंधश्च ६ । रोडी इच्छा, व्रणि, शिबिका च । कूणिताक्षम् मलश्च ।। प्रमाणं नमनं च । मार्ग४७ इत्यन्ये । लयं नवदंपत्योरन्योन्यं नामग्रहणोत्सवः । लक्खं कायः । लग्गं४८ चिह्नम् । अघटमानमित्यन्ये । लंचो ९ कुर्कुटः । उत्कोचार्थस्तु संस्कृतः । लल्लं सस्पृहं न्यूनं च । लम्बाः केशाः । लम्बो गोवाटश्च । लट्टो अत्यासक्तो मनोज्ञ:५० प्रियंवदश्च । लामा डाकिनी । लिक्खा तनुश्रोतः । लिक्खमित्यन्ये । लिंको बालः । लित्तो५१ खड्गादिदोषः । लीवो बालः । लीलो यज्ञः । लुंखो नियमः । सुप्तः । लुयं२ लूनं लुग्गं भग्नम् । लुंबी स्तबको लता च । लूआ मृगतृष्णा । लिखितमाश्वस्तो निद्रा निःशब्दश्च । स्तोकार्थस्तु 'लेश' शब्दात् । ४६. रवश्च - मु. । ५०. मन्योन्यः - सा. । ४७. मार्गण - पा. डे. । ५१. लित्ती - सा. । ४८. लिग्गं - डे.स । ५२. लुअं - पा. सा. मु. । ४९. लंबो - पा. डे. । लुंको लेसो Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वद्धी वम्हं अनुसंधान-१६ - 59 लोकः सुप्तः । लोढो स्मृतः शापितश्च । वंगं वृन्ताकम् । वउ५३ गृध्रः । यान्तोऽयम् । बन्धः । वड्डो महान् । अवश्यकृत्यम् । वंको वंसो द्वौ कलङ्के । वंसी शिरोमाला। वत्वं(वच्छं) पार्श्वम् । वऊ लावण्यम् । वल्मीकम् । वत्थी उटजम् । वल्लो शिशुः । गन्धद्रव्यम् । उकारान्तोयम् । स्कन्धव्रणः । सामान्येन व्रण इत्यन्ये । वट्टा मार्गः । वत्ती सीमा । इकारान्तः । वज्जा अधिकारः । वल्ली केशः । वतु निवहः अविभक्तिकोऽयं निर्देशः । वृन्दमिति 'वृन्द'शब्दात् । वडो५ द्वारैकदेशः क्षेत्रं च । वणो अधिकारः श्वपचश्च । वंठो अकृतविवाहो निस्नेहः, खंडो गंडो भृत्यश्च । वप्पो तनुर्बलीभूतगृहश्च । क्षेत्रार्थस्तु ‘वप्र'शब्दात् । वण्णं अच्छं रक्तं च । ५३. वंतु - सा. । वओ - मु. । ५५. वेडो - आ. । ५४. ईकारान्तः-डे। ५६. वालीभूत - पा. सा. डे. । वहू वहो वंद्रं Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७. ५८. अत्र ★ बले ★ वणे वाडी वामो वाढी ★ वाअं वाऊ वाली वामी वारो अत्र वाय" विडुं विप्पं विसी विल्हं अत्र ★ विसो ★ विड्डा विल्लं वीली वीची वीसुं वीअं - अनुसंधान - १६ • 60 निर्धारण - निश्चययोः । निश्चयविकल्पानुकंप्यसंभावनेषु । वृत्ति: (ति:) इकारान्तः । मृतः । वणिक् सहायः । गन्धः । इक्षुः । मुखमरुत्पूरिततृणवाद्यम् । स्त्री 1 ५७ चषकः । म्लायतीति धात्वादेशः । दीर्घम् । पुच्छम् । करिसरि । ( गज - पर्याण- दे. श. को.) । धवलम् । आखुरिति वृषशब्दात् । लज्जेति 'व्रीडा' शब्दस्य 'तैलादि० ' पाठात् उस्य द्वित्वे सिद्धम् । अच्छं विलसितं च । तरंगः । वुप्फं शेखरः । 13 वेषकः आ. 1 वाद पा. सा. डे. । लघुरया । पृथक् । सामस्त्यार्थस्तु 'विष्वक्' शब्दभवः । विधुरं तत्कालं च । ५९. वुवं पा.सा. । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वुण्णो वेप्पो वेंढी वेणो अनुसंधान-१६ . 61 भीत उद्विग्नश्च । ओष्ठ्यादिरयं प्रायेण । वेला सीमा । वेली निद्रा, करी, लता च । वेंगी वृतिमती । भूताविष्टः । पशुः । वेलं दंतमांसं । वेलेत्यन्ये । विषमसरिदवतारः । वेत्तं अच्छवस्त्रम् । वेली ६१ चौरो मुसलं च । वेल्ला केशाः । वेल्ला वेल्ली वेल्लो पल्लवो विलासश्च । वेव्वे भयवारणविषादामंत्रणार्थेषु निपाताः । सढी सिंहः इकारान्तः । संप(फं?) कुमुदम् । सहो६२ योग्यः । सत्ती वक्रपादपत्रयोक्षि(त्क्षि)तं वृत्तसंस्थानं काष्ठम् । सत्थो गतः । संगा-संडी द्वौ वला(ल्गा)याम् । संव्या वा) काञ्ची । सरा माला । मागधः । सढा केशाः । सढं विषमम् । सढो६५ स्तम्बः । साहि ६६ रथ्या । ६०. वेगी - पा. सा. ६४. संढं - आ. । ६१. वेलू-सा. ६५. सढा - आ. । ६२. सेहो-आ. ६६. साही - पा. सा. डे. । ६३. संबा-पा. । संवा-सा. । संपा - मु.। . संखो Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · सारी साला साई सायं साहो सिं सिग्गो सिंदू सिंही सिंग सित्थी सिप्पं सिंदी सिव्वी सिंडं सिण्टा सिद्धिः सित्था सिन्हा सीयं ७४ सुद्धो सुल्ली ७६ सई अनुसंधान - १६ • 62 वृषी, मृत्तिकेत्यन्ये । शाखा । केशरम् । महाराष्ट्रदेशे पत्तनविशेषो दूरं च । वालूका [3]लूँको दधिशिरश्च । दधिशिरो ६९ दघ्न उपरि सारम् । मयूरः । श्रान्तः । रज्जू” । कुर्कुटः । कृशम् । मत्स्यः । पलालम् । खर्जूरी ७२ सूची । मोडितम् । नासिकानादः । परिपाटितम् । लाला, जीवा च । अवश्यायश्च । थुम् । गोपालः । आ. । ६७. शाला सा. । ६८. वृ ६९. सिरो पा. । ७०. स्यंदू - आ. । ७१. रज्जुः - पा. सा. । उल्का । बुद्धिः । ७२. खजूरी पा. सा. डे. । ७३. मोटितं सा. डे. ७४. सीअं सा. डे. ७५. सिक्थम् - पा. । ७६. सुली सा. । - 1 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुग्गं७ सूला सेट्री सेरी अनुसंधान-१६ .63 आत्मकुशलं निविघ्नं विसज्जितं च । वेश्या । मञ्जरी । सेओ गणपतिः । ग्रामणीः । सेल्लो मृगशिशुः शश्च । दीर्घा, भद्राकृतिश्च । सोत्ती नदी । सोअं स्वपनम् । सोल्लं मांसम् । सोही भूते भाविनि च काले प्रयुज्यते, सामर्थ्यात् तदर्थं भवति । अस्थि । शुकः । दूरम् । हृतम् । शीघ्रम् । सावशेषम् । विषाद-विकल्प-पश्चात्ताप-निश्चय-सत्य-गृहाणार्थेषु । क्षेप-संभाषण-रतिकलहेषु । ★हंद च गृहाणार्थे । हद्धी निर्वेदे निपातौ । सातवाहनः । हारा लिक्का ८१ ह्मवो ८२ जङ्घाल इत्यन्ये । हिला-हिल्ला द्वौ वालुकायाम् । हिक्का रजकी । ७७. असुग्गं - आ. । ८०. हलो - पा. सा. । ७८. सिट्ठी - आ. । ८१. लिक्षा - मु. । ७९. स्वजम् - आ. । ८२. हालो - पा. सा. डे. । ERE हालो८० Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिड्डो अनुसंधान-१६ • 64 वामनः । हिज्जो ह्यस्तनदिनम् । हित्था लज्जा । हित्थो लज्जित इत्यन्ये । हिट्ठो हिट्ठा हिडो त्रय आकुले । अधोवाची तु अधः'शब्दभवः । हीरो सूचीमुखाभं दार्खादि वस्तु । व्रजा(वज्रार्थस्तु संस्कृतसमः । हरवाची तु 'हर'शब्दात् । हीरो भस्मेत्यन्ये । मेषः । हुत्तो अभिमुखः । पणः । लोहकार । हेला वेगः । हुडो हुड्डा हूमो अथ यक्षराः ॥ अंगुट्ठी शिरोवगुण्ठनम् । अगउ८६, अयक्को, अयगो त्रयो दानवे । अंकेली, अशोकतरुः इकारान्तः । अझेली दुग्धदोहा । धेनुः या पुनः पुनर्दुह्यते । अंबेट्टी मुष्टियूतम् । अन्नाणं० विवाहे वध्वै यद्दीयते यद्वा वध्वा एव वराय यद् दानम् । मौ(W)वाची तु 'अज्ञान'शब्दभवः । अद्धंतो पर्यन्तो । अरुणं कमलम् । अकासि पर्याप्तं कृतमित्यर्थः । ८३. हिट्ठ-आ. । ८७. अवल्ली - पा. । ८४. हुड्डो - आ. । ८८. अजोल्ली - पा. सा. डे. । ८५. सिरोवगुण्ठनम् - पा. आ. । ८९. अंबट्ठी - आ. । ८६. अगओ - पा. सा. । ९०. अण्णाणं - सा. । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 65 अग्घाडो' अपामार्गः । अंवेसी९२ आम्वसी१३ द्वौ गृहद्वार-फलके । इकारान्तावेतौ । अंकारो अत्थारो द्वौ साहाय्ये । अत्थुडं लघु । अक्वंतं प्रवृद्धम् । अंबुच्ची ९ पुष्पलावीश्चाम्राण्युच्चिनोति इति व्युत्पत्त्या तु न देश्यः । अहेल्लो धनी । अविअं उक्तम् । अट्टो गतः । अज्झत्थो आगतः । एते त्रयः क्रियावाचिनोऽपि त्यादिष्वदर्शनादत्र निबद्धाः । अइणं गिरितटम् । अणत्तं निर्माल्यम् । अलग्गं आलं कलङ्कारोप इत्यर्थः । अलिणो वृश्चिकः । अंबुसू शरभः । उकारान्तः । अकुटुं अध्यासितम् । अंकियं परिरम्भः । अणंप्यो५ खड्गः । अल्लउ९७ परिचितः । यान्तोयम् । अक्कोडो छागः । असारा कदली । अवार-अवारी द्वौ आपणे । अल्लल्लो ९ मयूरः । अलम्पो १० कुर्कुटः । ९१. अग्घोडो - आ. । ९६. अप्पणो - आ. । ९२. अवेसी - सा. । ९७. अल्लिओ - सा. डे, ! ९३. अम्बेसी - पा. सा. डे. । ९८. अवारा - सा. । ९४. अंबोच्ची - मु. ।। ९९. अलूल्लो पा. । ९५. अशत्थो- सा. । १००. कुक्कुट: पा. सा. । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अयाली ★ अखंखो' निःस्नेहः । अज्झस्सं आक्रुष्टम् । धात्वादेशोपायं (ऽप्ययं ) प्राच्यैरिह बद्धः । अज्झस्सइ 'अज्झस्सिंऊण' इत्यादयोऽस्य प्रयोगाः कार्याः । अहं अक्षतम् । अंजसं अड्डणी अलिआ अनुसंधान - १६ • 66 दुर्दिनम् । इकारान्तोयम् । अद्दाउ अंछियं आकृष्टम् । असियं दत्तम् । अप्पज्झो आत्मवश: । अत्थक्कं अप्रस्तावः । अक्कंदो आरक्षकः । अम्बिरं अवंगो अहरो अजुओ अमउ ६ चंद्रः । यान्तः । सर्वत्रैवं विज्ञेयम् । अन्नो अद्दणो द्वौ आकुलौ । अंड अइरो अंबडो कठिनः । अलयं 1 ऋजु । 'दर्पणः । यान्तोयम् । आम्रम् । कटाक्षः । १. अअंखो मु. । २. अज्झस्सऊण आ. सा. । ३. अकृतम् पा. सा. डे. । ४. सर्पणः ५. अप्पस मत्स्यः आयुक्तः ग्रामेशादिः । विद्रुमः । कुटिला केशार्थस्तु 'अलक' शब्दात् । मार्गः । इकारान्तः । सखी । अक्षमः । सप्तच्छदः । पा. 1 पा. डे. । अप्पशो www सा. । ६. अमओ - सा. । ७. अदण्णो- पा. सा. डे. । ८. अधणो आ. । अ ९. अंडओ - सा. । १०. अलिया- पा. सा. । ११. अजुउ पा. । सा. । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 67 अज्झर्ड प्रातिवेश्मिकः । अगिला अण्णं अण्णत्ती "ईकारान्ताः(न्तः), त्रयोप्यवज्ञार्थाः । अयडो अंधंधू ऊकारान्तः, द्वौ कूपे । अणडो अणाडो द्वौ जारे । अडया अहव्वा द्वौ असतीवाचकौ । अग्घाणो तृप्तः । अडाडो अणुवो द्वौ बलात्कारे । अणिलं प्रभातम् । अप्फुणं पूर्णम् । आक्रान्तवाचकस्तु 'अप्फुण'८'शब्दः "क्तेनाप्फुण्णादय" इति प्रसिद्धः । *अच्छल्ल अनपराधः । संस्कृतसमः । ★अलंसी क्षमेति 'अतसी'शब्दात् । अलाहि निवारणे इति निपातः । अग्घइ राजते । अण्हइ भुंक्ते । *अहेसि आसीत् । अट्टइ कथति । गच्छति । अंचइ कर्षतीत्यादयो धात्वादेशाः ॥छ। ग्रंथाग्रं ॥२००॥ अणिहं सदृशं मुखं च । अरलं चीरी मशकश्च । अलसं सिर्वथकम्, कुसुंभरक्तं च । अविलो पशुः कठिनश्च । अणओ२३ आकृति । धान्यविशेषश्च । १२. असउ - पा. डे. । अशओ - सा. । १८. अप्पुण्ण - आ. । १३. अवलं - आ., अवणं - पा. । १९. अच्छलं - पा. सा. । १४. अणत्ती - पा. । . २०. अलसी - मु. । १५. इकारान्तः - पा. । २१. अणाहि - आ. डे. । १६. अणवो - आ. पा. । २२. किक्कसं - आ. । १७. अप्पुन्नं - आ., अप्फुण्णं - सा. । २३. अणउ - पा. डे., अणुओ-मु. । अईइ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 68 अणुंआ यष्टिरित्यन्ये । अचलो गृहं उक्तं च । गृहपश्चिमप्रदेशो निर्ल्डरो विरसश्च । अवेडो कूप आरामश्च । अग्गिउ६ इंद्रगोपकीटो मंदश्च । अत्थग्धं *अच्छाहं द्वौ अगाधे दैर्ध्यस्थाने च । (अत्थाहं दे.श.को.) अज्जउ सुरस-गुरेटकयोस्तृणभेदयोः । अल्लत्थं जलार्द्रा केयूरं च । अवणो परीवाहो गृहफलहकश्च । अन्न तरुणो धूर्तो देवस्श्च । अंतेल्ली मध्यं जठरं तरङ्गश्च ॥छा। आलासो वृश्चिकः । आणिकं तिर्यक्सुरतम् । आअल्ली झाटभेदः । अहच्चं अत्यर्थम् । आणुअं मुखम् । 'आकार' इत्यन्ये । आउलं अरण्यम् । आवेगो अपामार्गः । आमोडो आमेलो जूटे द्वे, शेखरार्थस्त्वामेलो 'आपीडशब्दभवः । आरिल्लो अर्थाका(त्का?)लोत्पन्नः । (तत्कालोत्पन्नः) । आरोहो स्तनः । नितम्बवाची तु संस्कृतः । आफरो द्यूतम् । आगत्ती कूपतुला । आसंघा इच्छा । आस्थेत्यन्ये । आविद्धं प्रेरितम् । २४. अणुसा - सा. । २९. अणओ - पा. । २५. आवडो - आ. । २६. अग्गिउं - पा. । अग्गिओ सा. । ३१. कोटभेदः - आ. । २७. अग्घत्थं - सा. । ३२. आवंगो - पा. सा. । २८. अवण - पा. । ३३. अरिल्लो - डे. । ३०. आलसो - आ. । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .69 आणाई शकुनिका । आणुओ श्वचः । आडाडा बलात्कार । आयड्डी विस्तार । आमोओ६ हर्षः । परिमलार्थस्त्वामोदशब्दात् । आलंबं भूच्छत्रम् । आलत्थो मयूरः । आसयं निकटम् । आयामो बलं । 'दीर्घ' इत्यन्ये । आलीलं निकटभयम् । आउं संग्रामः । आउसं कूर्चम् । आसंगो वासगृहम् । आलिद्ध शब्द 'आश्लिष्ट' शब्दात् । आहइ३८ कांक्षतीति धात्वादेशः । आणियं९ - आढियं द्वावपि प्रत्येकं इष्टे गणनीये अप्रमत्ते गाढे च वर्तते । आहुडं सीत्कारः पणितं च । आअरं उदूखलं कूच च । आअल्लो रोगश्चंचलश्च । आराडी विलपितं चित्रितं च । आरडियमित्यन्ये । आरद्धं प्रवृद्धं सतृष्णं गेहागतं च । आरणं अधरः फलकश्च । आवि२ इन्द्रगोपे मथिते प्रोते च । ३४. आणवो - पा. । अण्णोवो - सा. । ३९. आणिअं - सा. । ३६. आमोउ - पा. । आमोऊ - डे.। ४०. उदूखेलं - डे. । ३७. विकटम् - पा. । ४१. आरद्धं - डे. । ३८. आहइं - सा. । ४२. आवियं - सा. । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्कुसं अनुसंधान-१६ . 70 आऊरं अतिशय उष्णं च । आहित्थो चलितः कुपितः आकुलश्च । इंगाली इक्षुखंडम् । सामान्याभिधानेऽपि नीलोत्पलम् । इरिणं कनकम् । इहंडो भ्रमरः । इक्कणो चौरः । इरावो गजः । इग्घियं ४ भत्सितम् । इरिया ५ कुटी । इंधियं६ घ्रातम् । इंदग्गी हिमम् । इल्लीरं वृषी वृष्टिवारणं गृहद्वारं च । ईसउरोज्झाख्यो मृगः । ईसरो मन्मथः । ईसियं ४९ शबरशिरः पत्रपुटं ५० वशायितं च । उक्वंदी कूपतुला, उकंतीत्यन्ये । उद्दाणा वल्ली (चुल्ली?) । उव्वरो उव्वाहो-उक्कोलो त्रयो धर्मे । उरी पशुः । उण्हिया५३ कृशरा । उण्णमो उन्नतः । उलिअं निकूणिताख्यम् । ४३. इक्षुसं - डे. सा. । ४९. ईसिअं - सा. । ४४. इग्घिअं- सा. । ५०. पत्रपुत्रं शायितं च - डे । ४५. इरिआ- सा । ५१. चुल्ली - मु. । ४६. इंधिअं- स. । ५२. उम्वरो- सा. । उम्बरो - सा. । ४७. ईसओ - सा. । ५३. उण्हिआ - पा. सा. डे । ४८. रोझाख्यो मृगः - डे. सा. । ५३. उण्हिआ - पा. सा. डे । ५४. निकूणिताक्षं - पा.सा.डे । ५२ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 71 उअअं ऋजु । उक्खलं पिठरेम् । उल्लटुं५७ मिथ्या । उवियं५८ शीघ्रम् । उसुओ५९ दूषणम् । उम्मत्तो धत्तूरः । “एरण्ड'इत्यन्ये । उलित्तं उच्चस्थितः कूपः । उग्घट्टी-उआली द्वौ अवतंसे । उरत्तं स्फाटितम् । उम्बरं बहु । देहल्यर्थस्तु 'उदुम्बर'शब्दभवः । उच्छुरं अविनश्वरम् । उप्फालो० दुर्जनः । ६'उद्यो-उठुलो द्वौ उल्लासे६२ । उम्मलं स्त्यानम् । उक्कुडी मत्तः । उड्डाउ६४-उप्फोउ द्वौ उद्गमे । उक्कोडो उकंड द्वौ लञ्चः । उल्लुवं त्रुटितम् । उप्फुण्णं आपूर्णम् । उत्साहो सूत्रतन्तुः । (उच्छाह-दे.श.को) । उत्थग्यो संमर्दः । उम्मत्थं अधोमुखम् । उत्थल्ला परिवर्तः । उद्देही उपदेहिका । ५५. उखली-सा. । ६१. उदल्लो-सा. । ५६. पितरम् - सा. । ६२. उलासौ-आ. । ५७. उल्लुटुं - सा. । ६३. उक्कुढो-पा. डे. । उक्कुंडो- सा. । ५८. उविअं - सा.डे. । ६४. उड्डाओ-सा. । ५९. उसुउ -डे. । ६५. उप्फोओ-सा. 1 ६०. उफालो पा.सा. ६६. कटितम्-आ. पा. डे. । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उब्भंतो __ अनुसंधान-१६ • 72 उक्कोडी प्रतिशब्दः । उसीरं बिसम् । उप्फेसो त्रासः । अपवादेऽपि दृश्यतेऽयम् । उम्मला६७ तृष्णा । उत्तूहो अतटः कूपः । उज्झसो उद्यमः । उब्भागो गुण्ठितः । उच्छिल्लं छिद्रम् । वक्ष्यमाण ‘छिल्ल'शब्दस्य उत्पूर्वस्येदं रूपमिति नाशक्यम् । देशीशब्दानामुपसर्गसंबंधाभावात् । एवं फेस-उफेसादिषु वाच्यम् । उच्छुअं भयचौर्यम् । उम्मरो गृहदेहली । ग्लानः । उद्वसम् । उक्केरो उपहारः । समूहार्थस्तु 'उत्कर'शब्दात् । उइंसो मत्कुणः । उब्भाउ५ शांतः । उद्धत्थो विप्रलब्धः । उज्जल्ला-उम्मड्डा द्वौ बलात्कारे । उच्चारो विमलः । उच्चाडो विपुलः । उच्चेवो प्रकटः । उच्चत्थो दृढः । उअह°५ पश्यत । ६७. उम्मल्ला - सा. । ७३. उक्कारो-डे. । । ६८. उग्गग्गो - पा. सा. डे. । ७३. उद्दसो-आ. । ६९. संबंधात् - आ. । ७४. उब्भाओ-सा. । ७०. उप्फेसादिषु- पा. सा. । ७५. उवह - आ । ७१. गृहे देहली - पा... । ७२. उब्भडं-पा. सा. डे. । #11011111111 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तालं निरन्तर अनुसंधान-१६ • 73 उडिदो६ माषः । उअरी शाकिनी । उल्लोचो वितानम् । उंछओ९ छिपकाख्यः कारुः । उड्डोसो संतापः । उग्घुटुं पुंसितम् । उल्ोलो-२ शत्रुः । उत्तुणो-उम्मुहो-पच्छंचो-उच्छुच्छू चत्वारो मत्ते । उल्लूढो-उच्चप्पो द्वौ आरूढे । 'उलूढो' अङ्कुरित इत्यन्ये । उव्वीढं उत्खातम् । उच्छट्टो चौरः । उच्छंटो द्रुतचौर्यम् । निरन्तर-स्वर-रुदितम् । उव्वाओ खिन्नः८६। उल्लेवो हासः । उब्भुग्गो चलः । अत्र उत्थारो उत्साहः, (आक्रमणे दे.श.को.पृ.४५०) उच्छुण्णं ७ विमर्दितमिति (परिपूर्णे-दे.पृ.४५०) उत्साह 'उत्क्षुण्ण' शब्दभवौ । उन्दुर -★ उच्चयशब्दौ मूषिक-८-नीवीवाचकौ संस्कृतौ । उंघइ निद्राति । उग्गइ उद्घाटयति । एतौ धात्वादेशौ । ७६. उड्डिदो - पा. । ८२. उल्लोचो - आ. । ७७. उतरी - पा. । ८३. उन्नुणो - आ.सा.डे. । ७८. उलावो - डे. । ८४. उच्चुंछो - पा. सा. डे. । ७९. उंछउ - पा. डे. । उंछउं - सा. । ८५. उच्छूढो - पा. । ८०. उद्दोसो - डे. । ८६. खिन्नं - सा. । ८१. पुंसितं - आ. । ८.७. उच्छुलं - आ. डे. । उच्छत्सं पा. :८८. मुषितं - पा. । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 74 उड्डणो दीर्घो वृषभश्च । उठवण्णं उद्विग्नम् उत्सिक्तं " उद्भटं शून्यं च । विषमोन्नतप्रदेशः श्रान्तः संघातश्च । उद्वा१२ उच्छित्तं ९३ विक्षिप्तं उत्क्षिप्तं च । उम्मड ४ हठ उद्वृत्तं च । उक्खुंडो उल्मुकं निकरो वस्त्रैकदेशश्च । उम्मच्छं असंबद्धं भङ्गीभणितम् क्रोधश्च । उक्खंडो - उप्पीलो - उग्घाओ- उद्दामो चत्वारोऽपि संघात स्थपुटयो: । ★ उब्वैरो अधिके संघाते स्थपुटे च । उब्बिंब उच्चलं उड्डाणो ★ उठवुक्कं उंडलं उप्पित्थं उव्वत्तं उव्व उव्वट्टं उव्वाद" त्रयो विस्तीर्णे गतदुक्खे च । विउव्वाढ" इति केचित् । अवकीर्णम् छन्नं पार्श्व-प्रशिथिलं च । पंक उच्छ्रयः समूहो बहलं च । गर्वितोऽधिकगुणश्च । नीवी खेदश्च । अनुवादः खेदश्च । उखिन्नं १०० उप्पको उत्तोपो उच्चोलो उच्छुल्लो ८९. उड्डाणो ९०. उच्चणं ९१. उच्छिकं ९२. उद्वाओ ९३. उच्छिन्न ९४. उम्मंढ ९५. उच्चरो - - खिन्नं शून्यं भीतं च । उद्भटं क्रान्तं प्रकटवेषं च । उद्विग्नं अधिरूढं भीतं च । प्रतिशब्दः कुरेंरो विष्टा गव्वितो मनोरथश्च । प्रलपितं संकटं हठश्च । आ. पा. डे. । सा. । आ. । मंचो निकर 1 त्रस्तं कुपितं विधुरं च । नीरागं गलितं च । सा. । पा. । आ. । उम्मंड सा. । सा. । ९६. उबिंबं सा. । उच्छिबं ९७. कुरसरा पा.। ९८. उच्छाढं सा.पा. । ९९. विउच्छाढं १००. उखिणं - पा. सा.डे. । १. छिन्नम् - डे. । २. उत्तप्पो सा. । - सा. । - डे. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एद्दहं अनुसंधान-१६ . 75 उम्मल्लो राजा मेघः पीवस्श्च । हठ इत्यन्ये । ऊसणं रणरणकः । ऊसारो गतविशेषः । ऊसयं ४ उपधानं गंडुकमित्यर्थः । ऊसलं पीनम् । ऊहटुं उपहसितम् । ऊहसियमिति तु 'उपहसित'शब्दभवम् । ऊरणी उरभ्रः । ऊसत्थो "जृम्भितं आकुलश्च । एक्कंगं चन्दनम् । एत्तोप्पं एतत्प्रभृतीत्यर्थः । एमाणो प्रविशन् । एत्ताहे इदानीम् । इयत् । एकारो अयस्कारः । एते प्राकृते । इंद्राणी तट्ट(व) तस्था स्त्री च ॥छ। ओसारो गोवाटः । ओसक्को अपश्रितः१० । ओग्गीउ१ नीहारः ।। उ(ओ)च्छियं केशविवरणम । ओंडलं केशगुम्फः । उ(ओ)सिउ अबल:१२ । उ(ओ)णीवी नीव्रम् । उ(ओ)त्थारो उच्छाहः । उ(ओ)ग्गालो ओआलो द्वौ अल्पप्रवाहे । ३. ऊसरणं - आ. । ९. तद्वस्त्रत्था- आ. । ४. ऊस - डे. । १०. अपसृतः - पा.सा.डे. । ५. गंडक - पा. । ' ११. ओग्गओ - पा. । ६. ऊसणी - पा., जरणी - आ. ।। १२. अबलाः डे. । ७. जंभितः - डे. । १३. उ(ओ)च्छरो - पा.सा.डे. । ८. एत्तोयं - डे. । १४. उत्साहः - पा. । एराणी Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ (ओ)त्थओ उ (ओ) क्कियं १५ उ (ओ) णिव्वो उ (ओ) वही ७ उ (ओ) साउ" उ (ओ)च्छत्तं ओसीसं ओट्टो ओहंको -ओट्टो - ओलिप्पं त्रयो हासः । उ (ओ) की अनुसंधान - १६• 76 अवसन्नः पिहितमित्यन्ये । उषितम् । 'वान्तम्' इत्यन्ये । वल्मीकः । ओडें ★ ओलत्थो ओहत्तो परीधानैकदेशः । प्रहारपीडा । दंतधावनम् । अपवृत्तम् । मेघजलसेकः । ओलिंभा ओचुल्लं ओज्ज बलवान् । ओअंको-ओज्जाओ २२ द्वौ गर्ज्जिते । छत्ररमणम् । शिशूनां क्रीडयाऽन्योन्याक्षिस्थगमनं नाशो वा । सा. । १५. ओक्किअं १६. उ ( ओ )णिवो १७. ओसाओ - सा । १८. उ ( ओ )व्वो -311. 1 १९. ओहड्डो - पा. सा. । ओरली दीर्घमधुरध्वनिः । ओल्लणी मार्जिता । ओसणं उद्वेगः । ओरिलो ओड्डूणं उ (ओ) इत्तं उपदेहिका । चुल्ल्येकदेशः । ० अर्वाचीनः । उत्तरीयम् । परिधानम् । रक्तम् । विदारितः । अवनतः । पा.सा.डे. । २०. उ ( ओ ) लिज्जं २१. ओलंकी सा.डे. । २२. उ( ओ )ज्जाउ - आ. । २३. ओसरणं आ. । २४. उडटुं आ. सा.डे. । पा । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HAYA111111 * * ॥ अनुसंधान-१६ . 77 ओसन्नं त्रुटितम् । ओरुंजं 'नास्ति' इति भणितिगर्भा क्रीडा । ओहडं विफलम् । ओहुरं खिन्नम् [अव]नतम् त्रस्तम् चेत्यन्ये । ओवरो निकरः । ओसुद्धं विनिपतितम् । ओझरी अन्त्रावरणम् । ओसित्तं लिप्तम् । ★ओज्झओ - ओग्गिओ द्वौ अभिभूते । ओइल्लं आरूढम् । ओसीओ अधोमुखः । ओलित्ती खड्गदोषः । उ(ओ)क्कणी यूका । ओज्झायं अन्यं प्रेर्य यत् करेण गृहीतम् । ओलओ० श्येनपक्षी । अपलाप इत्यन्ये । अत्र ओहइ अवतरति धात्वादेशः । ओमाल-ओज्झर-ओसत्त शब्दा निर्माल्य-निर्झर-अवसक्त-शब्दभवाः । ओलुग्गो सेवको निच्छयो निःस्थामा च । ओआली खगदोषः पंक्तिश्च । ओलुटुं२२ अघट्टमानं मिथ्या च । ओअल्ले पर्यस्तः “कम्पो गोवाटो लम्बमानश्च । ओरत्तो विदारितो गर्वी३५ कुसुम्भरक्तश्च । ओहो अपसृतो अवगुण्ठनं नीवी च । २५. झटितम् - आ. । ३१. खड्डुदोषः पा. । २६. गिर्भागक्रीडा - पा. । ३२. ओलुटुं - सा. । २७. ओहंडं - सा. डे. । ३३. अघटमान - सा. । २८. उ(ओ)शरी-सा. । उ(ओ)सरी-पा. । ३४. कपोतो - पा. । २९. खड्डदोषः - पा. । ३५. गर्व - आ.सा.डे. । ३०. ओलउ - आ.पा.डे. । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६• 78 ओओओ ग्रामेशो अपहृत आज्ञा हस्त्यादिबंधार्थं खातं च । ओहारो कच्छपो नद्याद्यन्तद्वपं अंशश्च । ओविअं आरोपितं रुदितं चाटु मुक्तं हृतं च । ओहित्थं विषादो रभसो विचारितं च । ओहंसो चन्दनं चन्दनघर्षणशिला. च । अथ कादयो वर्णक्रमेण कविसं कल्लोलो को (क) डुंबं कच्छरो कवयं कलंबू कमिओ ३९ करोडी कयलं कंदलं कट्टा कसरो कंटाली कउहं कई - मद्यम् । शत्रुः । कार्यम् । पङ्कः । भूमिच्छत्रम् । नालिकाख्या वल्ली । उपसप्पितः । कीटिकाभेद: अलिञ्जरः । कपालम् । क्षुरिका । अधमवृषः । कण्टकारिका" । नित्यम् । कलहं करेड़ कक्किंडो द्वौ कृकलासौ । ४३ ४४ लता । खड्गकोशः । ३६. उ(ओ) आउ आ. ३७. ओहत्थं सा. डे. । ३८. नालिकाया वल्ली डे. । ३९. कमिउ पा. डे. । पा.सा.डे. ४०. कायलं - ४१. कण्टकालिका ४२. खड्डकोशः पा. डे. । ४३. करेटू - डे. । ४४. कंकिडो - सा । किंकिडो-सा. डे. । ४५. कृकलासे - डे. । पा.सा. डे. । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 79 कवासो-कविसो द्वौ मोचकाख्ये पादत्राणे । कणिशं६ ४७कंशारुः । धान्य शीर्षवाची तु 'कणिश'शब्दात् । कसिआ-कसई द्वौ अरण्यचारी (रि) फले । कविलो श्वा४९ । कडसी० श्मशानम् । कंटोल कंकोडम् । करणी आकारः । संस्कृतोऽप्यस्ति ।। कउलं गोमयखंड-चूर्णयोः करीषे च । कडच्छू लोहदी । कंपंडो पांथः । कंपोडो गुहा । कमणी निःश्रेणिः । करंजो शुष्का त्वक् । कसालं सेवालः । कम्हिओ५ मालिका५६ । कलंको५७ वंशः । कविडं५८ गृहपश्चिमाङ्गणम् । कलिमं-कन्दुट्ट द्वौ नीलोत्पले । कल्होडो वत्सतरो, वत्सतरी तु कल्होडी । कंडूरो बकः । कडारं नालिकेरम् । करिलं वंशाङ्करः । ४६. कणिसं - पा.सा.डे.मु. । ५४. कशालं - पा.सा. । कज्झालं -मु. । ४७. किंसारुः - पा.सा.डे.मु. । . ५५. कम्हिउ - डे. । कमिउ - पा. । ४८. अरण्यवाची - पा. । ५६. मालिकः पा.सा. । ४९. अश्वा - आ. पा. । ५७. कलकंको- आ. । ५०. कडशी - सा. । ५८. कविटुं - डे. । ५१. कपडो - आ. । ५९. कदोर्ट्स - पा.सा.डे. । ५२. कफाडो - पा.सा.मु. । कप्फोडो-डे. । ६०. कारिलं - आ. । ५३. सुष्का त्वक् - आ. डे. । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 80 कव्वाडो दक्षिणहस्तः । कलमो चौरः । तं कयरो-कज्जवो द्वौ पुंजके । कज्जवो विष्टेत्यन्ये । कक्खडो पीनः । कर्कशार्थस्तु संस्कृतात् । केलिजं लघुदारु वंशादिदलमित्यर्थः । कच्छुरी कपिकच्छू । कस्सअं प्राभृतम् । कराली दंतकाष्टम् । कंकेली अशोकः । कलवू तुम्बीपात्रम् । उकारान्तोऽयम् । कडप्पो निकरे, वस्त्रैकदेश इत्यन्ये । कंवरो विज्ञानम् । कहेडो तरुणः । करिआ मद्यपरिवेषणभांडम् । कण्णासो पर्यन्तः । कक्कसो दध्योदनः । कंठिउ द्वांस्थ:६४ । केऽपि कंठिअ इति पठन्ति । अत्र च★कम्मणं वश्यादि । ★कलावो तूणः ।। ★कव्वाउ राक्षस इति कर्मण-कलाप-क्रव्याद-शब्देभ्यः । कडिल्लं निच्छिद्रं कटीवस्त्र च द्वास्थो गहनं वनं शत्रुः राशी(शि)श्च । कव्वालं कर्मस्थानं गृहं च । कलेरो कङ्कालाः करालश्च । कसव्वं६८ स्तोकं आएँ-प्राज्यं बाष्पश्च । ६१. कयारो - डे। ६५. वेश्यादि - पा. डे. । ६२. कंलिजं - आ. । ६६. क्षणः - डे. । ६३. कंबरो - मु. । ६७. कालारो - डे। ६४. द्वास्तः - पा. । ६८. कसबं - सा. । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 81 कघाडो अपामार्ग: किलाटश्च । करोडो नालिकेरं काको वृषभश्च । कमलो पिठरः पटहो मुखं हरिणश्च । अर्जुनवृक्षः सुवर्णकारश्च । भिक्षापात्रं अशोकवृक्षश्च । कलउ करकं ७२ कमो कडतं ७४ कणउ पुष्पावचय इषुश्च । कलिउ७५ गर्वी नकुलः सखी च । सख्यां लिङ्गपरिणामेट कलिया । ज्ञातार्थस्तु 'कलित 'शब्दात् । प्रधानं चिह्नं च । संस्कृतोऽयम् । अं अत्र कम्मइ क्षुरं करोति । भुङ्क्ते चेति धात्वादेशः । कण्णोली” चंचुरवतंस कश्च ॥छ | काउलो बकः । काहेणू-काइणी द्वौ गुंजायाम् । काणच्छी काणाक्षि दृष्टम् । काहली तरुणी । कारिमं कासारं ६९. अपमार्गः ७०. करोलो ७१. करडा ७२. लढ्ढा ७३. लट्टायां ७४. कडकं ७५. कलिओ - डे । पा. सा. । पा. । व्याघ्रो लय ७२ कर्बुरश्च । काकार्थस्तु 'करट' शब्दात् । लयैयां च लिङ्गवशात् 'करडा' । दधिकलशी (शो) पिठरं हलधरो मुखं च । कच्छपे - भिक्षुपात्रे-दैत्थे च 'कमठशब्दभवः । मूलकशाकं मुशलं च । पा. । करोद्रो मा. । - आ.पा.सा. 1 आ. । कृत्रिमम् । सीसकम् । (ग्रं डे । ३००) ७६. गावी ७७. संख्या ७८. परिमाण ७९. कण्णोल्ली ८०. चंचुरवतंसश्च ८१. गुंजया - - पा. । डे. - आ. । सा. । पा. । पा. । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काहोरो जलादि वाहीक: ८३ । कासिज्ज काकस्थलाख्यो देशः । ८४ कायंदी - काद्धी द्वौ परिहासे । गोपालः । काहिलो ठकः धूर्त्त इत्यर्थः । ८७ मृदुकश्च । शरीरं कालान्तरं मेघश्च । कालउ८६ काहलो कालिया कायलो प्रियः काकश्च । 'कायरो ' प्रिय इति केचित् । कोहली कालिंबो कासियं सूक्ष्मवस्त्रं श्वेतवस्त्रं च ॥छा कलिंच लघुदारु । त्वच्प्रायं वंशादिदलमित्यर्थः । किंबोडो स्खलितः । किंकिअं९२ धवलम् । कृपणः । किंपउ ९३ किंजक्खो ८२. काहोरो - डे. । ८३. वाटिकः पा. । ८४. कसिज्जं पा. । आ. । सा. । - अनुसंधान - १६ • 82 किलणी रथ्या । किंधरो किक्किंडी ९५ सर्पः । किविडी९६ पार्श्वद्वारं गृहपश्चिमाङ्गणं च । ८५. कणद्धी ८६. कालओ ८७. मृदुष्टकश्च ८८. कलान्तरम् - ९ नित्यव्ययार्थं धान्यम् । तवणीति ख्यातम् । अपूपादिपचनस्थाली च । शरीरं मेघश्च । शिरीषः । पा. सा. । आ. । लघुमत्स्यः । ८९. कोहली - डे । पा. । ९०. गृहनित्यव्ययार्थं ९१. किलिंच डे. । कलिंचं ९२. किंकियं पा. । ९३. किंपओ सा. । पा । ९४. किंजखो ९५. किंकिंडी - पा.सा.डे. ९६. किंवीडी डे । - - - पा. । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 83 किविडं धान्यखलं तज्जातं च । कुउआ तुम्बीपात्रम् । कुडिया ७-कुणिया-कुडीरं-कुच्छील्लं चत्वारो वृत्तिविवरे । कुंधरो लघुमत्स्यः । । कुकुलोला) नववधूः कुमारी चंडी । कुहियं१०० लिप्तम् । कुहेडो गुरेटकाख्यो हरितकविशेषः । कुसणं' तीमनम् । कुंतलो सातवाहनः । कुक्कुसो धान्यादि तुषः । कुप्पढो गृहाचारः । समुदायाचार इत्यन्ये । कुहडो कुब्जः । कुतत्ती मनोरथः । कुंचलं मुकुलम् । कुंपलं तु कुड्मल शब्दात् । कुक्कुडो' मत्तः । कुंदउ कृशः । कुंडिउ९ ग्रामपतिः । कुट्टाउ चर्मकारः । कुडयं-"कुडंगं द्वौ लतागृहे । कुंभिणी जलगतः । कुंतली जलकरोटिकेति परिवेषणोपकरणम् । ९७. कुडिआ - पा. । ४. कुनंती - पा.सा.डे. । कुतत्ती - मु. । ९८. कुणिया - पा. । ५. कुंचली - पा. । ९९. कुकुला - पा. । ६. कुटमल-सा । १००. कुहिअं - पा. य । ७. कुक्कुटो - पा.सा. । १. कुसलं - आ. । ८. कुंदओ - डे. । २. कुकुसो - सा. डे. । ९. कुंडिओ - सा. । ३. कुष्ट्रः - पा. । १०. कुंडगं - आ. । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ★ कुट्टणो कुऊँलं खननीयम् । कुंभिल्लं कुंदीरं कुरुच्वं बिबीफलम् । अनिष्टम् । कुर्मुल्ली चुल्ली । कुररी पशुः । कुम्भणं कुंटारं द्वौ म्लाने । अत्र कुप्पीसो कुर्हेणी कूपरो रथ्या च । कुंभिलो चौर: पिशुनश्च । रासभः । नीवी । परिहितवस्त्रांक इत्येके । १४ अनुसंधान - १६ • 84 ११ कुटयं - कुल्लडं द्वौ चुल्ल्यां लघुभाण्डे च । कुरुडो निर्दयो निपुणश्च । कुरुलो कुप्परं अदयो निपुणः कुटिलकेशश्च । कीलाघातः समुदाचारो नर्म च । सुरतकाले वक्षः प्रहणनविशेषः कीला । वृत्तिविवरम् । कुटी त्रुटितं च । कंचुक इति, ''कूर्पास' शब्दात् । कुडिच्छं कूबलं जघनवस्त्रम् । कुणियं ईषन्मुकुलितम् । गर्त्तारः । कूसारो 'केद्दहं' केलायइ कियदिति शब्दात् । समारचयतीति धात्वादेशः ।।छ।। ११. कुअलं - डे. । कुकुलं १२. कुरुषं - डे. । पुरुषं - १३. कुमुली पा.सा.डे. । १४. कुप्पिस - मु. १५. कर्पास - डे. । १६. कुहिणी - मु. -- पा. । पा. । १७. कुढयं - पा.सा.डे. । १८. कुटिला - आ.मा.डे. । १९. कलाघातः - डे. । २०. झटितं २१. कुणिअं २२. गर्त्ताकारः -- आ. सा. । पा. सा. डे. । सा. डे. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .85 कोत्थरं विज्ञानम् ।। कोसलं नीवी । कोडेल्लो२४ पिशुनः । कोचप्पं२५ अलीकहितम् । कोज्जप्पं२६ स्त्रीरहस्यम् । कोलीरं कुरुविन्दम् । कोहल्ली२७ तापिका । कोलम्बो - कोल्लारो द्वौ पिठरे । 'कोलंबो' गृहमित्यन्ये । कोसयं-कोडियं लघुशरावो द्वौ । कोटिंबो० द्रोणी। कोट्टंभं करहतं तोयम् । कोत्थलो कुसूलः । कोमुई सर्वा पूर्णिमा । शारदपूर्णमास्यां कौमुदं तु रूढम् । इह तु सामान्या ग्राह्या । कोंडिउ३३ भेदेन ग्रामभोक्ता । कोउआ करीषाग्निः । कोंडुल्लू उलूकः । उकारान्तः । कोविया५ शृगाली । कोलित्तं उल्मुकम् । कोइला२६ काष्टांगारा । २३. कोच्छरं - पा. सा. । कोछरं - डे । ३०. कोडिंबो-पा. । २४. कोडिल्लो - सा. । ___३१. कोडुंभं-सा. । २५. कोच्चप्पं - पा. सा. । ३२. कराहतं-मु. । २६. काइयप्पं - सा. ।। ३३. कोंडिओ-सा. । २७. कोहिल्ली - पा.सा. डे. ।। ३४. कारीषाग्निः -आ. । २८. कोज्जरो-पा. । कोल्लेरो - डे.। ३५. कोविआ-पा.सा. । २९. कोसियं - आ. । ३६. कोइल्ला-डे. । ३७. कोष्टागाराः । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 86 अत्र *कोहंडी कोहली शब्दौ 'कूष्मांडी'शब्दभवौ । कोक्कइ व्याहरतीति धात्वादेशः । कोलिओ३८ तंतुवायो जालकार-कृमिश्च । कोल्हुओ३९ इक्षुपीडनयंत्रं शृगालश्च । खरिअं भुक्तम् । खवउ० स्कंधः । खंडइ५१ असती । खड्डिउ४२ मत्तः । खडुआ मौक्तिकानि । खणुसा३ मनोदुक्खम् । खंजरो शुष्कद्रुमः । खट्टगं छाया । खव्वुलं मुखम् । खन्नुओ४४ कीलकः । खच्चलो.५ अच्छभल्लः । खप्परो रूक्षः । खज्जोउ नक्षत्रम् । खच्चोलो व्याघ्रः । खंजणो कर्दमः । खंजरीटार्थस्तु 'खंजन' शब्दात् । खग्गिओ४८ ग्रामेशः। खट्टिको शौनिकः । खल्लिरी संकेतः । खंधगी ९ स्थूलेन्धनोऽग्निः । ३८. कोलिउ-डे. । ४४. खणुउ - पा. डे. । खणुओ - सा. । ३९. कोल्हुउ-सा. डे. । ४५. खच्चल्लो - सा. । ४०. खवओ - सा. । ४६. खपरो - पा.सा.डे. । ४१. खंडई - डे.मु. । ४७. खज्जोओ - सा. । ४२. खड्डउ - आ. । ४८. खग्गिउ - पा. डे. । ४३. खलुसा - डे. । ४९. खंधग्गी-डे. । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खडक्की" लघुद्वारम् । अत्र खसिउ - 'खचित' इति शब्दभवः । मृद्नातीति धात्वादेश: । खण्डितमिति तु 'खण्डित' शब्दभवम् ।(?) मागधो अनिवारश्च । खड्डूइ खेडियं खंडि खरुल्लं कठिनं स्थपुटं च । खज्जियं जीर्णं उपालब्धं च ॥छ खारयं मुकुलम् । खाइया परिखा । खिक्खिरी डुंबादीनां स्पर्शपरिहारार्थं चिह्नयष्टिः । खिज्जियं५३ उपालम्भः । अनुसंधान - १६ • 87 खिखिणी शृगाली । खिक्खिंडो कृकलासः । खिड ५५क्षरतीति धात्वादेशः । खित्तयं खुल्लरी खुंडयं ५०. खडकी डे. । ५१. खुडियं - मु. । ५२. खडिओ ५३. खिज्जिअं सा. । सुरतम् । ★ खुट्टिअं खुलुहो खुवैओ कण्टकि तृणम् । खुखुणी रथ्या । गुल्फः । अत्र खुप मज्जतीति । ५४. खिक्खडो ५५. क्षिरतीति डे. । - अनर्थः प्रदीपनकं च । संकेत: । स्खलितम् । सा. । आ. । खिखंडो ५६. खिन्नयं ५७. खलरी ५८. संवलितं - आ.पा.डे. । आ. । खुरल्ली - डे । पा.सा.डे. । - ५९. खव्वउ-आ. 1 डे. । ६०. खुखुणी - पा.सा.डे. । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 88 खुट्टइ - खुडइ तुडति, एते धात्वादेशाः । खेलियं हसितम् । खेआलूपर निःसहः । अत्र खेडुइप३ रमते इति धात्वादेशः । । गलियं४ स्मृतम् । गणिती अक्षमाला । गहणं निर्जलस्थानम् । गंडीरी इक्षुखंडम् । गत्ताडी गवादनी । गायतेति गोपालः । गद्दभो कटुकध्वनिः । गंधिउ दुर्गंधः । गद्दिउ६८ गव्वितः । गद्दहं कुमुदम् । गंदीणी६९ चक्षुःस्थगनक्रीडा । गंजिल्लले विधुरः । गड्डरी छागी । गंचउ० वरुडः । गहणी हठहृता स्त्री । गहरो गृध्रः । गंडीवं धनुः । गहिअं वक्रितम् । गवत्तं घासः । गहिआ काम्यमाना स्त्री । ६१. खिल्लिअं-पा.। खेल्लिअं -- सा. । ६७. गंधिओ -मु. । ६२. खेअल्लू - आ. । ६८. गहिओ - सा. । ६३. खेट्टइ - आ. । ६९. गंदीणि - पा. सा.डे. । ६४. गलिअं - आ. । ७०. गंछओ - सा. । ६५. गणित्ता - सा. । गणिन्न - डे. । गणेत्ती -म. । ६६. गायिकेति-सा. । गायकेति-डे. । गयिति पा.। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .89 अत्र ★गहिर-गग्गर शब्दौ 'ग्रहिल-गद्गद'शब्दजौ । ★गंजिउ२ कल्यपाल इति, गाजिक शब्दात् । ★गज्जाहि सुरागृहमुच्यते । गंधोल्ली इच्छा रजनी च । गंधेल्ली छाया मधुमक्षिका च । गाडिउ विधुर । गामोणी छागी । गागिज्जं मथितम् । गागिज्जा नवोढा । गाहुली क्रूरजलचर । गायरी . गर्गरी ग्रामणी ग्राममुख्यः ॥छ। गुम्मिश्र मूलोत्सन्नम् । गुलुच्छं भ्रमितम् । गुत्थंडो भासपक्षी । अत्र गुलुच्छो गुंछइ इति संस्कृ[त]तः । गुंठड् उर्दूलति । गुम्मइ भ्रमति । गुंजइ हसति । गुम्मइ मुह्यति । एते धात्वादेशाः । गुप्पंतो शय्या संमूढं गोपितं च । गुमिलं मूढं गहनं प्रस्खलितमापूर्णं च । गुलिआ बुसिका विलोडितं कन्दुक-स्तबकश्च । गेंडुलं कंचुकः । गो(गे)ण्हियं स्तनसूत्रम् । ७१. गहिल - पा. । गहिल - डे. । ७५. गुलंछो - आ.पा.सा. । ७२. गंधिउ -- आ. । गंजिओ-मु. डे. । ७६. उर्दूलयति - पा. । ७३. गोहुली - आ. । ७७. गेंड्डुलं-आ. | गेडुलं-डे. । गंडुलं-सा. । ७४. मूलोछन्नं - .. । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .90 गेंदुई क्रीडा । गेज्जलं ग्रैवेयकम् । गोविल्लं कञ्चकः । गोव्वरं करीषम् । गोमदा-गोअग्गा द्वौ रथ्यायाम् । गोहुरं गोविष्टा । गोंदीणं मयूरपित्तम् । गोणिक्को गोसमूहः । गोच्चउ२ प्राजनदण्डः । यान्तोऽयम् । गोसन्नो३ मूर्खः । गोविउ८४ अजल्पाकः । गोअंटा गोचरणाः । 'गोक्षुर' इत्यन्ये । गोअला दुग्धविक्रेत्री । अत्र *गोइल्लो गोमान् इति मतोरिल्लादेशः । गोमुहं उपलेपनमिति । 'गोमुख'मुपलेपनेऽपीति संस्कृतात् । गृहगोधा । घरोलं भोज्ज(ज्य) भेदः । घरिल्ली पत्नी । भ्रमणशील:९१ । घम्मोई तृणभेदः । ७८. गेड्डइ - पा. डे. । गेड्डइ - सा. । ८६. गोक्षर - आ. । ७९. गोमज्जा - आ. । ८७. गोइला - मु.। ८०. गोदीणं - मु.। ८८. मतेरिल्लादेशे -- आ. । ८१. मयूरपिच्छत्वम् - पा. डे. । ८९. गृहगोला - पा. डे. । ८२. गोच्चओ - सा. । ९०. घघरो-पा. । घघोरो-सा.डे. । घंघोरो-मु.। ८३. गोसणो - पा. । गोसण्णो - सा.डे. । ९१. भ्रमणसील:-पा. । ३४. गोविओ - सा. 1 ३५. अउल्पाकः सा. 1 11311411 घरोली धघोरो Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घग्घरं घेम्मोडी अनुसंधान-१६ • 91 जघनवस्त्रभेदः । मध्याह्नो मशको ग्रामणीसंज्ञं तृणं च । अत्र घत्तइ क्षिपति गवेषयतीति धात्वादेशः । ९३घारंतो घृतपूरः । घायणो गायनः ॥ अत्र घिसँइ घुग्री ग्रसते इति धात्वादेशः । भेकः । गवेषितम् । घुत्तियं.६ अत्र चहुमु पिबंति: । घुलइ-घुम्मइ घुर्णतः८ इति धात्वादेशः ॥छ।। घोसाली स(श)रदुद्भववल्लिभेदः । घोलिअं शिलातलं हठकृतं च । घोलइ घूर्णते इति धात्वादेशः ॥छ।। चथरं हासः । निमग्नम्१०० । चंडिक्को५१ रोषः । चंदिलो नापितः । चंडिल इति तु संस्कृतः । चउक्कं५२ चत्वरम् । चक्कोडा अग्निभेदः । चंडिलो पीनः । चंडिउ छिनः । ९२. घमोडी - डी। ९८. घुर्णते - पा.। ९३. घोरंतो - पा.सा. । ९९. चच्छरी - सा. । ९४. घसइ - पा. । १००. निमग्गं - पा.डे. । ९५. घुग्घरी - पा. । ५१. चंडिक्को-चंडो - पा. । ९६. घुत्तिअं - सा. । ५२. चउक्कं - मु.। ९७. पिवंति - आ. । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चवड अनुसंधान-१६ • 92 चवेणं वचनीयम् । चवेडी श्लिष्टं करसंपुटं इत्यन्ये । चकप्पा त्वक् । चच्चिकं मंडितम् । चटुज्जं कुमुदम् । अत्र चंदिमा चवला शब्दौ चंद्रिका-चपलाशब्दजौ । चडुला रत्नतिलमित्यन्ये । वक्ति । चयइ शक्नोति । चज्जइ पश्यति । चच्छ इ५६ तक्षति । एते धात्वादेशाः । चंडिज्जो पिशुनः कोपश्च । चप्फलं शेखरभेदो असत्यं च । चक्कलं कुण्डलं वर्तुलं दोलाफलकं विशालं च । अत्र चड्डुइ मृद्नाति- भुंक्ते-पिनष्टीति धात्वादेशः । चाउला तंदुलाम्(लाः) । चित्तलं मंडितम् रम्यमित्यन्ये । चिच्चरो चिपटनाशः । चिंचिणी अम्लिका । चिचिणी घरटिका । चिल्लिरी मशकः । ५३. चंदोज्जं - सा. । चंद्रोज्जं - पा.डे. । ५९. चक्कूलं - डे. । ५४. चंदमा - पा. । ६०. तंडुला - डे. । ५५. चवला - आ. । ६१. चिच्चिरो - पा. । ५६. चछइ - पा. । चव्वइ - आ. । ६२. चिपिटनाशः - पा. । . ५७. चप्पलं - पा. । ६३. चिचणी - पा. | चिंचणी - मु. । ५८. शखर - डे. । ६४. घरट्टिका - पा. डे. । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .93 चिमिणो रोमशः । चिरिया५ कुट्टी१६ । चिक्खलो६७ कर्दमः । "चिट्ठिी गुञ्जा । अत्र चंचइ(चिंचइ) भंडयतीति धात्वादेशः । चिरिका चर्ममय९-जलभाण्डं तनुधारा प्रभातं च । चिंधालं रम्यं "मुख्यं च । चीवेट्टी भल्ली । चुडुप्पा त्वक् । चुडुप्पं त्वग्विदलनमित्यन्ये । चुडुली उल्का । चुणिओ४ धारितः७५ । चुण्णासी दासी । चंचुओ-चुप्पलो-चुंभलो त्रयः शेखरे । चुनाया कला । चुक्कैडो चुलुप्पो द्वौ छागे । अत्र चुक्कड़ भ्रश्यतीति धात्वादेशः । चुन्निऊ रेणुच्छुरित इति 'चूर्णित'शब्दभवः । ६५. चिरया - पा. डे. । ७३. चुडउली - डे. । ६६. कुटी - डे.। ७४. चुणिउ - पा. । ६७. चिखल्लो - पा. । ७५. धारितं - पा. । ६८. चिणोठी - पा. । चिणोठी - डे. । ७६. चुणासी - पा. । ६९. चर्ममयं - डे. । ७६. चुणासी - पा. । ७०. जाल - पा. । ७७. चुंचुउ - पा.डे. । ७१. मुखं - सा.। ७८. चुण्णआ - सा.डे. । चुणाआ - पा. । ७२. चवट्टी - पा. । ७९. चुक्कुडो - पा.सा.डे. ८०. चुण्णिओ - सा.। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .94 चुण्णउ चंडालो अल्पो बालो मुक्तः छंदोरोचको व्यतिकरः । आघ्रातश्च । चुणउ विअरउ८३ इति तु धनपालः । आघ्रातार्थेप्यन्ये । चंचुली चंचुचुलुकश्च । इकारान्तोऽयम् । ★चेल्लूर चेल्पं द्वौ मुशले । चोप्युच्चो सस्नेहः । चोरली श्रावणकृष्णचतुर्दशी । छंछुई कपि[क]च्छूः । छलिओ-छइल्ले-छप्पन्नो त्रयो विदग्धे । छवडी चर्म । छप्पन्ती व्रतविशेषो यत्र पद्मं लिख्यते । छउअं तनुः । अत्र छड्डुइ मुंचति, छज्जइ राजतीति धात्वादेशः । छाइओ मातरः । छारयं इक्षु शुष्कं मुकुलं च । छाइल्लो प्रदीपः सदृश ऊन सरूपश्च । छिन्नालो जार । छिवियं२ इक्षुखण्डम् । छिडो(छो?)ली लघुश्रोत्र:९३ (तः) । छिप्पीरं पलालम् । छिप्पालो ९सस्याशक्तो गौः । छिल्लरं पल्वलाम् । ८१. चुणउ-पा. । चुणओ-सा. । चुणउ -डे.। ८८. छउडी - आ. । ८२. छंदोऽरोचको - डे. । ८९. छाईओ - पा.डे. । ८३. विअरओ - सा. । ९०. शुल्कं - मु.। ८४. चलुंपं - आ. । ९१. सुरूपश्च - सा. । ८५. चोप्फुच्चो - मु. । ९२. छिविअं - सा.पा. । ८६. चोराली - डे. । ९३. लघुश्रोतः - पा.डे. । ५८७. छुछुई - आ.। ९४. शस्याशक्नो गौः - पा. डे. । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 95 छिव्वोलो निंदार्थं मुखविकूणनं । छिछयं कोमलं फलमित्यन्ये । अत्र छिवइ - छिहइ स्पृशतीति धात्वादेशौ । छिवउ समूहो नीवी च । छिछउ६ देहो जारश्च । छिप्पंती व्रतोच्छवयोर्भेदः। छिप्पिंडी व्रतोत्सवयोर्भेदः पिष्टे च । छुछुई कपिकच्छूः । छुहियं९ लिप्तम् । छुरिआ०० मृत्तिका। छेत्तरं जीर्णं सूर्पाद्युपकरणम् । छेभउ स्थासकः । छोईओ दासः । छोच्चच्छं अप्रियम् । जयणं हयसन्नाहः । जरंडो वृद्धः । 'जरडो' इत्यन्ये । जण्हली नीवी । जडियं खचितम् । जगेलं पङ्किला सुरा । 'सरक' इत्यन्ये । जंबुलो वानीरः । मद्यभाण्ड इत्यन्ये । जवणं हलशिखा । जंभलो अत्र ९५. शलाटुफलमित्यन्ये - मु. । ९६. छिछओ - सा. । ९७. व्रतोत्सवयोर्भेदः - आ.डे. । ९८. छिप्पंडी - पा.सा.डे. । ९९. छुहिअं - पा.डे. । १००. छुरिया - डे. । १. जीर्णम् - सा. । २. छेभओ -सा. । ३. छोईउ- पा.सा. । ४. छोब्भत्थं - मु. । ५. जगिलं - आ. । ६. हलशखा - डे. । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जवइ अनुसंधान-१६ .96 ★जगरः सन्नाह इति संस्कृतः । जंपइ कथयति । यापयतीति धात्वादेशौ । जहिमा विदग्धरचिता गाथा । . जवरो जवाङ्कुरः । जंबालं सेवालम् । जंपणं० अकीर्त्तिः वक्त्रं च । . जंबुउ वेतसतरुः पश्चिमदिक्पालश्च । जाऊरो कपित्थः । जिग्धियं घातम् । जिमिश्र चुक्क(भुक्त)मिति बुभुजेरादेशः । जीहइ लज्जते इति धात्वादेशः । जुअलो तरुणः । जुअओ १२ चातकः । जूड खिद्यते, क्रुध्यतीति च धात्वादेशः । जोइसं जोइरो स्खलितः । जोइक्खो दीपः । जोडिओ१३ व्याधः । जोअणं चक्षुः । जोइओ४ खद्योतः । पीलुवृक्षः । झमालं इंद्रजालम् । ७. विदग्धचरितगाथा - डे. । १२. जुअउ - डे. । ८. जवओ- मु.। १३. जोडिउ - पा.डे. । ९. यवाङ्करः - पा. । १४. जोईउ - पा.सा.डे. । १०. जपण्णं - सा. । ११. जग्घियं - पा. डे. । नक्षत्रम् A Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 97 म(झ)डली असती । झंखरो शुष्कतरुः । झरुओ स्वर्णकारः । झज्झरं स्पर्शपरिहारार्थं डुबादीनां हस्तयष्टिः । झरुउ८ मशकः । मशकपर्यायाः शब्दाश्चीर्यामपि वर्तन्ते । झंपणी पक्ष्म । झक्कियं १९वचनीयम् । झरेको तृणमयः पुरुषः । ‘झरंतो' इत्यन्ये । झंटियं प्रहृतम् । अत्र झंडइ२० शीर्यते । झंपइ भ्रमतीति धात्वादेशः । झंपियं तुटितं घटितं च । झसुरं ताम्बूलमर्थश्च । झंटुली असती क्रीडा झसियं२२ पर्यस्तमाकृष्टं च । अत्र 'झंपइ' (झंखइ) संतप्यते विलपति उपालाभते निःश्वसिति च 'झरइ' स्मरति क्षरति च धात्वादेशः । झामि दग्धम् । झामरो वृद्धः । झाउलं कर्पास फलम् । झारुआ चीरी । झिंखिअं वचनीयम् । उज्झिखियं इति त्वनेनैवं 'उत्'पूर्वेण झेयम् । १५. शुष्कतरुः - आ. । २०. झंटइ - पा.डे. । १६. झरउ - पा.सा.डे. । २१. झटितं - आ. । १७. झझरी - पा.डे. । २२. झसिअं - सा. । १८. झरुओ- सा. । झरउ - डे. । २३. निःश्वसति च - डे. । १९. वंचनीयम् - सा. । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 98 झिरिंडो जीर्णकूपः । झुलरी गुल्मः । झुटुंणी२६ प्रवाहः । अत्र झुणइ जुगुप्सते इति धात्वादेशः । झूड स्मरतीति धात्वादेशः । झेडुउ कन्दुकः । झोडप्पो चणकधान्यम् । शुष्कचणकशाकमित्यन्ये । झोडिउ८ व्याधः । टमरो केशचयः । टंकियं प्रसृतम् । टसरं विमोचनम् । टक्कारी अरणिपुष्पम् । तुम्बरुः फलविशेषः । टिग्घरो स्थविर । टेक्करं३२ स्थलम् । टोलंबो मधूकः । टोकणं मद्यपरिमाणभाण्डम् । ठइउ उत्क्षिप्तः । ठविया३४ प्रतिमा । ठरियं३५ गौरवितं मूर्धस्थं च । ठाणिक्को३६ गौरवितः । २४. झिरोडो - पा. । झिरिंडं - मु.।। ३१. पुष्फम् - पा. डे. । २५. झुल्लरी - पा.सा.डे. ।। ३२. टेक्करं - डे.। २६. झुंटणं - पा.सा.डे. । ३३. मधुकः - पा.डे. । २७. झंडुउं -पा.डे. । झंडुउ - सा. । ३४. ठविआ - पा.सा.डे. । २८. झोटिउ - आ. । ३५. ठरिअं - पा.सा.डे. । २९. टंकिअं - डे. । ३६. ठाणिज्जो - मु.। ३०. टकारी - डे. । टिंबरु Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .99 ठिवयं३७ उv निकटं हिक्का च । ऊर्ध्वार्थे ठिअयमित्यन्ये । उहरी अलिञ्जरम् । उहरो शिशुः । उग्गलो गृहोपरि भूमितलम् । डड्ढाडी देवमार्गः । डंडउ२९ रथ्या । डंभिओ० द्यूतकारः । डंबरो धर्मः । अत्र डलइ पिबति । डर त्रस्यतीति धात्वादेशः । डाअलं चक्षुः । स्थूणा । भेकः । जलपतितम् । डिंभइ त्रं(स्र)सत इति धात्वादेशः । शैलः । डुंडुओ५ जीर्णघण्टः । डोअणं चक्षुः । डोंगिली तांबूलभाजनभेदः ताम्बूलिनीत्येके । ' डोलिओ६ कृष्णसार । ढंढणी कपिकच्छूः । ढंकुणो मत्कुणः । ढंकणी पिधानिका । ३७. ठिवियं - मु.। ४३. डियली - पा.सा. । ३८. डट्ठाडी - सा.डे. । ४४. डिड्डिरो - डे. । डिड्डुरो - मु. । ३९. डंडर्ड - सा. । ४५. डुंडुउ - पा.डे. । ४०. डंभिउ - पा.डे. । ४६. डोलिउ - पा.डे. । ४१. डंखरो - डे. । ४७. टिंढणी - पा.डे. । ४२. डोअलं - पा.सा.डे. । ४८. ढंकिणी -आ. । डिअली डिड्डेरो डिफियं डुंगरो Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढंसयं अनुसंधान-१६. 100 अयशः । वीणाभेदः । तिलकम् । ढंखरी ढंकयं अत्र दुसड़ ★ढंकय पिधत्तो । ★ढसइ भ्रमति । ढंसइ विवर्त्तते इति धात्वादेशः । ढंढरो-ढयरो द्वौ पिशाचे ईर्ष्यायां च । ढमरं पिठरमुष्णजलं च । ढिकुणो मत्कुणः । ढिक्कियं नित्यम् । ढिंढेयं जलमध्यपतितम् । अत्र ढिक्का वृषभो गर्जति । इति भ्रमेरादेशः । लैंढिओ प्रति धूषितः५३ । ढोंघरो भ्रमणशीलः । णंदिणी गौः। णेडिओ वंचितः । खेदित इत्यन्ये । णच्चिरो रमणेशीलः । णज्जरो मलिनः । णंदणो भृत्यः । णज्झरो मलिनः । णलयं उशीरम् । णंदिक्खो सिंहः । ४९. ढक्कयं - पा. । ढक्कअं - डे. ।। ५४. ढेंघरो - आ. । ५०. ढंकइ पा.डे. । ५५. णंडिओ -आ. । ५१. ढिक्किअं - डे. । ५६. रमणीशीलः - आ. । ५२. दिढियं - डे. 1 ५७. णजरो - डे । ५३. धूमित्तः आ. । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णडलं अनुसंधान-१६ • 101 णंदिअं८ सिंहरुतम् । णदिउ५९ दुःखितः । णडुरी भेकः । . णलिअं० गृहम् । णहरी क्षुरिका । णडुली कच्छपः । णड्डलीत्यपि । अत्र णवर केवले णवरि आनन्तर्ये, अव्ययौ । णव्वइ-णज्जइ ज्ञायते, णडइ गुप्यतीति धात्वादेशाः । णल्लयं कर्दमितं वृत्तिविवरं प्रयोजनं निमित्तं च । रतं दुदिनं च । याउल्लो ___गोमान् । णारोट्टोप३ बिलम् । कूसार इत्यन्ये । णालंबी जूटः । णाउड्डो सद्भावो अभिप्रायश्च । मनोरथ इत्यन्ये । णिहसो वल्मीकः । णिहुणं व्यापारः । णिहुआ कमिता । णिज्झरं जीर्णम् । 'णिज्झूर'मित्यन्ये । णिवहो समृद्धिः । णिहूअं सुरतम् । णिउक्को मौनी। णिली मकराकारो ग्राहः । णिहलं कूलम् । ५८. णंदियं - सा. । ६३. णारोटो - डे। ५९. णद्दिओ- पा.आ.डे. । ६४. णिवाहो - डे. । ६०. णलियं - .. । ६५. णिहुअं - पा. । ६१. णवरं - पा.डे. । ६६. णिझली - आ. । ६२. जायते - पा. । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 102 णियणो६७ धर्मः । णिसुअं श्रुतम् । णिअलं नूपुरम् । णिरियं८ निःशेषितम् । णिक्खुडं अकम्पम् । णिव्वेढो-णिव्वढो द्वौ नग्ने । णिज्जूहो नीव्रम् । णिआरो२ रिपुगृहम् । णिव्बूढं गृहपश्चिमाङ्गणम् । णिक्कडं कठिनम् । णिप्फेसो शब्दनिर्गमः७३ । णिरादो नष्टः । णिरुत्तं निश्चितम् । णिरिंको नतः । णिसन्नो संतुष्टः । णिमेलं दंतमांसम् । णिमेला इत्यन्ये । णिलंको पतद्ग्रहे द्वौ (?) णिज्जोमी रज्जूः । णिरंगी शिरोवगुंठनम् । णिपट्ठो अधिकः । णिम्मंसू तरुणः । णिझुग्गो भग्नः । णिक्खवं निहितं । णिव्वित्तो सुप्तोत्थितः TH1111111 ६७. णियो - पा.सा. । णिगढो - मु.। ६८. णिरिअं - सा. । णिरअं - डे. ।। ६९. णिखुडं - डे. । निखुडं - सा. । ७०. अकप्पम् - पा.डे. । ७१. णिज्जहो-पा. । निज्जूहो - सा. । ७२. णिआरं - सा. डे. । ७३. निर्गमः - डे. । ७४. णिभुगो - डे. । ७५. णिखवं - डे. । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 103 णिस्संको निर्भरः । णिज्जाओ६ प्रकरः । पुष्पावकर इत्येके । (उपकारार्थे दे.श.को.) णिअत्थं परिहितम् । णिकज्जो अनवस्थितः । णिव्वाणं दुःखकथनम् । ★णिव्वूहो-णिव्बूढो द्वौ स्तब्धे । णिम्मउ गतः । णिग्घट्टो कुशलः । णिज्जाओ७९ उपकारः । णिवाओ स्वेदः । णिविटुं उचितम् । उपभुक्तार्थं तु 'निर्विष्ट'शब्दभवम् । णिभैग्गं उद्यानम् । णिसायं सुप्तप्रसुप्तम् । चंडालार्थस्तु 'निषाद'शब्दभवः । णिम्मंसा चामुण्डा । णिधम्मो एकमुखयायी । प्रिंदिणी८३ क्षेत्रकुर्तृणोद्धरणम् । णिलाला५ चञ्चुः । णिग्गिणं निर्गतम् । णिसुद्धम् पातितम् । णिज्झाओ-णिच्छंडो-णिराहो-णिग्योरो एते चत्वारो निर्दये । णिमेणं स्थानम् । - ७६. णिज्जुओ - पा, । णिज्जोउ-डे. । ८३. णिंदणी - डे. । ७७. णिद्धहो - सा. । ८४. कुत्रिणोद्धरणम्-सा.। कुतृणोद्धारणम्-डे.। ७८. णिगट्ठो-डे. । णिग्गट्ठो-पा. सा. । ८५. णिल्लला - डे. । ७९. णिज्जाउ - डे. ।। ८६. णिग्गिण्णं - पा. । ८०. खेदः - डे. ८७. निर्गतम् - पा. । ८१. णिब्भग्ग - पा.सा. डे. । ८८. निसुद्धम् - सा. । ८२. एकमुखीयायी -- डे. । ८९. निग्घोरो - आ. । णिज्जोरो - डे. । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णिद्धम्मो - णिद्धओ द्वौ अभिन्न गृहे । णिअइ पश्यति । णिव्वाइ विश्राम्यति । णिमइ इत्याख्यातीति धात्वादेशाः । णिक्खेवो चौर: स्वर्णं च । णि अरं रतं, शय्या, शाश्वतं घटश्च । सुप्तोत्थितो, निराश उद्भटः कूरश्च । णिविट्ठो स्वेदः समूहश्च । णिहाओ गिरिग्धो पृष्टं उद्वेष्टितं च । रिक्को णिपिच्छं णिराओ १२ णिट्टंकं हिअं रंगी णीसारो णीणइ णीहइ णुवणो णुव्वइ १६ मइ ̈ डाली उड्डो ९३. निपिच्छं - सा. । ९४. निःसरत्याक्रंदते च अनुसंधान - १६ • 104 चौरः स्थितः पृष्टं च । ऋजु दृढं च । प्रकट ऋजुः शत्रुश्च । टंकच्छिन्नं विषमं च । ९०. णिअयं - डे । णिययं ९१. ९२. णिराउ - सा. डे. । निर्व्यार्जं तूष्णीकं सुरतं च । शिरोवगुंठनम् । मंडपः । गच्छति । निःसरत्याक्रंदिति १४ च । सुप्तः । प्रकाशयति । न्यस्यति च्छादयति च । पट्टवासिताख्यः शिरोभूषणभेदः । सद्भावः । मु. रघ सा. । णिरघो - डे. । - डे. । ९५. णुव्वण्णो ९६. णुवइ - डे. । - सा. । ९७. णूमइ सा. । ९८. नस्यति - डे. । ९९. णिदाली पा. डे. Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णेलिच्छी १००५ सत्थी णेच्छेलो गोल जोलच्छर तवउ तसि तल्लडं तणायं तच्छडं तवणी तणं चुल्लि: । तहरी तरसं तंबेही तक्कणा तंतणी तंबिरा सा १००. १. पणेणछो २. गोल्ड - पा. । ३. गोलच्छा तला नगरारक्षकः । तत्तिल्लो तल्लिच्छो द्वौ तत्परे । तणेसी - - अनुसंधान - १६ • 105 पा. । ४. भक्ष्यं - पा. ५. तिम आ. । ६. तस्सिअं - डे । कूपतुला । रविः । वणिक् सचिवः । षष्ठः । वृषभ इत्यन्ये । क्षिपतीति धात्वादेशः । चंचुः । भक्षं कणादिः । पंकिला सुरा । व्यापृतः । शुष्कम् । पा । नेसारो - डे. । पा. डे. । पोलच्छो मु. शय्या । आर्द्रम् । कलम् । तृणप्रकारः । मांसम् । शेफालीका । इच्छा । 'केरम्बः । गोधूमेषु कुंकुमच्छाया । १२. बरम्ब: — डे. ७. सुष्कम् ८. तछिंडं - डे. । - आ. 1 ९. कवालम् - आ. । १०. प्रकर: आ. । १०. प्रकर: आ. । ११. सेफालीका १३. कुंकुमछाया - डे. आ. । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 106 तरह शक्नोति । तडइ-तडुइ तनोतीति धात्वादेशः । तमणी बाहुर्भुर्जं च । तलिमो कुट्टिमं शय्या, गृहार्थ, भूमि, वासभुवनं भ्राष्टश्च । तामरं रक्ष्यं(म्यं?) । तालूरी फेनः कपित्थतरुश्च । आवर्त इत्यन्ये । तिरिडो तिमिर वृक्षः । तिणसं मधुपर्डलं । तिमिणं आर्द्रदारु । तिरिड्डी उष्णवातः । तिगिच्छी-तिंगिआ द्वौ पद्म-किंजल्लौ१७ । तिविडी पुटिका । 'तिविडा सूची'त्यन्ये । तित्तुअं गुरु । तुलसी सरसलता । तुंडीरं मधुरबिम्बम् । तुण्हिक्को८ मृदुनिश्चलः । तुलग्गं काकतालीयम् । तुच्छयं रंजितम् । जीर्णघटः । तुणउ झुंखाख्यस्तूर्यभेदः । तुवरो२१ रस इति तु संस्कृतः । तुंबेली२२ मधुपटलमुदूखलं च । तूहणो पुरुषः । तूलिणी२३ शाल्मलिः । १४. भवनं - सा.। १९. तुडूउ - पा. । तुंडूओ - मु. । १५. तिमरवृक्षः-डे। २०. जीर्णघट: - सा. । १६. मधुपटलं - पा.डे. । २१. तुवरे - आ. । १७. किंजल्कौ - सा.डे. । २२. तुंबेल्ली - पा. । तुंबिल्ली - मु. । १८. तुण्हिको - आ. । २३. तूलीणी - डे. । तुडूओ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 107 तेंटुअं४ तुंबरु२५ । तोतडी करम्बः । तोलणो पुरुषः । तोमरी वल्ली२६ । तोक्काउ अनिमित्ततत्पर । तोडणो असहनः । तोअउ८ चातकः । तोवटो२९ त्रपुपट्टिकाख्यः कर्णाभरणभेदः पद्मकणिका च । थसलो२१ विस्तीर्ण:३२ । थंडिल्लं मंडलाम् । थमिअं विस्मृतम् । खवाउ मंडप । थउड्डे . भल्लातकम् । थत्तियं विश्रामः । थग्गया चंचूः । थक्कई तिष्ठति फक्कति च धात्वादेशौ । थाणिज्जो गौरवित इत्यन्ये । थाणयं५ आलवालकमिति 'स्थानक'शब्दात् । थिमिअं७ स्थिरम् । थिप्पइ विगलँति तृप्यति च धात्वादेशः । थुलमो पटकुटी । २४. तेंटुयं - पा. डे. । ३३. फलति - सा. डे. । २५. तुंबुरु - आ. । ३४. गोरवित - डे.। २६. वल्मी - आ. । ३५. थाणअं - डे. । २७. तोक्कओ - सा. । ३६. आलवालमिति स्थनकशब्दात् - डे। २८. तोअओ - सा. । ३७. थिमियं - सा. । २९. तोवट्टो - पा. । ३८. विगलिति - सा. । ३०. त्रपुर्पट्टिकाख्यः - पा.डे. । ३१. थसणो - सा.डे. । ३९. पट्टकुटी - डे. । ३२. विस्तीर्णः - सा. ।। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दइयं अनुसंधान-१६ • 108 थुक्कियं० उन्नतं ९, अम्बूकृते तु 'थूत्कृत'शब्दात् । दसेरो सूत्रकनकम् । दअरी सुरा । दमउ दरिद्रः । दत्थरो हस्तशाटकः । . दक्खज्जो गृध्रः । दंति शशकः । दवरो तन्तुः । दहिट्ठो कपित्थः । रक्षितम् । ★दरिउ मत्त(दप्त) इति 'दृप्त'शब्दात् । दंसह दर्शयतीति धात्वादेशः । दलिअं निकूणिताक्षम्, दारु अंगुली च । दालियं चक्षुः । दारिया ५ वेश्या । दावा दर्शयतीति धात्वादेशः । दामणी प्रसवश्चक्षुश्च । दिअज्जो स्वर्णकारः । दिप्पंतो अनर्थः । दिव्वासा चामुंडा । दीवउ६ कृकलासः । दीविया८ उपदेहिका । मृगाकर्षणी व्याघमृगी च । दुद्ध समूहः । दुक्करं माघे रात्रौ चतुर्यामस्नानम् । ४०. थुक्किअं - डे. । ४१. उन्नयं - डे. । ४२. दंअरी - आ.पा. । ४३. हस्तसाटकः - आ. । ४४. दंभिउ - आ. । दंभिओ - पा. । ४५. दारिआ - सा. । ४६. दीवओ - सा. । ४७. कृकरलासः - पा. । ४८. दीविआ - डे. । ४९. दुटुओ - सा. । दुट्ठउ - डे। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुद्दोली दुत्थोहो अनुसंधान-१६ • 109 दुब्बोलो उपालम्भः । वृक्षपंक्तिः । दुलंग्गं अघटमानः । दुर्भगः । दुम्मुहो२ मर्कट५३: । दुमणी सुधा । दुग्घुट्टो५५ हस्ती । दुज्झायं व्यसनम् । दुकुहो असहनः । दुइमो देवर । दुहउ चूर्णितः । दुणिको दुश्चरितः । दुद्धिणी स्नेहभाण्डं तुम्बी च । दुमइ धवलयतीति धात्वादेशः । दूसलो-दूहलो द्वौ दुर्भगे। ★दूहवशब्दस्तु 'दुर्भग'शब्दात् । दूहट्टो लज्जा दुर्मनाः । दूमइ परितापयतीति धात्वादेशः । देहणी पङ्कः६२ । देक्खइप३ पश्यतीति धात्वादेशः । दोद्धिओ४ चर्मकूपः । दोहूओ शवः । दोआलो गौः । ५०. दुल्लागं - पा.डे. । ५८. दुण्णिक्को - सा. । ५१. अघट्टमानं - सा. । ५९. दुद्धीणी - पा. । ५२. दुम्मुहा - पा.डे. । ६०. दूसहो. पा. । ५३. मर्कट: - डे. । ६१. दुर्मनाः - डे. । ५४. दुमुणी - आ.। ६२. पंके - आ. । ५५. दुग्घुदो - सा.। ६३. देखइ - पा.सा.डे. । ५६. दुज्जायं - डे. । ६४. दोद्धिउ - डे.। ५७. दुक्कहो - पा. । ६५. चर्मकूपः - डे. । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६. 110 दोवेलीं६६ सायंभोजनम् । दोणउप आयुक्तः, हालिक इत्यन्ये । दोसिणी ज्योत्स्ना । दोणक्का सरघा । धवलो स्वस्वजातावुत्तमः । । धर्यणं गृहम् । धणियं गाढम् । धरग्गो९ कप्पासः । धसलो विस्तीर्ण:७१ । धणिया प्रिया३ । धम्मउ चतुरङ्गुलो हस्तव्रणश्चंडी पुरुषोपहास्श्च । धाडिउ०४ आरामः । धारइ५ नि:सरतीति धात्वादेशः । 'भ्रमर । धूमरी-धूमिया७६ द्वौ निहारे । धूरियं दीर्घम् । पहंसो९ गिरिगुहा। पलसू सेवा । पणिआ करोटिका । पन्हउ स्तनधारा । पएसो प्रातिवेश्मिकः । धूमंगो ६६. दोवेली - सा.मु. । ६७. दोणओ - पा. । ६८. धणयं -. पा.सा.डे. । ६९. धरग्गे - सा. । ७०. कांसः - पा. । ७१. विस्तीर्णः - डे। ७२. धणिआ - डे. । ७३. प्रियया .. पा. । ७४. धाडिओ - सा.। ७५. धाडइ - मु.। ७६. धूमिआ - पा. । ७७. नीहारे - डे.सा. । १८. धूरिअं - सा.डे.। ७९. पडुंसो - पा.सा.मु. । ८०. प्रातिवेस्मिकः - सा.डे. । Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ पसउ अनुसंधान-१६ • 111 पम्मारो-पम्हारो द्वौ अपमृत्यौ । पलेही कर्पास:८३ । पउढं - पऊँढं द्वौ गृहे । पउँढो गृहपश्चिमभाग इत्यन्ये । मृगभेदः । परडा सर्पभेदः । पडलं नीव्रम् । पच्चूहो रविः । पहणं कुलम् । पडउ दिनम् । पहणी संमुखागतनिरोधः । पयला निद्रा पययं अनिशम् । पडवा पटकुटी । मथितम् । ★पड्डसं सुबद्धम् । पणियं प्रकटम् । विक्रेयार्थस्तु संस्कृतः । परिहो रोषः । पणिओ८ पङ्कः । ('पणय' इति दे.श.को.) । पयलो नीडम् । पइण्णो विपुलः । पडीरो चोरसमूहः । पंखुडी पत्रम् । परवं अल्पं श्रोतः । पलाउ८९ चौरः । ८१. पम्हरो - सा.। ८६. पेसंउ - सा.डे. । ८२. पहली - डे.। ८७. पहियं - सा. । ८३. कासः - पा.। ८८. पणिउ - पा.सा. । ८४. पऊढा - सा. । पउढा - पा. । पोढी - डे.। ८५. पौढा - सा. । ८९. पलाओ - सा. । पहिअं७ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पटो पसूअं अनुसंधान-१६ . 112 पथ्थरो-पड्डला-पड्डआ° त्रयः पादघातार्थाः । दृप्तः । पडोउ वालः१२ । पयामं अनुपूर्वम् । पुष्पम् । पडाली पडिक्त । पम्फाडो अग्निभेदः । पत्थिर शीघ्रः। पसडि सुवर्णम् । पब्भोउ भोगः । पद्धरं ऋजु । पहदं सदा६ दृष्टम् । पक्खरा अश्वसन्नाहः । पहम्म सुरखातम् । पत्थीणं८ स्थूलवस्त्रम् । सामान्येन स्थूलमित्यन्ये । पविद्धं९ प्रेरितम् । पबद्धं धनाख्यं लोहकारोपकरणम् । पज्जणं०० पानम् । पडियं विघटितम् । परेउ पिशाचः । दीर्घम् । पप्पीउ चातकः । पंपुअं ९०. पड्डुआ - पा. । ९७. पखरा डे.। ९१. पट्टहो - आ. । ९८. पत्थाणं - पा.। ९२. बालः - पा.डे. । ९९. पविद्धं - सा.डे. । ९३. पसुअं - पा. । पसूयं - सा. । १००. पकुणम् - पा.सा.डे. । ९४. पुण्फाडो - आ. । १. पडिअं - .. । ९५. पसडि - आ. । २. पप्पाहो - डे.। ९६. सहा दृष्टम् - डे. । सदा हृष्टम् - सा. । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 113 पच्चूढो स्थालम् । पच्चूत्थं प्रत्युप्तम् । पद्धारो छिन्नलाङ्गलः । पम्हलो किञ्जल्कः । पहुंचा ज्या । पलासी भल्ली । पत्तलं तीक्ष्णम्, कृशमित्यन्ये । ★ पवित्तो दर्भ इति, 'पवित्र'शब्दजः । पअरो शरं इति 'प्रदर'शब्दभवः । पल्लट्ठो - पल्लत्थो द्वौ निरस्तावित्यर्थे “पर्यस्त'शब्दभवौ । पट्टइ पिबति । पंगइ गृहणाति । पड़ भ्रमतीति धात्वादेशः ।। पच्चेडं मुशलम् । पग्गेज्जो निकरः । पच्छुयं प्रस्तुतमित्यन्ये । पत्तणं बाणफलं पुंखश्च । पइयं भत्सितं रथचक्रं च । पप्पुअं दीर्घमुड्डीयमानं च। पउणो व्रणप्ररोहो व्रतभेदश्च । पक्कणी अतिशोभमानो भग्नः प्रियंवदश्च । पइट्टो जा(ज्ञा)तरसो विरलं मार्गश्च । पब्भारो संघातो गिरिगुहा च । पंसुलो कोकिलो ज़ारश्च । पउत्थं गृहं प्रोषितं च । ३. पच्छूढो - सा. डे. । ७. पच्चुअं - मु.। ४. प्रत्युप्तम् - सा. । प्रत्यतम् - डे.। ८. प्रस्तवमित्यन्ये - पा.सा.डे. । ५. पंडचा - सा. । ९. पप्पुयं - पा.सा.डे. । पप्फुअं - मु. । ६. पग्गेजो - सा. डे. । १०. पुंसुलो - पा. । ११. दुःखशील - पा. । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 114 पएरो वृतिविवरे मार्गे दुःशील११, कंठदीनाराख्यभूषणभेदे कण्ठच्छिद्रे दीन-नादे च । पडुलं लघुपिठरं चिरप्रसूतं च । पत्तट्ठो बहुशिक्षितः सुंदरश्च । पच्चलो पक्कणो द्वौ असहने समर्थे च । पव्वज्जो नखः शरो बाल मृगश्च । पत्थारी निकर प्रस्तस्च । पलसं कासफलं स्वेदश्च । परद्धं पीडितं पतितं भीरु च । पडुत्थी बहुदुग्धा दोहनहा(का)रिणी च । परीइ भ्रमति क्षिपति च धात्वादेशः । पलासा भल्ली ॥५००। पाहिज्जं पाथेयं शंबलम् । पायलं चक्षुः । हिमम् । पारयं सुराभाण्डं कंबलं च । पाडुंकी व्रणिशिबिका। पाइअं वदनविस्तारः । पाणद्धी रथ्या । पाडुच्ची अश्वमंडनम् । पायडं अंगणम् । पास(म)द्दा पादाभ्यां धान्यमर्दनम् । पाणाली हस्तद्वयप्रहारः । पाहुणं विक्रेयम् । पारंकं सुरामानभांडम् । पाउकं मार्गीकृतम्। १२. पडुलं - सा. । १६. पड्डत्थी - आ.। १३. सिक्षितः - आ. । १७. पलासी - मु.। १४. स्त्रस्तरश्च - आ. । १८. पाहेज्ज - मु.। १५. खेदश्च - डे. । १९. पाउअं - पा.सा.डे. । terllit klinihil पाउयं१९ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाइ अनुसंधान-१६ • 115 पाउग्गो सभ्यः । अत्र *पामरो कुटुंबीति संस्कृतसम:२० । पाहुडं ढौकनमिति 'प्राभृत'शब्दात् । ★पाडिकं एकं एकं प्रतीति 'प्रत्येकं' शब्दस्यादेशः ।। शक्नोति, पासइ पश्यतीति धात्वादेशौ । पाडुक्को समालंभनं पटुश्च । पालप्यो विप्लुतः प्रतिसारश्च । पाडलो हंसो वृषभः कमलं च । पासलं द्वारं तिर्यक् च । पारद्धं प्राकृतकर्मपरिणाम आखेटकः पीडितश्च । पिरिडी२२ शकुनिका । पिच्छिली२३ लज्जा । पिहुली-पिंसुली-पिंछोली त्रयो मुखमारुतापूर्णतृणवाद्यार्थाः । पियणं दुग्धम् । पिणाई आज्ञा । पिंडीरं दाडिमम् । पिप्पडा२५ ऊर्णा पिपीलिका । पिंगंगो मर्कटः । पिणाउ६ हठ:२७ । पियमा फलिनी । पिंजियं२८ विधुतम् । *पिणिलं२९ पिच्छिलो देशः । पिडच्छा सखी। २०. शब्दः - डे. । २६. पिणाओ - पा.सा.डे. । २१. पालत्थो - डे. । २७. हत्थः - डे. । २२. पिरडी - डे. । २८. पिंजिअ - डे.। २३. पिच्छली - डे.। २९. पिलणं - मु.। २४. पिहुलं - पा.सा.डे.मु. । ३०. पिंडछा - डे.। २५. पिप्पाडा - डे.। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 116 गुदः । पिटुंतं अत्र *पिहडो पिठर ३१ । पिउच्छा पितृष्वसा इत्यादेशौ । पिज्जइ पिबतीति धात्वादेशः । पिप्पड मशक उन्मत्तश्च । पिउली कर्पासमूललतिका वा लता 'पूणी'ति ख्याता । पिल्लिरी गंडु तृणं चीरी धर्मश्च । पिप्परो गौहँसश्च । पिहि(हं)डो वाद्यभेदो विवर्णश्च । पीलुटुं दग्धम् । *पीयलं पिंगमिति तु 'पिंग'शब्दात् । पुणई श्वपचः । पुंपुअं मेलापकः । पुचाट-पुणुअं द्वौ पीने । पुअंडो युवा । पुरिल्लो प्रवरः । पुण्णाली असती । ★ पुखरो सारस इति 'पुष्कर'शब्दात् । पुंच्छइ-पुंसई माष्टि, पुलोइ पश्यतीति धात्वादेशौ । तरुणः उन्मत्तः पिशाचश्च । वदनं बिंदुश्च । शूर्पम् । पूरोढी अवकरः । पेंडउ युवा, खंड इत्यन्ये । ३१. पितरः - आ. । ३६. पुव्वाढं - सा. । पुव्वाडं - मु. । ३२. उत्तमश्च - सा. । ३७. पुप्पुअं - मु. । ३३. पिपरो - पा. । ३८. पुष्करो - पा.। ३४. पीत - पा. । ३९. सूर्पम् - पा.सा. डे. । ३५. पुपुरं - डे.। पुआई पुडिंगं पूरणं Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 117 पेढालो-पेज्जालो द्वौ विपुले । पेढाले वर्तुलमित्यन्ये । पेरुल्ली पिंडीकृतम् । पेसणं प्रयोजनम् । पेलियं० पीडितम् । पेयालं-पेज्जलं द्वौ प्रमाणमित्यर्थम्(ौँ) । पेरिज्जं साहाय्यम् । पेच्छउ दृष्टमात्राभिलाषी। पेहुणं पिच्छम् । पेंडलो रसः । पेंडारो गोपः । पेंडाली क्रीडा । पेरणं ऊर्ध्वस्थानम् । पेच्छइ पश्यति । पेलइ २ क्षिपतीति धात्वादेशौ । पोरयं क्षेत्रम् । पोणिओ पूर्णः । पोसिओ दुःस्थः । पोणिआ सूत्रभूततधैः । पोअंडो३ निर्भयः । 'खंड' इत्यन्ये । पोआ करीषाग्निः । पोआलो गौः । पोअंतो पोत्तउ५ वृषणः । पोलिउ६ सौनिकः । पोहणो लघुमत्स्यः । ४०. पिल्लिअं - आ. । ४४. षण्ढ- मु.। ४१. पेंडालो - पा. । पिंडलो - डे.। ४५. पोत्तओ - पा.सा. । ४२. पेल्लड़ - पा.सा. । ४६. पोलिओ -पा.सा. । ४३. पोअंटो - पा.सा.डे. । शपथः । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोमरं अनुसंधान-१६ • 118 पोरच्छो दुर्जनः । पोइआ निद्राकरी लता । पोइओ कान्दविकः । 'खद्योत' इत्यन्ये । पोलच्चा कृष्टभूमिः । कौसुम्भं वस्त्रम् । । पोक्का व्याहरतीति धात्वादेशः ॥ फलही कासः । फसुलो-फुसलो द्वौ [मु]क्ते । फरस५३ फलकः । फंसुली ५५ नवमालिका । फंसणं युक्तं मलिनं च। फरुसं सारं स्थासकश्च । फसइ विसंवदति स्पृशति च । फिडइ५७-पिच्छइ(फिट्टइ?) भ्रश्यति । फुरिअं८ निन्दितम् । फुफुआ करीषाग्निः ।। फुडइ-फुट्टइ भ्रश्यति । फुसइ माष्टि-भ्रमति च । * फुओलो९ हारः । फेलाया मातुलानी । बलिउ० पीनः । ४७. पोईआ - पा.डे. । ४८. पोइउ- पा. डे.। ४९. कृष्णभूमिः- पा. डे. ५०. वाहरतीति - आ.। ५१. फुसुलो -- सा. । ५२. शुक्ते -- सा. । ५३. फरउ - डे. । ५४. फंसुला - आ. । ५५. फसलं - मु. । ५६. फंसइ - मु. । ५७. फिड्डइ - पा.सा.डे. । ५८. फुरियं - पा.डे. । ५९. फुउलो - डे.। ६०. बलिओ - सा. । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 119 बंधालय मेलकः । बवाडो दक्षिणहस्तः । बहलं पङ्कः । बक्करं परिहासः । बद्धओ त्रपुपट्टाख्यः कर्णाभरणभेदः । बप्पीहो चातकः । बंभणी हालाहलः । बमालो कलकलः । बब्बरी केशरचना । बरु इक्षुसदृशतृणम् । 'बरुआ' 'बप्पीह' 'बमाल' दंत्योष्ठ्या इत्यन्ये । बइल्लो बलीवः । बहुणो __चौरो६४ धूर्तश्च । बालउ वणिकपुत्रः । यान्तोऽयम् । बाउली पाञ्चालिका । दन्त्योष्ठ्यादिरित्यन्ये । ★ बाहिरं बहिःशब्दस्यादेशः । बिग्गाई स्वार्थके, बिग्गाइया *बिकाइया त्रयो युग्मकीटे । बील ताडंकः । दंत्योष्ठ्यादिरयमित्येके । बीयउ असनवृक्षः 'बीणउ' इत्यन्ये । काकः । बुबुअं वृन्दम् । बुंदिणी कुमारीसमूहः । बुक्कई गजति । बुड्डइ मज्जतीति धात्वादेशौ । महिषो महांश्च । ★बोटरं स्मश्रु । ६१. बंधोल्लो - मु.। ६५. बाउली - सा.डे. । बाहुल्ली - पा. । ६२. बंबाडो - सा. । ६६. बियाया - पा. । ६३. हालाहला - पा.सा.डे. । ६७. बीलओ - पा. । ६४. चौरा - आ. । ६८. बीयणो - सा. । बुक्कणो बुंदीरो Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 120 बोटणं चूचुक इत्यन्ये । बोक्कडो छागः । *बोंदरं पृथु । बोहित्थो प्रवहणम् । बोहारी संमार्जनी। बोलइ०१ कथयतीति धात्वादेशः । बोंग्गैिल्लो भूषित आटोपश्च । भदिओ३ विष्णुः । भमाओ इक्षुसदृशतृणम् । 'भमसो' इत्यन्य: । भल्लुकी-भसुआ द्वौ शिवायाम् । भल्लंतं प्रस्खलत् । भंडणं कलहः । भसलो अलीति 'भ्रमर' शब्दात् । भरइ-भलइ स्मरतीति धात्वादेशः । भंभलं अप्रियम् । भंभलो मूर्खः । भासलं दीप्तम् । भावितं गृहीतम् । भाउज्जा भ्रातृभौर्या भासुंडी निःसरणम् । भाउयं आषाढे गौर्या कोऽप्युत्सवः । भायलो जात्याश्चः । भासियं०९ दत्तम् । - ६९. बोंटणं - सा. । ७५. भ्रातृजाया - डे. । भ्रोतृजाया - पा. । ७०. बोंदिरं - डे.। ७६. भामुडी - सा.डे. । ७१. बोल्लड़ - पा.सा.डे. । ७७. भाउअं - सा. । भाउआ - . । ७२. बोंगिल्लो -. सा. । ७८. जात्योश्वः - डे. । ७३. भदिउ - सा.डे. । भट्टिओ - मु.। ७९. भासिअं - सा. । ७४. प्रसवलात् - डे.। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 121 भाइल्ने हालिकः । भाइरो भीरुरिति भातेरादेशः । भिसिआ बंसी। भिसंतं अनर्थः । दीप्तार्थस्तु भासेरदेशात् । भिंगारी चीरी । 'मशक' इत्यन्ये । भित्तरं द्वारम् । ★भिलिआ आज्ञा-बेडा-चेटी च । भुंडीरो सूकरः । ★भुत्तुणो-भुत्तूणो द्वौ भृत्ये । भुमइ-भल्लइ भ्रश्यति । 'भसइ' भषतीत्यादेशः । भुक्कणो श्वा मद्यमानं च । भूआणो कृष्टखलयंत्रः (यज्ञ इति दे.को.) । भेरुंडो चित्रकः । भेलउ४ वे(भे)ला इत्यन्ये । भोइउ५ ग्रामणीः । भोल्लयं प्रबंधप्रवृत्तं पाथेयम् । भोरुडो भारंडपक्षी । मरालो अलसः । 'हंस' इत्यन्ये । मल्लाणी मातुलानी। मत्तली हठः । अशक्तः । मडिआ समाहता। मउअं दीनम् । महणं पितुर्गृहम् । महरो ८४. भेलओ - सा. । ८५. भोइओ - पा. । ८०. भान्तेरादेशः - सा. । ८१. वृषी - सा. । ५२. भेली - मु.। ८३. भूअण्णो - पा.सा. । भूअणो - डे. । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयाई ९ मउली मंजीरं मरुलो मइअं मंडलो श्वा । मडउ-मयडो द्वौ आरामे । मज्झओ नापितः । मायाली महलो मंडिलो महं मउडी मज्जोकं ३ मंगुसो मंगलं ४ मसृणं मउरो मंतेली अनुसंधान - १६• 122 जारः । मंजुआ तुलसी । 'मंजिआ' इत्यन्ये । मंतुआ लज्जा । महंगो उष्ट्रः । अपूपः । लघु । जूटः । नवीनम् । नकुलः । समं अविषमित्यर्थः । मल्ह९६ मंधाॐ भूतपिशाचादि । भत्सितम् । शिरोमाला । हृदयरसोच्छालः । शृंखलकँम् । निद्राकरी लता । रम्यम् । अपामार्गः । सौरिका । लीला । आढ्यः । ८६. मइवं - आ. । ८७. मशओ - सा. । ८८. तापिल:- सा.डे. । ८९. मयाइ - पा. । मायाई - आ. । ९०. शृंखलक: आ. । ११. महालो - डे. । ९२. महड - पा. सा. । ९३. मज्झोक्कं - पा.सा. । ९४. मंगलं - पा. सा. डे. मु. । ९५. शारिका - पा.सा.डे. । पा.डे. । पा. । ९६. मल्हणा ९७. मंधाओ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महेड्डो मरो मंदीरं मम्मणो मइलो मराली अत्र मक्कडो जालकृतकृमिरिति 'मर्कट' शब्दात् । मुरज इति 'मद्दल' शब्दात् । मद्दलो मलइ - मइ मृद्वाति, महइ कांक्षतीति धात्वादेशः । मंतक्खं मक्कोडा मक्कोडी मम्मक्का महलो महुओ' मलउ मलियं मज्जियं मल्लयं मंगलं मंवरं १००. मन्मथ १. मइलो - डे. । • २. निस्तेजाश्च - डे. । ३. ऊर्ण पिपीलिका अनुसंधान - १६• 123 ९८. मर्कट- डे. । ९९. मड्इ - पा. । मढइ सा.डे. । - 1 गर्व्वः । लज्जा दुक्खं च । शृंखलं मंथानश्च । मदनो रोषश्च । अव्यक्तवागर्थस्तु 'मन्मनै' शब्दात् । को निस्तेजेश्च । सारसी दूती सखी च । ऊर्णा पिपीलिका । यंत्रगुंफनार्थं रौशिश्च । उत्कंठा गर्व्वश्च । वृद्धो निवहः पृथुलो मुखरो जलधिश्च । श्रीवदपक्षी मागधश्च । गिर्येकदेश उपवनं च । लघु क्षेत्रं कुण्डं च । विलोकितं पीतं च । अपूपभेदः शरावं कुसुम्भरक्तं चषकश्च । अनिष्टं पापं च । 'चौर' इत्यन्ये । बहु कुसुंभं कुटिलं च । मंद्रार्थस्तु संस्कृतात् । सा. । ४. रासश्च - डे. । ५. महुउ - पा. सा.डे. । ६. मलओ पा. । ७. गिर्येकदेश- पा.सा.डे. । ८. मज्जिअं सा. । पा. । ऊर्णा पिप्पिलिका - डे. । ९. मंथरं - मु. । मउरं - डे. । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायंदो अनुसंधान-१६ . 124 मासिउ० पिशुनः । आम्रः । माडिअं गृहम् । मायंदी श्वेतपदा२ व्रतिनी । माइंदा आमलकी । माइली - माउच्छा द्वौ मृदौ । माउक्कं मृद्विति तु 'मृदुक' शब्दात् । माभाई अभयप्रदाने । 'माभीसी' इत्यपि । मालूरः कपित्थः । बिल्वार्थस्तु संस्कृतात् । माहिलो महिषीपालः । मासुरी स्मश्रु१६ । माणिअं७ अनुभूतम् । माहुरं शाकम् । माणंसी मायाव(वी)चन्द्रवधुश्च । मानवाचि तु 'मनस्वि'शब्दात् । मिणायं हठः । मिरिआ कुटी । मिहिआ मेघसमूहः । मुकुंडी जूट। मुग्गुसूः उकारान्तः मुग्गैसो द्वौ नकुले । मुखम् । मुअंगी कीटिका । मुट्ठिका हिक्का । .मुहलं १०. मासिओ - सा. । १७. माणिय - सा. । ११. मायदो - सा. । १८. मनश्चि - सा. । १२. श्वेतपटा वृतिना - सा. । श्वेतपटा व्रतिनी - डे.। १३. मातुच्छा - पा.सा. ।। १९. मिहया - सा. । महिआ - आ. । १४. शुद्धौ - डे. । २०. मुकुंदी - डे.। १५. बिल्वार्थस्तु - सा. । २१. मुग्गसौ- डे. 1 १६. श्मश्रु - डे. । २२. कीटिका डे.। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुरई मुम्मुरो मूसरी भन. अनुसंधान-१६ • 125 मुंसंहं चिंताकुलता । मुहिअं-मुहिआ द्वौ एवमेवेत्यर्थे । मुक्कयं प्रस्तुतविवाहवधूवर्जमन्यासां वधूनां विवाहः । मुरिअं त्रुटितम् । असती । मुणइ जानाति । हासेन स्फुटति । मुक्कलं उचितं स्वैरं च । करीषं करीषाग्निश्च । मूसाअं लघुद्धारम् । भग्नः । मूसलो उपचितः । मूअलो मूअल्लो द्वौ मूके। मूड भनक्तीति धात्वादेशः । ★मेत्तलो कामः । मेअरो असहनः । मेअज्जं धान्यम् । मेडब्मो मृगतन्तुः । अत्र मुंचतीति धात्वादेशः । मोग्गरो मुकुलम् । रसाला माजिता । रत्तीउ नापितः । रसाऊ भ्रमरः । अकारान्तोऽयमित्यन्ये । रसई चुल्लीमूलम् । २३. मुसुन्ह - डे. । २७. मुम्मरो - डे.। २४. मुष्कयं - सा.डे. ।। २८. मूयलो - पा. । २५. वर्ध - आ. । २९. मेल्हइ - पा. । २६. मुड़ - 2.। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रवउ अनुसंधान-१६ . 126 रत्तयं बंधुकम् । रग्गयं कौसुंभं वस्त्रम् । रंजणो२० घटः । कुण्डमित्यन्ये । मंथानः । रंदुर रज्जुः । रंभइ गच्छति धात्वादेशः । रंपइ-रंफड़ तक्ष्णोतीति च । रत्तच्छो हंसो व्याघ्रश्च । महिषे तु 'रक्ताक्ष' इति संस्कृतात् । राअल्ला३३ कंगुः । राविअं आस्वादितम् । रंजितमिति तु रंजेरावादेशात् । रायंबू वेतसद्रुमः सरभश्च । रिंगियं भ्रमणम्। रिरिअं३४ लीनम् । रिक्तियं३५ शटितम् । रिमिणो रोदनशीलः । रिंछोली२६ पंक्तिः । रिअइ प्रविशतीति धात्वादेशः । रिक्खणं उपलम्भः कथनं च । रिकि आक्षिप्तं लीनं व्रीडितं च । रीख राजतीति धात्वादेशः । रुटिअं सफलम् । रुंचणी घरट्टी । रुंजइ रौति । रुंटइ भ्रमतीति धात्वादेशौ । रेसिंअं छिनम् । ३०. रंजणं - पा.। ३६. रिछोली - सा.डे. । ३१. रंदआ - पा. । ३७. प्रभवतीति - डे. । ३२. रत्तोच्छो - डे.। ३८. रिक्खणं - सा. । ३३. राअला - पा.सा.डे. । ३९. रिकिअं - सा. । ३४. रिरियं - सा.डे. । ४०. रोहिअं - आ. । ३५. रिकिअं - डे. । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेवयं लल्लकं४२ लइ अनुसंधान-१६ • 127 प्रणामः । रेवई मातरः । राजतीति धात्वादेशः । रेसणी अक्षिनिकोचः करोटिकाख्यपरिवेषणी च । रोलंबो भ्रमरः । रोधसो-रोक्कणो रोज्झः [रङ्काः] रोचइ पिनष्टीति धात्वादेशः । लचयं गंडुसंज्ञं तृणम् । लट्टयं कुसुम्भम् । लडहं रम्यम् । 'विदिग्ध' इत्यन्ये । भीमम् । लसई५२ कामः । परिहितम् । अङ्गे पिनद्धमित्यन्ये । लसुअं तैलम् । लता । लसकं तरुक्षीरम् । लंपिक्खो चौरः । लंबाली पुष्पभेदः । लक्कडं लकुट । लढइ स्मरति । ल्हसइ स्रंसत इति धात्वादेशौ । लयणं तनु मृदु वल्ली च । लाइल्लले वृषभः । लावं उसीरं । लाहणं भोजभेदः । लालसं मृदुः। ४१. रेवइ - पा. । ४५. लंपिकौ - आ.। ४२. लल्लवं - पा. । ४६. लावणं - पा.डे. । ४३. लसइ - आ. । ४७. भोज्यभेदः - पा.डे. । ४४. लसुकं - आ. । लइणी Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाइयंट लिसयं " लिट्टियं " लिक्कड़ - लिहक्कड़ लिसइ लिहिउ लिंछिअं हड्डो लेडुक्को लोहिलो लोडिड अनुसंधान - १६ • 128 भूषणगृहीतम् । ४९धर्म्मार्थं च । तनूकृतम् । चाटु | लोट्ट वल्लरी तनु सुप्तश्च । आक्षिप्तं लीनं च । लुंखाओ निर्णयः । केलुरणी वाद्यभेदः । "लैयनम् । लुंकणी लुटई - लुहइ माष्टि । लुंटई-लुहइ छिनैत्ति । लूरइ ५७ हुडो - लेढुक्को - लुओ यो लोष्टे । लो (ले) ढिअं स्मरणम् । लंपट | लंपये लोष्टि९ । लंपटः । उपविष्टः । स्वपिति च । केशः । स्वैपित । वलही - ववणी ast वसलं नीलीयते । ४८. लाइअं - डे. । ४९. चर्म्मार्थं च - पा.डे. । ५०. लिसिअं - डे. । ५१. लिटिअं - डे. । द्वौ कर्णा । पक्षिभेदः । दीर्घः । ५२. स्वपति - डे. / ५३. लिंटिअं - पा. लिंकिअं - मु. । ५४. निर्णयः - पा.डे. । ५५. नयनम् - आ. 1 ५६. छिनत्ति - डे. । ५७. लेडुओ - मु. 1 ५८. लहडो - आ. । ५९. लोष्टच - पा.डे. । ६०. लोटिड - पा. । लोटिड - मु. । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 129 वप्पीउ चातकः । वम्हलं केसरम् । वयली निद्राकरी लता । वट्टिमं अधिकम् । वइओ पीतः । वलिआ ज्या । वयरं चूणितम् । वयडो वाटिका । वंफिअं-वलियं द्वौ भुक्ते । वणायं व्याधाकुलम् । वद्दलं-वक्कंडम् द्वौ दुर्दिने । 'वक्कडम्' निरन्तरवृष्टिरित्येके । वंदुअं राज्यम् । वडाली पंक्तिः । शालिभेदः । वल्लई६३ गौः । वीणार्थस्तु 'वल्लकी' शब्दात् । गोपीवाची तु 'वल्लवी' शब्दात् । वद्धयं प्रधानम् । वडिआ कूपतुला । वर्णवो दवाग्निः । वज्जरा५ नदी । वणयं श्रीखंडं । 'पिष्टातक'मित्यन्ये । वडिओ६६ खंढः६७ । वहडो-वारो द्वौ दम्ये । वग्गयं वार्ता । वग्गिज्जो प्रचुर । वरउ६२ ६१. वकडं - पा. । ६२. वरओ - पा. । ६३. वल्लइ - डे. । ६४. वणोवो - पा. । ६५. वज्जरी - डे. । ६६. वद्धिउ - पा. । वद्धिओ - मु. । ६७. खंडः - पा. । षण्ड:- मु. । ६८. वण्णारो - पा. । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहुणी अनुसंधान-१६ . 130 वणई वृक्षपंक्तिः ॥६००॥ वणद्धी . गो वृन्दम् वब्भयं कमलोदरम् । वहोलो लघु श्रोतः । वज्जियं विलोकितम् । वेव्वडो अर्थः । वंगच्छा प्रमथाः । वप्पीहो वल्मीकः । वहुरा शिवा । वडिवं परकार्यम् । वग्गोउ० नकुलः । वहुव्वा कनिष्टश्वश्रूः७१ । वंजरं नीवी । ज्येष्ठभार्या । वच्छीवो गोपः । वत्तारो गर्छ । वर्धणी२ सम्मार्जनीति वर्धनीतिशब्दात् । ★वरं वज्रमिति 'वज्र'शब्दात् । ★वसई रात्रिरिति 'वैसति'शब्दात् । ★वलवा वामीति 'वडवा'शब्दात् । वज्जइ त्रस्यति । वच्चइ कांक्षतीति धात्वादेशः । वडप्पं लता गहनं निरन्तरवृष्टिश्च । वरडी वैलाटी दंशः भ्रमस्च । दंशश्चासौ भ्रमरश्चेति समासे भ्रमरविशेषो ज्ञेयः । वयलो विकसनः कलकलश्च । ६९. विव्वाडो - अर्थः - आ. । ७२. वर्धनी - आ. । ७०. वग्गोओ - पा. । ७३. विशति - सा. । ७१. श्वश्रुः - आ. । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 131 वल्लाउ श्येनो नकुलश्च । वलयं क्षेत्रं गृहं च । वत्तद्धो सुंदरो बहुशिक्षश्च । वयणं मंदिरं शय्या च । वप्पिणो क्षेत्रमुषितश्च । वल्लरं अरण्यं महिषः क्षेत्रं युवा वायुर्निर्जलदेशो वनं च । वरंडो प्राकारः कपोतपाली च । वग्घाउ५ साहाय्यं विकसितश्च । वलइ आरोपयति गृह्णाति च । वंफई वलति कांक्षति चेति धात्वादेशौ । वाहली लघुश्रोतः । वारिउ नापितः । वारुअं शीघ्रम् । वाणउ वलयाकारः । वाहणा ग्रीवा । वावडो कुटुम्बी । व्याकुलार्थस्तु 'व्यापृत'शब्दभवः । वामरी सिंहः । वारिज्जो विवाहः । वासंदी-वासुली द्वौ कुन्दे । ★वाजउ०९ आयुक्तः । वावणी छिद्रम् । वासाणी रथ्या । वालो वातूलः । वायारो शिशिरवातः । वाणीरो जम्बूवृक्षः । ७४. क्षेत्रमुखितश्च - सा. । ७८. वलयकार: सा. । वर्णयकार: - पा. । वर्णइकारः- डे.। ७५. वग्घाओ - पा.। ७९. वाजउं - पा. । वावउ - मु. । ७६. वारूअं - पा.सा. । ८०. छिडं - सा. । ७७. वाणओ - पा.सा. । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायाडो वाडिल्लो वालप्पं वाविअं वाडिमो वायणं ★ वासाहू वाउत्तो विल्लरी विच्छड्डो विलमा विरउप विपित्तं विच्छोहो अनुसंधान - १६• 132 शुकः । कृमि: । पुच्छम् । विस्तारितम् । गंडकमृगः । भोज्योपायनम् । भेक इति 'वर्षाभू 'शब्दात् । विटो८२ जारच | 'वाउत्ते' इत्यन्ये । केशः । निवहः । ऋद्धार्थस्तु 'विच्छदर्द' शब्दात् । ज्या | लघु श्रोतः । विकसितम् । विरहः । वर्षम् । नीरोगः । 'नीरोग' इत्यन्ये । विरसं विसढो विसारी कमलासनः । विढणा: पार्षिणः । विसरो सैन्यम् । वृतोकी । विहई विक्खासउ - विरुओ विलेउ विउलो विहणं विग्गोवो ८३. वल्लरी - आ. । ८४. ऋद्धयर्थस्तु - सा. डे. । ८५. विरओ पा. । द्वौ विरूपे । सूर्यास्तकालः । आविग्नः । पिंजनम् । व्याकुलता । ८१. वायाद्वे - आ. । वायाढो - डे । ८२. विडो जरश्च पा. । ८६. वृताकी - पा. । ८७. विक्खासो- पा.सा.डे. । ८८. विरुड - पा.सा.डे. । ८९. विरउ- आ. | Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 133 विक्खणं-विततं द्वौ कार्ये । विसिणो रोमशः। विरिक्त पाटितम् । विहयं पिंजितम् । विलिअं-विहूणो द्वौ लज्जार्थे । विप्रियार्थः विलिय शब्दो 'व्यलीक'शब्दात् । विडप्पो-विडउ द्वौ राहौ । *विजुली विद्युत् । विलया स्त्री । विराइ विलीयत इति धात्वादेशः । विक्खंभो स्थानमन्तरालं च । विस्तारार्थस्तु 'विष्कंभ'शब्दात् । विक्खिणं आयातं जघनं च । 'अवतीर्णमि'त्यन्ये । विडिमो वालमृगो गंडश्च । विव्वाउ विलोकितो विश्रान्तश्च । विप्पयं खलभिक्षा वैद्यो वापितं दानं च । विड्डिरं आभोगो रौद्रं च । विच्छेओ४ विलासो जघनं च । विहाणो विधिः प्रभातं च । विआलो सन्ध्या चौरश्च । विरहो एकान्तं कौसुम्भं वस्त्रं च । वित्तई गवितो विलसितं च । गर्व इत्यन्ये । विच्छिअं पाटितं विचितं विरलं च । वीलणं पिच्छिलम् । वेडुल्लो गर्वः । - ९४. विच्छेउ - पा.डे. । ९५. विड्डाला - डे. । ९०. विडओ - पा.। ९१. विज्जली - डे.। ९२. विक्खिण्णं - पा.डे. । ९३. आयतं - पा... । Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेअल्लं अनुसंधान-१६ . 134 वेलुको६ विरूपः । वेदूणा-वेलूणा द्वौ लज्जार्थौ । वेय९७ भल्लातकम् । वेलंबो विडंबना । वेणि-वेसणं द्वौ वचनीयौ । मृदु । 'असामर्थ्यमि'त्यन्ये । वेडिउ मणिकारः । वेल्ड रमते इति धात्वादेशाः(शः) । 'वेसण' शब्द ओष्ठ्यादिरित्यन्ये । वेल्लिरी वेश्या । वेइआ जलहारिणी । 'अलीमुद्रार्थस्तु' 'वेदिका'शब्दात् । वेढि०० वेष्टितम् । वे'प्पुअं शिशुत्वम् । भूतात्तमित्यन्थे । वेरिज्जो एकाकी । वेरिज्जं साहय्यमित्यन्ये । वेइद्धो उर्वीकृतो विसंस्थुल आविद्धः शिथिलां गश्च । वेआलो अन्धोऽन्धकास्च । वोच्चत्थं विपरीतरतम् । केऽपि युगपत्परिवर्तितमुखयोः स्त्रीपुंसयोर्मुखे जघनकर्माहुः । वोवालो वृषभः । वोकिल्लो गृहे शूरः । *वोजूओ भारः । वोमज्झो अनुचितो वेषः । वोरच्छो-वोद्रहो द्वौ तरुणे । ओष्ठ्यादिः । वोहारं जलस्य वहनम् । ९६. विलूको -- डे. । १००. वेण्टिअं - मु.। ९७. वेयहुं - पा.डे. । १. विप्पुअं - । ९८. असमर्थमित्यन्ये - डे.। २. शिथिलांगतश्च - मु.। ९९. वेईआ - पा. । ३. वाजूउ - आ. । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 135 वोरल्ली श्रावणशुक्लचतुर्दश्यामुत्सवः । केऽपि वोरलीमित्याहुः । वोसेअं अब्भुट्ठाणम् । ऊध्वंगतमित्यर्थः । वोसट्ट भूतोल्लुटितम् । वोक्कइ विज्ञपयतीति धात्वादेशः । वोज्झरं अतीतं भीतं च । वोज्जइ त्रस्यति वीजयतीति च धात्वादेशः । त्रस्यात वाजयताति प सरली चीरी । सरत्ति सहसा । सज्जोक्वं नवम् । सउणं रूढम् । सढयं पुष्पम् । सल्ली सेवा । सभरो गृध्रः । श्रद्धा । सत्थरो संगोल्ली-संगेल्लो त्रयः समूहे । शय्यार्थस्तु सत्थरो 'श्रस्तर'शब्दात् । संगहो गृहोपरिस्थतिर्यग्दारु । केऽपि संग्रहशब्दमुक्तपर्यायमाहुः । सत्तल्ली सेफालिका संभवो प्रसवजरा । सविसं सुरा । सण्णिअं आर्द्रम् । सराहो दर्पोद्धरः । सवासो ब्राह्मणः । संफाली पंक्तिः । . सयग्घी घरट्टी। ४. बोरिली - पा.डे. । ८. सय्यार्थस्तु - आ. । ५. भृतोल्लुटितं - डे.। ९. सणिअं - पा.डे. । ६. बीजयतीति - डे. । १०. सरग्घी - पा. । ७. सरल्ली - पा. । ११. वरट्टी - डे. । सगयं Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 136 सइत्तो मुदितः । सण्णेज्झो १२ यक्षः । सव्वला कुशी। संखलो शंवरा ख्यो मृगः । संकरो रथ्या । सगे६१५ निकटम् । संखली शंखताडंकः१५ । संदेवो सीमा । 'नदीसंगम'इत्यन्ये । संगयं मसृणम् । सवाउ श्येनः । संघाडी युग्मम् । संभुल्लो दुर्जनः । संधियं दुर्गन्धम् । सउली शकुनिका६ । संघोडी व्यतिकरः । संपण्णा-संपणा द्वौ धृतपूरार्थगोधूमपिष्टे । संजद्धं सस्पंदम् । सच्छहो सदृक् । संभली-सण्णाही द्वौ दूतिकायाम् । सत्तत्थो कुलीनः । सइज्झो प्रतिवेश्मिकः । संजत्थो कुपितः । 'कीप' इत्यन्ये । सद्दालं नूपुरम् । सअढा . लंबा: केशाः । १२. संण्णेसो - डे. । संण्णेशो - सा.। १६. शकुनिकः - डे.। १३. शंबराख्यो - सा. । १७. गोधूमाष्ट - पा. । १४. समेहं - सा. डे.। १८. संस्पन्दम् - आ. । १५. शंखताडुंकः - डे. । १९. प्रातिवेस्मिकः - डे. । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरो सामरी अनुसंधान-१६ • 137 ★ सवली मीन इति २१शकलीति शब्दात् । कृकलास इति, 'सरट'शब्दात् । संखाइ संस्तायति । सहइ राजते इति धात्वादेशौ । सअॅअं शिला घूर्णितं च । सरहो वेतसतरुः सिंहश्च । सणिउ२५ साक्षी ग्राम्यश्च । सज्जिओ नापितो रजकः पुरस्कृतो दीप्तश्च । सामुद्दो इक्षुसदृशतृणम् । सावउ सरंभः । सामि दग्धम् । सामंती समभूमिः। साल्मलिः । साराडी२८ आदि । साणूरं देवगृहम् । साउल्लो अनुरागः । सालंकी-सालही द्वौ सारिकायाम् । सामत्थं इति 'सामर्थ्य शब्दात् । साइअं संस्कारः । साहइ कथयति । साइ प्रहरतीति धात्वादेशौ । साहुली वस्त्रं भूर्भुजः । ★साखापिकी सदृशः सखी च । सालुअं सम्बूकः शुष्कयवादि शीर्ष च । सिंदीर-सिंखलं द्वौ नूपुरे । २०. शवली - पा. । २७. शाल्मलिः - पा. । २१. शबलीति - पा. । २८. साराही - सा.। २२. संख्यायति - डे. २९. शाखापिकी - सा. । २३. शअ - आ. । ३०. संभूकः-पा. डे.। २४. कोसतरु: - पा. । ३१. कार्य च - पा. । २५. सणिओ - पा.। ३२. सिदीरं सा. । २६. शरभः - सा. । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3x अनुसंधान-१६ • 138 सिंबीरं पलालं । सिंदोला खर्जूरी । सिव्विणी सूची ।। सिंबाडी नासिकानादः । सिज्जूरं२५-सिंदूरं द्वौ राज्ये । सिंपुरं भूतात्तम् । सिलओ३६ उंछः । सिलिंबो शिशुः । सिंगउ२७ तरुणः । सिंधुउ८ राहुः । सिंगिणी गौः । सिद्धत्थो रुद्रः । सिसिरं दधि । सिहिणा स्तनाः । सिअंगो वरुणः । सिआली डमरः । सिरिंगो विटः । सिंहइ२९ स्पृहयति । सिंपइ सिंचतीति धात्वादेशौ । सीसयं प्रवरम् । सीसक्कं शिरस्त्राणं । सीसइ कथयतीति धात्वादेशः । सीअल्ली हिमकाल दुर्दिनम् सा(झा)टभेदश्च । सीइआ निरन्तरवृष्टिः । सुहरा चिटिकाभेदः । यस्याः अधोमुखं नीडं भवति । सुढिउ श्रान्तः । ३३. खजूरी - डे. । ३७. सिंगओ - मु. । सिंगत - पा. । ३४. सिबाडी - डे. । सिवाडी - सा. । ३८. सिंधुओ- सा. । ३५. सिजूरं - डे. । ३९. सिहइ - मु.। ३६. सिलउ - .. । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 139 सूरणो सुहेली सुखम् । सुहल्लीत्यन्ये । संघिअं० घ्रातम् । सुलसं४१ कुसुम्भरक्तवस्त्रं । सुवण्णो अर्जुनतरुः । सुवुग्णा संकेतः । सुरुंगी सिगतमः । संकयं किंसारुः । सुंकण्णमित्यन्ये । सुअणा अतिमुक्तकः । सुव्विआ८ अम्बा । सुज्झयं रौप्यम् । सुज्झओ रजकश्च । सूअलं किंसारुः । सइओ५० चंडालः । कन्दः । सूरंगो प्रदीपः । सूअरी यंत्रपीठम् । सूलच्छं पल्वलम् । सूहवो इति 'सुभग'शब्दस्यादेशः । सू-सूडइ भनक्तीति धात्वादेशः । सूरल्ली मध्याह्नो, ग्रामणी तृणं मशकाकृतिकीटश्च ।।छ।। सेहिओ५२ गतः । सेलूसो कितवः । सेआली५२ दूर्वा । ४०. सुधियं - आ. । ४५. सुंकियं - पा. । ४१. सुलभं - सा. । ४६. सूकणमित्यन्ये-डे. । सुकणं-मु.। ४२. सुवण्णा - मु. । ४७. सुअणो - सा. । ५०. सूइउ - पा. । ४३. सुरंगी - मु. । ४८. सुव्यियायं - डे. । ५१. सेहिउँ - डे. । ४४. शिगु तरुः। ४९. सुशयो - सा. डे.। ५२. सेयाली - सा. । ५३. दूर्वा - डे.। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 140 सेवालो पंकः । सेआलो ग्रामणीः, सांनिध्यकर्ता यक्षादिश्च । सेहड़ नश्यतीति धात्वादेशः । सोहणी सम्माजनी। सोमालं मांसम्। सोसणो पवनः । सोमाणं श्मशानम् । सोव्वउ.४ पतितदन्तः । सोसणी कटी । सोवत्थं उपकारः । उपभोग्यं इत्यन्ये । सोमालं 'सुकुमाल'शब्दात् । सोवणं रतिगृहम् । सोवणो स्वप्नो मल्लश्च । ★सोरासवो मंडलेन स्त्रीणां वृत्तम् । हत्थारं साहाय्यम् । हत्थल क्रीडया हस्ते गृहीतं च । हक्कोट्ट अभिलषितम्५ । हक्खुत्तं उत्पाटितम् । हंजउ सांगस्पर्शः, स(श)पथः । हल्लीसो रासको मंडलेन स्त्रीणां नृत्यम् । हलत्थी हस्तवृषी । हलप्पो बहुभाषी। हम्मिअं७ गृहम् । हल्लिअं चलितम् । हलरो सतृष्णः । हद्धउस हासः । ५४. सोयओ - सा. । ५६. हत्थल्ली - डे. । ५५. अभिलसितम् - आ. । ५७. हम्मियं - सा. । ५८. हद्धओ - सा. । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 141 हविरं म्रक्षितम्५९ । निषेधति । हरड़ गृह्णातीति धात्वादेशौ । हत्थलो क्रीडार्थं हस्ते गृहीतः पदार्थो हस्तलोलश्च । हत्थोडी हस्ताभरणं हस्तप्राभृतंच । हासी हासः । हालुउ ६० क्षीब:६१ । होविरो जंघालो दी? मंथरो विरतश्च । हिल्लूरी लहरी । हिंचियं-हिंवियं द्वौ एकपदगमनक्रीडाौँ । हिरडी शकुनिका । हिक्कियं६ हेषारव:६७ । हिक्कासो पंकः । हिरम्बं६८ पल्वलम् । हिंडोलं क्षेत्ररक्षणयंत्रमित्येके । हीरणा लज्जा । हुलिअं९ि शीघ्रम् । प्रवाहः । पताका । हुरुडी विपादिका । हुंकउ अंजलिः । हुलुव्वी प्रसवपरा । हेलुका हिक्का । ५९. मक्षिप्तम् - सा. । ६८. हिरिम्लं - डे. । ६०. हालुओ - सा. । ६९. हुलियं - सा. । ६१. क्षीवः - सा. डे. । ७०. हुरडी - डे. । ६२. हावेरो - सा.डे. । ७१. हुलुत्थी - डे.सा. । ६५. हिरिडी - आ. । हिरढी - डे, । ७२. हेलुका - डे. । ६६. हक्किअं - डे. । ६७. हेखारवः - सा. । हुडुमो - Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 142 हेलुअं०३ क्षुतम् । हेरिबो विनायकः । हेयालं सर्पशिरसंज्ञेन हस्तेन निषेधः । अङ्गल्यः संहताः सर्वाः, सहांगुष्टेन यस्य तु । [तथा] निम्नतलश्चैव, स तु सर्पशिरः करः ॥ हेरंबो७ महिषो डिडिमश्च । होरणं वस्त्रम् । अथ चतुरक्षराः । अग्गहणा अवज्ञा । अडयणा असती । ★अणुइउ तृप्तः । अणोलयं-अणुदवि-अणुअल्लं त्रयः प्रभाते । अहिंसायं पूर्णम् । अवडओ८० तृणपुरुषः । अवगूढं व्यलीकम् । अवरिक्को-अणरिको द्वौ निरवसरे । अण्हेअउ भ्रान्तः८२ । अवडिअं खिन्नम् । अणुईओ चणकः । ★असिहाणं वर्णना । अवहेयं अनुकम्प्यम् । ७३. हेहुअं - आ. । हेलुयं - सा. । ७९. पूण्ाँ - सा. । ७४. क्षुत्तम् -- सा. । ८०. अवडउ - डे. । ७५. हेयलं डे. । ८१. निरवसरो - आ. । ७६. सर्पः शिराः - सा. । ८२. भ्रातः - सा. डे. । ७७. हेरिंबो - आ. । ८३. अणुईउ - डे.सा. । ७८. अणालयं - आ. । ८४. वर्णना - सा. । ८५. अनुकम्पम् - डे. । २ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 143 अवत्थरा पादघातः । 'अवहत्थरा' इत्यन्ये । अवलिअं६ असत्यम् । अरिहइ नूनमित्यर्थे । अम्माइया ७ अनुमार्गगामिनी । अत्थुवडं भल्लातकम् । अलियारं दुग्धम् । अवलयं गृहम् । अवहडो० गर्वितः । अणुसूआ आसन्नप्रसवा । अरिअल्ली व्याघ्रः । अवाणं आकर्षणरज्जुः । अणराहो शिरसि चित्रपट्टिका । अइणियं आनीतम् । अहिविण्णा५ कृतसापत्न्या । . अलमलो दुर्दान्तवृषभः । गोपालमते 'अलमलवसहो' इति सप्ताक्षरः । अणुसत्ती अनुकूलः । अहोरणं उत्तरीयम् । अविल्ल शब्दस्तूत्तरीयवाची प्राकृतेऽस्ति । अविद्दुओ-अवअण्णो द्वौ उदूखले । अवहण्णमिति केऽपि पठन्ति । ८६. अवलियं - सा. । ८७. अम्माइआ - सा. । ८८. अत्थवडं - . । ८९. अलिआरं - सा. । ९०. अवहट्टो - मु. । ९१. अवयणं - आ. । ९२. रज्जः - डे. । ९३. सिरसि - सा. । ९४. अइणिअं - सा. । ९५. अहिविणा - डे. । . ९६. दुर्दन्तो वृषः - सा. डे. । ९७. आहरणं - आ. । ९८. अवरिल्ल - सा. डे. । ९९. अवडुउ - डे. सा. । १००. अवअणो - डे. । १. अवहन्नमिति - सा. डे. । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 144 अरलाया चीरी, 'झिल्लीकेत्यर्थः । अइरिम्पो कथाबंधार्थः । अवअच्छं कक्षावस्त्रम् । कक्षेत्यन्ये । अक्खलिअं प्रतिफलितम् । अलीसउ शाकवृक्षः । अहिरीउ विच्छायः । अग्गक्खंधो रणमुखम् । अण्णमयं पुनरुक्तम् । अंगालियं इक्षुखण्डम् । अवरोहो-अवरोहो द्वौ कटीवाचकौ । अवालुआ ओष्ठपर्यन्तः । अग्गवेओ' नदीपूरः । अहिआरो लोकयात्रा । अदसणो चौरः । अप्पगुत्ता कपिकच्छूः । अवगदं विस्तर्णम् । अज्झसियं दृष्टम् । अणेकज्झो चंचलः । अहिसियं० ग्रहशंकारुदितम् । अवहुँसं उदूखलादि शूर्पप्रायं वस्तुजातम् । अब्भाअत्तो अभ्यागतः । अब्भाअत्थो |ग्रं. ७००॥ पश्चाद्गत इति तु गोपालः । २. अरलयो - सा. । अरलउ - डे. । ९. अज्झसि - डे. । ३. अइरम्यो - डे. । १०. अहिसिअं - सा. । ४. अंगालिअं -डे. । ११. अवड्डसं - सा.डे. । ५. अवारोहो - डे. । १२. सूर्प-सा.डे. । ६. अवालुया - मु. । १३. अत्ताअत्तो - सा.डे. । ७. अग्गवेउ - डे. । १४. प्रत्यागतः - सा.डे. । ८. अहियारो - डे.मु. । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 145 अब्भक्खणं अकीत्तिः । अगहणो कापालिकः । अंगुत्थंलं अंगलीयकम । अवयारो माघ्यामुत्सवविशेषो यस्मिन्निक्षुदंतधावनाद्याचारो विधीयते। अवहडं मुशलम् । अंगुलिणी प्रियंगुः । अहिसंधी९ पौनःपुन्यम् । अहिवण्णं पीतरक्तम् । अद्धजंधा मोचकाख्यं पादत्राणम् । अज्झोलिया उत्संगाभरणो२२ मौक्तिकरचना । ★अइहारा विद्युत् । ★अइराहा२३ इति तु 'अचिराभा'शब्दात् । अद्धिक्खियं संज्ञाकरणम् । असंगयं वस्त्रम् । अद्धक्खणं प्रतीक्षणम् । परीक्षणमित्यन्ये । अंतरिज्जं कटीसूत्रम् । अहिक्खणं उपालंभः । आभीक्ष्ण(क्ष्ण्य)मित्यन्ये । अंतीहरी दूती । अक्खवाया दिक् । अवरिज्जो अद्वितीयः । अहिअलं-अवलुआ द्वौ कोपे । अवठंभो ताम्बूलम् । अवहाओ५ विरहः । अंबल्लवो अपलापः । १५. अब्भखणं - डे. । २१. अज्झोल्लिया - सा. । १६. कापिलकः - डे. । २२. उत्संगाभरणे - डे. । १७. अंगुलिअं - डे. । अंगुलियं - सा.। २३. अइहारा - सा. । १८. क्रियते - सा. । २४. अवहाउ - सा. डे. । १९. अहिसंधा - डे. । २५. अवल्लीवो - डे. । २०. अंहिवनं - डे. । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 146 अणहारो निम्नं द्वाविमौ कप्रत्ययान्तौ प्रभुभिः पंचाक्षरेषू पात्रौ(पठितौ ?)। अंजणिआ तापिच्छ:२६ ।। ★अम्बसमी स्तीमित, पर्युषितकणिक्का अम्बसमीति केचित् । अत्र च ★अच्छोडणं मृगया । अलिंजरं कण्डम् । ★अमिलायं कुरेण्टकपुष्पम् ।। अच्छभल्लो ऋक्षः इति संगृह्णन्ति एते तु संस्कृताः । अच्छभल्लो यक्ष इति त्वप्रसिद्धत्वान्नोक्तः । अइच्छइ-अक्कुसइ गच्छत्यर्थे । अवक्खइ पश्यति ।। अप्पाइ संदिशति । अक्खोडइ असिं कोशादाकर्षति । अभिडइ संगच्छते । अग्घाडइ-अग्घवइ-अंगुमाइ-त्रय: पूर्यतेरर्थे । अडुक्खइ क्षिपति । अवाहेइ रचयति । अवुक्कइ२० विज्ञपयति । अणच्छइ-अयंछइ द्वौ कर्षत्यर्थे । अल्लत्थइ उत्क्षिपति । एते धात्वादेशाः । ★अवज्झाउ३२ इति 'उपाध्याय'शब्दात् । असंगिउ अश्वोऽनवस्थितश्च । अवरज्झो गतं भाविदिनं प्रभातं च । अवज्झसं कटी कठिनं च वस्तु । अलिसल्ली कस्तूरिका व्याघ्रश्च । २६. तापिच्छं - सा.डे. । ३०. अव्वुक्काइ - सा. । २७. कोरण्टक - डे. ।। ३१. अल्लच्छइ - सा.डे. । २८. पूजानर्थे - आ. । ३२. अवज्झाओ - मु. । २९. अवहेइ - सा... । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिहरं अहिलिअं ३३ अइयं अइराणी अवसहं अक्कमाला" बलात्कार ईषन्मत्ता स्त्री च । अत्र च अब्भुत स्त्राति प्रदीप्यते च । अल्लिअइ - आलीयते उपसर्पति च धात्वादेशः । ★ आसेवणं आलयनं (णं?) द्वौ वासगृहे । आमोरङ विशेषज्ञः । अनुसंधान - १६• 147 -- आहुंदुरो बाल: । 'आहुंडुरु' इत्यन्ये । आरणालं कमलम् । काञ्चिके तु संस्कृतः । आसिअओ लोहमयः । आसक्खउ श्रीवदः पक्षिविशेषः । आमलयं देवकुलं अभिभवः कोपश्च । मार्गर्णैश्चाद्भागः समागतं प्रविष्टं च । इंद्राणी । इन्द्राणीव्रतासेविनी स्त्री च । उत्सवं नियमश्च । नूपुरगृहम् । आअड्डियं" परवशचलितम् । यस्तु 'व्याप्रेराअ(य)ड्डुः' स व्यापारमात्रार्थः । ३७. अक्क्साला ३८. अलिअआ आऊडियं द्यूतपणः । आलंकिअं खंजीकृतम् । - आमंडलं'‍ भाण्डम् । आरुँग्गियं भुक्तम् । आसीवउ सूचिकः । ३३. अहिलियं ३४. मार्ग. सा. । ३५. अइराणा सा. । सा.डे. ३६. आवसहं - डे. । मु. । सा. । ३९. आमोरओ - मु. । ४०. असिra आ. । ४१. आअड्डिअं ४२. आमंडणं ४३. आहुडिअं - - सा. । मु. । सा. । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६. 148 आहुडियं निपतितम् । आडुआली मिश्रीभावः । आसरिउ संमुखा६ यातः । इह च आअड्ड - आऊड - आरुग्ग - आडुआल - आहुडप्रभृतीनां धात्वादेशप्रतिरूपकाणां णिचि धातुत्वमपि तेन . आअड्डइ - आऊड - आरुग्गइ - आडुआलइ - आहुआडड् इत्यादि सिद्धम् । एवं सर्वत्र क्रियावाचि तु(षु) योज्यम् । आयावलो बालातपः । आवालयं जलनिकटम् । क-प्रत्ययाभावे 'आवालं' । आडोविअं८ आरोषितम् । आराइअं गृहीतम् । आरंभिउ७९ मालिक:५० । आइसणं५१ उज्झितम्५२ । आलीवणं प्रदीपनकम् । अत्र च आहिम्मियमागतमिति आङ्पूर्वस्य हम्मेः सिद्धम् । आइग्घइ आजिघ्रति । आहोडइ ताडयति । आसंघइ संभावयति । आअड्डइ व्याप्रियते । आउड्डुइ मज्जति । आरोलेइ५४ ५५पुंजयति । ४५. आडआली - डे. । ५०. मालाकारः - मु. । ४६. संमुख यातः डे. । ५१. आइसन्नं - डे. । ४७. आहुडड - सा. । ५२. उजितं - डे. । ४८. आडोवियं - मु. । ५३. आहम्मिआ - डे. । ४९. आरिभिउ - आ. । आरंभिओ - सा. । ५४. आरोलोइ.- सा. । आरोलइ - मु. । ५५. पिंजयति - आ. । Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ t अनुसंधान-१६ . 149 आयंबई'६-आयज्झइ वेपते । आढवइ आरभते । आलिहँइ स्पृशति । आइंछइ५९ कर्षति । आरोअइ उल्लासति । आढप्पइ आरभ्यते । एते धात्वादेशाः । ★आरालिउप० सूपकारपर्यायभवः । आरेइयं मुकुलिअं मुक्तं भ्रान्तं रोमाञ्चितं च । आवट्टिआ-आविअज्झा नववधू परतन्त्रा च । प्रत्येकं द्वयोरर्थः । आइप्पणं पिष्टं उत्सवागमे गृहमंडनार्थं सुधाच्छटा च । पिष्टातकमन्ये। आरंदरं अनेकान्तं संकटं च । आवडिअं संगतं सारं च । अब्भिडिअं संगतं 'समा अब्भिडं' (सि.हे.८/४/१६४) इत्यादेशात् । अत्र आलुंखइ दहति स्पृशते६३ च धात्वादेशः । इंदमहो कौमारः । कुमार्यां भव इतिव्युत्पत्तें । इंदोवत्तो इंद्रगोपः ।। इंदंगाई युग्मसंचारिणः कीटोः । उत्तुरिद्धी मत्तः । 'गर्च' इत्यन्ये । उच्चुप्पिर आरुढः । उद्धरिअं-उम्परियं द्वौ उत्खाते । उड्डहणो चौर । उम्वित्तालं निरन्तरस्वररुदितम् । ५६. आअम्बइ - डे. । ६२. आवडियं-मु. । आवेडियं-डे. । ५७. आअज्जइ - डे. । ६३. स्पृशति - सा. । ५८. अलिहिंइ - डे. । ६४. ईदगाई - सा. । ५९. आअछइ - डे. । आयंछइ - मु.। ६५. कीटाः - डे. । ६०. आरालिओ - सा.मु. । ६६. उवित्तालं - डे.सा. । ६१. आरेइअं - डे. । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तंपिउ उप्कंदोलो उम्मइअं उब्भालणं उज्झमणं पलायनम् । उच्छविअं शयनीयम् । उल्लु हो उब्भुआणं उंदुओ उत्तुहिअं उद्धरणं उवदीवं उइन्तणं उत्तरीयम् । उल्लसिअं उग्गहिअं‍ उल्लेहडो उवसेरं - खिन्नः । चलः । मूढम् । सूर्पादिना उत्पवनम् । अर्पेर्व्वमित्यन्ये । ततदुग्धाद्युच्छलनम् । दीर्घदिने । उखोटितम् । उच्छिष्टम् । अन्यद्वीपम् उद्धवउ-उच्चडिउ - उत्ताहिओ उव्वाहिओ- चत्वारोऽप्युत्क्षिप्तार्थाः । उद्धसियं उद्धवियं अर्थितम् । अनुसंधान - १६• 150 उवलयंट सलज्जम् । उत्थलियं गृहम् । उन्मुखगतमित्यन्ये । ७०. उत्तरिअम् - डे. । ७१. उग्गहियं - मु. ६७. उत्तम्मिउ-डे । उत्तम्मिओ सा । उत्तंपिओ मु. | ६८. अपूर्व - डे.सा. । ६९. उच्छंविअं - ७२. उभुआ सा. 1 ७३. उंदिरउ शिथिलस्थितिः । निपुणगृहीतम् । रचितमिति तु रचि - धात्वादेशः । लम्पटः । रतियोग्यम् । लघुशंख: । पा.सा. । आ. । उदुरउ पा.सा. । ७४. उच्चडिओ पा. । ७५. उत्ताहिउ - डे.सा. । ७६. उव्वाहिउ - डे.सा. 1 - ७७. उद्धविअं- पा. । ७८. उवलुअं पा. । ७९. उत्थलिअं सा. । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 151 उलुखंडो उल्मुकम् । उअक्कियं-उच्छंगिय द्वौ पुरस्कृतार्थौ । उरुमिल्लं-उरुसुल्लं द्वौ प्रेरितार्थौ । उअचित्तो अपगतः । उअउज्जो५ उपकारः । उअहारी दोग्ध्री०६ । उलंटियं संचूर्णितम् । उलहंतो काकः । ★उवहिया.९ चक्रधारा । उद्दिसिअं० उत्प्रेक्षितम् । उब्भासुअं गतशोभम् । उव्वहणं महानावेशः । उल्लरयं कर्पद्दाभरणम् । उक्कुरुडी९१ अवकरराशिः । उक्कुरुडो१२ रत्नादीनामपि राशिः । उच्छलिअं च्छिनत्वक् । उब्बिबलं कलुषर्जलम् । उद्धच्छिअं निषिद्धम् । उज्जणियं वक्रीभूतम् । उज्जीरिअं निर्भिर्त्सतम् । उज्जूरियं क्षीणम् । शुष्कमित्यन्ये । ८०. उल्मोकं - पा. । ८८. उलुहतो - आ. । ८१. उअक्किअं - सा. । ८९. ओवहिआ - सा. । ८२. उच्छंगिअं - सा. । ९०. उद्देसिअं - डे. । ८३. उरुमिल्लं - सा. । ९१. उकुरुडी - सा. । ८४. उरुसोल्लं - मु. । उरुमुलं - पा.सा. । ९२. उकुरुडो - सा. । ८५. उवउक्को - पा.सा... । ९३. कलुखजलं - सा. । ८६. दोग्धी - सा.डे. । ९४. उज्जारिअं - आ. । ८७. उलंटिअं - सा.डे. । ९५. उजूरिअं - डे. । उज्जूरिअं - सा. । ९६. क्षीणे - पा.सा.डे. । 111111111 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खंडियं" आक्रान्तम् । उच्छडियं चोरितं वस्तु । उज्जाणियं निम्नीकृतम् । । उवसग्गो मंदः । उप्फेटिअं उज्जगुज्जं उद्धच्छवी उप्फंकिया रजकी । उत्थितम् । उक्कासि उच्चारिअं गृहीतम् । उक्खणिअं कण्डितम् । उच्छुआरं संछन्नम् । उज्जोमिआ रश्मिः । - अनुसंधान - १६• 152 उल्लसियं उद्धसिय उच्छेवणं घृतम् । उच्वंपियं दीर्घम् । उप्पेहडं - उल्हसिअं उद्भार्थों । उज्जग्गिरंट औन्निद्रयम् । उच्छुरणं इक्षुवाट: । इक्षुरित्यन्ये । ३ 00 ३. उल्लसिअं - पा.सा. । ४. उद्भुसिय ५. उद्भुषित आ. । आ. । आस्तृतम् । स्वच्छम् । विसंवादितः । ९७. उक्खिडिअं - पा.सा. । उखंडिअं - डे. । ९८. उच्छोडिअं सा. । उच्छाडिअं पा.डे. । ९९. उप्फुटितअं - पा. । उफुटिअं - डे । उप्फुटियं - मु. । १००. उप्फेकिया- पा. डे । उप्फुंकिया- मु. १. उक्कासिअं - सा । उच्छित्ताअं - डे. । २. उत्थिअं - सा । पुलकितम् । शब्दस्तु 'उद्धुषित'शब्दभवः । ६. उच्चपिअं ७. उप्पेह पा. । ८. उज्जग्गिअं - पा.सा.डे. । ९. उन्निद्र्यम् - डे. । सा.पा.डे. । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 153 उम्हाविअं सुरतम् । उब्भावियं सुरतमिति तु रमेरुब्भावादेशात् । अत्र उप्फालइ कथयति । उल्लंड विरेचयति । उल्लालइ-उप्पेलइ उन्नमयति । उव्विलइ प्रसरति । उम्मछइ वंचैति । उग्घुसइ माष्टि । उल्लूड तुडति । उल्लुत्तइ१३ उत्क्षिपति । उत्थाइ आक्रामति । . उक्कुसइ५ गच्छति । उम्मत्थइ१६ अभ्यागच्छति । उद्भुमाइ७ पूर्यते । एते धात्वादेशाः । उण्णुइउ८ हुंकारो गगनोन्मुखस्य शुनः शब्दश्च । उव्वरिअं अधिकम्, अनीप्सितं निश्चितं तापो अगणितं च । उज्झरिअं९ काणाक्षिदृष्टम् विक्षिप्तं क्षिप्तं तिक्तं च । उव्वाडुअंर पराङ्मुखं सुरतं निर्मर्यादसुरतं च । उव्वाउलं गीतं उपवनं च । उरुपुल्लो२२ अपूपो धान्यमिश्रा च । १०. उव्विलइ - सा. । उव्वेलइ - मु.। १७. उस्तुमाइ- आ. । उत्थुमाइ - सा. । ११. उमच्छइ - पा.सा. । उम्मछइ - डे.। १८. उण्णुईउ - पा. । उणुईउ - सा. । १२. वंच्छति - सा. । १९. उज्झरियं - मु. । १३. उब्भुत्तइ - मु.। . २०. त्यक्तं च - मु. । १४. आक्रमइ - आ. । २१. उव्याडुयं - मु. । १५. उकसइ - आ. । २२. उरुफुल्ले - आ. । १६. उम्मछा - डे. । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 154 उव्विडिमो अधिकप्रमाणो निर्मर्यादश्च । उच्छंडिओ बाणादिना व्यथितः अपहृतश्च । उज्जंगलं हठो२५ दीर्घ च । उप्पिजलं सुरतं रजो अकीर्तिश्च । उव्वाहुलं औत्सुक्यं द्वेष्यं च । उण्णालिअं कृशमुन्नमितं च । ★उव्वेल्लरं खिल भूर्जघनरोमाणि च । उम्मच्छियं रुषितमाकुलं च । उडुहियं८ ऊढायाः कोप उच्छिष्टं च । प्राकृते द्वित्वमपि, तेन उड्डहियमित्यपि । उग्गाहिअं गृहीतमुत्क्षिप्तं प्रवर्तितं च । अत्र उस्सिकइ मुंचति च उत्क्षिपति च । उत्थंभइ३० रुणद्धि उत्क्षिपति चेति धात्वादेशौ । ऊणंदिरं आनन्दितम् ।। ऊसलिअं सरोमाञ्चम् । उल्लसितमिति तु उल्लसिधात्वादेशात् । ऊसाइअं३१ विक्षिप्तं, उत्क्षिप्तमिति तु धनपालः । ऊसाअंतो खेदे सति शिथिल:३३ । ऊसुक्किअं विमुक्तम् । ऊमुत्तिअं पार्श्वद्वयघातः । ऊसुंभियं५ रुद्धगलं रोदनम् । उल्लसितार्थस्तु उल्लसि धात्वादेशे सिद्धः । ऊसविअं उद्भ्रान्तं उर्वीकृतं च । २४. बलात्कारः - मु. । २९. उद्यहिअ - आ. । २५. उव्वाहलं - डे. । ३०. उत्थंघइ - मु. २३. उच्छंडिउ - सा. । ३१. ऊसाइयं - मु. । २६. उत्सालियं - मु. । ३२. ऊसायंतो - मु. । २७. खिल्ल भूर्य - आ. । ३३. सिथिलः - सा. । २८. उडुहिअं - आ. । ३४. ऊसिभिअ - पा.डे. । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 155 एकेक्कम अन्योन्यम् । एक्कणडो कथकः । एमिणिया५ यस्याः शरीरप्रमाणं सूत्रेण गृहीत्वा दिक्षु विक्षिप्यते आचारविशेषे सति सा एवमुच्यते । अत्र एक्कवई ३६रथ्येति 'एकपदी'शब्दभवः । एलविलो आढयः वृषभश्च । एक्कमहो निर्धम्मो३७ दरिद्रः प्रियश्चेति । ओइत्तणं परिधानम् । ओणुणउ३८ अभिभूतः । ओहाईउ२९ अधोमुखः । उ(ओ)लिप्पत्ती खड्झादोषः । ओहट्टिअं अन्यं प्रेर्य यत् करेण गृहीतम् । ओलावओ शेयनपक्षी । ओहडणी फलहकार्गला । ओलवणी२ नववधूः । ओलइणी ३ दयितीभूता । ओसंखिअं४ उत्प्रेषितम् । ओसरिआ अलिन्दः । ओआवलो.५ बालातपः । ओहाडणी पिधानी । ३५. एमिणिआ - सा. । ३६. रथेति - डे. । ३७. निर्धम्मो -- सा. । ३८. ओणुणओ-सा. । ३९. ओहाइओ-सा. । ४०. ओलावउ-आ. । ४१. कार्गला-सा. । ४२. ओलअणी-आ. । ओलयणी-मु. । ४३. ओलअणी-आ. । ओलयणी-मु. । ४४. ओसुंखि-आ. । ओसंखियं-मु. । ४५. ओआबलो - सा. डे. । ४६ बालतपः - डे. । ४७. ओडाडणी - डे. । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओआअवो" अस्तसमयः । ओट्टि चाटु | | ओअग्घियं - ओसिंघियं ४९ द्वौ घ्रातमित्यर्थे । अनुसंधान - १६ • 156 ओलइअं ५० अङ्गे पिनद्धम् । ओलंपैओ तापिकाहस्तः । ओहीरिअं उद्गीतम् । अवसन्नमित्यन्ये । निद्रार्थस्तु धात्वादेशः । ओल्लरिओ सुप्तः । अत्र ओरुम्माइ उद्वाति । ओहामइ ओलुंड ओसुक्कड़ ओग्गालइ रोमन्थयति ५५ । ओसर अवतरति । ओअंदर उद्दालइ आच्छिनत्ति । ५७ ५३ तोलयति । विरेचयति । जयति । ६० ओअग्गइ व्याप्नोति । ओल्हावइ आक्रामति । ओवासइ अव । ओअक्खड़ पश्यति । ओवाहइ २ अवगाहते । एते धात्वादेशाः । ४८. ओआअबो - डे. । ५६. ओरसइ - पा. । ४९. ओसिंघिअं-डे । ओसिंग्घिअं- सा । ५७. ओद्दालइ - मु. । ५०. ओलइयं - मु. डे. ५१. ओलुंपओ - आ । ५२. बोलयति - सा.डे. 1 ५३. ओलुंटइ-पा. सा. । ओलुंड-डे । ५४. ओग्गलइ - डे. । ५५. रोमन्थति - डे. । ५८. आच्छिन्नित्ति ५९. ओहावइ - मु. ६०. आक्रमति आ. । ६१. अवकाश्यते - आ. । अवकाशते - मु. । ६२. ओहावइ - डे. । - Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ at अनुसंधान - १६• 157 ओसव्विअं‍ गतशोभं अवसादश्च । ओहरिसो प्रातश्चंदनघर्ष [ण] शिला च । ओत्थरिओ आक्रान्त आक्रममाणश्च । ओसाअंतो जृम्भालसः सीदन् सपीङश्च । ओघसरो अनर्थो गृहाम्बुप्रवाहश्च । ओसरिअं अधोमुखं अक्षिनिकोच आकीर्णं च । ओइंपिअं - ओरंपिअं द्वौ आक्रान्ते नष्टे च । ★ ओसग्गिअं अभिभूतं केशादिपुञ्जीकरणं च । अन्यासैंक्तः तृष्णातुरः प्रवृद्धश्च । ओलेहडो ओवसेरं चंदनं रतियोग्यं च । ओहसिअं वस्त्र धूतं च । उपहसितार्थस्तु 'उपहसित' शब्दात् । ओसिक्खियं गतिव्याघातो अरतिनिहितं च । विनिपातनमसंभवदर्थसंभावनं च । ओहरणं अत्र ६७ ओवालइ च्छादयति प्लावयति चेति धात्वादेशः । यथा ओदी उक्कंदी (कृपतुला इति दे.श.को. पू. ४६ ) इल्लो एल्लो सर्व्वत्रेति ज्ञेयम् । तृणाद्युत्करः । निकरः । कतवारो कइअंको कक्ष (क्क) सारो दध्योदनः । कडअल्लो - कडल्लो द्वौ दौवारिके । कडअल्ली कंठः । ६३. ओसत्थिअं ६४. ओद्दंपियं ६५. कोशादि. - 'ओत्संयोगे' (सि.८ - १ - ११६), 'इत एद्वा' (सि. ८-१८५) इति सूत्रभ्यां वा पूर्वह्रस्वः । पा. । आ. । आ. । ६६. आज्ञासक्तः डे. 1 ६७. ओवलेइ - पां.सा. । ६८. ओकंदीउ डे. / Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 158 कद्दमिउ६९ महिषः । करमरी करयरी स्थूवस्त्रम् । कयरीत्यन्ये । कडत्तरं ___जीर्णं सूर्याधुपकरणम् । कच्छुरिअं इषितम् । . कणोवेयं उष्णोदकम् । उदकोपचाराद्युततैलाद्यप्युच्यते । कज्जउडो अनर्थः । कंटउच्ची कण्टकप्रोतः । कडिखंभो कटीन्यस्तो हस्तः । कट्याघात इत्यन्ये । करइल्ली ॥ग्रं-८००॥ शुष्कवृक्षः । कल्लविअं तीमितम् । विस्तारितमित्यन्ये । कराइणी शाल्मली तरुः । करयंदी मल्लिका । कंठकुंची कंठे वस्त्रादीनां बंधा५ । नाडीग्रन्थिरित्यन्ये । कक्खडंगी सखी । कडतला आयुधम् । कण्णछुरी गृहमोधा । कण्णोढि आ० नीरंगी । कंठमल्लं मृतप्रवहणं सामान्येन यानपात्रमित्यन्ये । कप्पडिअं दारितम् । कडंभुअं कुटकंठः । कुटस्येव कंठो यस्य स । कुंभग्रीवाख्यो भांडभेदः । ६९. कद्दमिओ - सा. । ७०. ईषितम् - पा.सा. । ७१. कणोवअं - मु. । ७२. कंडिखंखो - पा. । ७३. कट्ययातः - पा. । ७४. शाल्मिलितरुः - डे. । ७५. बंधः - पा.सा.डे. । ७६. करडंगी - सा. । ७७. कडुतला -पा.डे. । ७८. आयुधः - पा. । ७९. कणछुरी - आ. । ८०. कणोट्ठिआ - पा.सा.डे. । ८१. नीरङ्गिका - मु. । ८२. कप्परयं - मु.। Pain Education International Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 159 कणइल्लो शुकः । कइउल्लं स्तोकम् । कणेट्ठिआ३ गुंजा । कडइङ स्थपतिः । कग्घायलो किलाटाख्यः क्षीरविकारः । कण्णोढत्ती दत्तकर्णा या परवाक्यं गृह्णाति । कण्णाआसं-कणंबालं द्वौ करणा(D) भरणे । अत्र करंजइ भनक्ति । कम्मवइ उपभुंक्ते । एते धात्वादेशाः । कडुआलो घंटी८६ लघुमत्स्यश्च । कणइअं८७ आर्द्र कृतम् चित्रितं कणाकीर्णं च । कलयंदी पाटला, प्रसिद्धश्च । केऽपि पाटलायां कणयंदीत्याहुः । कावलिउ९ असहनः । कालवटुं९० धनुः ।। काणत्थेवो विरलाम्बुकणवृष्टिः । कालिंजणी तापिच्छलता । केऽपि कालिंजणं तापिच्छफलमाहुः । __ पुष्पमित्यन्ये । कायंधुओ-कायंचुलो द्वौ कापिंजलाख्ये पक्षिणि । कारकडो पुरुषः । किलिम्मिअं कथितम् । किमिरायं लाक्षारक्तम् । रुधिरकीयेद्वांततन्तूद्भवे तु 'कृमिराग'शब्दभवः । कीलणिया९५ कप्रत्थयाभावे कीलणी९६, रथ्या । ८३. कणेठिआ - पा.सा. । ९०. कालवडं - सा.। ८४. कडओ - मु.। ९१. पुष्फ - डे. । ८५. स्थपितः - सा.डे. । ९२. कारिंकस्त्रे - आ. । ८६. घंटा - आ.सा. । ९३. परुषः - पा.सा.डे. ।। ८७. कणइयं - सा. । ९४. किलिम्मियं - पा. । ८८. कलयदी - पा. । ९५. कीलणिआ -डे. । ८९. कावलिओ - सा. । ९६. कीलणा - पा. डे. । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 160 कुट्टयरी चंडी । कुसुमालो चोर । कुक्कुरुडो निकर । कुरुमाणं म्लानम् । कुसुंभिल्लो पिशुनः । कुडिल्लग्गं कुटिलम् । कुरुचिल्लं ग्रहणम् । कुसुमणं कुंकुमम् । कुडुच्चियं सुरतम् । कुच्छिमई गम्भिणी । . कुरुचिल्लो कुलीरः । कुल्लरिओ कान्दविकः । केलायइ समारचयतीति धात्वादेशः । कोसलियं प्राभृतम् । कोसालिआ कोसल्लिअमित्यन्ये । कोत्तलंका मद्यपरिवेषणभाण्डम् । कोल्हाहलं चिचीफलम् । कोलाहलो खगरुतम् । तुमुले तु संस्कृतसमः । कोंटलिआ श्वावित्प्राणी । कीट इत्यन्ये । कोक्कासि विकसितम् । कोज्झरियं आपूरितम् । कोआसइ विकसति । ९७. कुकुरुडो - पा.सा.डे. । ४. कुरुचिल्लो - डे. । ९८. म्लान: - डे. । ५. कुल्लुरिउ - पा.डे. । कुलरिओ - मु. । ९९. कुसंभिलो - पा.डे. । ६. कोसलिअं - पा.सा.डे. । १००. कुडिल्य - पा.सा.डे. । ७. कोसल्लियं - सा. । कोसल्लि - पा. । १. कुसुमणं -पा. । ८. कोक्कासियं - मु. । २. कुडुछिअं - पा. । कुटुंबिअं - सा. । ९. कोज्झस्अिं - डे. । ३. गम्भिणी - डे. । गर्भिणी - मु. । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोदम १० खर्वडिअं खट्टी खलइअं खडहडी १५ खंधीवा खल्लड़ेंअं खारंफिडी ★ खारइअं खुखुणउ खड्ड्रउ १८ खवलिउ खरहिउ १९ अत्र क्षुभ्यतीति धात्वादेशः । खउरइ खम्मक्खमो संग्रामो मनोदुक्खं च । खरडियं रूक्षं भग्नं च । खोसलउ २२ गंधलया astest गणसमो - अनुसंधान - १६ • 161 रमत (ते) इति धात्वादेशौ ॥छा | स्खलितम् । खधैमंसो बाहुः । सा. । रिक्तम् । तरुमर्कट । अत्युष्णजलधारा । संकुचित: । कुपित: । पौत्रः । मु. । १०. कोट्टमइ - मु. । ११. खडविअं डे. । १२. सवलितम् - पा. सा. । १३. खंघइट्ठी - डे. । खंघयद्धी १४. खंघमांसो १५. खडहली १६. मर्कट: १७. खंधीधा संकुचितं प्रहृष्टं च । गोधा । प्रतिफलितम् । घ्राणैशिरा ॥छ । दन्तुरः ॥छा | नासा २४ । व्रजनिर्घोषः । गोष्ठीरतः । सा. । डे. । खडहली - सा. । सा. । १८. खड्ड्ओ १९. खरहिओ पा. । पा. । २०. खलड्यं २१. प्राणशिरा - डे. । २२. खोसलओ २३. गंध आ २४. नाशा २५. गड - पा.सा. । - - सा. । डे. । डे. । पा.सा.डे. Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 162 गल्लफोडो२६ उमरुकः । अत्र ★गंधुत्तमा सुरेति संस्कृतात् । ★गंठिच्छेओ२७ ग्रंथिच्छेदकशब्दात् । . गहवई २८ ग्राम्यः शशी च । 'ग्रहपतित्वं' रवावेव रूढं, न शशिनि। ततो नाऽयं 'ग्रहपति'शब्दात् । गंजोल्लिअं९ रोमाञ्चितम् । हासाथ गिलिगिलायितमिति लोकरुढं वचः। गामउडो-गामगोहो द्वौ ग्राममुख्ये । गामहणं ग्रामस्थानम् । गामरोडो च्छलेन ग्रामभोक्ता ॥छ।। गुंजेल्लिअं३२ पिंडीकृतम् । गुत्तण्हाणं पितृजलदानम् । अत्र गुज्झहरो रहस्यभेदीति 'गुह्यहर'शब्दात् । गुललइ चाटु करोति । गुंजल्लइ उल्लसति ।। गुम्मडड् मुहयति । एते धात्वादेशाः । गुम्मइउ संचलितः स्खलितो विघटितः पूरितो मूढश्च । घरयंदो आदर्शः । घणवाही इंद्रः । घरघंटो चटकः । घुरघुरी भेकः । घुसुणिअं२६ गवेषितम् । २६. गल्लप्फोडो - सा. ।। ३२. गुंजिल्लिअं - आ. । गुंजेल्लियं - मु. । २७. गंठिछेउ - डे. । ३३. गंजुलइ - पा. डे. । २८. गहवइ - पा. । ३४. गुम्मइओ - मु. सा. । २९. गंधोल्लिअं - मु. । ३५. घुरुघुरी - पा.डे.सा. । ३०. गिलाइतमिति - डे. । ३६. घुसुणीअं - पा.डे.सा. । ३१. छलेन - पा.डे. । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घुंघुरुँडो घुसलइ चक्खुडुणं प्रेक्षणीयम् । चंचप्परं असत्यम् । मयूरः । कार्तिकेयः । आटोपः । सर्पविशेषः । चंदडल्लो चक्करो चडिया ४०. चक्कुलेंडा चरुल्लेवं चचुप्पइ चमढइ ४२ चक्क मोड़ चालवासो चारणॐ ४ ३ ४४ चारवाउ ४ अनुसंधान - १६• 163 नाम । चक्खडिअं जीवितव्यम् । चंदट्ठिया अत्र उत्करः । मथ्नातीति धात्वादेशः । - भुजशिखरम् । 'सूचक' इत्यन्ये । शिरोभूषणभेदः । ग्रंथिच्छेदकः । ग्रीष्मानिलः । यान्तोऽयम् । चिलिच्चिलं- चिलिच्चीलं द्वौ आर्द्रे । परितोषितः । गुञ्जा । मधुपटलम् । तिणशमित्यन्ये । अपयति । भुंक्ते । भ्रमति इति धात्वादेशाः । चित्तठि ४५ चिरिहिट्टी. चितैदा चिफुल्लणी स्त्रीणां अद्धौरुकवस्त्रम् । ३७. घुघुरुडो - पा.डे.सा. । ४३. चारणओ पा. । ३८. प्रेषणीयम् - पा.डे. । ३९. चडिआ डे. सा. । ४०. चक्कुलुंडा - आ. । चक्कुलंडा डे. सा. । ४६. चित्तादाऊ - आ. । चित्तदाउ ४९. चंदट्ठिआ - डे. सा. । ४४. चारवाओ - मु. । ४५. चित्तठिओ - पा. मु. । ४२. चक्कमइ - मु. - मु. । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 164 चिरिचिरा-चिरिचिरा द्वौ जलधारायाम् । चिंचइउ४८ चलितः मंडने तुं मंडि-धात्वादेशः । चिद्दविउ५० निर्वाशितः । अत्र चिंचिल्लड मण्डयतीति धात्वादेशः । चुप्पाल. गवाक्षः । चुप्पलियं नवरक्तं वस्त्रम् । चुल्लेडउ५५ ज्येष्ठः । चुण्णइउ५५ चूर्णाहतः५६ । चुंचुमाली अलसः । चुंचुलिअं अवधारितं सतृष्णता च । चुंचुणिओं च्युतं प्रतिरवो रमणमल्लिका मुष्टियूतं यूकोवलितं च । प्रतिरवश्च गोष्टी । प्रतिरव इति विशेषणं ज्ञेयम् ॥छ।। चोप्पड़ म्रक्षयतीति धात्वादेशः । ★छगलउ सप्तच्छदः । छडक्खरो स्कन्दः ।। छिक्कोलिअं तनुः । छिप्पोलुयं पुच्छम् । छिक्कोअणो असहनः । छिहंडउ६३ दधिशिर । ४७. चिरचिरा - पा.डे.सा. । ५५. चुण्णइअं - डे. । ४८. चिंचइओ- पा. । ५६. चूर्णाहितः - डे. ।। ४९. मंडिते तु - डे. । ५७. चुंचुलियं - पा.सा.डे. । ५०. चिद्दविओ - पा. सा. । ५८. चुंचुणीआ - पा.सा. । ५१. निर्नाशितः - पा. । निर्नासितः डे.सा.। ५९. यूकाचचुलितं च - डे. । ५२. चुप्पालओ - मु. । ६०. छिक्किलियं - पा.सा. । ५३. चुप्पलिअं - डे. । ६१. छिप्पालुअं - आ. । ५४. चुल्लोडओ - पा. । चल्लोडउ - डे. । ६२. मुर्छा - .. । तुर्छा - सा. । ६३. छिहंडओ - पा. । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 165 छिण्णोद्भवा दूर्वा । छिक्कोट्टली ६५अंहिरवः पादाभ्यां धान्यमलनं, गोमयखंडं च । छिप्पंदूरं गोमयखण्ड, विषमपथश्च । छुरमर्दी -छुरहत्थो द्वौ नापिते । छुद्दहीरो शिशुः शशी च ॥छ। छीन्भाइत्ती अस्पृश्या६९ वेश्या च । जहाजाअ जडः । जवरओ७० यवाङ्कर । जंघामउ-जंघालुओ द्वौ जंघालौ । जलनीली सेवालम् । जच्छंदउ७१ स्वच्छन्दः । जक्खरत्ती दीपालिका । जण्णोहणो २ राक्षसः । जंघाच्छेओ७३ चत्वरम् । जगडिउ विद्रावितः । जंभणउ यथेष्टवक्ता । जंपिच्छउ५ यथादृष्टमभिलषिता । अत्र जअडइ त्वरत इति धात्वादेशः । जणउत्तो ग्रामणी: विटश्च । जच्चंदणं अगरु कुङ्कुमं च । ६४. छण्णोद्भवा - सा. । ७१. जच्छंदओ - पा. । ६५. अहिरवः आ. । ७२. जणोहणो - पा. । ६६. छुरमद्दी - पा. । छुरमड्डी - मु.। ७३. जंघाच्छेउ - पा. । जंघाछेउ - डे.। ६७. छुदहीरो - आ. । ७४. विद्रापितः - आ. । ६८. छोच्चाइत्ती - सा. । ७५. जंपिच्छओ - पा.सा. । जंपिछउ - डे.। ६९. अस्पृशा द्वेश्या च-सा. । अस्पृश्या द्वेष्या च-डे. । ७०. जवरउ - आ. । जठरओ - सा. । ७६. अगुरु - डे. । ७६ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 166 जिण्णोद्भवा दूर्वा । जुर्जुरुडो अपरिग्रहः । जुअलिअं द्विगुणितम् । जुरेमिलं गहनम् । जूरमिल्लयमिति गोपालमते । अत्र जूरवइ वंचयतीति धात्वादेशः । जेमणयं दक्षिणमंगं हस्तादि । जोइंगणो इंद्रगोपः । जोण्णलिआ जोवारी । झैटलिया चंकमणम् । झल्लुसियं-झलुंकियं द्वौ दग्धौ । झंकारियं - झंखरियं द्वौ अवचयने । झिंल्लिरिआ चीही९ मशकश्च । जूसरिअं१० अत्यर्थं स्वच्छं च । झोंडलिआ रासकसदृशी क्रीडा । टसरोठं शेखरः । टट्टयाँ तिरस्कैरिणी । भारिको गुरुरित्यर्थः । करालकर्णः । टंबरउँ टप्पर ७७. जिण्णोभवा - पा.डे. । ८७. झंखरिअं - डे. । ७८. दूर्वा - पा.सा.डे. । ८८. झल्लिरिआ - डे. । ७९. जंजुरुडो-पा. । जुजुरुढो - डे.। ८९. चीरी मशकश्च-पा. । चीत्ती मशकश्च-डे. । ८०. जुयलियं - मु. । ९०. झसरिअं - डे. । झसरिअ - सा. । ८१. द्विगुणिअं - पा.डे. । ९१. टसरोटं - डे. । ८२. जुरुमिल्लं - मु. । ९२. टट्टइआ - सा. । ८३. जोणलिया-पा. । जोण्णलिया-सा. । ९३. तिरस्किरणी - सा. । ८४. झंटलिआ - मु. ।। ९४. टंबरओ - सा. । ८५. झल्लुसि - डे. । ९५. टप्परओ - सा. । ८६. झलुंकिअं - डे. । ९६. करालकर्ण - डे. । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 167 डिडिल्लिअं७ खलिखचितं वस्त्रम् । स्खलितहस्त इत्यन्ये । डीणोवयं उपरि । ढंढरि कर्दमः । ढंढसिङ ग्रामयक्षः । ग्रामवृक्ष इत्यन्ये । अत्र ढंढल्लइ भ्रमति । ढंढोलइ गवेषयतीति धात्वादेशौ । णहम्मुहो घूकः । णवलया या पत्युरभिधानमकथयन्ती युवतिजनैः पलाशलतया हन्यते सैवमुच्यते नियमविशेषश्च । णवरिअ सहसा । णमसियं उपयाचितकम् । णवसिंयमित्यन्ये । णहवल्ली विद्युत् । णव्वाउत्तो धनी । नियोगिपुत्र इत्यन्ये ॥छा। णाहिदामं उल्लोचमध्यदाम । णालंपियं आक्रन्दितम् ॥छ। णिमासिअं श्रुतम् । णियोणिया क्षेत्रकुतृणोद्धरणम् । णिब्भसियं निर्गतम् । णिप्फरिसो-णिद्धंधसो-णि वेरिसो त्रयो निर्दये । णिव्वेरिसो अत्यर्थेऽपि । ९७. डिंडिल्लियं - पा.सा.डे. । ५. णमसिअमित्यन्ये - सा. । ९८. डीणोवेयं - आ. । ६. णवहल्ली - पा.डे. । ९९. ढंढरिओ - पा.डे. । ७. णालंपिअं - सा. । णालंबिअं - या. । १००. कर्दमः - पा.सा. । ८. णिसामिअं- मु. । १. ढंढसिओ - पा. । ९. णिआणिया-पा. । णिआणिआ - डे. । २. णहमुहो - पा.सा.डे. । १०. णिल्लसियं - मु. । ३. युवतिर्जानैः सा. । युवतिानेः - आ. । ४. उपयाचितम् - डे. । ११. णिव्वरिसो - पा.सा. । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 168 णिद्धमाउँ अभिन्नगृहः । णिअरिअं निःकरेण१३ स्थितम् । णियंधण-णिसणं द्वौ वस्त्रे । णिद्धमणं गृहजलश्रोतः । णिअक्कलं वर्तुलम् । णिव्वमिअं६ परिभुक्तम् । णिव्वहणं विवाहः । णिक्खुरिअं अदृढम् । णित्तिरडी८ निरन्तरम् । णिवच्छणं अवतारणम् । णिस्सरियं स्तम् । अत्र णिअच्छइ पश्यति । जिरप्पइ तिष्ठति । णिम्माणइ- णिम्मवइ निम्मिमीते । णिज्झड क्षीयते । णिहुवइ कामयते । णिआइ कोणेक्षितं करोति । णिरिग्घड निलीयते । णिव्वडइ पृथक् स्पष्टो वा भवति । णि?हइ निष्टंभं करोति । णिव्वोलइ मन्युना ओष्ठं मलिनं करोति । णिच्छंछइ मुञ्चति । १२. णिद्धमाओ - सा. । १८. णित्तिरिडी - मु. । १३. निःकरेण - डे. । १९. स्रस्तम् - मु. । १४. णिअंधणं - पा. । २०. णिच्छइ - सा.डे. । १५. णिअसिणं - पा. । णियंसणं - डे.। २१. काणेक्षीतं - डे. । १६. णिव्वमिवं - पा.सा. । २२. णिरग्घइ - डे. । १७. णिप्फुरियं-सा. । णिप्फरिअं-डे. २३. णिहहइ - डे. । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 169 णिउडुइ मज्जति । णिच्छलइ-णिच्छोडे-णिल्लूरइ छिनत्ति । णिसुइ भारोन्नमति । णिड्डअइ क्षरति । णिट्टई विगलति । णिम्महइ गच्छति । णिल्लसइ उल्लसति । एते धात्वादेशाः । णिहिअं निष्ठ्यूतम् । णिव्व"लअं प्रविगलितं जलधौतं विघटितं च । णिउक्कणो काको मूकश्च । णिहेलणं गृहं जघनं च । अत्र, णिव्वलेइ२९ दुक्खं मुञ्चति निष्पद्यते क्षरति च । णिव्वई दुक्खं कथयति छिनत्ति च । णिहोई निवारयति पातयति च । णिव्वहइ गच्छति पिनष्टि नश्यति च । एते धात्वादेशाः । णीसंपायं श्रान्तजनपदम् । णीहरिअं३३ शब्दः । णीसीमिउ३४ निर्वासितः । णीलकंठी बाणवृक्षः । २४. णिच्छलइ - पा. । ३१. णिहेड - डे. । २५. णिज्झोहइ - पा.सा.डे. । णिज्झोड - मु. । ३२. तुटति - आ. ।। २६. णिगृह - डे. । ३३. णीहरियं - डे. । २७. णिवलिअं - डे. । णिव्वलियं - सा. ३४. णीसीमिओ - सा. । २९. णिवणेई - पा. । ३५. निर्वासितः। ३०. णिद्ध - सा. । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3७ अनुसंधान-१६ • 170 णीसणिआ निःश्रेणी । णीऔरणं वलिघटः । णीलुक्कड़ गच्छति । णीरंजइ भनक्ति। णीम्महिंअं निर्गतमिति तु हम्मिधातोः । णीलुंछड् णिष्पतत्याच्छोटयति च । णीरवइ बुभुक्षते आक्षिपति चेति धात्वादेशाः ॥छा। णेवच्छणं अवतारणम् ।। णेड्डुरिआ भाद्रपदोदज्वलदशम्यां कश्चिदुत्सवः ॥ठा। णोल्लईआ चंचुः । तंबरती गोधूमेषु कुंकुमच्छाया । तरवट्टो प्रपुतोटः । तडवडा आउलिवृक्षः । तंबकिमी इंद्रको(गो)पः । तणसोल्ली मल्लिका । तत्तुडिल्लं सुरतम् । तणरासी प्रसारितम् । तलप्फलो शालिः । तडमंडो क्षुभितः । तंतुक्खोडी तुरिकातरियव्वं उडुपः । तद्दियसं अदूरविप्रकर्षात् । 'तद्दियसिअं' तद्दिअहमित्यपि । अनुदिवसम् । तहल्लिआ गोवाटः । ३६. णीयारणं - पा.डे. । ४२. तंतुडिलं - डे. । ३७. णीम्महीअं- सा.डे. । ४३. तडमुडो - डे. । ३८. निष्पत्या - डे. । ४४. उडुपतः डे. । ३९. बुभुक्ष्यते - पा. । ४५. तहिअसिअं - पा. । ४०. णोलइआ - पा.सा... । ४६. तद्दियमित्यपि - पा. । ४१. प्रपुत्ताट: - पा.डे. । प्रपुन्नाटः - सा. । ४३ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 171 तडवइ तनोतीति धात्वादेशः । तलवत्तो कर्णाभरणभेदो वराङ्गं च ॥छ।। तालहलो शालिः । ताडिययं रोदनम् । तारत्तरो मुहूर्तः । तामरसं जलपुप्फम् । तालप्फली दासी ॥छ। तित्तिरियं स्नानाम् । तिमिरच्छो करंजद्रुमः ।। तिमिच्छाहो पान्थः । 'तिमिच्छइंउ' इत्यन्ये । तिमिगिलो मीनः । मत्स्यविशेषे तु संस्कृतसमः । तिक्खालियं ५१ तीक्ष्णीकृतम् । तिरोवई वृत्यन्तरितः । तिरिडियं तिमिरयुतं विचितं च ॥छ।। रञ्जितम् । तेअवइ प्रदीप्पते इति धात्वादेशः ॥छ।। तोमैरिउ शस्त्रप्रमार्जकः ॥छ।। थवइल्लो प्रसारितोरुद्वैयोपविष्टः । थिरणामो चलचित्तः । थिरसीसो निर्भयो निर्झरो बद्धशिरस्त्राणश्च ॥छा। थुड्डेहीरं चामरम् । थुडुंकिअं ईषत्कोपमुखसंकोचो मौनं च ॥ ४७. ताडिअयं - मु. । ५२. तोमरिओ - पा.।। ४८. जलजपुष्पं - पा.सा. ।। ५३. ०रुद्रयोपविष्टः - डे. ' ४९. तिमिरिच्छो - आ. । ५४. थुड्डहीरं - आ. । थुडहीर - सा. । ५०. तिमिच्छउ - पा.डे. । ५५. धुंडकिअं - आ. । ५१. तिक्खालिअं - पा.सा. । तुच्छइयं Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 172 थूलघोंणो सूकरः । थेरासणं पद्मम् । थेवरियं ५८ जन्मोत्सवतुर्यम् । थेणिल्लियं हृतं भीतं च ॥छ।। दयाइयं रक्षितम् । दडवडो धाडी । दहिउप्पं नवनीतम् । दयावणो दीनः । दवहुत्तं ग्रीष्ममुखम् । दहित्थारो दधिशेरः । 'दहित्थरो' इत्यन्ये । दहवोली स्थाली । दरवल्लो-दअच्छरो द्वौ ग्रामेशे । दरुम्मिलं घनम् । दरमत्ता हठः । दरंदरो उल्लासः । दहिमुहोकपिरित्यन्ये । ★दव्वीयरो सर्प इति 'दीकर'शब्दात् । दक्खवइ६४ दर्शयतीति धात्वादेशः । दारद्धंतो पेट । दादलिआ अङ्गलि:६५ । दिअलिउ मूर्खः । दियाहमो भासपक्षी । ५६. थूलघेणो - डे. ।। ६२. दवीअरो - डे.। ५७. थरासणं - आ. । ६३. दव्वीकर - डे, । ५८. थेवरिअं - डे. । ६४. दक्खवई - डे । ५९. दधिशिरः - पा. । दधिसरः - मु.। ६५. अङ्गली: - डे. । ६०. दहबोली - डे. । ६६. दिआहमो - पा.डे. । ६१. दरुमिल्लं - डे. । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दियँसियं दियहत्तं दियधुत्तो ★ दिवाइती दीहजीहो दुहावइ दुणियत्थं दुच्चंबालो दुच्छंडि दूणवेढं देवउप्कं दोहासलं अनुसंधान - १६ • 173 सदाभोजनम् । अनुदिनमित्यन्ये । पूर्वाह्नभोजनम् । शंख: । दुणिक्खित्तो दुश्चरित्रः । दुर्दश इत्यन्ये । दुंदुमिणी रुपवती । गलगज्जितम् । दुंदुमिअं दासी । दुल्लसिया ६९ दुरंदरं दुक्खोर्त्तीर्णम् । दुद्धोल्लणी या दुग्धापि दु । दुरौलोओ दुअक्खरो षण्ढः । ध्वान्तम् । केशबन्धः । दुम्मत्तउ दुम्मणी कलिशिला स्त्री । दुंबवत्ती नदी । दुगुच्छइ - दुगुच्छइ जुगुप्सते । काकः । चंडि(डा ) ल इति 'दीवाकीर्ति 'शदात् । छिनत्तीति धात्वादेशाः ॥ ९०० ॥ जघनं, जघनवस्त्रं च । कलिरतो दुश्चरितः । कुर्कशभाषी च । दुर्ललितो अशक्यं तडागश्च ॥ पक्वपुष्पम् । कटीतटम् । मु. । ६७. दिअसिय ६८. दिअहुत्तं मु. ६९. दुल्लसिआ - डे. । ७०. दुरालेउ - डे. । ७१. दुम्मत्तओ - सा.मु. । ७२. दुच्चट्ठिउ - डे. । ७३. दुविदग्धाश्च ७४. दूणवेढं - पा. । ७५. देवउप्पं - डे. पा. । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .७८ अनुसंधान-१६ • 174 दोसाणिअं७६ निर्मलीकृतम् ॥छ।। धन्नाउसो आशीर्वाद्यमानः । धाँउला आशीरित्येके । धंसाडिउ व्यपगतः । मुक्तार्थस्तु मुचिधात्वादेशः ॥छ। धाणूरियं०९ फलभेदः । धारावासो मेघो भेकश्च ॥छ।। धुअगाउ भ्रमरः । धुंधुमारा इंद्राणी । धुक्कुद्धअं उल्लसितम् ॥छ।। धूमसिहा नीहार । धूलीवट्टो अश्वः । धूमदारं गवाक्षः । धूमद्धउ८० तडागो महिषश्च । पसाइया पुलिंदिर शिरः पर्णपुटम् । परिअली स्थालम् । पसरेहो किञ्जल्कः । परिउत्थो प्रोषितः । ___ज्या । प्रतिश्रुतिवाची तु 'प्रतिश्रुत२'शब्दात् । पच्चवरं मुशलम् । ★पयहरो निकर । पलहियं८३ परियट्टो रजकः । पडिसारो पटुता । पटुरित्यन्ये । पडिच्छउ समयः । पलिहस्सं-पलिहाउ द्वौ ऊर्ध्वदारुणि । ७६. दोसाणियं - डे. । ८१. पुलिंद - पा.डे. । ७७. धन्नाउला - पा. डे. । ८२. प्रतिश्रुति - डे. । ७८. दंधाडिउ - आ. । ८३. पलहिअं - सा. । ७९. धाणूरिअं - डे. । ८४. पडिच्छओ - मु. । ८०. धूमद्धओ - सा. । विषमम् । - - - Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवई पंचंगुली पडसाउ ८५ पंफुल्लिअं ८६ गवेषितम् । चुल्लीर्मूलम् । पडियरो ★ पखेयं पडित्ती पडिसूरो- पडितं त्रयः प्रतिकूले । पडिसंतं श्रान्तमित्यन्ये । पदापतन । अपूपः । इंद्रपुत्रो जयन्तः । लाक्षारक्तम् । पल्लवाकारार्थस्तु तेनैवाचारक्लि (क्वि)बन्तेन पहइल्लो पइहंतो पल्लविया ११ - सेना | एरंडवृक्षः । घर्घरकण्ठः । सिद्धम् । पsिहत्थी वृद्धिः । पsिहत्थो - पडिक्कर द्वौ प्रतीकारे । पsिहत्थो वचनमिति सातवाहनः । पंडवियं ९३ जलार्द्रम् । पत्थरि ९४ पल्लवः । पक्खडिअं" प्रस्फुरितम् । पलिहउ ९६ मूर्खः । पडित्थिरो पडिवेसो पचत्तरं ८५. पडओ ८६. पंफुल्लियं - मु. ८७. पडिअरो पा.सा.डे. । ८८. चुल्लमूलम् - डे. । ८९. परिसंतं ९०. जेयं आ. । आ. । ९१. पल्लविअं - डे. सा. । ९२. अम्लाक्षारक्तं सा. । अनुसंधान - १६ • 175 - पा.सा. । सदृशः । विक्खेवः । चाटु | ९३. पंडविअं ९४. पत्थरिओ - सा. । ९५. पक्खडियं ९६. पलिहओ ९७. पडित्थरो ९८. विक्षेपः - मु. ९९. पवत्तरं सा. । सा. । - मु. आ. 1 सा. । पवरतं - डे. । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 176 परिहणं परिधानम् । परिहट्टी आकृष्टिः । पडिच्छिया प्रतीहारी । चिरप्रसूता महिषीत्यन्ये । पफिडियं प्रतिफलितम् । पडोहणं गृहपश्चिमांगणम् । पडुवत्ती-पडिसारी द्वौ जवनिकायाम् । पसेवउ २ ब्रह्मा । पडिवाहो दुविनयः । पद्रिसंगं ककुदम् । पंडरंगो६ रुद्रः । पक्कागाहो मकरः । परिलिउ लीनः । 'परियलो' लीन इत्यन्ये । पडिच्छन्दो मुखम् । पच्छेणयं पाथेयम् ।। पच्चुर्धारो-पच्चोवणी संमुखागमनं क्रियाशब्दावेतौ । तेन संमुखागते - पच्चुद्धरिओ-पच्चोवणिओ इत्याद्यपि । पच्चुहियम् प्रस्तुतम् । पडच्चरो श्योलप्रायो वियदिः । परिहाओ१३ क्षीणः । परिच्छूढो उत्क्षिप्तः । पडिक्खरो क्रूर । १००. परिहाणं - सा. । १. पडिच्छाया - डे. । २. पसेवओ - पा.सा. । ३. परिवाहो - मु. । ४. पडिसंगं - पा.सा. । ५. कंकुदं - पा.सा. । ६. पंडरंगा - डे.। ७. पक्कग्गामहो - पा. । ८. परिलिओ - मु. । ९. पच्चद्धारं - पा. । १०. पच्चुद्धरिउं - सा. । ११. पेच्चुवणिउ - डे. । १२. शालप्रायो वादिः - आ. विना. । १३. परिहाउ - डे. । १४. परिच्छूढो - पा.सा.डे. । . Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६. 177 परिवासो५ क्षेत्रश। पयट्टिओ प्रवत्तितः । पहोइयं पर्याप्तम् । प्रभुत्वमित्यन्ये । पल्लावायं क्षेत्रम् वालवायमिति गोपालः । पंचावण्णा-पयवेवण्णा द्वौ पंचाधिकपंचाशति । पप्फोर्डिअं-पक्खोडिअं द्वौ निर्झटिते । परभाओ२२ सुरतम् । पडियली२३ त्वरितः । पडहत्थो२४ पूर्णः । पडिखधं-स्त्रियां पडिखंधी५ जलवहनं इत्यादि । मेघ इत्यन्ये । पवरंगं शिरः । पइट्टाणं नगरम् । पसुहत्तो वृक्षः । परिहालो जलनिर्गमः । पंगुरणं 'प्रावरण'शब्दात् । पज्जइ कथयति । पव्वायइ म्लायति । पल्हत्थइ विरेचयति । पलावइ नाशयति । पणामइ अर्पयति । पयरइ-पम्हुहइ स्मरति । पयल्लइ प्रसरति । १५. पडिवासो - पा.डे. । २२. परभाउ - डे. । १६. पयट्टिओ - पा. । पयडिउ - सा. । २३. पडियल्ली - .. । १७. पल्लवायमिति - पा.सा.डे.मु. । २४. पडहस्तो -डे. । १८. पंचावणा - पा. । २५. पडिखंधा - पा. । १९. पणपन्ना - पा. । २६. पइठाणं - पा. । २०. पप्फोडियं - सा. । २७. पइइ - सा. । २१. पक्खोडियं - पा. । २७ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ अनुसंधान-१६. 178 पहलइ घूर्णते । पण्णाहइ मृनाति । पड्डुहइ क्षुभ्यति । पच्चारइ उपालभते । पच्चड्डुइ-पच्छंदइ-पदअइ गच्छति । पलट्टइ-पल्हत्थइ पर्यस्यति पउलाइ- पचति । पज्झरइ-पच्चडइ क्षरतीत्थादयो धात्वादेशाः । पइरिक्कं विशालं, एकान्तं, शून्यं च । परिहत्थं पटुर्मन्युश्च । पडिसिद्धं भीतं भग्नं च । पयलाओ हरः सर्पश्च । परिवुतो निषिद्धो भीरुश्च । पयड्डणी प्रतीहारी, आकृष्टिश्चिरप्रसूतमहिषी च । परियडी वृतिर्मूर्खश्च । पहेयणं भोज्योपायनं उत्सवश्च । (पहेणग इति दे.श.को.) । पव्वालइ प्लावयति-च्छौंदयति च । पयल्लइ शिथिलीभवति लम्बते च । पम्हुसइ विस्मरति-विमृशति-प्रमुष्णाति च । पक्खोडइ विकोशयति-शीयते च । पलोट्टई प्रत्यागच्छति पर्यस्यति च । पडिसाइ शाम्यति-नश्यति चेति धात्वादेशाः ॥ठा। पाडिसारो पटुता । पाडवणं पादपतनम् । २८. पणाहइ - पा. । पण्णाडइ - मु.। ३३. छादयति च - पा. । २९. पर्यष्यति - आ. । ३४. प्रमशति - डे. सा. । ३०. पउल्लवइ - आ. । पउलइ मु. । ३५. प्रपुष्णाति - आ. । ३१. परिब्भंतो - मु. । ३६. पलेट्टइ - पा. । ३२. पयड्डणी - पा. । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 179 पांडविअं३७ जलार्द्रम् । पाडच्चरो आसक्तचित्तः । चौरार्थस्तु ‘पाटच्चर' शब्दभवः । पाणाअउ३८ श्वपचः । पासणिओ-पासाणिओ द्वौ साक्षिणि । पाउग्गिओ३९ द्यूतकारयिता । पाडिसिरा खलीनयुक्ता । . ★पाहुडुओ१ प्रतिभूः । पारिहत्थी माला । शिरोमाल्यमित्यन्ये । पाउरणी कवचम् । पासावउँ-पारावरो द्वौ गवाक्षे । पाडिअज्झो यः५३ पितृगृहात्पतिगृह वधूं नयति । पाडिअग्गो-पारुअग्गो द्वौ विश्रामे । पारंपरो राक्षसः । पारुअल्लो पृथुक अल्पष इत्यर्थः । पालीहम्मं वृत्तिः । पारुहल्लं मालीकृतम् । पालीबंधो तटाकः । *पार्डिअक्कं एकं एकं प्रतीति 'प्रत्येक शब्दस्यादेशः । पारिहट्टी प्रतीहारी । अवृष्टिश्चिरप्रसूता महिषी च । पाडिसिद्धी स्पर्धा सदृशः समुदाचास्च । पांडुगोरी निर्गुणो मद्यासक्तो दीर्घदृढकृतवेष्टना वृतिश्च ॥छ। पिंडरयं दाडिममित्यन्ये । पिंजिययं विधुतम् । ३७. पांडिवियं - पा. । पांडविषं - आ. । ४३. यं - डे. । ३८. पाणासओ - सा. । ४४. अल्फष - पा. । अभ्यूष - डे. । ३९. पाउग्गिउ - पा. । ४५. पाडियक्कं - पा.सा. । ४०. पाडिशिरा - आ. । ४६. एक्कं एक्वं - डे. । ४१. पाहुडुउ - पा. । पाडुहुओ - मु.। ४७. आकृष्टि - पा. । ४२. पासावओ - पा. । ४८. विधृतम् । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिंजुरुंडो द्विजभारण्डपक्षी । यत्किंचित्यठितम् । पिप्पडिओ पिहो अरो ★ पिहू रोमा पिसुणइ पीडरई पुरोहडं अनुसंधान - १६ • 180 पुण्णवत्तं पुडइयं - सपुंडइअं द्वौ पिंडीकृते । पुआइणी पिशाचगृहीता । उन्मत्ता दुःशीला चेत्यन्ये । पुरुहूओ घूक: पुणी नलिनी । 'पुटकिनी' शब्द संस्कृते केऽपि बघ्नन्ति । पुलासिउ५ अग्निकणः । पश्यतीति धात्वादेशः ५१. पिप्पडियं ५२. पिट्टोअरो ५३. पिंगरोमो ५४. पिठोकडमिति तनुः । मीन इति 'पृथुरोम' शब्दात् । कथयतीति धात्वादेशः ||छ || पुलअइ पुंडरिअं ६ प्रयोजनम् ॥छ | पेंडवालं - पेंडलियं द्वौ पिंडीकृते । पेंडधवो पेंडर इ - चोरपत्नी ॥छ|| विषमम् । पि(प)च्छोकडमिति सातवाहनः । ('पच्छोकड' इत्येवं निर्दिष्टोऽयं दे.श. को. पृ. २९२) । प्रमोदहृतवस्त्रम् । पेडड्ड५८ पोअइआ पोअलेउ ४९. पिंजरुडो मु. । ५०. द्विग्गीव - पा. । द्विग्रीव - सा.डे. । सा. । आ. । पा. । पिहुरोमो - मु. पा. । खड्गः । प्रस्थापयतीति धात्वादेशः । कणवणिक् ॥छ । निद्राकरीलता । अश्विन मासोत्सवो अपूपश्च । बालवसंत इत्यन्ये ॥छ || ५५. पुलासिओ - सा. । ५६. पुंडरियं - पा. । पुंडरिअ - सा. । ५७. पेंडवड़ - मु. । ५८. पेडडओ - सा. । ५९. पोयलओ - पा. सा. । पोयलउ - डे / Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 181 फलिऑरी दूर्वा । फसलिउपर भूषितः । फंफसउ६३ लताभेदः ॥छ। फुल्लंधुउ६५ भ्रमरः ॥छ।। फेणबंधो-फेणचडो द्वौ प्रत्यदिक्झेले (प्रत्यदिग्बले?) फेलुसणं पिच्छलो देशः । । क्रियाशब्दत्वात्फुल्लुसइ फेल्लुसिउ६९ इत्यादौ पतनार्थो ज्ञेयः । फोइअयं मुक्तं विस्तारितं च । फोडिअयं राजिका धूमितं शाकादि रात्रवटव्यां सिंहादिरक्षाप्रकारश्च । बंभहरं पद्मम् । बलवट्टी सखी । दन्त्योष्ठ्यादिरयमित्यन्ये । व्यायामसहेत्यन्ये । बप्फाउलं अत्युष्णं, दन्त्योष्ठ्यादिरयमित्यन्ये । बहुराणा खड्गधारा । बहुराँवा शिवा । बहुहोरा सम्माजनीत्यन्ये । बलामोडी-बलमड्डा द्वौ हँठे । बहुमुहो दुर्जनः । बज्जरई कथयतीति धात्वादेशः ॥छ। बुक्कासारो भीरुः । ७२ ६०. फलियारी - मु.। ६९. फेल्लसिओ - पा. । ६१. दूर्वा - डे. । ७०. फोइययं - डे. । ६२. फसलिओ - मु.। ७१. फोडिययं - पा. । . ६३. फंफसओ - पा. । फफसउ - सा. । ७२. बहुवारा - पा.सा.डे. । ६४. फुलंधुओ - पा.सा. । ७३. बउहारा-पा. । बहरा-डे.। बोहारी-मु.। ६५. फेसाबंधो-पा.डे. । ७४. बलात्कारः - मु. । ६६. प्रत्ययपाले - डे.सा. । ७५. बहुइ - डे. । ६७. फेल्लुसणं - पा.डे. । ७६. बुक्कासरो - आ. । ६८. फेल्लुसइ - पा.डे. । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 182 बुलबुला बुबुदः ॥छ।। बाहहरो मागधः ॥छ। भममुहो आवतः । भद्दाकरी दीर्घः । भद्दसिरी श्रीखण्डम् । भरोच्छयं तालफलम् । भम्मडइ-भमडइ भ्रमतीत्यादेशौ ॥छा। भावाइआ धाम्मिकभार्या । भित्तिरुवं टंकच्छिन्नम् ॥छ।। भुरंडिआ शिवा । भेलज्जउ भीरुः ॥छ। मउरंदो अपामार्गः । महाअत्तो आढ्यः । मडहरो-मडप्फरो द्वौ गर्वे । मलहरो तुमुलः ।। महिसंदो सिग्गुद्रुमः । महासदा५ शिवा । मज्जआरं मध्यम । महाबिल नभः । महागट्टो रुद्रः । मइहरो ग्रामणीः । मेंहर इत्यपि । मलंपिओ० गी । ७७. बुलंबुला - मुय. । ८४. सिंगुद्रुमः - डे. । ७८. प्रलम्बः मु. । ८५. महासदो - आ.पा. । ७९. भावइआ - मु. । ८६. मज्जं - डे. । ८०. भेज्जलओ - मु. । ८७. महाविलं - सा. । ८१. अपांमार्गः - पा. । ८८. महानहो-डे. । महानढो-सा. । महाणडो मु. । ८२. महायत्तो - मु. । ८९. मैहर - पा. । ८३. मडंहरो - सा. । मंडंहरो - पा.डे. । ९०. मलंपिउ -डे. । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 183 महालक्खो तरुणः । महावल्ली नलिनी । मडवोज्झा शिबिका । मत्तबालो मत्तः । महुमुहो४ पिशुनः । मरंदो पुष्परजः । पुष्पैरसार्थस्तु संस्कृतात् । मम्मणिआ नीलमक्षिका । मत्तालंबो मत्तवारणः ।। महअरो गह्वरपतिः । मज्झंतियं मध्यंदिनम् । मग्गणिरो अनुव्रजनशीलः । मलवट्टी तरुणी । महिसक्कं महिषीसमूहः । महत्थारं भांडं, भोजनमित्येके । अत्र मयगलो' हस्तीति 'मदकल'शब्दात् । मयधुत्तो क्रोष्टेति 'मृगधूर्त'शब्दात् । मट्टहियं ऊढायाः कोपः, कलुषं, अशुचि च ॥छा। मादलिआ माता । माहिवाउ शिशिरवातः । माअलिआ मातृष्वसा । मारिलग्गा कुत्सिता ॥ठा। ९१. नडिणी - आ. ।। ९८. मग्गनिरो - पा.डे. । ९२. मडवेसो - पा. मु. । मडवेशो - सा. । ९९. मलवट्ठी - सा. । ९३. मत्तवालो - सा. । १००. तूरुणी - आ. । ९४. मुहुमुहा - डे. । १. मयगल्लो - डे. । ९५. मयरंदो - मु. । २. मूढायाः - सा. । ९६. पुष्पसारार्थस्तु - डे. । पुष्पसरार्थस्तु-सा. । ३. माहिवाओ - पा. । ९७. महाअरो - डे. । महायरो - मु. । ४. मारिलगा - डे. । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्येष्ठः । मित्तिव मीसालिअं मिश्रमिति 'मिश्र 'शब्दात् ॥ छा जूटः । मुरुमुंडो मुलासिउ स्फुलिंग: । डुम्बी । मुग्घुरुडो - मुक्कुरुडो द्वौ राशौ । मुआइणी मुहत्थडी मेहच्छीरं मेल मेणिया मेहुणंओ" मोत्तरउ श्वपेचश्चंडालो वा । कृष्णपक्षकणिका । मुधेत्यादेशः । मोक्कणि मोरउल्ला मोट्टायई रयवली १४ गिल्लं गेली रच्छामउ रत्तक्खरं रफडिआ खोलइ -- 3 अनुसंधान - १६ • 184 सा. । आ. । मुखेन पतनम् । नीरम् । मुंचतीति धात्वादेश: । पत्न्या भगिनी मातुलपुत्री च । पितृष्वसृसुत इति तु लिंगपरिणामात् । रमते इति धात्वादेश: ॥छ | ५. भित्तिवओ ६. मीसालियं ७. मुहंच्छडी - डे. । ८. मेहल पा. । मेलइ - डे । ९. मेहुणिआ - डे. । १०. मातुलीपुत्री - डे. ११. महणउ शिशुत्वम् । अभिलषितम् । रतितृष्णा । श्वा । [सीधु.] गोधा । दोलयतीति धात्वादेशः । आ. । मेहुणउ - सा. । पा.सा.डे. 1 १२. श्वपचः चांडालो च १३. मोक्कणिया - डे. । १४. रयवल्ली १५. रइगिल्ली - डे. । १६. रतिगेल्ली आ. । १७. खोलई - डे. । डे. । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 185 इलॅक्खं रतिसंयोगो जघनं च ॥छ।। रायगई जलौकाः ॥छ।। रिच्छभल्लो रिक्षः । रित्तूडिअं शातितम् ।।छ। रुव"मिणी रुपवती ॥छ।। रेवलिआ वालुकावतः । रेवज्जियं२२ उपालब्धम् । रेहियेयं छिनपुच्छम् । रेअविअं५ अक्षीकृतम् । मुक्तार्थे तु मुचेरादेशः । रोमराई-रोमूसलं द्वौ जघने । रोअणिआ डाकिनी । रोसाणइ माष्ट्री(ष्र्टी)ति धात्वादेशः । रोक्कणिउ शृंगी नृशंसश्च ॥छ।। लइअल्लो वृषभः ॥छ।। लालंपिअं प्रवालं खलीनमाक्रदितं च ॥छ।। लोलंठिअं चाटु । वइवेला वौडु । ववहिउ० मत्तः । वंगेवडू ३१ सूकरः । वम्मीसरो कामः । १८. रइलखं - डे. । २६. क्षणीकृतम् - मु. । १९. ऋच्छभल्लो - आ. । २७. रोक्कणिओ - पा. डे. । २०. ऋक्षः - आ. । २८. लोलंछिअं - डे. । २१. रुअमिणी - आ. । । २९. चाटुः - आ. । सीमा - डे. । २२. रेवज्जिअं - डे. । ३०. ववहिओ - मु. । २३. रेहिअयं - पा.सा. । रेहिअअं - मु. । ३१. वंगेवड - पा. । २४. छिन्नपुरं - आ. । ३२. शूकरः सा.डे. । २५. रेअवियं - आ. । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 186 वइरोडो जारः । ववसिअं हठः । वड्डहुल्ली मालाकारः । वहढोलो वाताली । वलयणी-वलवाडी द्वौ वृत्तिवाचकौ । वलअंगी-वलंगणी द्वौ वृतिमतीवाचकौ वड्डइ उ चर्मकार । रथकारार्थस्तु 'वार्धकि'शब्दात् । वच्छिमउ २९ गर्भशय्या । वच्छिउडो इत्यन्ये । वउलिअं शूलीप्रोतं मांसम् । नववरः । वल्लादयं आच्छादैनम् । वत्थउडो वस्त्रमय आश्रयः । वक्खारयं रतिगृहम् । अन्तःपुरमित्यन्ये । वड्डीवियं समापितम् । वक्कलयं पुरस्कृतम् । वग्गंसिअं युद्धम् । वहुमासो यत्र पतिः क्रीनवोढवधूगृहान्नहि बहिर्याति । वड्डवासो [मेघः] ओष्ठ्यादिरयमित्यन्ये । वरउप्फो मृतः । वच्छीउत्तो नापितः । वरेइत्थं फलम् । वरइत्तो ३३. बलात्कारः - मु. । ३४. वड्डहल्ली - पा.सा.डे. ।। ३५. वहट्ठोलो - पा. । ३६. वलयंगी - पा. । । ३७. वडुईउ-पा.सा. । वड्ढइओ - मु. ३८. वर्धकि - पा.सा. । ३९. वच्छिमओ - पा.मु. । ४०. प्रोतं -- आ. । ४१. वल्लादायं - डे. । ४२. आछादयं - डे. । ४३. वड्डापियं .. आ. । ४४. वकालय - पा.सा. । ४५. क्रीडानवोढ० - सा.विना । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 187 *वप्पीडियं.६ क्षेत्रम् । ' वलविय-वलमयं द्वौ शीघ्रार्थे । वंसप्फालं प्रकटम् । ऋद्धिरित्यन्ये । वडिसरं चुल्लीमूलम् । ववत्थंभो० बलम् । वस द्धो काकः । वरइउ२ धान्यभेदः । विषुव॑त् । समरात्रिंदिवः कालः इत्यर्थः । ५३ वर्डवत्थं विषतत । माग अत्र वलग्गइ आरोहति । वग्गोलइ रोमन्थयति । वमालइ पुञ्जयति । वसुआइ उद्वाति । एतो धात्वादेशाः । वट्टमाणं अंग, गंधद्रव्याधिकवासभेदश्च । वड्ढवणं ____ वस्त्राहरणं अभ्युदयावेदनं च ॥छ।। ★वामट्ठीउ५ मृतास्थीनि, वामो मृतस्यास्थीनीति व्युत्पत्तेः । वाडंतरा कुटीरम् । वामणिआ दीर्घकाष्ठवृत्तिः । वावडयं विपरीतरतम् । केचिद्युगपत्परिवर्तितमुखयोः स्त्रीपुंसयोर्मुखे -जघनकाहुः । ४६. वप्पीडिअं - मु. । ४७. वलविअं - पा.सा.डे. । ४८. रिद्धीत्यन्ये - डे. । ऋजु इति अन्ये -मु. । ४९. वडिसिरं - डे. । ५० ववत्थतो - डे. । ५१. वसमुद्धो - आ. । ५२. वरडओ -- सा.मु. । वरइङ - डे. । ५३. वओवत्थं - मु. । ५४. तिष्ठवत् - आ. । ५५. वामट्ठीओ - सा. वामट्ठी - पा. । नायं देशीकोशे नाममालायां वा । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासवारो अश्वः । वालावसो शीर्षाभरणम् । वावोणयं वीकीर्णम् । वामणिउ५७ नष्टप्रत्यादाता । वार्सेवालो श्वा । वाणवालो इन्द्रः । वारसिआ मल्लिका । वालंफोसं स्वर्णम् । अत्र वाहिप्पइ व्याह्रियते । ( ग्रं. १००० ॥ ) वावंफइ विडोमिउ अनुसंधान - १६ • 188 विहुडिउ ५९ विसारउ ६० विरिज्जउ ishमृग: । राहुः । धृष्टः अनुचरः । विलुपिअं अभिलषितम् । विसमयं - विप्पवरं द्वौ भल्लातके । विड्डिरिल्ला विडंकिआ विणिव्वरं श्रमं करोतीति धात्वादेशौ ॥छ || सूच्या विद्धम् । विब्भेइअं विक्क्रमणो चतुरंगतिरश्वः । विलंप कीटः । रात्रिः । वेदिका । पश्चात्तापः । पा. । ५६. वालवोसो ५७. वामणिओ सा. । ५८. वासावालो आ. । ५९. विहुडिओ - पा. । विहुंडुओ - मु. । विहुंडअ - मु. । ६०. विसारओ पा.सा. । ६१. विलुप्पओ - पा. । विलुंपओ - सा.मु. । ६२. विणिद्वरं आ. । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 189 विरहालं कौसुंभं वस्त्रम् । *विद्धोअँउ-विब्भवणं द्वौ उपधाने । विभ्रमणमित्यन्ये । विआलुउ६५ असहनः । विलिंजरा धाना । विअंगिअं निंदितम् । विक्केणुअं विक्रेयम् । विडिच्चिरं विकरालम् । विडंचियं इत्यन्ये । विलिब्बिली कोमलनिस्थामतनुः । विहरिअं सुरतम् । विप्फार्डियं-विइंडिअं-विप्पंडिअं त्रयो नाशितार्थाः । विआरिआ पूर्वाह्नभोजनम् । विरल्लिअं जलाम् । विस्तारितार्थस्तुतनोतेरादेशात् । विमईअं भत्सितम् । विसालउ जलधिः । विहाडणं अनर्थः । विसंवायं मलिनम् । विअंसउ व्याधः । विऊरियं२ नष्टम् । विहोडड ताडयति । विउडड् नाशयति । विच्छोलइ कम्पयति । विढवइ अर्जयति । विरोलइ मथ्नाति । ६३. विच्चोअओ - मु. । ६९. विमईयं - सा. । विमईअं - डे. । ६४. विभमण० - मु. । ७०. विसालओ - सा. । ६५. विआलुओ- सा. । ७१. विअसउ - डे. । विसओ -मु. । ६६. विप्फाडिअं - डे.सा. । ७२. विऊरिअं - डे. । ६७. विपिंडियं - पा.सा. । ७३. विहड़ - पा. डे. । विउहडउ - सा. । ६८. जलार्द्रम् - सा.डे. । २. Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विअट्ट - विलोड विसंवदति । विसूरइ खिद्यते । दलति । विसट्टइ विहीर प्रतीक्षते एते धात्वादेशाः । विमलियं मत्सरभणितं सशब्दं च । विसमिअं विमलं समुत्थितं च । विलइअं अधिज्यं दीनं च । विरिंचिरो विरिंचिउ विमलो विरक्तश्च । विचिंणिअं पाटितं धारा च । विसूंरइ वीसालइ वीसार वेलणयं वेसंभरी वेलुलियं ८२ वेअडिअं अनुसंधान - १६• 190 वेsss वेण्टसुरा वेणुणासो वेडकिल्लं वेवाइअं अश्वो विरलश्च । विरिंचिरा धारेति कश्चित् । स्मरति विस्मरति च धात्वादेशः ॥छ|| मिश्रयति । विस्मरति । लज्जेत्यन्ये । गृहगोधा । वैडूर्यम् ।' प्रत्युप्तम् । वाणिजकः । कलुषसुरा । भ्रमरः । संकटम् । उल्लसितम् । ७४. विअ पा. । ७५. विहारइ - पा.सा.डे. । सा. । ७६. समुच्छितं ७७. विरिविरो सा. । ७८. विरंचिओ - पा. सा. । विरिंचिओ-मु. ७९. विविणिअं पा.सा. । विचिणियं - मु. । ८०. विम्हरड् डे. । ८१. विसर - मु. ८२. वेलुलिअं पा.सा.डे. — www Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेल्लाईअं संकुचितम् । वेसखिज्जं द्वेष्यत्वम् । अयमोष्ट्यादिः प्रायेण । वेयारिअं प्रतारितम् । आरआ केशाः । वेरुलिअं६ इति 'वैर्य' शब्दात् । खंजति । वंचति । वेअड्ड् वेहव वेमअइ वेहविओ४७ वेलाइअं वेल्लहेलो अत्र वेलव अनुसंधान - १६ • 191 वोज्झमल्लो भारः । वोमज्झिअं अनुचितवेषग्रहणम् । वोकिल्लिअं रोमन्थः । वोभीसणो वकः । संधारि ९२ योग्यः । अकारान्तः । 20 भक्तीति धात्वादेशाः । अनादरो रोषाविष्टश्च । वञ्चितार्थस्तु वंचेरादेशात् । मृदु दीनं च । कोमलो विलासी च । ८५. वेरिअं ८६. वेरुलिय ८७. विहविउ ८८. वृष्टिश्व - डे. । उपालभते वंचति चेति धात्वादेश: ॥छ || इज्झि प्रातिवेश्यम् । संपत्थिअं-सयराहं द्वौ शीघ्रे । संपासंगं दीर्घम् । सलहत्थो सराहउ ९३ ८३. वेलाइअं - सा.डे. । ८४. विसखिज्जं - डे । वेसक्खिज्जं दर्व्यादिहस्तकः । सर्पः । सा. । वेयारियं - मु. । सा.डे. आ. डे. । 1 सा.मु. । ८९. विल्लहल्लो -सा.डे. । ९०. वोकिल्लियं डे. । ९१. वरुकः डे. । ९२. संघारिओ पा. 1 पा.सा. । ९३. सराहओ ९४. सर्पः 1 पा. । Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 192 संवेल्लिअं-संवडैि (ट्टि)त्तं द्वौ संवृत्ते । सरिवाउ७ आसारः । सउलिअं८ प्रेरितम् । संघास-समसीसी द्वौ स्पर्धायाम् । समुग्गियं प्रतीक्षितम्० । । सत्थइयं उत्तेजितम् । सरभेअं स्मृतम् । संखंद्रहो गोदावरी हुदैः । संपडिअं लब्धम् । सच्चिल्लयं सत्यम् । संघयणं शरीरम् । सहरला महिषी। संजमिअं संगोपितम् । संकडिल्लं निश्छिद्रम् । सरलीआ श्वावित् प्राणी । कीटभेद इत्यन्ये । संसप्पिअं उत्प्लुतिगमनम् । सहगुहो घूकः । । सत्तिअणा आभिजात्यम् । संखलयं सम्बूकः । शुक्त्याकाराजलजप्राणिभेदः । संसाहणं अनुगमनम् । ९५. संवेल्लियं - मु.। ४. संघणयं - आ. । ९६. संवट्टित्तं - डे. । संवट्टित्तं-सा. । संवट्टि - मु.। ५. सहरली - डे. । ९७. सरिवाओ - सा. । ६. संगोवितम् - पा. । ९८. सउलियं - पा. । .. ७. कीटभेदः - पा.। ९९. संघासओ - पा. । ८. अत्प्लुति - सा. । १००. प्रतीक्षतं - डे. । ९. संनिअणा - पा.डे. । १. सरभेअ - डे. । १०. सखलयं - आ. । २. संवेद्रहो - पा. । ११. शम्बूकः मु.। ३. द्रहः - डे. । १२. संसोहणं - सा. । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 193 संडोलिउ१३ अनुगतः । सच्चविअं अभिप्रेतम् । दर्शनार्थस्तु दृशेः सच्चावादेशात् । संगोढणो व्रणितः । समुच्छणी संमार्जनी । सन्नत्तियं परितापितम् । संपत्तिआ बाला । पिप्पलीपत्रवाचकोऽपा(प्य)यं दृश्यते लक्ष्येषु । संदट्टयं संलग्नम् । कप्रत्ययाभावे संदटुं । संघट्ट इत्यन्ये । सच्चेविअं रचितम् ।। सइलंभं-सइदिट्ठो-सइसुहं त्रयश्चित्तावलोकिते । संखुड्इ रमते । संदाणइ अवष्टंभं करोति । संनामइ आद्रियते । संलगइ संघटते । संदुमइ-संधुक्इ प्रदीप्यते । संभावइ लुभ्यतीति धात्वादेशाः । सरेवउ १८ हंसो गृहजलप्रवाहश्च । संवाउ नकुलः श्येनश्च । संण्णुमिअं° सन्निहितम्, माषितम्, अनुनीतं च । प्रच्छादनार्थस्तु च्छादेरादेशात् । समुच्छिअं१ तोषितं समारचितं अंजलिकरणं च । समासिओ२२ प्रतिवेश्मिकः प्रदोषो वध्यश्च । १३. संडोलिओ - पा. सा. । १९. संवाआउ .. । संवाअओ-सा. मु.। १४. सान्नित्तिअं-पा. डे. । सपणत्तियं - मु. ।२०. सण्णुमियं - मु. । १५. लक्षेषु - सा. 2. । २१. समुच्छियं - मु. ।। १६. संदट्ठयं - आ. । २२. समासिउ - सा. । समोसिओ-मु. । १७. संलग्गं - पा. । २३. प्रतिवेश्मिकः - सा. । १८. सरेवयो - सा.डे. । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सण्णविअं चिन्तितं सानिध्यं च । सदृशं निर्भरं च । समसीसं समाणइ साणइयं अनुसंधान - १६ • 194 सायंदूला सासवुल्लो कपिकच्छूः । सारमिअं स्मारितम् । सालंगणी अधिरोहणी । साहिज्जउ अनुगृहीतः । साइज्जियं अवलंबितम् । तमोहः । भुङ्क्ते समाप्नोति च धात्वादेशः ॥छ । उत्तेजितम् । केतकी । साहरउ २९ सारिच्छिआ दूर्वा । साहिलयं 0 मधु । सालाणउ ३२ स्तुतः । स्तुत्य इत्यन्ये । साहंजडें - साहंजणो द्वौ गोक्षुरे । साहरइ-साहट्टइ संवृणोति । सारवइ समारचयति । सामग्गइ श्लिष्यति । सामयइ प्रतीक्षते २४ इति धात्वादेशाः । सामग्गिअं५ चलितं अवलम्बितं पालितं च । आश्लेषार्थस्तु श्लिषेरादेशः । २४. सानिध्यं च सा. 1 २५. सासड्डुलो - आ. । २६. साहिज्जाउ - सा । साहेज्जउ - मु. । २७. साइजअं - डे. । २८. आविलंबितम् - डे. । २९. साहओ पा. । ३०. सारिच्छिया ३१. दूर्वा सा. । ३२. साला ओ सा. मु. । साहंजओ३३. ३४. प्रतीक्ष् ३५. सामग्गियं - डे. । -- मु. - सा. मु. । साहजओ-पा. । पा. सा. । Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 195 सिंदुवणो अग्निः । सिरिवउ२६ हंसः । सिरिमुहो मदमुखः । सिरिदही पक्षपानयात्रम् । सिहरिणी-सिहरिल्ला मार्जितायां द्वौ । सिंदुरयं रज्जू राज्यं च ॥छ।। सीहरउ३८ औंसारः । सीहंडउ४० मत्स्यः । सीउग्गयं सुजातम् । सीहलयं वस्त्रादिधूपयन्त्रम् । सीमंतयं सीमंतमंडनभेदः। सीलुट्टयं त्रपुसम् । सीहणही करमन्दिका । तत्पुष्पमित्यन्ये । सीअणयं दुग्धपारी श्मशानं च । सीहलिआ शिखा नवमालिका च ॥छ।। सुरज्येष्ठे वरुणः । सुद्धवालो सुद्धपूतः । सुदारुणो डूम्बः । सुण्हसिओ५ सुप्तशीलः । सुज्झरउ६ रजकः । सुसंठिआ शूलप्रोतं मांसं । सुर्गिभंउ फाल्गुनोत्सव इति 'सुग्रीष्म'शब्दभवः । सुहराओ वेश्यागृहं चटकश्च ॥छ। ३६. सिरिविउ - सा. । सिरिवओ - मु.। ४२. स्मसानं - आ. । ३७. पक्षिपानयात्रं-सा. । खगपानभाजनम्-मु. । ४३. सुरजेट्ठो-पा. डे. । सुरज्येट्ठो-सा. । ३८. सीहरओ - पा. सा. । ४४. शुद्धपूतः - मु.। ३९. असारः - डे. । ४५. सुण्हसिउ - पा. ४०. सीहडओ - सा. । ४६. सुज्झरओ - पा.सः । ४१. सीलुट्ठयं - डे. । ४७. सुगिम्हउ - मु.। ५५ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 196 सूलत्थारी चण्डी । सूरद्धओ दिनः ॥छ। सेहरउ चक्रवाकः । सेवाडउ चप्पुटिकानादः । . सेज्जारिअं आन्दोलनम् । सेआलुउ० उपयाचितसिद्ध्यर्थं वृषभः । सेरिभउ११ धुर्यवृषभः ॥छ। सोहंजणो मि तरुः । सोमहिंदं उदरम् । सोमइउ५३ स्वप्नशीलः । सोमहिड्डो पंकः । सोअमलं 'सौकुमार्य' शब्दात् ॥छ।। हसिरिआ दासः । (हासः स्यात्) । हत्थिवडे ग्रहभेदः । हरिमिग्गो लगुडः । हलाहला बंभणिका । हत्थिमल्लले इन्द्रगजः । हत्थल्लिों हस्तापसारितम् । हस्तबोलो(?) कैलकलः । हरिआलो 'हरिताल'शब्दात् । हक्खुप्पइ उत्क्षिपतीति धात्वादेशः । हरिआली दूर्वेति 'हरिताली'शब्दात् । ४८. सहरउ - सा. । सेहरओ - मु.। ५४. स्वप्नसील: - सा. । ४९. संवाडओ-सा. । सेवाडओ-मु. डे. । ५५. दोसः - पा.सा.डे. । हासः - मु. । ५०. सेआलुओ - मु. । ५६. हत्थिधउ - डे, । ५१. सेरिभओ - मु. । सेंरभिउ - डे. । ५७. हथिल्लिअं - पा. डे. । ५२. सिग्गुतरुः - सा. । शिगुतरुः - डे. । ५८. हलबोलो - मु. । हलवालो - पा.सा.। ५३. सोमइओ - सा. । सोमईउ - डे. । ५९. बंभणिकाकलकलः - सा. । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 197 हलिहलं तुमुलं कौतुकं च । हडहडो अनुरागस्तापसश्च ॥छा। हालाहलो मालिकः । हालाहला बम्भणिकेत्यन्ये । हिरिवंसो लगुडः । हिंसोहिसा स्पर्धा । हिंडोलयं-हिल्लोडणं द्वौ क्षेत्रे मृगनिषे[ध] करवे । हिरिमंथा चणका । हिंडोलण हिडोलणं द्वौ रत्नावल्यां क्षेत्ररक्षणनादे च ॥छ।। हीमसणं हेषारवः । हंकुर वो अंजलिः । अथ पञ्चाक्षराः । अवलंडियं परिरंभः । अवरुंडइ-अवरुंडिज्जइ-अवरुंडिअणेत्यादिप्रयोगयोग्योऽपि पूर्वैर्धात्वादेशेषु न पठितः । ★अच्छयोरिया सखी । अवयरिउ० विरहः । अंजणईसं तापिच्छम् । अवसमिअ स्तीमित पर्युषित कणिका२ । ६०. हलहलं - मु.। ६१. बम्भणिकोत्यन्ये - पा. । ६२. हरिवंसो - आ.डे. । हरिवसो - पा. । ६३. हिंसोहिसा - पा. । ६४. मृगनिषेधकरौ - पा. । ६५. हेंडोलणं - डे. । ६६. रत्नावल्ल्यां - सा. । ६७. हुंकुरुवो - मु. । ६८. अवरुंडिअं - सा. । ६९. अच्छरिया - आ. । ७०. अवयरिओ-पा. । अवरियउ-डे. । अवरियंओ - सा. । ७१. अवसमिआ - पा.सा.डे. । ७२. कणिक्का - पा. । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९ अनुसंधान-१६ . 198 अवकीरियं विरहितम् । अंकुस'अं अंकुशाकारम् । अवपुसिउ७४ संघटितः । अवच्छुरणं क्रोधे सति भङ्ग्या[वदनम्] । अच्छिवडणं निमीलणं अणोसरिअं अतिक्रान्तम् । अवक्खियं-अवअच्छिअं-अज्झैवसियं त्रयं निवापिते मुखे । असरासउ खरहृदयः । अगंडिगेहो यौवनोन्मत्तः । अच्छिहरुल्लो द्वेष्यो वेषो वा । अच्छिघरुलं८१ अच्छिहरिल्लं च केऽपि पठति । अच्छिविअच्छी परस्पराकृष्टिः । अडखमिअं-अणुवज्जिअं द्वौ प्रतिजागरिते । अणुवज्जिअं५ गतमिति तु गमेरादेशात् । अब्भपिसाओ राहुः । अब्बुद्धसिरी चिंतिताधिकफलप्राप्तिः । अडउज्झिअं विपरीतरतम् । अंगवल्लिज्जं अंगवलनम् । अद्धविआरं मंडनम् । मंडलकमिति कश्चित् । अपारमग्गो विश्रामः । अपडिच्छिरो जडधीः । अगुज्झहरो रहस्यभेदी । ७१. अवसमिआ - पा.सा.डे. । ७८. अंचक्खिअं - . । ७२. कणिका - पा. 1 ७९. असवसियं - पा.सा.डे. । ७३. अंकुशइअं - पा. बिना । ८०. असरीसउ-सा... । असरासओ - मु.। ७४. अवपुसिओ - सा । ८१. अच्छ्यिरुल्लो - मु. । ७५. संघट्टितः - डे. । ८२. अच्छिवियच्छी-मु.। अच्छवियच्छि-डे.। ७६. निमीलितम् - पा. । ८३. अडक्खमियं-डे. । अडक्खमिअं-सा. । ७७. अण्णोसरिअं - सा. । अण्णासयं - डे. । ८४. अणुवज्जियं - मु. । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 199 अव[]णिउ असंघटितः । अभिण्णपुडो ६ रिक्तपुटः । अणुबंधियं हिक्का । *अणुंच्छियारं अच्छिन्नम् ।। अवरत्त९ पश्चात्तापः । अवरत्तेयमिति गोपालः । अजरारं उष्णम् । अरविंदरं दीर्घम् । अणरामउ अरतिः । ★अर्द्धअक्कली कट्यां हस्तनिवेशः । अवक्करसो सरकः । अवअट्टि(ड्डि)अं रणहृतम् । अवयासिणी नासारज्जुः । अलमंजुलो आलस्यवान् । अवट्ठा( डा )हिअं आ(उत्कृष्टम् । अवडक्किउ६ कूपादिषु निहतः । अंगवडणं रोगः । अयतंचियं उपचितम् । 'अवअच्चिय'मिति केचित् । अणुवहुआ नववधूः । अवज्झइ गच्छति । अवअक्खइ-अवअज्झइ पश्यति । अहिरेमइ पूर्यते । अहिऊलइ दहति । ८५. अवणिऊ - डे. । ९२. अहड्डिअं - आ. । ८६. अभिण्णपुट्ठो - डे.। . ९३. अलमुंजलो - डे. । ८७. अणुबंधिअं - पा.सा. । ९४. मडाहिअं - मु. । ८८. अणच्छिआरं - सा. । ९५. आत्कृष्टम् - सा. । उत्कृष्टम् - मु. । ८९. अवरत्तओ - पा.सा. । ९६. अडकिओ - सा. । ९०. अवरत्तोअमिति - पा. । ९७. असतंचिअं - सा. । ११. अद्धाअंकली - डे. । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 200 अवहेडइ मुंचति । अवहावेइ कृपां करोति । अहिलंखइ-अहिलंघइ कांक्षति । इत्यादयो धात्वादेशाः । अणुसंधियं८ अविरतं हिक्का च । अविहाविअं दीनं अनालपनं च ।। अक्खणवेलं सुरतं प्रदोषश्च । अत्र च, अर्वअच्छइ. ह्लादते ह्लादयति पश्यति च । अर्वयोसइ पश्यति श्लिष्यति च । अवसेहइ गच्छइ नश्यति च । एते धात्वादेशाः । आवरेड्आ मध्यस्थकारिका । आयासलवो पक्षिगृहम् । आयासतलं हर्म्यपृष्टम् । आणंदवडो प्रथमरुधिरारुणं वधूवस्त्रम् । अत्र च, *आरिलंबिअं अभिलषितमिति कांक्षेरादेशः । *आसेअणय शब्दश्च अतृप्त इत्यर्थे 'असेचनक'शब्दभवः । इंदग्गिधूमं हिमम् । इरमंदिरो करभः । इंदट्ठलउप इंद्रोत्थापनम् ॥छा। उच्छुआरिअं च्छादितम् । उलुकसिअं पुलकितम् । उवजंगलं दीर्घम् । ९८. अणुसंधि - सा. ।। ३. आवरइआ आ. । ९९. अविरंति-आ. । अविरति - मु. । ४. आविलुंठिअं-पा.सा.डे. । आविलुंपिअं-मु.। १००. अवइच्छइ - पा.डे. । ५. आसेर्णयय- पा.डे. । आसेयणय-सा.मु. । १. अवआसइ - मु. । ६. इंदट्ठलओ - मु. । २. गच्छति - आ. । ७. उच्छआरिअं - पा.सा.डे. । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 201 उम्मच्छविअं उद्भटम् । उच्छुअरणं इक्षुवाटः । उवललयं सुरतम् । उलुहलिऊ अतृप्तः । उग्गुलुंठि(छि?)आ हृदयरसोच्छलनम् । उवएइआ० मद्यपरिवेषणभांडम् । उसणसेणो बलभद्रः । उप्पिंगालिआ१ करोत्संगः । उवकअयं-ऊद्धच्छिविअं द्वौ सञ्जिते । कप्रत्ययाभावे चतुरक्षरौ । उत्तलहउ१३ विटपः । उलउंडिअं४ विरचितम् । *उवरुउप्पं अभूताभ्युदयः । उवलभत्ता वलयानि । उत्तिरिविडी ऊोर्ध्वं भाण्डादेः स्थापनम् । उवकसिउ संनिहितः परिसेवितः सञ्जितश्च । उल्लुफुटिअं विनिपातितं प्रशान्तं च । एकघरिलो देवरः । एक्कसाहिल्ो एकस्थानवासी । ८. उलहलिओ - पा. । ९. उग्गुलुंछिया - मु. । १०. उवएइया - पा.सा.डे. । ११. उप्पिगालिया - सा. ।। १२. उवकअअं - पा.सा.डे. । उवकययं - मु. । १३. उत्तलहओ - मु.। १४. उलुउंडियं - पा. । उलुउंडिअं - मु. । १५. उव्वरपुष्पं - पा.डे. । उंबरउप्फ - मु. । १६. विनपातितं - डे. । १७. एक्कापरितो -सा. । एक्कघरिलो - मु. । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 202 २१ एक्कशंबली शाल्मली पुष्पैर्नवफलिका । एणुवासिउ भेकः । अत्र एकसरिय शब्दो निपातः ॥छ।। ओसाणिहाणं विधिवत्कृतम् ॥छ। कडंतरिअं दारितम् । करघायलो किलाटख्यः । क्षीरविकारः । कण्णोच्छड्डिआ४ दत्तकण्र्णा या परवाक्यं गृहणाति । कण्णाइंधणं कर्णाभरणम् । कसणसिउर५ बलभद्रः । कंठदीणारो वृतिविवरम् । कणिआरिअं-कण्णत्सरिअं द्वौ काणाक्षि-दृष्टिवाचकौ । कणोसरिअं इत्यन्ये । कलंकवई वृत्तिः । कंडपडवा जवनिका । कमवसइ स्वपिति इति धात्वादेशः । कायपिउच्छा कोकिला । कामकिसोरो रासभः । किलिकिंचइ रमत इति धात्वादेशः । किरिरिआ३२ कर्णोपकणिका कौतुकं च ॥छा। १८. एकसंबली - सा.डे. । एक्कसंबली - पा. । एक्कर्सिवली - मु. । १९. शाल्मलेः पुप्फे नवफलिका - डे. । २६. कणियारियं-मु. । कणिअरि अं-डे । २०. एणुवासिओ - सा.मु. । २७. कणस्सरिअं - डे. पा.सा. । २१. एकसरिस - सा.डे. । २८. कमोसरियं -- टे. ! २२. उसासिहाणं-पा. । उसाणिहाणं-रा.डे. । २९. कडपडवा -- आ.पा. । २३. क्षरविकारः - पा. । ३०. स्वपति - डे. । २४. कण्णोच्छडिया - मु. । ३१. कायपिओच्छा-पा. । काउयपिउच्छा डे.। २५. कसणसिओ - पा.मु. । ३२. किरिइरिया - मु.। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 203 ३७ . कुड्डगिलोई गृहगोधा । *कुंटीपोटलं वस्त्रनिबद्धं द्रव्यं । ग्रं.११००॥ कुत्थुहवत्थं नीवी । कुलसंतई चुल्ली । कुसुमालिउ शून्यमनाः । कुरुकुरिअं रणरणकः । कुलफंसणो कुलकलंकः । कुड्डलेवणी सुधा छ। केआरबाणो पलाशः ॥छ।। ★खडगंडिउ मत्तः ॥छ। खुणुखुडिया घ्राणम् । खुरुडुक्खुडी प्रणयकलहः ॥छा। खोडपज्जाली स्थूलेंधनोऽग्निः ॥छा। गहकल्लोलो राहुः । गणायमहो विवाहगणकः । गणणाइआ चंडी । गलत्थलिउ२९ क्षिप्तः । गलहत्थिअमिति तु क्षिपेरादेशः । गयसाउलो विरक्तः । गयसाउलो इत्यपि । गंधपिसाओ गान्धिकः । गयणई मेघः । गज्जणसद्दो मृगवारणध्वनिः । गुडोलहिआ चुम्बनम् । गुडदालिअं पिंडीकृतम् । ३३. कुलसतई- डे. ३८. खुणुक्खुडिया - सा. । ३४. कुसुणिमालिउ - पा. । कुसमालिउ - डे. । ३९. गलत्थलिओ - मु. । ३५. कुरकुरिअं - पा.सा. । ४०. गज्जणमद्दो - सा. । ३६. कुलंफंसणो - पा. । कुलंफसणो - सा. । ४१. गुडोलहिया - सा. । ३७. खडखंडिउ - सा. । Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुलुगंछिअं२ वृत्यन्तरितम् । ★ गुलुगुमिअं स्तनोपरिवस्त्रग्रंथिः ॥छ । घडियघडा गोष्ठी । अनुसंधान - १६ • 204 घुग्घुत्ससियं सशंकवचनम् । घुघुणिया कर्णोपकणिका । घुसिरसारं मसूरादिपिष्टम् । घुटैघुणिअं गिरेः पृथुशिला । घुग्घुच्छणयं खेदः । चक्कणाहयं ऊँम्मिः । चउरचिंधो सातवाहनः । चक्कणभयं नौरंगफलम् । चंदवडाया अर्द्धावृतदेहा । चक्रेक्खणी लज्जा ॥छ चिरिडिहिलं दधि । चिचिणिचिचा अम्लिकेत्यन्ये ॥छ|| चुंचुलिपूरो चुलुकः । अत्र चुलचुलइ स्पंदत इति धात्वादेश: ॥छ छिन्नच्छोडणं शीघ्रम् । छिहिंडिभल्लं दधि ॥छ छूछुमुस रणरणकः ॥छ|| जरलच्छिउ - जरलविउ ५३ द्वौ ग्रामीणे । ४२. गुलुगंछियं - सा.मु. ४३. गुलुगुंमियं - सा. । ४४. घडिअघडा सा. । ४५. घुग्घुसिअं - डे । घुग्घुस्सुसयं - मु. । ४६. घुणघुणिआ - पा.सा. । ४७. घुट्टघुणिअं - पा.सा. । - ४९. नागरंग फलम् - आ. । ५०. चक्खुरणी डे. । ५१. आम्लिकेत्यन्ये - डे. । ५२. जरलद्धिओ - मु. ५३. जरलविओ सा. । - Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९ अनुसंधान-१६ • 205 जहणरोहो ऊरुः । जहणूसवं अोरुकम् ॥छ।। जालधैंडिआ चंद्रशाला ॥छ। जुवेणनीरं- जोव्वणवेयं-जोव्वणवयं त्रयो जरायॉम् ।छ। झलझलिअं" झोलिका ॥छ।। झुंझुमुसयं मनोदुःखम् । झुमुझुमुसयमित्यन्ये ॥छ।। टिविडिकइ मण्डयति । टिरिडिज्झइ भ्रमतीति धात्वादेशौ । टीकणखंडम् मद्यपरिमाणो, भाण्डमित्यन्ये । णक्खत्तणेमिर विष्णुः । णइमासयं जलजफलभेदः । णवुद्धरणं उच्छिष्टम् । णद्धंवयं अधृाँ निंदा च । णाहिविच्छोओ जघनं । 'णाहिए विच्छेउ' इति वाक्यमपि जघनवाचकम् । णामुक्कसिअं६८ कार्यम् । णिक्खसरिउ६९ मुषितसारः । णिरुवक्कयं अकृतम् । ५४. जालघणिडिआ - पा. । ६२. णक्खत्तणेमी - पा.डे. । ५५. जोव्वणनीरं-पा.सा. । जोवणनीरं- डे. । ६३. णयसासयं - सा.डे. । ५६. जोव्वणवेअं - डे.। ६४. णेवुद्धरणं - आ. । णवोद्धरणं - मु.। . ५७. जरायम् - आ. । जराया - डे. । ६५. णद्धंबवयं - मु. । ५८. झलझलियं - सा. । ६६. अधृण निंदा च - डे. । ५९. झंझोमुसयं - डे. । ६७. णाहिच्छेओ-पा.सा. । णाहिवुच्छेउ-डे. । ६०. टिरिटिज्जइ - डे. । टिरिटिलइ। ६८. णामुक्कसियं - पा. । ६१. टोकणहंडं-मु. । ६९. णिक्खसरिओ-पा. । णिक्खासरिओ-सा. । णिक्खासरिउ डे.। Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 206 णित्तिरंडियं त्रुटितम् । णिरुवाइ गृह्मति । णिरिणज्जइ पिनष्टि । णिरिणासइ गच्छति पिनष्टि नश्यति च ॥छ।। तंबटक्कारी सेफॉलिका । . तणवरंडी उडुपः । तद्दियचयं नृत्यम् । तलआगत्ती कूपः । तडप्फैडिअं परितश्चलितम् । तंबकुसुमो कुरुबकः । तलसारिअं गालितम् । तलअंटइ भ्रमतीति धात्वादेशः ॥छ। तुंतुक्खुडिओ७ त्वरायुक्तः । तुसेयजंभं दारु ॥छ। थरहरियं८ कंपिअम् ॥छ।। दरवल्लहो दयितः । दरविंदरं दीर्घ विरलं च । दैलिंदिलिउ बालः ॥छ। दुत्थुरुहुंटा-१ कलिशीला स्त्री पुमानपि । दुक्कुक्कणिया पतद्ग्रहः८३ । दुष्परियल्लं अशक्यं द्विगुणमभ्यस्तं च ।छ।। ७०. णित्तिरिडिअं - मु.। ७७. तुंतुक्खुडिउ - पा. डे. । ७१. झटितम् - आ. । ७८. थरहरिअं - सा. । ७२. णिरणज्जइ-पा. । णिरणिज्जइ-डे. । ७९. कंपितम् - डे.सा. । ७३. तंबट्टकारी-सा. । ८०. दिलिदिलिओ-मु. । दिल्लिंदिलिउ-सा.डे. । ७४. शेफालिका - डे. । ८१. दुत्थुसहुंडा - सा. । ७५. तडफडियं - सा. । ८२. दुक्कुक्कणिआ - डे. । ७६. कुरुवकः - सा. । ८३. पतद्ग्रहाः - डे. । ८४. दुप्परिअल्लं - . । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 207 दोसाकरणं कोपः । दोसणिज्जन्तो चंद्रः । दोहणहारी जलहारिणी परिहारिणी च ॥छ। धुक्कुहुगियं-८ उल्लसितम् ॥छ।। धूममहिसी नीहारः । धूरियवट्टो अश्व इत्यन्ये । पडुच्चईअं-पत्तसमिद्धं द्वौ तीक्ष्णे । पविडओ त्वरितः । परसुहत्तो वृक्षः । पणअत्तिअं प्रकटितम् । पणामणिआ स्त्रीषु प्रणयः । परिवारिउ१ घटितः । पसवडक्कं विलोकनम् । पव्वयसिल्लं वालमयकंटुकम् । पडुजुवई तरुणी । परिहारिणी चिरप्रसूता महिषी । पडियज्झउ उपाध्यायः । पडिल्लिउ कृतार्थः । पडिरुंजियं भग्नम् । पर्जुणसरं इक्षुसदशतृणम् । पडिअंतउ कर्मकर । पडिसारिअं स्मृतम् । ८५. दोसणिजन्तो - डे. । ९२. कंडकं - पा.सा. । ८६. दोहणहरी - डे. । ९३. पडिअज्झओ - मु. । ८७. परिहाणी च - डे. । ९४. पडियल्लिओ - सा. । पडिएल्लिओ - मु. । ८८. धुक्कुहुगिअं - सा. डे. । ९५. पडिरंजियं - पा.सा.डे. । ८९. पडुच्चईअं - सा.डे. ।। ९६. पजुणसरं - डे. । ९०. पविरईतः - डे. । ९७. परिसारिअं - पा.डे. । ९१. परिवारिओ - पा.सा. । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिल्लवासो अज्ञातगतिः । पडिलग्गलं वल्मीकम् । पउमलउ १८ वसंतः । पवहाइयं ९९ प्रवृत्तम् । पडिपिंडियं प्रवृद्धम् । पच्चवर्लुक्को आसक्तचितः । पंथुच्छुहणी श्वसुरकुलात्प्रथममानीता वधूः । पच्चच्छुहणी प्रथमसुरा । पलोट्टजीहो रहस्यभेदी । ★ पडिअम्पिअं मण्डितमिति 'प्रतिकम्मित' शब्दात् । अनुसंधान - १६ • 208 परिवाड्ड् घटयति । परिऔलइ वेष्टयति । परिहट्ट मुद्रति । परिअल-परिअलइ गच्छति । परिअंतइ श्लिष्यति । परिसामइ परिशाम्यतीति धात्वादेशाः । पडुओलियं पटुकृतं ताडितं धारितं च । पडिअग्गिअं परिभुक्तं वर्धापितं पालितं च । अनुव्रजनार्थे त्वयमेव व्रजेर्धात्वादेशः । पविरंजिउ स्निग्धो निषिद्धश्च । पक्कसावड' शरभो व्याघ्रश्च । पायप्पहणो कुक्कुटः । ९८. पा.सा. । ९९. पवहाइआ - डे. । १००. पडिपिंडिअं - सा.डे. । १. पच्चवलोक्को २. पम्मछुहणी - डे. । मु. । ३. परियालइ - पा. सा. । ४. मुद्नाति - डे. । ५. पडुआलिअं - सा. । ६. वर्द्धापितः - डे. । ७. पविरिजिओ ८. पक्कसावओ - पा. सा. । सा. । ९. सरभो सा. । - Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 209 पिट्ठखउरा गडुलसुरा । पियमाहवी कोकिला । पिंडलइअं पिंडीकृतम् । पुरिलदेवो असुरः । पुरुपुरिआ उत्कंठा । पेसणयारी भूषितः ॥छा। फैसलाणिउ भूषितः । बडबडइ विलपतीति धात्वादेशः । बिंबोवणयं क्षोभो विकार९३ उच्छीर्षकं च । बीअजमणं बीजमलनखलम् । दंत्योष्ठ्यादिरयमित्यन्ये छ।। भयवग्गामो मोढेरकम् । भुरुहुँडिअं उद्धूलितम् । 'भुरुकुंडिय'मित्यन्ये । भूमिपीसाउ९५ तालः । मइमोहणी सुरा । मज्झिमगंडं उदरम् । महुरालियं.६ परिचितम् । मयलबुत्ती रजस्वला । मंगलसज्झं बीजवापसज्जं क्षेत्रम् । मणिड्या कटीसूत्रम् । मयणिवासो कामः । महासउणो घूकः । महावलक्खो भाद्रपदे श्राद्धपक्षः । । १०. पिंजलइयं - डे. । पिंडलइयं - सा. । १५. भूमिपिसाओ - पा.सा.मु. । ११. पुरपुरिआ - पा.सा.डे. । १६. महुरालिअं - डे.मु. । १२. फासलाणीउ - डे. । फेसलाणीओ - सा । १७. शेषं क्षेत्रम् - मु. । १३. विकारः - डे. । १८. मयिणिवासो - 2. । १४. भयवग्गमो - पा. । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मक्कडबंधं अत्र, महमहइ मडुर्वेइअं हतं तीक्ष्णं च । मालाकुंकुमं श्रेष्ठकुंकुमम् । महारयणं मुसुमूरइ रयणिद्धयं २२ अनुसंधान - १६ • 210 ग्रीवाभरणं सव्यापसव्योपवीतसंस्थानम् । • मुरुमुरिअं‍ रणरणक: - - गन्धः प्रसरतीति धात्वादेशः । वस्त्रम् । वस्त्रभेद इत्यन्ये । कुमुदम् । उत्कण्ठा ॥ छा । लयापुरिसो पद्मकरा वधूर्यत्र लिख्यते । लहुअवडो वटः । लोलुंचाविअं रचिततृष्णम् ॥छ|| वलग्गंगणी वृति । वडूणसालो छिन्नपुच्छ: । वलंउफं विषुवैत् समरात्रिंदिवः कालः । वदिकलिअं वैलितम् । वहुहाडिणी वध्वा उपरि या परिणीयते । 'वहुधारिणी' नववधूः । वइरोअणो बुद्धः । वड्ढणमिरं पीनम् । वइवलउ डुडुभसर्पः । वक्कडबंधं वलयबहू भक्तीति धात्वादेश: ॥छ || आ. । १९. मणुवइअं २०. महारयणं डे. । २१. मुरुमुरियं - सा.डे. । २२. रुयरुइआ सा. । २३. वलंवचउप्पं - डे. । वओवउप्फं - मु. । २८. वलयबहू - पा.सा.डे. । कर्णाभरणम् । चूडाख्यं बाह्यभरणम् । २४. विषुलवत् - डे । २५. चलितम् - डे. । २६. वट्टणमिरं - सा. । २७. डुंडभसर्पः पा.सा. । दुंदुंभसर्प्प:- मु. Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वणसवाई वग्गोरमयं कलकंठी । रुक्षम् । वरहाडड् निःसरति निषेधति च । वालिआफोसं स्वर्णम् । वाहगणओ मंतीख । वायडघडो दुर्दुराख्यो वाद्यविशेषः ॥छ । विअलंबलं ३२ दीर्घम् । विरसमुह काकः । विहसिव्वियं २४ विकसितम् । विअउलिअं मलिनम् । विमलहरो कलकलः । विलुत्तहिओ य: काले कर्तुं न जानाति । विप्पगालइ नाशयति । विरमालइ प्रतीक्षते । विडैविड्डुइ रचयतीति धात्वादेशाः ||छ । सरिसाहुलो सदृक् । सहउत्थिया दूती । सइदंसणं चिंतावलोकितम् । संखबैइल्लो हालिकच्छन्दोत्थायी वृषभः । ससराइयं निष्पिष्टम् । समइच्छियं अतिक्रान्तम् । ---- पा.सा. । २९. वाहगण मत्ती पा. डे. विना । ३१. दुर्दराख्यो - डे. । ३०. ३२. विअलंबनं पा. । ३३. विरुसमुट्ठो डे. । अनुसंधान - १६ 211 ९ - - ३४. विहसिव्विअं पा.सा.डे. । ३५. वियओलियं - पा.सा.डे. । ३६. विलुत्तहियओ आ. । विलुत्तहिउ - डे. । ३७. विडुविड्डड - डे. । ३८. संखवइल्लो - सा. । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 212 सइलास मयूरः । सइसिलिंबो स्कन्दः । सयक्खगत्तो कितवः४१ । समुद्दहरं पानीयगृहम् । सवडंमुहो अभिमुखः । समुष्पिजेलं अयँशो रजश्च ॥ सिंगेरिवम्मं वल्मीकः । सिरिवच्छीवो गोपालः । सिहंडडुलो बालो दधिशिरो मयूरच || || सुहउत्थिआ दूती । ★ सुगंधिंगडं सुवणबिंदू विष्णुः । स्तनोपरिवस्त्रग्रंथिः । सुदुम्मणिआ रूपवती । सदुमुणियेति शीलाङ्कः । सुकुमार्लिंअं सुघटितम् ॥छ । हलप्फलियं शीघ्रम् । आँकुलत्वमित्यन्ये । हत्थिहरिल्लो वेषः । महो नीरोगदक्षयोः । हत्थुच्छ्रहणी नववधूः । हरिचंदणं कुंकुमम् । हत्थिअचक्खुं वक्रावलोकनम् । हरपच्चुअं स्मृतं नामोद्देशेन दत्तं च ||छ|| सा. । ३९. इला ४०. सइसिविंबो - पा. 1 ४१. कितवा: पा. । ४२. समुप्पिजलं - सा. । ४३. आयशो रजश्च ..पा. सा. । ४४. सुगंधिगंडं - पा. डे. । ४५. सदुम्मणियेति - मु. सा. । सुदुम्मयेति पा. । ४६. सुकुमालितं - सा. डे. । ४७. अकुलत्वमित्यन्ये सा. । ४८. हत्थच्छुहणी ४९. हत्थियचक्खुं - मु. 1 पा.सा. । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 213 अथ षडक्षराः ॥ अमयनिंग्गमो चंद्रः । अविणयवरो जारः । अंजणईसिया तापिलम् । अइरके (ज्जु ) वई अणहप्पैडयं अनष्टम् । अजुअलवण्णा अल्लपल्लवं पार्श्वपरिवर्तनम् । अम्मर्णे अंचिअं- अहिपच्चुइअं द्वौ अनुगमने । अकं तलिमो निःस्नेहो अकृतविवाहश्च । अत्र, अहिपच्चु अइ गृह्णाति आगच्छति च धात्वादेशः ॥छ|| उवलयभग्गो वलयानिः । नववधूः । अम्लिकावृक्षः । सप्तच्छदे तु 'अयुगलपर्ण' शब्दात् । उदयभंडो भ्रमरः । पितरार्थस्तु संस्कृतात् ॥छ । उत्तार्णेपत्तयं एरण्डपत्रपुष्पादि । उड्डियाँहरणं क्षुरिकाग्रस्थं गृहीत्वा लाघवेन पदपादांगुलिभिरुत्पतनं तदुड्डियाहरणमुच्यते । ★ उच्छलउलियं कौतुकेन त्वरितयतिंम् । उत्थल्लपत्थल्ला पार्श्वद्वयेन परिवर्तनम् । ★ उव्वत्तपरत्तं पार्श्वयो: स्थूलं समंजसविवर्त्तनं च । ऊसुरुसुंभिअं रुद्धगलं रोदनम् । एकल्लपुडिंग विरलबिंदुवर्षः ॥ छा । ५०. अमयणिग्गमो ५१. अंजणअसिया पा. । ५२. अइरज्जुवई - पा. सा. । ५८. उत्ताणंपत्तयं ५३. अणहप्पणयं सा.पा. । ५९. उड्डिआहरणं - डे. । ५४. अजुअणवण्णा पा. । ६० त्वरितयानम् - मु. । ५५. अम्मणुयंचियं - मु. । मु. ५६. अकणुतलिमो - पा.सा. । अकणितलिमो - डे. । डे. । ५७. अहिपचुअई पा.सा. । - ६१. एकल्लपुडिगं - पा. । एक्कलपुडिंगम् - मु. । Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 214 कइलबइल्लो स्वच्छन्दचारी वृषभः । कइअंकसइ निकरः । कुंडिअपेसणं ब्राह्मणविष्टिः । । कुंतीपोटलयं चतुष्कोणम् ॥छ।। कोसट्टइरिया चंडी । चडुलातिलयं स्वर्णशृंखलालंबिरनतिलकम् ॥छ। छिछष्टरमणं चर्चास्थगनक्रीडा ॥ छेत्तसोवणयं क्षेत्रजागरणम् ॥छ।। जंकयसुकओ५ अल्पसुकृतग्राह्यः ॥छ।। तणयमुद्दिया अंगुलीयकम् ॥छ।। थुरणुल्लणयं शय्या ॥छ। धवलसउणो हंसः ॥छ।। पत्तपसाइया-पत्तपिसालसं द्वौ पुलिंदशिरः पर्णपुटे । परिहलाविउ जलनिर्गमः । पयलायभत्तो मयूरः । परिअट्टलियं परिच्छिन्नम् । पत्थरभल्लियं कोलाहलकरणं । पडिणिसणं रात्रिपरिधानवस्त्रम् । पाडलसउण हंसः । पुरिल्लपहणो( हाणा)अहिद्रंष्ट्रा । मयणसलाया शारिका । मणिणायहरं समुद्रः । मुहरोमराई भ्रूः । ६२. ब्राह्मणवृष्टिः - डे. ।। ६८. पत्तपसालयं - पा. । ६३. चटुलातिलयं - पा.सा. । ६९. पयलायतत्तो - सा.डे. । ६४. छिछटरमणं - पा.सा.डे. । ७०. परिअलिअं - पा.सा. । ६५. जंकयसुकउ - डे. । जंकयसुकलं - सा. । ७१. पत्थरभल्लिअं - डे. । ६६. थुरणुल्लयं - आ. । ७२. पुरिल्लपहाणा - मु. । ६७. पत्तपिसाइया - डे. । ७३. मयरोसलाया - पा.डे. । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 215 रोमलयासयं उदरम् । लडहक्खमिअं विघटितम् । लासयविहउँ मयूरः । विलुप्तहियउ यः काले कार्यं कर्तुं न जानाति । सरवसहो धर्माय त्पक्षो(त्यक्तो) गौः । सीरोवहासिया८ लज्जा । सुलसमंजरी तुलसी । सोलहावत्तउ शंखः । सोवण्णमक्खिया मधुमक्षिकाभेदः । अथ सप्ताक्षराः ॥ अलमलवसहो दुर्दान्तवृषभ इति गोपालः । इंदमहकामु श्वा । कहाद्वपल्हत्थियं पार्श्वद्वयापवृत्तम् । किमिहरवसणं कौसेयम् । जंपिच्छिरमग्गिरो यो यदृष्टं तन्मृगयते । दुद्धगंधियमुहो बालः । परिहाइत्तिया ऋजुमती । वणएक्कसावउ सरभः । सत्तावीसंजोअणो चंद्रः । समरसहहँउ समानवयाः । समुद्दनवणीयं अमृतं चंद्रश्च ।। ७२. पुरिलपहाणा - मु.। ८१. कडाह - मु. । ७३. मयरोसलाया - पा.डे. । ८२. पल्हथिअं - पा. । ७४. लड्डहखमिअं - डे. । ८३. कौशोयं - पा. । ७५. लासयविहओ - सा. । ८४. जंपेच्छिरमग्गिरो - मु. । ७६. विलुत्तिहियओ - पा. । विलुत्तहिअउ - डे. । ८५. दुद्धगंधिअमुहो - डे. । ७७. सइरंवसहो - डे. । ८६. शरभः - पा.सा. ।। ७८. सीरोवहासिआ - डे. । ८७. सत्तावीसंजोयणो - पा. । ८८. समरसद्धहओ - पा. । समरद्धडहओ - डे. । ८०. इंदमहकामुओ - पा. । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 216 अथाष्टाक्षराः ॥ अवरिहड्डपुसणं अकीर्तिरसत्यं दानं च । उत्तरणवरंडिया ९ उडुपः । दरवल्लर्णिहेलणं शून्यगृहम् । धूमद्धयमहिसीउर कृत्तिका ॥छ। श्रीहेमसूरि(रे)रभिधानकोशाद्देश्या-त्पदान्यर्थसमन्वितानि । उद्धृत्य वर्णक्रमतोऽखिलानि लिलेख सूरिविमलाभिधानः ॥१॥ बोधजाड्यतमच्छनान् ग्रंथांतरगृहस्थितान् । अनेन देश्यदीयेन पश्यंत्वर्थान् जनान्(नाः) स्फुटत्(न्) ॥२॥ प्रत्यक्षरगणनया ग्रंथाग्रं १२०० लिखिते खा ॥छ। ८९. उत्तरवरंडिआ - डे. । ९०. उडूपः - डे. । उडुप्पः सा. । ९१. दरवल्लनिहेलणं - डे. पा. । दरवल्लनिहिलणं - पा. । ९२. धूमद्धयमहिसीओ - पा. । धूमद्धयमहिसियउ - डे. । ९३. पा. श्रीहेमसूरेरभिधानकोशाद्देश्यात्पदान्यर्थसमन्वितानि । उद्धृत्य वर्णक(म)तोऽखिलानि लिके(ले)ख सूरिविमलाभिधानः ॥१॥ बा(बो)धजाड्यतमश्छिन्नान् ग्रंथान्तरगृहस्थितान् । अनेन देश्यदीपेन पश्यंत्वर्थान् जनाः स्फुटान् ॥२॥ ग्रंथाग्रं १२०० संवत् १६४० वर्षे वैशाखवदि षष्टी भोमे लि[खि]तं । लेखक-पाठकों शुभं भवतु ।। डे. श्रीहेमसूरेरभिधानकोशादेश्यात्(ल्)पदान्यऽर्थ समन्वितानि । उद्धृत्य वर्णक्रमतोऽखिलानि लिलेख सूरिविमलाभिधानः ॥१॥ बोधजाड्यतमश्चन्ना(च्छन्ना)न् ग्रंथान्तरगृहस्थितान् । अनेन देश्यदीपेन पं(प)श्य(न्)त्वर्थान् जनाः स्फुटाइन् (स्फुटान्) ॥२॥ इत्याचार्यश्रीहेमचंद्रविरचितादेशीनाममालोद्धार देश्यशब्दसमुच्चयः समाप्तः॥ ग्रंथाग्रं. ॥१२५०॥छ। सा. श्रीहेमसूरेरभिधानकोशाद्देशात्पदान्यर्थसमन्वितानि । उद्धृत्यवर्णक्रमतोऽखिलानि लिलेखसूरिविमलाभिधानः ॥१॥ बोधजाड्यतमच्छनान् ग्रंथान्तरगृहस्थितान् । अनेन देश्यदीपेन पश्यंत्वर्थान् जनाः स्फुटान् ॥ प्रत्या(त्य)क्षरगणनया ग्रंथाग्रं ॥१२२०॥ श्रीखरतरगच्छ श्रीकीर्तिरत्नाचार्याणां श्रीकल्याणचंद्रोपाध्या..... ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ललितविस्तर (मूलपाठ) लिपिशालासंदर्शनपरिवर्तः देवदेवो ह्यतिदेवः सर्वदेवोत्तमो विभुः । असमश्च विशिष्टश्च लोकेष्वप्रतिपुद्गलः ॥९॥ अस्यैव त्वनुभावेन प्रज्ञोपाये विशेषतः । शिक्षितं शिष्यायिष्यामि सर्वलोकपरायणम् ॥१०॥ इति हि भिक्षवो दश दारकसहस्राणि बोधिसत्त्वेन सार्धं लिपि शिष्यन्ते स्म । तत्र बोधिसत्त्वाधिस्थानेन तेषां दारकाणां मातृकां वाचयतां यदा अकारं परिकीर्तयन्ति स्म, तदा अनित्यः सर्वसंस्कारशब्दो निश्चरति स्म । आकारे परिकीर्त्यमाने आत्मपरहितशब्दो निश्चरति स्म । इकारे इन्द्रियवैकल्यशब्दः । ईकारे ईतिबहुलं जगदिति । उकारे उपद्रवबहुलं जगदिति । ऊकारे ऊनसत्त्वं जगदिति । एकारे एषणासमुत्थानदोषशब्दः । ऐकारे ऐर्यापथः श्रेयानिति । ओकारे ओघोत्तरशब्दः । औकारे औपपादुकशब्दः । अंकारे अमोघोत्पत्तिशब्दः । अकारे अस्तंगमनशब्दो निश्चरति स्म । ककारे कर्मविपाकावतारशब्दः । खकारे खसमसर्वधर्मशब्दः । गकारे गम्भीरधर्मप्रतीत्यसमुत्पादावतारशब्दः । घकारे घनपटलाविद्यामोहान्धकारविधमनशब्दः । डकारेऽङ्गविशुद्धिशब्दः । चकारे चतुरार्यसत्यशब्दः । छकारे छन्दरागप्रहाणशब्दः । जकारे जरामरणसमतिक्रमणशब्दः । झकारे झषध्वजबलनिग्रहणशब्दः । अकारे ज्ञापनशब्दः । टकारे पटोपच्छेदनशब्दः । ठकारे ठपनीयप्रश्नशब्दः । डकारे डमरमारनिग्रहणशब्दः। ढकारे मीढविषया इति। णकारे रेणुक्लेशा इति । तकारे तथतासंभेदशब्दः । थकारे थामबलवेगवैशारद्यशब्दः । दकारे दानदमसंयमसौरभ्यशब्दः । धकारे धनमार्याणां सप्तविधमिति । नकारे नामरूपपरिज्ञाशब्दः । भकारे भवविभवशब्दः । फकारे फलप्राप्तिसाक्षाक्रियाशब्दः। बकारे बन्धनमोक्षशब्दः । भकारे भवविभावशब्दः । मकारे मदमानोपशमनशब्दः । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 218 यकारे 'यथावद्धर्मप्रतिवेधशब्दः। रकारे रत्यरतिपरमार्थरतिशब्दः । लकारे लताछेदनशब्दः । वकारे वरयानशब्दः । शकारे शमथविपश्यनाशब्दः । षकारे घडायतननिग्रहणाभिज्ञज्ञानावाप्तिशब्दः । सकारे सर्वज्ञज्ञानाभिसंबोधनशब्दः । हकारे हतक्लेशविरागशब्दः । क्षकारे परिकीर्त्यमाने क्षणपर्यन्ताभिलाप्यसर्वधर्मशब्दो निश्चरति स्म ॥ इति हि भिक्षवस्तेषां दारकाणां मातृकां वाचयतां बोधिसत्त्वानुभावेनैव प्रमुखान्यसंख्येयानि धर्ममुखशतसहस्राणि निश्चरन्ति स्म ॥ तदानुपूर्वेण बोधिसत्त्वेन लिपिशालास्थितेन द्वात्रिंशद्दारकसहस्राणि परिपाचितान्यभूवन् । अनुत्तरायां सम्यक्संबोधौ चित्तान्युत्पादितानि द्वात्रिंशद्दारिकासहस्राणि । अयं हेतुरयं प्रत्ययो यच्छिक्षितोऽपि बोधिसत्त्वो लिपिशालामुपागच्छति स्म ॥ १. R प्रज्ञोपायं. २. R शिक्षयिष्यामि. ३. R "वैपुल्य° for “वैकल्य'. ४. R ऐरपथः for ऐर्यापथ:. ५. R °ध्वजवर" for °ध्वजबल'. ६. R तथासंभेद for तथता. ७. R परिज्ञान" for परिज्ञा'. ८. R भवतिभव for भवविभव'. ९. R प्रतिषेध for प्रतिवेध. १०. R. निग्रहषडभिज्ञ for "निग्रहणाभिज्ञ. ११. "भिलाष° for भिलाप्य'. Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ललितविस्तर (अनुवाद) डॉ. प्रीतम सिंघवी बा 'बारहक्खर कक्क' में हमारे प्रास्ताविक वक्तव्य में हमने मातृका अथवा तो बारहखडी को लेकर जो कुछ रचनाएं मध्यकालीन साहित्य में की गई थी उनका परिचय दिया है। सरहपाद के अपभ्रंश भाषा में रचित 'मातृका-प्रथमाक्षर दोहक'का परिचय अनुसंधान के १२ वें अंक में दिया गया है (पृष्ठ ६३-६६) । वह रचना अपभ्रंश भाषामें है। यहाँ पर बौद्ध ग्रंथ ललितविस्तर में बोधिसत्त्व शाला में मातृका पढ़ने लगे इसका जो वर्णन दिया गया है वह शायद सबसे प्राचीन है। यह वर्णन बौद्ध मिश्र संस्कृत में हैं । नीचे उसका अनुवाद दिया जा रहा है । बोधिसत्त्व के साथ दस हजार बालक लिपि सिखते थे। जब वे मातृका पढते थे तब - जब वे अकार का उच्चारण करते थे तब सर्व संस्कार अनित्य है, ऐसा वचन निकलता था । जब आकार का उच्चारण करते थे तब आत्महित और परहित हो, ऐसा वचन निकलता था । ____ जब इकार का उच्चारण करते थे तब इन्द्रियों (आध्यात्मिक शक्तियों) की विपुलता हो, ऐसा वचन निकलता था । जब ईकार का उच्चारण करते थे तब जगत् ईतिबहुल (संकटबहुल) है, ऐसा वचन निकलता था । . जब उकार का उच्चारण करते थे तब जगत् उपद्रवबहुल है, ऐसा वचन निकलता था । जब ऊकार का उच्चारण करते थे तब जगत् ऊनसत्त्व (जगत् कम Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 220 अच्छाई वाला) है, ऐसा वचन निकलता था । . जब एकार का उच्चारण करते थे तब सभी दोष एषणा (कामना) से उत्पन्न होते हैं, ऐसा वचन निकलता था । जब ऐकार का उच्चारण करते थे तब ऐर्यापथ (क्लेश रहित क्रियामार्ग) श्रेष्ठ है, ऐसा वचन निकलता था ।। जब ओकार का उच्चारण करते थे तब ओघोत्तर (संसार प्रवाह से उपर उठो, उस को पार करो), ऐसा वचन निकलता था । जब औकार का उच्चारण करते थे तब औपपादुक सत्त्व है (जिसकी उत्पत्ति रज और वीर्य से नहीं होती ऐसे जीव है), ऐसा वचन निकलता था। जब अंकार का उच्चारण करते थे तब अमोघ शक्ति (जो कभी विफल नहीं होती, निकम्मी नहीं होती) की उत्पत्ति हो, ऐसा वचन निकलता था । जब अकार का उच्चारण करते थे तब सर्व अन्त को पाता है, ऐसा वचन निकलता था । जब ककार का उच्चारण करते थे तब कर्म के फल सत्त्व (जीव) को प्राप्त होता है, ऐसा वचन निकलता था । जब खकार का उच्चारण करते थे तब सर्व धर्म आकाश की तरह शून्य है, ऐसा वचन निकलता था । जब गकार का उच्चारण करते थे तब धर्मों का प्रतीत्य समुत्पाद (धर्मों का कार्यकारणभाव) समझना कठिन है, गंभीर है, ऐसा वचन निकलता था। जब घकार का उच्चारण करते थे तब मोहान्धकार के घनपटल को हटाओं, ऐसा वचन निकलता था । जब ङकार का उच्चारण करते थे तब अंगविशुद्धि करो, ऐसा वचन निकलता था । जब चकार का उच्चारण करते थे तब चार आर्य सत्य है, ऐसा वचन निकलता था । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६.221 जब छकार का उच्चारण करते थे तब छन्द (इच्छा, तृष्णा) और राग का नाश करो, ऐसा वचन निकलता था । जब जकार का उच्चारण करते थे तब जरा और मरण का अतिक्रमण करो, ऐसा वचन निकलता था । जब झकार का उच्चारण करते थे तब झषध्वज (=मीनकेतु =कामदेव) के बल का निग्रह करो, ऐसा वचन निकलता था । जब अकार का उच्चारण करते थे तब ज्ञान कराओ या देना चाहिये, ऐसा वचन निकलता था । जब टकार का उच्चारण करते थे तब पट का (आवरण का) उच्छेद करो, ऐसा वचन निकलता था । जब ठकार का उच्चारण करते थे तब ठपनीय (स्थापनीय प्रश्न यानी जिस प्रश्न को बाजू पर कर देना उसका उत्तर नहीं देने का) प्रश्न होते हैं, ऐसा वचन निकलता था । जब डकार का उच्चारण करते थे तब डमर (प्रबल) मार का निग्रह करो, ऐसा वचन निकलता था । - जब ढकार का उच्चारण करते थे तब मीढ (छोडा हुआ) जिसने विषयों को छोड दिया है ऐसे पुरुष हैं, ऐसा वचन निकलता था । जब णकार का उच्चारण करते थे तब क्लेशरूपी रेणु (रज) है यानी ऐसे पुरुष है जिनको क्लेशरूपी रज लगी हुई है, ऐसा वचन निकलता था। जब तकार का उच्चारण करते थे तब तथता (सत्य को पूरा पूरा) को जानो, ऐसा वचन निकलता था । जब थकार का उच्चारण करते थे तब थामबल (आरब्ध की दृढता) और वेग तथा वैशारद (शुद्धता) प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । जब दकार का उच्चारण करते थे तब दान, दम, सौरभ्यता प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । जब धकार का उच्चारण करते थे तब आर्यों के सात प्रकार के धन 24 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 222 प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । - जब नकार का उच्चारण करते थे तब नाम और रूप का अच्छा ज्ञान प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । जब पकार का उच्चारण करते थे तब परमार्थ है, ऐसा वचन निकलता था । जब फकार का उच्चारण करते थे तब फल प्राप्ति और साक्षात्कार क्रिया करो, ऐसा वचन निकलता था । ". जब बकार का उच्चारण करते थे तब बन्धन से मुक्ति हो, ऐसा वचन निकलता था । जब भकार का उच्चारण करते थे तब भव का नाश करो, ऐसा वचन निकलता था । जब मकार का उच्चारण करते थे तब मद, मान दोनों का उपशम करो, ऐसा वचन निकलता था । जब यकार का उच्चारण करते थे तब यथावत् धर्म (वस्तु जैसी है वैसी बराबर) को जानो, ऐसा वचन निकलता था । - जब रकार का उच्चारण करते थे तब रति (सत कर्मों में आसक्ति) अरति (दुष्कर्मों में अनासक्ति) और परमार्थ रति (रति में आसक्ति) को समझो या करो, ऐसा वचन निकलता था । जब लकार का उच्चारण करते थे तब संसाररूपी लता का छेदन करो, ऐसा वचन निकलता था । जब वकार का उच्चारण करते थे तब श्रेष्ठ यान (धर्म मार्ग) ग्रहण करो, ऐसा वचन निकलता था । । जब शकार का उच्चारण करते थे तब शमथयान (समाधि मार्ग) और विपश्यना में क्रमशः प्रवेश करो । ऐसा वचन निकलता था । जब षकार का उच्चारण करते थे तब षडायतन (पाँच इन्द्रिय और मन) का निग्रह करो, और छ अभिज्ञज्ञान (अलौकिक ज्ञान) है उनकी प्राप्ति करो, ऐसा Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६. 223 वचन निकलता था । जब सकार का उच्चारण करते थे तब सर्वज्ञज्ञान का पूर्णरूप से सम्यक बोध करो, प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । जब हकार का उच्चारण करते थे तब क्लेश और विशेष राग का नाश करो, ऐसा वचन निकलता था । जब क्षकार का उच्चारण करते थे तब क्षणपर्यन्त (क्षणिक) और अभिलाप्य (वाच्य) है सर्व धर्म, ऐसा वचन निकलता था । इस तरह भिक्षुओं बालकों को मातृका का पठन करने का सिखाते थे तब बोधिसत्त्व के प्रभाव से असंख्य या तो लाखों धर्मतत्त्व के शब्द निकलते थे। ऐसे जब बोधिसत्त्व लिपिशाला में थे तब बत्तीस हजार बालक परिपक्व हो गए। इस तरह बत्तीस हजार बालकों के चित्त में सर्वोत्तम सम्यक् सम्बोधि का ज्ञान उत्पन्न किया । इस कारण से और इस उद्देश्य से बोधिसत्त्व शिक्षित होने पर भी लिपिशाला में गए । (कुछ कठिन परिभाषिक शब्दों के अर्थ करने के लिये डॉ. नगीनभाई शाहने सहाय दी है। इसके लिये मैं उनकी आभारी हूँ।) Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 224 अथ व्यंग्यहीयाली जाइ (जइया ?) सहीहिं भणिया तुज्झ पई सुनदेउलसरिच्छो । तो कीस मुद्धडमुही अहिययरं गव्वमुव्वहइ ? ॥१॥ [ शून्यदेवकुले प्रतिमा कापि न भवति । ] जइ सासुयाइ भणिया पियवसहिं पुत्ति ! दीवयं दिज्जा । ता कीस मुद्धडमुही हसिऊण पलोयए वच्छं ? ॥२॥ [ तया चिन्ततं - मत्प्रियस्य वसतिर्मम हृदये किं तत्र दीवयं ददामि ? ] श्रीभंवरलाल नाहटा जइ देवरेण भणियं खग्गं गहिऊण राउले वच्च । ता कीस मुद्धडमुही हसिऊण पलोयए सिज्जं ? ||३|| [ विपरीतरतं कृतं पुरुष इवाचरितं इति तेनोक्तम् । ] जइ सामिएण भणियं तुज्झ मुहं चंदबिंबसारिच्छं । ता कीस मुद्धमुही करेण गंडत्थलं फुसइ ? ॥४॥ [चन्द्रमाः सकलङ्कः ता मम गंडत्थले कि कलङ्कं ? इति हेतो: । ] दट्ठूण तं जुवाणं परियणमज्झम्मि पोढमहिलाए । उप्फुल्लदलं कमलं करेण मउलावियं कीस ? ॥५॥ [तयोक्तं यदा कमलं संकुचति तदा आगन्तव्यं, रात्रौ इत्यर्थः । ] अहिणवपिम्म-समागम - जुव्वण- रिद्धी-वसंतमासम्मि । सुत्तस्स तीइ पइणो (?) सहि ! कीस पलोइयं सीसं ? ॥६॥ [पशुरयं, अस्य मस्तके शृङ्गमप्यस्ति ? इति शिरो विलोकितम् । ] सहस्रनयनैः पश्यामि । ] दूरपवासपठत्थं (त्तं) दइयं दट्टण भवणदारम्मि । वासुइ-वाण- पुरंदर संभारिया केण कज्जेण ? ||७|| [सहस्राभिजिभि: स्तौमि, सहस्रवासु (बाहु ?) भिरालिङ्गनं करोमि, Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 225 अब्भत्थिया जुवाणी जइ सा तरुणेण गव्वियमणेण । अंगुलिदोउब्भेयं ता चंदं कीस दंसेइ ? ॥८॥ [यदा एष अस्तं याति तदा आगन्तव्यं, कृष्णपक्षे इत्यर्थः ।] भूयाण पियं सुहडाण मंडणं निवडियं च चलणेसु । दट्ठण जाइ चिंता मरियव्वं अज्ज सीएण ॥९॥ [निश्चितं पुष्पवती एषा अतो अनु(अ)भोग्या इति । ] विवरीयरए लच्छी बंभं दट्टण नाहिकमलत्थं । हरिणो दाहिणनयणं झंपेइ ता कीस (?) (झंपइ ता केण कज्जेण?) ॥१०॥ [दक्षिणनयनं सूर्यस्तस्मिन् स्थगिते कमलं संकोचं गृह्मति ॥] जा सहि ! भएण दिज्जइ सुहडा रक्खंति सा पयत्तेण । सा मह पिएण दिन्ना तेण इसी(सि?) सामलं वयणं ॥११॥ [कोऽर्थः ? पृष्टिः, पराङ्मुखो भूत्वा सुप्तः । ] हे देवर ! जाण तुमं करयलमज्झम्मि जं मए गहियं । • पयइपरुच्चिया बाला विक्खिरइ करंजपत्ताई ॥१२॥ [संकेतस्थानं प्रकटयति ।] जइ सा सहीहि भणिया तुज्झ पई दोसगहणयसइण्हो । ता कीस मुद्धडमुही अहिययरंगट्ठमुव्वहइ ? ॥१३॥ [मा मत्प्रियस्य दृष्टिर्भविष्यति ।] (नोंध : श्रीनाहटाजीए धूजती कलमे पण केटलीक पद्यरचनाओ जूनी ५.ओमांथी उतारी मोकलेल छे. उमर तेमज आंखोनी तकलीफने कारणे लखाणमां क्षतिओ रही जाय तो ते समजी शकाय तेम छे. परंतु ८८-८९ वर्षनी पाकट वये पण संशोधननो रस अकबंध होवो ते परिणत विद्वत्तानी तथा अखंड ज्ञान-रस-जिज्ञासानी निशानी ज गणाय. तेओए 'व्यंग्य हीयाली' शीर्षक हेठळ केटलांक समस्यारूप पद्यो लखी मोकल्यां छे, तेमां जेटलां पद्यो उकेल-सहित हतां, अने जेटलाना अक्षरो उकेलवा शक्य बन्या, तेटलां पद्यो उपर आप्यां छे. नाहटाजीए आ साथे लखावी मोकलेल नोंधमां जणाव्युं छे के- "कुछ हीयालीसंग्रह तथा हैद्राबाद के चार कमान मंदिर के ज्ञानभंडारसे Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 226 संग्रहित कुछ सामग्री भिजवा रहे हैं, यथोचित प्रकाशित कर सकते हैं" । अन्य सामग्री आगळना अंकोमां, आ रीते, आपवामां आवशे. 'हीयाली' ते पाछळथी 'हरियाली' तरीके प्रसिद्ध थयेल काव्य प्रकार ज मूळ रूप लागे छे. आ प्रकारमां, अहीं आपेलां पद्योमा छे तेवा सांकेतिक प्रश्नो के समस्याओ गूंथवामां आवे छे, जेनो उकेल/उत्तर विचक्षण जणे शोधी काढवानो रहे छे.) Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. ४. ६. अनुसंधान - १६ • 227 केलांक संशोधनो / प्रकाशनो विषे ३. प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी- अमदावादना उपक्रमे, मध्यकालना मुस्लिम कवि अब्दुल रहमाणनी अपभ्रंश भाषामय रचना 'संदेशरासक' बे भागमां पुनः प्रकाशित थई छे. एनुं संपादन डो. हरिवल्लभ भायाणीए कर्तुं छे. प्रथम भागमां मूळ कृति तथा ते पर जैनमुनि हंसरत्नकृत अवचूरिनो, अने द्वितीय भागमां विस्तृत अभ्यास लेख तेम ज अंग्रेजी - गुजराती अनुवादो, परिशिष्टोनो समावेश थयो छे. ७. उपाध्याय श्रीयशोविजयजी - कृत 'ज्ञानसाराष्टक' ग्रन्थ उपर भावनगरनां डो. मालती के. शाहे महानिबन्धरूपे अभ्यास ग्रन्थ तैयार कर्यो छे, जेने गुजरात युनिवर्सिटीए Ph.D. माटे मान्य करेल छे. आ ग्रंथ श्रीहेमचन्द्राचार्य निधि, अमदावादना उपक्रमे प्रकाशनाधीन छे. ४५ जैनागमो पैकी १० प्रकीर्णकोमांना एक 'मरणसमाधि' ग्रंथ उपर अमदावादना डॉ. अरुणा एम. लठ्ठाए अभ्यासपूर्ण शोधनिबंध तैयार करेल छे. ते माटे तेमने गुजरात युनि. तरफथी Ph. D. पण प्राप्त थयेल छे. आ ग्रंथ महावीर जैन विद्यालय - मुंबई द्वारा प्रकाशनाधीन छे. वि.सं. ९७५मां, नागेन्द्रकुलना आचार्य विजयसिंहसूरिजीए रचेली 'भुवनसुंदरी कहा' नामक प्राकृत भाषाबद्ध महाकथानुं संपादन विजयशीलचन्द्रसूरि द्वारा थतां हाल ते मुद्रणाधीन छे. प्रा.. टे. सो. नुं प्रथम प्रकाशन 'अंगविज्जा' (सं. मुनि पुण्यविजयजी) अलभ्य थई जतां तेनुं पुनर्मुद्रण थयुं छे. श्रीहेमचन्द्राचार्य-कृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित महाकाव्यना ५-६-७ पर्वमय तृतीय भाग हवे मुद्रणाधीन छे. थोडा समयमां ज श्रीहेमचन्द्राचार्य निधि द्वारा तेनुं प्रकाशन थशे. स्व. आचार्य श्रीविजयनन्दनसूरिजीनी गत वर्षे उजवायेल जन्म शताब्दी निमित्ते कीर्तित्रयी नामे त्रण मुनिओए नूतन संस्कृत रचनाओनो ज समावेश करतुं एक संस्कृत सामयिक प्रकाशित कर्तुं छे : नन्दनवनकल्पतरु. तेना Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. अनुसंधान - १६ •228 अंक प्रकाशित थयेल छे. त्रीजो अंक हवे प्रकाशनाधीन छे. प्रकाशक : जैन ग्रंथ प्रकाशन समिति, खंभात. स्व. जैनाचार्य श्रीविजयकस्तूरसूरिजीनी चालु वर्षे उजवाएली जन्मशताब्दी निमित्ते प्राकृत विज्ञान बालपोथी १ - २ (सचित्र) प्रकाशित थई छे. प्राकृत भाषामां प्रवेश करवां उत्सुक अभ्यासुओ माटे वधु उपयोगी प्रकाशन. संपादक आ.विजयसोमचन्द्रसूरिजी छे. आशरे १२० वर्षो अगाउ भावनगरना श्रावको पंडित कुंवरजी आणंदजी वगेरेए जैन साहित्यना अध्ययनादि अर्थे तथा विद्याना प्रसारार्थे 'जैन धर्म प्रसारक सभा' नी स्थापना करेली. तेना उपक्रमे हजारेक ग्रंथो पण प्रगट थयेला. ते सभानुं मुखपत्र 'जैन धर्म प्रकाश' शताधिक वर्षो सुधी प्रकाशित थतुं रह्युं छेल्लां त्रणचार दायकाथी ते सभा मृतप्राय बनी हती. तेनो समृद्ध ग्रंथभंडार तथा प्रकाशन प्रवृत्ति छिन्न भिन्न थयेली. ताजेतरमां आ. विजयशीलचन्द्रसूरिजीनी महेनतथी तेनो पुनरुद्धार थयो छे. तेना मकाननो जीर्णोद्धार, लायब्रेरीनुं पुनर्गठन, तथा प्रकाशन-प्रवृत्तिनो प्रारंभ थयेल छे. प्रथम प्रकाशन 'श्रीपाल राजाना रासनुं रहस्य' नामक ग्रंथ छे. सूरत- स्थित विद्वान जैन प्राध्यापक पं. धीरजलाल डाह्यालाल महेताए अभ्यासीओने उपयोगी थाय तेवी सरल गुजराती भाषामां नीचेना ग्रंथोना अनुवाद तथा विस्तृत विवेचन कर्यां छे. १. योगविंशिका - सटीक (कर्ता : हरिभद्रसूरि तथा वा. यशोविजयजी) २. योगशतक सटीक (कर्ता : हरिभद्रसूरि ) ३. १ थी ४ कर्मग्रंथो (४ भागमां ) ( कर्ता : श्रीदेवेन्द्रसूरि ) ४. पूजासंग्रह ( कर्ता : वीरविजयजी तथा अन्य ) ५. रत्नाकरावतारिका १ - २ ( कर्ता : रत्नप्रभसूरि) ६. योगदृष्टिसमुच्चय - सटीक (कर्ता : हरिभद्रसूरि ) - Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 229 बारहक्खर-कक्क-महमंद-मुणि-विरझ्य, संपादक. ह. भायाणी. प्रकाशक : अपभ्रंश साहित्य अकादमी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी राजस्थान २००० ककहरा या बावनी नागक साहित्यिक विधानी उत्तरकालीन अपभ्रंश भाषामां रचेली एक मध्यकालीन कृति. सिद्धसेन शतक. अनुवादक - विवेचक मुनि भुवनचंद्र. प्रकाशक : जैन साहित्य अकादमी, गांधीधाम (कच्छ), २०००. सिद्धसेन दिवाकर कृत 'द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका मांथी चूंटेला सो श्लोकोनो सविवरण गुजराती अनुवाद। अनुयोगद्वार सूत्रम्-चूर्णि-विवृत्ति-सहित. प्रथम विभाग सम्पादक : मुनि जम्बूविजय. जैन-आगम-ग्रन्थमाला-ग्रन्थाङ्क १८(१) प्रकाशक : महावीरजैन विद्यालय, मुम्बई. १९९९. विस्तृत गुजराती प्रस्तावना, संस्कृत आमुख अने अंग्रेजी Foreward साथे. जैन दर्शनमां श्रद्धा (सम्यग्दर्शन), मतिज्ञान अने केवलज्ञाननी विभावना. कर्ता नगीन जी. शाह. पो.जे. अध्यात्म व्याख्यानमाळा ग्रंथ ६, प्रकाशक : भोळाभाई जेशिंगभाई अध्ययन-संशोधन विद्याभवन, अमदावाद. २००० श्रद्धा, सम्यग्दर्शन, मतिज्ञान अने केवलज्ञाननी विभावनाओनी वैदिक, बौद्ध अने जैन दर्शनोनी तुलनात्मक मौलिक विचारणा । अन्वय. संस्कृत भाषासाहित्य- त्रैमासिक. अंक बीजो. संपादक विजय पंड्या. प्रकाशक : पार्श्व पब्लिकेशन-अमदावाद. २०००. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहिती विभाग अनुसंधान - १६ •230 ( १ ) मुनिश्री जंबूविजयजीए जेसलमीरना जैन भंडारोमांनी ताडपत्रीय अने कागळनी हस्तप्रतोनी नकल कराववानी हाथ धरेली योजना ऑस्ट्रेलियानी केन्बेरा युनिवर्सिटीमा अध्ययन करता डॉ. रोयस वाइल्से अढी मास जेसलमीरमां रहीने, मुनिश्री जंबूविजयजीए त्यांना जैन भंडारोमांनी ताडपत्रीय अने कागळनी हस्तप्रतोनी नकल तैयार कराववानुं जे काम ओगस्ट थी डिसेम्बर (१९९८) सुधी कर्यं तेना सविस्तर अहेवाल पेरीसथी प्रकाशित थता संशोधन-सामयिक Bulletin D'etudes Indiennes ना १६मा अंकमा (१९९८) आप्यो छे. तेने आधारे नीचेनो टूंक सार तैयार कर्यो छे. 1 पुण्यविजयजीए एमणे १९५३मां आपेला एक व्याख्यानमां आ भंडारोनी हस्तप्रतोनी अनन्यता पर ध्यान खेंच्युं हतुं । एमणे तैयार करेल ए हस्तप्रतोनी सूचि १९७२मां प्रकाशित थई हती । एमां चारसो- एक ताडपत्रीय अने केटलीक कागळनी प्रतोनो परिचय अपायो हतो । आ परियोजना माटे ए भंडारोना ओसवाल जैन कोमना ट्रस्टीओ साथे मुनिजीए चार वरस वाघाये चलावी हती । बधी ताडपत्रीय प्रतोनी तथा कागळनी प्रतोनी Scanned प्रतिकृति तैयार करी, तेमनो Compact disc पर एक समग्र सेट तैयार करवो, जेनी चार नकल ट्रस्टने अने एक जंबूविजयजीने मळे ए रीते गोठवण थई हती । जंबूविजयजीनी प्रेरणाथी अमदावाद अने मुंबईना जैन ट्रस्टोए आ योजनानो खर्च उठाव्यो हतो । ए प्रतिकृति उपरथी लेसर - मुद्रणो तैयार करी जेसलमीरना ट्रस्टने आपवानां हतां । आ काम माटे सौथी मोटा कदना सपाट आकारना स्केनिंग यंत्रो सींगापोरना हवाई मार्गे लवायां हतां, तेवी ज रीते अद्यतन कम्प्युटरो वगेरे अमदावादथी लवाया हता । आम टेकनिकल दृष्टिए अद्यतन साधनो उपयोगमां लीधां हतां । नकल माटेना कागळो एलाबास्टर पेपर जर्मनीथी मगावाया हता । जिनभद्रगणिभंडार उपरांत Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 231 जेसलमीरना बीजा भंडारोनी कागळनी हस्तप्रतोनी नवी सूचि मुनिजीओ अने साध्वीजीओनी सहायथी तैयार करवामां आवी हती। (२) जैनविद्या : नेमिचन्द्र विशेषांक (अंक १९ एप्रिल १९९७-९८) जैन विद्या संस्थान. दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी (राजस्थान) 'गोम्मटसार' आदिना कर्ता, अग्यारमी शताब्दीमां थई गयेला नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्तीए प्रतिपादित करेल जैन कर्मसिद्धान्त वगेरेने लगता परिचय लेखो आ अंकमां आपवामां आव्या छ। (३) पाणिनिकृत अष्टाध्यायी । पाणिनिकृत अष्टाध्यायी । गुजराती भाषांतर कर्ता : जयंतीलाल ही. भट्ट, संपादक : किशोरचंद्र भा. पाठक । भूमिकाखंड अने प्रथम भाग । रु. १५०+ ८५०. प्रकाशक : गोपालकृष्ण ट्रस्ट, जूनागढ । १९९९ । पहेलीवार 'अष्टाध्यायी', गुजराती भाषांतर अभ्यासीओने उपलब्ध बने छ । भूमिकामां पाणिनिपरंपरा वगेरेने लगती जे माहिती आपी छे तेथी 'सिद्धहेमशब्दानुशासन'नो अभ्यास करनार माटे पण आ अनुवाद उपयोगी थशे । Early Modern Indo-Aryan Languages, Literature and Culture. संपादको : A.W.Entwistle, C. Salomon, H. Paulvels, M.C. Shapiro, Rs. 800, 1999. Manohar Publishers, New Delhi. वॉशिंग्टन युनिवर्सिटी (सिएटल)मां १९९४मां भरायेल नव्य भारतीयआर्य भाषाओना भक्तिसाहित्यने लगता छठ्ठा आंतरराष्ट्रीय संमेलनमां रजू थयेला आ निबंधोमांथी The Apabhramisa cariu as courtly poem (R.J.Cohen), Bārahmāsa in Condāyan and in Folk Traditions (S.M. Pandey), The eñdadi type of songs in oral and written Traditions of Northern India. (H.C.Bhayani) निबंधो, प्राकृत-जैन साहित्यमा रस धरावनारने माटे उपयोगी. 'अनुसंधान'अंक २ मां उपलब्ध सौथी प्राचीन बारहमासा 'जिणधम्म सूरि बारहमावंउ' (संपा. रमणीकभाई शाह) प्रकाशित थयेल छ । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 232 Middle Indo-Aryan and (the) Vedic (Dialects) (Miscellanea Palica VII), Thomas Oberlies. (Historische Sprachforschung Vol. 112, part I, 1999) आ लेखमां पालि अने प्राकृतनो भाषिक संबंध, प्राकृत धूदा/धूया, धातुओ वच्चे गणभेद, मध्यम भारतीय-आर्य अने वैदिक भाषा-ए विषयोने आधारे तपासी छे । A Word Index and Reverse Word Index to Early Jain Canonical Texts : Āyāraṁga, Sayagada, Uttarajjhāyā, Dasaveyāliya, and Isibhāsiyāim. by Moriichi Yamazaki and Yumi Ousaka (Philogiea Asiatica, Monograph Series 15). The Chuo Academic Research Institute, Tokyo, 1999. Lumiere de l’Absolu (Yogindu). Translated from Apabhraṁsa into French by Nalini Balbir and Colelte caillat. (Rivages Poche/Petite Bibhidhéque) Paris, 1995.. (योगीन्दुकृत 'परमप्पपयासु/परमात्मप्रकाश'नो फेन्च भाषामा अनुवाद) A Reference Manuel of Middle Prakrit-Grammar (The Prakrits of the Dramas and the Jain Texts) by Frank Van Den Bossche (Publisher : Vakgroep Talen in culturen van Zuid - en Uost-Azië, Gent (1999) पिशेल वगेरेनां प्राकृत व्याकरणोनो जरूरी उपयोग करीने नाटकनी प्राकृतो अने जैन ग्रंथोनी प्राकृतोना व्याकरण माटे आ हाथवगो अद्यतन संदर्भग्रंथ छे. संक्षिप्त छतां व्यवस्थित अने संपूर्ण व्यवहारोपयोगी माहिती आपवानो प्रयास छे. ध्वनिविचार अने रूपविचारनी साथे संस्कृतमाथी प्राकृतमा थयेला ध्वनिपरिवर्तनना नियमो, प्रत्ययोनी सूचि, संपूर्ण शब्दसूचि, सर्वत्र उदाहरणो वगेरे आपवा साथे Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 233 रजूआत वैज्ञानिक पद्धतिए करेल छे. महाराष्ट्री, जैन महाराष्ट्री, शौरसेनी, जैन शौरसेनी, मागधी अने अर्धमागधी एटली प्राकृतोतुं निरूपण छे. वान देन बोश बेल्जियमना घेन्टनगरमां आवेली युनिवर्सिटी ऑफ घेन्टमां अध्यापक छे. Viyāhapannatti (Bhagavai). The Fifth Anga of the Jaina Canon. (Introduction, Critical Analysis, Commentry and Indexes) by Jozef Delen, Publisher. De Tempel, Tenpelhof 37, Brngje(Beljil)(1970). सद्गत डॉ. योझेफ देलेउए एमना आ पुस्तकमां जैन आगमना पांचमा अंग 'भगवई वियाहपन्नत्ति' विषयोनुं शतकवार पृथक्करण टीका-टिप्पण साथे रजू कर्यु छे. 'भगवई'नी रचना विशे ७० जेटलां पृष्ठमां सविस्तार विचारणा करी छे. चाळीशेक पृष्ठमां शब्दसूचिओ आपी छे. देलेउए घेन्ट युनिवर्सिटीमां वर्षो सुधी अध्यापन कार्य कयुं हतुं. राजशेखरना 'प्रबंधकोश'ना कोशविज्ञाननी दृष्टिए नोंधपात्र शब्दो, 'महानिसीह'नुं अध्ययन, 'निरआवलियाओ' वगेरे एमनुं संशोधन कार्य प्रकाशित थयुं छे. - हरिवल्लभ भायाणी बाठाक पृष्ठमा शब्दसूची आपीछे Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६. 234 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास'- नवसंस्करण सद्गत मोहनलाल दलीचंद देशाई लिखित उपर्युक्त महत्त्वना आकरग्रंथर्नु नवसंस्करण कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचंद्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि तरफथी प्रकाशित करवानुं विचार्यु छे. श्रीजयंत कोठारी एनुं संपादन करशे. बहु महत्त्वाकांक्षी थई शकाय एवं नथी पण श्रीदेशाईए पाछळ दर्शावेली शुद्धिवृद्धि मूळ सामग्रीमां आमेज करी लेवाशे अने संपादक पोतानी जाणकारीथी थई शके ते थोडा सुधारा करशे. अथी वधारे तो आ विषयना विद्वानो मददे आवे तो ज थई शके. विद्वानो आ रीते मददरूप थई शके : १. ग्रंथ जोई जईने सुधारावधारा सूचवी शके. २. ग्रंथनो आ पूर्वे उपयोग करती वखते आ प्रकारनी नोंध करी होय ते उतारी आपी शके. ३. आवी नोंधवाळी पोतानी नकल संपादकने जोवा-उतारवा आपी शके. विद्वानोने एक महत्त्वना आकर ग्रंथना नवसंस्करणमां पोतानो फाळो नोंधाववा आग्रहभरी विनंती छे. काम हाथमा लेवाई रह्यं छे एटले बनी शके एटली त्वराथी शुद्धिवृद्धि अने अन्य सूचनो मोकलवामां आवे तो एनो उपयोग थई शके. विद्वानोने एमना परिश्रम माटे घटतो पुरस्कार आपवानी व्यवस्था पण छे. आ अंगे संपादकनो आ सरनामे संपर्क करशो. जयंत कोठारी २४, नेमिनाथ (सत्यकाम) सोसायटी, आंबावाडी, अमदावाद - ३८००१५ फोन (०७९) ६७४ ५० ५७ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 235 'प्राचीन-मध्यकालीन साहित्य संग्रह' सद्गत मोहनलाल दलीचंद देशाईनी जैन साहित्यनी सेवा अजोड छे. एमर्नु घणुं लेखन हजु सामयिकोमा दटायेलुं पड्युं छे. श्रीदेशाईए अनेक प्राचीनमध्यकालीन कृतिओने सामयिकोनां पानां पर पहेली वार प्रकाशित करी छे. आवी कृतिओनो संचय उपर्युक्त नामथी प्रकाशित करवा- लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरे स्वीकार्यु छे. ग्रंथना संपादननी जवाबदारी श्रीजयंत कोठारी संभाळी रह्या छे. __ आ ग्रंथमां मोटी संख्यामां गुजराती (क्वचित् हिंदी) अने थोडी संस्कृतप्राकृत-अपभ्रंश रचनाओ छे. बहुधा पद्यरचनाओ छे, केटलीक गद्यरचनाओ पण छे. एमां रास-कथा, फागु, बारमास, संवाद, गीत-पद, गझल, स्तवन, सज्झाय, सुभाषित, उखाणां, हरियाळी, चैत्यपरिपाटी, तीर्थमाळा, तीर्थयात्रा, पट्टावली, मुनिचरित्र, औतिहासिक पत्रो वगेरे वैविध्यपूर्ण सामग्री छे. १०० उपरांत कृतिओने समावतो आ ग्रंथ ५०० उपरांत पानांओमां विस्तरवानी धारणा छे. कृतिओ जेम मळी छे तेम मूकी देवामां नथी आवी, परंतु संपादके पोतानी सूझसमजथी अने हाथवगां थयेलां अन्य साधनो (मुद्रित ग्रंथो अने हस्तप्रतो सुद्धां)नी मददथी घणी शुद्धि करी छे. कर्ता-कृति विशेनी आवश्यक माहिती जोडी छे अने विस्तृत शब्दकोश आपवानुं पण धार्यु छे. ग्रंथ अत्यारे मुद्रणाधीन छे. जयंत कोठारी Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 236 विहंगावलोकन -मुनि भुवनचन्द्र अनुसंधाननो १५ मो अंक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जुनी गुजराती - एम चार भाषानी कृतिओ धरावे छे । (संपादक - लेखकोना टिप्पणनी भाषाओ ध्यानमां लेतां कुल छ भाषाओनो प्रयोग आ अंकमां थयो गणाय ।) आ सामग्री विविध छे, विशिष्ट छे अने मोटा भागे शुद्ध छे । आ. शीलचन्द्रसूरिनो सामग्री संपादनमा सिंहफाळो छे, अन्य संशोधकोनां नाम ओछं छे। श्रमण-श्रमणी वर्गमां प्राचीन साहित्यना अभ्यास अने संशोधननी उपेक्षा थई रही छे एवं आना परथी लागे । संपादकमंडळे पोताना निवेदनमां आ अंगे वेदना व्यक्त करी छे । परंतु संपादको धीरज धरे एम कहेवानी इच्छा थाय छे । रुचि नथी, तो ते केळववानी छे, 'अनुसंधाने' आ काम करवानु छ । रुचि केळवातां समय लागे छ । (एक खुलासो : गतांकमां छपायेल मारा चर्चापत्रमा काव्यमालानो उल्लेख करेलो । ए श्रेणी 'निर्णय सागर प्रेस' द्वारा मुंबईथी प्रगट थती हती । काशीथी प्रगट थती हती ते श्रेणी, नाम 'श्रीयशोविजयजी जैन ग्रन्थमाला' के एवं कंइक हतुं') आ अंकमांनी प्रथम कृति 'सारस्वतोल्लास' विशे एक नोंध अलगथी लखी छे । 'अज्ञातकर्तृक स्तोत्रषट्क'मांनी अपभ्रंश रचनाओ अपभ्रंश अने गुजरातीना संधिकाळनी छे । गेय देशी रागोमां अपभ्रंश रचनाओ ओछी मळे छे। 'सामि सामलयतणुकंति किरणावली' ए रचना कडखानी देशी अथवा झूलणा छंदमां रचाइ छ । कडी (२)मां "ब्भूअ" नहिं, 'ब्भुअ' जोइए । 'जम्मुत्सवो' (कडी ३) अने 'लंबणो' (कडी ४)मां छापभूल लागे छे । अहीं अनुक्रमे 'जम्मुस्सवो' अने 'लंछणो' जोइए । छछी रचना पण गेय छे ।। 'कमलपञ्चशतिका स्तोत्र' विद्वत्प्रतिभा अने भाषाप्रभुत्वनुं एक मनोरम उदाहरण छ । भक्तिरस अने आध्यात्मिक जीवननी पोषक सामग्री लेखे आवी रचनाओनुं महत्त्व तो स्वयंसिद्ध छे । परंतु, मानवबुद्धिना चमकारा अने अध्ययनपरिशीलन द्वारा बुद्धिप्रकर्ष केवी ने केटली हदे थयो हतो - थइ शके Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ .237 छे - तेना निदर्शन तरीके आवी कृतिओनुं महत्त्व हमेशां रहेशे । श्रमणोए करेला विद्याव्यासंगनी छबी साचवी राखती आवी तो अगणित कृतिओ हजी पण ज्ञानभंडारोमां भंडारायेली पडी छे अने संशोधन-संपादननी राह जुए छे। आ रचना छंद, व्याकरण, शब्दकोशना ज्ञानने पुष्ट करे छे अने सरस बौद्धिक व्यायामनी तक आपे छ । स्तोत्रमा ५०० थी वधु वखत 'कमल' शब्दनो विनियोग थयो छे । टिप्पण साथे छपायुं छे तेथी सरळता थई छे। 'मुनिवरसुरवेली' नामनी कृति 'जैन गूर्जर कविओ'मां नोंधाइ छ । 'साधुवंदना' प्रकारनी आ रचना छ । अन्य कविओए पण 'साधुवंदना'ओ रची छ । जाणीता अने खेडायेला विषय पर नवं लखवू सहेलुं नथी होतुं । आवी रचनाओनो विषय तो मर्यादित अने एक सरखो होय, पण विद्वान कविओ पोतानी आगवी शैलीथी रचनाने उठाव आपे छ । आ रचना पण आगवी ढबे रचाइ छ। कविए भाषानी दृष्टिए नावीन्यनो प्रयोग को छ । एक आखी ढाळ प्राकृतमां छे, वच्चे वच्चे पण संस्कृत-प्राकृत गाथाओ मूकी छे, ते उपरांत गमे ते कडीमां प्राकृत-गुजराती, संस्कत-गुजरातीनुं विना संकोचे मिश्रण कर्यु छ । कडी १२६-१२७ अव्यवस्थित छपाइ छ । लेखक एटले के लहियाना हाथे थयेली भूलोने संपादकोए जेमनी तेम राखवानी जरूर न होय । संशोधके मूळ रचनाकारनी निकट जवानुं छे । पादनोंधमां के प्रस्तावनामां आवी बाबतोनी नोंध लइ शकाय अने मूळ वाचनामां संशोधित पाठ मूकाय । चौदमी ढाळनी कडीओनुं वाचन भूलभरेलुं थयुं छे । देशी के छंदना लय तथा बंधारणने समजीने वाचना तैयार करवी जोइए । "सहस पुरुषस्यूं संयमी, सिरिथावच्चा गुरुपासिइं रे, पासिई रे ते पूरव सम अभ्यासीआ रे ।" - आ रीते आ ढाळ वाचवी जोइए एम लागे छे ।। 'निशालगरणा'मांनो 'गरj' शब्द 'गमन'मांथी ऊतरी आव्यो होवानी कल्पना कृतिना संपादक मुनिवर करे छे, परंतु 'गरj' शब्द 'ग्रहण'मांथी बन्यो होवानी शक्यता वधु छे । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ • 238 'स्थूलिभद्रबारमासा'नी लगभग प्रत्येक कडीमां किं (अनुस्वारसहित ) छपायो छे। कि अव्यय अनुस्वाररहित होवो जोइए । हस्तप्रतमां किं होय तो पण संशोधके ए सुधारी लेवो जोइए अने पादनोंध के प्रस्तावनामां तेवी नोंध करवी जोइए । तत्त्वविजयजी कृत हरियाळी सुंदर छे । आनो उकेल छे कलम | कलमने अहीं नारीरूपे समस्यानो विषय बनाव्यो छे । कलम 'बरू' नामना घासमांथी बनाववामां आवे छे। आ घास ऊंचुं अने मजबूत होय छे । “बे नारीए मळीने नर उत्पन्न कर्यो" शाही अने कलम द्वारा अक्षर उत्पन्न थाय छे । 'चार पत्नीवाळो पुरुष' एटले अंगूठो, चार पत्नी ते चार आंगळीओ । 'पिस्तालीस आगमनी पूजा' नोंधपात्र छे। आ पूजामां जल, चंदन वगेरेनो उपयोग नथी, टिप्पणमां बदाम अने वासपूजानो उल्लेख छे । आजे प्रचलित पूजा विधि करतां भिन्न प्रकारनी विधिओ पण हती ए तथ्य केटलाक वर्तमान प्रश्नोनो हल शोधवामां सहायक बनी शके । 'बृहत् शांतिस्तोत्र' नी पंदरमी सोळमी सदीनी वाचना आ ज अंकमां छपाई छे, तेने तपासतां पण आवुं ज एक तथ्य हाथ लागे छे । क्रियाकलापमा काले काले संस्करण - संमार्जन थतां रह्यां छे तेनुं आ एक उदाहरण बने छे । 1 ( नोंध : मुनि भुवनचंद्रजी 'अनुसन्धान' मां ऊंडो रस ले छे अने तेनी सामग्रीनुं सूक्ष्मेक्षिकाथी अवलोकन करी जरूर जणाय त्यां सम्मार्जन सूचवे छे, घणी आवकार्य वात छे. अन्य मुनिगण तथा विद्वज्जनो आ प्रकार अपनावशे तो अमने विशेष बळ मळशे. -' जम्मुत्सवो' प्रयोग पण मान्य छे. ब्लूअ तथा लंबणो ए वाचन - -क्षति छे. - कडी १२६-१२७ नी वाचना : बहुपद पन्नवणा पन्नवणा, निज्जूढा भगवंत । वीसमो य पटयेधर जाणो सामसूरि गुणवंतिइ भविआ, प्रणमो भवि उपगारी थिविरावलिइ कह्या जे थेरा, ते प्रणमो गणधारी ॥ १२६ ॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 239 सीहगिरिना सीस मनोहर, धणगिरि वयर सुसीसा । अरिहदत्तगुरु सि(स)मितायरिआ, भद्र सुगुप्त मनीसा ॥१२७॥ आम होय तेम जणाय छे. -- किं ए बोलाती जबान- सूचन करे छे. आवी गेय रचनाओ ज्यारे गवाय त्यारे गानार जे उच्चार-लढणथी तेने बोले-गाय, ते ज्यारे लखाय त्यारे आवा प्रयोग सर्जाता होय छे. अने आवा प्रयोगोनुं पण महत्त्व छे, ते सचवावा जोईए. घणीवार, कर्ता तथा कृतिना समयनो के प्राचीनता-नवीनतानो निर्णय करवामां, आवा सानुस्वार-निरनुस्वार पाठो-पाठांतरो खप लागे पण छे.) Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सारस्वतोल्लास' : एक दृष्टिपात ___-मुनि भुवनचन्द्र 'अनुसंधान'(१५)मां प्रसिद्ध थयेल 'सारस्वतोल्लास' नामक कृति रसप्रद छ । आ एक कविकर्मथी समृद्ध, सजीव चित्रणथी मंडित अने गूढ अनुभवना वर्णनथी रोमांचसभर रचना छ। मंत्रशास्त्र, मानसशास्त्र, काव्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, व्याकरण, शब्दकोश, प्राचीन रीत-रिवाज-एवा घणा दृष्टिकोणोथी आ कृतिनो अभ्यास थई शके । शारदामंत्रना जापनी पराकाष्ठाए कविने स्वप्नमां माता सरस्वतीनां दर्शन थाय छे । आ घटना माटे श्रीशीलचंद्रसूरि तेमना प्रास्ताविकमां 'साक्षात्कार' शब्द वापरे छे। वस्तुतः आ साक्षात्कार नथी, पण मानसिक भासआभास छ । स्मरण-जाप-ध्याननी प्रक्रियाना परिणामे उपासकोने पोतपोताना उपास्यनां स्वप्नमां के तंद्रावस्थामां दर्शन थतां होय छे । ए मानवीना अंतर्मननी एक असाधारणगहन स्थितिनी नीपज छे अने तेनुं आगवं महत्त्व पण छे ज । कविना स्वानुभव- अहीं आलेखायेलुं शब्दचित्र आ विषयनो दस्तावेज बनी रहे एवं छे। दीवाळी अने नवा वर्षना वर्णनमां कवि सतत अद्यतन भूतकालनो प्रयोग करे छे, एनो सूचितार्थ ए छे के आ कृतिनी रचना ते ज दिवसे थई छे । प्रभाते थयेलो अनुभव कविए सांजे शब्दबद्ध कर्यो छे । समग्र काव्यमां कल्पनाविहारने छूटो दोर मळ्यो छे । भाषा-छंद-अलंकारो परतुं कवि- प्रभुत्व अने कविनुं लौकिक तथा साहित्यिक सामान्य ज्ञान आपणने अभिभूत करे छे। बीजी बाजु, क्लिष्ट अने दूराकृष्ट उत्प्रेक्षाओ तथा उपमाओ काव्यनी रसक्षति पण करे छे । कविने शृंगाररस पोषवो होय तेवू तो नथी, तो पण बिनजरुरी शृंगाररसनो विस्तार थयो छे । पोतानुं कवित्व सिद्ध करवा कवि वधारे पडता 'बोलका' बन्या होय एम लाग्यां विना रहेतुं नथी ।। ___ एक ज हस्तप्रतना आधारे संशोधन करवानुं होय त्यारे संशोधकने मुश्केली पडे ए तो देखीतुं छे, तेम छतां वाचना उतावळे तैयार थई हशे, विद्वान Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 241 संशोधक आचार्यश्री कृतिने वधु स्पष्ट करवानो समय नथी मेळवी शक्या एम जणाइ आवे छे । निरांते परिशीलन करतां कृति वधु शुद्ध थई शके एम छे । केटलीक शुद्धिवृद्धि अहीं नों, छु । सिन्धौ सुधांशोस्तलित: स बिम्बः (श्लो. १७) किं सोमभासोऽन्यमहोऽसहिष्णुघोरत्नरुक्कतरिकाविलूनाः (१८) -काराञ्चितोडुप्रकराभिरामान् (३५) नो मां करस्पर्शनतोऽपि तोषम् (३६) मासं विगृह्येन्दुरहो दुरन्तै- (४०) लक्ष्मीश्च वेश्मस्वकृत प्रवेशम् (४२) निर्माप्य मेरात्रिकदीपिकाः स (४६) श्लोक ५०नी बीजी पंक्ति शुद्ध ज छ। "जेवी रीते अर्थो अलंकार साथे काव्यनो आश्रय ले तेवी रीते युवानो तेमनी वधूओ साथे शय्यानुं सेवन करवा लाग्या ।" गाढं शिरो दोलयति स्म रागी (५१) नित्यानमबिम्बनदम्भमज्जद्- (६०) प्राच्यो न तस्य प्रतिमासु दृष्टेः (७८) पादे न कस्यापि नतिं करोति नो चेद्वपुर्वालनया वलग्नो (८०) स्वत्यागिधत्तूरकृतार्चशम्भोः, त्तारालियुग्दृग्दलकेतकी याम् (९४) भूयस्तरांस्तान् पुनराप्स्यतीयं (१२२) स्मेराब्जहस्ताभिनयालिगुञ्जा- (१२७) को वेद भानावुदिते विभाना- (१२९) भुक्तिक्षणान्दोलितपाणिपद्मो- (१३७) न रंकस्य मणिः स्थिरो वा (१४०) नालीकसूनोर्लपनप्रतोली - (१४४) Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ • 242 (नालीकसूनुब्रह्मा) सोऽथाजनि प्रागकरीरसंज्ञा - (१५१) श्लोक ५१-१०६ सुधीना देवीवर्णनमा संशोधकश्री धारे छे तेवू तंत्रशास्त्रीय गूढ रहस्य जणातुं नथी । कविनो निर्बन्ध कल्पनाविहार ज छे, उत्प्रेक्षाओनी भरमार छ । श्लोक १०८ थी ११३ सुधी कविए करेली वाग्देवीनी स्तुति छे । श्लोक १३९ थी १४६ नो अर्थ मने नीचे मुजब बेसे छे १३९. "ते दिवसे साधकना नयनकमल निद्राविमुक्त व्यथा त्यारे चित्तान्तर्गत सरस्वतीरूपी नदीमां रहेला स्वप्नकमलमां एक ज बीज रही गयु" १४०. "अपमानित थयेली चंचल नारीनी जेम, जाप दरमियान अपमान पामेली निद्रा कोप करीने साधकने मळेला बीजमन्त्रो लईने जाणे चाली गई । अथवा रांकना घरे रत्न स्थिर थतुं ज नथी ।" १४१. "ए मन्त्रो चित्तमांथी नीकळी गया तो शुं थयुं ? हृदयरूपी आवासमा रहेलो आ एक ज बीजमन्त्र (ॐकार) एने बधुं ज आपशे । ग्रह वगरनो सूर्य पण जगतने प्रकाश आपी शके छे ।" १४२. "पांच रंगवाळो, विघ्नरूपी सोने शीघ्र नाश करनारो, जेना मस्तक पर कलारूपी शिखा शोभे छे एवो, मयुरनी शोभाने झांखी पाडनारो जे बीजमन्त्र उत्तम जनोना हृदयवनमा रमतो रहे छे ।" १४३. "पापने हांकी काढवा माटे वगाडतांनी साथे शंख जे(ॐ कार)नो उच्चार करे छे, तेथी ज वासुदेव शंखनुं पुत्रनी जेम चुम्बन करे छे ।" (आ श्लोकना अमुक शब्दो अस्पष्ट रहे छे, किन्तु भावार्थ अहीं जणाव्यो ते ज छे एमां शंका नथी ।) १४४. "ब्रह्माना होठ रूपी द्वारो अन्य वर्णो-अक्षरोथी रुंधाइ गयेला जाणीने, अन्यनो स्पर्श थवानी बीके, जे बीजमन्त्र जाणे ब्रह्माना मस्तकनी दीवालोने भेदीने बहार नीकळ्यो ।" (ब्रह्माना मस्तकमांथी ॐकारनो ध्वनि नीकळे छे एवी मान्यता परथी उत्प्रेक्षा करी छे ।) १४५. "(ॐकारमा रहेली) त्रण रेखाओ ए त्रण जगत छे, श्वेत प्रकाशमय Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ •243 कला ते सिद्धिशिला छे, तेनी उपर रहेलो बिन्दु ते सिद्ध-आथी जे बीजमन्त्र विश्वनी नाना कदनी मूर्ति छे के शुं ? (एq लागे छे) ।" १४६. "अर्हत् वगेरे पांचना प्रथम अक्षरोमांथी उत्पन्न थयेला जे बीजमन्त्रने जैनो सर्व आगमोना साररूप माने छे, तो ब्रह्मा-विष्णु-महेशना नामोथी उत्पन्न होवाना कारणे अन्य मतवाळाओ त्रिमूर्ति करतां पण जेने अधिक माने छे ।" (षबिन्दु विष्णु, खण्डेन्दु-शिव, विरञ्चि–ब्रह्मा) १४७. "योगीनी ध्यानधारारूपी गोदावरीमां क्रीडा करनारो तथा लक्ष्मीनुं दान करनारो जे बीजमन्त्र, तेनी आगळ रहेला बावन श्रेष्ठ वीरपुरुषो (बावन अक्षरो)ना लीधे 'हाल' राजानी स्थिति धारण करे छे ।" (हालराजानी कोईक घटनाना आधारे उत्प्रेक्षा ।) १४८. "चन्द्रनी एक कलाने धारण करतो जे बीजमन्त्र जिह्वाने शोभावतो होय त्यां सुधी (जाप करनार) मुखकमळ जरा बीडायेलुं लागे तो तेने अनुचित न समझएँ ।" १४९. "अरिहंत आदिनो एक प्रथमाक्षर पण मोक्ष आपवा समर्थ छे एवं पोताना आश्रितोने जणाववा माटे ज जाणे पांच परमेष्ठीमांथी (परमेष्ठीओना पांच प्रथमाक्षरोमांथी) उत्पन्न एवो जे मन्त्र, तेथी पण ऊंची कोई वस्तुने ऊंची डोके जुए छे एम मा छु ।" (भाव स्पष्ट थयो नथी ।) कृतिमां कर्ताना नामनो उल्लेख नथी एम संशोधकश्री भूमिकामा जणावे छे परंतु मने पूरो वहेम छे के १५१मां श्लोकमां कविए संकेतथी पोता नाम दर्शाव्युं छे । 'सौघाजनि' छपायुं छे त्यां 'सोऽथाजनि'होवू जोइए, जे अर्थनो विचार करतां निःशंक रूपे समजाय छे । “आराधेल श्रुतदेवतानी महान कृपाथी आवेला स्वप्नरूपी मधुमासना प्रभावे ते साधक प्रथमनी 'अकरीर' एवी संज्ञारूपी वेलडी पर 'कवित्व', पुष्प आजे लागी रह्यु होय एवो थयो ।" अर्थात् ते हवे 'अकरीर कवि' कहेवायो । 'संज्ञा' शब्द नामवाचक छ । कविना नामनो अर्थ 'करीर नहि' एवो थाय छे, 'अकरु'के 'नकेरु'-'अकेरु' जेवू नाम होइ शके । 'अकरीर'मां कवितुं नाम छूपायुं छे ते निश्चित छ । हवे आ रचनामांना शब्दो विशे । 'सरि (जलनो प्रवाह) अने टङ्कावली Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , अनुसंधान-१६ • 244 (सोना के चांदीना सिक्कानी पंक्ति)- आ शब्दो तो संस्कृत छ । “ढिंकुला' (१५) छे त्यां 'ढीकली' अथवा 'ढिंकली' होइ शके । 'मध्यकालीन गुजराती कोश'मां 'ढीकली' शब्द छे, जेनो अर्थ छे ‘पत्थर फेंकवा, यन्त्र'। 'ढिंकुला' पण आ ज अर्थमां वपरातो होय एम बने । हस्तप्रत तपासवी जोइए । 'गिलोल'ने ढीकली कहेता होय तो पण ना नहि । 'कुलस्त्रीओना हाथरूपी गिलोलमांथी छूटेला लाडुरूपी गोळा क्षुधारूपी शत्रुनो नाश करे छे ।" 'मेराज्यक' (४५) जेवो ज 'मेरात्रिक' (४६) शब्द पण तळपदो शब्द छ । सुकुमारिका (१७) ए 'सुंवाळी' अने सेवा (१८) ए सेव छे । दीवालीना दिवसोमां सेव अने सुंवाळी बनाववानो रिवाज आजे पण प्रचलित छ । Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रद्धांजलि दुःखद निधन पं. दलसुख मालवणिया भारतीय दर्शनो अने जैन आगमोना आपणा समयना अजोड विद्वान्, महामनीषी, पद्मविभूषण पण्डित श्रीदलसुखभाई मालवणियानु, अमदावाद खाते, ता. २८-२-२०००ना रोज, ९० वर्षनी जैफ वये निधन थयुं छे. तेमना निधनथी भारतना दार्शनिक जगतने, अने विशेषतः तो गुजरातना जैन विद्या जगतने, कदी न पूराय तेवी क्षति थई छे. वैदिक, बौद्ध अने जैन ए त्रणे दार्शनिक धाराओना तेओ मर्मज्ञ विद्वान हता. पंडित सुखलालजीना शिष्य अने साथीदार तरीके तेओए दार्शनिक साहित्यना क्षेत्रे विपुल खेडाण करेलुं छे. पोतानी कारकिर्दीनी शरुआत तेमणे बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय-वाणारसीमां प्राध्यापक तरीके करेली. पछीथी अमदावादमां शेठ लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिरनी स्थापना थतां शेठ कस्तूरभाई तथा मुनि पुण्यविजयजीना प्रयासोथी तेओ अमदावाद आव्या अने ला.द. विद्यामंदिरना नियामक तरीके सेवाओ आपी. ओ संस्थाने तथा तेनां प्रकाशनोने जगतविख्यात बनाववामां पं. मालवणियानो फाळो अनन्य अने अविस्मरणीय छे. आ पछी तो तेमणे अमदावादने ज पोतानुं निवासस्थान बनाव्यु. एक वर्ष माटे टोरन्ये युनिवर्सिटीकेनेडाए तेमने भारतीय धर्म-दर्शनोना विझीटींग प्रोफेसर तरीके आमंत्रेला. ते वखते कायम माटे रही जवानी ते संस्थानी ललचामणी मांगणी थई, छतां ला. द. विद्यामंदिर प्रत्येनी पोतानी निष्ठाने कारणे तेमणे ते ओफरनो साभार इन्कार कर्यो, अने आर्थिक प्रलोभनो तेम ज निजी आवश्यकताओने गौण गणीने विद्याकीय प्रतिबद्धताने ज प्राधान्य आपेलु, जे विद्याकीय नैतिकता तथा निष्ठानो अजोड दाखलो बनी रहे तेम छे. तेमणे अनेक ग्रंथोनां मातबर संपादनो आव्यां छे. जिनागम स्वाध्याय तथा महावीर चरितमीमांसा ए तेमना अंतिम अभ्यासग्रंथो छे. तेमनी सुदीर्घ साहित्य सेवाओ बदल तेमने राष्ट्रपति-सम्मान, पद्मविभूषणनो खिताब तथा अन्य विविध धर्मसंस्थाओ तरफथी मानसन्मान प्राप्त थयां हतां. Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ . 246 'अनुसन्धान'नी प्रकाशन संस्था श्रीहेमचन्द्राचार्य निधिने पण पं. मालवणियाजीने 'श्रीहेमचन्द्राचार्य चन्द्रक' प्रदान करवानो सुयोग केटलाक वखत पूर्वे सांपडेलो. आवी मूर्धन्य दार्शनिक प्रतिभानी चिरविदायथी गुजरात, विद्याजगत तेमज संस्कारजगत रांक बन्युं छे, एम कहेवामां जरा पण अतिशयोक्ति नथी. तेमना आत्माने शांति मळो तेवी प्रार्थना साथे तेमना परिवार पर आवी पडेली आ आपत्तिने सहन करवानुं तेमने बळ मळो तेवी प्रार्थना. पं. दलसुखभाई मालवणियानुं ता. २८-२-२०००ना रोज दुःखद अवसान थयुं । जिनविजयजी, सुखलालजी, बेचरदासजी, पुण्यविजयजीनी जैन विद्याना तलस्पर्शी अध्ययन-संशोधननी उदार, उज्ज्वल, बलिष्ठ परंपराने एमणे जीवंत राखी। ला.द.भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरनी भारतनो एक अग्रणी संशोधन संस्था तरीके विकास, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटीनी ग्रंथ श्रेणी, ला. द. श्रेणीनी, सिंघी जैन, श्रेणी, हावर्ड श्रेणी वगैरेनी समकक्षता; संबोधि संशोधन-सामयिकनी उच्च कक्षा, संशोधकोने मुक्तपणे सहाय-प्रदान ए एमणे जीवनभर चलोवला ज्ञानयज्ञनां फळो छे। हरिवल्लभ भायाणी Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेदकारक निधन पं. अमृतलाल भोजक पंडित श्रीअमृतलाल मोहनलाल भोजक, ताजेतरमा, आशरे ९० वर्षनी जैफ वये दुःखद अवसान नीपज्युं छे. मूळ पाटणना, पाछळथी जीवनना छेडा सुधी अमदावादमां स्थायी थयेला आ पंडितवर्यनुं जैन आगमो तथा विशेषतया प्राकृत भाषाओ विशेनुं ज्ञान अगाध हतुं. आगमप्रभाकर मुनि श्रीपुण्यविजयजी जोडे घनिष्ठ संबंधथी जोडायेला पंडितजीए मुनिजी साथे रहीने तथा स्वतंत्रपणे पण अनेक आगमिक तेमज आगमेतर ग्रंथोनां प्रमाणभूत संपादनो आप्यां छे, जेमां 'पइण्णयाई', 'मूलशुद्धिप्रकरण' वगेरेनो समावेश थाय छे. तेमनी चिरविदायथी प्राकृत तेमज जैन विद्याजगतने एक न पूरी शकाय तेवी खोट पडी छे. 'अनुसंधान' तेमना दिवंगत आत्मानी शान्ति माटेनी प्रार्थनामां तेनो सूर पूरावे छे, अने तेमना परिवारने दिलसोजी पाठवे छे. पंडित श्री दलसुखभाईना स्वर्गवास थयाना समाचार जाण्या. दर्शनशास्त्रना विषयमां तेमनुं आगq प्रदान हतुं. पंडित सुखलालजी पासेथी ते ते विषय- ज्ञान पण तेमने मळ्युं हतुं. भायाणीभाईने तो तेमनी साथे मैत्रीभाव भर्यो मीठो संबंध हतो. आत्मीयतानो भार पण संधायेलो हतो. तेओना समाचार पछी चार पांच दिवसमां ज बीजा समाचार पंडित अमृतभाई भोजकना मळ्या. तेओ पण स्वर्गवासी थया ! प्राकृत भाषामां तेओनी आगवी सूझ हती. तेओए पण केटलांक प्राकृत ग्रन्थोना उत्तम संपादनो आप्यां छे. मुनिराजश्रीपुण्यविजयजी महाराज अने जंबूविजयजी महाराजना कार्यमां सहायक पण बन्या हता. हवे आवा सघन अभ्यासी विद्वानो जलदी जोवा नथी मळतां ! प्रार्थना करवानुं मन थाय छे संस्कृत/प्राकृत भाषामां प्रशिष्ट विद्वानोनी क्यारेय खोट न पडो ! विजयप्रद्युम्नसूरि Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Malvaniyaji Commemoration Issue Scholars are requested to send by the May end their papers for the 17th issue of Anusamdhan to honour and commemorate Dalsukhbhai Malvania, whose sad demise took place on 28-2-2000. His life-long contributions in the areas of Jainology and Indology as Director of Research Institutes, as the general editor of research series and research journals and as a great scholar of Indian Philosophy are internationally known. Acharya Vijayshilchandrasuri Harivallabh Bhayani मालवणियाजी स्मारक अंक "अनुसंधान''ना सत्तरमा अंक माटे मे मासना अंत सुधीमां शोधपत्रो मोकली अपवा विनंती छे । ए अंक दलसुखभाई मालवणिया-स्मारक-अंक तरीके प्रसिद्ध थशे । प्रा. मालवणियाजी, ता. २८-२-२०००ना रोज दुःखद निधन थयुं । जैन विद्या अने भारतीय विद्याना क्षेत्रे मालवणियाजीए जीवनभर करेला बहुविध कार्यनी आंतरराष्ट्रीय ख्याति छे : संशोधन-संस्थाओना निर्देशक तरीके, संशोधन-ग्रंथ-श्रेणिओना अने संशोधन-सामयिकोना सामान्य संपादक तरीके, अने भारतीय तत्त्वज्ञानना आरूढ विद्वान तरीके । आचार्य विजयशीलचन्द्रसूरि हरिवल्लभ भायाणी Address : H. C. Bhayani 25/2, Vimanagar, Satellite Road, Ahmedabad-380015 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________