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ललितविस्तर (अनुवाद)
डॉ. प्रीतम सिंघवी
बा
'बारहक्खर कक्क' में हमारे प्रास्ताविक वक्तव्य में हमने मातृका अथवा तो बारहखडी को लेकर जो कुछ रचनाएं मध्यकालीन साहित्य में की गई थी उनका परिचय दिया है।
सरहपाद के अपभ्रंश भाषा में रचित 'मातृका-प्रथमाक्षर दोहक'का परिचय अनुसंधान के १२ वें अंक में दिया गया है (पृष्ठ ६३-६६) । वह रचना अपभ्रंश भाषामें है। यहाँ पर बौद्ध ग्रंथ ललितविस्तर में बोधिसत्त्व शाला में मातृका पढ़ने लगे इसका जो वर्णन दिया गया है वह शायद सबसे प्राचीन है। यह वर्णन बौद्ध मिश्र संस्कृत में हैं ।
नीचे उसका अनुवाद दिया जा रहा है ।
बोधिसत्त्व के साथ दस हजार बालक लिपि सिखते थे। जब वे मातृका पढते थे तब -
जब वे अकार का उच्चारण करते थे तब सर्व संस्कार अनित्य है, ऐसा वचन निकलता था ।
जब आकार का उच्चारण करते थे तब आत्महित और परहित हो, ऐसा वचन निकलता था ।
____ जब इकार का उच्चारण करते थे तब इन्द्रियों (आध्यात्मिक शक्तियों) की विपुलता हो, ऐसा वचन निकलता था ।
जब ईकार का उच्चारण करते थे तब जगत् ईतिबहुल (संकटबहुल) है, ऐसा वचन निकलता था । .
जब उकार का उच्चारण करते थे तब जगत् उपद्रवबहुल है, ऐसा वचन निकलता था ।
जब ऊकार का उच्चारण करते थे तब जगत् ऊनसत्त्व (जगत् कम
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