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अनुसंधान-१६ • 236 विहंगावलोकन
-मुनि भुवनचन्द्र
अनुसंधाननो १५ मो अंक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जुनी गुजराती - एम चार भाषानी कृतिओ धरावे छे । (संपादक - लेखकोना टिप्पणनी भाषाओ ध्यानमां लेतां कुल छ भाषाओनो प्रयोग आ अंकमां थयो गणाय ।) आ सामग्री विविध छे, विशिष्ट छे अने मोटा भागे शुद्ध छे । आ. शीलचन्द्रसूरिनो सामग्री संपादनमा सिंहफाळो छे, अन्य संशोधकोनां नाम ओछं छे। श्रमण-श्रमणी वर्गमां प्राचीन साहित्यना अभ्यास अने संशोधननी उपेक्षा थई रही छे एवं आना परथी लागे । संपादकमंडळे पोताना निवेदनमां आ अंगे वेदना व्यक्त करी छे । परंतु संपादको धीरज धरे एम कहेवानी इच्छा थाय छे । रुचि नथी, तो ते केळववानी छे, 'अनुसंधाने' आ काम करवानु छ । रुचि केळवातां समय लागे छ ।
(एक खुलासो : गतांकमां छपायेल मारा चर्चापत्रमा काव्यमालानो उल्लेख करेलो । ए श्रेणी 'निर्णय सागर प्रेस' द्वारा मुंबईथी प्रगट थती हती । काशीथी प्रगट थती हती ते श्रेणी, नाम 'श्रीयशोविजयजी जैन ग्रन्थमाला' के एवं कंइक हतुं')
आ अंकमांनी प्रथम कृति 'सारस्वतोल्लास' विशे एक नोंध अलगथी लखी छे । 'अज्ञातकर्तृक स्तोत्रषट्क'मांनी अपभ्रंश रचनाओ अपभ्रंश अने गुजरातीना संधिकाळनी छे । गेय देशी रागोमां अपभ्रंश रचनाओ ओछी मळे छे। 'सामि सामलयतणुकंति किरणावली' ए रचना कडखानी देशी अथवा झूलणा छंदमां रचाइ छ । कडी (२)मां "ब्भूअ" नहिं, 'ब्भुअ' जोइए । 'जम्मुत्सवो' (कडी ३) अने 'लंबणो' (कडी ४)मां छापभूल लागे छे । अहीं अनुक्रमे 'जम्मुस्सवो' अने 'लंछणो' जोइए । छछी रचना पण गेय छे ।।
'कमलपञ्चशतिका स्तोत्र' विद्वत्प्रतिभा अने भाषाप्रभुत्वनुं एक मनोरम उदाहरण छ । भक्तिरस अने आध्यात्मिक जीवननी पोषक सामग्री लेखे आवी रचनाओनुं महत्त्व तो स्वयंसिद्ध छे । परंतु, मानवबुद्धिना चमकारा अने अध्ययनपरिशीलन द्वारा बुद्धिप्रकर्ष केवी ने केटली हदे थयो हतो - थइ शके
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