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________________ अनुसंधान-१६ • 222 प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । - जब नकार का उच्चारण करते थे तब नाम और रूप का अच्छा ज्ञान प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । जब पकार का उच्चारण करते थे तब परमार्थ है, ऐसा वचन निकलता था । जब फकार का उच्चारण करते थे तब फल प्राप्ति और साक्षात्कार क्रिया करो, ऐसा वचन निकलता था । ". जब बकार का उच्चारण करते थे तब बन्धन से मुक्ति हो, ऐसा वचन निकलता था । जब भकार का उच्चारण करते थे तब भव का नाश करो, ऐसा वचन निकलता था । जब मकार का उच्चारण करते थे तब मद, मान दोनों का उपशम करो, ऐसा वचन निकलता था । जब यकार का उच्चारण करते थे तब यथावत् धर्म (वस्तु जैसी है वैसी बराबर) को जानो, ऐसा वचन निकलता था । - जब रकार का उच्चारण करते थे तब रति (सत कर्मों में आसक्ति) अरति (दुष्कर्मों में अनासक्ति) और परमार्थ रति (रति में आसक्ति) को समझो या करो, ऐसा वचन निकलता था । जब लकार का उच्चारण करते थे तब संसाररूपी लता का छेदन करो, ऐसा वचन निकलता था । जब वकार का उच्चारण करते थे तब श्रेष्ठ यान (धर्म मार्ग) ग्रहण करो, ऐसा वचन निकलता था । । जब शकार का उच्चारण करते थे तब शमथयान (समाधि मार्ग) और विपश्यना में क्रमशः प्रवेश करो । ऐसा वचन निकलता था । जब षकार का उच्चारण करते थे तब षडायतन (पाँच इन्द्रिय और मन) का निग्रह करो, और छ अभिज्ञज्ञान (अलौकिक ज्ञान) है उनकी प्राप्ति करो, ऐसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520516
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages254
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size8 MB
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