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________________ अनुसंधान-१६.221 जब छकार का उच्चारण करते थे तब छन्द (इच्छा, तृष्णा) और राग का नाश करो, ऐसा वचन निकलता था । जब जकार का उच्चारण करते थे तब जरा और मरण का अतिक्रमण करो, ऐसा वचन निकलता था । जब झकार का उच्चारण करते थे तब झषध्वज (=मीनकेतु =कामदेव) के बल का निग्रह करो, ऐसा वचन निकलता था । जब अकार का उच्चारण करते थे तब ज्ञान कराओ या देना चाहिये, ऐसा वचन निकलता था । जब टकार का उच्चारण करते थे तब पट का (आवरण का) उच्छेद करो, ऐसा वचन निकलता था । जब ठकार का उच्चारण करते थे तब ठपनीय (स्थापनीय प्रश्न यानी जिस प्रश्न को बाजू पर कर देना उसका उत्तर नहीं देने का) प्रश्न होते हैं, ऐसा वचन निकलता था । जब डकार का उच्चारण करते थे तब डमर (प्रबल) मार का निग्रह करो, ऐसा वचन निकलता था । - जब ढकार का उच्चारण करते थे तब मीढ (छोडा हुआ) जिसने विषयों को छोड दिया है ऐसे पुरुष हैं, ऐसा वचन निकलता था । जब णकार का उच्चारण करते थे तब क्लेशरूपी रेणु (रज) है यानी ऐसे पुरुष है जिनको क्लेशरूपी रज लगी हुई है, ऐसा वचन निकलता था। जब तकार का उच्चारण करते थे तब तथता (सत्य को पूरा पूरा) को जानो, ऐसा वचन निकलता था । जब थकार का उच्चारण करते थे तब थामबल (आरब्ध की दृढता) और वेग तथा वैशारद (शुद्धता) प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । जब दकार का उच्चारण करते थे तब दान, दम, सौरभ्यता प्राप्त करो, ऐसा वचन निकलता था । जब धकार का उच्चारण करते थे तब आर्यों के सात प्रकार के धन 24 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520516
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages254
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size8 MB
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