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अनुसंधान - १६ • 31 एयं संखेवेणं सामुद्दयसत्थलक्खणाणुगयं । कहियं कुमार ! तुह कोउएण, अन्नं पि निसुणेसु ॥ ३१ ॥
तिन्नि गहीराणि सया विउलाइ य हुंति तिन्त्रि वत्ताई । चत्तारि य रहस्साइं पंच य सुहुमाई दीहाई ॥३२॥ छच्चुन्नयाई सत्त य आरत्ताइं च संपयमिमस्स । गाहादुगस्स कमसो, विवरणमेयं निसामेह ||३३||
नाभी - सर - सत्ताइं य गंभीराई च तिन्नि धन्नाई । वयणं उरं निडालं तिन्नि य विउलाई संसंति ||३४||
पिट्टं लिंगं जंघं गीवा चत्तारि होंति ह्रस्साई । केस-दसणंगुली - पव्व- नहंतया पंच सुहुमाणि ||३५|| हणु-नयण - थणंतर-बाहू - नासिया होंति पंच दीहाई रायाणं चिय बहुसो न उणो सामन्नपुरिसाण ||३६|| हिययं कक्खा - नह - नासिया य वयणं च कंधराबंधो । इय हुँति उन्नयाई कुमर ! पसत्थाइं छच्चेव ||३७|| नयत-पाय-कर-जीह नहा- हरोट्ठा
तालू य हुंति सुहया इह सत्तरत्ता । एयाणि जस्स नरनाह ! हवंति अंगे सल्लक्खणाणि पुरिसस्स स चक्कवट्टी ||३८|| असयं छनउई चउरासीइ य अंगुलपमाणं । उत्तम - मज्झिम- हीणाण देहपमाणं मणुस्साण ॥ ३९॥
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