________________
अनुसंधान-१६ •243 कला ते सिद्धिशिला छे, तेनी उपर रहेलो बिन्दु ते सिद्ध-आथी जे बीजमन्त्र विश्वनी नाना कदनी मूर्ति छे के शुं ? (एq लागे छे) ।"
१४६. "अर्हत् वगेरे पांचना प्रथम अक्षरोमांथी उत्पन्न थयेला जे बीजमन्त्रने जैनो सर्व आगमोना साररूप माने छे, तो ब्रह्मा-विष्णु-महेशना नामोथी उत्पन्न होवाना कारणे अन्य मतवाळाओ त्रिमूर्ति करतां पण जेने अधिक माने छे ।" (षबिन्दु विष्णु, खण्डेन्दु-शिव, विरञ्चि–ब्रह्मा)
१४७. "योगीनी ध्यानधारारूपी गोदावरीमां क्रीडा करनारो तथा लक्ष्मीनुं दान करनारो जे बीजमन्त्र, तेनी आगळ रहेला बावन श्रेष्ठ वीरपुरुषो (बावन अक्षरो)ना लीधे 'हाल' राजानी स्थिति धारण करे छे ।" (हालराजानी कोईक घटनाना आधारे उत्प्रेक्षा ।)
१४८. "चन्द्रनी एक कलाने धारण करतो जे बीजमन्त्र जिह्वाने शोभावतो होय त्यां सुधी (जाप करनार) मुखकमळ जरा बीडायेलुं लागे तो तेने अनुचित न समझएँ ।"
१४९. "अरिहंत आदिनो एक प्रथमाक्षर पण मोक्ष आपवा समर्थ छे एवं पोताना आश्रितोने जणाववा माटे ज जाणे पांच परमेष्ठीमांथी (परमेष्ठीओना पांच प्रथमाक्षरोमांथी) उत्पन्न एवो जे मन्त्र, तेथी पण ऊंची कोई वस्तुने ऊंची डोके जुए छे एम मा छु ।" (भाव स्पष्ट थयो नथी ।)
कृतिमां कर्ताना नामनो उल्लेख नथी एम संशोधकश्री भूमिकामा जणावे छे परंतु मने पूरो वहेम छे के १५१मां श्लोकमां कविए संकेतथी पोता नाम दर्शाव्युं छे । 'सौघाजनि' छपायुं छे त्यां 'सोऽथाजनि'होवू जोइए, जे अर्थनो विचार करतां निःशंक रूपे समजाय छे । “आराधेल श्रुतदेवतानी महान कृपाथी आवेला स्वप्नरूपी मधुमासना प्रभावे ते साधक प्रथमनी 'अकरीर' एवी संज्ञारूपी वेलडी पर 'कवित्व', पुष्प आजे लागी रह्यु होय एवो थयो ।" अर्थात् ते हवे 'अकरीर कवि' कहेवायो । 'संज्ञा' शब्द नामवाचक छ । कविना नामनो अर्थ 'करीर नहि' एवो थाय छे, 'अकरु'के 'नकेरु'-'अकेरु' जेवू नाम होइ शके । 'अकरीर'मां कवितुं नाम छूपायुं छे ते निश्चित छ ।
हवे आ रचनामांना शब्दो विशे । 'सरि (जलनो प्रवाह) अने टङ्कावली
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org