SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसंधान-१६ • 241 संशोधक आचार्यश्री कृतिने वधु स्पष्ट करवानो समय नथी मेळवी शक्या एम जणाइ आवे छे । निरांते परिशीलन करतां कृति वधु शुद्ध थई शके एम छे । केटलीक शुद्धिवृद्धि अहीं नों, छु । सिन्धौ सुधांशोस्तलित: स बिम्बः (श्लो. १७) किं सोमभासोऽन्यमहोऽसहिष्णुघोरत्नरुक्कतरिकाविलूनाः (१८) -काराञ्चितोडुप्रकराभिरामान् (३५) नो मां करस्पर्शनतोऽपि तोषम् (३६) मासं विगृह्येन्दुरहो दुरन्तै- (४०) लक्ष्मीश्च वेश्मस्वकृत प्रवेशम् (४२) निर्माप्य मेरात्रिकदीपिकाः स (४६) श्लोक ५०नी बीजी पंक्ति शुद्ध ज छ। "जेवी रीते अर्थो अलंकार साथे काव्यनो आश्रय ले तेवी रीते युवानो तेमनी वधूओ साथे शय्यानुं सेवन करवा लाग्या ।" गाढं शिरो दोलयति स्म रागी (५१) नित्यानमबिम्बनदम्भमज्जद्- (६०) प्राच्यो न तस्य प्रतिमासु दृष्टेः (७८) पादे न कस्यापि नतिं करोति नो चेद्वपुर्वालनया वलग्नो (८०) स्वत्यागिधत्तूरकृतार्चशम्भोः, त्तारालियुग्दृग्दलकेतकी याम् (९४) भूयस्तरांस्तान् पुनराप्स्यतीयं (१२२) स्मेराब्जहस्ताभिनयालिगुञ्जा- (१२७) को वेद भानावुदिते विभाना- (१२९) भुक्तिक्षणान्दोलितपाणिपद्मो- (१३७) न रंकस्य मणिः स्थिरो वा (१४०) नालीकसूनोर्लपनप्रतोली - (१४४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520516
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages254
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy