________________
'सारस्वतोल्लास' : एक दृष्टिपात
___-मुनि भुवनचन्द्र 'अनुसंधान'(१५)मां प्रसिद्ध थयेल 'सारस्वतोल्लास' नामक कृति रसप्रद छ । आ एक कविकर्मथी समृद्ध, सजीव चित्रणथी मंडित अने गूढ अनुभवना वर्णनथी रोमांचसभर रचना छ। मंत्रशास्त्र, मानसशास्त्र, काव्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, व्याकरण, शब्दकोश, प्राचीन रीत-रिवाज-एवा घणा दृष्टिकोणोथी आ कृतिनो अभ्यास थई शके । शारदामंत्रना जापनी पराकाष्ठाए कविने स्वप्नमां माता सरस्वतीनां दर्शन थाय छे । आ घटना माटे श्रीशीलचंद्रसूरि तेमना प्रास्ताविकमां 'साक्षात्कार' शब्द वापरे छे। वस्तुतः आ साक्षात्कार नथी, पण मानसिक भासआभास छ । स्मरण-जाप-ध्याननी प्रक्रियाना परिणामे उपासकोने पोतपोताना उपास्यनां स्वप्नमां के तंद्रावस्थामां दर्शन थतां होय छे । ए मानवीना अंतर्मननी एक असाधारणगहन स्थितिनी नीपज छे अने तेनुं आगवं महत्त्व पण छे ज । कविना स्वानुभव- अहीं आलेखायेलुं शब्दचित्र आ विषयनो दस्तावेज बनी रहे एवं छे।
दीवाळी अने नवा वर्षना वर्णनमां कवि सतत अद्यतन भूतकालनो प्रयोग करे छे, एनो सूचितार्थ ए छे के आ कृतिनी रचना ते ज दिवसे थई छे । प्रभाते थयेलो अनुभव कविए सांजे शब्दबद्ध कर्यो छे । समग्र काव्यमां कल्पनाविहारने छूटो दोर मळ्यो छे । भाषा-छंद-अलंकारो परतुं कवि- प्रभुत्व अने कविनुं लौकिक तथा साहित्यिक सामान्य ज्ञान आपणने अभिभूत करे छे। बीजी बाजु, क्लिष्ट अने दूराकृष्ट उत्प्रेक्षाओ तथा उपमाओ काव्यनी रसक्षति पण करे छे । कविने शृंगाररस पोषवो होय तेवू तो नथी, तो पण बिनजरुरी शृंगाररसनो विस्तार थयो छे । पोतानुं कवित्व सिद्ध करवा कवि वधारे पडता 'बोलका' बन्या होय एम लाग्यां विना रहेतुं नथी ।।
___ एक ज हस्तप्रतना आधारे संशोधन करवानुं होय त्यारे संशोधकने मुश्केली पडे ए तो देखीतुं छे, तेम छतां वाचना उतावळे तैयार थई हशे, विद्वान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org