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________________ अनुसंधान-१६ . 33 नाम आप्युं छे, ते नाम ज राखेल छे. आ संपादनमा चार प्रतिओनो उपयोग को छे. आदर्श प्रति तरीके वडोदराना 'प्रवर्तक मुनि कांतिविजयजी शास्त्रसंग्रह'नी प्रतिने स्वीकारेल छे. जो के घणे स्थळे एवं पण बन्युं छे के ज्यां आ आदर्श प्रतिनो पाठ नीचे मूकवो पड्यो होय; अने हजी पण केटलांक स्थळो संदिग्ध छे ज. अन्य प्रतिओमां- पाटणना संघना भंडारनी हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभंडारगत प्रति (पा. संज्ञक प्रति); पाटण- सागरगच्छना उपाश्रयनी प्रति(सा.संज्ञक प्रति); अमदावादना - डेलाना उपाश्रयना भंडारनी प्रति (डे. संज्ञक प्रति)- एम त्रण प्रतिओनो उपयोग करेल छे. प्रतिओमां मात्र पा. प्रतिमां प्रांते लेखन संवत् मळे छे (संवत् १६४०), बीजी प्रतिओमां नहि. परंतु आदर्शभूत प्रति प्रायः १५मा शतकमां लखाएली होवार्नु मने जणाववामां आव्युं छे, ते परथी आ ग्रंथ १४मा शतकमां के ते पूर्वे रचायो होय तेवू मानवा माटे मन ललचाय दे. बाकी तो विद्वानो आ विषे प्रकाश पाडे ते ज बरोबर गणाय. आ शब्दकोश लखतां लखतां 'केऽपि', 'कश्चित्', 'केचित्', 'अन्ये', 'अन्यः' एवा प्रयोगो वडे सूचित मतांतरो बहु जोवामां आव्यां. तेथी ख्याल आव्यो के देशी शब्दोना पण विधविध कोशो ते समये होवा जोईए. जो के 'धनपाल', 'गोपाल', 'सातवाहन' जेवा कर्ताओनां नामो पण आमां उल्लेखेला छे ज, जे परथी ते बधाना पण कोशो हशे तेम मार्नु छु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520516
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages254
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size8 MB
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