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श्रेष्टि-देवचन्द्र लालमाई-जैन पुस्तकोद्धारे-ग्रन्थाङ्कः १०२ ।
भवविरहाङ्क-श्रीहरिभद्राचार्य-विरचित-पञ्चाशकेषु चान्द्रकुलगच्छीय-श्रीश्रीचन्द्रसूरि-शिष्य-आचार्यश्रीयशोदेवदृब्धा
आद्य( श्रावकधर्म )पञ्चाशकचूर्णिः ।
व्य-श्रेष्टि देव मोतीचंद भगन शाके १८७७
org
सम्पादको-आगमोद्धारक श्रीमद् आनन्दसागरसूरीश्वरस्य अन्तेवासिनौ-श्रीकंचनविजमोमकरसागरौ ।
प्रकाशक:-सुरतवास्तव्य-श्रेष्ठि-देवचन्द्र- लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारकोशस्य अवैतनिकसाल
कार्यवाहका-मोतीचंद मगनभाई चोकसी। चोरात् २४७८ । विक्रम संवत् २००८ ।
निस्ताब्दं १९५२ । प्रथम संस्करणम् ] निष्कयं सार्द्ध द्वयं रूप्यकम् ।
[प्रतयः ५००
लागि
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श्रावकधर्मपञ्चाशक- चूर्णिः ।
4% A
इदं पुस्तकं भावनगयां श्रेष्ठि-देवचन्द-लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारसंस्थाया अवैतनिककार्यवाहक-मोतीचंद-मगनभाई चोकसी इत्यनेन महोदय मुद्रणालये, दाणापीठ मुद्रणमन्दिरे शाह गुलाबचंद लल्लुभाई-द्वारा मुद्रापितम् ।
अस्य पुनर्मुद्रणायाः सर्वेऽधिकारा एतद्भाण्डागारकार्यवाहकैरायत्तीकताः ।
All Rights reserved by the Trustees of the Fund,
॥२॥
AAAAAACACANCIGAREKAR
Printed By Gulabchand Lallubhai S'ha at the " Mahodaya Printing Press"
Dana Peetha, Bhavnagar ( Saurāshtra )
LOCALCIRC
Published for Sheth Devchand Lālbhāi Jain Pustakoddhăr Fund, at Sheth Devchand Lālbhai Jain Dharma Shālā ( S'ri Ratna Sagar Jain Boarding House ), Badekhāņ chakla, Gopi-purā, Surat, by the Hon: Managing Trustee, Motichand Maganbhai Chokasi.
॥ २॥
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Shetha Devchand Lalbhai Jaina Pustakoddhāra Fund Series: No 109
*** 92195afů: 1
Ādya( Shrāvaka-Dharma )Panchashaka Churni.
By
-Store
Bhava-VirahārkaS'RI HARIBHADRA SŪRI
With the Commentary (Chūrni) of Acharya S'RI Yashodeva SURI
Commentated in Vikrama Sanivat 1172 ) Vikrama Samvat 2008 ]
Price Ra. 2-8-0
horelostno
[ Christian 1116 [ Christian Era 1952
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आयकधर्म
पश्चाशक
चूर्णिः ।
॥ ४ ॥
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The Board of Trustees:
1 Nemchand Gulabchand Devchand Zaveri 2 Säkerchand Khushalchand
3 Talakchand Motichand
4 Bābubhai Premchand
5 Amichand Zaverchand
6 Motichand Maganbhāi Chokai.—
विषयः
मुखबन्धः उपोदयातः
"3
विषयानुक्रमः
शुद्धिपत्रम्
आय धर्म पि
27
39
31
Hon, Managing Trustee.
पृष्ठाङ्कः
५-१०
११-१५
१६-२०
સંસ્થાનુ' ટ્રસ્ટી મડળ:
૧ શ્રી નેમચંદે ગુલાબચ'દ દેવચંદ ઝવેરી
. સાકરચă ખુશાલચંદ
29
3
તલકચંદ મેાતીચંદ
બાબુભાઇ પ્રેમચંદ
અમીચ'દ ઝવેરચ'દ
મેાતીચંદ મગનભાઇ ચાકસી
२१
१-१५९
४
૫
૬
विषयसूचिः
29
"
"
"
विषयः
परिशिष्ट-१ प्रमाणानामकारादिक्रमः
39
""
39
39
२ सञ्ज्ञास्पष्टीकरणम्
१३ ग्रन्थानामकारादिक्रमः
४ विशिष्ठनास्वामकारादिमः
५ दृष्टान्ताः
"
"
39
આન, મેનેજી’ગ ટ્રસ્ટી
"
पृष्ठाङ्कः १६०-१८२
१८३-१८४
१८५-१८६
१८७-१९०
१९१-१९३
विषय
सूचिः ॥
॥ ४ ॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचर्णिः ।
णमो वीलयिणं वीयरागायं । श्रेष्ठि देवचंद-लालभाई-जैन पुस्तकोद्धारे ग्रन्थाङ्कः १०२ आय(श्रावकधर्म)पंचाशकचूर्णि
मुखबन्ध।
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" नमिऊण वद्धमाण ” ए पहेला चरणमां, वर्द्धमानस्वामिने नमस्कार करीने १४४४ ग्रन्थना प्रणेता ग्रंथकार याकिणी महत्तरासूनु " भवविरहांक” पादवडे स्वप्रन्थोने अंकित करनार आचार्य श्रीहरिभद्रसूरीश्वर " सावगधर्म समासओ वुच्छं । " ए बीजा चरणथी श्रावकधर्मने संक्षेपथी कहीश, एम दर्शावे छे. एटले पूर्व थयेला आचार्य भगवंतोए विस्तारथी श्रावकधर्म कह्यो होवा छतां पण पोते सरळताथी, श्रावको; श्रावकधर्मने समझीने आदरे ए ज हेतुने लक्ष्यमा राखीने " समासओ" संक्षेपथी कहेवा प्रयत्न आदरे छे. साधुधर्म अने श्रावकधर्म बेउ वर्गने सहेलाईथी समझी आचर, सहेलुं थई पडे एटला खातर ज श्रीमद् उमास्वाति वाचकवर्ये अने श्रीमद् हरिभद्रसूरीश्वरे आवा नाना प्रकारना विषयोवाळा नानां नानां घणां 'प्रकरणो' रचीने जगत पर अर्थात् बेउ वर्ग पर महान् उपकार कर्यों छे. तेवू ज आ पंचाशक ग्रन्थमांर्नु एक पंचाशक ' प्रकरण ज छे.
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श्रावकधर्मपञ्चाशक चूर्णिः ।।
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मुखवन्ध।
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चूर्णिकार श्रीमद् यशोदेवसूरीश्वर पण चूर्णिमा “ उमासाइवायगेण” इत्यादि पाठथी संकितपणे एज प्रभने उपाडे छे के " श्रीउमास्वाति वाचके “ श्रावक्रप्रज्ञप्तिमा " श्रावकधर्मने कह्यो छे तो पछी आ अन्य पंचाशक-प्रकरण- प्रयोजन शु?” एनो उत्तर पण चूर्णिकार श्रीयशोदेवमूरि " पुवायरिएहिं गंभीरवयणेहिं भणियाणं-इत्यादि पाठथी आपे छे के पूर्वाचार्योए गंभीरवचनोथी-सहजमा न अवगाही शकाय तेवा वचनोथी-आ विषय सर्यो छे तेथी व्रत-अतिचार आदि विषयोमा मंदबुद्धि शिष्योने भावार्थ कष्टथी समजाय एम होवाथी सरळताथी समजाववा, संक्षेपथी अने स्पष्टपणे वर्णव्यो छे." स्पष्ट अने संक्षेप शब्दोनो अर्थ एटलो ज होय छे के " बहु सहेलाईथी समजी शकाय, समजावी शकाय अने स्पष्टपणे समजवामां आवेलो होय तो आदरवामां, दुष्करपणुं या कठिनास वर्ताय नहि तथा उल्लासपूर्वक तेनुं परिशीलन थई शके."
श्रावकधर्मना नाना प्रकारना विषयोने चर्चतो आ ग्रन्थ प्रकरणरूपे ' देशविरतिधर्मना अनुशीलन माटे' ५० गाथामां ग्रन्थकारे पूर्ण कर्यो छे. " भवविरहांक " श्रीहरिभद्रसूरिजी " विक्रमना छट्ठा " सैकामां थयेला धारवामां आवे छे. चूर्णिकार श्रीयशोदेवमरिए वि० सं० ११७२ मा आ श्रावकधर्म उपर चूर्णि रची छे, ए चूर्णिकारे पोते ज आ वाक्योथी जणाव्युं छे:
" नयणमुंणिथाणुमाणे( ११७२ )काले विगयंमि विकमनिवाओ ॥ ४॥" श्रीमद् यशोदेवमूरि श्रीचान्द्रकुल गच्छना श्रीचन्द्रसूरिना शिष्य छे ए वस्तु पोते आ पंचाशकचूर्णिमां सिद्ध करी छे. तदुपरांत पोते ज श्रीपाक्षिकसूत्र-विवरणमां तेनी पुष्पिकामां आ प्रमाणे दर्शाये छे:
१ पाक्षिकसूत्र-विवरण आ फंढ तरफथी पूर्व प्रधाङ्क ४ तरीके प्रसिद्ध थयेल छे.
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श्रावकधर्म
पश्चाशक
चूर्णिः ।
॥ ७ ॥
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" चान्द्रकुलांवरशशिनो भव्याम्बुजबोधनैकदिनपतयः । गुणगणरत्नसमुद्रा आसन् श्रीवीरगणिमिश्राः ॥ १ ॥ " " श्रीचन्द्रसूरिनामा तेषां शिष्यो बभूव गुणराशिः ॥ ३ ॥ "
X X X X X X X X X x X X
" श्रीचन्द्रनामसूरेः पादपङ्कजसेविना । दृब्धेयं प्रस्तुता वृत्तिः श्रीयशोदेवसूरिणा ।। ५ ।। "
तथा पाक्षिकसूत्र - विवरणनो वि० सं० १९८० नो समय आडमुजब पोते नोध्यो छे:
" एकादशशतैरऽधिकैरशीत्या ( ११८० ) विक्रमाद्गतेः । "
आ ग्रन्थनी प्रेसकोपी स्वयं आगमोद्धारकसूरीश्वरे सुधारी हती. अने पोते ज शोधनादि कार्य पूर्ण करवाना हता, परंतु परमसौभागीए गुरुवर्य काळधर्म थवाथी, गुरुदेवनी; अहोरत, लेश पण खेद धर्या विना पूर्ण सावधपणे वैयावच्चादि करनार, सहयोगी श्री गुणसागरजी महाराजनी प्रेरणाथी, श्रीआगमोद्धार कसूरीश्वरना पट्टप्रभावक श्री माणिक्य सागरसूरीश्वरनी आज्ञावडे श्रीमत्कंचनविजयजी महाराज अने श्रीक्षेमंकरसागरजी महाराजे आ ग्रन्थनुं पूर्णपणे सम्पादन अने संशोधन करी आप्युं छे; जे बदल अमो ट्रस्टीओ एओ त्रणे गुरुवर्योनो जेटलो गुणानुवाद करीए ए ओछो ज छे. तदुपरांत विविध परिशिष्टो माटे पण एओश्रीओए खूब जहमत उठावी पूर्ण करी आध्यां छे. सौम्यमूर्त्तिसमा पुण्यप्रभावक श्री माणिक्य सागरसूरीश्वरना तो हंमेश माटे अमो ऋणी ज गणाइये,
मुखबन्धः ।
॥ ७ ॥
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मुखबन्धी
श्रावकधर्म पश्चाशकचूर्णिः ।
PHORACTEREOCHOREOGICHOCTEGCHOCIEOS
केमके, श्रीआगमोद्धारकजीना समयना अधूरा कार्यो एओश्रीनी प्रेरणा, आज्ञा अने पुणीत-द्रष्टिवडे ज पूर्ण करवा हसो भाग्यशाली थया छीए.
श्रीमद् आगमोद्धारकसूरीश्वरे स्वहस्ते प्रेसकोपीमां घणे स्थाने पंक्तिओनी पंक्तिओ टक टक सुधारी हती, पण एक स्थळेआना छापेला पाना ६२ नी अंदर अढी पंक्तिओ एक ज स्थळे होवाथी अमोए ते हस्ताक्षरनी यादि अने जाळवणी बदल छायाबीबुI-लाईन ब्लॉक करावी मूक्यो छे, ते अभ्यासी अने संशोधकवर्गे जोई लेवा तस्दी लेवी.
पूर्वलां कोई अशुभना उदयथी आगमोद्धारकसूरीश्वरनी त्रण ब्रण वर्षनी मांदगी, अने तेमां पण केटलीक वखत गंभीररूप धारण करनार रोगना उछाळा होवा छतां पण पोते हाथमांथी लेखिनी हेठी मूकी नथी एनो आ सतत पूरावो छे. पोताना स्वरचित प्रन्थो रचवाना प्रयासो उपरांत; आबी कोपीओ शोधी आपवा माटे गंभीर-मांदगीमाये ओठींगण लीधा विना एक ज दृष्टिये दत्तचित्ते सतत श्रुतर्नु सान्निध्य आराधन करवु ए कोई ए गुरुदेवनो अजब पुन्यप्रभाव ! अजब साधना! अने अजय पुण्य सौभाग्य
योग ज लेखाय ! की एओश्रीए पाना ६२ मां जे पंक्ति सुधारी छे अने जे आगमोद्धारकसूरीश्वरजीना हस्ताक्षरना ब्लोकथी मूकी छे ते पंक्तिओ आ मुजबनी छे:" भवंति, सिक्खगावि सागारियत्तिकाउं पुढो भुंजाविजंति, तहा सपायच्छित्ता आवण्णं पायच्छित्ता, ते सह न मुंजंति, जओ तेसिं सबलं चारित्तं भवइ, सबलचारित्तेहिं सह न भुंजिजइ, तहा बाला वुड्डा य असहत्ति
FACROCHAKAKARANGALAS
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मुखबन्ध!
श्रावकधर्मবস্থায় चूर्णिः ।
CONNOISSIONERASACHINORK
काउं पढममेव भुंजंति, ततो तेऽवि एगागिणो" ग्रन्थकार श्रीमद्धरिभद्रसूरीश्वरे अंतिम लोकना अंतिम चरणोमां “ देशविरति " धर्मनुं ( श्रावकधर्मर्नु ) परिपालन करता " सर्वविरति अथवा चारित्रधर्मनु' परिणाम केवी रीते आत्मामा जन्मे या ऊपजे ते अतिस्पष्ट शब्दोथी वर्णवी ग्रन्थने संकेली लीधो छे. ते आ प्रमाणेः-" भवविरहबीय भूयो जायइ चारित्तपरिणामो ॥ ५० ॥" साथोसाथ प्रन्थकारे पोतानुं स्पष्ट नामनिर्देश न करतां " भवविरह " शब्द सूचवी, भविजीवोने चेतव्या पण छे के अजर-अमर-अभयपद माटे 'संवेगरसायण जेवो' बीजो कोई मार्ग ज नथी.
शेठ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंडमांथी आ " देशविरतिधर्म अथवा श्रावकधर्मना" परिशीलनने प्रतिपादन करतो आद्य( श्रावकधर्म )पञ्चाशकचूर्णि नामनो ग्रन्थ " अंक १०२" तरीके प्रसिद्ध करतां परम आहाद अनुभवीये छीए.
"जिणवयणमेव सुणतो सावगो होई" जिनेश्वरदेवोना वचनोने सांभळे, विचारे अने परलोकना हितसंबंधे आदरे ए श्रावक बने, थाय, कहेवाय. श्रावकधर्मना लक्षणोमां पण असढभाव, सढभाव, सम्यक्त्व, असम्यक्त्व आदि विविध प्रकारना भेदो स्याद्वाददृष्टिए प्रन्थकारोए वर्णवेलां छे. तथा संसारना निस्तार माटे; श्रावकधर्म अने साधुधर्म उपर पूर्वाचार्योए भविजनोना हित माटे अनेक ग्रन्थो योज्या छे.
OCIEOCENC%ACANCHOCHROCESCAROGRE
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श्रावकधर्म
पञ्चाशक
चूर्णिः ।
॥ १० ॥
Jain Education Int
पण, आवा 'सावगधम्मउवयेस', 'देसविरइधम्मउवयेस ' अने ' यति-साहू -मुनि- महाव्रतचारितधम्मउवयेस ' तथा ' सव्वविरइधम्मउवयेस 'ना सर्व ग्रन्थो; जेने आजे जरामात्र पण श्रावकवर्ग या ऊगतो नवीन साधुवर्ग स्पर्शी शके नहि एवी, पाइय-प्राकृत-मागधी- अर्धमागधी भाषाओमां कंडारेला ज रह्यां छे. संसार निस्तारना अभिलाषी श्रावक अने यतिवर्ग माटे आवा ग्रन्थोनुं गुजराती या हिन्दी भाषामां संपूर्णपणे रूपांतर आजे थवुं ज जोइए एम मारुं हृदय पोकारी रह्युं छे.
आजना सर्वभक्षी तांडव काळमां आवुं कार्य कोई एक वे व्यक्ति ज करी शके एवो संभव तो घणो ज ओछो छे. परंतु जे जे उपाश्रय आदि स्थानोमां ज्ञानखातामां खर्चवानुं द्रव्य एकत्र थयुं होय ते ते स्थानना अधिकारीओ, थोडीक; स्वयं स्थाननी मूर्च्छा ओछी करीने; आवा रूपांतरो माटे एक इलायदुं ट्रस्ट फंड स्थापी ते द्वारा योग्य ज्ञानीओ पासे रूपांतर करावी प्रसिद्ध करे तो घणा भविजीवोने लाभ थवानो पूरेपूरो संभव छे एवं मारुं नम्रपणे मानवुं छे ज.
वि० सं० २००८ फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी, सोमवार
मुंबई ता. १० मी मार्च १९५२.
भवदीय
मोतीचंद मगनभाई चोकसी मानाई मेनेजींग ट्रस्टी
पोते अने अन्य ट्रस्टीओ वती.
966
मुखबन्ध ।
॥ १० ॥
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C
श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
॥श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई-जैन-पुस्तकोद्धारे-ग्रन्थाङ्कः १०२ ।।
आद्य(श्रावकधर्म)पश्चाशकचर्णेरुपोद्घातः।
उपोद्: घातः ।
RECOREGISTRAC%AE%ACTERICA
णमो वीयरायाणं । विदन्तु विद्वांसः-अयं ग्रन्थ आद्यपञ्चाशकचूर्णिः । भवविरहाकलाञ्छितग्रन्थप्रणेतृभिः श्रीहरिभद्रसूरिवरैरेकोनविंशति-पञ्चाशकरूपश्रीपञ्चाशकप्रकरणं प्रथितम् । प्रत्येकेषु पञ्चाशकेषु पञ्चाशत्पञ्चाशद्गाथाः । अतोऽस्य पञ्चाशकमिति नाम । तस्मादस्य पञ्चाशकस्यापि पञ्चाशद्गाथा । श्री अभयदेवसूरिभिः समस्तपञ्चाशकस्य वृत्तिर्विहिता । समूला सा वृत्तिः प्राक् श्री आगमोद्धारकैर्द्विः संपादिता । तन्मध्यगतमिदमाद्यपश्चाशकम् । एतस्मिन् पञ्चाशके श्रावकधर्म वक्तुं प्रतिज्ञातत्वादस्य पञ्चाशकस्य श्रावकधर्मपश्चाशकमित्यप्यभिधानं सुप्रथितम् । एतस्य श्रीयशोदेवसूरिभिश्चूर्णिः प्रणीता ।
अतोऽस्मिन्नुपोद्धाते-चूर्णः प्रणेतारः १, तेषां समयः २, तस्याः प्रयोजनं महत्त्वं च ३, तत्प्रतिपाद्या विषया ४ श्च निरूप्यन्ते ।
प्रणेतार:-" यद्यपि यशोदेवाभिधाना विपश्चित्प्रवरास्तस्यामेव शताब्द्यां ( द्वादशशताब्द्यां ) तस्यामेव विंशतिकायामनेके, एके पञ्चाशकर्यापथिकीचैत्यवन्दनबन्दनचूर्णिप्रत्याख्यानविवरणकाराः श्रीयशोदेवाः, अन्ये प्रमाणान्तरभावप्रणेतारो देवभद्रगुरुभ्रातरो यशोदेवाः, अपरे श्रीमुनिचन्द्रशिष्यमानदेवाचार्य शिष्या यशोदेवाः, परे तु पाक्षिकसूत्रवृत्यादिविधातारो यशोदेवा इत्येवमनेके संजाताः” इति नवपदवृहद्वत्तेरुपोद्घाते (५० १) श्रीआगमोद्धारकैः प्रतिपादितम् । अतोऽत्र के चूर्णेः प्रणेतारो यशोदेवा इति प्रश्नः! अतः तन्निराकरणे प्रशस्तिद्वयं विलोक्यते ।
COMMERCISORORSCRECROCRACROCHECRE
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उपोद्
घातः।
RAH
श्रावकधर्म- तत्र-एकाऽस्य ग्रन्थस्यान्त्यपृष्ठीया (पृ० १५८)-" मंदमईण हियत्थं एसा चुन्नी समुद्धिया सुगमा । सिरिचंदकुलनहंगणमयंक- 1 पश्चाशक-10 सिरिचंदसूरीणं ॥ १ ॥ सिरिवीरगणिमुणीसरकप्पूरसिद्धंतसिंधुसिस्साणं । सिस्सेहिं सिवमणेहिं सिरिमजसदेवसूरीहिं ।। २ ॥” इति चूर्णिः ।। द्वितीया च-श्रीपाक्षिकसूत्रविवरणान्त्यपत्रीया (प०७८) “चान्द्रकुलाम्बरशशिनो भव्याम्बुजबोधनकदिनपतयः । गुणगणरत्नसमुद्रा
आसन् श्रीवीरगणिमिश्राः ॥१॥""श्रीचन्द्रसूरिनामा तेषां शिप्यो बभूव गुणराशिः। आनन्दितभव्यजनः संशितसंशुद्धसिद्धान्तः ॥ ३ ॥ कलिकालदुर्लभानां गुणरत्नानां (लब्धीनां यो) निधानमनवद्यम् । समयावदातबुद्धिस्तथापरो देवचन्द्रगणिः ॥ ४ ॥ श्रीचन्द्रनामसूरेः पादपङ्कजसेविना । दृब्धेयं प्रस्तुता वृत्तिः श्रीयशोदेवसूरिणा ॥ ५ ॥” इति ।
एतयोः प्रशस्त्योः चान्द्रकुलिनश्रीवीरगणिमिश्रशिष्यश्रीचन्द्रसूरिशिष्यश्रीयशोदेवसूरिवराः सन्ति, अतो आद्य( श्रावकधर्म )पश्चाशकचूर्णेः कर्तारः श्रीपाक्षिकसूत्रविवरणकाराश्च एक एव समभवन् , न भिन्नाः ।
समयः-अस्याश्चर्णेरन्तिमे पृष्ठे ( १५८)-" नयणमुणिथाणुमाणे ( ११७२ ) काले विगयंमि विक्कमनिवाओ।" इति, पाक्षिकसूत्र विवरणे च-"एकादशशतैरधिकरशीत्याविक्रमाद्तेः (११८०)।" इति दृश्यते । अत इत्थमनुमीयते यत् श्रीयशोदेवसूरिपादानां समयो द्वादशशताब्द्याम् । अत एवास्याश्च चणे रचनासमयो वैक्रमं द्वासप्तत्यधिकैकादशशतम् ।
चूर्णेः प्रयोजनमहो-ननु कस्मादिदं श्रावकधर्मपञ्चाशक, कस्माञ्च तस्य चूर्णिः !, उच्यते-उपदेष्ट्रभिर्मुख्यतयाऽनगारधर्मः प्रतिपादितव्यः, यदि तदङ्गीकर्तुं श्रोतारोऽशक्तास्तदाऽगारधर्मः प्रज्ञापितव्यः । तमुद्दिश्य श्रीउमास्वातिवाचकमुख्यैः श्रावकप्रज्ञप्तिर्निर्मि81 ताऽस्ति । सा च बृहत्तरा, अतः इदं संक्षिप्तमगारधर्मनिरूपकमाद्यपञ्चाशकम् ।
RRORRECRock
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॥१२॥
OCAEX
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उपोद
श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
घात:।
॥१३॥
AREASCIROCHECCASEARCAREOSEX
यद्यपि श्रीअभयदेवसूरिवरैः पञ्चाशकप्रकरणवृत्तावस्य (आद्यपञ्चाशकस्य) वृत्तिर्विहिता, सा च संस्कृतभाषानिबद्धा, तदपि श्रीआवश्यकचूर्णिगतदेशविरत्यधिकारगतां-" जारिसो जइ भेयो०॥ १॥" इति गाथामनुसृत्य यथा नवपदप्रकरणकारैर्नवद्वाराणि प्रतिपादितानि तथैव श्रीयशोदेवसूरिभिराधश्रावकधर्मपश्चाशकस्य नवद्वारप्रतिपादनपुरस्सरमियं प्राकृतभाषया चूर्णिर्विहिता। इत्थं अस्याः महत्प्रमाणता, एते चूर्णेः प्रयोजनं महत्त्वं च ।
चूर्णिकारैरादौ वृत्त्यनुसारित्वं ज्ञापयित्वाऽन्त्यभागे यानि शास्त्राणि चूर्णी मुख्यतया गृहीतानि तान्यपि प्रदर्शितानि; तद्यथा-"पंचा सगवित्तीओ आवस्सगसुत्तवित्तीचुन्नीणं । नवपयसावयपन्नत्तिमाइसत्थाण मज्झाओ ॥ १॥" इति, अनेन चूर्णिकारः स्वस्य ग्रन्थानुसारित्वं ज्ञापयति ।
आद्य( श्रावकधर्म )पञ्चाशकस्य विषयाः-मंगलं, श्रावकधर्मकथनप्रतिज्ञा( गाथा० १), श्रावकशब्दार्थः (२), सम्यक्त्वमतिचाराश्च (३-६), द्वादशव्रतानि (७), पञ्चानुव्रतान्यतिचाराश्च (८-१८), त्रीणि गुणव्रतान्यतिचाराश्च ( १९-२४), चत्वारि शिक्षाव्रतान्यतिचाराश्च (२५-३२), अतिचारवर्जनं ( ३३ ), उपायादि (३४-३८), व्रतानां कालमानं ( ३९ ), संलेखना (४०), श्राद्धनिवसनस्थानं ( ४१ ), श्राद्धदिनचर्या ( ४२-४९), मवविरहश्चे( ५० )ति ।
चूर्णेविषयाः-मंगलं चाणकरणप्रतिज्ञा च ( पृष्ठः १), सम्यक्त्वस्यैकादिप्रकाराः (९-१२), श्रद्धानादीनि (१३-१५), सम्यक्त्वलामे दृष्टान्ताः (१६-१८), यतनाः (१९), राजाभियोगादीनि (२०-२१), दृष्टादौ सम्यक्त्वलाभे दृष्टान्ताः ( २२-४३), अतिचाराः (४५-४९), द्वादशत्रतनामानि (४९-५१), पञ्चानामनुव्रतानां स्वरूपमतिचाराश्च ( ५२-८१), त्रयाणां मुणवतानां
CCESSOCICE CAREAM
॥१३॥
Jan Education
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SPECIRCC
श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
| उपोद| घातः।
॥१४॥
CAREERINCIENCE
स्वरूपमतिचाराश्च (८०-९२), चतुर्षु शिक्षाव्रतेषु सामायिकस्वरूपं (९३-९५), श्रमणश्राद्धानां शिक्षाया भेदः (९५-९७), सामायिकव्रतातिचारा देशावकाशिकस्य स्वरूपमतिचाराश्च (९८-१०२), पौषधव्रतविवरणं सामायिकस्त्रार्थः, भंगाः, पौषधविधिरतिचाराश्च (१०३११०), अतिथिसंविभागवतस्य स्वरूपमतिचाराश्च ( १११-११३), अतिचारकथनप्रयोजनं (११३-११७ ), संलेखनाश्राद्धैकादशप्रतिमाऽनशनालोचनासंस्तारकादीनि (११७-१४३), श्रावकसामाचारी संलेखनातिचाराश्च (१४३-१४६), श्राद्धदिनकृत्यानि (१४७१५० ), मनुष्यभवदुर्लभत्वे दृष्टान्ताः (१५१-१५६) चितविन्यासचारित्रपरिणामभवविरहाः (१५७-१५८), प्रशस्तिश्चेति (१५८)। ___अने-७४, ७५, ७६, ८०, ८५, ९४, १००, १०५, ११०, ११४, ११५, ११७, १२६, १५१, १५४ तमेषु पृष्ठेषु | ' अन्ने' इति पठित्वा पाठान्तराणि दर्शितानि ।
___ सामाचारी-'सामायारी'-९१, ९२, ९३, १०३, ११०, ११८ तमेषु पृष्ठेषु, 'सामायारीविसेसाओ'-१०३ तमे पृष्ठे, | 'सामायारीबहुत्ताओ'-१०९ तमे पृष्ठे, 'सामाइयसामायारी' ११०-तमे पृष्ठे, 'वुड्डभणिया सामायारी '-१११ तमे पृष्ठे, 'तदुचियसामायारी'-११८ तमे पृष्ठे, ' पुब्वायरियउवएसो'-८४ तमे पृष्ठे, चेत्यनेन ज्ञायते यचूर्णिकाराः 'सामाचारी' बहुमन्यन्ते । सामाचारी तु सुविहितैन्यैिव, न केनापि लंघयितुं शक्येति ।
अस्मिन् अन्थे (१०४ तमे पृष्ठे ) तुलादंडनायओ इत्येकः प्रायो न्यायः प्रदर्शितः । इयं चूर्णिश्चूर्णिकारैर्मण्डनरीत्यैव प्रायः प्रतिपादिता, कुत्रचित्स्थलेषु नन्वित्याशक्य तत्परिहारोऽपि कृतः । मुद्रापणप्रयोजनम्-यद्यपि श्राद्धधर्मप्रतिपादिका श्रावकप्रज्ञाप्याद्या मुद्रापिताः सन्ति तथाप्येषाऽद्यावध्यमुद्रिता, एतस्याश्च
ALSOCCASSACRECECCASCIENCE
॥१४॥
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________________
उपोद्
बातः।
चूर्णिः ।
O
श्रावकधर्म-[ प्रतिः विश्लेषु पुस्तकभांडागारेषु, अन्यच्च-अस्याः प्राकृतभाषामयत्वम् , एतानि मुद्रापणे कारणानि, तोऽस्या मुद्रणमुचितम् । पञ्चाशक-II ___आगमादीनां वाचनया आर्यस्कंदिलं, आगमादीनां मुद्रापणशिलारोपणताम्रपत्रारोहणेन देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणं, ग्रन्थप्रथनेन च |
भवविरहरि स्मारकैः आगमोद्धारकाचार्यश्रीआनन्दसागरसूरीश्वरैर्विक्रमस्य पादोनविंशतितमशताब्यां ' श्रेष्ठीदेवचन्द्रलालभाई ॥१५॥
जैन पुस्तकोद्धारकफंडे' त्याख्या संस्था संस्थापिता, तयाऽनेके ग्रंथाः प्रकाशिताः, तया संस्थया मुनिगुणसागरोपदेशेनैषा प्रकाशयितुं निर्णीता, अस्या मुद्रणयोग्या प्रतिर्मुरुपादैः संशोधिताऽऽसीत् , तस्मादस्या मुद्रणं प्रारब्धम् , आगमोद्धारकाणामनन्यपट्टधरश्रुतस्थविरविद्याव्यासंग्याचार्यश्रीमाणिक्यसागरसूरीश्वरैर्दत्तसाहाय्याभ्यामस्माभ्यां संपादिता ।
अत्रोद्भूतानां प्रमाणानां यानि स्थलानि उपलब्धानि तानि प्रथमपरिशिष्टे ( ) इति संकेतपुरस्सरं दर्शितानि । केषांचित्प्रमाणानां संस्कृतानां प्राकृतं कृतमित्यनुमीयावहे । केषुचित् प्रमाणेषु पाठान्तराण्यपि सन्ति । प्रमाण-संज्ञा-साक्षिग्रन्थ-विशिष्टनामकथानां ज्ञापकानि परिशिष्टानि दर्शयित्वाऽयं ग्रन्थः शृङ्गारितः । ___ अस्मिन् संपादने यदि क्षतयस्तर्हि विद्वत्सज्जनाः शोधयन्तु ज्ञापयन्तु चेत्यभ्यर्थना । श्रेयोऽर्थिन इदं अन्थमुपयुज्यन्तु । इति शम्। वीर २४७७ विक्रम २००७ मितेऽन्दे
इति निवेदकोजेष्ठासितत्रयोदश्याम् रविवासरे
श्रमणसेवको, आगमोद्धारकश्रीआनन्दसागरसूरीश्वराणां शिशू दशाश्रीमालीधर्मशालायां पुण्यपत्तने (पूनापत्तने) अनानन्दौ कंचनविजयक्षेमंकरसागरौ ।
P
SARKARI
CA4%ECHASEECHECOM
॥१५॥
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________________
श्रावकधर्म
पश्चाशक
चूर्णिः ।
॥ १६ ॥
Jain Education
गाथा
विषयः
मंगलं, चूर्णिकरणप्रतिज्ञा च
१ अनुबंधादि, सूत्रस्वरूपञ्च
२-३
२ श्रावकशब्दार्थः, प्रधानश्रावकः ३-४
४
सम्यक्त्वस्य मूलादिस्वरूपम् यादृशादीनि नव द्वाराणि
आद्य (श्रावकधर्म) पञ्चाशकचूर्णेर्विषयानुक्रमः ।
गाथा
पृष्ठ: १
३ सम्यक्त्वस्य स्वरूपं गुणाश्च
४ सम्यग्दृष्टेर्लक्षणानि
४-५
५-६
६
५ व्रतस्य भजना
७-८
६ सम्यक्त्व देशविरत्योरवसरः एकविधादि सम्यक्त्व भेदाः ९-१० दशविधसम्यक्त्वस्वरूपम् १०-१३
७
विषयः
सम्यक्त्वस्य श्रद्धानलिंगोत्पत्तिद्वाराणि
'जह जायइ ' दारं
सम्यक्त्व सामायिकला मे
पलगादि- दृष्टान्ताः देशविरतिलाभक्रमः
सम्यक्त्वस्य षडाकाराः
आकारेषु कार्तिकादि
दृष्टान्ताः
पृष्ठः
१३-१५ १५
१६-१८ १८
१८-२०
२०-२२
दृष्टाद्यष्टप्रकारेषु सम्यक्त्त्वला मे श्रेयांसादिदृष्टान्ताः २२-२९
गाथा
विषयः अनुकम्पाद्येकादशप्रकारेषु
सम्यक्त्वलामे वैतरणीवैद्यादिदृष्टान्ताः २९-४४ दोषगुणयतनाद्वाराणि ४४-४५ शंकादिपश्चातिचारस्वरूपं, तेषु पेयापायकादिदृष्टान्ताश्च ४५-४९ ७ श्राद्धस्य द्वादश व्रतानि ४९-५०
स्थूलप्राणातिपातस्वरूपं, अष्टोत्तरशतभंगाश्च
पृष्ठः
८ विरतिविधिः ९ को धर्मदायकः
५०-५१
५१-५२
५२
विषया
नुक्रमः ।
| ॥ १६ ॥
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________________
गाथा
पृष्ठः
विषया
श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
नुक्रमः।
भावना
॥१७॥
__ ७७
५८
AGAROADCALENDOCALENESCORE
विषयः पृष्ठः | गाथा
विषयः पृष्ठः गाथा विषयः प्राणातिपाते दोषगुण१४ अतिचारा भावना च ६६-६८
"कन्नाहललामेच्छा" इति यतनाः
५३-५५ ब्रह्मचर्यव्रताधिकारः ६८ किम् । १० अतिचाराः
५५-५७ अष्टादशधा ब्रह्मचर्यम् ६८ ११ मृषावादस्वरूपम् ५७-५८ चतुर्दशधा संप्राप्तकामः ६८-६९
१७ पञ्चमानुव्रतस्वरूपम् तत्पञ्चमेदाः
अनिवृत्तनिवृत्तयोदशधाऽसंप्राप्तकामः असत्यसत्ययोर्दोषगुणाः
दर्दोषगुणयतनाः १५ दशधाऽष्टादशधा च
७७-७८ १२ स्थूलमृषावादविरतेरति
१८ अतिचारा भावना चे ७८-८०
ब्रह्मचर्यस्वरूपम् चाराः ५९-६१
१९ प्रथमदिग्विरमणव्रतस्वरूपम् ८०
अष्टप्रकारं ब्रह्मचर्यम् १४ चतुर्भेदमदत्तम्
दोषगुणयतनाः ब्रह्मचर्यव्रतस्वरूपम् सप्तधा आलोकस्वरूपम् ६१-६३
२० अतिचाराः
८१-८२ ब्रह्मचर्यस्य विषयः ७०-७१ तृतीयानुव्रतस्वरूपम्
२१ द्वितीयं गुणव्रतम्
दोषगुणयतनाः ७१-७३ अदत्तविरताविरतयो
भोगोपभोगयोर्व्याख्याः र्दोषगुणयतनाः ६४-६६ | १६ अतिचाराः
अनन्तकायादिस्वरूपम्
CALCARDCORRECRUARCORRECECARDOI
१३
॥
॥१७॥
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________________
विषयानुक्रमः।
श्रावकधर्म-6 गाथा विषयः पृष्ठः । गाथा विषयः पृष्ठः | गाथा विषयः पृष्ठः पञ्चाशक- भोजनतः कर्मतश्च
द्विधा श्रावकः
९३ | २९ पौषधव्रतस्वरूपम् १०२ चूर्णिः । द्वितीयगुणवतम् ८४-८५ सामायिकस्य स्थानं विधिश्च९३-९४ तस्य चतुष्प्रकारता ०२ २२ अतिचाराः ८५-८६ श्रावकस्य सर्वसावद्यं त्रिधावर्जने
अव्यापारपौषधे सामायिकस्य ॥१८॥ इंगालकर्मादीनां पञ्चदशानां
प्रश्नः ९५ नियमः
१०२ वर्णनम्
८६-८८ श्रमणश्राद्धानां शिक्षादिदशभेदै- पौषधग्रहणस्थानम् १०३ भावणा
भेंदः
९५-९७
पौषधविधिः १०३-१०४ २३ तृतीयगुणव्रतस्वरूपम्
यतना
९७-९८
सामायिकसूत्रार्थः १०४-१०५ चतुर्धाऽनर्थदण्डः २६ अतिचारा भावना च ९८-९९
पौषधे दिनरात्रिचर्या १०५-१०९ परिहरन्तं गुणाः २७ देशावकाशिकव्रतस्वरूपम्
संस्तारके चिंतनं तत् कथानकम् ८९-९१
९९-१००
३. अतिचारा भावना च १०९-११० २४ अतिचारा
९१-९२ तस्यावश्यकचूर्णिगतस्वरूपम् १०० ३१ अतिथिसंविभागस्वरूपं १११ २५ सामायिकाख्यं प्रथमगुणव्रत
यतना
अतिथिसंविभागे विधिः१११-११२ स्वरूपम्
३ । २८ अतिचारा भावना च १०१-१०२ । ३२ अतिचारा भावना च ११२-११३
CHAARACRECA-%CAROO
MEGRESCACHECACNECESSARGEOCALLECREEG
॥१८॥
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________________
गाथा
विषयानुक्रमः।
भावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।। ॥१९॥
१३२
+C3%
विषयः पृष्ठः | गाथा
विषयः पृष्ठः । गाथा
विषयः
पृष्ठः ३३ अतिचारकथनप्रयोजनम् ११३ सप्तसु प्रतिमासु मतांतरम् १२४ निर्यापकाः (४८) ३४ सम्यक्त्वव्रतादीनामुपायग्रहण
प्रतिमानां प्रयोजनम् १२५ संस्तारकविधिः प्रयत्नविषयाः
श्रावकवर्णनम् १२५-१२७ कः स्वरूपः चरिमाहारः ! ३५ उद्यमे विरतिपरिणामोऽनुद्यमे
भक्तप्रत्याख्यानविधिः १२७
आहारे के गुणाः! १३२ पातश्च संलेखनायाः कालमानं स्वरूपंच१२८
निर्यापकैः किं चिन्तितव्यम् १३२ ३६-३७ सम्यक्त्वादिस्थैर्यार्थमुप
नागीतार्थपार्श्वेऽसंविग्नपार्श्वे चा
अनशने का स्वरूपा निर्जरा १३२ नशनम्
१२९ ११६-११७ ३८ स्थैर्यस्य फलम्
संस्तारकस्वरूपं विधिश्च १२९
१३३ गीतार्थपार्श्वेऽनशनम् ३९ द्वादशव्रतानां कालमानम् ११७
समाधाबुदाहरणानि १३३-१३४
अनशनकाले आचार्यस्यालोच४० संलेखना
यितव्यम्
अर्हन्नकचरित्रम् १३४-१३५ ग्रामादिगमणे किं कर्तृत्वं ११८ अनशनविधिः
१२९
संवेगनिर्वेदवचनैः समाधी श्राद्धस्याभिग्रहाः ११८-११९ आलोचनाविधिः
१३०
१३५-१३६ श्राद्धस्यैकादशप्रतिमास्वरूपम् आलोचनायां गुणाः
परीषहपराजिते विधिः १३६ ११९-१२४ । अनशनयोग्यं स्थान
अनशनकारकस्य द्विधा चिहं १३६
-SCAAAAAAAGADCHIRECTOCK
देशः
१२९
ACROCEO
॥१९॥
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________________
विषयानु
श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
॥२०॥
FACARECRUARRECRUAR
गाथा विषयः पृष्ठः । गाथा विषयः पृष्ठः | गाथा विषयः
पृष्ठः | भक्तप्रत्याख्यानस्यानिर्वाहे विधिः । अनशनदशायां भावनाः ४८ धर्मेषु सदा चित्तस्थापनम् १५१ | १३७-१३८
१४५-१४६
मनुष्यभवदुर्लभत्वे चुल्लक-पापञ्चधा क्लिष्टभावना १३८-१३९ | ४१ श्राद्धः कुत्र वसेत् ! १४६ शक-धान्य-चूत-रत्न-स्वप्नइकिनीमरणविधिः १३९ चैत्यादिसानिध्यवसने गुणाः १४६
-चक्र--चर्म-युग--परमाणूनां पादपोपगमनविधिः १३९-१४० ४२-४५ श्राद्धदिनकृत्यानि १४६-१५०
दृष्टान्ताः १५१-१५६ तत्र स्कन्दकोदाहरणम् १४०-१४२ साधुसमीपे चैत्यघरे वाऽऽगम
दुर्लभमानुष्यत्वे कर्तव्यम् १५६-१५७ धनाशालिभद्रादीनां चिंतनम् १४२ श्रवण
धर्मगुणाः तद्गतोऽवंतिसुकुमालदृष्टान्तः
साधुश्राद्धानामवश्यकरणीय
| ४९ धर्माचार्यादिषु चित्तस्थापने १४२-१४३ मावश्यकम्
१४९ पादपोपगमने शक्तेरभावः १४३
१५७ ४६ अब्रह्मविरति-मोहदुगंच्छा-स्त्री
संवेगरसायणम् अनशने श्रावकस्य सामाचारी
कलेवरविचाराः
१५० | ५० विधिरक्तस्य भवविरहः १५८ १४३-१४४ | ४७ सुप्तप्रबुद्धे चितवनमधिगरणो
चूर्णौ गृहिताधाराः १५८ संलेखनाया अतीचाराः१४४-१४५ पशमं च
ग्रन्थकर्तुः प्रशस्तिः समयश्च १५८
HDSAXA4%AASARACTERIAL
॥२०॥
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________________
श्रावकधर्मपश्चाशक
पत्रकम् ।
चूर्णिः ।
शुद्धिः । चित्तं भत्तंपि
॥२१॥
जारिसे
अग्गीओ
SEARCASESASURES
पृष्ठः पतिः अशुद्धिः ४६ अहारो ६ । ददति ८ ३ पलिउवमा० ८ १३ जावइयगं ११,१६,१ जाई. १३ ११ गइठिई. १. २ कम्मठिई० १७६अईदीहा १७ ९४ मेसजो २. १ तउसफालइ २१ ८ साहू २२ ९ मणुभूए २६६०संरंतो ३१ दिवा ३३ १३ बंधुकी
शुद्धिः आहारो ददति पलिओवमा० जाबइयं जाइ० गइठिह. कम्मठिइ. अइदीहा मेसजो. तउसफलाइ सावओ साहू अणुभूए
सरतो दिट्ठा अंडकी
शुद्धिपत्रकम् । पृष्ठः पतिः अशुद्धिः शुद्धिः ___पृष्ठः पतिः अशुद्धिः ३५ ७ वडेऽति वडेति
, वित्तं ३९६ व्हायण. व्हाण
१२३ ९ मत्तंपि ५० १३ चउराईया चउराइया
१२४ जे इमे ५५ ५ अइयभारं अइभार
१२९ ४ अगीओ ६३ ४ अच्छंति अच्छति
१३१ ३ जह-" ०त.
१३२ १२ विगइओ सव्व ६६ ५आई.
आइ० ८ संथारेजा
१३२
संधारेज्जा ८५
१४.ती १२ चियं चिय
१३६ ३ सुइय ३न
४ दुहयर १०० १४ इच्छाए
पच्छाए
१५८ ११ श्रावक १०३ १० सामाइयम्मिव सामाइयमिव ११.३०चारस्य भावना चारा भावनाच |
७ लाला. ११३ ६ जीबइयं जीवदयं
१६०-१८० पृष्टाङ्क ११३७ धम्मो धनो
|१६. २ श्रावक
नव विगइ सत्त
तीरं मुइय
MISHAROSCHECCASHASABAAWAL
१००
दुहपरं
श्रावकधर्म
लाल.
पृष्ठाङ्क:
श्रावकधर्म
॥ २१॥
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________________
नाम.
किं. ह.
॥२२॥
CAE%A4%ARCOREGALA
शेठ देवचंद लालमाई जैन पुस्तकोद्धार फंड तथा श्रीमती आगमोदयसमितिना हालमा मलता ग्रंथो. आ उपरांत आगमोद्धारक आचार्य श्रीआनंदसागरसूरीश्वरजीनी दृष्टितले तैयार थयेली तथा केटलीक अवचूर्णिओ प्रेसमा छापवा गयेल छे.
समितिना:| अंक. नाम.
किं.क.| अंक. ४५ भक्तामरस्तोत्र पादपूर्तिरूप काव्य (प्रथम विभाग टीका भाषांतर)३-०-० । ५५ नंद्यादि( सप्तसूत्र )गाथाद्यकारादियुतो विषयानुक्रमः २-०-० ४७ पंचसंग्रह-(टीकासह)
२-८-० ५६ आवश्यकसूत्र (मलयगिरिकृत टीकायुक्त पूर्वभागः) ४-०-० ५. जीवसमासप्रकरण (सटीक)
१-८-० ५७ लोकप्रकाश-प्रथमविभाग (द्रव्यलोक सर्ग १थी ११ माषांतर) ३-८-० ५१ स्तुतिचतुर्विशतिका (सचित्र श्रीशोभनमुनिकृत संस्कृता) -.-. ५९ चतुर्विंशतिका-जिनानंदस्तुति (सचित्र मेरुविजयकृत भाषांतर) 6-6-- ५२ स्तुसिचतुर्विशतिका व ऐंद्रस्तुति (सचित्र कवि धनपालकृत) ६-०-. ६. आवश्यकसूत्र (मलयगिरिकृत टीकायुक्त द्वितीयभागः) २-८-० ५३ चतुर्विंशतिका (सचित्र श्रीवप्पभट्टिसरिकृत भाषांतरयुक्त) -.-.
(त्रीजो संपूर्ण फंडमांथी छपायो छे) ५४ भक्तामरस्तोत्र पादपूर्तिरूप काव्य (द्वितीय विभागः टीका ६१ लोकप्रकाश-द्वितीयविभाग (क्षेत्रलोक सर्ग १२ थी २० भाषां०) ३-०-०
भाषांतरसह) ३-८-०
फंडना:८५ आवश्यकसूत्र मलयगिरिकृत टीकायुक्त (तृतीयभागः) २--
० ८ प्रशमरतिप्रकरण (बृहत्गच्छीय श्रीहरिभद्रसूरिकृत विवरण८६ लोकप्रकाशमूल चतुर्थ विभाग (२७ सर्गथी संपूर्णप्रन्थ) १-.-.
समेत वाचक उमास्वाति विरचित) १-४-० ८. भरवेश्वर-बाहुबलिवृत्ति द्वितीयविभागः (संपूर्ण) २-०-० ८९ अध्यात्मकल्पद्रुम (रत्नचंद्रगणि व धनविजयगणिकृत टीकायुक्त) ३-०-०
AALAAAACARCIA
॥२२
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________________
%EC%9A%
.
१-४-०
.
॥२३॥
९. गौतमीय काव्य (रूपचंद्रगणिकृत महाकाव्य)
५६ श्राद्धविधि (धावकोने दिनचर्यादिमां अति उपयोगी प्रन्थ, १ सटोक वैराग्यशतकादि ग्रंथपंचक (व्याख्यान योग्य)
गुजराती भाषांतर) ३-८-0 ९२ श्रीअभिधानचिन्तामणिकोश
९७ पंचप्रतिक्रमणसूत्र
९८ देवसीराईप्रतिक्रमणसूत्र ९३ जैनकुमारसंभव
०-१२-०
९९ समणसूत्तादिअवचूरि ९४ सिद्धहेमशब्दानुशासन-बृहद्धृत्यवचूर्णी (नवपाद, अवचूर्णि
१०० बंदनप्रतिकमणअवचूरि कार-अमरचन्द) ५-०-.101 अल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोश प्रथम माग ९५ श्रीवीतरागस्तोत्र (अवचूर्णि, विवरण अने भाषांतर समेत) ३-०-० | १०२ श्रावकधर्मपंचाशक चूर्णि
प्राप्तिस्थानशेठ देवचंद लालमाई जैन पुस्तकोद्धार फंड.
गोपीपुरा, सुरत.
-SCRECECARE
में
२
-८
-०
%%EOCALCCASICS
है।॥२३॥
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6
॥२४॥
SAECCANCREDICICIRCLEAR
-: आजे ज मंगावो:पूर्व महर्षिओए शास्त्रसमुद्रनुं मंथन करी काढेला रत्नोमांनां केटलांक रत्नो याने जैन-तत्त्वज्ञ नाम रू. आ. पा. |
रू. भा. पा. नाम,
आ. पा. १ अंगाकारादि
४-०-० १७ प्रज्ञापनासूत्र टीका भा. २ (हारि०)२-८-० | ३३ संसर्गगुणदोष २ आगमीयसूक्तावली २-४-० १८ प्रवचनपरीक्षा भा. १
३४ स्वाध्यायप्रकाश ३ आचारांगचूर्णि ५-०-.
४-०-० ३५ उपदेशरत्नाकर (सार्थ) ४ उपदेशमाळा याने पुष्पमाळा
२० प्रत्याविधान
२-८-. ३६ तत्वार्थकर्तृतन्मतनिर्णय ५ उत्पादादिसिद्धि
२१ भवभावना भा. २
३-१०० ३७ पदेशना (व्या. सं.) ६ उपांगादि अनुक्रमादि
२२ , छाया
०-१०-० ३० पंचवस्तुभाषान्तर ७ कथाकोष
२३ भगवतीजी भा. ३
४-०-० ३९ प्रवचनपरीक्षानी महत्ता ८ कल्पसमर्थन
२४ विशेषावश्यक भा. २ ६-०-० ४० प्रशमरति (व्या. सं.) ९ कल्पकौमुदी
२५ श्राद्धदिनकृत्य ,१
३-१२-० ४१ बृहत्सिद्धप्रभाव्याकरण १. कृष्णचरित्र २६ श्राद्धदिनकृत्य भा २ २-४-८
४३ मध्यम.
. ११ दशवेकालिकसूत्र भाग १-२ १०-०. २७ श्रावकधर्मदेशना
.-६-०
लघु , लघुतमनामकोश २-८-० १२ नमस्कारमाहात्म्य
२८ श्रेणिकचरित्र ०-६-० ४४ सागर-समाधान भा.
२ ३ -०-० १३ नबस्मरण गौतमरास
२९ साधर्मिकवात्सल्य
0-6- ४५ स्थानांगसूत्र (व्या. सं.) भा. १ ५-०-० १४ पयुषणादशशतक
३० सूयगडांगचूर्णि ५-०-० ४६ शासनजयपताका
२-०१५ पंचाशकप्रकरण
| ३१ संघाचारभाष्य
५-०-
० ४७ आचारांगसूत्र (व्या. सं.) ५-.-. १६ प्रज्ञापनासूत्र टीका भा. १(हारि०) २-०-. | ३२ संस्कृतप्राचीनप्रकरण ० १२.० । ४८ तात्त्विक-प्रश्नोत्तर (भा. १, गु.)९-०-०
प्राप्तिस्थानः-श्रीजैनानंदपुस्तकालय, गोपीपुरा, सुरत.
V०
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००००००
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।
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१
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-०
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॥२४॥
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________________
S
प्रस्तावना
श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
नमो वीतरागाय ॥ बेष्ठि-देवचन्द्र-लालभाई-जैन-पुस्तकोद्धार-प्रन्थाङ्के-१०२ भवविरहाकश्रीहरिभद्राचार्यरचितपंचाशकेष्वाद्यपंचाशकस्य
श्रीयशोदेवसूरिकृता चूर्णिः ।
ECRECACCRAC%9A%15
(श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः)
CAME%EOGRAHASE%%A5
नमिय भुवणेकमाणु णाणकिरणाहिभूयतिमिरमरं । भवियजणाणंदयरं अवियलपयमग्गपयडपयं ॥१॥ आइमपंचासगपगरणस्स गिहिधम्मविहिपईवस्स । सिरिअभयदेवमुणिवइविरइयवित्तीऽणुसाराओ ॥२॥ सत्थंतरसुत्ताण य नियनियमणियन्वठाणपचाणं । चुनिं तुच्छमईणं वोच्छामि अणुग्गहवाए ॥३॥ जुम्मं ॥ तत्थ ताव मंगलाभिधेयसंबंधपयोयणस्था आईए इमा गाहापं. चू. १
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अनुबन्धाः
श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
SCRECIE
नमिऊण वद्धमाणं सावगधम्म समासओ वुच्छं । सम्मत्ताई भावत्थसंगयं सुत्तनीईए ॥१॥ __तत्थ सग्गापवग्गहेउम्मि सेओभृयम्मि एयम्मि पगरणे पयट्टमाणाणं विग्धं संभवइति तदुवसमणत्थं इट्ठदेवयानमोक्काररूवं भावमंगलं कायवं । तहा अभिधेयसंबंधपओयणरहिए सत्थे सोयारा न पयप॑ति अओ तप्पविचिनिमित्तं अभिधेयाईणि भणियबाणित्ति । तत्थ नमिकण-पणमिऊण, कं? वद्धमाणं चरिमतित्थाहिवई, परमोवगारित्ति एयस्स विसेसेण नमोकारो कओ, एएण मंगलं भणियं । नमिऊण किं काय ? तं दरिसेइ-सावगधम्मंति-सावगाणं-समणोवासगाणं धम्मो-सम्मत्तमूलदुवालसवयसरूवो तं सावगधम्म वोच्छ-मणिस्सामि । अणेण य एयरस सत्थस्स अभिधेयं भणियं । अभिधेयभणणेण अभिहाणाभिधेयलक्खणो संबंधोऽवि भणिओ चेवत्ति । नणु पुवायरिएहिं चेव सावगधम्मो भणिओ, किं तेण भणिएण ?, एयमासंकिय भणइ-समासओत्ति-संखेवेण, पुवायरिएहिं वित्थरेण भणिओ अहं पुण मंदमइसत्ताणुग्गहत्थं संखेवेण सावगधम्म भणिस्सामि । एएण य आयरिओ पगरणकरणे अत्तणो पयोयणं दंसेइ, जओ पओयणं विणा न मंदोऽवि पयट्टह, तहा संखित्तपगरणस्स सुहेण पढणाई कीरइत्ति वित्थरगंथपढणाइअसमत्था सीसा एत्थ पयट्टिया भवति । केरिसं सावगधम्म ?, तमाह-'सम्मत्ताइ'त्ति सम्मत्त-तत्त(त्थ)सदहाणरूवं आदी-पढम जस्स अणुवयाइधम्मस्स तं सम्मत्ताई, पागयलक्खणेण विदुलोवो(दीहो य)। नणु उमासाइवायगेण समासेणं सम्मत्ताई य सावगपन्नत्तिमाइसु सो सावगधम्मो भणिओ तओ किं अणेण पगरणेण ?, एयमासंकिय भणइ-भावत्थसंगयंति, भावत्थो-परमत्थो तेण संगतो-जुत्तो तं भावत्थसंगयं । अयमिह परमत्थो-पुवायरिएहिं गंभीरवयणेहिं भणियाणं वयाइयारमाइयाणं अत्थाणं जो मंदबुद्धिसिसाणं दुरवगमो
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CARROCHARACC
॥२॥
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भावकधर्म-16 पश्चाशक
श्रावकलक्षणं
चूर्णिः
SAEECHECADARGACARDCRACIA
भावत्थो तेण संगयं तं भणिस्सामि । सुत्तनीईएत्ति-आगमाणुसारेण, सुत्तसरूवं च इमं-" पुन्वावरसंजुत्तं वेरग्गकरं सतंतमविरुद्धं । पोराणमद्धमागहमासानिययं हवइ सुत्तं ॥ १ ॥" तहा-" सुत्तं गणहररइयं १, तहेव पत्तेयबुद्धरइयं च २। सुयकेवलिणा रइयं ३, अभिन्नदसपुग्विणा रइयं ४ ॥१॥" इति ॥ १॥ 'सावगधम्मं वोच्छं' तिजं भणियं |४ तस्थ सावगसद्दत्थनिरूवणत्थमाहपरलोगहियं सम्मं जो जिणवयणं सुणेइ उवउत्तो । अइतिव्वकम्मविगमा सुक्कोसो सावगो एत्था॥२॥
जो सुणेइ सो सावगो, एवमिह किरियासंबंधो, ज इति सामन्त्रनिद्देसो, तेण जो कोइ जीवो, न पुण विसिटकुलुप्पन्न एव, जहा माहणकुलुप्पन्न एव माहणो होइत्ति, किरियाविसेसनिमित्रं सावगतिकाउं, नणु जो सुणेइ सो सावओत्ति एवं सवणमेत्तनिबंधणं सावगत्तं पावइ, तं पुण सव्वेसिं सोइंदियलद्धिजुत्ताणं संभवइ, विसिटुं च सावगतं इच्छिजइ, एवमासंकाए आह-जिणवयणंति-सव्वन्नुआगमं, किं विसिटुं जिणवयणं, परलोगहियं-परलोगपत्थं, परलोगसाहगं, जिणवयणमेव सुणतो सावगो होइ, न पुण जोइसनिमित्तजोणीपाहडाई सुणतोवि, जओ भणियं "संपन्नदंसणाई पइदियह जइजणा सुणेई य। सामायारिं परमं जो खलु तं सावगं वेति ॥१॥" कहं सुणेइ, सम्मंति-असढभावेण, सढमावेण सुणंतोऽवि न सावगो होइत्ति भावत्थो, सुणेतित्ति-आयनेति, उवउत्तोत्ति-भावसारं आयरपरो, अणुवउत्तसवणं हि न सफलं, अत एव तनिसेहणत्थं भणियमागमे-"निद्दाविगहापरिवजिएहिं गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं । भत्तिबहुमाणपुव्वं उवउत्तेहिं सुणेयध्वं ॥१॥"ति, एवंविहं सवणं कहं भवइ १, तत्थ कारण दंसेइ अइतिव्वकम्मविगमत्ति-अतिसंकिलिट्ठनाणावरणीयमिच्छत्तमोहणीयाइ.
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आवकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
RECTECARCISI HAR
कम्मविणासाओ, नहि तिव्वकम्मविगमं विणा पुत्वभणियसवणसंभवो, जओ भणियं-" सत्तण्डं पयडीणं अभितरओ उ कोडि- श्रावककोडीए । काऊण सागराणं जइ लहइ चउण्हमन्त्रयरंति ॥१॥" सुत्ति-अणंतरमणिओ जीवो, उक्कोसोत्ति-पहाणो, अहवा II लक्षणं सुक्कोत्ति-सुक्कपक्खिगो, अबद्धपोग्गलपरावत्तमंतरीभूयसंसारो इत्यर्थः, सोत्ति-मणियसरूवो, सावगोत्ति-समणोवासओ, एत्थत्ति-एयंमि सावगधम्मवियारावसरे, अन्नत्थ पुण सामन्त्रेण सुणतो सुणावेंतो वा नामादिभेदभिन्नो वा सावगो होइत्ति ॥२॥
सम्मत्ताई सावगधम्मं वोच्छंति पूवं भणियं, तत्थ सम्मत्तं सवगुणाधारोत्तिकाउं पढमं उद्दिढ, जो भणियं-" मूलं दारं पइट्ठाणं, अहारो भायणं निही । दुछक्कस्सवि धम्मस्स, सम्मत्तं परिकित्तियं ॥१॥" तत्थ मूलं महादुमस्सेव, दारं सपागारमहानगरस्सेव, पइट्ठाणति पेढं भन्नइ, तं पुण जहा पासायस्स, आधारो जहा धरणी सतपयत्थाणं, भायणं पहाणदवाणंपिव, निहाणं सुवन्नाइरयणाणंपिव, तहा सम्मत्तजुत्तस्स चेव सवावि किरिया सहलत्ति, जओ भणियं-" कुणमाणो वि य किरिय परिचयंतोवि सयणधणभोए । देंतोऽवि दुहस्स उरं न जिणइ अंधो पराणीयं ॥१॥ कुणमाणोऽवि निविर्ति परिचयंतो वि सयणधणभोगे । देंतोऽवि दुहस्स उरं मिच्छद्दिट्ठी न सिज्झइ उ ॥२॥ तम्हा कम्माणीयं जेउमणो दंसणंमि पयइज्जा। दसणवओ हि सहलाणि होति तवणाणचरणाणि ॥३॥" एएणवि कारणेण पढम उद्दिढ़ | तहा सम्मत्तलाभाणंतरं पारमत्थिया विरई होइ, जओ भणियं-" सम्ममि उ लद्धे पलियपुहत्तण सावओ होजा । " एवमाइ, अओवि पढम उद्दिटुं । तस्स-एवं पढमोवइट्ठस्स दिसिदरिसणत्थं केसिंचि वयाण य पुब्वायरियभणिएहिं नवहिं दारेहिं निरूवणं करिस्सामि, ताणि य इमाणि, तंजहा-"जारिसओ १ जइमेओ २ जह जायइ ३ जह य एत्थ दोस ४ गुणा ५। जयणा ६ जह अइयारा ७
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सम्यक्त्वस्व
आवकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
गुणाब
AHECCCCCCCCOCOChe
मंगो ८ तह मावणा ९ नेया ॥१॥" एएसिं सरूवं पुण इम-जारिसओ-जारिससरूवो सम्मत्ताइगुणो होइ एयं जाणि. यत्वं १ । जइभेओ-तस्सेव सम्मत्ताइगुणस्स जत्तिया भेया संभवंति, एयपि नायवं २। जह जायइ-जेण पगारेण उप्पज्जइ ३। जह य एत्थ-सम्मत्तादिगुणे अगहिए दोसा होति ४ । गहिए जहा गुणा संभवंति ५। जयणा-जहासत्तीए अकप्पपरिहाररूवा ६ । जहा अइयारा-भंगाभंगरूवा तेसु संभवंति ७। भंगो-अभावो, जहा होइ सम्मत्ताइसु ८। तहा भावणा-सम्मत्ताइगुणाणं वुड्डिनिमित्तं जा सुहझवसायसरूवा भाविजइ ९ । नेयत्ति किरियापयं सवत्थ दट्ठव्वं ।
तत्थ सम्मत्तसरूवं पसंगेण तप्फलं च निरूवतो भणइतत्तत्थसद्दहाणं सम्मत्तमसग्गहो न एयमि । मिच्छत्तखओवसमा सुस्सुसाई उ होंति दढं ॥३॥ __ तत्तत्थाण-सबन्नुभासियाण (प्र. भणियाणं ) जीवाजीवादिपयत्थाण, सद्दहाणं-जं जिणेहिं भणियं तं तहेवत्ति रूई, | सम्मत्तंति-सम्मदरिसणं भवइ, एयं सम्मत्तस्स सरूवं भणियं । इयाणिं सम्मत्तस्सेव दोसनिवित्तिरूवं फलं भन्नइ, अहवा तत्तत्थसद्दहाणं निण्हगाणं पि अस्थिति तेसिपि सम्मत्तं पावइत्ति एयमासंकिय आह-असग्गहो न एयंमि, असग्गहो-असुदराभिनिवेसो, एयमि-सम्मत्ते विजमाणे न होइ, ततो निण्हगाणं कह सम्मत्तं संभवइ १, नणु किं कारणं सम्मत्ते सइ असग्गहो न भवइ ?, मन्नइ-मिच्छत्तखओवसमा-मिच्छत्तस्स-मिच्छत्तमोहणीयकम्मदलियस्स, खओवसमो-उदिन्नस्स खओ-विणासो अणुदिन्नस्स उदयविक्खमो तओ मिच्छत्तखओवसमाओ कारणाओ, उबलक्खणं च एसो तेण, खयाओ उवसमाओ य, एयपि दट्ठवं, मिच्छत्तुदओ हि असग्गहकारणं, मिच्छत्तुदओ य सम्मत्ते विजमाणे नस्थित्ति असग्गहो एत्थ न
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सम्यग्दृष्टेलक्षणानि
भावकधर्म- होइत्ति भावत्थो । के पुण सम्मत्ते पडिवन्ने गुणा भवंति ?, भन्नइ-सुस्सुसाई उ होंति ददति, सुस्सूसा-धम्मसत्थसवणापश्चाशक-II भिलासो आइसहाओ अन्ने धम्मरागादयो उवरि भन्नमाणा घेप्पंति, हुंति-उप्पजंति, मिच्छत्तखओवसमखयउवसमाओ चूर्णिः । चेव, एएणवि सम्मत्तस्स फलं भणियं, दढं-अइसएण, जारिसेहिं तेहिं सम्मत्तं लक्खिाइति ॥ ३॥
सुस्साई उ भवंतित्ति पुर्व भणियं, अतो ते भन्नतिसुस्सूस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए । वेयावच्चे नियमो वयपडिवत्तीऍ(इ) भयणा उ॥४॥
सोउं इच्छा सुस्सूसा-पहाणबोहहेतुधम्मसत्थसुणणाभिलासो, सा पुण सुस्सूसा वियड्ढाइगुणजुत्ततरुणनरकिन्नरगेयसवणरागाओवि अहियतरा सम्मत्ते सइ होति । तहा धम्मरागोत्ति, धम्मो-सुयचरित्तरूवो, तत्थ सुयधम्मरागो सुस्सूसापएण चेव भणिओ, अतो इह धम्मरागो-चारित्तधम्मरागो घेप्पइ, सो धम्मरागो कम्मदोसाओ चारित्तधम्मअकरणेवि कंतारुतिनदरिद्दछुहाकिलंतमाहणघयपुनभोयणाभिलासाओवि अहिगो सम्मत्ते विजमाणे होइ । तहा गुरुदेवाणं जहासमाहीए वेयावच्चे नियमोत्ति, गुरू-धम्मदेसगा आयरियाई, देवा य तिलोयपूयणिजा अरहंता तेसिं जहासमाहीए-जहासत्तीए, वेयावच्चे-तप्पडिवत्तिविस्सामणपूयणाइए, नियमो-अवस्सं कायवंति पडिवत्ती सम्मत्ते सति होइत्ति, किं जहा सम्मत्ते होंते सुस्सुसाइया गुणा होंति, तहा किं वयाणिवि भवंतित्ति ?, एयमासंकिय आह-वयपडिवत्तीए भयणा उत्ति वयाणंअणुब्बयाईणं पडिवत्ती-अन्भुवगमो अंगीकरणं वयपडिवची तीए पुण भयणा-वियप्पणा, सम्मत्ते होते वयाणि कयाइ भवंति | कयाइ न भवंति इत्यर्थः ॥ ४ ॥ भयणाकारणमेव भन्नइ
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आवकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
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जं सा अहिगयराओ कम्मखओवसमओ न य तओ(गो)वि।
स्व तमजनाहोइ परिणामभेया लहुंति तम्हा इहं भयणा ॥ ५॥ ज-जेण कारणेण, सा-बयपडिवत्ती, अहिययराओ कम्मखओवसमओत्ति-अहिययराओ सम्मत्तलाभनिमित्तकम्मखओवसमावेक्खाए बहुतरगाओ कम्मखओवसमाओ, चरि-त्तमोहणीयकम्मखओवसमाउ होइ, नणु सम्मत्तलाभावसरे चेव चारित्तमोहणीयकम्मखओवसमो कम्हा न भवइ ?, भण्णइ-न य तगोवित्ति-नगारो पडिसेहे, चकारो अवधारणे, तगोचारित्तमोहणीयकम्मखओवसमो, जंमि चेव काले सम्मत्त्पडिवत्तिहेऊ कम्मखओवसमो होइ, न तंमि चेव चरणपडिवत्तिहेऊवि, कम्हा पुण एवं ?, भण्णइ-परिणामभेयत्ति, तहाभवत्तनिबंधणजीवज्झवसायविसेसाओ विसिछतरपरिणामेणं चारित्तमोहणीयकम्मखओवसमो होइत्ति भावत्थो । लहुंतित्ति-सिग्धमेव, सम्मत्तकारणकम्मखओवसमाणतरमेवेत्यर्थः, तम्हा-तेण कारणेण इह-वयपडिवत्तीए, भयणा-वियप्पणा, सुस्सूसाइसु पुण नियमो, जइवि गंठिभेयाउ चेव सम्मत्तमुपजइ तत्थ य वयपडिवत्तिमेव पहाणयरं मन्नइ, तहावि जावइयाए कम्मगंठीए भिजमाणीए सम्मत्तलाभो होइ न तावइयाए चेव वयपडि-18 वत्तीऽवि भावओ भवइत्ति ॥ ५॥ एयं चेव भणइसम्मा पलियपुहुत्ते वगए कम्माण भावओ होति । वयपभिईणि भवन्नवतरंडतुल्लाणि नियमेण ॥६॥ सम्मत्ति-'सूयगं सुत्तति नायओ सम्मत्तलाभाओ, पलियपुहुत्ते पलिओवमाण-आगमपसिद्धाण कालपरिमाणविसेस
IV॥ ७ ॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ।
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लक्खणाणं पुहुत्तं-दुष्पभिइनवंतसंखालक्खणं पलिओ मपुहुत्तं तंमि, अवगए-वेइए, कैसिं पलिओनमपुहुत्ते वेइए ? कम्माति-नाणावरणीयाईणं, इह कम्माणंति सुत्ते भणिएवि कम्मठिइएत्ति दट्ठवं, जओ मोहणीयाइकम्माणं उक्कोसट्ठिईओ अहापवचकरणेण ताव सिंहं खवेड जाव पलिउवमासंखेज भागूणा एगा सागरोवमकोडाकोडी, ततो गंठिभेएण सम्मत्तं लहइ, तओ सेमम्म ट्टिईए पलिओमपुहुत्ते खविए अणुवयाणि लहइति एस आगमामिप्पाओ, भावओति-परमत्थेण, दवओ पुण अइarra कम्मठिए मयाणिवि भवंति, किं पुण अणुवयाणि १, जओ भणियं - "सवजियाणं जम्हा सुते गेवेजगेसु उववाओ । भणिओ जिणेहिं सो न य लिंगं मोतुं जओ भणियं ॥ १ ॥ जे दंसणवावन्ना लिंगग्गहणं करंति सामने । तेसिंपिय उववाओ उक्को सो जाव गेवेजा ||२||" हुंति-भवंति, काणि १, भण्णइ - वयपभिईणि अणुवयगुणवयाईणि, सरूवेण केरिसाणि एयाणि ? तं भन्नइ-भवन्नवतरंङतुल्लाणित्ति-संसारसागरतरणनावादिसरिसाणि, नियमेण-अवस्संभावेण भणियं य- " सम्मत्तंमि उ लद्धे पलियपुहत्तेण सावओ होजा । चरणोवसमखयाणं सागरसंखंतरा होंति ॥ १ ॥ " पलिओचमपुहुत्ताइ अणुभवणीयस्स कम्णो विगमो पुण अणुकमेण वा होइ (अणुक्कमवेयणेण इत्यर्थः ) वीरियउल्लासेण करणंतरपवित्तीए अइसिग्धकालेण वा, जओ भणियं - " एवं अपरिवडिए सम्मत्ते देवमणुयजम्मेसु । अन्नयर सेटिव एगभवेणं च सङ्घाई ॥ १ ॥ " नणु जया सम्मतजुत्तो चैव नवपलिओषमअहिगठिइगेसु देवेसु उप्पञ्जइ तथा देवभवे विरइअभावाओ कहं "सम्मतंमि तु लद्धे पलिय पुहत्तेण सावओ होज"त्ति एवं घडइ ? एत्थ भण्णइ-तीए अवस्थाए जावइयगं ठितिं खवेइ तावइये अण्णं बंधइ, तओ देसूणसागरोकोडाको डिपरिमाणाए ठिईए पलिओवमपुहत्तविगमो न भवइ, ततो न देवभवाइसु देसविरइलामसंभवो, अओ नत्थि
| देशविरते
रवसरः
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सम्यश्वमेदाः
आवकर्माले
विरोहो ॥६॥ पञ्चाशक- भणियं सप्पसंग सम्मत्तसरूवदारं, संपयं मेयदारं भण्णइचूर्णिः | " एगविह दुविह तिविहं चउहा पंचविह दसविह सम्म । दव्वाइ कारगाइ य उवसमभेएहि वा सम्म॥१॥"
तस्थ एगविहं सबन्नुपणीयजीवाइपयत्थरई (१) दुविहं पुण दवसम्मत्तं भावसम्मत्तं च, तेर्सि इमं सरूवं-"जिणवयणमेव तत् एत्थ रुई होइ दवसम्मत् । जहभावनाणसद्धापरिसुद्ध भावसम्मत्तं ॥१॥" जिणवयणमेव-सवण्णुवयणमेव तत्त्रं, न अनं, एवंविहा रुई, एत्थ-सम्मतवियारे होइ दवसम्मत्त-अणाभोगपयट्ट रुइमेतं, जहभावाओ-जहद्वियवत्थुगाहगाओ नाणाओ जा सद्धा तीए परिसुद्धं सकञ्जपसाहगत्तेण निच्छइगं भावसम्मत्तं, एसेव अत्थो दिलुतेण भाविजइ-"सम्म अन्नायगुणे सुंदररयणमि होइ जा सद्धा। तत्तोणतगुणा खलु विनायगुणमि बोद्धवा ॥१॥" सम्म अन्नायगुणे-मणयं अन्नायगुणे, सुंदररयणेचिंतामणिमाइए होइ, जा सद्धा-गहणविसया इच्छा तचो अणतगुणा चेव अइतिवयरा विनायगुणे सुंदररयणे बोद्धवा, उवणओ सयं कायबो, अहवा निच्छयववहारभेयओ दुविहं, तं पुण इम-"जं मोणं तं सम्मं जं सम्मं तमिह होइ मोणं तु । निच्छयओ इयरस्स उ सम्म सम्मत्तहेऊवि ॥१॥"ज मोणति-मुणी-साह तस्स संबंधि ज पडिपुण्णाणुट्टाणं, तं सम्मंति-तं सम्मत्त वुच्चइ, जे सम्मति-जं सम्मत्तं तमिह होइ मोणं तु, भणियं च-आयारंगे "जं मोणति पासहा तं सम्मति पासहा, जं सम्मति पासहा तं मोणंति पासहा । " निच्छयउत्ति-निच्छयनयाभिप्पाएण, जओ निच्छयनयाभिप्पाओ इमो-"जो जहवायं न कुणइ मिच्छद्दिट्ठी तओ हु को अन्नो ? । वड्डेह य मिच्छत्त परस्स संकं जणेमाणो ॥ १ ॥" एवमाई, इयरस्स-ववहारनयस्स
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सम्यन्वमेदाः
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SCIENROCA4%AEKASICATIOCA5
मएण सम्मत्तहेऊवि सम्मत्तं भण्णइ, अरिहंतसासणपीइमाइयपि उवयारओ सम्मत्तंति, जओ सुद्धचित्ताणं एयपि पारंपरेण | | मोक्खसाहगं भवइ, अओ ववहारनयंपि पमाणं, जओ भणियं-"जइ जिणमयं पवजह ता मा ववहारनिच्छए मुयह । ववहारनउच्छेए तित्थुछेओ जओ वस्सं ॥१॥" एवमाइ, अहवा निसग्गअभिगम भेएण दुविहं, तत्थ निसग्गो-सभावो तेण निसग्गेण परोवएस विणा ज होइ तं निसग्गसम्मत्त, परोवएसाउ जे होइ तं अहिगमसम्मत्त, एवमादि दुविहं मणियत्वंति(२) तिविहं कारगरोयगदीवगभेएणं, कारगादिसरूवं पुण इम-" जं जह भणियं तं तह करेइ सति जंमि कारगं तं तु । रोयगसम्मत्तं पुण रुइमेत्तकरं मुणेयत्वं ॥१॥ सयमिह मिच्छद्दिट्ठी धम्मकहाईहिं दीवइ परस्स । सम्मत्तमिणं दीवग कारणफलभावओ नेयं ॥२॥" अहवा तिविहं-खाओवसमियं १ उवसमियं २ खाइयं ३, तिण्हंपि सरूवं इम-"मिच्छत् जमुइण्णं तं खीणं अणुइयं च उवसंतं । मीसीभावपरिणयं वेइजंत खओवसमं ॥१॥ उवसामगसेढीगयस्स होइ उवसामियं तु सम्मत्तं । जो वा अकयतिपुंजो अखवियमिच्छो लहइ सम्म ॥२॥ खीणे दंसणमोहे तिविहंमिवि भवनियाणभूयंमि । निप्पच्चवायम उलं सम्मत्तं खाइयं होइ ॥३॥" ति(३)। तहा चउब्विहं-खाउवसमिगादितिगं सासायणसहियं चउबिहं, सासायणसरूवं इम"उवसमसम्मत्ताओ चयओ मिच्छं अपावमाणस्स । सासायणसम्मत्तं तयंतरालंमि छावलिया ॥१॥" (४)एयं चेव चउविहं वेय. गसहियं पंचविहं होइ, तत्थ वेयगसरूवं इमं-"बावीससंतमोहस्स सुद्धदलियक्खयंमि आढत्ते । जीवस्स चरिमसमए अणुहवणे वेययं होई ॥१॥" (५)दसविहं पुण निसग्गरुइमाइगाउ दस रुईओ, तंजहा-" निसग्गुवएसरुई आणरुइ सुत्तबीयरुइमेव । अभिगमवित्थाररुई किरियासंखेवधम्मरुइ ॥१॥"ति, तत्थ निसग्गेण-सभावेण रुई जस्स सो निसग्गरुई, किं भणिय होइ?,
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॥११॥
BASAHESARSHAN
भण्णइ-परोवएस विणावि जाईसरणाइणा जीवाजीवाइपयत्थसदहाणं जस्स सो निसग्गरुइत्ति, भणियं-"जो जिणदिवे भावे चउविहे सदहाइ सयमेव । एमेय नन्नहत्ति य निसग्गरुइत्ति नायवो ॥१॥" जो जीवो जिणदिढ़े-तित्थगरउवलद्धे भावे-जीवाइयपयत्थे, चउबिहे-दवखेतकालभावभेयओ नामठवणादवभाव मेयओ वा चउप्पगारे सद्दहइ-तहत्ति पडिवाइ, सयमेव-परोवएसं विणा, सद्दहाणसरूवं दंसेइ-एमेयत्ति-एवमेयं जहा जिणदिटुं जीवाइ नन्नहत्ति-न एयं विवरीयं, चगारो समुच्चये, सो एवं विहो निसग्गरुइत्ति नायवो । उवएसो-गुरुमाइवयणं तेण रुई जस्स सो उवएसरुइ, “एए चेव उ भावे उबइठे जो परेण सदहइ । छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइत्ति नायवो ॥१॥" एए चेव-अणतरुत्ते, तुसद्दो पायपूरणो, भावे-जीवाइए उवइड्ढे परेण-अन्नेण सद्दहइ, किं विसिडेण नरेण ?, छउमत्थेणत्ति-अणुप्पन्न केवलनाणेण, जिणेण वत्ति-तित्थथराइणा सो पुरिसो उवएसरुइत्ति नायवो। आणा-सवण्णुवयणं तेण रुई जस्स सो आणाई, " रागो दोसो मोहो अण्णाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोततो सो खलु आणारुई नाम ॥ १॥" रागो-अभिस्संगो, दोसो-अपीई, मोहो-मिच्छत्तं, अन्नाणं-मिच्छानाणसरूवं एयाणि जस्स अवगयाणि, सरागस्स सबहा अवगमाभावाओ देसओ जस्सवि भट्ठाणि भवंति, एएसिमभावाओ य आणाए चेव आयरियाइसंबंधिणीए रोयंतो, कत्थइ कुग्गहाभावाओ जीवाइपयत्थे तहत्ति पडिवजमाणो मासतुसा. दिवत् सो खलु निच्छएण आणाईनाम । सुत्त-आगमो तेण रुई जस्स सो सुत्तरुई, "जो सुत्तमहिजंतो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइत्ति नायवो ॥१॥" जो सुत-आगमं, अहिजंतो-पढंतो, सुएण-सुत्तेण, ओगाहइपावइ सम्मच, केरिसेण सुएण? अंगण-आयाराइणा, बाहिरेण-अणंगपविद्वेण उत्तरज्झयणाइणा, वा-विगप्पे, सो एवंविहो
ECASSACROREACHES
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॥११॥
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सम्यक्त्व
मेदार
श्रावकधर्म- गोविंदवायगोच सुत्तरुइत्ति नायबो। बीयमिव बीयं, जं एगमवि अणेगत्थपडिबोहउप्पायगं वयणं तेण रुई जस्स सो पश्चाशक: बीयरुई, “एगेण अणेगाइं पयाई जो पसरई उ सम्मत्तं । उदएव तेल्लविंद सो बीयरुइत्ति नायचो ॥१॥" एगेण पएण जीवाचूर्णिः । इणा, अणेगाइंति-अणेगेसु बहुसु पएसु जीवाइसु जो पसरई, उत्ति, तुसद्दो अवधारणे, तेण पसरति चेव, सम्मत्तति सम्म
त्ताभिन्नोत्तिकाउं जीवोवि सम्मत्तं वुच्चइ, एत्थ दिद्रुतो-उदयेव तेल्लबिंदुत्ति, जहा उदगएगदेसगओवि तेल्लविंद सबमुदगं अक्कमइ ॥१२॥
तहा तत्तेगदेसउप्पन्नरुईवि जीवो विसिट्ठखओवसमवसाओ सक्तत्तेसु रुइवतो होइ, सो एवंविहो चीयरुइत्ति नायबो, जहा बीयं कमेण अणेगबीयाणं जणगं एवं एयस्सवि एगतत्तविसया रुई अणेगत्थविसयाओ अणेगरुइओ जणेइत्ति ५। अभिगमो-नाणं तेण रुई तत्तसदहाणं जस्स सो अभिगमरुई “ सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुं । एक्कारसअंगाइं पदिण्णगा दिद्विवाओ य ॥१॥" सो जीवो अभिगमरुई होइ, सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुंति-जेण सुयनाणस्स अत्थो अहिगओ, किं पुण तं
सुयनाणं?, भन्नइ-एक्कारस अंगाई-आयाराईणि, पइन्नगाई-उत्तरज्झयणाईणि, दिहिवाओ-परिकम्मसुत्ताइभेयं बारसमं है अंगं, पहाणंति काउं भेदेण भणियं, चसद्दाओ उववाइयाईणि उबंगाणि घेप्पंति ६।वित्थारो-वित्थरो तेण रुई जस्स सो वित्थाकाररुई । “दवाण सबभावा सवपमाणेहिं जस्स उवलद्धा । सबाहिं नयविहीहि य वित्थाररुई मुणेयवो ॥१॥" दवाणं-धम्म४ाथिकायादीणं, सबभावा-सव्वपज्जाया, सवपमाणेहि-पच्चक्खाईहिं, उवलद्धा-विनाया, सवाहि नयविहीहिं-सयलेहि नेगमा
दिनयभेएहिं, जो नयो जं भावं इच्छइ एयं उवलद्धं जस्स भवइ, सो वित्थाररुइति नायवो ७। किरिया-अणुट्ठाणं तेण रुई जस्स सो किरियाई-" दंसणनाणचरिते तवविणए सबसमिइगुत्तीसु । जो किरियामावरुई सो खलु किरियाई नाम
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श्रावकधर्म
पश्चाशक
चूर्णिः ।
॥ १३ ॥
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॥ १ ॥ " दंसणे निस्संकियाइए अट्ठपगारे दंसणायारे, नाणे-कालविणयाइअडपगारे नाणायारे, चरिते वयसमणाइगे चरितायारे, तवे-दुवालसविहे, विणए-अन्भुट्टालाइ अणे गपगारे, सच्चे - अविसंवायगवावारसरूवे, समिईसु-ईरियासमियाइसु पंच, गुत्तीसु-मणगुत्तिमाइसु तिसु जो किरियाभावरुइत्ति, किं भणियं होइ १, भन्नइ - दंसणा दिआयाराणुट्ठाणेसु जस्स भावओ रुई अत्थि, सो खलु निच्छएण किरियारुई नाम । इह च चारितगहणेण तवविणयाईणं लद्धाणंपि जं भेएण गाहाए गहण कयं तं एएसि विसेसेण मोक्खसाहगत्त जाणावणत्थं । ८ । संखेवो-संगहो समासो तेण रुई जस्स सो संखेवरुई - " अणभिग्गहि कुदिट्ठी संखेवरुइत्ति होइ नायो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ १ ॥ " अणमिग्गहिया-न अंगीकया कुदिट्ठी - बुद्धमयाइसरूवा जेण सो संखेवरुइत्ति नायबो, अविसारओ-अकुसलो, पवयणे-सवण्णुसासणे, तहा अणभिग्गहिओअकुसलो, चगारो समुच्चये, कम्मि अणभिग्गहिओ १, भन्नइ - सेसेसु कविलाहपरूवियपवयणेसु, एवंविहो संखेवेण चैव चिलातीपुतोविव उवसमाइपय तिगेण तत्तरुइं पावेइति संखेवरुई बुच्चाह । ९ । धम्मो - सुयधम्माई तेण रुई जस्स सो धम्मरुई" जो अस्थिकायधम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सदहह जिणाभिहियं सो धम्मरुइति नायवो ॥ १ ॥ " जो अस्थिकायाणं - धमाधम्मागासाईणं धम्मं - गइठिईउवकुंभ अवगाहदाणाइयं जाणइ, सुयधम्मं - अंगपविट्ठाइ आगमसरूवं, चरित्तधम्मंसामाइअच्छे ओवद्वावणियाइ, चसद्दो विगप्पे, सहहह-तहति पडिवज्जर जिणाभिहियं - तित्थगरभणियं सो धम्मरुइत्ति नायो । १० । निरूविया सम्मत्तभेया ।
संपयं तग्गमगलिंगेवि भेयसंभवो अत्थित्ति तप्पद रिसणत्थमिमं मन्नह - "परमत्थसंत्थवो वा सुदिट्ठपरमत्थसेवणं वावि ।
पं० चू. २
सम्यक्त्व| भेदाः
॥ १३ ॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः
॥ १४ ॥
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बावनकुदंसणवजणा य सम्मतसद्दहणा || १ ||" परमत्था - जीवाइपयत्था तेसु संथवो- पुणो पुणो तस्सरूवभावणाजणिओ परिचओ, वासो उत्तरलिंगविगप्पावेक्खाए समुच्चए, सु-सुट्टु दिट्ठा-उवलद्धा परमत्था जीवादओ जेहिं ते सुदिट्ठपरमत्थाआयरियाई तेर्सि सेवणं - पज्जुवासणं, वासदो अभणियत्थसमुच्चए, तेण जहासत्तीए तेर्सि वेयावच्चकरणं च अविसदो पुढावेक्खाओ समुच्चर, बावन्नकुदंसणत्ति वावन्नं विणङ्कं दंसणं जेसिं ते वावनदंसणा, जेहिं लद्धपि सम्मत्तं कम्मदोसाओ वमियं, तहा कुच्छियं दरिसणं जेसिं ते कुदरिसणा-सक्कताव साई तेसिं वजणं परिहारो वावन्नकुदंसणवञ्जणं, मा होउ एए अपरिहरंतस्स संमत्तमालिनंति चकारो समुच्चये, संमत्तसद्दहणं-संमत्तं अस्थिति एएहिं सहिजह अओ लिंगाणि एयाणिति । तहा पसम संवेगनिद्वेय अणुकंपा अत्थित्तसरूवाणिवि आगमे भणियाणि लिंगाणि, तंजहा - "पयईए कम्माणं वियाणिउं वा विवागमसुहंति । अवरद्वेऽवि न कुप्पड़ उवसमओ सङ्घकालंपि ।। १ ।।" पयईए वा संमत्तपोग्गलवेयगजीवसहावेण, कम्माण-कसायजणियाणं, वियाणि विवागं असुभंति-कसायाविट्टो अंतोमुहुत्तेण जं कम्मं बंधह तं अणेगाहिं सागरोव मकोडाकोडी हिंबि दुक्खेण चैव एहत्ति, अओ असुभो कम्माणं विवागो, एयं जाणेता किं १ अवरद्वेवि-विणासकारगेऽवि न कुप्पह-न कोवं करेइ, उवसमओ - उबसमेण हेउणा सवकालंपि जाव संमत्तपरिणामो अस्थित्ति (१) । तहा - " नरविबुहेसरसोक्खं दुक्खं चि भाव उन्नत । संवेगओ न मोक्खं मोत्तूण वा किंचि पत्थे ॥ १ ॥" नरेसरो-चक्कवट्टी, विबुहेसरो-इंदो एएसिं सोक्खं असामाविगताओ कम्मजणियत्ताओ सावसाणत्ताओ य दुक्खमेव भावओ-परमत्थओ मन्नतो, संवेगओ-संवेगेण हेउणा न मोक्खं साभाविकजीवरूवं अकम्मजं अपजवसाणं मोत्तुं किंचिवि पत्थे - अभिलसइत्ति (२) । तहा - " नारयतिरियनरामर
चत्वारिश्रद्धानानि पञ्चलिङ्गानि च
॥ १४ ॥
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4+4+4+4+4+4
पञ्च लिङ्गान्युत्पत्तिद्वारं च
श्रावकधर्म- भवेसु निवेयउ वसइ दुक्खं । अकयपरलोयमग्गो ममत्तविसवेगरहिओ य॥१॥" नारयतिरियनरामरभवेसु सबेसु चेव निवेयओ- पश्चाशक-12 निवेएण हेउणा दुक्खं वसइ-दुक्खेण अच्छइ, अकयपरलोयमग्गोत्ति-अकयधम्माणुट्ठाणो, एसो हि संसारे परलोगाणुद्वाणं चूर्णिः । विणा सबमेव असारं मन्नइत्ति, ममचविसवेगरहिओ य-पयईए पुत्तकलत्ताइसु निम्ममत्त एव विनायपरमत्थोत्तिकाउं (३)।
तहा-"दट्टण पाणिनिवहं भीमे भवसागरंमि दुक्खत्तं । अविसेसओऽणुकंपं दुहावि सामथओ कुणइ ॥१॥" दगुण पाणिनिवहंजीवसमूहं भीमे-भयजणगे भवसागरे-संसारसमुद्दे दुक्खत्तं-सारीरमाणसेहिं दुक्खेहिं अमिभूयं-पीडिअं, अविसेसओ-सामनेण सकीयपरकीयविचाराभावेण अणुकंप-दयं, दुहावि-दबओ भावओ य, तत्थ दबओ फासुगपिंडाइदाणेण, भावओ सुमग्गजोयणेण, सामत्थओ-ससत्तिअणुरूवं अणुकंपं करेइत्ति (४) । तहा-"मन्नइ तमेव सच्चं निस्संकं जं जिणेहिं पन्नत्तं । सुहपरिणामो
सई कंखाइविसोत्तियारहिओ ॥१॥" मन्नइत्ति-पडिवाइ, तमेव सचं निस्संक-संकारहियं जं जिणेहिं पन्न-जं तित्थगरेहि दश भणियं, सुभपरिणामो-पुत्वभणियविसेसणजुत्तो, सवं मन्नइ, न पुण किंचि मबई किंचि न मन्नइत्ति, कंखाइविसोत्तियारहिओ
कंखा-अन्नोन्नदसणग्गहसरूवा, आइसदाओ विचिकिच्छाई घेप्पंति, सुभज्झवसायाओ असुभज्झवसायगमणं विसोचिया भण्णइ, एयाहिं रहि उत्ति (५) भणियं भेयदारं ।
संपयं 'जह जायईत्ति तइयदारं दंसिजइ-"काऊण गठिभेयं सहसंमइयाइ पाणिणो केई । परवागरणा अन्ने लहंति संमत्तवररयणं ॥१॥" जीवस्स कम्मजणिओ घणरागदोसपरिणामो गंठी भन्नइ, तस्स य भेयं काऊण, कि ? लहंतिपावंति, संमत्तवररयण-संमत्तमेव दवरयणवेक्खाए वरं-पहाणं रयणं संमत्तवररयणं, केइ पाणिणो-भवजीवा, कहं ?
ARRIEROSAGAROKAR
+4+4+4-
PI॥ १५
4-4
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
सम्यक्त्वलामे दृष्टान्ताः
ACANCE
सहसंमइयाएचि, जाईसरणपइभाइणा केई लहंति, परवागरणा अण्णेत्ति-परोरएसाओ अन्ने संमत्तवररयणं लहंति, एत्थ संमत्ताइलाभविही संखेवेणं भन्नइ
इह जीवा दुविहा भवंति-भवा अभव्या य, तत्थ भवाणं तिन्नि करणाणि भवंति, करण नाम परिणामविसेसो, तंजहाअहापवत्तकरणं अपुवकरणं अनियट्टिकरणं च, तत्थ जह चेव पवत्तं अहापवत्तं तं च अणाइ १, अपत्तपुवं अपुवं २, नियत्तणसहावं नियट्टि, न नियट्टि अनियट्टि, संमईसणलाभाओ आरओ जंन नियत्तइ ३, तत्थ अभवाणं पढमं चेव भवइ, तत्थ जाव गठिठाणं ताव आइमं भवइ, गठिठाणं अइक्कमंतस्स बीयं, संमईसणलाभाभिमुहस्स तइयंति । तत्थ करणतिगं अंगीकाऊण इमे संमत्ताइलाभदिटुंता-“पल्लग १ गिरिसरिउवले २ पिवीलिया ३ पुरिस ४ पह ५ जरग्गहिया ६। कोदव ७ जल ८ वत्थाणि ९ य सामाइयलाभदिवता ॥१॥" तत्थ पल्लयदिळतो-पल्लओ पसिद्धो, तत्थ जहा कोइ महंते पल्ले धनं अप्पं अप्पतरं पक्खिवइ बहुबहुयरं गेण्हइ तं च कालंतरेण खिजइ, एवं कम्मधन्नपल्ले जीवो अणाभोगओ अहापवत्तकरणेण थोवं थोवतरं उवचिणंतो बहुबहुयरं खवंतो गंठिं पावेइ, पुणो गंठिमइक्कमंतस्स अपुवकरणं भवइ, संमईसणलाभाभिमुहस्स पुण अनियट्टिकरणंति, एस पल्लगदिद्रुतो (१)। कहं पुण अणाभोगओ बहुतरकम्मक्खओ होइ ?, भन्नइ-गिरिसरिया-पवयनदी तीसे उवला-पाहाणा गिरिसरिउवला तेसिं दिढतेण, किं भणिय होइ?, भण्णइ-जहा गिरिसरिउवला परोप्परं संघरिसेण उबओगसुन्नावि विचित्तागारा भवंति, एवं अहापवत्तकरणेण जीवा जहाविहकम्मठिइविचित्तरूवा भवंतित्ति (२)। पिवीलिकाकिडिका, तासि दिलुतो जिणभद्दगणिखमासमणविरइयगाहाहिं भन्नइ-"खितिसाभावियगमणं थाणूसरणं तओ समुप्पयणं ।
SARASWAR
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सम्यक्त्व
श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः
लामे
दृष्टान्ता
॥१७॥
CHECHANICAL
| थाणं थाणुसिरे वा ओरुहणं वा मुइंगाणं ॥१॥ खितिगमणंपित्र पढम, थाणूसरणं व करणमप्पुवं । उप्पयणं पिव तत्तो जीवाणं करणमनियट्टि ॥ २॥ थाणुव्व गंठिदेसो गंठियसत्तस्स तत्थऽवत्थाणं । ओयरणपिव तत्तो पुणोवि कम्मठिईविवड्डी
॥ ३ ॥" (३) । पुरिसदिटुंतो-जहा केइ तिन्नि पुरिसा किंपि महानयरं गंतुकामा महाडवि पडिवन्ना, सुदीहंअद्धाणं | अइक्कमंता कालाइक्कमभीया भयठाणं ढुकंता सिग्घयरगईए गच्छंति, ततो पुरउ उभयपासेसु गहियनिसियकरवाला पत्ता दो चोरा, ते दट्ठण एगो पच्छामुहो पलाणो, अन्नो तेहिं चेव गहिओ, तहा अवरो ते अइकमिऊण इच्छियनयरं पत्तो, एस दिट्ठतो। अयं अत्थोवणओ-एवं इह संसाराडवीए पुरिसा संसारिणो तिन्नि विवक्खिजंति, पंथो कम्मठिई अईदीहा, भयठाणं पुण गंठिदेसो, चोरदुगं पुण रागद्दोसा, तत्थ पच्छामुहगामी जो अहापवत्तकरणेण गंठिदेसं पावित्ता पुणो अणिट्ठपरिणामो होउं कम्मठिई उक्कोसं पावेइ, चोरदुगगहिओ पुण पबलरागदोसोदयगहिओ गंठियसत्तोत्ति जं भणियं होइ, अभिलसियनयरसंपन्नो पुण अपुवकरणेण रागद्दोसे चोरे निहणित्ता अनियट्टिकरणेण संपत्तसंमदंसणोत्ति (४) । एत्थ आह सीसो-स हि संमत्तं उवए. सेण लहइ उयाहु अणुवएसेण चेव लहइत्ति , एत्थ भण्णइ-दोहिवि पगारेहिं लहइ, कहं ?, पहपरिभट्टपुरिसतिगदिट्ठतेण-जहा कोइ पंथाओ परिभट्ठो उवएसं विणा चेव परिब्भमंतो सयमेव पंथं पावेइ, कोइ पुण परोवएसेण, अवरो पुण न पावइ चेव, एवं एत्थऽवि अच्चंतपणट्ठसुमग्गो जीवो अहापवत्तकरणेण संसाराडवीए परिन्भमतो कोई गंठिं पावित्ता अपुवकरणेण य गंठिमइक्कमइत्ता(ग्रं० ३००) अनियट्टिकरणं पाविऊण सयमेव संमत्ताइयं निवाणपुरस्स मग्गं लहइ, कोइ पुण परोवएसाओ, अन्नो पुण पच्छाभिमुहगामी गंठिसत्तो वा न लहइत्ति (५)। इयाणि जरदिद्रुतो-जहा जरो कोइ सयमेव अवेइ, कोइ भेसजोवओगेणं, कोइ पुण
॥१७॥
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श्रावकधर्म
विरत्यादि लाभक्रमः
न चेव अवेइ, एवं इह मिच्छत्तमहाजरो वि कोई सयमेव अवेइ, कोई अरिहंतवयणभेसजोवओगेणं, अन्नो पुण अरिहंतवयणपञ्चाशक- भेसजोबओगेणविन अवेइ (६) । इयाणि कोवादिद्रुतो-जहा हि केसिंचि कोदवाणं मयणभावो सयमेव कालंतरे अवेइ, तहा चूर्णिः । केसिंचि गोमयाइपरिकम्मवसेणं, तहा अन्नेसि न अवेइ, एवं मिच्छत्तभावोवि, कोइ सयमेव अवेइ, कोई पुण परोवएसपरिकं
मणाए, अवरो पुण नावेइ, एत्थ य भावत्थो-स हि जीवो अपुवकरणेण मयणअसुद्धअद्धसुद्धसुद्धकोदवसरिसं दरिसणं मिच्छा॥१८॥
दरिसणसमामिच्छदरिसणसम्मदरिसणभेएण तिहा काऊण तओ अनियट्टिकरण विसेसाओ संमत्तं पावेद, एवं करणतिगसहियस्स भवजीयस्स सम्मदंसणसंपत्ती, अभवस्सवि कस्सइ अहापवत्तकरणेण गंठिपत्तस्स अरिहंताइरिद्धिसंदसणेण अन्नेण वा केणइ पओयणेण पयस॒तस्स सुयसामाइयलाभो भवति, न सेसलाभो होइत्ति (७)। इयाणि जलदि₹तो-जहा जलं मलिणअद्धसुद्धसुद्धभेएण तिहा होइ, एवं दसणमवि मिच्छादसणसमामिच्छादसणसंमइंसणभेएण अपुवकरणेण तिहा करेइत्ति (८), एवं वस्थदिटुंतेऽवि जोयणा कायवत्ति (९)। संमत्तलाभविहिपसंगणं लाघवत्थं देसविरहमाईणंपि लाभविही भन्नइ
एवं संमइंसणलाभुत्तरकालं सेसकम्मस्स पलिओवमपुहुत्तठिइपरिक्खयाओ उत्तरकालं देसविरई लब्भइ, पुणो सेसकम्मस्स ठिइमज्झाओ संखेजसागरोवमेसु गएसु सबविरई लगभइ, पुणो अवसेसठिईइ मज्झाओ संखेज्जेसु चेव सागरोवमेसु गएसु
उवसमसेढी, पुणोऽवि संखेज्जेसु चेव सागरोवमेसु खीणेसु खबगसेढित्ति, एवं जह जायइत्ति दारं भणियं । अहवा मिच्छत्तलापरिहारेण संमत् होइ, जओ मणियं "मिच्छत्तपरिच्चाएण होइ"त्ति संमचंति तत्थाहिकयं चेव, तवजणं च एवं-समणो
वासओ पुवामेव मिच्छताओ पडिक्कमह संम उवसंपजइ, "नो से कप्पइ अञ्जप्पभिई अन्नतिथिए वा अन्नतित्थियदेवयाणि
%AHARANASANCES
1534564545555-
4G
॥१८॥
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
सम्यक्त्वे यतना:
ROCHAK
CRE
॥१९॥
ASHAIRAMAY
वा अन्नतित्थियपरिग्गहियाणि अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुछि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पयाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणामिओगेणं बलाभियोगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेण" ति, एयरस अत्थविवरणा-समणोवासओ-सावओ सो पुवामेवपढममेव मिच्छताओ-तत्त(स्था)सदहाणसरूवाओ पडिकमइ-नियत्तह, पडिक्कमणं पुण मिच्छत्ताओ संमत्तगमणं, अत एवाहसंमत्तं उवसंपन्जइ-संमत्तं अंगीकरेइ, तस्स मिच्छत्ताओ पडिकमंतस्स संमत्तरसायणं ओगाढस्स इमा जयणा, जयणा नाम सत्तीए अकप्पपरिहारो, नो से कप्पइ न से तस्स-सावगस्स कप्पइ-जुञ्जइ, अञ्जप्पभिइ-संमत्तपडिवत्तिकालाओ आरम्भ, किं न कप्पइ ?, अन्नतिथिए वा, अन्नतित्थिया-चरगपरिवायगभिक्खुससरक्खाइया, अन्नतिथियदेवयाणि वा-रुद्दविण्हुबुद्धाईणि, अन्नतिथियपरिग्गहियाणि व चेइयाणि-अरहंतपडिमासरूवाणि, जहा उलूगपरिग्गहियाणि वीरभद्दमहाकालाईणि, बोडियपरिग्गहियाणि वा वंदित्तए वा, नमसित्तए वा, तत्थ वंदणं-पणामो, नमसण-पणामपुवगं पसन्थवयणेहि गुणुक्त्तिणं, तत्थ को दोसो होइ ? भन्नइ-अन्नसिं सत्ताणं मिच्छत्ताइथिरीकरणाइदोसोत्ति । तहा पुवं-पढमं अणालत्तेणं तेहिं तिथिएहिं ते आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तत्थ एकसिं भासणं आलवण, पुणो पुणो संलवणं, एत्थ दोसा-ते हि अनतिथिया अइतत्तलोहगोलगसरिसा आसणाइकिरियाए वावारिया भवंति, तप्पच्चओ य कम्मबंधो होइ, तहा तेण परिचएण गिहागमण करेंति, तत्थ य सावगस्स सयणपरियणो अगहियसमयसारो तेण सह संबंधं गच्छेजा, एवमाइ, पढमालत्तेणं पुण असंभमं लोगाववायभएण केरिसो तुमंति एवमाइ किंचि वत्तई । तहा तेसिं अन्नतिथिगाणं असणं-घयपुन्नाई, पाणं-दक्खापाणगाइ,
RECRROCROCOM
॥ १९॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
राजाभियोगे कार्तिकदृष्टान्तः
चूर्णिः
॥ २०॥
ACTERESARGACASSES
खाइमं-तउसफालइ साइम-ककोललवंगाइ-दाउं वा अणुप्पयाउं वा न कप्पइ, तत्थ एक्कसि दाणं, पुणो पुणो अणुप्पयाणं, वासदो विगप्पे, किं सबहा न देइ , नन्नत्थ रायाभिओगेण इत्यादि, रायाभिओगं मोत्तूण गणाभिओगं मूत्तूणं बलाभिओगं मोनूणं देवयाभिओगं मोत्तृणं, गुरुनिग्गहं मोत्तूणं, वित्तीकंतारं मोत्तूणं, किं भणियं होइ ? भन्नइ-रायाभिओगाइणा देंतोवि न धम्ममइक्कमइ, कह ? रायाभिओगेण देतो नाइचाइ धम्मं । तत्थुदाहरणं-हत्थिणाउरे नगरे जितसत्तू नाम राया, कत्तिओ सेट्ठी णेगमसहस्सपढमासणिओ सावगवन्नगो, एवं कालो वच्चति, तत्थ य परिवायगो मासंमासेण खमति, तं सबलोगो आढाति, कत्तिओ नादाति, ताहे से सो गेरुओ पओसमावन्नो, छिद्दाणि मग्गति, अन्नया रायाए निमंतिओ पारणे नेच्छइ, बहुसो २ राया निमंतेइ, ताहे भण्णति-जइ णवरं मे कत्तिओ परिवेसेति तो जेमेमि, राया भण्णति ? एवं करेमि, | राया समणूसो कत्तियस्स घरं गओ, कत्तिओ भण्णति-संदिसह, राया भण्णति-गेरुयस्स परिवेसेहि, कत्तिओ भणइ-वट्टइ अम्ह, तुभं विसयवासित्ति करोमि, चिंतेइ-जह पवइओऽहं होतो तो ण एवं संभवंत, पच्छा णेण परिवेसियं, सो परिवेसिजंते अंगुलिं चालेति, पच्छा कत्तिओ तेण निवेएण पञ्चतितो णेगमसहस्सपरिवारो मुणिसुव्वयसामिसमीवे, बारसअंगाणि (पढिओ) परियाओ बारस वरिसाणि, पूरियाऊ सोहंमे कप्पे सक्को जातो, सो परिवायगो तेण अभिओगेण आभिओगिओ | एरावणो जातो, पासिय सकं पलाओ, गहिओ, सक्को विलग्गो, दो सीसाणि कयाणि, सक्कावि दो जाता, एवं जावंतियाणि सोसाणि विउबति तावतियाणि सक्कोवि सक्करूवाणि विउच्चति, ताहे नासिउमारद्धो, सक्केणाहओ पच्छाठिओ, एवं रायाभिओगेण त्यं(दें)तो नातिकमति, केत्तिया एरिसया होहिंति जे पवइस्संति तम्हा न दायत्वं । गणाभिओगेण वरुणो, जहा गणाभिओ
का॥२०॥
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461%
श्रावकधर्मपश्चाशक
गणामि
योगे दृष्टान्त:
चूर्णिः ।
॥२१॥
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गेण वरुणो रहमुसले निउत्तो, एवं कोवि सावगो गणाभिओगेण भत्तं दवाविज्जेज, देंतोवि सो नाइयरति धम्मं । गणो नाम समुदाओ। बलाभिओगेवि एमेव । देवताभिओगेण जहा एगो गिहत्थो सावगो जातो, तेण वाणमंतराणि चिरपरिचिताणि उज्झियाणि, एगा तत्थ वाणमंतरी पओसमावण्णा तस्स गावीरक्खणगो पुत्तो, तीए वाणमंतरीए गावीहिं समं अवहरिओ, ताहे उइण्णा साहइ तजेंती किं ममं उज्झिसि नवत्ति ? सावगो भणति-नवरि मा मम धम्मविराहणा भवउ, सा भणतिममं अच्चेहि, सो भणति-जिणपडिमाणं अवसाणे ठाहि, आम ठामि, तेण ठविया, ताहे दारगो गावीउ आणीयाउ, एरिसया केत्तिया होहिंति तम्हा न दायवं, एवं दवाविजंतो नातिचरति । गुरुनिग्गहेण-भिक्खुउवासगपुत्तो सावगधूयं मग्गति, ताणि न देंति, सो कवडसड्डत्तणेण साहू सेवेति, तस्स भावओ उवगतं, पच्छा साहेति-तेण कारणेण पुवं ढुक्कोमि, इयाणि सब्भावो सावयो, साहू पुच्छति, तेहिं कहितं, ताहे दिना धूया, सो सावगो जुयघरं करेति, अन्नया तस्स मातापितरा भत्तं भिक्खुगाण करेंति, ताई भणंति-अज एकसि वच्चाहि, सो गओ, भिक्खुएहि विजाए अभिमंतिऊण फलं दिन्नं, ताए वाणमंतरीए अहिडिओ, घरं गओ तं सावगधूयं भणति, भिक्खुगाण भत्तं देमो, सा नेच्छति, दासाणि सयणो य आरद्धो, सञ्जो उस्सविया, आयरियाण गंतुं कहेति, तेहिं जोगपडिभेदो दिनो, सा बाणमंतरी णट्ठा, साभाविओ जाओ, पुच्छति-कहं कहं वत्ति, कहिते पडिसेहेति, अन्ने भणति-तीए मयणमिञ्जाए वामिओ (प्र. वमाविओ) सुत्तो साभाविओ जाओ, भणंति-अंबापिउच्छलेण मणामि वंचिउत्ति, तं किर फासुयं साहूणं दिन्नं, एरिसया केत्तिया आयरिया होहिंति ?, तम्हा परिहरेजा । वित्तीकंतारेणं देजा, जहा सोरडगो सद्धो उज्जेणि वच्चति दुकाले तच्चणिएहिं समं, तरस पत्थयणं खीणं,
४
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श्रावधर्म
भिक्खुएहि भण्णइ-अम्ह एयं वहाहि पत्थयणं, तो तुज्झवि देजिहित्ति, तेण पडिवनं, अन्नया तस्स पोट्टसरणी जाया, सो चीव- सम्यक्त्वपश्चाशक-
II रेहिं वेढिओ तेहिं अणुकम्पाए, सो भट्टारगाण नमोकार करेंतो कालं गओ देवो वेमाणिओ जाओ, ओहिणा तच्चन्निवायसरीरं लामे चर्णिः । पेच्छइ ताहे सभृसणेण हत्थेण परिवेसेति, सद्धाण ओगंभावणा, आयरियाण आगमण, कहणं च, तेहिं भणियं-जाह अग्गहत्थं दृष्टादि
गिहिऊण भणह-नमो अरहंताणं बुज्झ गुज्झगा २, तेहिं घेत्तूण भणिओ, संबुद्धो, वंदित्ता लोगस्स कहेति जहा-नस्थि एत्थं ॥ २२ ॥
प्रकाराः धम्मो, तम्हा परिहरेजा, अह तेसिं दाणे को दोसो होजा जेणेवं असणाइदाणनिसेहो कीरह ? भन्नइ-तेसिं तब्भत्ताणं च मिच्छत्तथिरीकरणं, धम्मबुद्धीए देंतस्स संमत्तलञ्छणं आरंभाइदोसो य होइ, अणुकंपाए पुण देजावि, जओ भणियं-"सत्वेहिंपि जिणेहिं दुजयजियरागदोसमोहेहिं । सत्ताणुकंपणट्ठा दाणं न कहिंचि पडिसिद्धं ॥ १॥" तहा वुत्तीएवि भणियं, दाणेवि एगंतसो से पावे कम्मे कञ्जइ तेण न देइ, कालुणियाए पुण देइवि जयणाए, नवि धम्मोति ।
अहवा इमेहिं पगारेहिं संमत्ताइलाभो होइ-"दिढे सुएं मर्गुभूए कम्माण खए कए उवसमे यें । मणवयणकार्यंजोगे य पसत्थे18 लब्भए बोही ॥१॥" दिवे-भगवंतपडिमाइए सम्मत्ताइलाभो होइ, जहा सेयंसेण भगवंतदसणाउ लद्धं, तत्थ कहाणगं-कुरुजणवए गयपुरनगरे बाहुबलिपुत्तो सोमप्पभो, तस्स पुत्तो सेजंसो जुवराया, सो सुमिणे मंदरं पव्वयं सामवण्णं पासति, ततो णेण अमयकलसेणाभिसित्तो अब्भहियं सोहिउमाढत्तो, नयरसेट्ठी सुबुद्धीनामा, सो सूरस्स रस्सिसहस्सं थाणाउ चलियं पासति, नवरि सेजंसेण हुक्खुत्तं सो अहिययरं तेयसंपन्नो जाओ, राइणा सुमिणे एको पुरिसो महप्पमाणो महया रिखुबलेण सह जुझंतो दिट्टो, सेजंसेण साहेजं दिन्न, तओ तेण तं बलं भग्गति, ततो अच्छाणीए एगतो मिलिया सुमिणे साहेति, * ॥२२॥
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श्रेयांसः
श्रुते
आनन्दश्च
विकधर्म-टून पुण जाणति किं पुण भविस्सतित्ति, राया भणति कुमारस्स महंतो कोई लाभो भविस्सतित्ति भणिऊण उडिओ अत्थाणाओ, पश्चाशक-II सेजंसोऽवि गओ नियभवणं, तत्थ ओलोयणठिओ पेच्छति सामि पविसमाणं, सो चिंतेइ-कहिं मया एरिसं नेवत्थं दिपावं. चूर्णिः । जारिसं च पपियामहस्तत्ति, जाई संभरिया, सो पुत्वभवे भगवओ सारही आसि, तेण तत्थ तित्थयरो तित्थयरलिंगेण विद्रोत्ति,
वहरनामे य पञ्चयंते इमोवि अणुपवइओ, तेण तत्थ सुयं-जहेस वइरनाभो भरहे पढमतित्थयरो भविस्सतित्ति, तं एसो सो ॥ २३॥
भगवति, तस्स य मणूसो खोयरसघडएण सह अईइ, तं गहाय भगवंतमुवडिओ, कप्पतित्ति सामिणा पाणी पसारिओ, सन्बो निसट्ठी पाणीसु, अच्छिद्दपाणी भयवं, उवरि सिहा वद्धइ, ण य च्छडिजइ, भगवतो एस लद्धी, भगवया सो पारिओ, तत्थ दिवाणि पाउन्भूयाणि, तंजहा-वसुहारा वुढा, चेलुक्खेवो कओ, आहयाओ देवदुंदुहिओ, गंधोदयकुसुमबरिसं मुकं, आगासे य अहो दाणं २ घुट्ठति, ततो तं देवसन्निवायं पासिऊण लोगो सेजंसघरमुवगओ, ते तावसा अन्ने य रायाणो, ताहे सेअंसो ते पनवेति-एवं भिक्खा दिजइ, एएसिं च दिण्णे सोगतिं गम्मइ, ततो ते सत्वेऽवि पुच्छंति-कहं तुमे जाणियं जहा सामिस्स भिक्खा दायवत्ति, सेजंसो भणति-जातिस्सरणेण, अहं सामिणा सह अट्ठ भवग्गहणाणि अहेसि, ततो संजायकोउहल्ला भणतिइच्छामो नाउं अट्ठसु भवग्गहणेसु को को तुम सामिणो आसित्ति ?, ततो सो तेसिं पुच्छताण अप्पणो सामिस्स य अद्वैभवसंबद्धं कहं कहेति । सयंभूरमणमच्छा वा जहा पडिमासंठियमच्छे पउमे य दट्टण लभंति, तत्थ किर मच्छपउमाणं सबसंठाणाणि अत्थि, मोत्तुं वलयसंठाणति (१), 'सुए' य तित्थगराइवयणे लब्मइ, जहा आणंदकामदेवेहिं लद्धं, तेसिं चरियाणि जहा उवासगदसासु तहा दट्टवाणि (२), 'अणुभूए' य किरियाकलावे सइ लभइ, जहा वकलचीरिणा पिउसंतगं उवगरण पडिलेहं
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P॥ २३ ॥
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गर्ग इम-पोषणपुरे माओ आगउत्ति, शान्त, ते च दङ्ग इला असमत्थो पथापालमा निच्छिता
श्रावकधर्म- पश्चाशकचूर्णिः
अनुभूते वल्कलचीरिः
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॥२४॥
तेणंति, तस्सक्खाणगं इम-पोयणपुरे णगरे सोमचंदो राया, तस्स धारिणी देवी, सा कयाइ तस्स रण्णो ओलोयणगयस्स केसे रएति, पलियं दद्वण भणति-सामि ! दूओ आगउत्ति, रण्णा दिट्ठी बिसारिया, ण य पस्सति अपुवं जणं, ततो भणतिदेवि ! दिवं ते चक्ख, तीए पलियं दंसियं, धम्मदुओ य सोति, तं च दट्टण दुम्मणसिओ राया, तं नाऊण देवी भणइलज्जह वुड्डभावेणं, निवारिजिहिति जणो, ततो भणति देवि ! ण एवं, कुमारो बालो असमत्थो पयापालणे होञ्जत्ति मे मण्णुं जायं, पुवपुरिसाणुचिण्णेणं मग्गेणं ण गतोऽहंति, वियारे, तुमं पसण्णचंदं सारक्खमाणी अच्छतुत्ति, सा निच्छिता गमणे, ततो पुत्तस्स रजं दाऊण धातिदेविसहिओ दिसापोक्खियतावसत्ताए दिक्खिओ, चिरसुन्ने आसमपदे ठिओ, देवीए पुवाहुओ गब्भो य परिवड्डइ, पसन्नचंदस्स य चारपुरिसेहिं निवेइओ, पुण्णसमए य पसूया कुमारं, वकलेसु ठविउत्ति बक्कलचीरीति, देवी विसूइयारोगेण मया, वणमहिसीदुद्धेण य कुमारो वड्डाविजइ, धातीवि जाव कालेण कालगता, कढिणेण वहति रिसी, वक्कलचीरि परिवडिओ य, लिहिऊण दंसिओ चित्तकारेहि पसण्णचंदस्स, तेण सिणेहेण गणिगादारिगाउ रिसिरूविणीओ खंडमयविविहफलेहिं तं लोभेहत्ति पत्थवियाओ, ताओ णं फलेहिं मधुरेहि वयणेहि सुकुमालपीणुन्नयथणसंपीलणेहि य लोभिंति, सो कयसमवाओ गमणे जाव अतिगओ तावसभंडगं संठवेउं ताव रुक्खारूढेहिं चारपुरिसेहिं तासि सन्ना दिना-रिसी आगउत्ति, ताओ दुयमवर्कताओ, सो तासि वीहिमणुसज्जमाणो तातो अपस्समाणो अन्नतो गतो, सो अडवीए परिभमंतो रहगतं पुरिसं दट्टण तात अभिवादयामित्ति भणतो रहिणा पुच्छितो-कुमार ! कत्थ गंतवं, सो भणइ-पोयणं नाम आसमपयं, तस्स य पुरिसस्स तत्थेव गंतवं, तेण समयं वच्चमाणो रहिणो भारियं तायत्ति आलवति, तीए भणियं-को इमो उवयारो ?, रहिणा 1
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॥ २४॥
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अनुभूतें वल्कलचीरी
श्रावकधर्म- भणिया-सुंदरि ! इथिविरहिए नूणं एस आसमपदे वडिओण याणति विसेस, ण से कुप्पियत्वं, तुरगे य भणति-किं इमे मिगा| पश्चाशक वाहिजंति ?, ततो रहिणा भणिओ-कुमार! एते एयमि चेव कजे उवजुजंति, ण एत्थ दोसो. तेणवि से दिण्णा मोदगा, सो चूर्णिः । भणति-पोयणासमवासीहि मे कुमारेहिं एतारिसाणि चेव फलाणि दिन्नपुवाणित्ति, बच्चताण य से एकचोरेण सह जुद्धं जायं,
रहिणा गाढप्पहारो कओ, सिक्खागुणपरितोसिओ भणति-अस्थि विउलं धणं तं गेहसु सूरत्ति, तेहिं तीहिंवि जणेहि रहो भरिओ, ॥२५॥
कमेण पत्ता पोयणं, मोल्लं (समप्पिऊण) गहाय विसजिओ, उडयं मग्गसुत्ति, सो भमंतोगणियाघरे गंतूण भणइ ताय! अभिवाद
यामि,देह इमेण मोल्लण उडयंति, गणियाए भणिओ दिजति, निवसत्ति,तीए कासवतो सद्दाविओ, ततो अणिच्छंतस्स कतं नहप. है रिकंमं, अवणीयवक्कलो य वत्थाभरणविभूसिओ गणियादारिया पाणिं गाहिओ व्हाविओ य,मा मे रिसिवेसं अवणेहित्ति जंपमाणो
ताहि मण्णइ-जे उडगत्थी इहमागच्छंति तेसि एरिसो उवयारो कीरइ, ताओ य गणियाओ गात्रमाणीउ बहूबरं चिट्ठति, जो य RI कुमारविलोभणनिमित्तं रिसिवेसो जणो पेसिओ सो आगतो कहेति रण्णो-कुमारो अडवि अतिगतो, अम्हेहिं रिसिस्स भएण |
न तिन्नो सद्दावेउं, ततो राया विसण्णमाणसो भणति-अहो अकजं, ण य पिउसमीवे जाओ ण य इहं, ण णज्जति किं पत्तो होहितित्ति चिंतापरो अच्छइ, सुणइ य सुमि गंधवसई, तं च से सुतिपहमणं जायं, भणति-मए दुक्खिए को मन्ने सुहितो गंधवेण रमतित्ति ? गणियाए पयट्ठिएण जणेण कहिय, सा आगता, पादपडिया रायाणं पसण्णचंदं विणवेति-देव ! नेमित्तिय संदेसो, जो तावसरूवो तरुणो गिहमागच्छेज्ज एयस्स वस्समयमेव दारियं दिजासिति, सो उत्तमपुरिसो, तं संसिता विउलसोक्खभागिणी होहितित्ति, सो य जहा मणिओ नेमित्तिणा अञ्ज मे गिहमागओ, तं च संदेसं पमाणं करेंतीए दिण्णा से मया
पं० चू.३
॥२५॥
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वल्कलचीरी
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः । ॥ २६ ॥
दारिया, तनिमित्तं उस्सयो. ण याणं कुमारं पणटुं, एत्थ मे अवराहं मरिसेहत्ति, रण्णा संदिट्ठा मणूसा जेहिं आसमे दिद्वपुत्वो कुमारो, तेहि य गएहिं पञ्चभियाणिओ निवेइयं च पियं, रण्णा परमप्पीतिमुबहतेण य बहुसहिओ सगिहमुवणीओ, सरिसकुलरूवजोवणगुणाण य रायकन्नागाण पाणिं गाहितो, कयरजसंविभागो य जहासुहमभिरमइ, रहिओ य चोरदिण्णं दवं विकिणंतो रायपुरिसेहिं चोरोत्ति गहिओ, वक्कलचीरिणा मोइओ, सोमचंदोऽवि आसमे कुमारं अपस्समाणो सोगसागरावगाढो पसण्णचंदसंपेसिएहिं नगरगयं वक्कलचीरी निवेदंतेहिं कहिंचि संठविओ, पुत्तमणुसंरतो अंधो जातो, रिसीहिं साणुकंपेहिं कयफलसंविभागो तत्थेव आसमे निवसति, गतेसु य बारससु वासेसु कुमारो अड्डरत्ते पडिविबुद्धो पितरं चिंतिउमारद्धो-किह मण्णे 'तातो मया णिग्घिणेण विणा अच्छातित्ति, पिउदंसणसमुस्सुगो पसण्णचंदसमी गंतूण विष्णवेइ-देव ! विसजेह मं, उकंठितोऽहं तायस्स, तेण भणियं-समयं बच्चामो, गता य आसमपयं, निवेइयं च रिसिणो-पसण्णचंदो पणमतित्ति, चलणोवगओ य णेण पाणिणा परामुट्ठो-पुत्त ! निरामओ सित्ति ?, वक्कलचीरी पुणो अवदासिओ, चिरकालधरियं च से बाहं मुयंतस्स उम्मिल्लाणि नयणाणि, पस्सति ते दोवि जणे, परमतुट्ठो, पुच्छइ य सत्वं गयं कालं, वकलचीरीवि कुमारो अतिगओ उडयं, परसामि ताव तायस्स तावसभंडयं अणुविक्खिजमाणं केरिसं जायंति ?, तं च उत्तरियतेण पडिलेहिउमारद्धो जतिविव पत्तं पायकेसरियाए, कत्थ मन्ने मया एरिसं करणं कयपुवंति विहिमणुसरंतस्स तदावरणकम्मक्खओवसमे पुवजातिसरणं संजा. यंति, सुमरती य देवमाणुस्सभवे सामन्नं च पुराकतं, संभरिऊण वेरग्गमग्गसमोतिण्णो, धम्मज्झाणविसयातीओ विसुज्झमाणपरिणामो य वितियसुक्कज्झाणभूमिमइक्कतो, निढवियमोहावरणविग्धो केवली जातो, निग्गओ य, परिकहिओ धम्मो जिण
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कर्मणां क्षये
चण्ड
चूर्णिः
कौशिक:
श्रावकधर्म-
टिप्पण्णीओ पिऊणो पसण्णचंदस्स रणो, ते दोऽवि लद्धसंमत्ता ( ग्रं. ५००) पणया सिरेहिं केवलिणो, सुट्ट मे दंसिओ पश्चाशक- मग्गोत्ति बक्कलचीरी पत्तेयबुद्धो गओ पियरं गहेऊण वद्धमाणसामिणो पासं ॥
तहा कम्माण खए कए लब्भइ, जहा चंडकोसिएणं लद्धं, तस्स कहाणगं-एगो खमगो पारणए गओ वासिगभत्तस्स, ॥ २७॥
तेणं मंडुक्किया विराहिया, खुड्डएण पडिचोइओ, ताहे सो भणति-किं इमाओवि मए मारियाओ?, लोयमारियाउ दंसेति, ताहे खुट्टएण नायं-वियाले आलोएहिति, सो आवस्सए आलोएत्ता उवविट्ठो, खुडओ चिंतेइ-नूणं से विस्सरियं, ताहे सारियं, रुट्ठो, आहणामित्ति उद्धाइओ खुड्गस्स, तत्थ खंभे आवडिओ मओ विराहियसामन्नो जोतिसिएसु उबवण्णो, तत्तो चुओ कणगखले पंचण्हं तावससयाणं कुलवतिस्स तावसीए उयरे आयाओ, ताहे दारगो जातो, तत्थ से कोसिउत्ति नाम कयं, सो अईव तेणं सहावेणं चंडकोहो, तत्थ अण्णेवि अत्थि कोसिया तस्स चंडकोसिओत्ति नाम कयं, सो य कुलवती मतो, पच्छा सो कुलवती जातो. सो तत्थ वणसंडे मुच्छिओ तेसिं तावसाणं ताणि फलाणि न देति, ते अलहंता गया दिसोदिसि. जेउवि तत्थ गोवालादि एति तंपि हंतुं धाडेति, तस्स अदूरे सेयविया नाम नयरी, तओ रायपुत्तेहिं आगंतूण विरहिए पडिनिवेसेण भग्गो वणसंडो, तस्स गोवालएहिं कहियं, सो कंटियाणं गयओ, ताओ छडेत्ता परसुहत्थो गओ रोसेण धमधमेंतो, कुमारेहि दिवो एंतो, तो तं दहण पलाया, सोवि कुहाडहत्थो पहावंतो खड्डे आवडिऊण पडिओ, सो कुहाडो अड्डो ठिओ, तत्थ से सिरं दोभाए कयं, तत्थ मओ तंमि चेव वणसंडे दिट्ठीविसो सप्पो जाओ, तेण रोसेण लोभेण य तं रखइ वणसंडं, ते तावसा सचे दड्डा, जे अदड्ढा ते गट्ठा, सोऽवि तिसंज्झं वणसंडं परियंचिऊण जं सउणगमवि पासति तं डहति, ताहे सामी तेण
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कर्मणां उपशमे अङ्गर्षिः
चूर्णिः
भावकधर्म-8 दिट्ठो, ततो आसुरत्तो ममं न याणसि ?; सूरं निज्झाइत्ता पच्छा सामि पलोएति, सो न उज्झति जह अन्ने, एवं दो तिन्नि पश्चाशक- वारे, ताहे गंतूण डसति, डसइत्ता अवक्कमति मा मे उवरिं पडिहिति, तहवि न मरति, एवं तिन्नि वारे, ताहे पलोएंतो
अच्छति अमरिसेणं, तस्स भगवतो रूवं पेच्छंतस्स ताणि विसमरियाणि अच्छीणि विज्झायाणि सामिणो कंतिसोहम्मयाए,
ताहे सामिणा भणियं-उवसम भो चंडकोसिया ! ताहे ईहावूहमम्गणगवेसणं करेंतस्स जाइस्सरणं समुप्पन, ताहे तिक्खुत्तो ॥ २८॥
आयाहिणपयाहिणं करेचा भचं पच्चक्खाइ, मणसा तित्थयरो जाणति, ताहे सो बिल्ले तुडं छोढुं ठिओ माऽहं रुट्ठो संतो लोग मारेहिस्सामि, सामी तस्स अणुकंपाए अच्छति, सामि दहण गोवालवच्छवाला अल्लियति, रुक्खेहिं आवरेत्ता अप्पाणं तस्स सप्पस्स पहाणे खिवंति, न चलइत्ति अल्लीणा, कडेहि पट्टिओ तहवि न फुरइत्ति, तेहिं लोगस्स सिलु, ततो लोगो आगंतूण सामि वंदिता तंपि महेति, अन्नाओ य घयविक्कणियाउ तं सप्पं मक्खेति फरिसेंति, सो पिबीलियाहिं गहिओ, तं वेयणं अहियासेति, अद्धमासस्स मओ सहस्सारे उपवनो।
तहा उवसमे य संते लब्भइ जहा अंगरिसिणा लद्धं, तस्स चरियं-चम्पाए कोसियजो नाम अज्झावओ, तस्स दो सीसाअंगरिसी रुद्दओ य, अंगओ भद्दओ, तेण से अंगरिसी नाम कयं, रुद्दओ सो गठिच्छेयओ, ते तेण उवज्झाएण दारुगाणं पत्थविया, अंगरिसी अडवीओ उ भारगं गहाय पडिएनि, रुद्दओ दिवसं रमेत्ता वियाले संभरिय, ताहे पहाविओ अडवित च पेच्छइ दारुगभारगेण एंतगं, चिंतेइय-निच्छूढो मि उवज्झाएणंति, इओय जोइजसा नाम वच्छवाली पुत्तस्स पंथगस्स म नेऊण दारुगभारएण एति, रुद्दएण सा एगगड्डाए मारिया, तं च दारुगभारं गहाय अनेण मग्गेण पुरओ आगओ उवज्झायस्स
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॥२८
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भावधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
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अनुकम्पाया वैतरणी
॥२९॥
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हत्थे धृणमाणो कहेइ, जहा तेण तुज्झ सुंदरसीसेण जोतिजसा मारिया, रमणे(ण्णे) विमासा, आगतो धाडिओ, वणसंडे चिंतेति | सुहझवसाणो, जाती सरिया, संजमो केवलनाणं, देवा महिमं करेंति, देवेहिं कहियं जहा एतेण अब्भक्खाणं दिन्नं, रुद्दगो लोगेण हीलिजइ, सो चिंतेति-सच्चं मे अन्मक्खाणं दिन, सो चिंतंतो संयुद्धो, पत्तेयबुद्धो जाओ, इयरो बभणो बंभणीवि दोवि पवइयाणि उप्पन्ननाणाणि सिद्धाणि चत्तारिवि । मणवयणकायजोगेहि य पसत्येहि य बोही समत्ताइ गुणकलावो लब्भइ ॥
अहवा अणुकंपाईहिं सम्मलाई लब्भइ, तंजहा-"अणुकंपऽकामनिज्जरवालतवे दाणविणयविन्भंगे । संजोगविप्पओगे वसँणू सबइडिसकोरे ॥१॥ वेज्जे मेंढे तह इंदनाग कर्यपुत्र पुप्फसोलसुए। सिव दुमहुरवणि भाउय आहीरदसैनिलापुत्ते' ॥२॥" एयासि अत्थो जुगवं कहिजइ-अणुकंपापरो जीवो सम्मत्ताद लहइ, सुहपरिणामसहिउत्ति काउं, वेजेति, विजवत् , तत्थोदाहरण-बारवत्तीए कण्हस्स वासुदेवस्स दो वेजा-धन्वंतरी य वेयरणी य, धणंतरी अभविओ, वेयरणी भविओ, सो साहूणं गिलाणाणं पिएण साहद, जं जस्स काया, फासुएण पडोयारेण, जइसे अप्पणो अस्थि ओसहाणि तो देतित्ति, धणंतरी पुण जाणि सावजाणि ताणि साहइ, असाहुपाउग्गाणि, ते उ साहुणो भणति-अम्हं कओ एयाणि ? सो भणइ न मए समणाणं अट्ठाए अज्झाइयं वेजसत्थं, ते दोवि महारंभा महापरिग्गहा, सबाए बारवतीए तिगिच्छं करेंति, अण्णया कण्हो वासुदेवो तित्थयरं पुच्छति-एए बहूणं ढंकाईणं वहकरणं काऊण कहिं गमिस्संति ?, ताहे सामी साहइ-एस धणंतरी अपइट्ठाणे नरए उववजिहिति, एस पुण वेयरणी कालंजरवत्तिणीए गंगामहानईए विंझस्स य अंतरा वानरत्ताए पच्चायाहिति, ताहे सो वयपत्तो सयमेव जूहबइत्तणं काहिति, तत्थ अण्णया साहुणो सत्थेग समं वीइवइस्संति, एगस्स य साहुस्स पाए
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॥२९॥
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श्रावकधर्म- सल्लो लग्गिहिति, ताहे ते भणंति अम्हे पडिच्छामो, सो भणइ-सवे मरामो, बच्चह तुम्भे अहं भत्तं पच्चक्खामि, ताहे निबंधं 8 अकामपञ्चाशक- काउंठिओ सोवि, न तीरइ सल्लो णीणेउं, पच्छ थंडिल्लं पाविओ छायं च, तेवि गया, ताहे सो वानरजूहबई तं पएसं निर्जरायां
एति जत्थ सो साहू, जाब पुरिल्लेहिं तं दट्टण किलिकिलाइयं, ततो तेण जूहाहिवेण तेर्सि किलिकिलाइयसई सोऊण रूसिएणं मेण्ठः । ॥३०॥
आगंतूण दिट्ठो सो साहू, तस्स तं दट्टण इहावूहा, कहिं मया एरिसो दिट्ठोत्ति ?, जाई संभरिया, बारवई संभरति, ततो सो साहुं वंदति, तं च से सल्लं पासति, ताहे सो तिगिच्छं संभरति, ततो सो गिरि पिलग्गिऊण सल्लद्धरणिसल्लरोहिणीओ
ओसहीओ गहाय आगतो, ताहे सल्लुद्धरणीए पाओ आलित्तो, ततो एगते पडिओ सल्लो, पउणाविओ संरोहणीए, ताहे तस्स पुरओ अक्खराणि लिहइ-जहाऽहं वेयरणीनाम वेजो पुत्वभवे वारवतीए जो आसि, तेणवि सो सुयपुबो, ताहे सो साहू धम्म कहेइ, ताहे सो भत्तं पञ्चक्खाति तिन्निरातिदियाणि जीवित्ता सहस्सारं गओ भणियं च-“सो वानरजूहबई कंतारे सुविहियाणुकंपाए । भासुरवग्बोंदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ॥१॥" ओहिं पउंजइ, जाव पेच्छति तं सरीरगं, तं च साहुं, ताहे आगंतूण देविढेि दावेति, भणइ-तुम्हप्पभावेण मे देविड्डी लद्धत्ति, ततो णेण सो साहू साहरिओ तेसिं साहूणं सगासंति, ते पुच्छंतिकिह तुम आगओ? ताहे साहति । एवं तस्स वानरस्स सम्मत्तसामाइयसुयसामाइयचरित्ताचरित्तसामाइयाण अणुकंपाए लाभो जाओ, इयरहा नरयगमणपाउग्गाणि कम्माणि करेत्ता नरयं गओ होतो, ततो चुयस्स चरित्तसामाइयं भविस्सति सिद्धी य । (१)
तहा अकामनिजराए जीवो सम्मत्ताइ पावेइ सुहपरिणामजुत्तोत्तिकाउ, मेंठवत् , तस्सक्खाणयं इमं-वसंतपुरे नगरे इन्भहै वहूगा (इसवडूगा) नईए व्हाइ, अन्नो य तरुणो तं दट्टण भणति-"सुण्हायं ते पुच्छति एस गई मनवारणकरोरु । एते णईरुक्खा
॥३०॥
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अकामनिर्जरायां
भावकधर्म-8| अहं च पाएसु ते पडिओ ॥१॥" सा भणति-"सुभगा होंतु णईओ, चिरं च जीवंतु जे णदीरुक्खा। सुण्डायपुच्छगाणं घचीहामो पञ्चाशक- पियं काउं॥१॥” ततो सो तीसे घरं वा वारं वा अयाणतो चिंतेति, "अन्नदाणा हरे बालं, जोवणत्थं विभृसया । वेसित्थिमुवयारेण, चूर्णिः वुड़ खुटुं च सेवया ॥१॥" तीसे बितिजगाणि चेडरूवाणि रुक्खे पलोएंताणि अच्छंति, तेण तेसिं पुष्पाणि फलाणि य दाऊण
पुच्छियाणि-का एसा, ताणि भणंति-अमुगस्स सुण्हा, ताहे सो चिंतेइ-केण उवाएण एईए समं संपओगो हवेजा ?, ततो तेण ॥३१॥
चरिका दाणमाणसंगिहीया काऊण विसजिया तीए सगासं, तीए गंतूण सा भणिया-जहा अमुगो ते पुच्छह, तीये रुवाए भंडल्लगाणि धावंतीए मसिलित्तेण हत्थेण पिट्ठीए आहया, पंचंगुलीओ जायाओ, अदारेण य णिच्छ्रद्धा, सा गया, साहतिणामपि ण सहइ, तेण णायं जहा कालपरखपंचमीए, ताहे तेण पुणोवि पेसिया पवेसजाणणानिमित्तं, ताए सलज्जाए आहणिऊण असोगवणियाए चिंडियाए णिच्छूढा, सा गया साहइ-णामंपि ण सहइ, तेण णाओ पवेसो, तेण अवदारेण अतिगतो, असोगवणियाए सुत्ताणि जाव ससुरेण दिट्टा, तेण णायं जहा ण पुत्तोत्ति, पच्छा से पायाओ नेउरं गहियं, चेइयं तीए, भणिओ णाए, णास लहुं, सहायकिच्चं करिजासि, इयरी गंतूण भत्तारं भणति-धम्मो(एत्थं) जामो, असोगवणियाए पसुत्ताणि, ताहे भत्तारं उढवित्ता भणति-तुम्हं एयं कुलाणुरूवं ? जं मम पायाउ, ससुरो निउरं गेण्हति, सो भणइ-सुवसु लभिहिसि, पभाए थेरेण सिटुं, सो रुट्ठो भणति-विवरीओसि, थेरओ भणति-मए दिट्ठो अन्नो, ताहे विवाए सा भणइ-अज अप्पाणं सोहेमि, एवं करहि, हाया जक्खघरं पहाविया, ताहे सो विडो पिसायरूवं काऊण साडएण गेहति, ताहे तत्थ गंतूण जक्खं भणति-जो मम पियदिल्लओ तं पिसायं च मोत्तूण जदि अनं जाणामि तो मे तुम जाणसित्ति, जक्खो विलक्खो चिंतेति-पेच्छह केरि
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॥३१॥
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श्रावकधर्म- पश्चाशकचूर्णिः। ॥ ३२॥
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साणि मंतेति ?, अहं पि वंचिओ णाए, णत्थि सइत्तणं धुत्तीए, जाव चिंतेति ताव निफिडिया, ताहे सो थेरो सवेण लोगेण 8| मेण्ठः हीलिओ, तस्स ताए अधिइए निदा णट्ठा, ताहे रण्णो तं कण्णे गयं, रायाणएण अंतेउरपालओ कओ, आभिसेयं च हत्थिरयण रण्णो वासघरस्स हेट्ठा बद्धं अच्छति, देवी य हस्थिमेंठेण आसत्तिया, नवरं रति हस्थिणा हत्थो पसारिओ, ओलोयाओ ओयारिया, पुणरवि पभाए पडिविलइया, एवं वच्चति कालो, अन्नया चिरजायंति हत्थिमेंठेण संकलाए आया, सा भणतिसो एरिसो ण सुवइ, मा रूसह, तं थेरो पेच्छति, सो चिंतेति-जदि एयाउवि एवं किं नु ताओ भद्दियाउत्ति सुत्तो, पभाए सबो लोगो उढिओ, सो ण उद्वेति, राया भगइ-सुवउ, सत्तमि दिवसे उढिओ, राइणा पुच्छिओ, कहियं जहेगा देवी ण याणामि कयरत्ति, ताहे राइणा भिंडमओ हत्थी कारिओ, सवाउ अंतेउरियाओ भणियाउ-एयस्स अच्चणियं करेत्ता उलंडेह, सबाहिं उलंडिओ, सा णेच्छति, भणइ-बीहेमि, ताहे राइणा उप्पलनालेण आहया, जाच मुच्छिया पडिया, ताहे से उवगयं जहेमा दोसकारिणित्ति, भणिया-"मत्तगयमारुहंतीए भिंडमयस्स गयस्स भयंतीए । इह मुच्छिय उप्पलाहया तत्थ ण मुच्छिय संकलाहया ॥१॥" पुट्ठी से जोइया, जाव संकलप्पहारा दिट्ठा, ताहे गइणा हत्थिमेंठो सा य तंमि हथिमि विल ग्गाविऊणं छिण्णटंकए विलग्गावियाणि, भणिओ य मेंठो-इहं अप्पततिओवि गिरिप्पवायं देहि, हथिस्स दोहिवि पासेहिं | वेलुग्गाहा ठविया, जाव हत्थिणा एगो पाओ आगासे कओ, लोओ भणति-किं तिरिओ जाणति ?, एयाणि मारियवाणि, तहावि राया रोसंपि न मुयति, तओ दो पाया आगासे, तईयवाराए तिणि पाया आगासे, एकेण पाएण ठिओ, | लोयाण अकंदो कओ, किं एवं हत्थिरयणं विणासेहि, रणो चित्वं वलियं, भणिओ-तरसि णीयचेउं ?, भणइ-जइ अभयं
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
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॥ ३३॥
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देहि, दिण्णं, तेण णियत्तिओ अंकुसेण जहा भमित्ता थले ठिओ, ताहे उयारित्ता णिविसयाणि कयाणि, एगस्थ पच्चंतगामे अकामसुन्नघरे ठियाणि, तत्थ य गामेल्लयपारद्धो चोरो तं सुन्नघरं अतिगओ, ते भणति-वेढेउं अच्छामो, मा कोवि पविसउ, निर्जरायां गोसे घेत्थामो, सोऽवि चोरो लोकंतो अच्छइ, कहवि तीए फासो वेइओ, सा दुक्का भणति-कोऽसि तुमं, सो भणति- मेण्ठः चोरोऽहं, तीए मणियं-तुम मम पती होहि जा एवं साहामो, जहा एस चोरोत्ति, तेहिं तहा कएल्लं, पभाए मेंठो गहिओ, IR सूलेण भिन्नो, चोरेण समं वच्चति, जावंतरा णदी, सा तेण भणिया-जहा एत्थ सरत्थंवे अच्छ जाव अहं एयाणि वत्थाभरणाणि उत्तारेमि, सो गओ, उत्तिण्णो पहाविओ, सा भणइ-किं जाहि ?, सो भणइ-जहा ते सो माराविओ एवं ममंपि कहिंचि मारावेसि, इयरोऽवि तत्थ विद्धो उदगं मग्गति, तस्थेगो सद्धो, सो भणति-जइ णमोकारं करेसि तो देमि, तो उदगस्स अट्ठा गओ, जाव तंमि अपने चेव सो णमोकार करेंतो चेव कालगतो, वाणमंतरो जाओ, सट्ठोऽवि आरक्खियपुरिसेहिं गहिओ, सो देवो ओहि पउंजइ, पेच्छइ सरीरगं, सडेच बद्धं, ताहे सो सिलं विउवित्ता मोएइ, तं च पेच्छइ सरत्थंबे निलुक, ताहे से घिणा समुप्पना, सियालरूवं विउवित्ता मंसपेसीए गहियाए उदगतीरे वोलेति, जाब णइओ मच्छो उच्छलिऊण तडे पडिओ, ततो सो मंसपेसि मोत्तूण मच्छस्स पहाविओ सो पाणिए पडिओ, मंसपेसी सेणेण गहिआ, ताहे सियालो झायइ, ताए भण्णति"मंसपेसि परिच्चन्ज मच्छं पत्थेसि जंबुया!। चुक्को मच्छं च मंसं च, कलुणं झायसि कोण्हुया !॥१॥" तेण भण्णइ-"पत्तपुडपडिच्छन्ने, जणयस्स अयसकारीए । चुक्का । पतिं च जारं च, कलुणं झायसि बंधुकी ॥१॥" एवं भणिया विलिया जाया, ताहे सो सयंरूवं दंसेइ, पण्णवेत्ता वुत्ता-पवयाहि, ताहे सो राया तजिओ तेण पडिवना, सकारेण णिक्खंता, देवलोगं गया । (२) 13॥३३॥
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बालतपसि इन्द्रनाग:
श्रावकधर्म- बालतवजुत्तो जीवो सम्मत्ताइ लहह, जहा इंदनागेणं, तस्स चरियं-वसंतपुरं णगरं, तत्थ सेट्ठिघरं मारीए उच्छाइयं, पश्चाशक- इंदनागो नाम दारगो, सो छुट्टो, छुहिओ गिलाणो पाणियं मग्गति, जाव सवाणि मयाणि पेच्छइ, बारंपि लोगेण कंटियाहिं चूर्णिः । दक्कियं, ताहे सो सुणयछिद्देण निग्गंतूण तंमि णयरे कप्परेण भिक्खं हिंडइ, लोगो से देइ इन्भपुत्तोत्तिकाउं, एवं सो संवड्डति,
इओ य एगो सत्थवाहो रायगिहं जाउकामो घोसणं घोसावेति, तेण सुयं, सत्येण समं पत्थिओ, तत्थ तेण सत्थे कूरो लद्धो, ॥३४॥
सो जिमिओ, ण जिष्णो, बीयदिवसे अच्छति, सत्थवाहेण दिट्ठो, चिंतेइ नूणं एस उववासिओ, सो य अवत्तलिंगी, बीयदिवसे हिंडंतस्स सेविणा बहुं गिद्धं च दिण्णं, सो तेणं दुवे दिवसा अजिण्णएण अच्छइ, सत्थवाहो जाणति एस छटुकालिओ, तस्स अत्था जाया, सो तइयदिवसे हिंडंतो सत्थवाहेण सदाविओ, कीस कल्लं नागओ?, तुहिको अच्छति, जाणइ जहा छटुं कएल्लयं, ताहे से दिण्णं, तेणवि अन्ने दो दिवसे अच्छाविओ, लोगोवि पणओ, अण्णस्स णिमंतेतस्सवि ण गेण्हइ, अण्णे भणंति-सो
एगपिंडिओ, तेण तं अट्ठवयं लद्धं, सत्थवाहेण भणिओ-मा अण्णस्म खणा गेण्हेजासित्ति जाव णगरं गम्मति ताव अहं देमि, हा गया णगरं, तेण से नियघरे मढो कओ, ताहे सीसं मुंडावेद, कासायाणि य चीवराणि गेण्हइ, ताहे विक्खातो जातो, ताहे
तस्सविणेच्छइ, ताहे जद्दिवसं पारणयं तदिवसं लोगो आणेइ भत्तं, एगस्स पडिच्छइ, तओ लोगो न याणइ कस्स पडिच्छ्यिंति, ताहे लोगेण जाणणानिमित्तं भेरी कता, जो देति सो ताडेति, ताहे लोगो पविसति, एवं बच्चइ कालो, सामी समो
सरिओ, ताहे साहू संदिसावेता भणिया-मुहुत्तं अच्छह अणेसणा वट्टति, तंमि जेमिए भणिया-उयरह, गोतमो य भणिओ* मम वयणेणं भणेजासि-भो भो अणेगपिंडिया ! एगपिंडिओ तं दट्ठमिच्छइ, ताहे गोतमसामिणा भणिओ, रुट्ठो, तुब्भे अणे.
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॥३४॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
सुपात्रदाने कृतपुण्यः
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गाणि पिंडसयाणि आहारेह, अहं एग पिंडं झुंजामि, तो अहं चेव एगपिंडिओ, मुहुर्ततरस्स उवसंतो, चिंतेति-न एते मुसं वयंति, किह होजा?, लद्धा सुई, होमि णेगपिंडिओ, जद्दिवसं मम पारणयं तद्दिवसं अमेगाणि पिंडसयाणि कीरंति, एते पुण अकयमकारियं भुजंति, तं सच्च भणंति, चितंतेण जाई सरिया, पत्तेयबुद्धो जाओ, अज्झयणं भासइ, 'इंदनागेण अरहया वुत्तं' सिद्धो य । एवं बालतवेण सामाइयं लद्धं तेण । (३)
सद्धाजुत्तो जीवो जहासत्तीए सुपत्ते दाणं देतो सम्मत्ताइ लहइ, जह कयपुन्नओ, तस्स कहाणगं जहा-एगाए वच्छवालीए पुत्तो, लोगेण उस्सवे पायसा उक्खडिया, तत्थ आसण्णघरे दारगरूवाणि पासति पायसं जेमंताणि, ताहे सो मायरं वडेऽति-मम वि पायसं रंधेहि, ताहे नस्थिति सा अद्धितीए परुग्णा, ताओ सएझियाओ पुच्छंति, निबंधे कहियं, ताए अणुकंपाए अण्णाए २ आणीयं खीर सालितंडुला य, ताहे थेरीए पायसो रद्धो, ततो तस्स दारयस्स हायस्स पायसस्स घयमहुजुत्तस्स थालं भरिऊण दिन्नं, साहू य मासखमणपारणए आगओ, जाव थेरी अंतो बाउला ताव तेण धम्मो मे होउत्ति तस्स पायसस्स तिभागो दिनो, पुणोवि चिंतियं-अतिथोवं, वितिओवि भागो दिण्णो, पुणो णेण चिंतियं-एत्थ अण्णं जइ अम्बक्खलादि छुन्भइ ता विणस्सति, ताहे ततिओऽवि भागो दिण्णो, तस्स तेण दबसुद्धेण दायगसुद्धेण गाहगसुद्धेण तिविहेण तिकरणसुद्धेण भावेणं देवाउए णिबद्धे, ताहे माया से जाणति-जिमिओ, पुणरवि भरियं, अईव रंकत्तणेण भरियं पोट्ट, ताहे रत्तिं विसूइयाए मओ देवलोगं गओ, तओ चुओ रायगिहे नगरे पहाणस्स धणावहस्स पुत्तो भदाए भारियाए | जाओ, लोगो य गभगएण भणति-कयपुनो जीयो जो उबवण्णो, ततो जायस्स णामं कयं कयपुण्णत्ति, वड्डिओ, कलाउ
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॥३५॥
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कृतपुण्य:
श्रावकधर्मपञ्चाशक चूर्णिः ।
॥३६॥
गाहियाओ, परिणीओ, मायाए दुल्ललियगोट्ठीए छुढो, तेहिं गणियाघरं पवेसिओ, बारसहिं वरिसेहिं निद्धणं कुलं कयं, तोवि सो ण णिग्गच्छइ, मायापियाणि से मयाणि, भजा य से आमरणगाणि चरिमदिवसे पेसेति, गणियामायाए णायंणिस्सारो कओ, ताहे ताणि अन्नं च सहस्सं पडिविसज्जियं, गणियामाया भणति-णिच्छुब्भउ एसो, सा णेच्छति, ताहे चोरियाए णीणिओ घरं सजिजेति, उइण्णोवि बाहिं अच्छति, ताहे दासीए भण्णति-णिच्छूढोऽवि अच्छसि १, ताहे नियघरं सडियपडियं गओ, ताहे से भज्जा संभमेणं उद्विया, ताहे से सई कहियं, सोगेणं अप्फुग्णो भणति-अस्थि किंचि अन्नहि जाइचा वबहरामि ?, ताहे जाणि आभरणगाणि गणियाए मायाए जं च सहस्सं कप्पासमोल्लं दिन्नं ताणि से दंसियाणि, सत्थो य तदिवसं कंपि देसं गंतुकामो, सो य मंडमोल्लं गहाय तेण सत्थेण समं पहाविओ, बाहिं देउलियाए खर्ट्स पाडिऊण सुत्तो अन्नस्स वाणिय यस्स, मायाए सुयं जहा- तव पुत्तो मओ बहणे भिन्ने, तीए तस्स दवं दिन, मा कस्सति कहेजासि, ताए चिंतिय-मा दवं राउलं पविसिहिति अपुताए, ताहे रति तं सत्थं एइ, जा किंचि अणाहं पवेसेमि, ताहे य तं पासति, पडिबोहेत्ता पवेसिओ, ताहे घर नेऊण रोयति-चिरणटुगो सि पुत्ता, सुण्डाणं चउण्हं ताणं कहेति-एम देवरो ते चिरणदुओ, ताओ तस्स लाइयाओ, तत्थवि वारस वरिसाणि अच्छति, तत्थ एक्ककाए चत्तारि पंच चेडरूवाणि जायाणि, थेरीए भणियं-एत्ताहे णिच्छुभउ, ताओ न तरंति धारेउं, ताहे ताहिं संबलमोयगा कया अंतो रयणाणं भरिया, वरं से एयं पाउग्गं होति, ताहे वियर्ड पाएता ताए चेव देवउलियाए ऊसीसए संबलं ठवित्ता पडियागया, सोऽवि सीयलएणं पवणेणं पडिबुद्धो, पभायं च जायं, सोऽवि सत्थो तदिवसं आगओ, भजाएवि गवेसओ पेसिओ, ताहे उद्ववेत्ता घरं पीओ,
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आवकधर्म
दाने
कृतपुण्य:
16
भजा से संभमेण उट्ठिया, संबलगं गहियं, पविट्ठो अभंगाईणि करेइ, पुत्तो य से तदा गम्भिणीए जाओ, सो एक्कारसपञ्चाशक- वरिसो जाओ लेइसालाउ आगओ, रोबइ-देहि मे मत्तं मा उज्झाएण हम्मिहामित्ति, ताए ताओ संबलथइयाउ मोयगो दिनो, चूर्णिः । णिग्गओ खायंतो, तत्थ रयणं पासति, लेहचेडएहि दिटुं, तेहिं कंचुय(पुविय )स्स दिन्नं, दिणे दिणे अम्ह पोलियाओ देहिइ,
सोवि मोयगे भिंदति, तेण दिट्ठाणि, भणति-संकभएण कयाणि, तेहिं रयणेहिं तहेव पवित्थरिओ, सेयणओ गंधहत्थी णईए तंतुएण गहिओ, राया आदनो, अमओ भणति-जइ जलकतो अत्थि तो छईति, सो राउले अइबहुयत्तणेण रयणाणं चिरेण लभिहितित्तिकाऊण पडहओ निप्फेडिओ-जो जलकंतं देति, तस्स राया रजं अद्धं धूयं च देइ, ताहे पूइएण दिण्णो, णीओ, उदगं, पयासियं, तंतुओ जाणइ-थलं णीओ, मुक्को णट्ठो, राया चिंतेइ कओ पूइयस्स', पुच्छइ-कओ एस तुज्झत्ति ? निबंधे सिटुं कयपुण्ण गपुत्तेण दिण्णो, राया तुट्ठो, कस्स अन्नस्स होहिति ? रण्णा सद्दाविऊण कयपुण्णओ धूयाए विवाहिओ, विसओ दिण्णो, भोगे भुंजति, गणियावि आगया भणति-एचिरं कालं अहं वेणीबंधेण अच्छिया, सवत्थ
तुमं गवेसाविओ, एत्थ दिट्ठोसि, कयपुण्णओ अभयं भणति-एत्थ मम चत्तारि महिलाओ तं च घरं न याणामि, ताहे काइयघरं कयं, लेप्पगजक्खो कयपुण्णगसरिसो कओ, दो य बाराणि कयाणि, एगेण पर्वसो एगेण णिप्फेडो, तत्थ
अभओ कय पुण्णओ य एगत्थ बारम्भासे आसणवरगया अच्छंति, कोमुई आणत्ता, जहा पडिमप्पवेसो अच्चणियं करेह, नयरे घोसियं-सबमहिलाहिं गंतवं, लोगोवि एति, ताओवि आगयाओ, चेडरूवगा(वाणि)णि बप्पोत्ति उच्छंगे निविसंति, णायाओ, तेण थेरी अंबाडिया, ताओवि आणावियाओ, भोगे झुंजति सत्तहिवि सहिओ, बद्धमाणसामी
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॥३७॥
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विनये
भावकधर्म-I पश्चाशक
चूर्णिः
पुष्पशाल
सुतः, विभंगे शिवराजर्षिय
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समोसरिओ, कयपुण्णओ सामि बंदिऊण पुच्छति-अपणो संपत्ति विपत्तिं च, भगवया कहियं पायसदाणं, संवेगेण पवइओ, एवं दाणेण सामाइयं लम्मति । (४)
तहा विणयाराहगो जीवो सम्मत्ताइ पावेइ, जहा-पुप्फसालसुएणं, कहाणगं इम-मगहाविसए गोबरगामे पुष्फसालो नाम गाहावती, भद्दा भारिया, पुत्तो सिं पुप्फसालसुतो, सो मायापितरं पुच्छति-को धम्मो?, तेहिं भण्णइ-मायापियरं सुस्मूसियत्वं-"दो चेव देवयाई, माया पियरो य जीवलोगमि । तत्थवि पिया विसिट्टो जस्स वसे वट्टई माया ॥१॥" सो ताणं पायमुहधोवणादिविभासो, देवयाणिव सुस्सूसति, अन्नया गामभोइओ समागओ, ताणि संभंताणि पाहुण्णं करेंति, सो चिंतेति-एयाणवि एस देवयं, एवं पूएमि तो धम्मो होहिति, तस्स सुस्मूसा पकआ, अण्णया तस्स भोइओ, तस्सवि अण्णो, जाव सेणियं रायाण ओलग्गिउमारद्धो, सामी समोसढो, सेणिओ इड्डीए गंतूण वंदति, ताहे सो सामि भणति-अहं तुझे ओलग्गामि ?, सामिणा भणियं-अहं रयहरणपडिग्गहमत्तएण ओलग्गिजामि, ताण सुणणाए संबुद्धो, एवं विणएण सामाइयं लब्भइ । (५)
तहा लद्धविभंगनाणो जीवो लहइ, जहा-तावससिवरायरिसिणा लद्धं, भावत्थो इमाओ कहाणगाओ नेओ, जहा-अस्थि मगहाजणवए सिवो राया, तस्स धणधण्णहिरण्णादि पइदियहं वड्डति, चिंता जाया-अस्थि धम्मफलंति, तो महं हिरण्णादि वड्ढतित्ति, तो पुण्णं करेमित्ति कलिऊणं भोयणं कारियं, दाणं च णेण दिण्णं, ततो पुत्तं रजे ठविऊणं सकयतंबमयभिक्खाभायणकडुच्छुगोवगरणो दिसापोक्खियतावसाण मज्झे तावसो जातो, छट्ठमाउ परिसडियपंड्डपत्ताणि आणेऊण आहारेति, एवं से चिट्ठमाणस्स कालेण विभंगनाणमुप्पन्नं संखेजदीवसमुद्दविसर्य, ततो नगरमागंतूण जहोवलद्धे पण्णवेति, अण्णया साहवो
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३८॥
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भावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः ।
॥ ३९ ॥
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दिट्ठा, तेसिं किरियाकलावं विभंगाणुसारेणालोएमाणस्स विसुद्धपरिणामस्स अवकरणं जायं, ततो केवली संवृत्तोति । (६) तहा दिवसंजोगविउगो जीवो लहर, जहा महुरादुगवासिवणिएहिं तेसिं चरियं जहा दो महुरातो- दाहिणा उत्तरा य, तत्थुत्तराओ वाणियगो दक्खिणं गओ, तत्थ एगो वाणियगो तप्पडिमो, तेण से पाहुण्णं कथं, ताहे निरंतरा मेत्ता जाया, अहं थिरतरा पीती होहितित्ति जदि अम्हं पुत्तो धूया य जायति तो संजोगं करिस्सामो, ताहे दक्खिणपुत्तस्स उत्तरेण धूयादिण्णा, एत्थंतरे दक्खिण महुरावाणियओ मओ, पुत्तो य से तंमि ठाणे ठविओ ( ठिओ ), अण्णया सो व्हाति, उ हिसिं चत्तारि सोवन्निया कलसा ठविया, ताण वाहिँ रुपिया, ताण बाहिं तंबिया, ताण चाहिं मट्टिया, अण्णया य ण्हायविरइया, तओ तस्स पुवाए दिसाए सोवण्णिओ कलसो णट्टो, एवं चउद्दिसंपि, एवं सर्व्व णट्ठा, उट्ठियस्स ण्हाणपीढंपि , तस्स अद्धिई जाया, णाडइजाओ वारियाओ, जाव घरं पविट्ठो ताहे उबडविया भोयणविही, ताहे सोवण्णिरुपमयाणि रयाणि भायणाणि, ताहे एकेकं भायणं नासिउमारद्धं, ताहे सो पेच्छइ णासंते, जाव से मूलप्पत्ती सावि नासिउमाढत्ता, ताहे तेण गहिया, जत्तियं गहियं तत्तियं ठियं सेसं गठ्ठे, ताहे गओ सिरिघरं जोएति, सोऽवि रितओ, जंपि णिहाणपत्तं तंपि हूं, जंप आभरणं तंपि णत्थि, जेसिपि वड्डउत्तं तेऽवि मणति-तुमं न याणामो, जोवि दासीवग्गो सोऽवि णट्ठो, ताहे चिंतेतिअहो अहं अहणो, ताहे चिंतेति पवयामि, पवइओ, येवं पढित्ता हिंडति, तेण खंडेण गहिएण कोउहल्लेणं जह पेच्छिञ्जामि, विहरंतो उत्तरमहुरं गओ, ताणिवि रयणाणि ससुरकुलं गयाणि, ते य कलसा, ताहे सो मज्जर माहुरो उबगिअंतो जाव ते आगया कलसा, ताहे सो तेहिं चैव मजिओ, ताहे भोयणवेलाए मोयणमंड उबट्ठवियं जहा परिवाडीए ठियं, सोऽवि साहू
संयोगवियोगे
मथुरावणिजौ
॥ ३९ ॥
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भावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
॥४०॥
ACHERECRUA
तं घरं पविट्ठो, तत्थ सत्थवाहस्स धूया पढमजोवणे वट्टमाणी वीयणयं गहाय अच्छइ, ताहे सो साहू तं भोयणभंडं पेच्छइ, व्यसने सत्थवाहेण भिक्खा णीणाविया, गहिएवि अच्छति, ताहे पुच्छति-किं भगवं! एयं चेडिं पलोएह, ताहे सो भणति-ण मम गंगदत्ता चेडीए पयोयणं, एयं भोयणभंडं पलोएमि, ततो पुच्छति कओ एयस्स तुज्झ आगमो ?, सो भणइ-अजयपज्जयागयं, तेण भणियं-सम्भावं साहह !, तेण भणियं मम व्हायंतस्स एवं चेव ण्हाणविही उवट्ठिया, एवं सहावि भोयणविही, सिरिघराणिवि भरियाणि णिक्खयाणि दिट्ठाणि, अदिट्ठपुवा य धरिया आणेत्ता दिति, साहू भणति-एयं मम आसि, किह ?, तो कहेतिण्हाणादि, ततो पच्चयनिमित्तं अणेण तं भोयणपत्तीखंडं ढोइयं, झडत्ति लग्गं, पिउणो य णाम साहति, ताहे णायं जह एस सो जामाउओ, ताहे उढेऊण अवतासेत्ता परुण्णो, भणति-एयं सवं तव तदवत्थं अच्छति, एसा ते पुत्वदिण्णा चेडी पडिच्छ. सुत्ति, सो भणति-पुरिसो वा पुच्विं कामभोगे विष्पहयति, कामभोगा वा पुचि पुरिसे विप्पहयंति, ताहे सोऽवि संवेगमावण्णो, मा ममंपि एमेव विप्पयहिस्संतित्ति पवतितो, तत्थ एगेण विप्पओगेण लद्धं, एगेण संयोगेण सामाइयं लद्धति । (७)
तहा अणुभ्यवसणो लहइ, जहा दोहि भाउगेहिं लद्धं, भावत्थो कहाणगाओ पोओ, तं च इमं-दो भाउया सगडेण वञ्चति, चक्कुलेंडा य सगडपहे लोट्टइ, महल्लेण भणिय-उव्वत्तेह भंडिं, इयरेण वाहिया भंडी, सा सण्णी सुणेति, छिण्णा चक्केण, मया, इत्थिया जाया हत्थिगापुरे णगरे, सो महल्लतरो पुष्विं मरित्ता तीसे पोट्टे आयाओ, पुत्तो जाओ, इट्ठो, इयरोवि तीए चेव पोट्टे आयाओ, जं सो उववण्णो तं सा चिंतेति-सिलं व हावेजामि, गम्भपाडणेहिं विण पडति, ततो सो जाओ, दासीए हत्थे दिनो, छडेहि, सो सेटिणा दिवो णिजंतो, तेण घेत्तुण अण्णाए दासीए दिण्णो, सो तत्थ संवड्डा, IR॥४०॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः ।
॥ ४१ ॥
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तत्थ महल्लगस्स नामं रायललिओ, इयरस्स गंगदत्तो, सो महल्लो जं किंचि लब्भइ ततो तस्सवि देह, माऊए पुण अणिट्टो, जहिं पेच्छति तर्हि कट्ठाईहिं पहणइ, अन्नया इंदमहो जाओ, ततो जणएण अप्पसारियं आणिओ, आसंदयस्स हेट्ठा कओ जेमाविति, ओहाडियाओ, ताए किहवि दिट्ठो, ताहे हत्थे घेत्तूण कड्डिओ, चंदणियाए पक्खित्तो, ताहे सो रोयति, पिउणा हात्रिओ, एत्यंतरे साहू भिक्खस्स अतिगओ, सेट्टिणा पुच्छिओ-भयवं ! माऊए पुत्तो अणिट्टो भवति ? हंता भवति, किह
१; ता भणति - "जं दई वड्डए कोहो, नेहो य परिहायए। स विष्णेओ मणुस्सेण, ममायं पुववेरिओ ॥ १ ॥ जं दडुं चड नेहो, कोहो य परिहायइ । स विनेओ मणुस्सेण, एसो मे पुढबंधवो ॥ २ ॥" ततो सो भणइ भयवं ! पवावेह एयं, बाढति विसजिओ, पवतितो तेसिं आयरियाण सयासे, भायावि सिणेहाणुरागेण पचइओ, ते साहू जाया ईरियासमिया, अणिस्सियं तवं करेंति, ताहे सो तत्थ णियाणं करेति ' जइ अस्थि इमस्स तवनियमस्य फलं तो आगमिस्साणं जणमणणयणाणंदणो भवामि, घोरं तवं करेता देवलोगं गया, ततो चुओ वसुदेवपुत्तो वासुदेवो जाओ, इयरोऽवि बलदेवो, एवं तेण बसणेण सामाइयं लद्धं । (८)
तहा अणुभूय उच्छवोऽवि लहइ, आभीरवत् (इव), तेसि कहाणगं इमं - एगंमि पच्चंतियगामे आभीराणि, ताणि साहूण पासे धम्मं सुर्णेति, ताहे देवलोए वति, एवं तेसिं अस्थि धम्मस्व बुद्धी, अन्नया कयाइ इंदमहे वा अण्णंसि वा उसके गयाणि नगरं, जारिसा बाखती, तत्थ लोयं पासंति मंडियपसाहियं, सुगंधविचित्तणेवत्थं, ताणि तं दट्टण भांति - एस सो देवलोओ जो साहूहिं वभिओ, एचाहे जदि बच्चामो सुंदरं करेमो, जेण अम्हेवि देवलोगे उववज्जामो, ताहे ताणि गंतून साहूण
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उत्सवे आभीरः
॥ ४१ ॥
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ऋद्धिदर्शने
आवकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
दशार्णः
॥४२॥
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साति-जो तुम्भेहिं अम्हे कहिओ देवलोगो सो पच्चक्खो अम्हेहिं दिट्ठो, साहू भणति-न तारिसो देवलोगो, अण्णारिसो अओ अणंतगुणो, ततो ताणि अम्भहियजायविम्हयाणि पवइयाणि, एवं उस्सवेण सामाइयलभो । (९)
(तहा) महिड्डियदंसणाओवि लब्भइ, जहा दसन्नभद्देणं राइणा, कहाणयं इमं-दसन्नपुरे णगरे दसन्नभद्दो राया, तस्स पंच देवीसयाणि ओरोहे, एवं सो रूवेण जोवणेण बलेण य पडिबद्धो, एरिसं अन्नस्स नत्थिति चिंतेति, सामी य समोसरिओ दसन्नकूडे पवए, ताहे सो चिंतेति-तहा कल्लं वंदामि जहा ण केणवि अन्नेण बंदियपुवो, तं अज्झस्थियं च सक्को नाऊण चिंतेति-वराओ अप्पाणं न याणति, तओ राया महया समुदएण णिग्गओ वंदिउं सबिड्डीए, सक्को य देवराया एरावणं विलग्गो, तस्स अट्ठ मुहे विउव्वति, मुहे २ अट्ठ २ दंते विउति, दंते २ अट्ठ २ पुक्खरणीओ विउव्वति, एकेकाए पुक्खणीए अट्ठ २ पउमे विउच्वति, पउमे २ अट्ठट्ठ पत्ते विउव्वति, पत्ते २ अट्ठट्ट बत्तीसपयाणि नाडगाणि विउवति, एवं सो सन्विड्डीए उवगिजमाणो आगओ, ततो एरावणं विलग्गो चेव तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति, ताहे सो हत्थी अग्गपाएहिं भूमीए ठिओ, ताहे तस्स हथिस्स दसन्नकूडे पवए देवयप्पभावेण अग्गपयाणि उट्ठियाणि, ततो से नाम कयं गयग्गपदगोति, ताहे सो दसण्णभद्दो विचिंतेति-एरिमा को अम्हारिसाण इड्डित्ति, अहो कएल्लओ अणेण धम्मो, अहमवि करेमि, ताहे सो सवं छड्डेऊण पवतितो, एवं इड्डीए सामाइयं लब्भइ । (१०)
तहा सक्कारपत्थणेवि गय( अलद्ध)सकारो जीवो लहति, जहा इलापुत्तेण, कहाणगं च इम-एगो धिजाइओ, तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्मं सोचा समहिलिओ पवइओ, उग्गं पवजं करेंति, णवरमवरोप्परं पीई ण ओसरति, महिला मणागं
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श्रावकधर्म
पश्चाशकचूर्णिः ।
असत्कारे इलापुत्र:
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धिजाइणित्ति गहमुबहइ, मरिऊण देवलोगं गयाणि, जहाउयं भुत्तं, इओ य इलावद्धणे णयरे इला देवया, तं एगा सत्यवाही पुत्तकामा ओलग्गति, सो चविऊण पुत्तो से जाओ, णामं च से कयं इलापुत्तो, इयरीवि गवदोसेणं तओ चुया लंखगकुले उप्पन्ना, दोऽवि जोवर्ण पत्ताणि, अण्णया तेण सा लंखगचेडी दिट्ठा, पुत्वभवरागेण अज्झोपवण्णो, सा मग्गिजंती ण लब्भति जत्तिएण मुल्लणंति, ताणि भणति-एसा अम्ह अक्खयणिही, जइ सिप्पं सिक्खति अम्हेहिं समं हिंडइ, तो से देमो, सो तेहिं समं हिंडितो, सिक्खितो य, ताहे विवाहणिमित्तं रण्णो पेच्छणयं करेहत्ति भणिओ, बेण्णायडं गयाणि, तत्थ राया पेच्छति संतेउरो, इलापुत्तो खेड्डाओ करेति, रायाए दिट्ठी दारियाए, राया ण देइ, रायाणए अदेंते अण्णेऽवि ण देंति,साहुक्काररावं वति । भणिओ लंख ! पडणं करेहि तं च किर वससिहरे, अई कट्ठ कएल्लयं, तत्थ खीलिया, सो पाउयाओ परिहेति, मूले विद्धियाओ, तओ असिखेडगहत्थगओ आगासं उप्पइत्ता ते खीलिया पाउयाणालियाए पवेसेइ, सत्त अग्गतो हुत्तो सत्त पच्छिमाहुत्तो, जदि फिट्टइ ततो पडिओ सयहा खंडिजति, तेण कयं, राया दारियं पलोएति, लोगेण कलयलो कओ, ण देति राया, ण पेच्छति, राया चिंतेति-जदि मरति तोऽहं एयं दारियं परिणेमि, भणति-ण दिट्ठ, पुणोऽवि करेति, तत्थवि ण दिलु, तइयवारं कर्य, तत्थवि ण दिलै, चउत्थियाए वाराए भणिए पुणोऽवि करेहत्ति, रंगो विरत्तो, ताहे सो इलापुत्तो वससिहरे ठिओ चिंतेइ-घिरत्थु भोगाणं, एस राया एत्तियाहिं ण तित्तो, एयाए रंगोवजीवियाए लगिउं मग्गति, एयाए कारणा ममं मारेउमिच्छति, सो य तस्थ ठियओ एगत्थ सेद्विघरे साहुणो पडिलाभेन्जमाणे पासति सबालंकाराहि इत्थियाहिं, साहू य विरत्तो अवलोएमाणे पेच्छति, ताहे भणति-अहो धन्ना ! निरभिस्संगा विसएसु, अहं सेद्विसुओ एत्थंपि एस अवस्था, तत्थेव
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श्रावकधर्म- पश्चाशक-11 चूर्णिः
दोष-गुणयतनाद्वाराणि
॥४४॥
विरागं गयस्स केवलनाणं समुप्पण्णं, ताएवि चेडीए विरागो, विभासा, अग्गमहिसीएवि, रणोऽवि पुणरावती जाया, विरागो विभामा, एवं ते चत्तारिवि केवली जाया, सिद्धा य, एवं असक्कारेण सामाइयं लब्भति । (११)
जइवि परमत्थेण कम्मखयाउ चेव सम्मत्ताइलाभो होइ, तहवि मिच्छत्तपरिहारो " दिढे सुयमणुभूए" एवमाईणि य कम्मखओवसमे कारणीभवंति, तेण मिच्छत्तपरिहाराईणिवि एत्थ निदंसियाणि, भणियं 'जह जायइ' ति दारं ।
संपयं 'दोसदारं, ' " संमत्तपरिभट्ठो जीवो दुक्खाण भायणं होई । नंदमणियारसेट्ठी दिर्सेतो रत्थ नायवो ॥१॥" अक्खरत्थो सुगमो, कहाणगं नायाधम्मकहासु। तहा "दसणविराहगाणं तल्लाभुकोसणंतकालाओ । तम्हा दंसणरयणं सवपयत्तेण रक्खेजा ॥१॥" एवमाइ दोसविभासा कायदा ।
इयाणि 'गुणदारं' भणइ, "संमत्तमि उ लद्धे ठड्याई नरयतिरियदाराई । दिवाणि माणुसाणि य मोक्खसुहाई सहीणाई ॥१॥ कुसमयसुईण महणं संमत्तं जस्स सुट्टियं हियए। तस्स जगुजोयकरं नाणं चरणं व भवमहणं ॥२॥" एवमाई संमत्तगुणा एत्थ वत्तव्वा ।
अहुणा 'जयंणादारं,' "लोइयतित्थे पुण हाणदाणपेसवणपिंडहणणाई । संकंतुवरागाइसु लोइयतवकरणमिच्चाइ ॥१॥" लोइयतित्थं गंगापयागाइ, तत्थ पहाणं धम्मबुद्धीए न काय, तहा दाणं धिज्जाइयाइणं, पेसवणं अढिगाईणं गंगाइसु, पिंडप्पयाणं मयजणगाइनिमित्तं, हुणणं अग्गीए तिलघयाईणं, आइसद्दाओ सूयगाइ घेप्पइ, संकंती उत्तरायणाइसु, उवरागोचंदसूरगहणं, लोइयतवकरणं वच्छवारसिमाइसु अगणिअपक्कभक्खणाई, आदिसद्दाओ-" धम्मग्गिविगवहिगणाहसाला
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श्रावकधर्म- पश्चाशकचूर्णिः
अतिचाराः,
शङ्कायां पेयापायका
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॥४५॥
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तडागपवबंधो । पिप्पलअसंजयाणं पावारहलाइगोदाणं ॥२॥" असंजयाणंति-माहणाईणं, पावारंति-पूरहिगाई उत्तरिजगं, एवमाइ अण्णपि अन्नसिं मिच्छत्तथिरीकरणाइकारणं जहा न होइ तहा जइयवं, जओ मिच्छत्तथिरीकरणं अइअणिट्ठफलं, भणियं च-" अग्नेसि सत्ताणं मिच्छत्तं जो जणेह मृढप्पा । सो तेण निमित्तेणं न लहइ बोहिं जिणाभिहियं ॥ १॥" ___संपयं 'अइयारा', ते पुण पंच होति, तंजहा-संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथवो य, तत्थ संका-भयवंतअरहंतपणीएसु पयत्थेसु धम्मस्थिकायाइसु अचंतगहणेसु मइदुब्बल्लेण संमं अणवधारिजमाणेसु संसओ संका, किं एवं होजा न वत्ति?, जओ मणियं " संसयकरणं संका", सा पुण दुविहा-देससंका सबसंका य, तत्थ देससंका एगदेसविसया, जहा-किमेस जीवो असंखेजपएसरूवो होजा, किंवा निप्पएसो निरवयवो होजत्ति, सबसंका पुण-सवेवि अस्थिकाए संकर, जिणसासणं वा संकइत्ति, एसा पुणरेवमइयारो-" संकाए मालिनं जायइ चित्तस्सऽपञ्चओ य जिणे । संमत्ताणुचिओ खलु इति अइयारो भवे संका ॥१॥" दोसा य इत्थ इमे-" नासइ इमीए नियमा तत्ताभिनिवेसमो सुकिरिया य । तत्तो य कमबंधो संसारनिबंधणो होइ (बंधदोसो तम्हा एयं विवजिञ्जा)॥१॥" तम्हा मोक्खस्थिणा ववगयसंकेण जिणवयणं सच्चमेव सञ्चपि पडिवञ्जियवं, इहलोएवि जो अविसयं संकं करेइ सो विणस्सइ, जहा-सो पेजापायओ, पेजाए मासा जे परिभजिया छुढा, अंधकारे लेहसालाउ आगया दो पुत्ता पियंति, एगो चिंतेइ-एयाओ मच्छियाओ, तस्स संकाए वग्गुलीवाओ संजाओ मओ य, बीओ चिंतेइ न मम माया मच्छिया देइ, सो जीविओ, एए दोसा संकाएत्ति, इह पुण सवत्थ वि अइयारो परिणामविसेसाओ नयमयभेयओ वा संमत्तमालिअमेत्तं संमत्ताभावो वा नायवोत्ति ।
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कंखा - बुद्धापणीयदरिसणेसु गाहो - अभिलासो, जओ भणियं “ कंखा अन्नोन्नदंसणग्गाहो, " सा पुण दुविहादेसखा, सङ्घखा य, देसकखा - एगदेसविसया, एगमेव किंचि बुद्धाइदंसणं कखति, एत्थवि चित्तनिरोहो मणिओ, एस चैव चित्तजओ पहाणो मोक्खहेऊ, तओ एयंपि दंसणं घडमाणगं, न अच्छंतविरुद्धंति, सङ्घकंखा सव्वाणि चैव दरिसणाणि कंखर, ससुत्र अहिंसा भासिजह, इहलोए य न अच्चंत किलेसो कहिजइ, अओ एयाणिवि सोहणाणित्ति, अहवा परलोइयफलाणि कंखइति कंखा, पडिसिद्धा य एसा तित्थगराईहिं, जओ भणियं-"नो इहलोगट्टयाए आयारमहिडेजा, नो परलोगgure आयारमहिजा नो कित्तिवन्नसहसिलो गट्टयाए आयारमहिडेजा, " कित्ती सवदिसासु पसिद्धी, बनो - एगदिसाए, सदो - अद्धदिसाए, सिलोगो - सठाणे चेव, एवमाई, अओ एयं करेंतस्स सम्मत्ताइयारो होइ, तम्हा एगंतियं अच्छंतियं निराबाहं मोक्खसुहं मोचूण अन्नत्थ न कंखा कायद्वा । तत्थोदाहरणं --राया कुमारामच्चो य अस्सेणावहिया अडवीं पविडा, छुहारा फलाणि खायंति, पडिनियत्ताण राया चिंतेति-लडुगपूयलगमाईणि खामि, आगता दोवि जणा, रन्ना सूता भणिया-जं लोए पयरति तं सवं रंधहत्ति, उबडवियं च रन्नो, सो राया पेच्छणयदित करेह, कप्पडिया बलिएहिं धाडि - अंति, एवमिस्स अवकासो होतित्ति कणकुंडगमंडगादीणिवि खाइयाणि, तेहिं स्लेण मओ, अमचेण पुण वमण विरेयणाणि कताणि, सो आभागी भोगाण जाओ, इयरो विणट्ठो ।
विचिमिच्छा-मविभभो जुत्तीए आगमेण य घडमाणे वि अत्थे फलं पइ संमोहो- किं एयस्स महंतस्स तत्रकिलेसस्स निरासाय वालुया कणचवण सरिसस्स कणगावलिरयणावलिमाइगस्स जम्मंतरे मम फलसंपत्ती भविस्सइ किं वा न भविस्सइति,
काङ्क्षायां राजामात्यौ
॥ ४६ ॥
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विचिकित्सायां विद्यासाधक: श्रावक:
श्रावकधर्म-
II जओ उभयप्पगाराओ इह किरियाओ फलसहियाओ निष्फलाओ य दीसंति करिसगाईणं । अह संकाविचिगिच्छाण को | पश्चाशक
परोप्परं विसेसो, भन्नइ, संका जीवाइदवविसया, विचिगिच्छा पुण किरियाविसयत्ति, एसावि न कायवा, सबन्नुभणियसलाचूर्णिः । गुट्टाणाओ होइ चेव फलसंपत्तित्ति, एत्थोदाहरणं-विजासाहगो सावगो, नंदीसरवरगमणं दिवगंधाण देवसंघरिसेण मित्तस्स
पुच्छणं, विजाए दाणं, साहणं, मसाणे चउपायं सिक्कग हेट्ठा इंगाला खायरो य मूलो अट्ठसय वारा परिजवेत्ता पादो सिक्क॥४७॥
गस्स छिजइ, एवं वितिओ तहओ, चउत्थे छिन्ने आगासेणं वच्चइ, तेण विजा गहिया, किण्हचउद्दसिरति साहेति मसाणे, चोरो आरकिखएहिं पारज(पेल्लिओ परिभम )माणो तत्थेव आगओ, ताहे वेढेउं सुसाणं ठिया पभाए घेप्पिहितित्ति, सो य भमतो विजासाहंग पेच्छति, तेण पुच्छिओ, भणति-'विजं साहेमि', चोरो भणति-केण ते दिण्णा ?, सो भणति-सावगेण, चोरेण भणियं इमं दवं गेहाहि, विजं देहि, सो सट्टो वितिगिछति सिज्झेजा न वत्ति, तेण दिन्ना, सो चिन्तेति-सावगो कीडियाएवि पावं नेच्छति, सच्चमेयं, सो साहिउमारद्धो, सिद्धा, इयरो सड्ढो गहिओ, तेण आगासगएण लोगो मेसिओ, ताहे सो मुक्को, सट्टा दोवि जाया, एवं निवितिगिछेण होयत्वं । अहवा विउदुगुंछा, तत्थ विउ-साहयो विनायसंसारसहावा परिचत्त| सत्वसंगा तेसिं दुगुंछा-निन्दा, जहा किर साहू अण्हाणगेण सेयमिस्समलखरंटियसरीरा दुग्गंधा भवन्ति ते निन्दइ, को दोसो होजा ? जइ फासुगजलेणं अंगपक्खालणं एए करेंतित्ति, एसावि न कायदा, देहस्स चेव परमत्थओ असुचिसहावत्ताउनि,
एत्थोदाहरण-एगो सड्डो पच्चंते वसति, तस्स धूयाए विवाहे कहवि साहवो आगता, सा पिउणा भणिया-पुत्तिगे ! पडि| लाभेहि साहुणो, मंडियपसाहिया पडिलाहेति, साहूण जल्गंधो तीए अग्घातो, चिंतेति-अहो अणवजो भट्टारगेहिं धम्मो
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॥४७॥
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
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विद्वज्जुगुप्सायां श्रावकसुता
॥४८
॥
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दंसिओ, जइ पुण फासुएण व्हाएजा को दोसो होजा?, सा तस्स ठाणस्स अणालोइय अपडिकंता कालं किच्चा रायगिहे गणियाए पोद्दे उववमा, गन्मगता चेव अरति जणेइ, गम्भपाडणेहिं न पडति, जाता समाणी उझिया, सा गंधेण तं वणं वासेति, सेणिओ य तेण पदेसेण निग्गच्छति सामिणो वन्दगो, सो खंधावारो तीए गंधं न सहति, रना पुच्छियं किमेयंति १, कहियं-दारियाए गंधो, गंतूण दिट्ठा, भणति-' एसेव पढमपुच्छत्ति, गओ, वन्दित्ता पुच्छति, भट्टारओ पुत्वभवं कहेति, भणति राया-कहिं एसा पचणुभविस्सति सुहं वा दुक्खं वा, सामी भणति-एतेण कालेण वेदितं, इयाणि सा तव चेव भजा भविस्सति अग्गमहिसी अट्ठ संवच्छराणि, जाव तुझं रममाणस्स पिट्ठीए हंसोलीणं काहिति तं जाणेजासित्ति, वंदित्ता गओ, सा अवगयगंधा एगाए आभीरिए गहिया, संवड्डिया, जोवणत्था जाता, कोमुइचारे मायाए समं आगता, अभओ सेणिओ | य पच्छन्ना कोमुइचारं पेच्छंति, सेणिओ तीसे दारियाए अंगफासेण अज्झोवन्नो, नाममुदं दसियाए तीसे बंधति, अभयस्स कहियं नाममुद्दा हारिया, मग्गाहि, तेण मणुस्सा दारेहिं टविया, एककं माणुसं पलोएऊण नीणिजति, सा दारिगा दिट्ठा, चोरिति गहिया, परिणीया य, अन्नया य वझुकेण रमंति, रायणियाओ जिएण पोतेण वाहेति इतरी पोतं देति सा विलग्गा, रना सरियं मुक्का य पवइया, एतं दुगुंछाफलं । ___ 'परपासंडपसंस'ति परपासंडा-अन्नतित्थिया तेसिं, पसंसा-संथुई परपासंडपसंसा, परपासंडाणं च सामन्नणं तिन्नि सयाणि तिसट्ठिअहियाणि भवंति, जओ भणियं-" तिनि सया तेसट्ठा पासंडीणं परोप्परविरुद्धा । "-तहा" असियसयं किरियाणं अकिरियवाईण जाण (होइ) चुलसीई । अन्नाणिय सत्तट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसं ॥१॥" एतेसिं पसंसा ण कायवा
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का॥४८॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः ।
॥ ४९ ॥
पुनभागिगो एए सुद्धं एएहिं जम्मंति एवमाइया । एत्थोदाहरणं - पाडलिपुत्ते चाणको चंदगुत्तेण भिक्खुगाणं वित्ती हरिया, ते तस्स धम्मं कहेंति, राया तूसति, चाणकं पलोएति, न पसंसतित्ति न देति, तेहिं चाणकभजा ओलग्गिया, ती सो कराणं गाहिओ, तेहिं कहिए तेण भणियं सुभासियंति, रण्णा तं च अन्नं च दिनं वितियदिवसे चाणको भणतिकीस ते दिष्णं १, राया भणति तुज्झेहिं पसंसियंति, सो भणति न मे पसंसियं, सवारंभपवत्ता कहं लोगं पत्तियावेंति, पच्छा ठिओ, केत्तिया एरिसया, तम्हा न कायद्वा । 'परपासंडसंथवो 'त्ति परपासंडेहिं - अन्नतित्थि एहिं सह संथवोसंवसणभोयणआलावाइपरिचओ, एसोवि न कायवो । जओ एगत्थ संवासे तद्धम्मदंसणसवणाओ अणाइभवन्भासेण मिच्छत्तो. दयाओ सम्मत्त भंसो होइति, अओ एसोवि न कायवो । इत्थोदाहरणं-सोरसड्डगो चैव सो पुवभणिओ, उबलक्खणं च एए ते साहम्मियाणणुवहणं १ सीयंताथिरीकरणं २ आवइगयसाहम्मिया अवच्छलकरणं ३ सह सामत्थे तित्थापभावणं यत्ति ४ एएवि चत्तारि दट्ठवा, जओ - "नो खलु अप्परिवडिए निच्छयओ मइलिए व संमत्ते । होइ तओ परिणामो जत्तोऽणुववूह ईया || १ || " भणिया संमत्तस्स अइयारा । संपयं भंगो - " संमत्तं पत्तं पि हु रोरेण निहाणगं व अइदुलहं । पावेहिं अंतरिख पढमकसाएहिं जीवस्स ।। १ ।। " पढियसिद्धा चेव, भावणा पुण" मिच्छत्तकारणाई करेंति नो कारणेवि ते धना । इय चिते मइमं कत्तियसेट्ठी उदाहरणं ॥ १ ॥ " एतीए भावट्टो अक्खाणगाओ नायवो, तं पुण मणियं भणियं सम्मत्तं । इयाणि वयाणं अवसरो
रायाभिओगे
पंच अणुब्वयाई थूलगपाणवहविरमणाईणि । उत्तरगुणा उ अन्ने दिसिव्वयाई इमेसिं तु ॥ ७ ॥
पं० चू० ५
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परपाषण्ड
प्रशंसायां चाणिक्यः
॥ ४९ ॥
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'पंच'त्ति संख्या, तुसो अवधारणे, ततो पंचेच अणुवयाणि, म चत्तारि, जहा मज्झिमबावीसतित्थयराणं तिस्थेसु चचारि महवयाणि होति, जओ सेलगनाए सेलगराया नेमिनाहसीमस्स थावच्चापुत्तस्स समासे पंचाणुवइयं सत्तसिक्खावइयं समणोवासगधम्मं पडिवन्नोत्ति भणियं, अणुब्वयाईति महद्दयावेक्खाए लहुगाणि चयाणि अणुवयाणि, 'धूलगपाणवहविरमणाईणि 'ति धूलगपाणा - वेइंदियादओ तेसिं वहो हिंसा तस्स वेरमणं - विरई निष्चित्ती, आदिसद्दाओ धूलगमुसावायाईणि चत्तारि ॥ ५० ॥ ॐ घेष्पंति, पंचवि एयाणि मूलगुणा । 'उत्तरगुणा उ अन्ने दिसिवयाह'ति अन्नाणि दिसिबयाईणि सत्त उत्तरगुणा भन्नंति, 'इमेसि तु'ति अणुवाणं, भणियाणि सामन्त्रेण वयाणि । संपयं विसेसेण भण्णंति, तत्थ ताव पढमं भन्नति, तत्थवि पाणाड़वासरू कहिजड़ - "दोनि सया तेयाला पाणइवाए पमाउ अट्ठविहो । पाणा चउराईया परिणामदुत्तरस्यं च ॥१॥" दोन्नि सया तेयाला पाणाइवाए- पाणाइवायविसए, कहं १, पुढवाहवण सहकायपजवसाणा एगिंदिया पंच चितिचउपचिदिएहिं सह नव भवति, ते य मणवयणकायरूवेण करणतिगेण गुणिया सत्तावीसं भवति, ते य करणकारावणअणु महरूपयोग तिगेण गुणिया एकासी भवन्ति, तेऽवि अतीत अणागयवट्टमाण कालतिगेण गुणिया दोनि सया तेयाला २४३ भवंति । तहा पमाओ अहो - " अन्नाणं १ संसओ चेत्र २ मिच्छानाणं ३ तहेव य । रागो ४ दोसो ५ महन्मंसो ६ धम्मंमि य अणायरो ७ ॥ १ ॥ जोगाणं दुप्पणिहाणं ८ माओ अट्टहा भवे । " एसोवि पाणाइवायसरूवं, जओ पमत्तो हिंसगो होइ, भणियं च 46 'प्रमत्त योगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसे "ति, के ते पाणा ?, जेसिं विसए एत्तिया भेया उडूंति, भन्नड़-पाणा चउराईया, आहसदाओ छ सत्ता अट्ठ नव दसविह पाणा घेष्यंति. भणियं च " इंदिय ५ बल ३ ऊसासाउ २ पाण च छच्च सत्त अद्वेष ।
भावकधर्म
पाशक
चूर्णिः ।
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प्राणाति
पात
|स्वरूपम्
॥ ५० ॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्मिः ।
॥ ५१ ॥
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इमविगलऽसन्निसन्नी नव दस पाणा य बोद्धवा || १ || " ' परिणामे अनुत्तरसयं च 'ति परिणामविसेसे जं अनुचरस्यं भंगाणं, तंपि पाणाइवाय सरूवंति, तं पुण इमेण विहिणा संरंभसमारंभ आरंभा मणवयकायतिगेण गुणिया नव भवंति, एए चेव करणकारण अणुमतितिगेण गुणिया सत्तावीसं भवति, एए चेव कोहमाणमायालोमेहिं चऊहिं गुणिया अनुत्तरं सयं १०८ होइ । संरंभसमारंभारंभाणं च इमं सरूवं-"संकप्पो संरंभो परितात्रकरो भवे समारंभो । आरंभो उदवओ सवनयाणं विसुद्वाणं ||२||" इह सुद्धनया नेगमसंगहबवहारा, उवएसदिक्खादाणाइ सद्यववहारप साहगत्ताउ संरंभाइतिविहवहत्थुवगमाओ य । इयरे पुण उज्जुसुयादयो निच्छइया असुद्वनया, तम्मएण सङ्घववहाराभावाओ, आया चेव अहिंसा आया हिंसति एगविहहिंसांगीकरणाओ यत्ति । अहवा संरंभ मणेणं सयं करेइ संजायकोहपरिणामो एगो, एवं माणमायालोमेहिवि, सधेवि चत्तारि, एते करणेण चत्तारि कारावणेण अणुमहहिंपि, सधेवि बारस एए मणेण, बारस वयणेण काएणवि वारस चैव, एए छत्तीसा संरंभेण, एए चैव समारंभेण आरंभेणवि, सबै अट्टुत्तरसंयंति | समारंभारंभा मणेण कई संभवंति ? भन्नह - मरणाइजणगमंताइ परिजवेंतस्स संभवंति चैव | वायाकायाएहिं संरंभो कहं ?, तिवसंकष्पवर्ग नं किंपि वायाए भणह चेट्ठह वा कारण तं वयारओ वयणकायसंरंभोति । एवं सामश्रेण पाणाइवायसरूवे कहिए जारिसस्स पाणाइवायस्स विरई पढमाणुवयं होड़ तं दरिसेह
थूलगपाणवहस्स विरई दुविहो य सो वहो होइ । संकप्पारंमेहिं वज्जइ संकप्पओ विहिणा ॥ ८॥
इह दुविहा जीवा भवंति थूला सुडुमा य, तत्थ थूला बेइंदियाई, सुडुमा पुणेह एगिंदिया, तत्थ थूलगपाणाणं बेइंदियाईणं वहो - विणासो तस्स विरती निवित्ती पढमाणुवयं होड़। एएण य गाहावयवेण वयसरूवं भणियं । सेसावयवेहिं बीयं
हिंसायां अष्टोत्तरशतभंगाः
॥ ५१ ॥
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श्रावकधर्मपश्वाशक चूर्णिः
॥ ५२ ॥
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भेदारं भण-' दुविहो य सो वहो होइ' सो पुवभणिओ वहो दुविहो- दुविकप्पो हो, कहं दुविहो होह १, भन्नइ' संकप्पारं मेहिं 'ति तत्थ जीवमारणाभिप्पाओ संकप्पो, पयणकिसिमाई पुण आरंभो, एवं ताव दुविहो वहो, तत्थ धूलगपाणवहविरहपडिवजमाणो सावगो 'वजड़ ' - पञ्चक्खाणेण परिहरइ धूलगपाणवहं । पच्चक्खाणं च आवस्तयचुन्नीए एवं भणियं - "थूलगं पाणावायं संकष्पओ पच्चक्खामि जावजीवाए दुविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि " । कहं वजे ?, ' संकप्पओ 'त्ति वहपरिणामं आसज, न आरंभओ वि, गिहत्थाणं आरंभवजणं न संभवइत्तिकाउं, 'विहिण'त्ति आगमभणियनीईए । सो य विही इमो
गुरुमूले सुयधम्मो संविग्गो इत्तरं व इयरं वा । वज्जिन्तु तओ संमं वज्जेइ इमे य अइयारे ॥ ९ ॥
गुरू-सन्नाण किरियाजुओ संमं धम्मसत्थ अत्थदेसगो, अहवा " जो जेण सुद्धधम्मे निओइओ संजएण गिहिणा वा । सो चैव तस्स भन्नइ धम्मगुरू धम्मदाणाओ ॥ १ ॥ " तस्स गुरुस्प मूले-सगासे समीपे इत्यर्थः । अणेण अन्नत्थधम्मसवणपडिसेहो दरिसिओ, विवरीयबोधसंभवाओ, 'सुयधम्मो 'त्ति आयन्नियअणुइयादिसरूवो, अणेण अस्सुयधम्मस्स नाणाभावाउ वयपडिवत्ती न सुंदरत्ति ( ग्रं. १००० ) असुयधम्मस्स वयपडिवत्तिनिसेहो दंसिओ, जओ भणियं आगमे - “ जस्स नो संमं उवयं भवई, इमे जीवा इमे अजीवा इमे तसा इमे थावरा, तस्स नो सुपच्चक्खायं भवति, दुप्पच्चक्रखायं भवइ, से दुप्पच्चक्रखाई मोसं भासं भास, णो सच्चं भासं भासह "त्ति । तथा 'संविग्गो 'त्ति मोक्खसुहाभिलासी संसारभयमीओ वा, न पुणो रिद्धिजसाइकामो, 'इत्तरं ' - अप्पकालं - चउमा साइकालावहिणा इत्यर्थः, वासद्दो विगप्पे, 'इयरं'- बहुकालं जावज्जीवं इत्यर्थः,
स्थूलप्राणवधविरति विधिः
॥ ५२ ॥
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श्रावकधर्म-1 एत्थवि वासदो विगप्पे, धूलपाणवह 'वजित्तु-पच्चक्खेऊण 'तगो'ति, सो सावगो 'संमति भावसुद्धीए, 'वजेई' परिहरइ,
प्राणातिपश्चाशक- नो आसेवइ, 'इमे य अइयारे' इमे-उवरि भन्नमाणे अइयारे-अइक्कमे वधविरइसणाणि इत्यर्थः, भणियं बीयं भेयद्दारं । | पाते दोषचूर्णिः संपयं तइयदारं
द्वारे पतिहै। तस्स विवरणं जहा संमत्ते । संमत्तलाभविहिसरिसो पाएण देसविरइलाभविही अओ एत्थ न भन्नइत्ति, जो पुण हूँ
मारिकाविसेसो पुवं न भणिओ सो भन्नइ-" संमत्तमिवि पत्ते बीयकसायाण उवसमखएणं । तबिरईपरिणामो एवं सबाणवि वयाण यात्रा
॥१॥" 'संमत्ते पत्ते 'ति अपत्तसंमत्तस्स विरहपरिणामो ताव न होइ चेव, अओ पत्तेऽवित्ति मणियं । 'बीयकसायाण' द्रमकश्च है अपच्चक्खाणनामगाणं, 'उवसमखएणं'ति खओवसमेण पढमवयलाभो, एवं सवाणवि मुसावायाईणं वयाणं लाभो होइति । संपयं दोसदारं
"पाणाइवायअनियत्तणमि इहलोयपरभवे दोसा। पइमारिया य एत्थं जत्तादमगो य दिटुंता ॥१॥" भावत्थो अक्खाणगाणुसारेण नेयहो, तत्थ पढमं इम-एगो मरुओ अज्झावओ, तस्स तरुणी महिला, सा बलिं वहसदेवं करती भणइ-' अहं कागाण बीहेमि 'त्ति, ततो उवज्झायनिउत्ता चट्टा दिणे दिणे धणुगेहिं गहिएहिं रक्खंति, बलिं वइसदेवं करेति, तत्थेगो चट्टो चिंतेइ-न एसा मुद्धा जा कागाण बीहेति असतिया एसा, सो य तं परिचरइ, सा य नम्मयाए पारकूले पिंडारो तेण समं संपलग्गिया, अन्नया नम्मयं घडएण तरंती पिंडारसगासं वचति, चोरा य उत्तरंति, तेसिमेगो सुंसुमारेण गहिओ, सो रडति, ताए भन्नइ-अच्छि ढकेहित्ति, दंकिए मुक्को, तीए भणिया-किं व कुतिस्थेण उचिन्ना? सो खंडितो तं ॥५३॥
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भावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
प्राणातिपातविरमणे गुणयतनाद्वारद्वयम्
॥५४॥
सुणेतो चेच नियत्तो, वितियदिवसे बलिं करेति, तस्स य चट्टस्म रक्खणवारओ, तेण भण्णइ-"दिया कागाण बीहेसि रत्ति तरसि नम्मयं । कुतित्थाणि य जाणासि अच्छीणं ढंकणाणि य ॥१॥" तीए भण्णति-किं करेमि? तुम्हारिसा मे णेच्छंति, सा तं उवचरति भणति य-' ममं इच्छसु 'त्ति, सो भणइ-कहं उवज्झायस्स पुरओ ठाइस्संति, तीए चिंतियं मारेमि एवं अज्झावगं, तो मे एस भत्ता भविस्सतित्ति, मारि पिडियाए छुहेऊण अडवीए उज्झिउमारद्धो, वाणमंतरीए थंभिया, अडवीए भमिउमारद्धा, छहं न सकेति अहियासेउ, तं च से कुणिमं गलति उवरिं, लोगेण हीलिजति-पतिमारिया हिंडतीति, तीसे पुणरावत्ती जाता, ताहे सा भणति-देह अम्मो ! पतिमारियाए भिक्खंति, एवं बहुकाले गए अन्नया साहुणीणं पाएसु पडंतीए पेडिया पडिया वत्तिणी जाया । जत्तादमगक्खाणयं-" भोगे अभुंजमाणावि केइ मोहा पडंति अहरगई। कुविओ | आहारथी जत्ताए जणस्स दमगोच ।। १ ॥ "त्ति उवएसमालागाहाए दट्ठवं । अण्णं च हिंसगो इहेव वहबंधपरिकिलेसाइणि दुक्खाणि लहइ, परलोगे य असुभगई जाइ गरहिओ य भवइ । तहा-" पाणवहे वटुंता भमंति भीमासु गम्भवसहीसु । संसारमंडलगया नरगतिरिक्खासु जोणीसु ॥१॥" एवमाई दोसा । संपयं गुणदारं-जीवे अवतस्स इमे गुणा-"दीहाउओ सरूवो नीरोगी होइ अभयदाणेण । जंमंतरेऽवि जीवो सयलजणसलाहणिजो य ॥१॥" एवमाइ । संपयं जयणा-" परिसुद्धजलगहणं दारुयधन्नाइयाण य तहेव । गहियाण य परिभोगो विहीए तसरक्खणडाए ॥१॥" परिसुद्धजलगहणं-वत्थगालियतसरहियसलिलगहणं, दारुधन्नाइयाणं च तहेव-परिसुद्धाणं-अनील अजिन्नाणं दारुगाणं अकीडविद्धधनस्स य गहणं कायवं, आइसदाउ असंसत्तफलाइया दहव्वा, गहियाणपि परिभोगो विहिणा परिमियपडिलेहियाइणा
HOCACHECCASCCSCRECOREGAON
॥ ५४॥
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भावधर्मबाशकचूर्णिः
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कायहो, तसरक्खणट्टाए-बेइंदियाइरक्खणनिमित्तं । तहा गमणागमणाइयंपि तसहरियाइ जहसत्तीए रक्खते काय.
प्रथम जओ-"जयणा उ धम्मजणणी जयणा धम्मस्स पालणी चेव । तव्बुड्डिकरी जयणा एगंतसुहावहा जयणा ॥१॥DI
व्रतस्याजयणाए बमाणो जीवो संमत्तनाणचरणाणं । सद्धाबोहासेवणभावेणाराहगो भणिओ ॥ २॥ रागहोस विउत्तो जोगो || तिचारा असढस्स होइ जयणा उ । रागद्दोसाणुगओ जो जोगो सो अजयणा उ ॥३॥" संपयं अइयारा भन्नति
बंधवहछविच्छेयं अइयभारं भत्तपाणवोच्छेयं । कोहाइदूसियमणो गोमणुयाईण नो कुणइ ॥१०॥
बंधो-रज्जुदामगाईहिं बंधणं १, वहो-कसलयाईहिं हणणं, बंधवहं न करेतित्ति संबज्झइ २, छवी-सरीरं तस्स छेदो कत्तिगाइहिं कत्तणं छविच्छेदो तं न करेति ३, अईव भारो-अइमारो, बहुगरस पूगफलाइदवस गवादिपिट्ठादिस आरोवणं ४, भत्तं-भोयणं पाणं-उदगं तेसिं वोच्छेओ भत्तपाणवुच्छेओ तं च ५, एवं सामन्नेणं बंधाईणं निसेहे कए | पियपत्ताईणं विणयगाहणरोगविगिच्छाइसुवि बंधाइसु कीरमाणेसु जा वयविराहणा पावह, तन्निसेहणत्थं भन्नइ-'कोहाइदसियमणो'त्ति कोहलोमाइकसायकलंकियचित्तो जीवघायनिरवेक्खो इत्यर्थः । सावेक्खस्स पुण बंधाइकरणेऽवि सदयत्तणेण नाहयारोत्ति भणिय होइ, 'गोमणुयाईणं' ति बलीबद्दमाणुसाईणं, आइसहाओ खरतुरगकरहाईणो घेपति. नो कुणइ-न करेति । एत्थ य आवस्सगचुणिमाइसु भणिओ एस विही-"बंधो दुपयाण चउप्पयाण वा होइ. सोऽवि अढाए अणढाए वा, तत्थ अणट्ठाए ताव बंधो काउंन कप्पइ (जुज्झइ), अट्ठाए पुण बंधो दुविहो होइ, सावेक्खो का॥५५॥
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प्रथमव्रतस्यातिचाराः
श्रावकधर्म-है| निरविक्खो य, तत्थ निरवेक्खो नाम जं निच्चलं धणियं बज्झइ, सावेक्खो पुण जं दामगंठिणा जं च सक्किाइ पलीवण-18 पञ्चाशक- गाईसु मोइउं वा छिदिउं वा तह संसरपासएण बंधियत्वं एवं ताव चउप्पयाणं बंधो। तहा दुपयाणंपि दासो वा चूर्णिः । | दासी वा चोरो वा पढणाइपमत्तपुत्तो वा जइ बज्झइ, तया सविकमो चेव सचेट्ठो चेव बंधणीओ रक्खियत्वो य, जहा
अग्गिभयाइसु न विणस्सइ । तहा ताणि किर दुपयचउप्पयाणि सावगेण संगहेयवाणि जाणि अबद्धाणि चेव अच्छंति । ॥५६॥
वहोवि तहेव । नवरं निरवेक्खवहो-निद्दयताडणं, सावेक्खवहो पुण एवं-पुत्वमेव भीयपरिसेण सावगेण होयवं, जइ पुण न करेति कोऽवि विणयं तया मम्माणि मोत्तूण लयाए दोरेण वा एकं वा दोनि वा वारे तालिञ्जति । छविच्छेदोऽवि तहेव नवरं निरवेक्खो जं हत्थपायकमनकाह निद्दयं छिंदह । सावेक्खो पुण जं गंडं वा अरुयं वा छिदेज वा दहेज वा । तहा अइमारो न आरोवेयो। पुष्विं चेव जा दुपयाइवहणेण जीविया सा सावगेण मोत्तवा। अह अन्ना जीविगा न होजा, तया दुपओ जं भारं सयं उक्खिबइ ओवारेइ वा तं वाहिजइ । चउप्पयाणंपि जहोचियाओवि माराओ किंचि ऊणओ कीरइ । हलसगडाइसु पुण उचियवेलाए मेलेइ । तहा भत्तपाणवोच्छेउ न कस्सवि कायबो, तिक्खछुहो मा मरिज । सोऽवि अट्ठाणट्ठाइ भेओ जहा बंधो तहा दट्टवो, नवरं सावेक्खो रोगतिगिच्छानिमित्तं भत्तपाणवोच्छेओ होइ, अबराहकारिंमि वायाए चेव भणेज अज ते भोयणाइ न देमित्ति, संतिनिमित्तं वा उववासं कारवेजा, किं बहुणा ? जहा थूलगपाणाइवायवयस्स अइयारो न होइ, तहा सव्वत्थ जयणाए जइयत्वंति । बंधाइगहणं च उवलक्खणं तेण मंततंतपओगादी अन्नेऽवि एत्थ अइयारा दट्ठव्वा । इमा य अइयारमावणा-इह दुविहं वयं होइ, भावओ दवओ य, तत्थ भावओ जया मारयामित्ति विगप्परहिओ कोहाइआवेसेण य
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॥५६॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः । ॥ ५७॥
जीवघायं अविगणंतो बंधाइसु पवइ, न य जीवविणासो होइ, तया दयाअभावाओ विरइनिरवेक्खस्स भावओ वयभंगो होइ, मिषावादजीवविणासाऽभावओ ण य दवओ सजं ( भग्गं) वयं, तओ एगदेसस्स भंगे एगदेसस्स य अभंगे भंगाभंगरूवो अइयारो होइत्ति ॥१०॥ संपयं भंगो, सो पुण इमो-"जीववहं इच्छंतो जइ बंधाई समायरइ को वा। जीववहे अवहे वा तइया भंगो भवे नियमा ॥१॥ वहभावाभावेऽवि हु कोहाईहिं उ जया उबंधाई । कुणमाणो जीववहं करेइ तहयावि भंगो उ ॥२॥" भावणा पुण-"पणमामि अहं निच्चं आरंभविवजियाण विमलाणं । सबजगजीवरक्खणसमुन्जयाण मुणिगणाणं ॥१॥" तहा"सवेसिं साहूणं नमामि जेसिं तु नत्थि तं कर्ज । जत्थ भवे परपीडा एवं च मणेण चिंतेजा ॥२॥" एवमाइ । भणियं पढमाणुब्वयं । इयाणिं बीयं भण्णइ__ तत्थ मुसावायसरूवं ताव दंसिजइ “अणहुयं उब्भावह भूयं निण्हवइ तहय विवरीयं । गरिहा सावजं वा अलियं एवमाइरूवं तु ॥१॥" अणहुयं-अभूयं अविजमाणं उम्भावइ-पगासेइ, जहा सामागतंदुलमेत्तो आया, निडालदेसत्थो हिययत्थो सबवावगो वा एवमादि । जइ सामागतन्दुलमेत्तो निडालदेसत्थो वा होजा तया सबसरीरे सुहदुक्खाणुभवो न भवेजा सबजगवावगत्ते सबत्यसरीरोवलंभो सुहृदुक्खाणुभवो य होजत्ति, न य एवं दीसइ, तम्हा अलियमेयंति । तहा भूयनिहवो, जहा-नत्थि आया, नस्थि परलोगो एवमादि । तहा विवरीयं-बलिवई अस्सं भणति एवमादि । तहा गरिहा-काणो, अंधो, खुञ्जो, दासो एवमाइ। सावजं, जहा-दमिजंतु गोणगा एवमाइयं अलियं जं भण्णइ, तं मुसावायसरूवं, आइसद्दाओ जेण जेण भासिएणं अपणो परस्स वा उवयाओ अइसंकिलेसो वा होजा तंपि दद्वत्वं ति । एवंविहस्स मुसावायस्स निवित्ती
॥ ५७॥
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खाणमालमेलो निडालासेह, जहा
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बाक्कधर्मपशाशक चूर्णिः ।
मृषावादख पंचभेदाः
॥५८॥
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मुसावायवयस्स सरूवं होइ, तप्पदरिसणस्थमाहथलमुसावायस्स य विरई सो य पंचहा समासेणं । कन्नागोभूमालियणासहरणकूडसक्वेनं ॥ ११॥
थलमसावायरस विरई विइयाणुव्वयं होइ। तत्थ दुविहो मुसाबाओ-थूलो सुहुमो य। तत्थ पस्थूिलविसओ अइदुगुविवक्खासमुन्भवो थूलमुसाबाओ। अमो गुहुमप्पयत्थविसओ अदुट्ठविवक्खासमुम्भवो हासखेड्डाइगो सुहुमो, सो इह नाहिगओ, महत्वयविसउत्तिकाउं, एत्तिएण वयसरूवं भणियं । सेसेहिं सुत्तावयवेहिं भेया भन्नति-'सो'त्ति थूलमुसावाओ पंचहा-पंचभेदा, समासेणंति संखेवेणं, सेस भेया सव्वेवि एएसु चेव पविसतित्तिकाउं, पंचपगारत्तमेव भन्नइ-'कन्नागोभूमालियनासहरणकूडसक्खेज़ 'ति कन्नालियं १ गवालियं २ भूमालियं ३ रक्खणनिमित्तं अन्नेसि जं स्वगाह अप्पिजइ सो नासो बुच्चइ, तस्स हरणं नासहरणं ४ कूडसक्खेजंति-अलियसक्खिजदाणं ५। तत्थ कन्नालियंअमिनकन मिन्नकन्न भणेइ (मिन्नकन्नं अभिन्नकन्नं भणइ), कन्नागहणं उवलक्खणं तेण कुमाराइदुपयविसयाणि सबालीयाणि एत्थ दत्वाणि । गवालीयं-पुण अप्पखीरं गावि बहुखीरं भणइ, बहुखीरं वा अप्पखीरं, एयपि सत्वचउप्पयमुसाबाय उवलक्खणं । भूमिअलियं-पुण परसंनियंपि भूमि आयसंतियं भणइ, भूमिगहणं पुण सेसपुढवाइअपयदवविसयमुसावायउवलक्खणं । ननु दुपय चउप्पय अपयगहणमेव सुत्ते आयरिएण केण कारणेण न कयं ?, एत्थ भन्नइ-कन्नागोभूमिअलियाणि लोए अइगरहियाणि, तेण तेसिं गहणं कयंति । नासहरणं अदत्तादाणसरूवं, तत्थ य अवलवणवयणं मुसाबाओ, एवं च एएण चेत्र विसेसेण पुचअलीगेहिंतो मेएण भणियं । कूडसक्खेजं पुण लंबा(चा)मच्छराईहिं अभिभूतो पमाणीको 1
॥५८॥
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भावकधीपश्चाशकचूर्णिः ।
असत्यवचनस्य दोषाः सत्यस्य गुणाश्च
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| कड भणह-जहा एयस्स अहं एयमि विवादे सक्खिगो, एयं च परसंबंधिपावसमस्थणासरूवं विसेसं पडच पच्छिमेहिंतो मेण्ण भणियंति । जहा जायइत्ति पुत्वं भणियमेव । दोसा इमे-"जज बच्चइ जाई अप्पियवाई तर्हि तहिं होह। न य सुणड सहे सहे सणह असोयबए सद्दे ॥१॥ हीणस्सरद्दीणस्सरभिन्नस्सरअप्पियस्सरा चेव । होति य अगेज्झषयणा अलिएण परं उवहर्णता ॥२॥" हीणस्सरा-लहुयसरा, दीणस्सरा-दयाजणगसद्दा, भिन्नस्सरा-खाहुलसद्दा, अपियस्सरा-अणिसरा । तहा-" दम्गंधो पुइमुहो अणिढवयणो य फरुसवयणो अ । जलएलमयमम्मण अलियवयणपणे दोसा ॥१॥" दग्गंधोसरीरेण, पुहमहो-दग्गंधवयणो, जलत्ति जलमूगो, एलत्ति एलमूगो, जहा जलमूओ जलबुडो व बुडबुडे एरिसोधणी जस्स सो. एलगो जहा पुण बुन्धुयई एलमूओ, मम्मणो जस्स भासंतस्स वायाउ खंचिजह । मुसावायं अभासंतस्स इमे गुणा-"मंति नईवेगे साब देति गगणेण वच्चंति । कंपति माणुसा देवया य सच्चेण संजुत्ता ॥ १॥ सच्चेण परिगहियं न डहइ अग्गी विसं न मारे । न वहंति आउहाई कह नाम न उत्तम सचं? ॥ २॥ विजाओ (सबा उ) मंतजोगा सिझंती धम्मअत्थकामा य । सच्चेण परिम्गहिया रोगा सोगा य नस्संति ॥ ३॥ सच्चं सग्गद्दारं सचमत्तसमग(१) तवोकंमं । सच्चं जसस्स मलं सर्च सिद्धीए सोवाण ||३||" एवमाइ, जयणा पुण एवं-"जइवि गिही अनियत्तो निचं भयकोहलोहहासेसु । नाइपमचो तेसविन होज किंचि भणओ य ॥१॥ किंतु-बुद्धीऍ निएऊण भासेजा उभयलोगपरिसुद्ध। सपरोभयाण जं खलु न सबहा पीडजणगं तु ॥ २॥" संपयं अइयारा भन्नति
इह सहसम्भक्खाणं रहसा य सदारमंतभेयं च । मोसोवएसयं कूडलेहकरणं च वजेइ ॥११॥
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मृषावाद
व्रताति
चारा:
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श्रावकधर्म- इहत्ति-थूलमुसावायविरइए, सहसा-अणालोचिऊण, अन्भक्खाणं-असंतदोसारोवणं, जहा-चोरो तुमं पारदारिगो पश्चाशक-IN
वा एवमादि, तं वजेइत्ति । तहा रहसा-एगंतेण हेउणा अब्भक्खाणं रहसम्मक्खाणं, कि भणिय होइ ? भन्नइ-एगते मंतमाणे चूर्णिः भणइ-एते हि इमं च इमं च रायविरुद्धाइयं मंतति । तहा सदारमंतभेदंति सकलत्तण गुत्तभासियस्स अन्नेसिं कहणंति ।
दारगहणं मित्ताइ उवलक्खणनिमित्तं । तहा मोसोवएसयंति-अलियमुबएसं देइ, इम एवं च २ भणाहि एवमाइयं, असच्चा॥६०॥
भिहाणसिक्खवणं इत्यर्थः। तहा कूडलेहकरणंति-अलियक्खरलिहणं, तं च वजेइ-परिहाइ । जओ एयाणि समायरंतो अइयरइ बिइयाणुव्वयंति । नणु आइमाणं दोण्हं अइयाराणं न परोप्परं विसेसो अस्थि, दोसुवि असंतदोसारोवणं तुल्लंतिकाउं । सच्चमेयं, नत्थि विसेसो, नवरं रहसम्भक्खाणं एगंतमंतनिमित्तवियक्कमेत्तपुत्वगं [परियापुत्वगं] इत्यर्थः संभवंतदोसाभिहाणं, सहसभक्खाण तु अवियकपुवगमेव, अओ परोप्परं विसेसो। नणु अभक्खाणं असंतदोसाभिहाणसरूवं, तं पुण पच्चक्खायमेव तओ तम्भणणे भंगो चेव, न पुण अइयारो ? सच्चमेयं, केवलं जया परोवघायगं वयणं अणाभोगाइणा भणइ, तया संकिलेसाभावातो विरइसावेक्खस्स न वयस्स भंगो, परोवघाय हे उत्तणेण य भंगो य, अओ भंगाभंगरूवो अइयारो । जया पुण | तिवसंकिलेसेण अभक्खाणं देह, तया भंग एव, वयनिरवेक्खोतिकाउं। जो भणियं-" सहसब्भक्खाणाई जाणतो जइ
करेन्ज तो भंगो । जइ पुणऽणाभोगाईहिंतो तो होइ अइयारो॥१॥"सदारमंतभेदो पुण अणुवादसरूवत्तणेण सच्चोचिकाउं, | जइवि अइयारो न घडइ, तहावि मंतियत्थपगासणजणियलआइणा सदाराइमरणाइसंभवेण परमत्थेण असञ्चमेयं तओ भंगा. | भंगरूवोत्तिकाउं अइयारो चेव । तहा मोसोवएसो जइवि मुसं न भणावेमि एयंमि वए १, न भणामि न भणावेमि एयमि य २
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
अदत्तं चतुर्भेदम्
॥ ६१॥
भंग एव । मुसं न भणामित्ति एयमि पुण न किंचि, न भंगो, न यावि अइयारो, तहावि सहसाकारणाभोगेहिं अइकमवइक्कमअइयारेहिं वा पढमवयदुगस मुसावाए परंपयट्टावेतस्स अइयारो होइत्ति । अहवा वयसंरक्खणबुद्धीए परवुत्तंतकहणदुवारेण मोसोवएसं देंतस्स अइयारो, वयसायेक्खत्तणेण मुसाबाए परपवत्तणेण य भङ्गाभङ्गरूवं वयंतिकाउं। कूडलेहकरण | तु जइवि काएण मुसावायं न करेमित्ति एयस्स वयस्स, काएण न करेमि न कारवेमित्ति एयरस वा वयस्स भंग एव, एयबयपगारंतरे पुण न किंचिवि, तहावि सहसाकाराइणा अइक्कमाइणा वा अइयारो। अहवा मुसावाउत्ति मुसाभणणं मए पच्चक्खायं, एयं पुण लिहणं, एवंविहभावणाए मुद्धबुद्धिस्स वयसावेक्खस्स अइयारोत्ति | भंगो अइयारभावणाउ भणिओ। भावणा पुण इमा-"तेसिं नमामि पयओ साहणं गुणसहस्सकलियाणं । जेसि मुहाउ निच्चं सच्चं अमयं व पज्झरइ ॥१॥"त्ति भणियं बीयाणुव्वयं । संपयं तइयं भन्नड, तत्थ अदत्तादाणसरूवं ताव निरूविजह
"सामीजीवादत्तं तित्थयरेणं तहेव य गुरूहिं । एयमदत्तसरूवं परूवियं आगमधरेहि ॥ १॥" सामिअदत्तं जीवअदत्तं तित्थगरअदत्तं गुरुअदत्तं च, तत्थ जं वत्थु हिरन्नाइयं सामिणा सयं न दिन्नं तं सामिअदत्तं, जे पुण पसुमाई जीवरूवं नियगं कोइ विणासेइ तं तस्स जीवादत्तं, जओ तेण पसुमाइणा जीवेण न खलु नियपाणा तस्स विणासणत्थं दिन्ना, सवे जीवा पियपाणत्तिकाउं, जओ भणियं-'सब्वे जीवावि इच्छंति, जीविउं न मरिजिउं 'ति, तित्थयरेण अदत्तं तित्थयरादत्तं जं घरसामिणा आहाकम्माइ दिन्नपि तित्थयरेण अणणुनायं घेप्पइ तं तित्थयरेण अदत्तंति, तहा-गुरुअदत्तं-जं बायालीसदोसविशुद्धपि गुरूणं अणणुमईए परिभुजइ तं गुरुअदत्तंति, जओ भणियं-'सतविहालोयविवज्जिए भुंजमाणस्स
पं. ६
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
आलोकस्य सप्तभेदाः
॥६२॥
तेणियं होइ' सत्तविहालोगो पुण इमो-"ठाण १ दिसि २ पगासणया ३ भायण ४ पक्खेवणा य ५ गुरु ६ भावे ७। सत्तविहो आलोगो सयावि जयणा सुविहियाण ॥१॥"ति, इह दुविहा साहुणो भवंति मंडकिउवजीविणो मंडलिअणुवजीविणो य, उपजीविणो पसिद्धा, अणुवजीविणो इमे-" आगाढजोगवाही निझूढत्तठिया अ पाहुणगा। सेहा सपायच्छित्ता वाला वुड्डेवमाईया ॥१॥" आगाढजोगवाहिणो-गणिजोमवाहिणो, ते मंडलिं नोवजीवंति, निज्मूढत्ति अमणुन्ना कारणंतरेण अच्छंति, तेवि पुढो भुंजंति, अत्तद्विगा य पुढो भुंजंति, जेण ते अन्नस्स न किंचि विगिण्हंति, तहा पाहुणगा पुढो भुंजंति जओ तेसिं पढममेव पाउग्गं पडिपुग्नं दिजइ अओ ते एगागिणो
HAAFRAMA RIMEAfrics gal सुनाdिfilande BाEिRadiपाया RammandA HAE.PaaheAE HyHMEANSinास'
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त्ति, एवमादीयत्ति आदिसहाओ कुट्ठवाहिउवहुया घेप्पंति । ते य भुंजंता आलोगें मुंजंति, सो पुण दुविहो जहा-" दुविहो खलु आलोगो दवे भावे य दवि दीवाई । सत्तविहो पुण भावे आलोगो तं पुण कहेह ।। १॥" ठाणगाहाए एयाए इमाओ
१ आगमोद्धारकश्रीमद्-आनन्दसागरसूरीश्वरस्य हस्ताक्षराणि ।
। अवमादीयानि धादिपदाचोदे वाड्याशिवबा घुणपति व से या मांजतापुणालोगे संजति, सो गुण हाइो बहार विडो
॥६२॥
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भावधर्म-* पशाशक
आलोकस्य सप्तमेदाः
चूर्णि
॥६३॥
वक्खाणगाहाओ-" निक्खमपवेसमंडलि सागारियठाण परिहरिय ठाइ । मा एगासणभंगो अहिगरण अंतरायं वा ॥१॥" निक्खमपवेसा वञ्जिऊण उवविसं ति, तहा मंडलिपवेसं च वजंति, तहा सागारियठाणं च परिहरि मुंजंति, मा सागारिए समागए एक्कासणभंगो भवेजा, अधिकरणं वा अन्नण पवइएण सह, अट्ठाणे उवविसिउं भुजंतस्स अंतराय च भवइ, कह?. सो साहू अन्नस्स ठाणे उवविट्ठो, सोवि साहू आगओ पडिक्खंतो अच्छंति, एवं च अंतराइयं कम्मं बज्झइ । इयाणि दिसित्ति" पच्चुरसि परम्मुहपट्टि पक्खए या दिसा विवज्जेत्ता । ईसाणग्गेईय ठाएज गुरुस्स गुणकलिओ॥१॥" पच्चुरसित्ति गुरुअभिमुहं वजेउंति भणियं होइ, सेसं सुगमं । इयाणि पगासणयत्ति-"मच्छियकंटाईणं तु जाणणट्ठा पगासमुंजणया। गललग्गणठिदोसा वागुलिदोसा जढा एवं ॥१॥" सुगमा, एवं इयाणिं भायणत्ति-"जे चेव अंधयारि दोसाते चेव संकडमुहंमि । परिसाडी बहुलेवाडणं च तम्हा पगासमुहे ।। १ ॥ पुव सुगम, वियद्धेण अहिगदोसे भणइ-परिसाडिन्ति बाहिं छडिज्जइ, बहुलेवाडणं चत्ति बहु( वड्व)विच्चं खरंटिजइ, हत्थस्स उवरिपि भुजंतस्स संकडे, तम्हा पगासमुहे भायणे भोत्तवंति । इयाणि पक्खे. वणत्ति-'कुकडिअंडगमेतं अविगियवयणो उ पक्खिवे कवलो' सुगमं । इयाणि गुरुत्ति-'अइखद्ध कारगं वा जंच अणालोइयं होजा ।' गुरुस्स आलोए भोत्तवं, जइ पुण गुरुदरिसणपहे न भुंजइ, ततो कयाइवि अइखद्धं-अइबहुगं भक्खेजा निस्संकोत्तिकाउं पच्छा गिलाणो भवेजा, अपडुसरीरो य गुरुअदरिसणपहे भुंजतो कयावि अकारगं-अपत्थंति भुजेजा निव्भउत्तिकाउं, कयावि भिक्खामडतेण निद्धमहुरं दवं लद्धं भवेजा, तं च अणालोइयंपि भुजेज्जा एगते, मा ममं आयरिओ निवारिहित्ति, अओ एएसिं जाणणट्ठा गुरु पालोए तओ उवभुंजेजा, जेण गुरुसमीवत्थं भुंजंतं दर्दु पउरं भक्खेंतं निवारेइ, तहा
॥६३॥
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तृतीयाणु
व्रत
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः ॥ ६४ ॥
स्वरूपम्
DCROCE%ACAC5%95525%
अणालोइयं चोरियत खायत निवारेइ, मा अनिवारणे अजिन्नाइदोसा भवेज्जा । इयाणि भावेत्ति नाणाइसंधणट्ठा न वनबलरूवविसयट्ठा । नाणाईणं तुटुंताणं संधणनिमित्तं भुजिज्जइ, न वन्नट्ठा वनो-गोरत्तं मम होउत्ति, एयनिमित्तं न भुजेजा, एवं बलरूवनिमित्तमवि, उवचियमंससोणिओ बलवं रूववं च भविस्सामित्ति, एयमट्ठपि न झुंजेजा, तहा विसयट्ठा-मेहुणासेवणनिमित्तं न भोत्तवंति, एयं सामनेण अदत्तसरूवं भणियं । संपयं एयस्स विरई भन्ना
थूलअदत्तादाणे विरई तं दुविहमो उ निद्दिढें । सचित्ताचित्तेसुं लवणहिरन्नाइवत्थुगयं ॥ १३ ॥
थूलअदत्तादाणेत्ति इह अदत्तादाणं दुविहं होइ-थूलं सुहुमंच, तत्थ परिथूलवत्थुविसयं चोरंकारकारणं धूलं,तविवरीयं सुहुमं, तत्थ चुन्नी-"थूलगअदत्तादाणं नाम जेण चोरसद्दो होइ, तं परिहरियवं, चोरबुद्धीए अप्पं जणवादसामन्नं पच्चक्खाइ, खेत्ते वा खले वा पंथे वा न गिव्हियवं, जे पुण लेडगाइ अणणुनवेत्ता गेहइ, तं सुहुमंति ।" तत्थ थूलादत्तदाणे विरई-निवित्ती तइयमणुवइयं होइत्ति, एवं वयसरूवं । तं पुण अदत्तादाणं दुविहं-दुभेयं, 'मो'इति पायपूरणे, तुसद्दो पुणसहत्थे, निद्दिट्ठ-कहियं आगमे, दुप्पगारत्तमेव भन्नइ-सच्चिताचित्तेसुत्ति, सचेयणवत्थुविसयं अचेयणवत्थुविसयं च, एयं चेव आहरणेहिं भन्नइलवणहिरन्नाइवत्थुगयंति लवणं-लोणं, हिरन-सुवनं, एकमाइवत्थुगयं-एवमादिपयत्थविसयं, तत्थ लवणसद्देण सचित्तादत्तादाणोदाहरणं भणियं, हिरनसद्देणाचित्तादत्तादाणोदाहरणं भणियं, आइसदेण आसवत्थाई घेप्पंति । मिस्सादत्तादाणं तु एएसु चेव निवडइ, तेण भिन्नं न भणियं ॥ १३ ॥ एएण मेयद्दारं वक्खाणियं । अदत्तहारिस्स इमे दोसा-"दुक्खज्जियं च दवं बहूहिं परिपिंडियं उवाएहिं । हरइ परस्स अकरुणो, कह नाम न दारुणो चोरो ॥१॥ काऊण चोरियाओ वच्च नरएसु I
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श्रावकधर्म पश्चाशकचूर्णिः
अदत्तग्रहणस्य
दोषाः तद्विरवस्य च गुणाः
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ASHRSHANGAREKAS
निरभिरामेसु । अणुभवइ चोरियाए पुप्फ च फलं च चिरकालं ॥२॥ जइवि न पावह मरणं, पावइ जाजीवियं परिकिलेसं । चारगवंधणमोडणनगपाडणकक्खडं दुक्खं ॥३॥ रूढनहकेसममूविडमुचमि नियगंमि लोलंतो। नियलजुयलसंदाणो सोयइ बहुवेयणो निच्चं ॥ ४ ॥ चंडभडबद्धकक्खडखरफरुसपहारसद्दवित्तत्थो । अणुबद्धखुप्पिवाहसीयदुक्खदुओ निचं ॥५॥ चोरिकं कुणमाणो नियगजणे परजणे परियणे य । होइ अवीससणिजो पुरिसो कम्माणुभावणं ॥ ६ ॥ उग्घोसणं च पावई तिए तिए चच्चरे चउके य । छयणभेयणमारणसूणरुहणं च सो लहइ ॥ ७॥ परधणहरणपरत्तो विमाणणसएहिं मारिओ संतो । नरगमि पुणो पावइ दुक्खसहस्साई णेगाई॥ ८॥ करकयविकत्तणं कंडुपायणं सामलीसु आरुहणं । असिपत्तवणच्छेजं कोलसुणगभक्खणं चेव ॥ ९॥ वेयरणीउत्तरणं डहणं च कलंबवालुगापुलिणे । लोहरसतत्तपाणं तंवतउयतत्तपाणं च ॥ १० ॥ एयाणि य अन्नाणि य बहणि पावेंति ते दहसयाइं। जे अविरया मणुस्सा परधणहरणप्पसंगाओ ॥ ११॥" अदत्तादाणविरयस्स इमे गुणा-"जेसिं चोरेउं जे पञ्चक्खाणं इममि लोगमि । बहुरत्तरयणभरिए कुलंमि सो जायई विउले ॥१॥ लोहीलोहकडाहं दासीदासं च जाणजोगं च । अवकिन्नपि न हीरइ अचोरियाए फलं एयं ॥ २॥ खेत्ते खले य रन्ने दिया व राओ व सत्थघाए वा । अत्थो से न विणस्सइ अचोरियाए फलं एयं ॥३॥ गामागरनगराणं दोणमुहमडंबपट्टणाणं च । सुइरं हवंति सामी अचोरियाए फलं एयं ॥ ४॥" एत्थ गुणदोसेसु एग चेव उदाहरण-जहा एगा गोडी, सावगोवि ताए गोट्ठीए कहवि मिलिओ, एगस्थ य पगरण वदृति, जणे गए गोहिल्लएहिं घरं पेल्लियं, थेरीए एकेको मोरपिच्छेण पाए पडतीए अंकिओ, पभाए रन्नो निवेदितं, राया भणति-कहं ते जाणियवा ?, थेरी भणति-मए पाएसु अंकिया नगरसमागमे दिट्ठा
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श्रावधर्मपञ्चाशक
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॥६६॥
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| दो तिन्नि चत्तारि, सबा गोट्ठी गहिया, एगो सावगो भणति न हरामि न लंच्छितो, तेहिं वि भणियं-न एस हरति, मुक्को,
तृतीया| इयरे सासिया । अविय सावगेण गोढि न पविसियत्वं, जइ किहवि पओयणे पविसति तो ओहारगं हिंसादि न देति, न य तेसिं 17
णुव्रतस्य आओगट्ठाणेसु ठाति । इयाणिं जयणा दंसिआइ-"उचियकलं मोत्तूणं दवाइकमागयं च उक्करिसं । निवडियमविजाणंतो परस्स
यतना संतं न गेण्हेजा ॥१॥" उचियकला-पंचगसयबुड्डिमाइसरूवा, तं मोत्तूण सेसं परस्स संतं न गेण्हेजा, दवं-गणिमधरिमाइ, आईसदाउ एएसिं चेव सगयभेदा अणेगे लभंति, तेसिं दवाणं कमेण-दवक्खयलक्खणेण आगओ-संपन्नो जो उक्करिसोअग्धड्डिसरूवो तं च मोत्तूणं, किं भणिय होइ ? भन्नइ-जइ कहिंचि पूगफलाईणं दवाणं खयाओ दुगुणाइलाभो होइ, तं अदुहृज्झवसाओ गिण्हइ, न पुण एवं चिंतेइ-सुन्दरं संजायं जं पूगफलाईणं खयाओ संवुत्तोत्ति । तहा निवडियमवि परस्स संतं जाणतो न गेण्हेजा । एत्थ एस भावत्थो-सव्वत्थ गणिमधरिमाईणं कयविक्कयाइसु कलंतराइसु य देसकालादि अवेक्खाए | जो उचिओ सिट्ठजणअनिदिओ लाभो सो चेव गहेयवो, न पुण दसेगादसिगादित्ति । संपयं अस्स अइयारा भन्नति
वजह इह तेणाहडतकरजोगं विरुद्धरजं च । कूडतुलकूडमाणं तप्पडिरूवं च ववहारं ॥ १४॥ __ वजइ-परिहरइ, तेनाहडंति तेना-चोरा तेहिं आहडं-आणीयं किंचि कंकुमाइ तेनाहडं तकरजोगति तकरा-चोरा तेसिं जोगो-हरणकिरियाए पेरणं हरह तुझेत्ति अणुन्ना तकरजोगो । तहा विरुद्धरजंति विरुद्धो-सदेसराइणो सत्तू तस्स रजं. कडगं देनो वा विरुद्धं रजं तं वजेइ, न तत्थ वच्चइ । चसदो समुच्चए। तहा कूडतूलकूडमाणंति कूडा-पसिद्धसभावावेक्खाए ऊणा अहिया वा तुला कूडतुला, कूडमाणं च हीण महियं वा कुडवाइ, तं वजेइ । तहा तप्पडिरूवववहारंति तेण-विकिणि
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मानकधमेंपञ्चाशकचूर्णि।
तृतीयाणुव्रतातीचारा
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अंतेण बीहिमाइणा घयाइणा वा पडिरूवं-सरिसं पलंजिमाइ वसाइ वा दवं जत्थ ववहारे स तप्पडिरूवो, अहवा सुवन्नकंकमकप्पूरमुत्ताहलादिसरिसेण जुत्तिसुवन्नकुंकुमकप्पूरमुत्ताहलाइणा दवेण जो ववहारो सो तप्पडिरूवववहारो तं बजेह । जओ एयाणि समायरंतो अतियरति तइयाणुव्वयं । अतियारभावणा य एवं-तेणाहडं काणकरण लोभदोसेण पण्णं गेहंतो चोरो होइ,जओ भणियं"चोरो चोरावगो मंती, भेयण्णु काणगकयी। अन्नदो ठाणदो चेव, चोरो सत्तविहो मतो ॥ १॥" ततो चोरियाकरणेण वयभंगो, वणिजमेव अहं करेमि न चोरियंति अणेण अज्झवसाएण य वयसावेक्खोत्तिकाउंन वयभंगो, अओ भंगाभंगरूवो अइयारो। तकरपओगो पुण जइवि चोरियं न करेमि, न कारवेमित्ति, एवं पडिवन्नवयस्स भंग एव, तहावि किं अहुणा तुम्हे निबावारा अच्छह ?, जह तुम्हाणं संबलगाई णत्थि तं अहं देमि, तुम्हेहिं आणियमोसस्स वा जइ विकायगो नत्थि तया अहं विक्कयं करिस्सामित्ति, एवंविहवयणेहिं चोरे वावारंतस्स सकप्पणाए चोरवावारणं परिहरंतस्स वयसावेक्खस्स अइयारोत्ति | विरुद्धरजाइक्कमो पुण जइवि नियसामिणा अणणुण्णायस्स परकडगदेसपवेसस्स 'सामीजीवादत्तं तित्थयरेणं तहेव य गुरूहिं' एवं विहअदत्तादाणलक्खणजोगेणं तहा विरुद्धरजाइक्कमकारिणं चोरदंडजोगेणं अदत्तादाणरूवत्ताओ भंग एव, तहावि विरुद्धरजाइक्कम करेंतेण मए वणिजमेव कयं न पुण चोरियत्ति भावणाए वयसावेकखत्तणेण लोए य चोरो एसो एवंविहववएसाऽभावाओ अइयारोत्ति । उवलक्खणं च विरुद्धरजाइक्कमो तेण सदेसेवि जं वत्थाइ विक्कणिउं वा किणिउं वा निसिद्ध नियसामिणा तंपि इह दट्ठवं । तहा कूडतुलकुडमाणववहारो तप्पडिरूवववहारो य परवंचणेण परधणगहणाओ भंग एव, केवलं खत्तखणणाइगमेव अदत्तादाणं कूडतुलकूडमाणववहारतप्पडिरूवववहारा पुण वाणियगकला चेवत्ति, एवंविहनियकप्पणाए
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॥६७॥
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ब्रह्मव्रत.
श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
स्वरूपम्
॥६८॥
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वयरक्खणउज्जुयस्स अइयारो । अहवा तेनाहडगहणाई पंचवि एए पयर्ड अदत्तादाणसरूवा एव, केवलं सहसाकारअणाभोगेहिं अइक्कमवइक्कमअईयारेहिं वा कीरमाणा अइयारा भवंति, संभवंति य एते रायरायसेवगाईणपि तेनाहडगहणतकरपओगा, दोन्नि वि ताव पयडा चेत्र तेसिं संभवंति, विरुद्धरजाइक्कमो पुण जया सामंतादाओ ससामिणोवित्तिं उवजीवंतिं सामिविरुद्धस्स य सहाइत्तं करेंति तया तेसिं अइयारो भवति । कूडतुलकूडमाणववहारतप्पडिरूवश्वहारा पुण जया भंडागारदवाणं विणिमयं कारवेति, तया राइणोवि अइयारा भवंतित्ति ॥ १४ ॥ भंगो अइयारभावणाए दरिसिओ चेव, भावणा पुण इमा-" इणमवि चिंतेयवं अदत्तदाणाउ निच्चविरयाणं । समतिणमणिमुत्ताण नमो सया सव्वसाहणं ॥१॥ जे दंतसोहणपि हु गेहंति अदिन्नयं न य मुणिंदा । तेसिं नमामि पयओ निरभिस्संगाण गुत्ताणं ॥ २॥" इच्चाइ, भणियं तइयमणुवयं । संपयं चउत्थं भन्नइ
तत्थ सामन्नण बंभवयसरूवं ताव दंसिजइ-" अट्ठारसहा बभं नवगुत्तीपंचभावणासहियं । कामचउवीसरहियं दसहा वा अट्टहा वावि ॥१॥" केरिसं बंभचेरंति सरूवे पुच्छिए भन्नइ-अट्ठारसहा बंभ। न करेति १ न कारवेति २ नाणुमन्नइ ३ मणेणं, एवं वायाए तिन्नि ३, कारणवि तिन्नि ३, सत्वे नव ९, वेउब्वियकामसुहाउ एएहिं नवहिं पगारेहिं विरई, एवं ओरालियसुहाओवि नवहिं सत्वे अट्ठारस १८, एवं अट्ठारसहा बंभं जहणो, केरिसं ? नवगुत्तीपंचभावणासहियंति, नवहिं गुत्तीहिं पंचहिं भावणाहिं सहियंति, तत्थ नवगुत्तीओ-" वसहिकहनिसिजेंदियकुद्दुतरपुत्वकीलिएपणीए । अइमायाहारविभूसणा य नव बंभगुत्तीओ॥१॥" भावणा पंच-"आहारगुत्ते अविभूसियप्पा, इत्थि न निज्झाइन संथवेजा। बुद्धे मुणी खुद्दकह न कुजा, धम्मणुप्पेही संधए बंभचेरं ॥१॥" क्षुद्राः स्त्रियः । पुणोऽवि केरिसं ? कामचउवीसरहियं दसहा वा अट्टहा
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म अद्यारस १८, एवं शार" वसहिकहनिसिखदिर, इस्थि न नि महियंति, तत्थ न आहारगुत्ते आपणोऽवि केरिस ?
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भावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः
मेद:
वा वित्ति [ग्रन्थान्तरादवसेयं] | कामिजंति-अभिलसिजंति जे ते कामा तेसिं चउवीसा एवं, दुविहो ताव कामो संपत्तकामो 2 कामः असंपत्तकामो य, तत्थ संपत्तो चउद्दसविहो, तंजहा-" दिट्ठीए संपाओ १ दिट्ठीसेवा य २ संभासो ३ ॥१॥ हसिय ४५चतुर्विंशतिललिओ ५ बगृहिय ६ दंत ७ नह ८ निवायचुंवणं चेव ९। आलिंगण १० मायाण ११ कर १२ सेवण १३ गंगकीडा १४ य ॥२॥" तत्थ दिट्ठीसंपाओ-इत्थीण पजणणावयवावलोयणं १, दिविसेवा-पुण भावसारं थीदिट्ठीए दिट्ठीमीलणं २, संभासो-संभासणं उचियकाले कामकहाहिं संलावो ३, हसियं-चंकमणियगसंपसिद्धं ४, ललियं-पासगाइकीडा ५, उवगृहियं-आलिंगियं ६, दंतनिवाओ-दंतछेयविही ७, नहनिवाओ-नहविदारणविही ८, चुंवण-मुहसंजोगो ९, आलिंगणं-गायसंमीलणं १०, आयाणं-कुयाइगहणं ११, करत्ति करण-नागरगाइपारंभजंतं १२, सेवणंति-आसेवणं मेहुण किरिया १३, अणंगकिरिया-मुहमाइसु मेहुणसेवणं १४ । एस पढमद्धऊणगाहादुगस्स अत्थो। असंपत्तकामो दसप्पगारो एवं"तत्थ असंपत्तो अत्थो १ चिंता २ तह सद्ध ३ संभरणमेव ४ । विक्कवय ५ लजनासो ६ पमाय ७ उम्माय ८ तब्भावो ॥ १॥ ९ मरणं १० च होइ दसमोति" तत्थ असंपत्तो कामो अत्थति-अदिद्वेवि विलयाइपयत्थे सवणाओ तदभिप्पाय. मित्तं १, तत्थेव अहो रूबाइगुणा एवंविहअभिनिवेसेण चिंतणं चिंता २, तहा सद्धा-संगमाभिलासो ३, संभरण-संकप्पियस्स तीए रूवस्स आलिहणाइणा विणोदो ४, विक्कवया-सोगाइरेगाओ आहाराइसुवि निरवेक्खया ५, लज्जानासो-गुरुमाईणसमक्खंपि तग्गुणुकित्तण ६, पमाओ-तदत्यमेव सबारंभेसु अ पवत्तण ७, उम्माओ-नट्ठचित्तयाए आलजालभासण ८, तब्भावो-थंभाइणं पि तब्बुद्धीए आलिंगणाइचेट्ठा ९, मरणं च-सोगाइरेगाओ पाणच्चाओ १० । अन्नत्थवि भणियं-" पढमे
४ ॥६९॥
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भावकधर्मपचाशक
चूर्मिः ।
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जाय चिंता, aिre दहमिच्छई । तहए दीहनिस्सासो, चउत्थे जरमादिसे ॥ १ ॥ पंचमे उज्झए अंगं, छडे भत्त न रुचाई | सत्तमे उ भवे कंपो, उम्माओ अट्ठमे तहा ।। २ ।। नवमे जीवसंदेहो, दसमे जीवियं चए । " अहवा अण्णेण पगारेण बंभचेरसरूवं भण्णइ - दसहा वा अट्टहा वा वि, तत्थ दसहा- मेहुणाइदसपगार कामत्रञ्जणा दसविहं बंभचेरं होई, दसवकामो य इमो - " मेहुण १ मणुसरणं २ वासणाईय ३ इच्छा ४ तहिंदियालोगो ५ । विस्सरस ६ विसय ७ विगहा ८ विभूसा ९ संसत्तसेवा य १० ॥ १ ॥ " एईए अत्थो - मेहुणंति - सचित्ताचित्त छिद्दासेवणं, अणुसरणंति पुत्र की लियचिंतणं, वासणत्ति धारणाविसेसरुवा, इच्छत्ति - सेवाभिलासो, तहत्ति पायपूरणे, इंदियालोगत्ति-इत्थीणं मणोरमिंदिय निज्झायणं, विस्सरसत्ति विहंगरसा जेहिं उवर्भुजंतेहिं सत्तमधाऊवचओ होइ, विसयत्ति सहरसाई, विगहत्ति इत्थीनेवत्थाइकहा, विभूसत्ति राढा संसत्तसेवत्ति इत्थियाहिं सह तप्परित्ताणं वा सयणासणाईणं आसु ताओ परिभोगो, चसद्दो समुच्चए । अट्टहा पुण एवं " सरणं १ कित्तणं २ केली ३ पेखणं ४ गुज्झभासणं ५ । संकप्पो ६ अज्झवसाओ य ७ किरिया निष्पत्ति अट्टमा || १ || " एयाओं अट्ठपगाराओ निवित्ती अट्टपमारं बंभचेरं होइति । एवं सामनेण अणेगपगारं बंभचेरं भणियं । संपयं जारिसं अणुवयं होइ तारिसं भन्नइ
परदारस्य विरई ओरालविउब्विभेयओ दुविहं । एयमिह मुणेयव्वं सदारसंतोसमो एत्थ ॥ १५ ॥
परदार सत्ति परे अत्तणो अन्ने पुरिसा १ तहा मणुस्सजाइअवेक्खाए देवा २ तिरिया य ३ परे । तेसिं दारापरिणीयाणि संग्गहियाणि य कलत्ताणि १ देवीओ २ तिरिच्छिओ य ३ परदारा भन्नंति, जवि अपरिग्गहियदेवीओ
कामस्य अष्टौ दश च भेदाः
॥ ७० ॥
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श्रावकधर्म- तिरिखीओ य काओवि संगाहगपरिणेतगाणं अभावाओ वेसातुल्ला संभवंति, तहावि पाएण परजाइअभोजत्तिकाउं परदारा तुर्याणुपञ्चाशक- एव भन्नति, अओ तेर्सि परदाराणं विरई-निवित्ती, न पुण वेसाएवि इत्यर्थः । चउत्थाणुव्वयं होइत्ति । चसदो अभणियत्थ
व्रतस्य चूर्णिः ।।४ समुच्चये, तेण सबइत्थीणं परपुरिसस्स सामनपुरिसाण य विरई चउत्थाणुव्वयंति गाहाए अभणियंपि लभइ । एएण
स्वरूपं वयसरूवं भणियं । सेसावयवेहिं भेयदरिसणं करेइ-ओरालविउविभेयउत्ति ओरालसरीरवेउविसरीरभेयाओ, 'दुविह ॥ ७१॥
तथा पर| एयं 'ति दुविहं-दुप्पगारं एयं परदारं, तत्थ ओरालिग नारीओ तिरिखीओ य । विउत्वियं विजाहरीओ देवीओ य ।
दारगमने इह 'त्ति एयाए परदारविरईए मुणेयवंति जाणेयत्वं, सदारसंतोसमोत्ति सदारं-सकलत्तं तेण संतोसो-संतुट्ठी मेहुणासेवणं
दोषाः | पइ वेसाईणपि वजणं सदारसंतोसो एसोवि चउत्थाणुव्वयं होइ । एएणवि वयसरूवं साहियं । मोसद्दो पायपूरणे एत्थत्ति पयंदू उवरिमगाहाए संबंधणीयं ॥ १५॥ परदाररयस्स इमे दोसा-"का य रई परदारे निच्चुब्बिग्गस्स होह पुरिसस्स । महिसस्स बंधणावीलियस्स जह सोरियघरंमि ॥१॥ भीओ भीयाए समं समागओ विरहियमि ओवासे । किं तत्थ पावइ सुहं | हिययमि अनिव्वुए पुरिसो ? ॥ १॥ परदारेसु पसत्ता सएसु दारेसु जे असंतुट्ठा। ते वच्चति वरागा नरंग व तिरिक्खजोणिं वा ॥ २ ॥ बहुसोविय सो जायइ नपुंसओ तासु तासु जाईसु । न य पावइ नेवाण परदाररओ अबुद्धीओ ॥३॥ अबुहजणपत्थणिजं बुजणपरिवजियं निरयपंथ । आसेवइ परदारं दारं संसारवासस्स ॥ ४ ॥ संसारगइद्दारं दारं भवगन्मवासवसहीणं | जणगं पणगद्दारं वजेयत्वं च परदारं ॥ ५॥ दवेण मग्गइ कलिं मूलं आरु(ड)हइ अप्पणा चेव । पियइ विसं हलाहलं जो परदारे रई कुणइ ॥ ६॥ आसीविसेण खेल्लइ सुत्तं वग्धं गुहाए बोहेइ । पविसइ य सो पलितं जो H ॥ ७१।।
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः । ॥७२॥
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परदारे रई कुणइ ॥७॥ गिरिसिहरे पयलायइ चलंतकुडस्स हेढओ सुयइ । अहिमांसेण जीवइ, जो परदारे मई कुणइ ॥ ८॥
ब्रह्मचर्यस्य अयसं जीवियणासं धणहरणं बंधणं परिकिलेसं । लहइ परदारगमणे दोग्गइगमणं च परलोए ॥ ९॥ तहा-मेहुणवयभंगमि गुणा आसे पो[पा]से तहेव कक्खंमि । बिहवावंज्झानिद्धजोणिसूलं पवाहो वा ॥१०॥" बंभचेरस्स इमे गुणा-"जे उच्चट्ठाणगया यतना च रमंति गंधवनाडगवीहिहिं । वरतरूणीमज्झगया फलमेयं बंभचेरस्स ॥१॥ आणाईसरियं वा इड्डी रजं च कामभोगा य । कित्ती जसं बलंपि य फलमेयं बंभचेरस्स ॥ २॥" परलोए पहाणपुरिसत्तं देवत्ते पहाणाओ अच्छराओ, मणुयत्ते पहाणाओ मणुस्सीओ विउला य पंचलक्खणभोगा पियसंपओगा य, आसन्नसिद्धिगमणं इयत्ति, एवमाइ । इयाणि जयणा-" छन्नंगदसणे फासणे य गोमुत्तगहणकुस्सुमिणे । जयणा सवत्थ करे इंदियअवलोयणे च तहा ॥१॥" छण्णंगं-अपयडसरीरावयवो तस्स देसणे फासणे य तहा गोमुत्तगहणे कुत्थियसुमिणे सव्वत्थ जयणा कायचा, किं भणियं होइ ? भन्नइ-पुरिसेण गहियचउत्थाणुवएण इत्थीणं इत्थीहि य पुरिसाण छन्नंगाणि रागजणगाणि न उवेच्चकरणेण निरिक्खियवाणि फासियवाणि वा, कहिंचि दिढेसु पुढेसु वा न रागबुद्धी कायव्वा । जओ भणियं-" न सकं रूवमदट्ठ, चक्खुगोयरमागयं । रागदोसा य जे तत्थ ते बुहो
परिवजए ॥१॥" एकमाइ । जपि गोमुत्तगहणं तंपि गोजोणिमद्दणेण न कायवमेव, किं तु जया सहावेणं चेव मुत्तेइ तया | गहियवं, तहाविहकजे पुण जोणिमद्दणेवि अभिसंगो न कायवो । कुसुमिणे पुण थीसेवासरूवे एवं जयणा कायवा-पढममेव धम्मज्झाणपरेण पंचनमोकारमंगलपढणपुरस्सरं-"सलं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा, अकामा | जंति दोग्गई ॥१॥"ति, एवमाइभावणाजणिय वेरग्गेण सोयवं, जेण तहाविहकुसुमिणलाभोचेव न होइ, जइ पुण कहिंचि ४॥ ७२ ।।
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
॥ ७३॥
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निद्दावसस्स मोहोदयाओ होइ तया तकालमेव उद्वित्ता इरियापडिक्कमणपुत्वं अद्वत्तरसयऊसासपरिमाणो काउस्सग्गो कायवोत्ति तुर्यव्रताभणियं होइ, तहा इंदियावलोयणे जयणा कायद्या, जओ भणियं-" वजेजा मोहकरणं परजुबईदंसणाइ सवियारं । एए खुर तीचारा: मयणवाणा चरित्तपणे विणासंति ॥१॥" दंसणाइत्ति दमण-अवलोयण, आइसद्दाओ संभासणाइ घेप्पइत्ति । सवियारंसविब्भमंति, तहा-" अंगपञ्चंगसंठाणं, चारुल्लविय पेहियं । इत्थीणं तं न निज्झाए, कामरागविवड्डणं ॥ १ ॥ जहा कुक्कुड. पोयस्स, निच्चं कुललओ भयं । एवं बंभयारिस्स, इत्थीविग्गहओ भयं ॥२॥" कुललओत्ति मजाराओ, "गुज्झोरुवयणकक्खोरुअंतरे तह थणंतरे दटुं । साहरइ तओ दिढि न य बंधइ दिद्विए दिद्धि ॥ ३ ॥ तहा-रसा पगामं न निसेवियवा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिवंति दुमं जहा साउफलं व पक्खी ।। ४ ।। जहा-दवग्गी पउरिंधणे वणे, समारुओ नोवसम उवेइ । एविदियग्गिवि पगामभोइणो न बंभयारिस्स हियाय कस्सइ ॥ ५॥" एवमाइ । संपयं अइयारा भन्नति
वजह इत्तरिअपरिग्गहियागमणं अणंगकीडं च । परवीवाहकरणं कामे तिव्वाभिलासं च ॥ १६॥
एत्थ चउत्थाणुव्वयविरईए वजेइ-परिहरइ इत्तरिअपरिग्गहियागमणति इत्तरी-गमणसीला भाडिप्पयाणेण थोवकालं | परिग्गहिया वेसा, तहा अपरिग्गहिया-वेसा चेव अग्गहियअन्नसंबंधिभाडी कुलंगणा वा अणाहत्ति, तासु इत्तरिअपरिग्गहियासु गमण-आसेवणं इत्तरिअपरिग्गहियागमण । तहा अणंगकीडत्ति अंग देहावयवो मेहुणावेक्खाए जोणी लिंगं च, तबइरित्ताणि अणंगाणि कुचकक्खोरुमुहाईणि, तेसु कीडा-रमणं अणंगकीडा, अहवा अणंगो-कामो भन्नड, तेण कामेण कीडा अणंगकीडा, किं भणिय होइ?, भन्नइ-सलिंगेण निष्फनपओयणस्स कारिमेहिं चम्माइघडियलिंगेहिं थीगुज्झदेसासेवणंति, अतो तं वजेइ ।
॥७३॥ पं० चू. .
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भावधर्मपश्चाशक
॥७४ ॥
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चसद्दो समुच्चए । तहा परवीवाहकरणंति परेसिं-निय अबच्चत्रइरित्ताणं जणाणं विवाहकरण कन्नाफललामिच्छाए नेहेण वाटा तुर्याणुसंबंधाइणा वा परिणयणविहाण परविवाहकरणंत्ति, इह च सकीयावच्चेसुवि संखाभिग्गहो जुत्तो। तहा कामे तिव्वामिलासं व्रतस्य च-कामे-कामोदयजणिए मेहुणे तिवाभिलासं, अहवा कामेत्ति 'सूयणमेत्तं सुत्तंति काउं कामभोगेसु, तत्थ कामा-सदरूवाणि, ४|अतीचारभोगा-गंधरसफरिसा तेसु तिवाभिलासो-अच्चंतअज्झवसाओ जेणझवसाएण ओसहपाणाईहिं अणवस्यमेहुणसुहनिमित्तं भावना मयणमुद्दीवेइ तं वजेइ । चसद्दो समुच्चए, एयाणि समायरंतो अइयरइ चउत्थाणुवयं, अओ एयाणि वजेइ । एत्थ य पढमबिईयाइयारा सदारसंतुट्ठस्स चेव न परदारवजगस्स, सेसा पुण दोहवि भवंति । भावणा पुण एत्थ एवं कायवा-भाडिप्पयाणेण इत्तरकालं नियसत्ताए काऊण वेसं भुंजमाणस्स सकप्पणाए सकलतं मण्णमाणस्स वयसावेक्वचित्तस्स न मंगो, इत्तरकालपरिग्गहमावेण य परमत्थओ सकल सा न होइ, अतो भंगो तेण भगाभंगरूवो अतिचारो। अपरिग्गहियागमणं पुण सहसाकारअणाभोगेहि अहकमवइक्कम अइयारेहिं वा अइयारो, परदारबजगस्स एए दोनिवि अइयारा न होति जेण वेसा अणाहकुलंगणा य परकलत्तं न होति । अन्ने आयरिया भणंति-"इत्तरपरिग्गहियागमणं सदारसंतुट्ठस्स अइयारो, अपरिग्गहियागमणं तु परदारवजगस्स, तत्थ पढमभावणा जहा पुत्वं भणिया तहा भणियबा, बिईयभावणा पुण एवं-अपरिग्गहिया नाम वेसा तं जया अन्नपुरिससंबंधिगहियमाडिं अभिगच्छइ तया परदारगमणजणियदोससंभवाउ कहिंचि परदारतणेणं भंगो, वेसत्तिकाउं अभंगो, अओ भंगाभंगरूवो अइयारो।" अन्ने पुण अन्नहा भणंति-"परदारवञ्जिणो पंच होति तिन्नि उ सदारसंतुटे। | इत्थीए तिन्नि पंच व भंगविगप्पेहिं नायव्वं ॥१॥ इह भावणा-परेण इत्तरकाल जा परिग्गहिया वेसा तम्गमणं अइयासे, पर- ७४॥
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पावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
तुर्याणुव्रतस्य
अतीचार
भावना
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दारवजगस्स तत्तियं कालं परदारत्तिकाउं । तहा अपरिग्गहियाए अणाहकुलंगणाए जंगमणं तंपि परदास्वजगस्स चेव अइयारो, कहं ? भन्नइ-जेण लोए परदारतणेण सा पसिद्धा तेण भंगो, जेण य तीए कामुगो भत्ताराई नस्थि, तेण कारणेण परकलतं न होइत्तिकाउं अभंगो, अओ भंगाभंगरूवो अइयारो एसोत्ति । सेसा पुण तिन्निवि सदारसंतुट्ठपरदारवजगाणं दोण्हंपि संभवंति, सदारसंतुटुस्स सकलत्तेवि, परदारवजगस्स पुण वेसासकलते सुवि जा अणंगकीडा सा सक्खं अपञ्चक्खायाविन कायवा, किं कारण ?, भन्नइ-जओ सावगो अच्चंतपावभीरूययाए बंभचेरं काउकामोवि जया वेदोदयं सहिउं असमत्थो बंभचेरं काउं न सके। तया वेदोदयोवसममित्तनिमित्तं सदारसंतोसं परदारवजणं वा पडिबजेइ, मेहुणमेत्तेण चेव वेदोदयपसमो संभवह अतो अणंगकीडा सामत्थओ पच्चक्खाया चेव, एवं परविवाहतिबकामाभिलासावि अत्थओ पञ्चक्खाया दट्टवा, अओ अत्थओ पञ्चक्खायत्ति तेसु पयतस्स भंगो, सक्खं न पञ्चक्खायत्ति पयतस्सवि अभंगो, अओ भंगाभंगरूवा अइयारा ते भवंति ।" अन्ने पुण अणंगकीडाइयारभावणं एवं करेंति, तंजहा-"किर सो सावगो मेहुणमेव वयविसओत्ति एवंविहनियकप्पणाए मेहुणं परिहरंतो सदारसंतोसी गणियाणाहकुलंगणासु, परदारवजगो पुण परदारेसु आलिंगणाहरूवं अणंगकीडं कुणतो वयसा. वेक्खोत्तिकाउं अइयारे वह । तहा सदारसंतुटेण सकलत्ताउ अन्नत्थ, परदारवञ्जगेण सकलत्तवेसाहितो अन्नत्थ मणवयणकाएहिं मेहुणं न कायक्वं न य कारवेयवंति, एवं जया पडिपन्नं वयं होइ तया परविवाहकरणेण मेहुणकारवणं अत्थओ कयं भवइ, बंभवयधारी पुण मन्नइ-विवाहो चेव एस मए कीरह, न मेहुणंति, ततो वयसावेक्खोत्तिकाउं अइयारो होइत्ति ।"
ननु परविवाहकरणे कन्नाहललामेच्छा कारणं भणियं, तत्थ किं संमद्दिट्ठी एस वयधारी मिच्छदिट्ठी वा?, जह सम्मट्ठिी
45455-
॥७५॥
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
तुर्याणुव्रतस्य अतिचारभावना
॥ ७६ ॥
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तया सम्मदिद्विस्स कन्नाहललामेच्छा न संभवइ, मिच्छत्तविरउत्तिकाउं, अह भणह मिच्छद्दिट्टी तया मिच्छदिद्विस्स अणुब्बयाणं संभवो चेव नस्थित्तिकाउं कहं कन्नाहललाभिच्छा परविवाहकरणरूवाइयारकारण ति ?, सच्चमेयं, केवलं सम्रद्दिहिस्सवि अनिउणस्स सा संभवइ, तहा अहाभद्दगस्स मिच्छदिहिस्सवि सुमग्गपवेसणनिमित्तं अभिग्गहमेत्तं देतिवि गीयत्था । जहा किर अजसुहत्थिणा आयरिएण दमगस्स सबविरई दिना । एयं पुण परविवाहवजण नियअवच्चवहरित्तेसु चेव जुत्तं, अनहा जइ नियअवच्चाणि न विवाहिजंति तया अपरिणीया कन्ना सच्छंदचारिणी होइ, ततो सासणोवधाओ, कयविवाहा पुण विहियविरइबंधणत्तिकाउंन सच्छंदचारिणी होइ । जं पुण पुवं भणियं नियअवच्चेसुवि संखाभिग्गहो जुत्तो, तं जइ कोइ अन्नो चिंतगो होइ तया जुत्तं, अहवा अवच्चसंखासमत्तीए जइ अहिगावच्चुप्पत्तिपरिहारोवायं करेइ तो संखाभिग्गहो जुत्तोत्ति । अन्ने आयरिया एवं भणंति-"परो अन्नो जो विवाहो अप्पणो चेव स परविवाहो, किं भणियं होइ ?, भन्नइ-विसिद्धसंतो. सामावाओ अप्पणा अन्नाउ कन्नगाउ परिणेइति । एसो पुण अइयारो सदारसंतुट्ठस्स होइ," इत्थीए पुण सदारसंतोसपरदारवजणभेया नस्थि, सपुरिसवइरित्ता अन्ने सवे परपुरिसत्तिकाउं, तओ अणंगकीडापरविवाहकरणकामभोगतिवाभिलासलक्खणा तिन्नि अईयारा जहा सदारसंतुट्ठस्म तहा इत्थियाएवि सपुरिसविसए होंति । इत्तरपरिग्गहियागमणरूवो पढमइयारो पुण जया सपुरिसो सवक्कीए नियवारयदिवसे परिग्गहिओ होइ, तया सवक्किवारगं अइक्कमिऊण सपुरिसं परिभुजंतीए अइयारो होति । अप| रिग्गहियागमणलक्खणो बीयाइयारो पुण अइक्कमाइणा पुरिसं गच्छंतीए नायबो, बंभयारिस्स पुण सव्वत्थ अइकमाइणा सो वि अइयारा भवंति करकम्माईहि य ॥१६॥ भंगो अइयारभावणाए विभाविओ चेव । भावणा पुण इमा-" चिंतेयत्वं च नमो
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॥७६ ॥
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भावकधर्मपश्वाशक
चूर्णिः
॥ ७७॥
ॐIRDCRACHARCHE
तेसिं जेहिं तिविहेण अभं । वंतं अधम्ममूलं मूलं भवगम्भवासाणं ॥१॥" भणियं चउत्थाणुव्वयं । संपयं पंचमं भन्नइ
दीपञ्चमाणुइच्छापरिमाणं खलु असयारंभविनिवित्तिसंजणगं। खेत्ताइवत्थुविसयं चित्तादवि व )रोहओ चित्तं ॥१७॥ 1व्रतस्वरूपम्
इच्छापरिमाणंति इच्छा-गहियववत्थुविसया कंखा ताए इच्छाए परिग्गहियत्ववत्थूणं परिमाणं-एत्तिओ मम परिग्गहोत्ति, एवंरूवं इच्छापरिमाण, खलुसद्दो पायपूरणे, पंचमाणुव्वयं होइ, गाहाए अभणियं पि हु पत्थावाओ लब्भइ । तं पुण इच्छापरिमाणं केरिसफलजणग?, भन्नइ-असयारंभविनिवित्तिसंजणगंति असुभारंभविनिवित्तिकारणं, संभवइ य इच्छापरिमाणे कए परिमियपयत्थाणं किंचिवि सुहवावारेहिंतोवि संपत्तीए असुभारंभविनिवित्ती, जओ पउरदवलाभनिमित्तमेव जीवघायाइअसुभारंभेसु पाएण पाणिणो पयद॒ति । अणेण पढमगाहद्धेण वयसरूवं मणिय, बीयर्ण मेयदार सूएइ । तं पुण इच्छापरिमाण किं विसय ?, भन्नइ-खेत्ताइवत्थुविसयंति खेत्ताइपयत्थगोयर, जओ भणियं-धणं, धनं, खेत, वत्थु, रूप्पं, सुवन, कुवियं, दुपयं, चउप्पयं च एवमाइ । चित्तादवरोहओ चित्तंति चित्तं-मणो भन्नइ, आइसदाउ दवदेसर्वसाईणि घेप्पंति,तेसिं अवरोहेणअणुसारेण वसेण, चित्तं-बहुप्पगारं-बहुमेयं इच्छापरिमाणं, तहाहि-कोवि दरिदोवि विपुलचित्तो होइ, अन्नो पुण विभवाणुरूविचित्तो, तहा कस्सइ पभूयं दत्वं होइ, अन्नस्स थोवं, तहा कम्मिवि देसे अच्चंत धन्नचउप्पयाईसंगहो कीरइ, अन्नत्थ पुण न कीरइ, तहा कोइ रायसो होइ अन्नो माहणवणियवंसाई, तत्थ जो रायसो होइ तस्स पाएण रजाइसंभवो, एवं चित्तदव्वदेसवंसाइअणुसारेण पुरिसेहिं इच्छापरिमाणं कीरमाणं अणेगहा होइत्ति ॥ १७॥ (ग्रंथानं १५०० ) अनियत्तस्स दोसा-"जणयसुयाणं च जए जणणीसुण्हाण भाउयाणं च । चहुलस्स धणस्स कए नासइ नेहो खगद्धेणं ॥१॥ अडइ बहुं वहइ भरं सहइ छुहं
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SCORE
भावधर्मपश्चाशकचर्णिः ।
परिग्रहादनिवृत्तस्य
दोषाः निवृत्तस्य
॥ ७८॥
च गुणा:
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पावमायरइ धिट्ठो। कुलसीलजाइपच्चयट्टिइं च लोभहुओ चयइ ॥२॥ धावेइ रोहणं तरह सायरं वसइ गिरिनिगुंजे सु । बंधवजणं च मारइ पुरिसो जो होइ धणलुद्धो ॥३॥ तणकट्ठहिं व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं । न इमो जीवो सक्को तिप्पे अत्थसारेण ॥ ४ ॥ धणसंचओ य विउलो आरंभपरिग्गहो य विच्छिन्नो। नेइ अवस्सं मणुसं नरगं च तिरिक्खजोणि वा ॥ ५॥ एयाणि य अनाणि य पहणि पावंति ते दुहसयाई । जे अविरया मणुस्सा परिग्गहे जे असंतुट्ठा ॥ ६॥" विस्यस्स गुणा-"जह जह अप्पो लोभो जह जह अप्पो परिग्गहारंभो । तह तह सुहं पवड्डइ धम्मस्स य होइ संसिद्धी ॥१॥" एवमाइया, जयणासरूवं इमं-"संभरइ वारवारं मोकलतरयं व गेहइस्सामि । एयं वयं पुणोविय मणेण न य चिंतए एवं ॥१॥" एवमादि । एत्थ अइयारा भन्नति
खेत्ताइहिरन्नाइधणाइदुपयाइकुप्पमाणकमे । जोयणपयाणबंधणकारणभावेहि नो कुणइ ॥१८॥
खेत्ताइ १ हिरनाइ २ धणाइ ३ दुपयाइ ४ कुप्पमाणकमे ५, खेत्ताइविसए जं परिमाणं गहियं तस्स अइक्कमे जोयण १ पयाण २ बंधण ३ कारण ४ भावेहिं ५ एएहिं जोयणाईहिं जहक्कम न करेइ, एस समुदायत्थो । तत्थ खेल-सस्सुप्पत्तिभूमी जत्थ धनमुपजइ, तं पुण सेतुकेतुउभय भेयाओ तिविहं, तत्थ सेतुखेतं अरहट्टपावट्टाईहिं जं सिंचिजइ १, केतुखेचे पुण आगासजलेण जं निष्फजइ २, जं पुण अरहट्टाइणा आगासजलेण य निष्फजह तं उभयखेत्तं ३, आइसदाउ वत्थू घेप्पड़, वत्थू पुण अगारगामनगराईणि य वुचंति, तत्थ अगारं तिविहं-खायं ऊसियं खाऊसियं च, तत्थ खायं भूमिहरयाइ, ऊसियं भूमिघररहियं पासायमाई, उभयं भूमिघरस्सोवरि पासाओ, एएसिं खेत्तवत्थूणं पमाणस्स जोयणेण-अन्नखेतघरमीलणेण अइक्कमो
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VI॥ ७८॥
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पञ्चाशकचूर्णिः ।
॥७९॥
अइयारो होइ । जहा किर एक चेव मम खेत्तं वत्थू वा एवंविहअभिग्गहसहियस्स अहिगखेत्ताभिलासे अहिगवत्थुअभिलासे है पञ्चमाणुवा वयभंगभएणं पुबगहियखेत्तस्स वा घरस्स वा समीवे अन्नं खेत्तं घरं वा गहेऊणं पच्छा पुवगहिएण सह अभिणवगहियस्स व्रतस्य एगत्तकरणनिमित्तं वाडिवरंडगाइअवगयणेण अभिणवं पुविल्ले जोयंतस्स वयसावेक्खत्तणेण किंचि विरइविराहणेण य अइ- अतीचाराः यारो १, तथा हिरण-रूप्पं आइसद्दाउ सुवनं घेप्पइ, एएसिं परिमाणस्स पयाणेण-दाणेण अइक्कमो-अइयारो होइ, तंजहाकेणवि चाउम्मासाइअवहिणा हिरनसुवनपरिमाणं गहियं तत्थ य तेण सावएण परितुट्ठराइणो अन्नस वा कस्सवि सगासाउ परिमाणाहिगं हिरन्नाइ लद्धं, तं पुण वयभंगभएणं अन्नस्स देइ, अवहीए पुण्णाए गिहिस्सामि एवंविहभावणाए वयसा. वेक्खस्स अइयारो २, तहा धणं-गणिमधरिममेयपारिच्छेज्जभेयाओ चउबिह, तस्थ गणिमं-पूगफलाइ धरिमं-गुडखंडाई, मेयं-घयतेलाइ, पारिच्छे अं-माणिकवत्थाइ, आइसद्दाउ धन्नं सालिजवबीहिकोद्दवरालयतिलमुग्गमासादि घेप्पइ, एएसिं परिमाणस्स बंधणेण अइकमो-अइयारो होइ, जहा किर कस्सवि कयधणधनपरिमाणस कोवि लब्भं अन्नं वा धणाइ देइ, तं पुण वयभंगभयाउ चाउम्भासाइपरओ गिहठियधणधन्नविक्कए वा गिहिस्सामि एवंविहभावणाए बंधणेण मूढगाइसरूवेण सच्चं कारदाणाइरूवेण वा सीकरेऊण तस्स घरे चेव तं धणाइ ठावेंतस्स अइयारो ३, तहा दुपय-पुत्त कलत्तदासीदासकम्मकरसुगसारिगाइरूवं, आइसदाओ गोमहिसीबलीवदाईच उप्पया गहिया, तेसिं जं परिमाणं गहियं तस्स कारणेण-गम्भगाहणेण इत्यर्थः, अइक्कमो-अइयारो होइ, जहा किर केणात्रि सावगेण संवच्छराइकालमाणेण दुपयचउप्पयाण परिमाणं कयं, ताई च संवच्छरमज्झे चेव जइ पसबिति तओ परिमाणाहिगदुपयच उप्पयसंभवाउ वयभंगो होइ, अओ वयभंगभयाउ केवइयंमि वि 181॥ ७९ ॥
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प्रथमगुणव्रतस्वरूपम्
भावकधर्म- काले गए गन्भगाहणं कारवेतस्स गन्भे दुपयाइभावाओबाहिं च अभावाओ वयसाविक्खस्स अइयारो होइ ४, तहा कुवियंपश्चाशक- आसणसयणथालकच्चोलाइ घरउवक्खरं तस्स जं माण-परिमाणं तस्स माणस्स भावेण-तप्पज्जायंतररूवेण अइक्कमो-अइयारो चूर्णिः ।| | होइ, जहा किर केणवि वइणा दस करोडगादीणि कुवियपरिमाणं कयं, तओ ताणि कहिंचि दुगुणाणि संजायाणि तओ
वयभंगभएण तेसिं दुगेण दुगेण एगेगं महंत कारावेंतस्स पजायंतरकरणेणं संखापूरणाउ साहावियसंखाबाहाउ य अइयारो ॥८ ॥
होइ । अन्ने पुण भगति-" भावेण तदस्थित्तलक्खणेण विवक्खियकालावहिए परओ अहं एयं गहिस्सामि अओ न अन्नस्स ४ा देयं, एवंविहवयणेहिं तं दवं परघरे ठावेंतस्स अइयारो"५॥१८|| भंगो अइयारभावणाए दंसिओ, अओ मेएण न विवरिजइ ।
भावणा पुण इमा-"धन्ना परिग्गहं उज्झिऊण मूलमिह सबपावाणं । धम्मचरणं पवना मणेण एवं विचिंतेजा ॥१॥" भणियाणि मूलगुणरूवाणि अणुवयाणि । संपयं उत्तरगुणाणं अवसरो, ते पुण गुणवयसिक्खाबयरूवा, तत्थ पढमगुणवयं ताव भन्नइउड्डाहोतिरियदिसिं चाउम्मासाइकालमाणेणं । गमणपरिमाणकरणं गुणव्वयं होइ विन्नेयं ॥ १९ ॥
उड्डाहोतिरियदिसिंति उड्डे-उवरि पत्याआइविसए, अहो-भूमिहरसरकूवाइसु, तिरियदिसिं-पुवाइदिसिं एयासु दिसासु विसए, गमणपरिमाणकरणंति एवं पयं संबज्झइ । अणेण गाहावयवेण लाघवत्थं अणवसरपत्तंपि मेयदारं सूइयंति, सेसावयवेहि सरूवं भण्णइ-चाउम्मासाइकालमाणेणंति चाउम्मासं-मासचउक्कं आइसद्दाउ संबच्छराई लन्मइ, एवंविहकालमाणेण गमणस्स जं परिमाणकरणं, एत्तियाउ खेत्ताउ परओ न गंतवं एवंविहमाण करणं, गुणब्वयं होइत्ति गुणाय-अणुब्बयाणं उवगाराय वयं गुणव्वयं, भवइ य अणुत्व याणं गुणवएहिंतो उवगारो, विवक्खियखेचाईणं अन्नत्थ हिंसाइनिसेहाओ, विनेयं
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भावकधर्मपश्वाशकचूर्णिः
॥८१॥
गुणाः
नायवं, पढममिति अभणियंपि गाहाए लगभइ ॥ १९ ॥ दोसा इमे-“ तत्तायगोलकप्पो पमत्तजीवोऽनिवारियप्पसरो । सबथ ता | दिक्परिकिन्न कुजा पावं तकारणाणुगओ ॥१॥" गुणा पुण-दिसिपरिमाणे कए विवक्खियखेत्ताओ परउ जे तसथावरा तेसिं दंडो | माणस्थापरिचत्तो होइ, एए पुण दोसे नाऊणं जइयत्वमेव-" जत्थथि सत्तपीला दिसासु अहो पेलवं तहिं कजं । कुजा नाइपसंग करणे सेसासु य सत्तिओ मइमं ॥१॥" संपइ अइयारा
दोषाः वजह उड्डाइक्कममाणयणप्पेसणोभयविसुद्धं । तह चेव खेत्तवुड्डी कहिंचि सहअंतरद्धं च ॥२०॥ करणे च वजइ-परिहरइ उड्डाइक्कमति विवक्खियखेत्ताओ परओ उड्डाहोतिरियदिसासु कम्म-अइक्कम वजेइ, अणेण य तिन्नि अइ. यारा भणिया, तंजहा-उडदिसिप्पमाणाइक्कमे अहोदिसिप्पमाणाइक्कमे तिरियदिसिप्पमाणाइकमेति, एए पुण तिन्निवि अणाभोगाइकमाईहिं चेव अइयारा भवंति, आभोगाइपवित्तीए पुण भंगा एव भवंति। उड्ढादिकम कहं बजेइ ? भन्नइ-आणयणप्पेसणोभयविसुद्धति आणयणं-नियखेत्ताओ परओ ठियस्स वत्थुणो परेण अनेण सखेत्ते पावणं, पेसणं-नियखेत्ताओं परण नयणं, उभयं च जुगवं आणयणं नयणं च, एएहिं तिहिं विसुद्ध-निदोसं आणयणप्पेसणोभयविसुद्ध, विवक्खियखेत्ताउ परओं सयं गमणेण आणयणपेसणाईहि य पगारेहिं दिसिपरिमाणाइक्कम वज्जेइत्ति । भावणा एस पुण आणयणपेसणाइसु अइक्कमो जेण न कारवेमित्ति दिसिव्वयं गहियं तस्सेव संभवइ । अन्नस्स पुण आणयणाईसु अणइकमो चेव तारिसस्स पच्चक्खाणस्स अभावाओ १-३। तह चेव खेत्तबुड्वित्ति तह चेब, जहा उड्डाइक्कम आणयणाइविसुद्धं वज्जेइ, एवं खेत्तवुड्डीवि आणयणाइविसुद्धा, खेत्तस्स पुवाइदेसस्स दिसिवयविस यस्स थोवस्स वुड्डी-अहिंगकरणं अन्नदिसिपरिमाणपक्खेवओ अन्नदिसिदीहत्तकरणं खेत्तवुड्डी तं वजेइ। | |८१॥
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दिग
भावधर्म पञ्चाशकचूर्णिः ।
॥८२॥
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किर केणावि पुवपच्छिमदिसासु पत्तेयं जोयणसयं गमणपरिमाणं कयं, सो पुण उप्पणपओयणे एगाए दिसाए नउई जोयणाई ठवेउ अण्णाए दिसाए दसोत्तर जोयणसयं करेइ, एवंपि किर पुत्वावरेण जोयणसतदुगरूवं परिमाणं संभव इत्ति, एवं एगदिसाए
व्रतस्य खेत्तं वद्धारेतस्स वयसावेक्खत्ताओ अइयारो ४, तहा कहिंचि सइअंतरद्धं चत्ति कहिंचि-केणचि पगारेण अईववाउलत्तणेण
5 अतीचारा अइपमाइत्तयोण मंदमइत्ताइणा वा सईए-सुमरणस्स जोयणसयाइरूवदिसिपरिमाणविसयस्स अंतरद्धा-परिभंसो सइअंतरद्धा । किर केणवि पुवाए दिसाए जोयणसयरूवं परिमाणं कयं आसि, पच्छा गमणकाले फुडं न सरइ, किं सयं परिमाणं कयं उयाहु पन्नासा? तस्स य एवं संसए वट्टमाणस्स पन्नासं अइकमंतस्स अइयारो सावेकखत्ताओ, सयमइक्कमंतस्स भंगो निरवेक्खत्ताओ ५। एत्थ य आवस्सयचुन्निभणिओ इमो विही-" उ8 जं परिमाणं गहियं [ तत्थ जयावि लग्गो भवइ जह] तस्स उवरि पवयसिहरे वा रुकखे वा मक्कडो पक्खी वा वत्थं आभरणं वा गहेउं बच्चेजा तत्थ तस्स न कप्पए गंतुं, जया पुण तं पडियं अन्नेण वा आणीयं तया कप्पइ गिव्हिडं। एयं पुण अट्ठावय[मिहमक्कड]संमेयसुपइट्ठउज्जेंतचित्तकूडअंजणगमंदराईसु पवएसु संभवइ । एवं अहेवि कूवाइसु भाणियत्वं । तहा तिरियं जं परिमाणं गहियं तं तिविहेण करणेण नाइकमियई, खेत्तवुड्डी य न कायबा, कहं ? सो सावगो पुत्वेण भंडं गहेऊण गओ जाव तं परिमाण, तओ परेण भंडं अग्घइत्तिकाउं पच्छिमाए जाणि जोयणाणि ताणि पुवदिसिपरिमाणे पक्खिवेइत्ति । जइ अणाभोगेण परिमाण अइकंतो होजा तया नियत्तियत्वं, विनाए। वा न गंतवं, अन्नेवि न विसजियावा, अह अणाणाए कोऽवि गओ होजा, तया जं तेण लद्धं सयं अणाभोगगएण वा जलद्धं तं न घेप्पइति" ॥२०॥ अइयारभावणाएवि भंगो भाविओ। भावणा इमा-"चिंतेयत्वं च नमो साहूणं जे सया निरारंभा । ॥८२॥
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बावकधर्म
द्वितीय
पशाशकचूर्णिः ।
गुण
व्रतस्वरूपं
॥ ८३॥
विहरति विप्पमुक्का गामागरमंडियं वसुहं ॥ १ ॥" एवमाइ । भणियं पढमगुणवयं । अहुणा बीयं भन्नइवजणमणंतगुंवरिअचंगाणं च भोगओ माणं । कम्मयओ खरकम्माइयाण अवरं इमं भणियं ॥ २१॥
इमं किर बीयं गुणवयं उपभोगपरिभोगनामगं दुहा होइ, भोयणओ कम्मओ य, तत्थ सई-एगवारं भोगो उपभोगो आहार-8 पुष्फतंबोलविलेवणाई, पुणो पुणो भोगो परिभोगो वत्थाभरणघरसयणमहिलाई, जओ भणियं-"उपभोगो विगईओ तंबोलाहारपुप्फफलमाई । परिभोगो वत्थसुवन्नगाइयं इत्थिहत्थाई ॥१॥" स्वीहस्त्यादि । अहवा जं अंतो भुञ्जइ स उवभोगो जं पुण चाहिं स परिभोगो, तत्थ गाहापुवर्ण भोयणओ ताव इमं वयं भन्नइ-वजणमणंतगुंवरिअञ्चंगाणं च भोगओ माणति वजणं-परिहरण, अणतगं-अणतकाइगं आगमपसिद्धं जहा-"चक्कागं भजमाणस्स गंठी चुन्नघणो भवे । पुढविसरिसेण भेएण, अणंतजीवं वियाणाहि ॥ १।। गूढसिरागं पत्तं सच्छीरं जं च होइ निच्छीरं । जंपि य पणद्वसंधि, अणंतजीवं बियाणाहि ॥२॥ जस्समूलस्स साराउ, छल्ली बहलतरी भवे । अणंतजीवा हु सा छल्ली, जे यावना तहाविहा ।।३॥ सव्वा य कंदजाई सूरणकंदो य वजकंदो य । अल्लहलिहा य तहा अल्लं तह अल्लकच्चूरो ॥४॥" एवमाइ, उंबरी-वडपिप्पल उंबरपिलखुकाउंबरिफलाणि आगमभासाए भन्नति । तहा अच्चंगाणित्ति अइसएण भोगस कारणाणि महुमजमंसाईणि राईभोयणपुप्फविलेवणअंगणाईणि य वुच्चंति । अओ एएसिं अणंतगउंचरिअञ्चंगाणं अन्नेसिं च बहुदोसाणं,जहा-"पलंकलट्टसागा मुग्गगयं वाऽऽमगोरसुम्मीसं । संस. जए उ अइरा तंपि य नियमा दुदोसा य ॥१॥" तत्थ पल्लंकसागो मिवालगाणित्ति जो पसिद्धो, अन्ने भणंति-"देसविसेसपसिद्धो, वणस्सइविसेसो," दोसा यत्ति एरिसं भुञ्जमाणं सरीरविगारं करेइत्ति एगो दोसो, जीवविणासेण पावकम्मबंधोत्ति
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श्रावकधर्म-- पश्चाशकचूर्णिः ।
कर्मतो भोगव्रतस्वरूपम्
वीओ, तहा सबअसणाइदहाणं च भोगओ-भोयणओ उवभोगपरिभोगभेयमासज्ज वजणं माणं च-परिमाणकरणं च एएसिं चेवअणंतगाईणं पढमगुणव्वयावेक्खाए अन्नं वयं भवइ, भणियं च-" मजं मंसं महु मक्खणं च पंचुंबरीयफलनियमं । राईभोयण तह गजराइकरगाइमट्टी य ॥१॥ हाणं पियणविलेवण वत्थाभरणे य बंभचेरे य । अम्भंगणकुणमाणं जुत्ता तंबोलपुप्फाई ॥२॥ फलफलिपत्ते पुप्फे कढे बहुवीय विगइवग्गे य । सच्चित्ताणते दवबग्गमाणं च उवभोगे ॥३॥" इयाणिं बीयद्धेण कम्मओ भोगवयं भन्नइ-कम्मयओखरकम्माइयाण अवरं इमं भणियंति जीविगानिमित्तं आरंभो कम्म भन्नइ, तओ कम्मयओ खरकम्माइयाणं निद्दयजणजोग्गदारुणआरंभाणं तलारगोत्तिवालकम्माईणं, आइसद्दाओ अंगारकमाईणं च परिवजणं माणं च अवरं-अन्नं वीयं इमं गुणवयं भणियं-परूवियं पुवायरियेहिं । एत्थं पुवायरियउवएसो इमो-" भोयणओ सावगो फासुयं एसणीयमाहारं आहारेजा, तस्सासइ अणेसणियंपि सचित्तवजं आहारेजा, तस्स अभावे अणंतकायबहुवीयगाणि परिहरेजा, असणे अल्लगमूलगमंसाई, पाणे मंसरसमजाइ, खाइमे पंचुंबराइ, साइमे पुण महुमाई । एवं परिभोगेऽवि वत्थाइए धुल्लधवलअप्पमुल्लाणि य परिमियाणि य परिभुजेजा, सासणगोरवत्थं चांवराणि वरतराणि जाव देवसाणि वि परिभुजेजा, नवरं परिमाणं करेजा, जहा दंतवणविहिपरिमाणं फलविहिपरिमाणं अन्भंगणविहिप० उचलणविहीप० मजणजलप० वत्थप० विलेवणविही य आभरणविही य पुष्कविही य धुवविही य भोयणविहिपरिमाणं करेमाणे पेजाविही य खजगविहिपरि० सूयग. विहिप० चोप्पडविहिप० माहुरगविहिप० सागविहिपरि० उल्लणविहि. पाणीयविहिप मुहवासविहिपरिमाण एवमाइ विहिपरिमाणं करेइ अवसेसं पञ्चकखाइत्ति । कम्मओवि जइ अकम्मा न सकेइ जीविउं तया अच्चंतसावजाति परिहरेजा, तहा
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८४॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
भोजनतो द्वितीयगुणव्रतस्य पश्चातिचाराः
॥८५॥
रंधणकंडणपीसणदलणं पयणं च एवमाईणं । निच्चपरिमाणकरणं, अविरइबंधो जओ गरुओ ॥१॥" एत्थ वि रक्कसिं चेव जं कीरए कम्मं पहारववहरणाइ विवक्खाए तं उवभोगो, पुणो पुणो य ज कीरइ तं पुण परिभोगोत्ति, अन्ने पुण कम्मपक्खे उवभोगपरिभोगजोयणं न करेंति, उवभोगपरिभोगवए कम्मुणो पुण भणणं उवभोगाइकारणभावेण, उवभोगाइकारण कम्म तेण इह वए भणियं ।। २१॥ दोसगुणा आगमानुसारेण वत्तवा । जयणा पुण-"जत्थ बहूणं घाओ जीवाणं होइ भुजमाणमि । तं वत्थु वजेजा अइप्पसंगं च सेसेसु ॥१॥" एवमादि कायवा । उभयरूवेवि एत्थ अइयारा भन्नति--
सच्चित्तं पडिबद्धं अपउलदुपउलतुच्छ भक्खणयं । वजइ कम्मयओवि एत्थं इंगालकम्माय ॥ २२ ॥
सावगेण हि भोयणओ किर उस्सग्गेण निरवजाहारेण होयवं, कम्मओ पुण पाएण निरवजकम्माणुट्ठाणेण, भणियं च"निरवजाहारेणं निजीवेणं परित्तमीसेणं । अप्पा संथारेजा कम्मं च चएज सावजे ॥१॥" अओ एवंविहसावगावेकखाए अभिग्गहविसेसं वा पडुच्च जहासंभवं एए अइयारा दट्ठवा, तत्य य भोयणओ ताव मन्नंति-सचित्तंति सचेतणं कंदादित वजेइ, इह सहसाकारअणाभोगेहिं अइक्कमवइक्कमअइयारेहिं वा सच्चित्तं आहारेंतस्स अइयारो होइ; अन्नहा पुण भंग एव । तहा | पडिबद्धं-संबद्धं सच्चित्तरुक्खेसु गुंदाइ पक्कफलाणि वा, पडिबद्धभक्खणं हि सावजाहारवजगस्स सावजाहारपवित्तिरूवत्ताओ अणाभोगाइणा अइयारो, अहवा मज्झटिगं सचेयणं छहिस्सामि कडाहं पुण अचेयणं भक्खइस्सामि, एवंविहबुद्धीए पक्कखज्जुराइफलं मुहे पक्खिवंतस्स सच्चित्तवञ्जगस्स सच्चित्तपडिबद्धाहारो अइयारो । तहा अपउलत्ति अपक्कं-अग्गिणा अपरिकम्मिय धन्न, दुप्पउलियं-दुपक्कं अद्धसिन्नं धनं, तुच्छंति निस्सारं कोमलमुग्गफलिमाइ, एएसिं धन्नाणं मक्खणं अइयारो, तत्थ
पं. चू०८
॥८५
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कर्मतो
द्वितीयगुणव्रतस्य पश्चदशातीचाराः
श्रावकधर्म-है सच्चिताहारो १ सञ्चित्तपडिबद्धाहारो २, एए पढमा दोनिवि अइयारा सचेयणकंदफलाइविसया, अप्पउलिओसहिमक्खणं पश्चाशक- दुप्पउलिओसहिभक्खणं तुच्छोसहिभक्खणं च, एए तिन्निवि अइयारा सालिगोहुमादिसचित्तोसहिविसया ददुवा, तत्थ चूर्णिः दोण्हं भावणा भणिया, अप्पउलिओसहिभक्खणं पुण अणाभोगअइक्कमाईहिं अइयारो, अहवा कणिकाइ दत्वं सचित्तावयव
मीसंपि पिट्ठत्ताइणा पगारेण अचित्तभेयंति नियबुद्धीए विगप्पिय भक्खेंतस्स वयसावेक्खस्स अइयारो होइ । दुप्पउलिओसहिभक्खणं पुण जवगोहुमचणगपिहुगाइधन्नस्स दुप्पक्कयाए सचित्तावयवसंभवेण मिस्सस्स पक्कत्ताओ य अचेयणमेयंति एवंविहबुद्धीए भुजंतस्स अइयारो । तुच्छोसहिभक्खणं पुण कोमलमुग्गाइफलीओ विसिट्ठतित्तिअजणगाओ तुच्छाओ सचित्ताओ चेव अणाभोगअइकमाईहिं भुजंतस्स अइयारो, अहवा अचंतपावभीरुययाए सच्चित्ताहारपरिहारो को तत्थ य जं तित्तिजणगं सचित्तं तं पिराहेऊणंपि भक्खेउ, सचित्ताहारपरिवजणस्स चेव अब्भुवगमाउ, जं पुण तित्तिजणणअसमत्थाओवि ओसहीओ लोलुययाए अचित्तीकाऊण भुजेइ, एवं तुच्छोसहिमक्खणं अइयारो, जओ तत्थ भावओ विरती विराहिया, दवओ पुण पालियत्ति । एवं राइभोयणमहुमज्जमसाइबएसुवि आणाभोगअइक्कमाईहिं अइयारा भावेयवा । संपयं कम्मव्वयाइयारा भन्नति-वजह कम्मयओऽवित्ति वजइ-परिहरइ, कम्मयओ-कम्मवयमासज्ज, एत्थंति भोयणउवभोगवए सचित्तभक्खणाईणि पंच वजेइ, कम्मयओ पुण इत्थ बीयगुणवए अंगारकम्माईणि वजेइ, कम्मओ बीयगुणवए पनरस अइयारा भवंति, जओ भणियं
"इंगाले १ वणसाडी ३ भाडी ४ फोडीसु ५ वजए कम्मं । वाणिज्जं चेव दंत १ लक्ख २ रस ३ केस
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॥८६॥
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आवकधर्मपलाशक
चूर्णिः
॥। ८७ ।।
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४ विस ५ विसयं ( ६-१० ) ॥ १ ॥ एवं खु जंतपिल्लणकम्मं १ निलंछणं २ च दवदाणं ३ । सरदहतलायसोसं ४ असईपोसं च वज्जेज्जा ५ (११-१०) ||२|| " भावत्थो - आवस्सगचुन्नी अक्खरेहिं बुच्चड़ - " इंगालकमंति अंगारे काऊ विकिrs, तत्थ छण्हं जीवनिकायाणं वहो भवइ, तओ तन्न कप्पर, अहवा लोहकाराइ १, वणकम्मं-जं वर्ण fare aओ रुक्खे छिंदिउँ विकिणिऊग मुल्लेण जीवइ, एवं पत्ताईणिवि पडिसिद्धाणि भवंति २, सगडी कम्मं -सागडिगत्तेणं जीव, तत्थ गवाई वहबंधादयो दोसा भवंति ३, भाडीकम्मं-जं सरणं परभंड वहह, अन्नेसिं वा सगडबलीवद्दाईणि अप्पेह ४, फोडी कम्मं - उड्डत्तणं, अहवा हलेण जं भूमी फोडिअर ५, दंतवाणिअं - जं पुवमेव पुलिंदाणं मुलं देइ, दंता मम देजह, पच्छाते पुलिंदा हत्थिणो मारिंति, सिग्धं सो वाणियओ एहित्ति, एवं कम्मकराणं संखमुलं देइ, एवं चमराईणपि, पुवाणीए
कि ६, लक्खाणिअंपि एवं चेत्र, दोसो पुण तत्थ किमिया भवंति ७, रसवाणिज्जं - कलालत्तणं, तत्थ य सुराईहिं अणेगे दोसा मारणको सहाणो ८, केसवाणिजं जं दासीमाइ घेत्तृणं अन्नत्थ विकिणिज, एत्थचि अणेगे दोसा परवसित्तादयो ९, विसवाणिज्जं विसविक्किणणं, तं च न कप्पर, जओ तेण बहूणं जीवाण विराहणा होइ १०, जंतपिल्लणकम्मंतिलर्जतउच्छुताईहिं तिल उच्छुमाईणं पीलणं ११, निल्लंछणं - गवादीणं वद्वियकरणं १२, दव्वग्गिकम्मं-जं वणदवं देह खेत्तरक्खणनिनित्तं जहा उत्तरावहे, दड्डे पच्छा तरुणतिणमुट्ठेइत्ति, तत्थ य सत्तसयसहस्साण वहो होइ १३, सरदहतलाय[परि ]सोसणं-जं सरदहाईणि सोसेर, तत्थ य धन्नं वाविजह १४, असईपोसणं-जं जोणीपोसगा दासीओ पोसंति तासिं संबंधिणि भाडं गेव्हंति, जहा गोल्लविसएत्ति १५ । दिसिमेत्तपदरिसणं च एवं बहुसावजाणं कम्माणं, न पुण
कर्म तो द्वितीय
गुणवतस्य
पञ्चदशातिचाराः
॥ ८७ ॥
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तृतीय
भावकधम-ट पञ्चाशकचूर्णिः ।
गुणव्रतस्य स्वरूपम्
॥८८॥
RANSCIENTIANE
परिगणणंति, इह चेवं वीसइयारभणणं अन्नवएसुवि पंचाइयारसंखाए तज्जाइयाणं वयपरिणामकलुस्सकारणाणं भेयाणं अन्नेसि संगहो दद्द्वोत्ति । एयस्स अत्थस्स जाणावणत्थं कये, तेण सइअंतद्धाणाई जहासंभवं सबवएसु अइयारा ददुवा इति, अंगारकम्मादओ खरकम्माइपगारा चेव, अओ खरकम्माइवयधारगेण परिहरणीया, जया पुण एएसु अणाभोगाइणा पयट्टा तया खरकम्मवयाइयारा भवंति, जया पुण आउट्टियाए एएसु पयट्टइ तया भंग एव ।। २२ ॥ भावणा एरिसी-" सद्देसि साहूणं नमामि जेहिं अहियंति नाऊण । तिविहेण कामभोगा चत्ता एवं विचिंतेजा ॥१॥" तहा-" मलमइलजुन्नवत्थो परिभोगविवजिओ जियाणंगो। कइया परीसहचसु अहियासंतो हु विहरिस्सं ॥२॥" एवमाइ, भणियं बीयं गुणवयं । इयाणि तइयं भन्नह
तहणत्थदंडविरई अन्नं स चउविहो अवज्झाणे । पमयायरिएहिंसप्पयाण पावोवएसे य ॥ २३ ॥
तहत्ति जहा भोगवया अणुव्वयाणं गुणकरा तहा एयपि, अत्थो-पओयणं धम्मत्थं इंदियत्थं सयणत्थं च ज पावाणुट्ठाण कीरह, तत्थ धम्मत्थं चेइहरकरणाइसु, इंदियत्थं भोयणतंबोलाइसु, सयणत्थं किसिवाणिजआइसु, तं अट्ठाय, जे पुण अवज्झा. णाइसु धम्मिदियसयणपओयणं विणा कीरइ तं अणत्थाय, तेण दंडो-जीवस्स निग्गहो अणत्थदंडो तस्स विरई-निवित्ती, अन्न-तइयं गुणवयं होइ, एयं वयसरूवं । अह मेदा भन्नति-स चउविहोत्ति सो-अणत्थदंडो चउबिहो-चउप्पगारो, तंजहा-अवज्झाणेत्ति निरत्थयं अट्टरुद्दचिंतणं अवज्ज्ञाणं, जहा मम रजं भवउ, अजरामरतं मम होउ, लच्छी भोगा वा हुंतु, वेरिगो वा मरउ, सुंदरं वा संजायं जं सो वेरिगाइ मओ, रट्ठभंगो वा भवउत्ति एवमाइ। तहा पमायायरिएत्ति तत्थ
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बावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः
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पमाओ-मजविसयकसायनिहाविगहासरूवो तेण आयरियं-अणुट्टियं पमायायरियं, अहवा पमायायरिय-जं आलस्सो- अनर्थदण्डवहएहिं किजइ, तं पुण अपिहियघयगुडतेल्लभायणअग्गिचुल्लगाइधारणं जीवोवघायकारणंति । तहा जूयरमणकुकुडहत्थि- ||स्य भेदसंडमल्लजुज्झपेच्छणगदंसणाईणिवि एत्थ चेव भाणियवाणि । तहा हिंसाजणगं हिसं-आउहअनलहलविसाइ तस्स पयाण- चतुष्कं अन्नेसिं समप्पणं हिंसप्पयाणं। तहा-पावं-पावकारणं किसिमाइकम्मं तस्स उबएसो पावोवएसोत्ति, भणियं च-"खेत्ताई अनर्थदण्डकसह गोणे दमेह एमाइ सावगजणस्स । उबइसिउं नो कप्पा जाणियजिणवयणसारस्स ॥ १॥" चसद्दो समुच्चये, एवं दोषाश्च चउमेओ अणत्थदंडोत्ति ॥ २३ ॥ जह जायइत्तिदारं जहा पुवं भणियं तहा दढवं, अहवा-"दट्ठणं दोसजालं अणत्थदंडंमि न य गुणो कोई । तविरती होइ दढं विवेगजुत्तस्स सड्ड(त्त)स्स ॥१॥" ति, एवं भावंतस्स अणत्थदंडविरह होइत्ति, दोसा पुणअणत्थदंडस्स बहुकम्मबंधाइया, जओ भणियं-" अद्वेण तं न बंधइ, जमणद्वेणंति थेबबहुभावा । अढे कालाईया, नियामगा न उ अणट्ठाए ॥१॥" अद्वेण-कुटुंबाइनिमित्तेण पबत्तमाणो तं-तेत्तियं कम्मं न बंधइ ज-जेत्तियं अणद्वेण-पओयणं विणा | पवत्तमाणो, किं कारणं ?, भन्नइ-थेवबहुभावत्ति जेण पओयणं थे-परिमियं, अपओयणं पुण बहुयं, पमायस्स परिमाणाभावाउ, जओ भन्नइ-अढे कालाईया नियामगत्ति-अढे पओयणे कालाईया नियामगा-वरिसारत्तकालाइअवेक्खं चेव किसिकम्माईवि भवइ-म उ अणहाएत्ति, पओयणं विणा पयर्ट्सतस्स नियामगं-निसेहगं किंपि नस्थित्ति अओ अणद्वेण बहु बंधति जीवो थोत्रं अद्वेणंति । गुणा पुण अणत्थदंड परिहरंतेण कमबंधाईया परिचत्ता भवंति, तहा इहलोए वि-"जे पुण अणत्थदंडं न करेंति कयंपि कहव निदति । ते अंगरक्खसड्ढो व सावया गुण(सुख)निही होंति ॥१॥" कहाणगं च इमं
॥८९॥
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आवकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
श्राद्धस्य कथानकम्
॥९
॥
त्ति, तओ सामरिसेणं रामाला कप्पडिया अम्हे, कल्लंपि य ए रायसमीवं नीया, कुविओ
वसंतपुरे नयरे अजियसेणस्स रन्नो परिचारगा दुवे कुलपुत्तगा, तत्थेगो समणसड्डो, इयरो मिच्छद्दिट्टी, अन्नया स्यणीए रनो निस्सरणं, संभमतुरंताणं तेसिं घोडगारूढाणं खग्गा पणट्ठा, सड्डेण मग्गियं, जणवामदेण य न लद्धं, मिच्छविट्ठीणा हसिय किमन्नं न होहित्ति, सड्डेण अहिगरणंतिकाउं वोसिरियं, ते य पुण खग्गा बंदिग्गहस्स साहसिगेहि लद्धा, तओ गहिओ तेहिं रायवल्लहो, पलायमाणो वावाइओ य, तओ ते आरक्खिगेहिं गहेऊण रायसमीवं नीया, कुत्रिओ राया, पुच्छियं च णेण कस्स तुब्भे, तेहिं भणियं-अणाहा कप्पडिया अम्हे, कल्लंपि य एत्थ पत्ता खग्गा, कहिं लद्धत्ति
पुच्छिए तेहिं भणियं-पडियत्ति, तओ सामरिसेणं रना भणिय-गयेसह तुरियं मम अणवरद्धवेरीणं ईसरपुत्ताणं महापमत्ताणं ॐा केसि इमे खग्गत्ति, तओ आरक्खियपुरिसेहिं निउणं गवेसिऊण विनत्तं रनो-सामि ! सुणसु गुणचंदवालचंदाणंति, | तओ रत्ना पिहंपिहं सदावेऊग भणिया-लेह नियखग्गे, एक्केण गहियं, पुच्छिओ य रन्ना-कहं ते ?, पणटुं तेण कहिये, कीस तए न गविढं ?, भणइ-सामि! तुज्झ पसायणं एदहमेत्तंपि गवेसामि ?, सड्डो णेच्छइ, रन्ना पुच्छिओ-कीस न गेण्हसि ?, तेण भणियं-सामि ! अम्हाणं एस ठिती चेव णस्थि जं एवविहं अहिगरणं पडिजइ, संभमे य मग्गंतेणवि न लद्धं, अओ वोसिरियं, ततो ण कप्पड़ गिहिउं, ततो रन्ना पमायकारी अणुसासिओ, इयरो मुक्कोत्ति, किंच जहा एसो पमायगब्भेण अबोसिरणदोसेण अवराहं पत्तो एवं संसाराडवीए परिब्भमंतेहिं सबजीवेहिं तेसु तेसु ठाणेसु सरीराउहाइणो विप्पमुक्का तेहिं सत्थभृएहिं जया कस्सइ सतो परतो वा परियावणादयो भवंति तदा तस्सामी भवंतरगओवि जम्मंतरदेहाउहाइ अवोसरंतो अणुमइभावओ दोसं पावेइ, श्रूयते च जातिस्मरणादिना पूर्वभवदेहं विज्ञाय अत्यंतमोहात् गंगाए णइए अद्वियाणि नयं
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आवक्रधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
तृतीयगुणव्रतस्य पश्चातीचारा:
तीति, तम्हा भवंतरसरीराईणिवि अहिगरणंतिकाउं वोसिरियवाणि । संपयं जयणा-" कजं अगिहिच गिही काम कम्म
सभासुभं कुणइ । परिहरियव्वं पावं निरस्थमियरं च सत्तीए ॥१॥" कर्ज-पओयणं अगिहिच गिही-गिहत्थो ४ी काम-अईव अइसएण कम्म-किसिवाणिजाइ सुभासुभंति सुभ-किंचि निरवजं असुभं-बहुसावजं करेइ, तत्थवि परिहरियवं
पावं-सावजं निरत्थयं परिहरियवं इयरं च-सपओयणपि बहुदोसं जहासत्तीए परिहरियवं । इयाणिं अइयारा भणतिमा कंदप्पं कुक्कुइयं मोहरियं संजुयाहिगरणं च । उवभोगपरीभोगाइरेगयं चेत्थ वजेइ ॥ २४ ॥
कंदप्पो-कामो तस्स कारणं वयणपि कंदप्पो भन्नइ, मोहुद्दीविगा वाइगकिरिया इत्यर्थः तं वजेति, एत्थ य सामायारी"सावगस्स अट्टहासो न बद्दति, जति नाम हसियत्वं, तया ईसि हसियवं" । तहा कुक्कुइयंति कुक्कुओ-कुच्छियसंकोयणाइकिरियाजुत्तो तस्स भावो कुक्कुइयं अणेगपगारा मुहनयणाइविगारपुबिगा परिहासाइजणिया भंडाणपिव विडंवण किरिया इत्यर्थः, एत्थ सामायारी-" तारिसाणि भणिउं न कप्पंति जारिसेहिं लोगस्स हासमुप्पजइ," एवं गईए गंतुं ठाणेण वा ठाइउंति, एए दोन्निवि अइयारा पमायायरियवयस्स नायबा, पमायसरूवा एएत्तिकाउं । मोहरियंति मुखरता-वाचालता इत्यर्थः, धिद्वत्वेणं असच्चासंबद्धपलावित्तं तं, अहबा मुहेण अरिं आणेइ मोहरिओ, जहा कुमारामचेणं रनो किंपि तुरियं कर्ज जाय ताहे पुच्छियं-को सिग्घयरो होजत्ति ?, कुमारामच्चो भणइ-अमुगो चारहडो, ताहे रना पट्टविओ, पच्छा सो कुमारामच्चस्स पओसमावन्नो, एएण अहं रनो कहिउत्ति, तओ तेण रुटेण मारिओ कुमारामच्चोति एवमाइ, एसो पुण पावोवएसवयस्स अइयारो, मोहरिए होंते पावोवएससंभवाओ। तहा संजुयाहिगरणंति अहिकिजइ-खिप्पइ नरगालएसु जेण जीवो तं
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पावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः
॥९२॥
अहिगरणं वासिउक्खलसिलापुत्तगगोहुमजंताइ संजुयं-संजुत्तं किरियासमत्थं अहिगरणं, तत्थ सामायारी-"सावगेण न तृतीयसंजुत्ताणि चेव सगडाईणि धारेयवाणि एवं वासीफरसुमाइविभासा पुत्वं चेव कए कजे विसंजोइजंति, पच्छा लोगा न ||गुणवतस्य रूसंति, अग्गीवि जाहे गिहत्थेहि सगिहेसु पज्जालियो होइ ताहे पज्जालेइ, गाविओ पढमं न पसरावेइ न आहेडेइत्ति जं भावना भणियं होइ, हलवत्तयंपि पढमं न करेइ एवमादि," एसो पुण हिंसप्पयाणवयस्स अइयारो । तहा उवभोगपरीभोगाइरेगयंति-उवभोगाण-पुष्फतंबोलण्हाणविलेवणाईणं अइरेगयं-अहिगत्तं उवभोगपरिभोगातिरेगयं, चकारो समुच्चये, एत्थ| अणत्थदंडविरतीए वजेइ-परिहरइ, एत्थवि सामायारी-"उवभोगपरिभोगाइरिताणि जइ बहूणि तेल्लामलगाणि गेण्हइ तदा तल्लोमेण बहुगा हायगा तडागाइसु ण्हाउं वच्चंति, तओ य पूयरगआउक्कायाइवहो बहुगो होइ, एवं पुप्फतंबोलमाइसु विभासा, एवं च न बट्टइ, तओ को विही उवभोगे ?, तत्थ व्हाणे ताव घरे चेव व्हाइयवं, जह नस्थि घरे सामग्गी तदा तेल्लामलएहि सीसं घसित्ता ताणि य सवाणि साडेऊण तडागाईणं तडनिविट्ठो पालियं च काऊण वत्थाइगालियजलेण अंजलीहिं व्हाइ, तहा जेसु पुप्फेसु कुंथुमाईणि संभवंति ताणि परिहरइत्ति," एसोविपमायायरियवए चेव अइयारो विसयसरूवो एसोत्ति काउं, अवज्झाणायरियवए पुण अणाभोगाइणा अवज्झाणे पयद॒तस्स अइयारो, कंदप्पाई पंचवि आउट्टीयाए कीरमाणा भंगा एव नायवा, जओ भणियं-"कंदप्पाइ उवेच्चा कुवंतो अइकिलिट्ठपरिणामो। पावस्सुदएण गिही मंजइ एयं अविनाणो ॥१॥" संपयं भावणादारं-तत्थ-"चिंतेयत्वं च नमो सअत्थगाइपि जेहिं पावाई । साहहिं वजियाइं निरत्थगाइं च सवाई ॥१॥" तहा-"चिंतिति | करेंति सयंति जति पति किंपि जयणाए । तम्मुवउत्ता संमजे ते साह नमसामि ।। १॥" भणियं तइयं गुणव्वयं ॥ २४॥ ॥९२॥
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बावकधर्म-12
सामायि
पञ्चाशकचूर्णिः ।
स्वरूपम्
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॥१३॥
तम्भणणाओ भणियाणि गुणवयाणि | इयाणि सिक्खावयाणि भन्नति, तत्थ सिक्खा-अब्भासो ताए जुत्ताणि वयाणि सिक्खावयाणि पुणो पुणो आसेवणीयाणि इत्यर्थः, ताणि पुण सामाइयाईणि चत्तारि, तत्थ ताव सामाइयं भन्ना
सिक्खावयं तु एत्थं सामाइयमो तयं तु विन्नेयं । सावजेयरजोगाण बजणासेवणारूवं ॥ २५ ॥
सिक्खावयंतिपयस्स अत्थो कहिओ चेव, अहवा दुविहा सिक्खा-गहणसिक्खा, आसेवणसिक्खा य, तत्थ गहणसिक्खा-सुत्तपढणाइसरूवा, आसेवणसिक्खा पुण उवहिपडिलेहणपप्फोडणाइविसया एवंविहसिक्खासहियं वयं | सिक्खावयं, तुसदो पुणसहत्थे, एत्थंति-सावगधम्मे, सामाइयंति-समस्स रागद्दोसरहियस्स आओ-लाभो समाओ, समभावो हि जीवो पइक्खणं अपुवेहिं नाणदंसणचरित्तपजवेहिं निरुवमसुहहेऊहिं अहोकयचिंतामणिकप्पहुमोवमेहिं संजुजए, एवंविहलाभकारणं किरियाणुट्ठाणं सामाइयं बुच्चइ, उसहो पायपुरणे, तयं तुत्ति तं पुण सामाइयं विनेयं-नायवं सावजेयरजोगाण बजणासेवणारूवंति सावञ्जजोगाणं-असुभवावाराणं वजणं-परिहरणं, निरवजजोगाणं-सुभवावाराण आसेवणं-अणुट्ठाणं सामाइयस्स सरूवंति, एत्थ पुण इमा सामायारी-" इह सावगो दुविहो-इड्पित्तो अणिड्पित्तो य, जो सो अमिड्डिपत्तो सो चेइयहरे वा साहुसमीवे वा गिहे वा पोसहसालाए वा जत्थ वा वीसमति निवावारो वा अच्छइ तत्थ सवत्थ सामाइयं करेति, चउसु ठाणेसु पुण नियमा करेइ, तंजहा-चेइयहरे साहुसमीवे पोसहसालाए वा घरे वा आवस्सयं करतोत्ति, तत्थ जइ साहुसमीवे करेइ, तया एसो विही-जदि परं परमयं नत्थि, जइ केणवि सह विवाओ नस्थि, जइ कस्सवि दवं न धरेइ, मा होउ तेण समं कड्डाकढिति, जइ य धरणगं दटुं न गेण्हइ, मा होउ भंडणति, जइ
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॥९३॥
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आवकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
सामायिकस्य विधिः
१९४॥
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य वावारं न करेति, तया सघरे चेव सामाइयं काऊग उवाहणाउ मुत्तूणं सच्चित्तदवरहिओ वच्चइ, पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाए संजुत्तो जहा साहू, भासाए सावजं परिहरंतो, एसणाए कटुं वा लेटुं वा अणुण्णविऊण पडिलेहित्तु गेण्हतो, एवं आयाणे निक्खेवे य, तहा खेलसिंघाणाईणि न विगिंचइ, विगिंचितो य थंडिलं पडिलेहेइ पमजइ य, जत्थ अच्छइ तत्थ गुत्तिनिरोहं करेइ, एएण विहिणा गंतूण तिविहेण साहूणो नमिऊण सामाइयं करेइ-"करेमि भंते ! सामाइयं सावजं जोगं पच्चक्खामि जाव साहूणो पज्जुवासामि दुविहं तिविहेण," एवमाइ उच्चरिऊण, ततो इरियावहियाए पडिकमइ पच्छा आलोइत्ता बंदइ आयरियाई जहा राइणियाए, पुणरवि गुरुं वंदित्ता पडिलेहित्ता निविट्ठो पुच्छइ पढइ वा, एवं चेयहरेसुवि । असइ साहु चेइयाणं पोसहसालाए सगिहे वा सामाइयं वा आवस्सयं वा करेइ, तत्थ नवरि गमणं नत्थि, भणइ जाव नियम समाणेमि । जो पुण इड्विपत्तो सो सबरिद्धीए जाइ, तेण जणस्स अत्था होइ आदर इत्यर्थः, आढिया य साहुणो सुपुरिसपरिग्गहेणं भवंति, जइ पुण सो कयसामाइओ एइ, तया आसहत्थिमाईहिं अहिगरणं होजा, तं पुण न वहइ काउंति, अओ न करेइ, तहा 'कयसामाइएण पाएहिं गंतवं' तेण न करेइ, आगओ चेव साहुसमीवे करेइ, तहा जइ सो सावगो तया तस्स न कोइ अभुढेइ, अह अहाभद्दओ तया पूया कया होउत्ति पुवरइयं आसणं कीरइ, आयरिया य उढिया चेव अच्छंति, मा उठाणाणुठाणकया दोसा भवेजा, पच्छा सो इड्डिपत्तो सावगो सामाइयं करेइ, कहं ?, “करेमि भंते ! सामाइयं सावजं जोगं पच्चक्खामि दुविहं तिविहेणं जाव नियम पज्जुवासामि" एवमाइ, एवं सामाइयं काऊण इरियं पडिकतो वन्दित्ता पुच्छह वा | पढइ वा, सो य किर सामाइयं करेंतो मउडं कुडलाई नाममुदं च अवणेइ, पुप्फतंबोलपावारगाइयं च वोसिरह," अन्ने
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आवकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
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॥९५॥
OCHACHECRECROSAdolescROCRORE
भणति-'मउडं न अवणेइ,' एस विही सामाइयस्स ॥ २५ ॥ एत्थ सीसो भणइ-"कय सामाइओ सो साहुरेव ता इत्तरं न किं सत्वं । बजेइ सावजं तिविहेणवि संभवाभावा ॥१॥" पडिवनसामाइओ सावगो परमत्थओ साहुरेव सावजजोगपरिवज्जणाउ, जम्हा एवं तम्हा साहुव्व इत्तरकालं किं न सई करणकारणाणुमइविसयं सावजं जोगं तिविहेण वजेइत्ति ?, एत्थ भन्नइ-संभवाभावा सावगं अहिगिच तिविहं तिविहेणवि सबसावजजोगवजणासंभवाउत्ति, तओ य "सवंति भाणिऊणं विरई खलु जस्स सव्विया नत्थि। सो सत्वविरइवाई चुक्कइ देसं च स च ॥१॥" असंभवमेव भणइ-"आरंभाणुमईओ कणगाइसु अग्गहाऽनिवित्तीउ । भूओ परिभोगाउ, भेओ एसिं जओ भणिओ ॥१॥" आरंभाणुमइओ-सावगस्स हि पुत्रपवत्तियारंभेसु अणुमई अबोच्छिन्ना चेव भवइ तेण ते तहा पवत्तियत्तिकाउं तप्फलगहणाओ य, तहा कणगाइसु-हिरनमाइदब्वेसु अग्गहानिविनी.मामयति अभिसंगभावाउ अगहानिवित्ती, कह गम्मइत्ति चेत भूयोऽपि परिभोगाउ, अन्नहा जइ सबहा ताणि हिरनाईणि परिचत्ताणि तया सामाइयाउ उत्तरकालंपि न तेसिं परिभोगो जुजइ, सबहा चत्ताणित्तिकाउं, तहा-भेओ एसिं साहुसावगाणं अत्थि, जओ भणिओ महामुणीहिंति, किं कओ मेओ भणिओ ?, भन्नइ
"सिक्खा दविहा १ गाहा २ उववाय ३ ठिई ४ गइ ५ कसाया य ६ । बंधंता ७ वेयंता ८ पडिवजा ९ अइक्कमे पंच १०॥१॥" तत्थ सिक्खा-अब्भासो, सा दुविहा-गहणसिक्खा आसेवणसिक्खा य, तत्थ गहणसिक्खासत्तपढणाइरूवा, आसेवासिक्खा पुण मुहपोत्तिपडिलेहणाइसामायारीविसया, तत्थ गणसिक्खमहिगिच्च साह सुत्तओ अत्थओ जहण्णेणं अट्ठपवयणमायाउ उक्कोसेण संपुनाणि दुवालसंगाणि गिण्हइत्ति सावओ पुण सुत्तओ अत्थओ य जहण्णेणं अट्ठ
श्रावकः किं सर्व सावा त्रिविधे
नापिन ४ वर्जयतीति
प्रश्न: तत्समाधानं च
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श्रावकधर्म-3 पश्चाशकचूर्णिः ।
साधुश्रावकयोः शिक्षादिप्रकारेण
॥९६॥
भेद
वर्णनम्
पवयणमायाउ, उकोसेणं सुत्तत्थेहिं जाव छज्जीवणियं, अत्थओ उल्लावणं पिंडेसणज्झयणं, न पुण सुत्तओवित्ति, एवइयं गेण्हइत्ति । आसेवासिक्खमासज्ज साहू सयलं-संपुन्नं मुहपोत्तिपेहणाइयं सामायारि सययं जावजीवमासेवेइ, सावओ पुण इत्तरकयसामाइओवि अपरिन्नाणाउ अभिसंगानिवित्तीए असंभवाउ अणब्भासाउ य न पडिपुनसामायारिं पालेइत्ति, अओ सिक्खकओ साहुसावगाणं भेउत्ति दारं १ । तहा आगमगाहापामनाउ विसेसो, सा चेयं-" सामाइयमि उ कए समणो इव सावओ हवउ जम्हा । एएण कारणेणं बहुसो सामाइयं कुजा ॥१॥" एत्थ गाहाए समणो इव भणियं, न पुण समणो चेव, जहा-समुद्द इव तडागं न पुण समुद्दो चेवत्ति, तओ सारिक्खया चेव भणिया, न पुण अमेओ, अओ विसेसोत्ति दारं २ । उववायकओ विसेसो जहा-" अविराहियसामन्नस्स साहुणो सावगस्स य जहण्णो । सोहम्मे उववाओ भणिओ तेलोकदंसीहिं ॥१॥" अविराहियसामण्णस्स-पच्चजादिवसाउ आरम्भ अखंडियसपणभावस्स साहुस्स सावगस्स य अविराहियसावगभावस्सत्ति सेसं सुगम, उक्कोसेणं साहुस्स अणुत्तरविमाणेसु, सावगस्स अञ्चुयकप्पे उववाओत्ति, दारं ३ । तहा ठिइजणिओ भेओ, जहा-जहण्णेणं सोहम्मे साहुस्स पलिओवमस्स पुहुत्तं, सावगस्स पुण पलिओवमंति, उक्कोसेणं अणुत्तरविमाणे उववनस्स साहुस्स तेत्तीसं सागरोवमाई, सावगस्स अञ्चुए बावीसं ठिइत्ति दारं ४ । तहा गइमेयाओवि भेओ जहाववहारेण सामन्नेणं लोगठिई पडुच्च साहुस्स नारयतिरियनरामरसिद्धिलक्खणाओ पंचगइओ, सावगस्स पुण सिद्धिगइवञ्जाउ चत्तारि, अन्ने भणति-साहुस्स देवगइसिद्धिगईओ चेव भवंति, सावगस्स सिद्धिगइवजाओ चत्तारित्ति दारं ५। कसायउदयाणुदयभेयाओवि भेओ-साहुस्स चउण्हं कोहाइसंजलणकसायाणं उदओ अणुदओ वा होजा, जह उदओ चउण्हं वा तिण्हं वा
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॥ ९६॥
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भावधर्म
साधु
दोण्हं वा एगस्स वा, अणुदओवि एवं चेव, छउमत्थवीयरागं आइंकाऊण भावेयवो, सावगस्स पुण दुवालसण्हं अट्ठण्ह य उदओ, पश्चाशक- जया दुवालसण्हं तया अणताणुबंधिवजियाण अविरयं पडुच्च उदओ नायबो, जया पुण अट्ठण्हं तया अणंताणुबंधिअपच्चक्खाण- श्रावकयोचूर्णिः ।। वजाणं देसविरयस्सत्ति दारं । तहा बंधभेयाओ भेओ, तंजहा-मूलपयडीणं साहू सत्तविहबंधगो अट्ठविहबंधगो छबिहबंधगोन्ध भेदादि
एगविहबंधगो अबंधगो य भवइ, सावगो पुण सत्तट्ठविहबंधगोत्ति, तत्थ य-" सत्तविहबंधगा होति पाणिणो आउयजगाणं तु । कृतो भेदः ॥९७॥
तह मुहुमसंपराया, छविहबंधा विणिहिट्ठा ॥१॥ मोहाउयवजाणं पयडीणं ते उ बंधगा भणिया । उवसंतखीणमोहा केवलिणो ४ एगविहबंधा ।। २॥ ते पुण दुसमयठिइयस्स बंधगा न उण संपरायस्स । सेलेसि पडिबन्ना अबंधगा होति नायवा ॥३॥"
दारं । तहा वेयणाभेयाओ भेओ, जहा-साहु अट्ठण्हं सत्तण्हं चउण्हं वा कम्माणं वेयओ भवति, तत्थ अट्ठण्हं जो वा सो वा, सत्तण्हं मोहणीयवज्जियाणं उवसंतखीणमोहछउमत्थवीयरागा, चउण्डं अघाईणं केवली वेयगोत्ति, सावगो पुण नियमा अट्ठण्हं वेयगोत्ति दारं । तहा-पडिवत्तिकओ मेओ, जहा-साहु पंच महत्वयाणि पडिपुण्णाणि चेव पडिवाइ, सावगो पुण एगं दो तिणि चत्तारि पंच वा अणुव्वयाणित्ति, अहवा साहू एगया सामाइयं पडिवजइ सबकालं च धारेइ, सावओ पुण अणेगसो सामाइयं करेइ सयाकालं च न धारेइत्ति दारं । तहा अइक्कमजणियमेयाओ साहुसावगाणं भेओ, तहाहि-साहू एकं वयं कहिंचि अइक्कमंतो पंचवि अइक्कमइ, भणियं च-“छयस्स जाव दाणं ताव अइक्कमइ नेव एगपि । एगं अइकमंतो अइक्कमे पंच मूलेणं ॥१॥" ति, सावगो पुण एकमइकमंतो एक चेव विराहेइ, न सेसाणित्ति दारं । अहिगयसामाइयस्स भेया न | संभवंति, अओ ते न दंसिया । दोसगुणा सुयाणुसारेण भाणियवा । जयणा एरिसी कायवा-"धम्मज्झाणोवगओ उवसंतप्पा ID ९७॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ।
।। ९८ ।।
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सुसाहुभूओ य । सर्विदियसंजमओ सूसणओ य साहूणं ॥ १ ॥ इरिएसन भासासु य निक्खेवंमि तहा विसग्गे । तं कालमप्पमतो जह साहुजणा तह हवेजा ।। २ ।। " एवमादि संपयं एयस्स अइयारा भन्नंति
जगणं पणिहाणं इह जह जत्तओ विवजेइ । सइअकरणयं अणवट्टियस्स तहकरणयं चैव ।। २६ ।। जोगाणं - मणवयणकायाणं दुप्पणिहाणं- सावजे पयट्टणं इह - सामाइए जत्तओ - आयरेण विवज्जइ-परिहरेति, एए तिन्नि अइयारा, तह सइअ करणयंति सइए-सुमरणस्स अकरणं- अणासेवणं सइअकरणं, किं भणियं होइ ?, भण्णइ-अइमायाओ न एवं सुमरे, अनुगवेलाए मए सामाइयं कायवं, अहवा न याणइ किं सामाइयं कथं न कयं वत्ति, "सुमरणमूलं च मोक्खाणुट्ठाणं "ति, अणवट्टियस्स-अत्थिरसरूवस्स सामाइयस्स तहत्ति अइपमाइयवसेण करणं- आसेवणं, जो सामाइयकरणाणंतरमेव चयइ, जहिच्छाए वा करेड़, तस्स अणवद्वियकरणंति भन्नइ, चेवस दो समुच्चये, अयमेसिं भावत्थो - “ सामाइयंति काउं घरकञ्जं जो य चिंतए सड्डो | अट्टवसट्टोवगओ निरत्थयं तस्स सामाइयं ॥ १ ॥ कडसामइओ पुर्वि बुद्धीए पेहिऊण भासेजा। सह निरवञ्जं वयणं अन्नद सामाइयं न भवे || २ || अनिरिक्खियापमजियथंडिल्ले ठाणमाइ सेवतो । हिंसाऽभावे वि न सो कडसामइओ पमायाओ || ३ || न सरइ पमायजुत्तो जो सामाइयं कया उ काय ? । कयमकयं वा तस्स हु कयंपि विफलं तयं नेयं ॥ ४ ॥ काऊण तक्खणं चियं पारेइ करेइ वा जहिच्छाए । अणवट्ठियसामइयं अणायराओ न तं सुद्धं || ५ || " नणु मणोदुष्पणिहाणासु सामाइयस्स निरत्थगत्ताइभणणेण परमत्थओ अभाव एव कहिओ, अध्यारो य मालिनसरूवो चेव होइ, अओ सामाइयाभावे कहं अइयारो ?, तओ मंगा चैव एते, न अइयारा, सच्चमेयं, किंतु अणाभोगओ अइयारा होंतित्ति । नणु दुविहं तिविण
सामायिक
व्रतस्य पञ्चातीचाराः
।। ९८ ।।
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भावकधर्म- पञ्चाशकचूर्णिः ।
मन सुंदरत्ति ?, आयरिओगयरपञ्चक्खाणभंगेवि सेमाइए वि मिच्छादुकणा असमि
देशावकाशिकवतस्वरूपम्
॥९९॥
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सावजपञ्चक्खाणं सामाइयं, तत्थ य मणोदुप्पणिहाणयाइसु पञ्चक्खाणभंगाउ सामाइयस्स अभाव एव, पञ्चक्खाणभंगजणियं पायच्छित्तं च भवेजा, मणोदुप्पणिहाणं च दुप्परिहारं, मणसो अणवट्ठियत्ताउ, अओ सामाइयपडिबत्तिसगासाओ सामाइगअप्पडिवत्ती चेव सुंदरत्ति ?, आयरिओ आह-न एवं, जओ सामाइयं दुविहं तिविहेण पडिवन, तत्थ य मणेणं न करोमित्ति एवमाईणि छ पच्चक्खाणाणि, अओ एगयरपच्चक्खाणभंगेवि सेसपञ्चक्खाणसंभवाउ न सामाइयस्स सबहा अभावो, मिच्छादुक्कडेण मणोदुप्पणिहाणमेत्तस्स सुइसंभवाओ य, सबविरइसामाइए वि मिच्छादुक्कडेण मणोदुप्पणिहाणमेत्तस्स सुइअब्भुवगमाओ, जओ गुत्तिभंगे मिच्छामि दुक्कडं पायच्छित्तं मणियं, जओ आह-" बीओ असमिओमित्ति, कीस सहसा अगुत्तो वा" बीओ-अइयारो समिइगुत्तिमादिभंगरूवो अणुतावेण सुज्झतीत्यर्थः, अओ न पडिवत्तिसगासाउ अपडिवत्ती सुंदरत्ति, तहा-"साइयाराणुट्ठाणाओवि अम्भासओ कालेण निरइयाराणुट्ठाणं होइ"ति पुवायरिया भणंति ।। २६ ॥ एत्थ भावणा जहा-"धन्ना जीवेसु दयं करेंति धन्ना सुदिट्ठपरमत्था । जावजीवं जयणं करेंति एवं विचिंतेजा ॥१॥ कइया णु अहं दिक्खं जावजीवं जहडिओ समणो । निस्संगो विहरिस्सं एवं च मणेण चिंतेजा ॥२॥" एवमाइ । भणियं पढम सिक्खावयं । संपयं बीयं भन्नइदिसिवयगहियस्स दिसापरिमाणस्सेह पइदिणं जं तु । परिमाणकरणमेयं अवरं खलु होइ विनेयं ॥ २७ ॥
दिसिव्वयं-पुखभणियं तंमि गहियस्स दिसिपरिमाणस्स-उड्डाइदिसिगमणमाणस्स दीहकालियस्स, इह-सिक्खावए पइदिणं-पइदिवसं निच्चमेव, उवलक्खणं च इमं अद्भपहरपहराईणं, जंतु-जं पुण परिमाणकरणं-संखित्ततरदिसिपरिमाण
ROCHERCHESTOCOCAUSESSOCIENCEBOOK
॥९९॥
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CEO
देशावकाशिकवते
चूर्णिः
विष
दृष्टान्तः
भावकधर्म- है गहणं, एय-एवंविहं परिमाणकरणं अवरं-पढमाओ अन्नं बीयं सिक्खावयं देसावगासियनामगं खलु-गाहापूरणे होइ पश्चाशक- विन्नेयंति । देसावगासियसरूवफुडतरजाणणत्थं चुन्नी लिहिजइ-देसावगासियं नाम देसे अवगासं गेण्हइ, पुवं दिसिव्वयं
बहूणि जोयणाणि आसि, इयाणि दिवसे २ ओसारेइ, जत्तियं न जाहित्ति । एत्थ दिविविससप्पदिव॑तो, पुवं तस्स सप्पस्स
बारस जोयणाणि दिट्ठीए विसउ आसी, पच्छा एगेणं विजावाइएणं ओसारिओ जोयणडिओ, एवं सावयस्सवि दिसिवए बहू ॥१०॥
विमओ आसी पच्छा देसावगासिए ततो ओसारेइ । अहवा विसदिटुंतो सरीरगयं विसं अगएणं एगाए अंगुलीए ठवियं, एवं सावओ वि आवकहियाओ दिसिवयाओ दिणे दिणे ओसारेइ, जाव अज य राओ ण णीणेमि, एवं निवेसणाओ साहीओ नगराओ, उजाणाओ, अह जाइउकामो होइ तो भणइ-मम अमुगदिसाए एत्तियाणि जोयणाणि एगं दो तिन्नि वत्ति, एवं करेंतो किंचिमेत्तविराहओ सेसस्स अविराहउत्ति । अन्ने भणंति-एवं सववएसुवि जे पमाणा ठविया ते पुणो २ दिवसओ ओसारेइ, देवसियाओवि रति ओसारेइ, एवं-" एगमुहुत्तं दिवसं राई पंचाहमेव पक्खं वा । वयमिह धारेउ दढं जावइयं उच्छहे कालं ॥ १॥" तत्थ पाणाइवाए-"पुढविदगअगणिमारुयवणस्सइ तह तसेसु पाणेसु । आरंभमेगसो सबसो य सत्तीए वजेजा ॥१॥न भणेज रागदोसेहिं सियं नवि गिहत्थसंबद्धं । भासेज धम्मसहियं मोणं व करेज सत्तीए ॥२॥ न य गेण्हेज अदिन्नं किंचिवि असमिक्खियं व दिनपि । भोयणमहवा वित्तं तु एगसो सवसो वावि ॥३॥ होज य परिमाणकडो सएवि दारंमि वत्तयारी य । दढधिइमं पंडियओ दुगुंछओ कामभोगाणं ॥४॥ संतेसु वि अत्थेसु तं कालं तेसु णाइतण्हाओ। इच्छाए एगदेसं अहवा सवंवि वजेजा ।। ५॥" एवमाइ जहासंभवं भोगवयअणत्थदंडवएसुवि माणियत्वंति । गुणदोसा
SOCIRCORRECARECORECAS
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॥१०॥
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भावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः
देशावकाशिकवतस्य पश्चातीचाराः
॥१०१॥
CARGAADAM
| सुगमा । जयणा इमा-" देसावगासियं खलु नायवं अप्पकालियं एयं । एत्तो एगमवि वयं कुब्जा मइमं ससत्तीए ॥ ६॥" एत्थ अइयारा भन्नतिवजइ इह आणयणप्पओग पेसप्पओगयं चेव । सद्दाणुरूववायं तह बहिया पुग्गलक्खेवं ॥ २८ ॥
वजइ-परिहरइ इह-बीयसिकखावए आणवणपओगं-आणवणे-विवक्खियखेत्ताओ चहिं ठियस्स सचेयणाइदवस्स विवक्खियखेत्तपावणे पओगो-सयंगमणे वयभंगभयाओ अनस्स संदेसाइणा वावारणं आणवणपओगो तं च वज्जेइ । | तहा पेसप्पओगयंति पेसो-कम्मकराई तस्स पओगो-विवक्खियखेत्ताओ चाहिं पओयणत्थं सयं गमणे वयभंगमयाओ अण्णस्स वावारण पेसपओगो तं च वज्जेइ, चेवसद्दो समुच्चये । सद्दाणुरूववायंति छंदोमंगभयाउ अणुसदो मज्झे पढिओ, अन्नहा सदरूवाणुवायंति पढिउं जुञ्जइ, तत्थ सदस्स-खासियाइसरूवस्स अणुवाओ-विवक्खियखेत्ताओ बाहिं ठियस्स आहवणीयस्स कन्नविवरे पाडणं सहाणुवाओ, एवं स्वस्स सरीरसंबंधिणो अणुवाओ-दिट्ठीए पाडणं रूवाणुवाओ, एए दोवि वजेइ, विवक्खियखेत्ताओ चाहि ठियं कंचि नरं वयभंगभयाओ हकारेउं असक्कितो जया खासियाइसद्दसुणावण- | भिसेण ससरीररूबदरिसणमिसेण य तं आकारेह तया वयसावेक्खस्स सहाणुवाओ रूवाणुवाओ य अइयारो। तह बहिया पोग्गलक्खेवंति तहा विवक्खियजणागमणनिमित्वं बहिया विवक्खियखेत्ताओ पोग्गलक्खेवं-लेखगाइपक्खेवणं तं वज्जेइ देसावगासियवयं हि घेप्पड़ मा होउ गमणागमणाइजणिओ जीवघाउत्ति एवंविहाभिप्पारण, सो पुण जीवधाओ सयं कओ | अन्नेण वा कारिउत्ति न कोइ फले विसेसो, नवरि गुणो सयं गमणे, इरियावहविसुद्धिकरणाओ, अण्णस्स पुण अनिउणस्स
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॥११॥
in Education
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श्रावकधर्मपश्वाशक
चूर्णिः ।
॥ १०२ ॥
Jain Education
इरियाव सुद्धिअसंभवोत्ति । तत्थ य पढमा दोन्नि अइयारा अनि उणबुद्धित्तणेण सहसाकाराहणा वा, तिनि पुण अंतिमा असढायारस्स अइयारा भवंतित्ति, अन्नहा भंगा एव ॥ २८ ॥ एत्थ य भावणा इमा-" सवे य सबसंगेर्हि वज्जिए साहुणो नमंसेज्जा | सवेहिं जेहिं सवं सावजं सबहा चत्तं ।। १ ।। " भणियं बीयं सिक्खावयं । संपयं तइयं भन्न
आहारदेहसकारबंभवावारपोसहं अण्णं । देसे सब्वे य इमं चरमे सामाइयं नियमा ॥ २९ ॥
कुसलधम्मं पोसेइ-बुड्डि नेइत्ति पोसहो-पवदिवसाणुट्ठाणं, स पुण चउविहो - आहारदेहसकारबंभ चेरअवावारपोसह मेयाओ, आहारदेहसकाराणं वञ्जणं बंभचेर अवावाराणं च आसेवणमित्यर्थः, अन्नंति देसावगासियाउ अवरं तहयं सिक्खावयं, एयं चउविहंपि दुहा होइ, अओ भन्नह - देसे सब्वे यत्ति देसे - आहाराईणं देसविसए सर्व्वसु-निश्वसेसेसु आहाराइसु चसद्दो समुच्चये, इमति पोसहवयं होह, तत्थ य चरिमे-अंतिमे भेए सइओ अवावारपोसहनामगे कए सति सामाइयं-पमसिक्खावयं नियमा-अवस्संभावेण निच्छरण काय होइ, जइ न करेइ सामाइअफललाभाभावो भवेजा । एत्थ य भावत्थो पुव्वायरियमणिओ इमो
आहारपोसहो दुविहो-देसे सवे य, तत्थ देसे विवक्वियविगइए अविगईए आयंविलस्स वा एकसिं वा दो वा वारे भोयणंति, सवओ पुण चउविहस्सवि आहारस्स अहोरतं जाव पच्चक्खाणं । सरीरसक्कारपोसहो पुण ण्हाणुवत्तणवन्नगविलेवणपुष्पगंधतंबोलविसिद्धवत्था भरणपरिचाओ, सोवि दुविहो - देसे सधे य, तत्थ देसे अमुगं सरीरसकारं न करोमि, सधे पुण करेमिन्ति । बंभचेरपोसहो दुविहो - देसओ सबओ य, तत्थ देसे दिवा रतिं वा एकसिं दो वा वारे अभासेवणं, सङ्घओ पुण अहो -
पौषधत्रस
स्वरूपम्
॥ १०२ ॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
पौषधः विधिः
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रसं जाव बंभचेरपालणं । अव्वावारपोसहोवि देसओ सबओ य, तत्थ देसओ अमुगं वावारं न करेमि, सवओ पुण सवेचि वावारे हलसगडघरकम्माइ न करेमि । तत्थ अबावारविसए-जो देसओ पोसहं करेइ स सामाइयं करेइ वा न वा, जो पुण सबओ अबावारपोसहं करेइ स नियमा सामाइयं करेइ, जइ न करेइ तया सामाइयफलेणं वंचिजह । तं च कहिं केण वा विहिणा करेइत्ति ? एयं भणइ-चेझ्यहरे वा साहुमूले वा घरे वा पोसहसालाए वा, उम्मुक्कमणिसुवन्नो ववगयमालावन्नगविलेवणपहरणो, तंमि य कए पढइ पोत्थयं वा वाएइ, धम्मज्झाणं वा झियाइ, जहा-एए साहुगुणा अहं मंदभग्गो न समत्थो धारे एवमाई विभासा-"तं सत्तिओ करेजा तवो उ जो वनिओ समणधम्मे । देसावगासिएणं जुत्तो सामाइएणं वा ॥१॥ सक्वेसु कालपव्वेसु पसत्थो जिणमए तवो जोगो। अट्ठमिपन्नरसीसु य नियमेण हवेज पोसहिओ ॥२॥" एत्थ य जइ आहारसरीरसकारवंभचेरपोसहपि व अब्बावारपोसहंपि अन्नत्थऽणामोगेणंति एवमाई आगारुच्चारणपुवगं पडिवाइ तया सामाइयपि सफलं होइ, जओ थूलं पोसहपच्चक्खाणं सुहुमं सामाइयपच्चक्खाणं, तहा पोसहिएणवि सावजवावारा न कायचा चेव, तओ मामाइयं अकरेंतो सामाइयलाभाउ मस्सइ, जइ पुण सामायारीविसेसाउ सामाइयम्मिव 'दुविहं तिविहेण 'न्ति एवं पोसह पडिवाइ तया सामाइयत्थो पोसहे चेव गउत्ति काउंन सामाइयं अञ्चतं सफलं, जइ परं पोसहसामाइयलक्खणं वयदुगं पडिवनं मएत्ति एवंविहभावणाए सफलंति । एत्थ य जं भणियं 'जइ पुण सामायारीविसेसाओ सामाइयमिव दुविहं तिबिहेण पोसहं पडिवजह'त्ति एवमाइ, तमियाणी सामायारीविसेसं पुवायरियमणियं दंसेमि
"अह भवसुहविरयमणो अणनसामन्नचरणरागेण । जइ सुहकंखी किर कुणइ सबओ पोसहं सड्ढो ॥१॥" पढम नमो
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ACROR
१.३
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ASSES
श्रावकधर्मपश्चाशक
सामायिकसूत्रस्यार्थः
चूर्णिः
॥ १०४॥
CASHAIKHERECREAK
कारविबोहाइ काउं उजित्तु चित्तवासंगं गोसग्गे इरियं पडिक्कमिय अंगपडिलेहणं करिय, उच्चाराइभूमि पेहेत्ता छोभवंदणेण वंदिय इच्छाकारेण संदिसह पोत्तियं पडिलेहेमित्ति भणिय खमासमणपुवयं पोत्तियं पडिलेहिय खमासमणेण पोसहं संदिसाविय बीयखमासमणेण पोसहे ठामित्ति भणित्ता खमासमणं दाउं उद्धडिओ ईसिं ओणयकाओ गुरुवयणमणुभासंतो नमोकारमुच्चरिय भणइ-"करेमि भंते ! पोसहं आहारपोसहं सबओ देसओ वा सरीरसकारपोसहं सबओ बंभचेरपोसहं सबओ अबावारपोसहं सबओ चउबिहे पोसहे सावजं जोगं पञ्चक्खामि जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि" इमं पुण पढियसिद्धमेव, नवरं अहोरत्तठाणे दिवसं राई वा पज्जुवासामि एयपि दट्ठवं, पुणो पोसहविहिणा सामाइयमुहपोत्ति पेहिता खमासमणेण संदिसाविय बीयखमासमणपुर्व सामाइए ठामित्ति भणित्ता खमासमणपुवं अद्धावणयगत्तो पंचमंगलं कड़ित्ता भणइ "करेमि भंते ! सामाइयं सावजं जोगं पञ्चक्खामि जाव नियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।" एयस्स अत्थो-करेमि-अभुवगच्छामि अब्भुवगमगहणेण य "तुलादंडनायओ' नाणजयणाओ वि घेप्पंति, एवमेव विरइसंभवाओ, जओ भणियं " नाणभुवगमजयणाहिं बजविरइओ अट्ठमे भंगे।" एवमाइ, भंतेत्ति-गुरुआमंतणं, इमं च सबसुहाणुट्ठाणाणं गुरुपारतंतपदरिसणपरं, तहाहि-" गुरुणाऽणुन्नायाणं किच्चं किचंपि जमिह समणाणं । बहुवेलाइकमाओ सत्वत्थ पुच्छणा भणिया ॥१॥" तहा "गुरुपारतंतनाणं सद्दहणं एयं संगयं चेव । एत्तो उ चरित्तीणं मासतुसाईण निद्दिष्टुं ॥१॥" किं ?, सामाइयं-समभावलाभरूवं, तत्थ य सावजं जोग-असुमं
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१०४॥
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सामायिक| सूत्रस्यार्थः
M
चूर्णिः
मावकधर्म-2ी वावारं अणुमइवजं पच्चक्खामि-निवारेमि जाव नियमं पज्जुवासामि-जत्तियं कालं सामाइयवयमासेवेमि, वयकालो य पश्चाशक- जहन्नेण वि किल बहुत्तो, जओ-"काऊण तक्खणं चिय पारेइ करेइ वा जहिच्छाए । अणवडियसामइयं अणायराओ न तं |
सुद्धं ॥१॥" अन्ने प्रण इह ठाणे " जाव पोसहं पज्जुवासामि "त्ति भणावेति । पचक्खाणं च सामनेण नवहा 'तिविहं तिविहेणं' इच्चाई, तत्थ ठवणा |३|३|
३ ॥१०५॥
शशशशश जोगा | गाहा-"तिद्गेगाणं तियतियं तिगेगे य तिगतिग अहे ठवसु । मेया तिन्ग तिगे |३|२|१|३|२|१।३।२।१ करणाणि पढमे एको नव नवऽनेस ॥१॥"ठवणा तो चउत्थपयारसंगहमाह-दविहं तिविहेणं. १।३।३।३।९९.३.९५ भगा सोऽवि तिहा तो पढममेयनियमं करेति-मणेणं वायाए काएणं, न करेमि, न कारवेमि, तस्स-सावजजोगस्स, भंतेत्ति पुणो भणणं आयरक्खावणत्थं, सुगुरुपडिवत्तिं विणा न किंचि कुसलमिति जाणावणत्थं च, जओ-"गुरुसक्खिओ हु धम्मो संपुनविही | कयाइ उ विसेसो। तित्थयराणाकरणं सुगुरुसगासे गुणा होति ॥१॥" पडिकमामि-नियत्तामि, निंदामि-आयसमक्खं, गरहामि-गुरुमाइपच्चक्खं, भणियं च-" मणसा मिच्छादुक्कडकरणं मावेग इह पडिक्कमणं । सचरित्तपत्थयावो निंदा गरहा परसमक्खं ॥१॥" अप्पाणं-सावञ्जजोगकारिणं वोसिरामि-चयामि, अहवा पागयलक्खणाउ अप्पणा-नियगाभिप्पाएण न बलाभियोगाइणा, अणेण सहजपरिणामकयं धम्माणुट्ठाणं कम्मनिजराकारणति सूएइ, वोसिरामि-सावजजोगो संबज्झइ, संरंभसमारंभारंभरूवं संवेगपबलयाए मुंचामि एस सामाइयसुत्तसंखेवत्थो।
एवं पोसहं सामाइयं च पडिवज्जिय खमासमणदुगेण वासारत्ते कट्ठासणं उउबद्धे पाउंछणगं वा पमञ्जिय खमासमणदुगेण
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१०५॥
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
चेव संदिसाविय सज्झायं उवउत्तो सुहनिसन्नो कुणइ, भावओ एगे वा अणेगे वा, गीयत्थसाहुसंभवे य सबहुमाणं तप्पज्जुवा- पौषधसणापरो अवस्सं सिद्धतसारसवणं विहिणा करेइ, भणियं च-"तित्थे सुत्तत्थाणं गहणं विहिणा उ एत्थ तिथमिणं । उभयन्न विधिः चेव गुरू विही उ विणयाइओ चित्तो॥१॥ उभयन्नूवि य किरियावरो दढं पवयणाणुरागी य । ससमयपन्नवगो परिणओ य पनो य अच्चत्थं ॥२॥" तहा "सुत्ता अत्थे जत्तो अहिययरो नवरि होइ कायवो । एचो उभयविसुद्धित्ति सूयगं केवलं सुतं ॥३॥" तओ पउणपोरिसीए खमासमणेण संदिसाविय खमासमणपुत्वमेव पडिलेहणं करेमित्ति भणिय मुहणतगं पडिलेहित्ता संभविभंडोबगरणं पडिलेहेइ, मज्झे सवत्थसज्झाओ जाव कालवेला, तओ जइ चेहहरे वंदणं न कयं तो तं करेइ । चिइवंदण हि जइ गिहीहिं अहोरत्ते सत्तहा तिहा वा कायवं, तत्थ सत्तहा-सुक्षुडिओ १ पच्चुसावस्सए २ चेहरे ३ भोत्तुकामो ४ भोचा पञ्चक्खंतो ५पओसावस्सए ६ सुविउकामो य ७ तं करेइ, तिहा पुण तिसंझं फुडमेव, जो पुण आहारपोसही देसओ सो तत्थेवर पोसहसालाए घरे वा साहुव्व गंतुं पुन्ने पञ्चक्खाणे तीरिए य खमासमण दुगेण( पुर्व )मुहपोत्ति पडिलेहिय खमासमणेण वंदिय भणइ-इच्छाकारेण संदिसह पारावह पोरिसिं पुरिमुढें चउविहार एक्कासण निवीयमायंबिलं वा कयं, जा कावि वेला ताए पारावेमि, तओ सकस्थएण चेहए वंदिय सज्ज्ञायं सोलस वीसं वा सिलोगे काउं जहासंभवं अतिहिसंविभागं दाउं मुहहत्थपाए पडिलेहिय नवकारपुवं अरत्तदुट्ठो मणवइकाएहिं अकयमकारियं फासुयं भत्तपाणं भुंजइ, भणियं च-"रागद्दोसविरहिया वण-3 लेवाइउवमाए भुंजंति । कड्डित्तु नमोकार विहीऍ गुरुणा अणुनाया ॥१।। असुरसुरं अचवच अदुयमविलंबियं अपरिसाडि । मणवयणकायगुत्तो मुंजेजऽह पक्खिवणसोहिं (इ साहुच उवउत्तो ) ॥ २॥" एवमाइ, एवं विहिणा भुंजितुं ईरियावहियं
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भावकधर्म- II पडिकमिय दुवालसावत्तवंदणं काउं पच्चक्खाइ, जइ पुण सरीरचिंत्ताए अट्ठो तो आवस्सियं काउं-" अजुयलिया अतुरंता ||
पौषधपश्चाशकविगहारहिया वयंति समणोछ । निसिइत्तु डगलगहणं आवड(यम)णं वचमासज्ज ॥ १॥" इच्चाइविहिणा अवरदक्षिणाए
विधिः चूर्णिः ।
दिसाए अणावायमसंलोयाइगुणजुत्ते तसपाणबीयरहिए थंडिले दिसिपवणगामसूरियाइविहिणा पासवणुच्चारं वोसिरिय
पुच्च कमेण वियारभूमीओ सट्ठाणमागम्म निसीहियं काउं खमासमणपुत्वमिरियं पडिकम्म गुरुं पइ भणंति-इच्छाकारेण ॥१०७॥
संदिसह गमणागमणं आलोयहं, आवस्सी करिय अवरदक्षिणाइ दिसिहि जाइउ दिसालोयं करिय संडासगे थंडिलं च पमन्जिय उच्चारपासवणं बोसिरिय निसीही करिय पोसहसालं पविट्ठा आवंतेहिं जंतेहिं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं । तओ तहेव सज्झायं करेइ जाव समोगाढा चरमपोरिसी, तओ छोभवंदणं दाउं इच्छाकारेण संदिसह
पडिलेहणं करेमि, पुणो बंदिय पोसहसालं पमजेमित्ति भणिय तओ भत्तट्ठी इयरो य दोषि मुहणंतगं सकायं पडिलेहिति | पच्छा अभत्तडिओ खमासमणदुगेण अंगपडिलेहणं संदिसावेइ, तओ पोसहसालं पमजइ, तओ दुखमासमणपुत्वयं मुहणंतयं पडिलेहिय अप्पणो उवहिं थंडिल्ले य संदिसाविय वत्थं कंबलाइ जाव कडिपट्टयं पडिलेहेइ, भत्तट्ठी पुण अंगपडिलेहणं संदिसाविय कडिपट्टयं पडिलेहेइ, एस विसेसो, सेसविही तुल्लो, तओ खमासमणदुगेण पोत्ति पडिलेहिता सज्झायं वइसणं च संदिसाविय पढणगुणणसिद्धंतसुणणाइ कुणंति जाव कालवेला, तओ सो चउवीसं उच्चारपासवणाण थंडिले पेहेइ, तओ सूरत्थमणसमए पडिक्कमिय विस्सामणाइ साहुकिच्चं किच्चा सज्झायं संदिसाविय तप्परायणो ताव अच्छइ जाव पुण्णा पढमपोरिसी, तओ काइया उवओगं काउं खमासमणदुगपुवं मुहपोत्तिय पडिलेहिय खमासमणं दाउं भणइ-इच्छाकारेण ॥ १०७॥
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
पौषध.. विधिः
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संदिसह राइसंथारयं संदिसावेमि, पुण खमासमणं दाउं राइसंथारए ठामित्ति वोत्तुं संथारभूमि गंतुं मुहणतंगतेण ससीसोवरियं कायं भूमि संथारयं च पमजित्ता नमोकारं सामाइयं च तिक्खुत्तो कड्डित्ता अणुजाणह निसीही नमो खमासमणाणंति भणिय संथारए ठाइ, बाहुवहाणेण वामपासेण अपमत्तो निद्दापमोक्खं कुणइ, जइ उबट्टइ पमजइ साहुत्व, कुक्कुडिदिटुंतेणं हत्थपायसंकोयपसारण करेइ, सुत्तविउद्धो सरीरचिंतं काउं इरियावहियं पडिक्कमित्ता जहन्नेणवि गाहातिगसज्झायमणुपेहेइ असंथरंतो संथारयं पमजिय निवाइ, चित्ते चिंतेइ य जहा-"जम्मजरामरणजलो अणाइमं वसणसावयाइन्नो। जीवाण दुक्खहेऊ कटुं रुद्दो भवसमुद्दो ॥१॥ कालंमि अणाईए जीवाण विचित्तकम्मवसगाणं । तं नत्थि संविहाणं संभवइ जं न भमिराणं ॥२॥ चुलसीइजोणिलक्खसु णेगकुलकोडिलक्खगहणेसु । भमिरेण इहावयसंपयाउ णताउ पत्ताउ ॥ ३ ॥ पिइमाइपउत्ताईसंबंधा वावहारियजिएहिं । सवे सोहि सया अणंतखुत्तो इहं पत्ता ॥४॥" तहेह-"रागोरगगरलभरो तरलइ चित्तं तवेह दोसग्गी। कुणइ अणुचियपवित्तिं महामईणंपि हा मोहो ॥ ५॥ पुरिसेण भुतपुत्वं नारिं दद्वण अच्चुयंतसुरो। तक्खणसेवी जायइ हहा तहिं चेव ननु रमए ॥ ६ ॥ इय गुच्छाइसु सहसारंतगदेवा जमेसि तेयतणू । अंगुलअसंखभाग मणिया मरणतसमुघाए ॥ ७॥" किं बहुणा ! पायमिह जीवा-"अन्नाणधा मिच्छत्तमोहिया कुग्गहुग्गगहगहिया । मग्गं न नियंति न सद्दहति चिट्ठति न य उचियं ॥ ८॥ ता कइया तं सुदिणं सा सुतिही तं भवे सुनक्खत्तं । जत्थ सुगुरुपरतंतो चरणभरधुरं | धरिस्समहं ॥९॥" एवमाइ । तओ राइए चरमजामे उट्ठेऊण इरियावहियं पडिकमिय पुत्वं व पोत्तिं पेहिय नमोकारपुत्वं सामाइयसुत्तं कड्डिय संदिसाविय सज्झायं कुणइ अप्पसद्देण जहा तत्तायगोलकप्पा घरकोइलगाई न जग्गंति जाव पडिक
COCCACHECRUCIRCRACROCEKACROG
P॥१०८॥
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श्रावकधमः पश्चाशकचूर्णिः ।
पौषधव्रतस्य पश्चातीचाराः
READARATECOM
मणवेला । तओ उचियकाले विहिणा पडिक्कमिय खमासमणदुगेण पडिलेहणं संदिसावि मुहर्णतयं सकार्य पडिलेहिय खमासमणदुगेणं अंगपडिलेहणं संदिसावेइ(इइ) काउं च तं मुहपोत्तिपेहणखमासमणदुगदाण पुवमुवहिं संदिसाविय वत्थकंबलाइपोसहसालं पमन्जिय खमासमणदुगेण सज्झायं संदिसाविय पढइ सुणेइ । इय भावओ कृणतेण सुत्तओ अत्थओ करणओ य पोसहवयमाणाए फासियमाराहियं च भवे, जया पुण पोसहं पारिउकामो तया खमासमणदुगेण मुहपोत्तिं पडिलेहिऊण खमासमणदुगेण सामाइयं व पोसह पारेड, पुण मुहपोत्तिपेहणपुवं सामाइयं पारिता "छउमत्थो मूढमणो" इच्चाइगाहाओ भणइ उवगरणं च मुंचइत्ति । इह पुण अहिगुणखमासमणेसु न विरोहो, पोत्तिपेहणाइसु सामायारीबहुत्ताओ विणयनयदरिसणाओ य ॥ २९ ॥ एत्थ अइयारा भन्नति
अप्पडिदुप्पडिलेहियपमजसेज्जाइ वजई एत्थ। सम्मं च अणणुपालणमाहाराईसु सब्वेसुं ॥ ३०॥ ___ अप्पडिदुप्पडिलेहियत्ति अप्पडिलेहियं दुप्पडिलेहियं च, अप्पमजत्ति-अप्पमज्जियं दुप्पमज्जियं च सेजाइ, आदिसद्दाओ संथारगउच्चारपासवणभूमी घेप्पंति, तं वज्जेइ-परिहरइ, एत्थ-तइयसिक्खावए, अणेण गाहारेण चत्तारि अइयारा दंसिया, तंजहा-अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहियसेन्जासंधारए, अप्पमजियदुप्पमज्जियसेन्जासंथारए, अप्पडि. | लेहियदुप्पडिलेहियउच्चारपासवणभूमी, अप्पमजियदुप्पमजियउच्चारपासवणभूमीति, सुगमा य एए
चत्तारि, नवरं अप्पडिलेहिओ-चक्खुणा न निरिक्खिओ, दुप्पडिलेहिओ-सम्म अनिरिक्खिओ सज्जासंथारओ-सयण-1 निमित्तं पोसहियोवओगी दम्भकुसकंबलीवत्थमाइओ, अहवा सेज्जा-सयणं सवंगीणं वसही वा सेजा, संथारगो-अड्डाइज
पं० चू० १.
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श्रावकधर्म
पञ्चाशकचूर्णिः । ॥ ११० ॥
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इत्थपरिमाणो, उवलक्खणं च एयं पीढफलगाईणं, तहा अप्पमजिओ स्यहरणाहणा, दुप्पमजिओ अणुवउत्तयाए । नणु किं पोसहियस्स रयहरणं अस्थि १, अस्थित्ति भणामो, जओ सामाइयमामायारिं भणतेण आवस्सगचुन्नियारेण भणियं" श्यहरणेणं पमजड़ जओ साहूणं उवग्गहियं रओहरणमत्थि तं मग्गइ असति पोत्तस्स अंतेणं "ति । वायणंतरे पुण एवं भणियं “ साहूणं सगासाओ रयहरणं निसेअं वा मग्गह, अह घरे तो से उबग्गहियं स्यहरणं अस्थि, तस्स असइ पोतस्स अंतेणं "ति, उच्चारपासवण भूमी-पुरीसमुत्तपरिट्ठत्रणथंडिलंति । इह पुण वुडभणिया सामायारी इमा-“ कयपोसहो न अप्पडिलेहियं सेज्जं आरुदइ संथारगं वा, पोसहसालं वा सेवइ, दम्भवत्थं वा सुइवत्थं वा न अप्पडिलेहियभूमीए संथारेह, काइयाभूमी य आगओ पुणरवि संधारगं पडिलेहेइ अन्नहा अइयारो भवेजा, एवं पीढाइसुवि विभासा" । एए चत्तारि वि अइयारा सबओ अवावारपोसहे चैव भवति, तहा संमति आगमाणुसारेणं, चसद्दो समुच्चये, अणणुपालणं- अणासेवणं आहाराईमुत्तिआहारपोसह माईणं सर्व्वसुत्ति सवेसिं-सयलाणं अवावारपोसहपजवसाणाणंति । भावणा पुण एयस्स एवं कयपोस हो अथिरचित्तो आहारे तत्र समाहारं, तसं वा पत्थर, बीयदिवसे वा अप्पणो अत्थाए आय (हा ) रं कारवेह, सरीरसकारे सरीरं उबट्टे, दाढियाउ केसे रोमाई वा सिंगाराभिप्पाएणं संठवेइ, दाहे वा सड़ सरीरं सिंच, एवं सवं सवाणि सरीरभूसाकारणाणि भणियवाणि, बंभचेरे पुणा इहलोइए परलोइए वा भोगे पत्थेड़ [संवाहे वा, ] अहवा सदफरिसरूवगंधे वा अहिलसइ, कइया बंभचेरपोसहो पुण्णो भविस्सह, चइयामो वंमचेरेणंति एवं वा विचिते, अवाबारे सावजाणि वावारे, कयमकथं वा चिंते, एवं पंचाइयारसुद्धा पोसहो अणुपालेयद्वोत्ति । एत्थ भावणा-" उग्गं तप्पंति तत्रं सरीरसकारवज्जिया
अननुपालनाति
चारस्य भावना
।।। ११० ।।
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१०
भावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ।। ॥१११॥
अतिथिसंविभागव्रतस्य पश्चातीचाराः
SSCREELAMSAROCHAK
निचं । निवावारा तह भयारि जइणो नमसामि ॥१॥"त्ति ॥ ३० ॥ मणियं तइयं सिक्खावयं, संपयं च उत्थं भन्नइ
अन्नाइणं सुद्धाण कप्पणिजाण देसकालजुयं । दाणं जईणमुचियं गिहीण सिक्खावयं भणियं ॥ ३१॥
अन्नाईणं-भोयणमादीणं, आइसद्दाओ पाणवत्थोसहमेसअपीढफलगसेज्जासंथारगाइ घेप्पति, अणेण य हिरन्नाइपडिसेहं भणइ, सुद्धाणं-नायागयाण, नाओ पुण माहणखत्तियवइससुद्दाणं नियनिय वित्तीअणुट्ठाणं, एएण य अन्नायागयाणं निसेहं भणइ, कप्पणीयाणं-उग्गमाइदोसवजियाणं, एएण पुण अकप्पणीयाणं अफासुयअणेसणिजाणं निसेहं भणइ, भणियं च चुन्नीए " जइ आहाकम्मं देह तो साहुमहे भुंजइ, हेठिल्लेहि संजमठाणेहिं ओयारेइ, तेण आहाकम्मेणं ण सो अतिहिसंविभागो भवइ "त्ति, देसकालजुयं-पत्थावोचियं, जओ काले दिन्नं महंतोपगारकारगं होइ, भणियं च-"काले दिन्नस्स पहेणयस्स अग्यो न तीरए काउं । तस्सेवाऽथकपणामियस्स गिण्हंतया नत्थि ॥१॥" पहेणयस्सत्ति-लाहणगस्स, अथकपणामियस्सत्तिअणवसरदिन्नस्स, अहवा देसकालजुयं-खेत्तकालाणुरूवं जं जत्थ देसे काले वा उचियति भणियं होइ, दाणं जईणंति सुगम, उचियं-संगयं गिहीणत्ति समणोवासगाणं सिक्खावयं-अतिहिसंविभागरूवं भणिय, अतिही-साहू तस्स पच्छाकम्माइदोसरहिओ संविभागो अतिहिसंविभागो, स एव वयं अतिहिसंविमागवयंति । एत्थ वुड्वभणिया सामायारी "सावगेण पोसहं पारंतेणं नियमा साहूण दाऊण पारेयवं, अन्नया पुण अनियमो, दाउं वा पारेइ, पारेउं वा देइ, तम्हा पुर्व साहणं दाउं पच्छा पारेयत्वं, कहं ? जया देसकालो भवइ, तया अप्पणो विभूसं काउंसाहुणो तप्पडिस्मयं गंतूण निमंतेइ भिक्खं गेहहत्ति, साहणं तं सावगं पइ का पाडवत्ती ? भन्नइ, तया एगो पडलगं अन्नो मुहणंतगं अवरो भायणं पडिलेहेह, मा अंतरायाइया दोसा |
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श्रावकधर्मपञ्चाशक- चूर्णिः
अतिथिसंविभागव्रतस्य पश्चातीचाराः
॥११२॥
ठवियाइदोसा य भवंतु, सो जइ पढमाए पोरिसीए निमंतेइ अस्थि य नमोक्कारसहियपच्चक्खाणी तओ तं घेप्पइ, अह नत्थि नमोकारइत्तो कोई तया न घेप्पड़, जओ ताव वोढवं होइ, जइ पुण घणं लगेजा तया घेप्पड़ संठविजइ य जो वा उग्घाडपोरिसीए पारेइ पारणगइत्तो वा तस्स तं दिज्जइ । पच्छा तेण सावएण सम संघाडगो वच्चइ, एगो न वट्टइ पेसेउं, साधू पुरओ सावओ पुण पच्छओ गच्छइ, तओ सो घरं नेऊण ताव आसणेण उवनिमंतेइ, जइ निविसंति तया सुंदरं, अह न निविसंति तहावि विणओ पउत्तो भवति, तओ सो भत्तं पाणं च सयमेव देइ, अहवा भायणं धारेइ भजा देइ, अहवा ठिओ चेव अच्छति जाव दिन्नं, साहुवि सावसेसं गिण्हंति पच्छाकम्मपरिहरणत्थं, तओ दाऊणं वंदिऊण य विसज्जेइ अणुगच्छइ य कइवि पयाणि, तओ सयं भुंजइ, जं च किर साहूणं न दिन्नं तं सावगेण न भोत्तवं, जइ पुण तत्थ साहुणो नत्थि, तया भोयणवेलाए दिसिअवलोयणं करेइ, विसुद्धभावेण य चिंतेइ-जह साहुणो हुंता तयाऽहं नित्थारिओ होतोत्ति," एवमाइ, " नाणीसु बंभयारिसु भत्तीए उग्गहं परं कुजा । पाविउकामो पवरं इह परलोए य दाणफलं ॥१॥" ३१॥ एत्थ अइयारा भन्नति
सचित्तनिक्खिवणयं वज्जइ सचित्तपिहणयं चेव । कालाइकम्म परववएसं मच्छरियं चेव ॥ ३२ ॥
सचित्ते-सचेयणे पुढवाइगे निक्खिवणयं-साहुदेयभत्ताइदवस ठावणं सचित्तनिक्खिवणगं तं वजेइ-परिहरेइ, तहा सचित्तपिहणयंति-सचित्तेण-फलाइणा पिहिणयं-साहुदेयस्स भत्ताइदवस्स ढक्कणयं सचित्तपिहणयं, चसद्दो समुच्चए, एवकारो अवधारणे,तहा कालस्स-साहुउचियभिक्खासमयस्स अतिकम्म-अदिच्छाए अणागयभोयणपच्छाभोयणदारेण उल्लंघणं कालाइक्कमो, तहा परस्स-अन्नस्स ववएसो-परसंतिय मेयं अन्नाइयंतिएवं अदाणे सङ्कस्स साहुसमक्खं भणणं परववएसो,
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११२ ॥
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भावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
॥ ११३ ॥ ४
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तहा मच्छरो - असहणं साहूहिं मग्गियस्स कोवकरणं, अहवा ' तेण रंकेण जाइएण दिनं अहं पुण किं तओवि हीणो ' एवमाह विगप्पो मच्छरो, सो जस्स अस्थि सो मच्छरिगो तस्स भावो मच्छरियया तं च वज्जे, चैत्रसहो समुच्चये । अइयारभावणा पुण इमा-जया अणाभोगाइणा अइकमाइणा वा एए अइयारे समायरइ तथा अइयारा, अण्णया पुण भंगोति । तहा च " बरसाहुगुणसमिद्धं साहुजणं साहुवच्छलं च जणं । पूइंतस्स उ भत्तीए होइ धम्मो जिणपसत्थो ।। १ ।। ते जं करेंति धीरा सुसाडुणो साहुवच्छला निच्चं । तेसिं भत्तीए गिट्टी वि होइ धम्मेण संजुत्तो ॥ २ ॥ कालंमि वट्टमाणे अईयकाले अणागए चेव । अणुजाणइ जीवइयं समणे भावेण वेदंतो || ३ || तो सकारेयद्दा बुहेण वरधम्मचारिणो निययं । कायवा जीवदया य होइ निस्सेकामे || ४ || धम्मो अणुग्गिहीउ संपत्ती जं मए इमा पत्ता । वित्तं पत्तं महसुद्धया य एयंति कल्लाणं ।। ५ ।। " एमाइ भावणापहाणेण होयव्वंति ।। ३२ ।। भणियं चत्थं सिखावयं, तन्भणणेण भणियाणि बारसवि सावगवयाणि, संपयं तेसु अइयारमणणं सोहे | नणु जइ अइयाराऽचि परिहरणीयत्तणेण इह भन्नंति तथा केण कारणेण तेसिंपि वयापि पञ्चकखाणं नोदसि ? तवजण मेत्तमेव य उवहट्ठेति एयं चित्ते ठवेऊण भणइ -
एत्थं पुण अइयारा नो परिसुद्धेसु होंति सव्वैसु । अक्खंडविरह भावा वज्जह सव्वत्थ तो भणियं ॥ ३३ ॥
एत्थं-एएस पाणाइवायाइएस पुणसदो एवं विसेसेइ, एवं ताव वयाणि भणियाणि एएसु पुण वएसु अइयारा देसभंगरूवा, नो-न चैव परिसुद्धे सु-कम्मखओवस मागय विरइपरिणामपडिवनयाए निम्मलेसु हुंति-संभवंति सव्वेसु बारससुवि एत्थ कारणं भन्नइ-अक्खंडविरह भावा-पडिपुन्नदेसविरहमात्राओ, न हि पडिपुन देसविरइपरिणाम सब्भावे बंधवहाहपवित्ती
अतिचारकथन
तात्पर्यम्
॥ ११३ ॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
॥११४॥
%%AASCIENCE
भवइत्ति, अओ एएण कारणेण सव्वत्थ-सबसुत्तेसु बजइत्ति मणियं ॥ ३३ ॥ इयाणि जमिह पगरणे वित्थरभया संमत्त- सम्यक्त्ववयगोयरं न भणियं, तं आगमाउ नायवंति, तत्थ अतिदेसं भणह
व्रतादीनासुत्ताउ(दु)वायरवणगहणपयत्तविसया मुणेयव्वा । कुंभारचकभामगदंडाहरणेण धीरेहिं ॥ ३४ ॥ मुपाय
सुत्ताउ-आगमाउ उवायरक्खणगहणपयत्तविसया मुणयव्वा, तत्थ उवाओ-सम्मत्ताणुवयाइपडिवत्तीए अब्भु- रक्षणग्रहणट्ठाणाइलक्खणो हेऊ, जो भणिय-"अब्भुट्ठाणे विणए परक्कमे साहुसेवणाए य । सम्मइंसणलंभो विरयाविरईए विरईए ॥१॥" प्रयत्नएईए चुन्नी-अम्मुट्ठाण-आमणपरिच्चाओ, आमणत्थं वंदित्ता विणएण पुच्छइ ताहे विणीउत्ति साहू कहंति, विणओ नाम
विषयाः अंजलिपग्गहपणिपातादि, परकमेण--कमायजएण, अथवा साधुसमीपगमनेन, अथवा पराक्रमः-उकालाहः पुरुषकार इत्यर्थः तेन साहुसेवणा जत्थ तत्थ ठिए खणविखणं सेवेइ, चग्गहणा सुयसामाइयलाहो, अहवा जाइसरणादितित्थगरवयण तदनवयणलक्खणो उवाओ, जो भणियं-" सहसंमुइयाए परवागरणेणं अन्नेसि वा सोचा" । अहवा पढमवीयकसायउवसमो उबाउत्ति ।" तहा रक्खणं-अंगीकयसंमत्तवयाणं परिवालणोवायसरूवं आययणसेवादी, जो भणियं-"आययणसेवणा निनिमित्तपरघरपवेमपरिहारो। किड्डापरिहरणं तह विक्कियवयणस्स परिहारो ॥१॥" तहा महणं-'तिविहं तिविहेण' एवमादिविगप्पेहि सम्मत्तवयाणं अंगीकरण, भणिय च-"मिच्छत्तपडिकमण तिविहं तिविहेण नायवं"। तहा "दुविहं तिविहेण पढमउ दुविहं दुविहेण चीयओ होइ । दुविहं एगविहेणं एगविह चेव तिविहेणं ॥१॥"ति एवमादि, तहा पयत्तो-संमत्तवयगहणुत्तरकाले तयणुसरणाइ उवरि भन्नमाणसरूवो, अहवा अपञ्चक्खा यस्सवि जहासत्ति परिहारुजमरूवा जयणा पयत्तो, जहा-in११४॥
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
विरतिपरिणामपातस्य चिह्नम्
| "नो मे कप्पइ अनउस्थिए वा" एवमादि, तहा-"परिसुद्धजलग्गहणं दारुयधनाइयाण तह चेव । गहियाणवि परिभोगो विहीए तसरक्खणढाए ॥१॥" एवमादि, तहा विसओ--संमत्तवयाण गोयरो, तत्थ संमत्तस्स विसओ जीवाजीवाईतत्तसरूवो, वयविसओ पुण थूलसंकप्पियजीवाइसरूवो, एए उवायादयो इह विसेसेण अभणियावि आगमाओ नायबा, किंचि वि पुत्वं दंसिया य, कहं नायबा ?, भन्ना-'कुंभारचक्कभामगदंडाहरणेणंति' कुंभारचक्कस्म भामगो-भमणकारणं जो दंडो तल्लक्खणं जं उदाहरणं तेण धीरेहि-बुद्धिमंतेहिं, किं भणियं होइ?, भन्नइ-जहा कुंभारचक्कस्स दंडाउ भमण होइ एवं उवायादओ सुत्ताउ धीरेहिं नायबा ॥ ३५ ॥ संपयं गहियसंमत्तवएण संमत्तवयपरिणामथिरत्तनिमित्तं जे कायई तम्भणणत्थं इमं ताव भन्नइगहणा उवरि पयत्ता होइ असंतोऽवि विरइपरिणामो। अकुसलकम्मोदयओ पडइ अवण्णाइ लिंगमिह। ३५॥ . गहणा- 'गुरुमूले सुयधम्मों' एवमाइविहिणा संमत्तवयपडिवत्तीउ उवरि-उत्तरकाले पयत्ताउ-उज्जमाउ सगामाउ होइ असंतो वि-कम्मदोसाउ अविजमाणोवि विरहपरिणामो-उवलक्खणं च एसो तेण सम्मत्तपरिणामोऽवि दहावो, पयत्तंउज्जम अकरितस्स दोसमाह-अकुसलकम्मोदयउ-असुहकसायाइकमाणुभावाओ पडइ हुँतो वि वयगहणस्स उवरि पयत्तं विणा विणस्सइ विरहपरिणामो, तप्पडिवाओ य लिंगेण नजइ, अतो तं चेव दंसेइ - अवन्नाइ लिंगमिहत्ति अवनो--बयाणं क्यदेसणगाणं वा वयधारगाणं वा अगुणथुइ, अहवा अवन्ना-अणायरो तयाईणं, आइसद्दाउ वयरक्खणोवाए अप्पवित्तिमाइयं
च लिंग-लक्खणं चिंधति एगटुं, इहत्ति वयपरिणामपडिवाये ॥३५ ।। न य एवं वत्तवं विरइपरिणामाभावे कहं वयगहणंति ? | उवरोहाइणा वयगहणसंभवाउ, सुवंति हि अणंताणि दवओ समणत्तसावगत्तगणाणित्ति पुबसूइयं उपएममेव भणइ
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सम्यक्त्वादिस्थैर्यार्थमुपदेशः
चूर्णिः
श्रावकधर्म- तम्हा णिच्चसईए बहुमाणेणं च अहिगयगुणमि । पडिवक्खदुगुंछाए परिणइआलोयणेणं च ।। ३६ ॥ पश्चाशक- तित्थंकर भत्तीए सुसाहुजणपज्जुवासणाए य । उत्तरगुणसद्धाए य एत्थ सया होइ जइयव्वं ॥ ३७॥
जम्हा असंतोऽवि विरइपरिणामो पयत्ताउ उप्पजइ, पयत्रं विणा पुण अकुसलकम्मोदयाउ संतोऽवि परिवडइ, तम्हा-तेण
कारणेण निचसईए--अणवरयसुमरणेण, 'होइ जइयत्वं ति बीयगाहाचरमपएण सह संबंधो, तहा बहुमाणेणं-भावपडिबंधेण, ।। ११६॥
चमद्दो समुच्चये, अहिगयगुणमि-अंगीकयगुणमि संमत्ताणुबयाइए, इमं पयं पुत्वपएहिं उत्तरपएण य सह पत्तेगं जोइजइ, तहा पडिवखदुगुंछाए--मिच्छत्तपाणिवहाइदुगुञ्छाए, तहा परिणइआलोयणेणंत्ति-संमत्ताणुवयाईणं विवकखभूया मिच्छत्तपाणाइवायादयो दारुणफला, अंगीकयगुणा पुण संमत्ताणुछयाइया परमत्थहेयवोत्ति एवंविहविवागपरिभावणेण सया | जइयवं, चसदो समुच्चये ॥ ३६॥ तहा तित्थंकर भत्तीए-परमगुरुविणएण, तहा सुसाहुजणपज्जुवासणाए--भाव| जइसेवाए, चसदो समुच्चए, तहा उत्तरगुणसद्धाए-पहाणयरगुणाभिलासेण, सम्मत्ते सति अणुव्वयाभिलासेण अणुवएसु संतेसु महत्वयाभिलासेणत्ति, चमद्दो समुच्चये, एत्थति सम्मत्ताणुवयाइविसए तप्पडिबत्तिउत्तरकाले सया-सबकालं होइ जइयवं-उज्जमो कायवोत्ति । एस गाहादुगस्स अत्थो ॥ ३७ ॥ अणंतरभणिओवएसमेव फलदंसणेण निगमेइएवमसंतोऽवि इमो जायइ जाओऽवि न पडइ कयाइ। ता एत्थं बुद्धिमया अपमाओ होइ कायब्वो ॥३८॥
एवं-भणियपगारेण निच्चसुमरणाइणा पयत्ते कीरते असंतोऽवि-अविजमाणोऽवि इमोत्ति, संमतपरिणामो वयपरि Pणामो य जायइ-उप्पजइ, जाओ य न पडह कयाइ-एवं जयंतस्स संमत्ताइपरिणामो उप्पनो न कमिवि काले पडइ
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श्रावकधर्मবস্থায়
चूर्णिः
अणुव्रतगुणव्रतशिक्षाव्रतयोवधिकृतं भिन्नत्वम्
॥११७॥
WHESAKORMATROCHAKARMA
विणस्सइ, जम्हा एवं तम्हा एत्थ निच्चसरणादिगे पयचे बुद्धिमया अपमाओ उज्जमो होइ कायव्वो ॥३८॥ पुत्वभणियवयाणमेव कोई विसेसो भन्नइ
एत्थ उ सावगधम्मे पायमणुब्वयगुणव्वयाइं च | आवकहियाई सिक्खावयाई पुण इत्तराइंति ॥ ३९ ॥ ___एत्थत्ति पुत्वमणिए तुसद्दो विसेसं कहइ, तहाहि-जइधम्मे महत्वयाणि आवकहियाणि चेव भवंति, एत्थ पुण सावगधम्मे पायेण-बाहुल्लेणं अणुव्वयाणि गुणवयाणि य आवकहियाणि-जावजीवियाणि भवंति, पायगहणाओ पुण चाउम्मासाइका. लमाणेणवि भवंति, सिक्खावयाणि पुण इत्तराईति अप्पकालियाणि, तत्थ पइदिवसाणुढेयाणि सामाइयदेसावगासियाणि, पुणो पुणो उच्चारिजंतित्ति जं भणियं होइ, पोसहोववासअतिहिसंविभागा पुण पतिनिययदिवसाणुढेया, न पइदिणाणुढेया इति ॥ ३९ ॥ एवं बारसबिहेवि सावगधम्मे भणिए संलेहणाभणणे अवसरो, तत्थ भन्नइसंलेहणा य अंतेन निओगाजेण पव्वयइ कोई। तम्हा नो इह भणिया विहिसेसमिमस्स वोच्छामि ॥४०॥
संलेहणा-आगमपसिद्धा सा इह पगरणे न भणिया, केण कारणेण न भणिया ?, भन्नइ-अंते-जीवियावसाणे न निओगा-न अवस्संभावेण सावगस्स संलेहणा होड, कम्हा १, भन्ना-जेण कारणेण पब्वयह-पत्नजं पडिवजह कोईतहाविहपरिणामजुत्तो सावगो, तम्हा-तेण कारणेण नो-न चेव इह-सखित्तपगरणे भणिया, सा पुण इह संखित्तपगरणे सुत्ते अभणियावि उवओगिणित्तिकाउं भन्नइ
तत्थ ताव सावगेणं भवबल्लिकंदं कणगतरुविसनिधिसेसं सयलदुहणिहाणं सुगइमग्गपिहाणं पञ्चक्खिय तिविहंतिविहेण
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॥११७॥
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संलेखना
बावकधर्म
मिच्छत्तं, अवंझमोक्खतरुवीयं सयलगुणमूलं पडिवन्जिय संमत्तं, कुगइनिबंधणकम्मबंधजलपवाहपालिं मग्गादिसुहहेउपुन्नपश्चाशक- पबंधजणणी असंखभवोवचियकम्मवाहिनिजरणओ मोक्खारोग्गरसायणं गहेऊण देसविरई " नवकारेण विबोहो" इच्चाइ चूर्णिः ।
विहियाणुहाणपरेण अहाउयं परिपालणीयं, तहा गामाइगमणसंभवे तदुचियसामायारी पउंजणपरेण य भवियवं,
तहाहि-"अहिगरणखामणं खलु चेइयसाहूण वंदणं चेव । संदेसंमि विभासा जइगिहिगुणदोसवेक्खाए ॥१॥ साहूण ॥११८
सावगाण य सामायारी विहारकालंमि । जत्थरिथ चेइयाई वंदावती तहिं सर्व ॥ २॥ पढमं तओ य पच्छा वंदति सयं सिया न वेलत्ति । पढम चिय पणिहाणं करिति संघमि उवउत्ता ॥ ३ ॥ पच्छाकयपणिहाणा विहरता साहुमाइ दवणं । जति अमुगगामे देवा वंदाविया तुझे ॥ ४ ॥ ते विय कयंजलिउडा सद्धा संवेगपुलइयसरीरा । अवमामि. उत्तमंगा तं बहु मन्नति सुहझाणा ॥ ५॥ तेसिं पणिहाणाओ इयरेसिपि य सुहाउ झाणाउ । पुनं जिणेहि भणियं नउ संकमउत्ति तो मेरा ॥ ६ ॥ ते पुण कयपणिहाणा वंदित्ता नेव वा निवेदंति । पञ्चक्खमुसाबाई पावा खु जिणेहिं ते भणिया ॥ ७॥ जेविय कयंजलिउडा सद्धा संवेगपुलइयसरीरा । बहु मन्नति न सम्मं बंदणगं ते वि पावत्ति ॥ ८॥ जइवि न वंदणवेला तेणाइभएसु चेहए तहवि । दद्दणं पणिहाणं नवकारेणावि संघमि ॥ ९॥ तंमि वि कए समाणे वंदावणगं निवेइयवति । तयभावंमि पमाया दोसो मणिओ जिंणिदेहिं ॥ १०॥ एवं सामायारि णाऊण विहीए जे पउंति ।
ते होंति एत्थ कुसला सेसा सवे अकुसला उ ॥ ११ ॥" एत्थत्ति विहरणविहीए तहा-" अन्ने अभिग्गहा खलु निरइया* रेण होंति कायवा। पडिमादओवि य तहा विसेसकरणिजजोगा य ।। १२ ।" तत्थन्नेभिग्गहा जहा-" पहसंतगिलाणेसु य
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H॥११८॥
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श्रावकप्रतिमानां वर्णनम्
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भावकधर्म- आगमगहणे य लोयकरणे य । उत्तरपारणगंमि य दाहामी एवमाईया ॥ १३ ॥" तहा पडिमाओ-दसणवयमामाइयादओ पश्चाशक- एक्कारस, आइसदाउ अणिचाइवारसभावणाओ घेप्पंति, तत्थ पडिमाओ इमाओचूर्णिः ।
दसणवयसामाइयपोसहपडिमा अबंभसच्चित्ते । आरंभपेसउद्दिट्ठवजए समणभूए य ॥१॥
एइए इमो अत्थो-दसणत्ति- सूयगं सुत्तं 'त्तिकाउं दंसणपडिमा, एवमन्नत्थवि, तत्थ दसणं-संमईसणं तस्स पडिमा॥ ११९॥
पइन्ना दसणपडिमा, एसा पुण संकाकंखाइसम्मत्ताइयारविरहिया रायाभियोगाइसवागारविवजिया, अच्चत्थं पसमसंवेगाइलिंगाणुगया जहट्ठियदंसणायारपरिपालणभुवगमरूवा नायवा, भणियं च-"संकाइदोसविरहिय सम्मइंसणजुओ उ जो जंतु | सेसगुणविप्पमुको एसा खलु होइ पढमा उ ॥ १॥" सेसगुणा-अणुव्वयगुणवयादयो तेहिं विप्पमुक्को वि, भणियं च दसासुयक्खंधे-" तस्स णं पहुई सीलव्यगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासाई नो सम्म पढवियाई भवंति" तत्थ सील-सामाइयं देसावगासियं पोसहोववासो अतिहिसंविभागो य, वयाणि-पंचाणुवयाणि, गुणा इति तिन्नि गुणवयाणि, वेरमणाणि-रागाइविरइविसेसा, पञ्चक्खाणाणि नमोकारसहियाईणि, पोसहो चउचिहो आहाराई ४ । इह च पडिमापडि वंताण अमेयाउ कत्थइ पडिमागहणं कत्थय पडिमावंतगहणं नायवं । कालमाणं च एईए उवासगदसाभिप्पाएण एगो मासो १ । वयत्ति वयपडिमा, एईए सरूवमिदं-"दंमणपडिमाजुत्तो पालंतोऽणुब्बए निरइयारे । अणुकंपाइगुणजुओ जीवो
इह होइ वयपडिमा ॥१॥" किंच-"बंधाइ असक्किरिया संतेसु इमेसु पहवइ न पायं । अणुकंपधम्मसवणाइया उ पहवइ Pविसेसेणं ॥१॥" पायोगहणाउ पमायाइणा होजावि, विसेसेणंति दसणपडिमावेइखाए वयमेत्तावेक्खाए वा अइसएण,
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॥ ११९॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ।
॥ १२०
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एवमिह मासदुगमाणेणं बीया पडिमत्ति २ । सामाइयंति सामाइयपडिमा एयाए सरूवमिदं "वरदंसणवयजुत्तो सामइयं कुणइ जो उ संझासु । उक्कोसेण तिमासा एसा सामाइयप्पडिमा ॥ १ ॥ " ३ । पोसहति पोसहपडिमा तस्सरूवमिमं - " पुवोइयपडिमजुओ पालइ जो पोसहं तु संपुनं । अट्ठमिचउदसाइसु चउरो मासे चउत्थेसा ॥ १ ॥ " आइसदाओ पुनिमामावसा घेप्पंति ४ । पडिमत्ति परिमापडिमा - काउस्सग्गपडिमा इत्यर्थः तस्सरूवमिमं - " सम्ममणुवय गुणवय सिक्खावयवं थिरो य णाणी य । अट्ठमिचउद्दसीसुं पडिमं ठाएगराईये ॥ १ ॥ सम्मति-संमत्तं थेरोत्ति अविचलसतो, अन्नो हि विराहगो होइ, जओ सा राइए चउप्पहाइसु कीरति, तत्थ उवसग्गा भवतीति, अट्टमीचउद्दसीगहणं उबलक्खणं, तेण पोसहदिवसेत्ति दट्ठवं, तथा च दसासुत्तं " से णं चाउदसमुद्दिट्ठपुन्निमासिणीसु पडिपुत्रं पोसहं पालित्ता से णं एगराइ
सगपडिमं सम्म अणुपालित्ता भवति " सेसदिणेसु पुण - " असिणाणवियडभोई मउलियडो दियह बंभयारी य । राई परिमाणकडो डिमावसु दियहेसु ॥ १ ॥ " वियडे - पयडे भोतुं सीलं जस्स सो वियडभोई चउब्विहाहारराइभोयणवञ्जगोत्ति वृत्तं होत्ति, मउलिडोति मुकलकच्छो, साडगस्स दोवि अंचला हेट्ठा करेतित्ति वृत्तं होति । जाब पडिमा पंचमासिया न समप्पति ताव दिवसओ बंभयारी रतिं परिमाणं करेति, एगं दो तिन्नि वा वारे अपोसहिओ, पोसहिओ रतिंपि बंभयारी, काउस्सग्गे ठिओ पुणरेवं चितेति - " झायह पडिमाऍ ठिओ तिलोगज्जे जिणे जियकसाए। नियदोसपच्चणीयं अन्नं वा पंच जा मासा ॥ १ ॥ " नियदोसपच्चणीयंति अप्पणिजरागाइदसणपडिवक्खं कामनिंदादिकं, अन्नंति जिणावक्खाए अवरंति ५ । अबंभत्ति अभवणपडिमा तस्सरूवमिमं " पुढोइयगुणजुत्तो विसेसओ विजियमोहणिजो य । वज्जइ अबंभमेगंतओ उ
श्रावकप्रतिमानां वर्णनम्
।। १२० ॥
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श्रावकधर्म
पश्चाशक
चूर्णिः ।
॥ १२१ ॥
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रापि थिरचित्तो ॥ १ ॥ " पुद्दोइयगुणजुत्तोत्ति असिणाणाइपुवभणिय गुणक लिओ दंसणवयसामाइयपोसहपडिमा सरूवगुणकलिओ वा, विजियमोहणिजोत्ति निजियकामविगारो, एगंतओति सङ्घहा, राईपत्ति सवं स्यणि, न केवलं सवदिति, एसेव पंचमछडिमाणं विसेसोत्ति, थिरचित्तो वा इमो - "सिंगारकहाविरओ इत्थीए समं रहंमि नो ठाइ । चयइ य अतिप्यसंगं तहा विभूसं च उक्कोसं ॥ १ ॥ " इत्थीए - नारीए समं - सह रहंमिति- एगंते न ठाह-न गच्छइ, एगंते चित्तविगारो भवतित्तिकाउं, जओ लोइयावि पढंति - " मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा नो विविक्तासनो भवेत् । बलवानिन्द्रियग्रामः, पंडितोऽप्यत्र मुह्यति ॥ १ ॥ " अप्पसंगति- इत्थीए समं अइपरिचयं, जओ - "सह दंसणाउ पेम्मं पेमाउ रई रई विस्सभो । विस्संभाओ पणओ पंचविहो बडूए मयणो ॥ १ ॥ " तहा- " वसीकुणंति जे लोगमिगे दंसणतंतुणा । संसग्गवागुराहिं ते, थीवाहा किं कुणति नो ॥ २ ॥ " विभूसंति - अलंकारांगरागाईहिं सरीरसकारा, उक्कोसगहणाउ सरीरठितिमेत्तसंभवं करेइत्ति, " एवं जा छम्मासा एसोऽहिगओ इहरहा दिहूं। जावज्जीवंपि इमं वजइ एयंमि लोगंमि ॥ १ ॥ " एसोति सावगो, अहिगओत्ति-छट्ठपडिमापडिवन्नओ चेव, एवं जाव छम्मासे अवंभं बजेइति, इहरहा-छट्टपडिमा पडिवन्नगाउ अन्नत्थ दिट्ठमेतं यदुत जावजीवंपि इमं - अभं वजेति, कत्थ दिट्ठे ?, उच्चते एयंमि- सध्वजणपच्चक्खे सावगलोगंमित्ति ६ । सच्चित्तेति सच्चित्ताहारवजण पडमा, तस्सरूवमिमं - " सच्चित्तं आहारं वजह असणाइयं निरवसेसं । असणे चाउलउंचिगचणगाई सवहा सम्मं ॥ १ ॥ " चाउला तंदुला उंबिगा - जवगोहुमाइणं सवहत्ति अपक्कदुपकतुच्छो सही (वजणेण) भक्खणेणं, सम्मति - भावसुद्धीए, “पाणे आउकायं सचित्तरस संयं तहन्नपि । पंचुंबरिककडगाइयं च तह खाइमे सव्वं ॥ १ ॥ " सचित्तरससंजयंति तक्खणपडियलवणाइर
पं० चू० ११
षष्ठी - सप्तमी -
प्रतिमा
वर्णनम्
॥ १२१ ॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ॥१२२॥
अष्टमीनवमीप्रतिमा
वर्णनम्
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सुम्मीसं, अन्नपि कंजिगाइपाणगाहारं वजेति, "दंतवणं तंबोलं हरेडगाई य साइमे सेसं । सेसपयसमाउत्तो जा मासा सत्त विहिपुवं ॥१॥" सेसपयसमाउचोत्ति संमत्ताइपुच्चुत्तगुणजुत्तो ७1 आरंभत्ति सयमारंभवजणपडिमा, तस्सरूवमिमं-"वजह सयमारंभ सावजं कारवेति पेसेहिं । पुत्बप्पओगओ च्चिय वित्तिनिमित्तं सिढिलमावो ॥१॥" पेसेहिति-आएसकारीहि, पुत्वप्पओगओ चियत्ति-पयट्टवावारओ चेव, नापुबवावारनिओयणेणंति, सिढिलभावो-पेसपओगओऽवि आरंभेसु अतिवपरिणामो, "निग्घिणतेगंतेणं एवंवि हु होइ चेव परिचत्ता । एदहमेत्तोऽवि इमो वज्जेज्जतो हियकरो उ॥२॥" निग्घिणया-निद्दयया
एगतेण-सबहेव सयमारंभाणं करणओ परेहि य कारणओ जा निग्घिणया होइ सा एवंपि-सयमारंभवजणेवि परिचत्ता ला भवइ । नणु सयमारंभो थेवो अप्पणो एगत्तणओ, परारंभो बहुओ परेसिं बहुत्तणओ, तओ य बहुतमारंभायरणेण अप्पतरा
रंभवजणं के गुणं पोसेति ?, उच्चते, एद्दहमेनोवि-सयंकरणमेत्तयाए थोवो वि इमो सयमारंभो वजिजंतो हियकरो उ महारोगथोवोवसमदिट्ठतेणंति । एवं च पुबोइयगुणजुत्तो ता वजह अट्ठ जा मासा ८ । पेसेत्ति पेसारंभवञ्जणपडिमा, तस्सरूवमिमं"पेसेहि वि आरंभ सावज कारवेति नो गरुयं । अत्थी संतुट्ठो वा, एसो पुण होति विन्नेओ ॥१॥" गरुयंति-महंत किसिकम्माइयं, एएण आसणदावणाइलहुवावारे न वजेतित्ति भणियं होति । तथा “निक्खित्तभरो पायं पुत्ताइसु अहव सेसपरिवारे । थेवममत्तो य तहा सवत्थवि परिणओ णवरं ॥१॥" तहा सम्वत्थवि-धणधनाइपरिग्गहे, थेवममत्तो य, अयं चेवंभृत उत्तानबुद्धिरपि भवेत् , अत आह परिणउत्ति परिणयबुद्धी णवर-केवलं । “लोगववहारविरओ बहुसो संवेगमावियमई य । पुबोइयगुणजुत्तो नव मासा जाब विहिणा उ ॥१॥" ९ । उद्दिवजएत्ति उद्दिट्ठभत्तवज्जगपडिमा, सा पुणरेवंसरूवा
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॥ १२२ ॥
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भावकधर्मपश्चाशक
चूर्णि:
॥ १२३ ॥
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"उद्दिकडे मपि वजए किमु य सेसमारंभं । सो होइ उ छुरमुंडो छिहलिं वा धारए को वि ।। १ ।। " उद्दिकडंति तंनिमित्तसाहियं, छिछली - सिहा, जहा परिव्वायगाणं, तथा - " जं निहियमत्थजायं पुट्ठो नियएहि नवरि सो तत्थ । जइ जाणह तो साह अह नवि तो बेह न वि जाणे ॥ १ ॥ " एईए भावत्थो - तेण किंचि दवजायं निक्खायगं, तं च से पुत्ताइ न जाणंति, संचाइओवा से अस्थि, ताहे पुच्छति कहिं कथं तं दद्दियं ?, जइ न कहेति तो वित्तिच्छेयअंतराइयदोसा, अचियच संकाई वा तेसिंहोज - नूणं एस गिहिउकामो खइयं वा णेण, तम्हा जड़ जाणइ तो कहेति, अह ण याण तो भगति - अहंपि ण याणामि, एयाउ दो भासाउ मोतुं अन्नं न किंपि तस्स घरकिच्चं काउं कप्पतित्ति । तहा - " जइपज्जुवासणपरो सुहुमपयत्थेसु निश्चतलिच्छो। पुवोइयगुणजुत्तो दस मासा कालमासे ( णे णं ॥ १ ॥ " १० । समणभूए यत्ति समणभूयपडिमा चसदो समुच्चये तस्सरूवमिदं - "खुरमुंडो लोएण व श्यहरणं उग्गहं च घेत्तूण । समणन्भूओ विहरह, धम्मं कारण फार्सेतो ॥ १ ॥ " स्यहरणं - पसिद्धं, उग्गहं यत्ति पडिगाहगं, उवलक्खणं च एयं सेससहसमणोवगरणस्स, तओ तमादाय समणन्भूओ - साहुसरसो सयलसाहुसामायारीसेवणओ विहरह- गिहाओ निक्खमित्ता गामाईसु हिंडइ त ( ज ) हा साहू, धम्मंति चरित्तधम्मं समिइगुत्तिमाइयं कारण- सरीरेण न मणोरहमेतेण फासंतो- पालतो, तथा सवं तेण परिच्चत्तं मायाइयसयणवग्गपेजबंधणं मोणं, एवं च से कप्पति नियसयणसंनिवेसं आगंतुं, तत्थगयस्स नायओ जइचि सिणेहाओ अणेसणीयपि भत्ताइ करेंति, आयरेण य निमंतंति, अणुवत्तणीया य ते पाएण भवति, तहावि तं न गेण्डति, भणियं च - " ममकारेऽवोच्छिन्ने वच्च संनायपलि दहुं जे । तत्थवि जहेब साहू गेण्डइ फाएं तु आहारं ||१||" कासुंति - अचेयणं, उबलक्खणत्तओ एसणीयं च । तथा-" पुवाउ
दशमीप्रतिमावर्णनम्
॥ १२३ ॥
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भावकधर्मपश्चाशकचर्णिः
| एकादशीप्रतिमावर्णनम्
॥ १२४॥
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कप्पइ, पच्छाउत्तं तु न खलु एयस्स । ओयणभिलंगसूयाइ सवमाहारजायं तु ॥१॥" पुर्व-तदागमणकालाओ पढम आउत्तंरंधणथालिमाइसु पक्खित्तं पुवाउत्तं, आयनिमित्तमेव रंधेउमाढतंति भणियं होति । ओयण-कूरो भिलंगू-सूवो मसूराभिहाणविदलधन्नपागविसेसो, तहा-सो भिक्खं हिंडंतो न धम्मलाभेति, तस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स कप्पइ एवं वइत्तए-समणोवासगस्स पडिमापडिवनस्स मिक्खं दलयह, तं चेयारवेणं विहारेण विहरमाणं कोइ पासेत्ता वएजा, के आउसो! तुमंति वत्तवं सिया, स आह-समणोवासए पडिमापडिवन्नए अहमंसीति वत्तवं सिया। “एवं उक्कोसेणं एकारस मास जाब विहरेति । एगाहादियरेणं, एवं सत्वत्थ पाएणं ॥१॥" एवंति खुरमुंडए लुचसिरए वा गहियायारभंडगनेवत्थे । "जे इमे समणाणं निग्गंथाणं धम्मे तं सम्मं कारण फासेमाणे" इचाइ समयभणियपगारेण उक्कोसेणं एक्कारस मासे मासकप्पाइणा विहारेणं विहरेति, इयरेणं ति-जहन्नेणं एगाहादिति एगाहोरत्ताइ, तथा चाह-"सेणं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाई वा दुयाहं वा तियाहं वा जाव उक्कोसेणं एकारस मास" चि, पुवपडिमासुवि एगाहाइयं जहन्न कालमाणं दट्ठव्वं, अत एवाह-एवं सवत्थ पाएणंति, प्रायोग्रहणात् अंतोमुहुत्ताइसंभवो दंसिओ, एयं पुण एगाहाइयं सवपडिमाणं जहन्न कालमाणं पडिमापडिवनस्स मरणे संजमगहणे वा णायचंति । एत्थ य उवरिमासु सत्सु पडिमासु आवस्सगचुन्नीए मयंतरमवि अत्थि, तहाहि-"राइभत्तपरिन्नाएत्ति पंचमी ५, सच्चित्ताहारपरिन्नाएत्ति छट्ठी ६, दिया बंभयारी राओ परिमाणकडेत्ति सत्तमी ७, दियावि राओवि बंभयारी असिणाणए वोसट्टकेसमंसरोमनहेत्ति अदुमी ८, सारंमपरित्राएत्ति नवमी ९, पेसारंभपरित्राएत्ति दसमी १०, उद्दिट्ठभत्तविवजए समणभृए, तस्स णं एवं भवइ सबाओ पाणाइवायाओ वेरमणं जाव सबाओ
Pा १२४॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
श्रावक वर्णकः
चूर्णि:
॥१२५॥
राहमोयणाओ वेरमणं, खुरमुंडए वा लुत्तकेसए वा अचेलए वा एगसाडिए वा इच्चाइ एकारसमी ११"। " भावेऊणताणं उवेइ पवञ्जमेव सो पच्छा। अहवा निहत्थभावं उचियत्तं अपणो णाउं ॥१॥"
किं कारणं पडिमाहि अप्पा भाविञ्जति ?; उच्यते-"गहणं पवजाए जओ अजोग्गाण णियमओऽणत्थो । ता तुलिऊणsप्पाणं धीरा एयं पवजंति ॥१॥" जड़ वि तुलणं विणावि केसिंचि सत्तविसेसाणं सम्म पवजा संभवेति तहावि सामन्नणं एस कमो णायसंगउत्ति, तथा चाह-"जुत्तो पुण एस कमो ओहेणं संपयं विसेसेणं । जम्हा असुमो कालो दुरणुचरो संजमो एत्थ ॥१॥" तओ य एवं वट्टमाणस्स एसोऽवि साबगवन्नओ सम्मं घडइ, जहा
"अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुनपावे आसवसंवरनिन्जरकिरियाहिगरणबंधमोक्खकुसले असहिजे देवासुरनागसुवन्नजक्ख. रक्खसकिंपुरिसगरुलगंधवमहोरगाइएहिं देवगणेहि णिग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिजे निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निकं. खिए निद्वितिगिच्छे लढे गहियढे पुच्छियद्वे विणिच्छि यद्वे अद्विमिंजपेम्माणुरागरत्ते अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अटे अयं परमटे सेसे अणटे, चाउद्दसमुद्दिट्टपुणिमासिणीसु पडिपुण्ण पोसह संमं अणुपालेमाणे ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउर(पर)घरप्पवेसे समणे निग्गंधे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुंछयोणं ओसहभेसजेणं पाडिहारियपीढफलगसेज्जासंथारएण य पडिलामेमाणे बहूर्हि सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहि य अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ", एस सावगवन्नओ सुगम एव, नवरं आसवा-पाणाइवायाइया, संवरा-पाणाइवायविरमणाइया, निजरा-कम्मुणो देसक्खवणं, किरिया--काइयाइया, अधिकरणाणि-खग्गाइनिबत्तणसंजोयणाणि, बंधो-अहिणवकम्मग्गहणं, मोक्खो-कम्मुणो
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः । ॥१२६ ॥
श्रावकवर्णकस्य विषमपदानामर्थः
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| सबहा खवणं, असहेजेत्ति-कुतित्थियपरिपेरिओ संमत्तनिश्चलत्ते न परसाहेजं अवेक्खइ, अत एवाह-देवासुरेत्यादि, तत्थ देवा
वेमाणिया, असुरनागा-भवणवइविसेसा, सुवन्नत्ति सोहणवन्ना जोइसियत्ति भणियं होइ, जक्खरखपकिन्नरकिंपुरिसा-वंतरमेया, गरुलत्ति गरुडचिंधा सुवन्नकुमारा, गंधवमहोरगा-वंतरा, निस्संकिएत्ति निस्संदेहो, निकंखिएत्ति मुक्कसेसदसणपक्खवाओ, निवितिगिच्छेत्ति फलं पइ निस्संको, लद्धटे-अत्थसवणाओ, गहियटे-अत्थावधारणाओ, अहिगयटे-अत्यावबोहाओ, पुच्छियद्वे-संसयसम्भावे, विणिच्छियद्वे-परमत्थोवलंमाओ, अठमिजा-धाउविसेसा, ताओ पेमाणुरागेण-जिणवयणपीइलक्खणकुसुभाइरागेण रत्ता इव रत्ता जस्स सो तहा, केण सरूवेण ?, तदाह-अयमाउसोत्ति इदं पवयणं आउसो! पुत्ता| ईणं आमंतणं, सेसत्ति धणधन्नपुत्तकलत्तमित्तरजकुप्पवयणाइयंति, उद्दिवत्ति अमावसा, ऊसियफलिहेत्ति ऊसियं-उन्नयं
फलिहरयणमिव फलिहं चित्तं जस्स, जिणधम्मलाभाओ परितुट्ठमाणस इत्यर्थः, अन्ने भणंति-"उस्सिया-अग्गलाठाणाउ अवणित्ता उद्धीकओ न तिरिच्छो कवाडपच्छभागाउ अवणीओ फलिहो-अग्गला गिहदुवारे जस्स, उदारातिसया अतिसयदाणदाइत्तणेण भिक्खुगपवेसणत्थं अणग्गलियघरदुवार इत्यर्थः, अवंगुयदुवारेत्ति कवाडाईहिं अपिहियघरदुवारो, सहमणलाभेण न कुओवि पासंडिगाउ बीहेइ, सोहणमग्गपरिग्गहेण उग्घाडसिरो अच्छइत्ति भणिय होइ," केई पुण भणति"भिक्खुगपवेसणनिमित्तं उदारासयाओ अपिहियघरदुवार" इत्यर्थः, चियत्तोत्ति लोयाण पीइकारग एव अंतेउरे वा परघरे वा पवेसो जस्स स तहा अइधम्मिययाए सवत्थसंकणिजोत्ति भणियं होइ, अन्ने भणति-" चियत्तो पीतिजणगो अंतेउरघरेसु पवेसो सिट्ठजणपविसण जस्स स तहा", अणिसालुत्ति जं भणियं होइ, अहवा चियत्तो-चत्तो अंतेउरघरेसु परसं-1
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इ, सोहणमग्गपरित्यर्थः, चियत्तोतिह, अन्ने भणी
॥ १२६॥
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भक्त. प्रत्याख्यानविधिः
भावकधर्म- तिएसु एवमेव पवेसो जेण, ण तहाविहपयोयणं विणा परघरं पविसइत्ति भणिय होइ, पायपुंछणंति स्योहरणं, ओसहमेपश्चाशक
सजेणंति ओसहं-एगदवसरूवं, मेसजं-अणेगदवसमुदायरूवं, पाडिहारियं नाम जंकजसम्मत्तीए पचप्पिणिजइ, पीट-आसणं, चूर्णिः ।।
फलग-अवटुंभणकट्ठ, सेजा-वसही, अहवा जत्थ पसारियपाएहिं सुबह सा सेजा, संथारो लहुतरं सयणमेव, सीलवयाणि
अणुव्वयाणि गुणा-गुणव्वयाणि विरमणाणि-रागाइविरइपगारा पच्चक्खाणाणि--नमोक्कारसहियाइणि पोसहोववासो-अट्ठमिमाइ. ॥१२७॥
पव्वेसु आहाराइपरिचायोत्ति । " एवं च विहरिऊण दिक्खाभावंमि चरणमोहाओ। पतमि चरमकाले करेज कालं जहा विहिणा ॥१॥ सावगधम्महिगारेवि एत्थ जइगोयरंपि तं भणिमो । तब्भणणा इयरो वि हु विसेसओ साहियो होइ ।। २ ।। मरणं च होइ सपरकमाण अपरक्कमाण य तहेव । एक्केकंपि य दुविहं निवाघाए य वाघाए ॥३॥" तत्थ वाघाओ जहा-अच्छभल्लेण कन्ना ओट्ठा य खइया, रोगेण वा वाघाओ हवइ, सो वाघाओ दुविहो-कालसहो होइ इयरो य । कालसहो नाम जत्थ चिरेण मरइ, जहा-पूइगोणसेण डको तं डककालमतिकम्म वीसइरत्ताइसु मरइ, इयरो नाम तदिवसमेव मरिउकामो भत्र पञ्चक्खाइ, निवाघाए पुण एस विही पाएण भत्तपञ्चक्खाणस्स गणनिसिरणं कायक्वं, ततो परगणे गंतुं भत्तपच्चक्खाणं कायवं, किं कारणं तवोकिलन्ता संलिहियसरीरा परगणं गच्छंति ?, मन्नइ-आयरियस्स सीसाणं आयरियाणुरागेण रोयण कंदणाईणि
दटुं सोउं च कारुनमुप्पजेजा, एवं च झाणवाघाओ होजा, तहा-"सगणे आणाहाणी अप्पत्तिय होइ एवमाईय। परगणे गुरुहै। कुलवासो अप्पत्तियवजिओ होइ ॥१॥" आणाहाणित्ति ठवियगणहरस्साणं केई अकरेमाणे दट्टण अपत्तियं उप्पञ्जइत्ति ।
इयाणिं संलेहणा
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१२७॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः । ॥ १२८ ॥
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"संलेहणा उ तिविहा उक्कोसा मज्झिमा जहन्ना य । बारस वासुकोसा सेसपमाणं उवरि वोच्छं ॥१॥" तत्थुक्कोसिया | संलेखनाया चत्वारि वरिसाणि विचित्तं तवं काउं पारणए सविगई वा निविइयं वा मुंजइ, विचित्तं नाम कयाइ चउत्थं कयाइ छटुं कयाइ मेदाः अट्ठमं, एवं दसमदुवालसाईणिवि, अन्नाणि चत्वारि वरिसाणि विचितं चेव तवं काउं पारणए निवीयं निद्धपणीयवजियं तत्स्वरूपं भुंजइ ८, अन्नाणि दोनि वरिसाणि चउत्थतवं काउं आयामेण पारेइ १०, एगारसमस्स वरिसस्स आइल्ला छम्मासा छटुं तवं काउं आयामेणं परिमियं मुंजइ, अन्ने य छम्मासा अदुमदसमाइविगिट्ठतवं काउं मा खिप्पमेव मरिहित्तिकाउं पारणए जहिच्छाए आयंबिलं भुंजइ ११, अन्न एग बरिसं कोडीसहियं काउं पढमए पारणए आयंबिलं भुंजइ, बीए पारणए निवीय भुंजइ, तइए आयंबिलं, चउत्थे निवीयं, एवं एगंतरिय पारणएसु भुंजइ, कोडिसहियं नाम पढमदिवसे अभत्तटुं बीयदिवसे पुणो अभचटुं काउं पारेइ, एवं च चउत्थं कोडीसहियं, एवं छट्टमाइकोडीसहियाणिवि, अहवा-एग चउत्थं काउं पारेइ, तइयदिवसे पुणो अभत्तद्वं काउं चउत्थदिणे पारेइ एयं च चउत्थं कोडीसहियं, एवं छट्ठमाइ कोडीसहियपि भाणियई, पारणएवि जहासत्तीए एकेक कवलं हावेइ जा एक्केण पारेइ, तओवि एककसित्थं अवणेइ, जाव एकसित्थं आहारेइ १२, बारसमवरिसस्स य अंतिमेसु चउसु मासेसु एक्ककमि पारणए एगंतरिय तेल्लगंडसं चिरं धरित्ता खेलमल्लए छारे छुभिचा वयणं धोवेइ, किं कारणं तेल्लगडूसं धरेइ १, मा वाएण मुहंमि संमिलिए मरणकाले नमोकारं न सक्केहि काउत्ति । “ उक्कोसगा उ एसा संलेहा मज्झिमा जहन्ना य । संवच्छरछम्मासा एमेव य मासपक्खेहिं ॥१॥" जो उक्कोससंलेहणविही से मज्झिमजहन्नासुवि संलेहणासु जहक्कम मासद्धमाससंखाए कायबो, अत एवाह-एमेव य मासपक्खेहिंति-"एत्तो एगयरेणं संलेहेणं खवेत्तु अप्पाणं ।
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श्रावकधर्म- कुजा मतपरिन्ना इंगिणिपाओवगमणं वा ॥१॥" जइ संलेहणा न कजइ तो अट्टज्झाणं उप्पजइ, जओ भणियं-“देहंमि अनशन पश्चाशक-18
असंलिहिए सहसा धाऊहिं खिज्जमाणीहिं । जायइ अझज्झाणं सरीरिणो चरिमकालंमि ॥१॥" न पुण अगीयसमीवे अणसणं विधिः चूर्णिः ।
कायवं, जओ आह-" नासेइ अग्गीओ चउरंगं सबलोयसारंगं । नटुंमि य चउरंगे न हु सुलभं होइ चउरंग ॥१॥ चउरंग
माणुसत्सुइसद्धासंजमवीरीयलक्खण, "किह नासेज अगीओ खुहापिवासाहिं पीडिओ सो उ । ओभासइ रयणीए तो निद्ध॥१२९॥
म्मोत्ति छड्डेजा ॥ २ ॥ अंतो वा बाहिं वा दिया व राओ व सो परिच्चत्तो। अदृदुहवसट्टो उनिक्खमणाइ कुजाहि ॥ ३ ॥ मरिऊणऽदृज्झाणा गच्छइ तिरिएसु वणयरेसुं वा । संभरिऊण य रुट्ठो पडिणीयतं करेजाहि ॥ ४ ॥ ॥ तम्हा गीयत्थेणं पवयणगहियत्थसवसारेणं । निजवएण समाही कायदा उत्तम मि ॥५॥ तहा गीयत्थस्सवि असंविग्गस्स पासे न कायचं, जओ तस्स समीवे-"आहाकम्मियपाणगपुप्फा सीया य बहुजणे नायं । सेजा संथारोवि य उवहीवि य होइ अविसुद्धो ॥६॥ असंविग्गो बहुजणस्स नायं करेइ-मत्तपच्चक्खाउत्ति, ताहे जणो पुष्पाणि आणेइ, सीयत्ति उदगफुसियाहिं सिंचेइत्ति, तम्हा संविग्गसमीवे कायवति । तहा-" एकमि निजवए विराहणा होई काहाणी य । सो सेहाविय चत्ता पावयणं चेव उडाहो ॥७॥" तहा भत्तपच्चक्खाणकाले आयरिएण सयं आलोएयवं, नेमित्तिओ वा देवया वा पुच्छियवा, जाव भत्तपच्चक्खाण समप्पड़ ताव सिवाईणि किं अस्थि उय नस्थि, तहा कि पच्चक्खाणस्स पारगो होही नवत्ति, जइ पारगो तो इच्छियबो, इहरा पडिसेहिति, तहा आयरिएणं गणो पुच्छियहो, पुच्छासु गुणदोसविभासा, तहा जो भत्तं पञ्चक्खाइ तेण | गणो गणेण आयरिएण वा सो परिक्खियो, तत्थ गणस्स-"कलमोयणो य पयसा अन्न व सभाव अणुमयं जस्स।" गणेण 8॥ १२९ ।।
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
आलोचनाविधिः
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परिक्खा जहा-"उवणीय जो कुच्छइ तंतुअलुद्धं पडिच्छति ॥८॥" आयरिएणवि सो परिक्खियत्वो जहा-"अओ ! संलेहिओ कि कओ उ न कउत्ति ? एव उइयंमि । भतुं अंगुलि दावे पेच्छह ता किं कओ न कओ॥९॥ न हु ते दवसलेहं, पुच्छे पासामि तं किस(किसत्तं ते)। कीस ते अंगुली भग्गा?, भावं संलिहमाउरं! ॥१०॥ इंदियाणि कसाए य, गारवे य किसे कुरु । न चेयं ते पसंसामो, किसं साहु सरीरंग॥११ ।। तहा भत्तं पञ्चक्खाइउकामेण पवजाइअइयारो आलोएयबो, तहाहि-"आयरियपायमूलं गंतूणं सइ परक्कमे ताहे । सवेण अत्तसोही कायव्वा एस उवएसो ॥१२॥ जह सुकुसलोवि वेजो अन्नस्स कहेइ अप्पणो वाहिं । वेजस्स उ सो सोउं तो परिकम्मं समारभइ ॥ १३ ॥ जाणतेणवि एवं पायच्छित्तविहिमप्पणा निउणं । तहवि य पागडतरयं विगडेयवं भवे नियमा ॥१४॥ छत्तीसगुणसमन्नागएण तेणवि अवस्स कायवा। परसक्खिया विसोही सुट्ठवि ववहारकुसलेणं ॥ १५ ॥ तम्हा "आयाराईगुणड्डाणं गुरूणं गुणमाविओ। काऊणं बंदणाइयं आलोएज वियक्खणो ॥१६॥ सुगुरूणं अलाभमि आलोएजाऽववायओ । संविग्गपक्खियाणं तु गीयत्थाणं तु अंतिए ॥ १७॥ तयभावम्मि आलोए सिद्धे काऊण माणसे । आराहणा ससल्लाणं जओ नस्थिति आगमो॥१८॥ लज्जाए गारवेण य बहुसुयमएण वावि दुचरियं । जे न कहिंति गुरुणं नहु ते आराहगा होति ॥ १९ ॥ गारवपंकनिबुड्डा अइयारं जे परस्स न कहेंति । दसणनाणचरित्त ससल्लमरणं हवेइ तेसि ॥ २० ॥ आलोयणं अदाउं सइ अन्नमिवि तहऽप्पणा दाउं । जेविय करेंति सोहिं ते वि ससल्ला मुणेयवा ॥२१॥ एयं ससल्लमरणं मरिऊण महाभए दुरतंमि । सुइरं ममंति जीवा दीहे संसारकंतारे ।। २२ ॥ नवि तं सत्थं व विसं व दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो। जंतं व दुप्पउतं सप्पो व पमाइओ हो ॥ २३ ॥ जे कुणइ भावसलं अणुद्धियं उत्तमढकालंमि । दुल्लह
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॥ १३०॥
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भावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः । ॥ १३१॥
सानोमा गुणाः अनशनस्थानस्वरूपं
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बोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥ २४ ॥ आलोइयंमि इमे गुणा भवंति-" लहुया तहाईजणणं अप्पपरनिवत्ति अजवं सोही । दुक्करकरणं विणओ(आणा) निसल्लत्तं च सोहिगुणा ॥ २५ ॥ अइयारभारोयारणेण लहुओ भवइ, अणालोइए ससल्लोमित्ति सरीरमणोदाहस्स आलोइए पसमाउ पल्हातो सीइओ भवइ, सेसं सुगम, कहं पुण आलोएयवं? जह-" बालो जंपंतो कजमकर्ज च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोएजा मायामयविप्पमुक्को उ ।। २६ ॥ उप्पन्ना २ माया अणुमग्गओ निहतबा । आलोयणनिंदणगरिहणाहिं न पुणो य बी(का)यति ॥२७॥ नाणनिमित्तं आसेवियं तु वितहं परूवियं वावि । चेयणमचेयणं वा दत्वं गहियं अकप्पं तु ॥ २८ ॥ नाणनिमित्तं अद्धाणमेह ओमेऽवि अच्छइ तदट्ठा । नाणति आगमिस्सं कुणइ परिक्कम्मणं देहे ॥ २९ ॥ पडिसेवइ विगइओ मेज्झ दवे व एसइ पिबह । वायंतस्स उ किरिया कया उ जहसत्ति जयणाए ॥ ३० ॥ एमेव देसणमि वि सद्दहणा नवरि तत्थ नाणत्तं । एसणइत्थीदोसो वयंति चरणासिया सेवा ॥ ३१ ॥ एवमादि, "जे ताव संभरेजा अइयारा ते तहेव आलोए । जे पुण न संभरेजा ओहेणं ते समालोए ॥ ३२ ॥जे मे जाणंति जिणा अवराहा तेसु तेसु ठाणेसु । तेऽहं आलोएउं उवडिओ सबभावेणं ।। ३३ ।। एवंपि हु वियतो विसुद्धभावपरिणामसंजुत्तो । आराहओ उ भणितो गारवमायाहि परिमुक्को ॥ ३४ ॥" केरिसए पुण ठाणे पच्चक्खायचं , जत्थ गंधविया संगीयं करिति सिक्खंति वा तत्थ न ठायचं, तेसिं समीवे वा, जो तत्थ झाणवाघाओ भवइ, निदाणं वा करेजा, तहा हस्थिसालाए वा तिलपीलणसालाए वा कुंभकारसालाए वा रयगसालाए वा न ठायवं, जओ एयासु कम्मं करेंता अकरेंता य गायति कंदप्पं च करेंति, रायसंदसणपहे वा न ठायव्वंति, नियाणकरणदोसाउत्ति, एवं चारगचट्टसालकलालावणाईणिवि झाणवाघायहेऊणि विभासियवाणि, तहा
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः । ॥१३२॥
अष्टचत्वारिंशद् अनशनिनिर्यापकाः
पंचण्हं इंदियाणं जत्थ इट्ठाणिट्ठविसया न संभवंति तत्थ चाउसालाईसु दुवे वसहीओ घेत्तुं एगस्थ भत्तपच्चक्खायओ ठविजइ एगत्थ सेसगछिल्लया, किं कारणं १, मा असणाइणं गंधेणं भत्तपच्चक्खायगस्स अभिलासो होही, जओ-" भुत्तभोगी पुरा जोवि गीयत्थो वि य भाविओ। संते साहारगंधेसु सो वि खिप्पं तु खुब्भइ ॥ ३५॥ निजवगा गाहा-"पासत्थोसन्नकुसीलठाणपरिवज्जियाउ निजवगा। पियधम्मा भवभीरूगुणसंपन्ना अपरितंता ॥ ३६ ॥ गुणसंपन्ना नाम जे विप्परिणयंपि पुणो पनवेंति तहातहा समाहिं च उप्पाइंति, किंतस्स ते करेंति ? केवइया वा भवंति ?, भन्नति जे तं उव्वत्तंति परियति य ते चत्तारि, जे अभंतरदारमूले तेवि ४, संथारकारया ४, तस्स धम्मकहेंतगा ४, वाइणो ४, अग्गओ जे अच्छंति ते ४, भत्तं जोग्ग जे आणति ते ४, पाणयं जे आणेति ४, उच्चारपरिट्ठवगा ४, पासवणपरिदुवगा४, चाहिं धम्मकहिणो ४, चउसुवि दिसासु साहस्सिमल्ला ४, एए वारस चउक्कया अडयालीसं (४८) भवंति, "जो जारिसओ कालो भरहेरवएसु होइ वासेसु । ते तारिसया तहया अडयालीसं तु निजवगा॥३७॥" एए अडयाली एक्ककपरिहाणीए परिहायमाणा जाव दोनि सिट्ठा तइयओ भत्तपच्चक्खायतो चेव, एएसि दोहं जणाणं एगो भत्तपाणयस्स वच्चइ वीउ भत्तपञ्चक्खाणिस्स पासे अच्छइ । तहा भत्तपच्चक्खायगस्स चरिमकाले आहारो दायबो, तहाहि-"तस्स य चरिमाहारो इट्ठो दायबो तण्हछेयट्ठा । सवस्स चरिमकाले अईव तण्हा समुञ्जो(पजइ) ॥३८॥विगइओ सबओयण अट्ठारसवंजणा य पाणं च । अणुपुबीविहारीणं च समाहिकामाण उवहरिउं ॥३९॥ को पुण गुणो
भवइ ? चरिमाहारेण दिनेण भंते !, "तण्डा छेयंमि कए न तस्स तहियं पवत्तए भावो। चरिमं च एस भुजइ सद्धाजणणं दुपक्खेवि Bा॥४०॥ ति, भत्तपञ्चक्खायगस्स निजवगाण य कहं पुण सद्धाजणणं, सो चिंतेइ अहं अन्भुजयमरणसमुद्दती
8॥ १३२ ॥
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17)
संस्तारविधिः
श्रावकधर्म-2 पत्तो दुल्लभं एयं, नित्थिन्नोऽहं संसाराउत्ति धणिय झाणोवगओ भवइ, निजवगाणवि एवमुपजइ-कया णं अम्हेवि एवमम्मुपश्चाशक- जयमरणसमुद्दतीरं पत्ता होहामोति । तहा-केरिसी निजरा तस्स भवद ?, "कम्ममसंखेजभवं खवेइ अणुसमयमेव आउत्तो । चूर्णिः । अनयरंमि विजोगे सज्झायमी विसेसेणं ।। ४१॥" असंखेजमवंति जेण असंखेजभवे संसारे भामिजइ, अहवा जं असंखेजेहिं
भवेहिं बद्धं, अन्नयरंमि वि, जोगेत्ति पडिलेहणाइवावारे १, एवं काउस्सग्गे विसेसेणं २, वेयावच्चे विसेसेणं ३, विसेसओ उत्त॥१३३॥
मटुंमि ४, तहा-संथारो उत्तमढे भूमिसिलाफलगमाइ नायबो, भूमीए पाहाणसिलातले वा दोसुवि अज्झुसिरेसु, तत्थ उद्दिअयओ वा उवविट्ठो वा निसन्नओ वा जहा समाहीए अच्छइ, फलए वा एगगिए, असइ अणेगंगिएवि, असइ कंबीसुवि । इयाणिं अत्थुरण-संथारपट्टमाई दुगचीराओ बहु वावि संथारओ सउत्तरपट्टओ पत्थरणं एवं उस्सग्गेणं, अववाए पुण जइ अइखरं नाहियासेइ ताहे कप्पा पत्थरिंजंति, असइ तणाणि अज्झुसिराणि, तहावि अणहियासेंतस्स कंबलओ पावारओ वा पत्थरिजइ पाउणिजइ वा सीए, तूलीए वा पत्थरिजइ, पल्लंकमाइसुवि पत्थरिजइ, "संथारओ उ मउओ समाहिहेतुं तु होइ कायद्यो । तहविय अविसहमाणो समाहिहेउं उदाहरणा ।। ४२ ॥ धीरपुरिसपन्नत्ते सप्पुरिसनिसेविए अणसणम्मि । धन्ना सिलायलगया निरवेयक्खा निवअंति ॥ ४३ ॥ जइ ताव सावयाउलगिरिकंदरविसमकडदुग्गेसु । साहिति उत्तमर्दु धिइधणियसहायमा धीरा ॥४४॥ किं पुण अणगारसहायगेण अन्नोन्नसंगहबलेण । परलोगिगे न सक्का साहेउं उत्तमे अडे ।।४५॥" परलोगिगेत्ति परलोगस्थिणा । " जिणवयणमप्पमेयं महुरं कन्नामयं सुणतेणं । सक्का हु साहु मज्झे संसारमहोदहि तरिउं ॥४६ ॥ सवे सबद्भाए सवण्णू सबकम्मभूमीसु । सबगुरुसबमहिया सवे मेरे[सिंग]मि अभिसित्ता ।। ४७ ॥ सबाहिवि लद्धीहि पं. चू. १२
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2॥ १३३ ॥
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भावकधर्म - पश्चाशक
चूर्णिः
॥ १३४ ॥ २
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सवि परीस पराइत्ता । सवेवि य तित्थयरा पाओवगया उसिद्धिगया || ४८ || अवसेसा अणगारा तीयपटुपन्नणागया स | केई पाओगया पच्चक्खाणि गिणि केई ॥ ४९ ॥ सबाओ अजाओ सवेवि य पढमसंघयणवज्जा | सवे य देसविश्या पञ्चक्खाणेण उमरंति ॥ ५० ॥ तहा - सवसुहृप्पभवाओ जीवियसाराउ सहजणियाउ । आहाराओ रयणं न विजई उत्तमं लो || ५१ || विग्गहगए य सिद्धे य मुत्तुं लोगंमि जत्तिया जीवा । सर्व्व सवावत्थं आहारे होंति आयत्ता ।। ५२ ।। तं तारिसयं रयणं सारं जं सबलोगरयणाणं । सर्व्वं परिच्चत्ता पाओवगया परिहरति ॥ ५३ ॥ तहा -निप्फेडियाणि दोनिवि सीसा वेण जस्स अच्छीणि । न य संजमाओ चलिओ मेयजो मंदरगिरिव ॥ ५४ ॥ जो कुंचगावराहे पाणिदया कुंचगं तु नाइक्खे | जीवियमणपेतं मेयज्जरिसिं नम॑सामि ॥ ५५ ॥ उण्हंमि सिलावट्टे जह तं अरहंनएण सुकुमालं । विग्वारियं सरीरं अणुचिंतेजा तमुच्छाहं ॥ ५६ ।। " तथाहि
तगराए नयरीए अरहमित्तो णाम आयरिओ । तस्स समीवे दत्तो णाम वाणियओ भद्दाए भारियाए पुत्तेण य अरहण्णत्तेण सद्धिं पद्मइयो, सो तं खुड्डगं ण कयाइ भिक्खाए हिंडावेर, पढमालियादीहिं किमिच्छएहिं पोसेति, सो सुकुमालो साधूण अप्पत्तियं, ण तरंति किंचि मणिउं, अण्णया सो खंतो कालगतो, साधूहिं तस्स दो तिष्णि वा दिवसे दातुं भिक्खाए ओतारितो, सो सुकुमालसरीरो गिम्हे उचरिं हेट्ठा य डज्झतो परसेयतण्डाभिभूतो छायाए वीसमंतो उत्थपइया वणिय महिलाए दिट्ठो, ओरालसुको मालसरीशेत्ति काउं तीसे तर्हि अज्झोववातो जातो, चेडीय सदाविओ, किं मग्गसि ?, भिक्खं, दिन्ना से मोयगा, पुच्छितो कीस तुमं धम्मं करेसि ?, मणइ - सुहणिमित्तं, भणति तो मए चैव
अरहनक चरितम्
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मा भोगे झुंजाहि, सोऽवि उण्हेण तजितो उवाया जाता पुत्तसोगेण, णगरं ममंती अरहण लागणगतेण
भावकधर्म
पश्चाशकचूर्णिः |
वचनानि
॥१३५॥3
समाणं भोगे भुंजाहि, सोऽवि उण्हेण तजितो उवसग्गिजंतो य पडिमग्गो, भोगे मुंजति, सो साहहिं सवेहि मग्गितो, संवेगन दिट्ठो, अप्पसागरियं पविट्ठो, पच्छा से माता उम्मत्तिया जाता पुत्तसोगेण, णगरं ममंती अरहणणयं विलवंती जं निवेदजहिं पासति तं तहिं सत्वं भणति-अरहण्णतो दिट्ठोत्ति ?, एवं विलवमाणी भमति, जाव अण्णया तेण ओलोगणगतेण दिट्ठा, पञ्चभिण्णाया, ताधे च ओयरित्ता पाएसु पडिओ, तं पेच्छिऊण तहेव सच्छचित्ता जाता, ताए भण्णति-पुत्त ! पवयाहि, मा दोग्गतिं जाहिसी, सो भणति-ण उ तरामि काउं संजमं, जइ परं अणसणं करेमि, एवं करेहि, मा पुण अस्संजतो भवाहि, मा संसार भमिहिसि, पच्छा सो ताहेव तत्ताए सिलाए पाओवगमणं करेति, मुहुत्तेण सुकुमालसरीरो उण्हेण विलीणो, पुत्विं तेण णाहितासितो पच्छा अहियासितो । एवं अहियासिअवं ।
"जंतेण करकरण वा सत्थेहि व सावरहिं विविहेहिं, विद्धंसते काए ईसिपि अकंपणा समणा ॥१॥ तहा-जाओ परवसेणं संसारे वेयणाउ घोराओ। पत्ताउ नारगत्ते अहुणा ताओ विचिंतेजा ॥२॥ एण्हि सयंवसस्स उ निरुवमसोक्खावसाण मुहकडुयं । कल्लाणमोसहंपि व परिणाममुहं न तं दुक्खं ॥३॥ संबंधिबंधवेसु य न य अणुराओ खणपि कायद्यो । ते च्चिय होंति अमित्ता जह जणणी बंभदत्तस्स ॥ ४ ॥ वसिऊणवि सुहिमज्झे वच्चइ एगागिओ इमो जीवो । मुत्तूण सरीरघरं जह कण्हो मरणकालंमि ॥ ५॥ नरएसु वेयणाओ अणोवमा सीयउण्हवेगाउ । कायनिमित्तं पत्ता अणतखुत्तो बहुविहाओ ॥६॥ देवत्ते माणुस्से पराभियोगत्तणं उवगएणं । दुक्खपरिकसविही अणतखुत्तो समणुभूया ॥७॥ विगलिंदियपंचिंदियतिरिक्खकायंमि णेगसंठाणे । जमणमरणरहट्ट अणतखुत्तो गओ जीवो ।। ८ ।। घोरंमि गम्भवासे कलमलजंबालअसुहबीभच्छे । IP१३५॥
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परीषहपराजितस्य विधिः
श्रावकधर्म-3 वसिओ अणंतखुत्तो जीवो कम्माणुभावेणं ॥९॥ जं असियं बीभत्थं असुइघोरंमि गम्भवासंमि । तं चिंतेऊण सया मोक्खंमि पञ्चाशक- मई निवेसेजा ।। १०॥ बसिऊग सुरनरीसरचामीयररिद्धिमाणहरघरेसु । वसिओ पुणो वि सोच्चिय जोणिसहस्संधयारेसु चूर्णिः ॥११॥ भोत्तूण वि भोगसुहं सुरनरखयरेसु पुण पमाएण । पीयइ नरएसु भेखकलकलतउतंबपाणाई ॥१२॥ सोऊण सुइय
नरवइभवंमि जयसद्दमंगलरवोघं । सुणइ नरएसु दुहयरअकंदुद्दामसहाई ॥ १३ ॥ निहण हण गिण्ह दह पय उविध पविंधवन्धरुधाहिं । पत्तफाले लोले घोले थरे खारेहिं सिंचेहा ॥१४॥" एवमाइ संवेगनिव्वेयवयणेहिं तस्स समाही कायवा । तहा___जह कोई छुहाए पिवासाए वा पीडिउत्ति भत्तं पाणगं वा मग्गेज्जा, तत्थ किं पढमबीयपरीसहेहिं पीडिओ ओभासह किंवा पंतदेवयाहिडिउत्ति जाणणानिमित्तं सो भन्नइ-को तुम? किं गीयत्थो अगीयत्थो वा ? किं दिवसं अह राइ, ताहे जइ सो अवितहं भणह तो नायवं न एस पंतदेवयाहिडिओ, किंतु छुहादिकिलंतो ओभासइत्ति, तओ जं ओभासइ तं दायत्वं । एत्थ चोयगो भणइ-किं कारणं पच्चक्खाए पुणोवि दिजइ ?, उच्चते-हे चोयग! परीसहसेनं तेण जेयवं, तओ तप्पराजयनिमित्तं जोहस्सेव कयवभूओ पच्चक्खाएवि तस्स आहारो दायबो-"जम्हाहारेण विणा समाहिकामो न साहए तं तु । तम्हा समाहिहेउं दायवो तस्स आहारो॥१॥ सरीरमुज्झियं जेण को संगो तस्स भोयणे । समाहिसंधणाहेउं दिजए सो उ अंतए ॥२॥" तहा... तस्स अन्भुज्जयमरणमन्भुवगयस्स जइ दुविहं चिंधं न कजइ तो मिच्छत् गच्छेजा, जहा-सो उजेणीसावओ, मिच्छत्तं |च गयस्स पवजापरिपालणं अन्भुजयमरणं च निरत्थगं भवति । सरणमुवगयाणं सहायगत्तं च न कयं भवइ पायच्छित्तं च | PJ पडियरमा पावंति, तम्हा चिंधं कायक्वं, तं च दट्टण अप्पणो परेसिं च कल्लाणं करेइ, तं पुण दुविहं-सरीरे उवगरणे य,
RAASARAGARRAHARRAICH
॥ १३६ ।।
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चूर्णि
विधिः
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श्रावकधर्म-|| तत्थ सरीरे भत्तं पञ्चक्खाइउकामेण लोओ कायबो, जइ पञ्चक्खाएवि चिरजीवित्तणेण वइंति वाला तो धुवलोय करेइ
भक्तप्रत्यापञ्चाशक-10 कारवेइ वा, उवगरणे पुण स्यहरणं पासे कजइ, चोलपट्टओ अग्गओ नियंसिजइ, मुहपोतियाए मुहं बज्झइत्ति । तहा
ख्यानस्या___सो भत्तपच्चक्खायओ गिहीण न पगासिजइ, किं कारण ?, पगासिए जइ न नित्थरइ तओ सत्वेसिं लहुत्तं भवइ । को पुण निर्वाह
तत्थ अनिव्वहणे विही ?, भन्नइ-सो एगो वा होज अणेगा वा, तत्थ जो एगो सोवि नाओ अनाओ वा होज, एवं बहुगावि, ॥१३७॥
तत्थ बहुएसु जो नाओ न नित्थरइ, तस्स ठाणे जो अनाओ सो जवणियंतरिओ ठविजइ, एगो पुण नाओ जइ न नित्थरइ तो जइ बीओ संलेहणं करितो अस्थि सो तत्थ ठावेयवो, तस्संतरेण चिलिमिली कायदा, जेहिं नाओ दिट्ठो य ते जइ वंदगा एज तो तेसिं न दंसियचो, मा जाणिए उड्डाहं करेज, ते भन्नति-बाहिं चेव ठिया बंदह, समाहीए खबगो अच्छइत्ति, अह नत्थि संलिहतो अन्नो ताहे वसभी ठविजइ, एत्थवि चिलिमिलिमाइजयणा सा चेव कायवा, ताहे बीए तइए चा दिवसे भन्नइ-रत्ति कालगतो सो परिठविओ य, जो सो न निच्छिन्नो सो पच्छन्नो धरिजइ, गिलाणपडिकम्मं च कीरइ, जाव पढमालियं करेइ, जो तं खिसइ-भत्तपञ्चक्खाणपडिभग्गोत्ति तस्स पच्छित्तं, ताहे सयं चेव निग्गच्छति, अहवा सो सहाओ अन्नत्थ पेसिञ्जद, मा तत्थ अच्छतो जणेण जाणिजिही, जो न नाउ सो जइवि न नित्थरेज तहवि नत्थि उड्डाहो, एवं सपरक्कम भणियं, एवं अपरक्कमपि एएण चेव विहिणा भाणियवं, नवरं खीणजंघाबलो वुड्डत्तणेण मरिउकामो सगच्छे भत्तं पञ्चक्खाइ, अहवा इमेहिं पगारेहिं मरिउकामो भत्तं पच्चक्खाइजा, तं जहा-विसं पडणीएण दिन्नं होजा, विसूइयाए वा अकल्लिभूओ आयको वा कोवि तहाविहो जाओ, दुभिक्खे वा भत्ते अलब्भमाणे, जहा-एगत्थ साहहिं अच्छंतेहिं ताव न नायं जाव | 3॥ १३७ ॥
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भावकधर्म- पनाशकचूर्णिः ।
भावनावर्णनम्
॥ १३८॥
दुभिक्खं पतं, तओ निम्गंतुं न सकेन्ति, तओ कोसलगसावएण ते समासासिया-सवं दुभिक्खकालं अहं तुझं जोग वहिस्सामि, वुझंते य जोगे पुत्तो से पंतो चिंतेइ-सव्वं दव्वं विणामिहि-जइ मे पिया जीवीही, तओ पिया विसेण उद्दवित्ता, साहणं छिन्नं जोग्गासणं, एएहिं कारणेहिं सगच्छे चेव भत्तं पञ्चक्खायचं, असकेंतस्स इमो विही-उस्सासनिरोहं वा करेज, गद्धपिटुं वेहणसं वा करेजा, एवं असिवविज्जुधायादिसु दट्टब्वं । तहा-"पुचि सीयलगोवि हु पच्छासंजायतिवसंवेगो । आलोयणं तु दाउं करेइ विहिणा अणसणं तु ॥ १॥ एत्थ य आहारो खलु उवलक्षणमेव होइ नायवो । बोसिरह तओ सवं उवउत्तो भावसल्लंपि ॥ २ ॥ अण्णपि व अप्पाणं संवेगाइसयओ चरमकाले । मन्नइ विसुद्धभावो जो सो आराहओ भणिओ ।। ३ ।। वजह य संकिलिटुं विसेसओ नयरभावणं एसो । उल्लसियजीवचीरिओ तओ य आराहणं लहइ ॥ ४॥"
"कंदप्पदेव १ किब्बिस २ अभियोगा ३ आसुरा य ४ संमोहा ५। एसा उ संकिलिट्ठा पंचविहा भावणा भणिया ॥१॥ जो संजओवि एयासु अप्पसत्थासु वट्टइ कहिंचि । सो तबिहेसु गच्छइ सुरेसु मइओ चरणहीणो ॥२॥ कंदप्पे कुक्कुइए दुयसीले यावि हासणकरे य । विम्हावितो य परं कंदप्पं भावणं कुणइ ।। ३ ।। कहकहकहस्स हसणं कंदप्पो अणिहुया य संलावा । कंदप्पकहाकहणं कंदप्पुवएससंसा या ॥ ४ ॥ भुनयणवयणदसणच्छएहिं करपायकन्नमाईहिं । तं तं करेइ जह हस्सए परो अपणो अहसं ॥ ५ ॥ भासइ दुयं दुयं गच्छए य दरिउ गोविसो सरए । सवदवदवकारी फुट्ट व ठिओ वि दप्पेणं ॥ ६॥ वेसवयणेहिं हासं जणयंतो अप्पणो परेसिं च। अह हासणोत्ति भन्नइ घयणोव छले नियच्छतो ॥ ७॥ सुरजालमाइएहिं तु विम्हयं कुणइ तन्विहजणस्स । तेसु न विम्हयइ सयं आइडु कुहडएसुं च ॥ ८॥"
॥ १३८ ।
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
विधि:
॥१३९॥
*HOCROGRA MOREGORIES
दारं । "नाणस्स केवलीणं धम्मायरियाण सव्वसाहूणं । भासं अवनमाई किब्बिसियं मावणं कुणइ ॥१॥ दारं । कोउगभई-18| इङ्गिनीकम्मे पसिणापसिणे निमित्तमाजीवी । इड्डिरससायगरुओ अभिओगं भावणं कुणइ ॥ २ ॥ अणुबद्धविग्गहोऽविय संसत्ततवो
मरणपादनिमित्तमाएसो । निक्किवनिरणुकंपो आसुरियं भावणं कुणइ ॥ ३ ॥ दारं । उम्मग्गदेसओ मग्गदूसओ मग्गविष्पडिवत्ती । 18 पोपगमनमोहेण य मोहित्ता संमोहं भावणं कुणइ ॥ ४॥ एयाउ भावणाओ भाविता देवदोग्गई जति । तत्तोऽवि चुया संता पडंति भव. सागरमणंतं ॥ ५ ॥ एयाउ विसेसेणं परिहरइ चरणविग्धभूयाओ। एयनिरोहाउ च्चिय समं चरण पि पावे ॥६॥" एवं भत्तपच्च- | क्खाणं । इयाणि इंगिणिमरण
"इंगियमरणविहाणं आपवलं तु वियडणं दाउं । संलेहणं च काउं जहा समाहीए जहा कालं ॥१॥ पञ्चक्खाइ आहारं चउब्विहं | नियमओ गुरुसगासे । इंगियदेसमितहा चेहूं पि हु इंगियं कुणइ ॥२॥ उव्वत्तइ परियत्तइ काइयमाईसु होइ उ विभासा। किच्चपि अप्पणच्चिय जुंजइ नियमेण घिबलिओ ॥३॥" एवमादि इंगिणिविहाणं सुत्ताउ नायवं । इयाणिं पाओवगमणविही
"तं दुविहं नायवं नीहारिं चेव तह अनिहारी । बहिया गामाईणं गिरिकंदरमाइ नीहारि ॥१॥ वयाइसु जं अंतो उडेउमणाण ठाइ अणिहारिं । कम्हा पायवगमणं ? ज उवमा पायवेणेत्थं ॥ २॥ पाओवगमं भणियं समविसमे पायवो जहा पडिओ। नवरं परप्पयोगा कंपेज जहा फलतरुच ॥३।। परप्पओगत्ति जइ तिरिओ मणुओ देवो वा कड्डेजा, इमो य तापडिवत्तिविही"अभिवंदिऊण देवे जहाविहिं सेसए य गुरुमाई । पञ्चक्खाइ उ तओ तयंतिए सबमाहारं ।। १।। समभावंमि ठियप्पा सम्म सिद्धंतभणियमग्गेणं । गिरिकंदरं तु गंतुं पायवगमणं अह करेइ ॥ २॥ तसपाणबीयरहिए विच्छिन्नवियारथंडिलविसुद्धे ।
॥ १३९ ।।
OCTORRESCHOROSCOORDCOM
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विधिः
श्रावकधर्म-है| निदोसा निदोसं उति अब्भुजयं मरणं ॥ ३ ॥ सवस्थापडिबद्धो दंडायवमाइठाणमिह ठाउं । जावजीवं चेदुइ निच्चेट्ठोले पादपोपपञ्चाशक- पायवसमाणो ।। ४ ॥ पढमंमि य संघयणे बटुंता सेलकुडसामाणा । तेसि पि य वोच्छेओ चोदसपुवीण वोच्छेए ॥ ५॥ गमनचूर्णिः । तहा-पुन्बभवियवेरेणं देवो साहरइ कोइ पायाले। मा सो चरमसरीरो न वेयणं किं पावेही ॥ ६ ॥ पुब्बभविय
प्पेम्मेणं देवो देवकुरुउत्तरकुरुसु । कोई तु साहरेजा सबसुहा जत्थ अणुभावा ॥७॥ देवो नेहेण णये देवारनं व इंदभ॥१४ ॥
वणं वा । जहियं इट्ठाकंता सबसुहा होति अणुभावा ।। ८॥ पुढविदगअगणिमारुयत्रणस्सइतसेसु कोइ साहरइ । बोसट्टचत्तदेहो अहाउयं कोइ पालेजा ॥ ९॥ पुत्वावरदाहिणउत्तरेहिं वाएहिं आवडतेहिं । जह नवि कंपइ मेरू तह ते झाणाउ न चलंति ॥१०॥ उप्पन्ने उवसग्गे दिवे माणुस्सए तिरिक्खे य । सवे पराइणित्ता पाओवगया पविहरति ॥११॥ बत्तीसलक्खणधरो पाओवगओ उ पागडसरीरो। पुरिसवेसिणिकन्ना रागविइन्ना उ गिण्हेजा ॥ १२ ॥ मजणगंधं पुप्फोरयारपरियारणं सिया कुजा । वोसट्टचत्तदेहो अहाउयं कोई पालेजा ॥ १३ ॥ एगंतनिजरा से दुविहा आराहणा धुवा तस्स | अंतकिरियं व साहू करेज देवो व वत्तिं वा ।। १४ ॥ मुणिसुव्वयंतेवासी खंदगदाहे य कुंभकारकडे । देवी पुरंदरजसा दंडइपालकमरुओ य ॥ १५॥ पंचसया जंतेणं रुद्वेण पुरोहिएण मलियाई । बुग्गाहिय रायाणं पावेणं रुद्दचित्तेण ॥ १६ ॥" एयासिं भावत्थो इमाउ कहाणगाओ नायबो___ सावत्थीए नयरीए जियसत्तू राया, धारिणी देवी, तीसे पुत्तो खंदओ णाम कुमारो, तस्स भगिणी पुरंदरजसा, सा कुंभकारकडे णगरे दंडगीणाम राया तस्स दिण्णा, तस्स दंडगिस्स रण्णो पालको णाम मरुओ पुरोहितो, ॥ १४० ॥
ARROCERONACHAR
SING
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L6
4-6464
श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः ।
॥१४१ ॥
-CC
अण्णया सावत्थीए मुनिसुव्बतसामी तित्थकरो समोसरितो, परिसा णिग्गया, खंदओवि णिग्गतो, धम्म सोच्चा सावगो स्कन्दरिजातो, अण्णता सो पालकमरुओ दतत्ताए आगतो सावत्थीं णगरी, अत्थाणीमज्झे साधूण अवणं वदमाणो खंदएणं शिष्याणिप्पट्ठपसिणवागरणो कतो तप्पओसमावन्नो, तप्पभितिं चेव खंदकस्स छिद्दाणि चारपुरिसेहिं मग्गावेंतो विहरति, जाव है
णामुखंदगो पंचहिं जणसएहिं कुमारोल्लग्गएहिं सद्धिं मुणिसुव्वयसामिसगासे पव्वइतो, बहुस्सुतो जातो, ताणि चेव से पंच
दाहरणम् | सयाणि सीसत्ताए अणुण्णाताणि, अन्नता खंदओ सामि आपुच्छति-बच्चामि भगिणिसगासं, सामिणा भणियं-उवसग्गो 18 मारणंतिओ, भणति-आराहगा विराहगा?, सामिणा भणितं-सव्वे आराहगा तुम मोत्तुं, सो भणति-लट्ठ जति एत्तिआ आराहगा, गओ कुंभकारकडं, मरुएण जहि उजाणे ठिता तहिं आउहाणि नूमिताणि, राया बुग्गाहितोजधा एस कुमारो परीसहपरायीतो, एएण उवाएण तुमं मारेत्ता रजं गिहिहित्ति, जति ते विप्पच्चयो उजाणं पलोएहि, आयुधाणि पुल(णूम)इताणि दिवाणि, तं बंधिऊण तस्स चेव पुरोहियस्स समप्पितो, तेण सव्वे पुरिसजतेण पीलिता, तेहिं सम्म अहितासितं, केवलणाणं उप्पणं सिद्धा य, खंदओवि पासि धरितो लोहितचिरिकाहिं भरिजंतो, सव्वपच्छा जंते पीलितो णिदाणं काऊण अग्गिकुमारेहिं उबवण्णो, तंपि से स्यहरणं रुधिरलित्तं पुरिसहत्थोत्तिकाउं गिद्धेहिं (गहियं) पुरंदरजसाय पुरतो पडितं, सावि तदिवसं अधिति करेति, जहा-साहू ण दीसंति, तं च णाए दिटुं, पञ्चभिण्णातो य कंबलओ णिसेजाओ छिण्णाओ, ताए चेव दिण्णे, ततो णातं, जधा-ते मारिता, परिवंसितो राया पाव ! विणट्ठो सि, ताए चिंतितं पव्वयामि, देवेहिं मुणिसुब्बतसगासं णीता, तेणवि देवेण णगरं द8 सजणवदं, अजवि दंडगारणं पसिद्धं लोगम्मि, 18॥ १४१॥
RECE5-
755
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अवंतिसुकुमाल:
श्रावकधर्म-8 एत्थ तेहिं साहुहिं वधपरीसहो अहियासितो संमें, एवं अहियासेतन्यं, ण जधा खंदएण णाभियामितं । तहापश्चाशक
| "धन्नसालिम पाओवगम उवागया जुगवं । जुयलसिलासंथारे मासं तु अणूणगं धीरा ॥१॥ पडणीययाए कोई अग्गी चर्णिः।। से सवसो पदेजाहि । पाओवगए संते जह चाणकस्स व सरीरे॥२॥ पडणीययाए कोई चम्मंसे खीलएहि विहणित्ता । महुघय
मक्खियदेहं पिवीलियाणं तु देजाहि ॥३॥ जह सो चिलायिपुत्तो वोसट्ठनिसट्टचत्तदेहाउ । सोणियगंधेण पिवीलियाहि किर ॥ १४२॥
चालणि व कओ॥४॥जहऽवंतीसुकुमालो वोसट्ठनिसट्टचत्तदेहाओ। धीरो सपेल्लियाए सिवाए खइओ तिजामेणं ॥५॥" तहाहि
अजसुहत्थी उज्जेणीए जिनपडिमं बंदगा गता, उजाणे ठिता भणिया य साहू-बसहि मग्गहत्ति, तत्थ एगो संघाडओ भद्दाए सेटिभजाए घरं भिक्खस्स अतिगओ, पुच्छिता ताए-कओ भगवन्तो ?, तेहि भणियं-सुहत्थिस्स, वसहिं मग्गामो, जाणसालातो दरिसियाओ, तत्थ ठिता, अण्णया पदोसकाले आयरिया णलिणगुम्मं अज्झयणं परियडेति, तीसे पुत्तो अवंतिसुकुमालो सत्ततले पासाए बत्तीसाए भजाहिं समं उवललति, तेण सुत्तविउद्धेण सुतं, ण एतं णाडेगंति, भूमीतो भूमीयं सुणेतो २ उत्तिण्णो, बाहिं निग्गतो, कत्थ एरिसंति?, जातीसरिता, तेसिं मूलं गतो साइति-अहं अवंतिसुकुमालोत्ति णलिणगुम्मे देवो आसि, तस्स उस्सुको मि, पब्धयामि, असमत्थो दीहं सामण्णपरियागं अणुपालेत्ता, इंगिणी साहेमि, ते वि माता से णापुच्छितत्ति नेच्छति, सयमेव लोयं करेति, मा सयंगहियलिंगो होउत्ति दिगं लिंगं, मसाणं कथारकुडंग, तत्थ भत्तं पच्चक्खाति, सुकुमालएहिं पाएहिं लोहितगंधेण सिवाए सपेल्लिकाए आगमण, सिवा एकं पादं खाति एक पिल्लगाणि, पढमे जण्णुगाणि, वितिए ऊरू, ततिए पोट्ट, कालगतो गंधोदगं पुप्फवासं, आयरियाण आलोयणा, भजाणं परंपरपुच्छा, आयरिएहिं
%AROSAROS
AROSAKSCHES
१४२॥
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धावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
श्रावकस्य सामाचारी
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॥१४३॥
कहितं-सडी सुण्हाहि संभ, तं गंता मसाण, पवइयाओ य, एगा गुबीणी णियत्ता, तीसे पुत्तो तत्थ देवकुलं कारेति, तं इदाणिं महाकालं जातं, लोगेण परिग्गहितं ॥ अन्नं च-एगो साहू पाओवगओ, सो पडिणीएहिं उकिखवित्ता वंसकुडंगस्स उपरि छोढुं मुक्को, परिसिए य हेट्ठाउ बंसा उट्ठिया, तेहिं सो साहू विद्धो, उक्खिविउं आगासं पाविओ तहवि सम्ममहियासियं ।। तहा-गामासने केई साहुणो पाओवगया, अईव वरिसिएण पाणिएण बुझंता संकरे लग्गा सम्म अहियासिता कालगया ।। तहा-कई बत्तीसं गोडिल्ल या पवइया पाओवगया, पाओवगया य ते दीविएगं पुवासियबहुपिसिएगं दिहा, कल्लं मम एरभक्खं होहिंतित्ति रुकखं विलग्गाविता पिहं पिहं खाणुएसु जीवंतगा चेव ओलइया, संमं अहियासित्ता कालगया ।।
"एवं पाओवगमं निप्पडिकम्मं तु वणियं सुत्ते । तित्थयरगणहरेहि य साहूहि य सेवियमुयारं ॥१॥ संघयणाभावाओ | इय एवं काउ जो उ असमत्थो। सो पुण थोयतरागं कालं संलेहणं काउं॥२॥ इंगिणिमरणं विहिणा भत्तपरिनं च सत्तिओ कुणइ । संवेगभावियमणो पुबुत्तविहीऍ गयसल्लो ॥ ३ ॥" एवं ताव जईणं, सावगस्स धुण इमा सामायारी
आसेवियगिहिधम्मेण किल सावगेण पच्छा निक्खमियवं, एवं सावगधम्मो उजविओ होइ, अह न सकेइ ताहे भत्तपच्चक्खाणकाले संथारगसमणेण होयवं, जइ न सकेइ तो अपच्छिमं मारणंतियसंलेहण छटुट्ठमाइविगिट्टतवोरूवं जहासंभवं साहुविहाणेणं काऊण अणसणं करेइ, भणियं च-"सड्डो पुण संथारगपहजं संपवन्जिय जहुतं । आरोयावेइ तहा महत्वए भावओ एवं ॥१॥ काउं चेइयपूयं जहविहवं पूइउं समणसंघ । उचियं जणोवयारं काउं च कुटुंबसुत्थत्तं ॥ २॥ अणुसासिय पुत्ताई संमाणिय पुरिजणं जहाजुतं । संथारयपवजं परजए सात्रओ विहिणा ॥३॥न पवजह
***
॥ १४३॥
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श्रावकधर्म- पश्चाशक
संलेखना___ याः पश्चातीचारा
चूर्णिः ।
॥ १४४॥
ROCESC5543
पवजं, जइ पुण तोऽणुव्वयाइयं धम्मं । सविसेसंपि करेइ उच्चारितो तयं चेव ॥४॥ थूलं पाणाइवायं दुविहं तिविहेण सावराह- पि । जाजीवं वोसिरिमो सुहुमंपि वणाइयं किंपि ॥ ५॥ वनस्पत्यादिकं, "एमेव सेसयाइवि वयाई गिण्हेज सुहुमतरगाई । तेसिं चिय अइयारे सवपयत्तेण वजेजा ॥६॥"तं चाणसणं कोई तिविहाहारपरिचागरूवं, कोइवि चउबिहाररूवं करेइ, तंपि कोऽवि सागारं, कोऽवि निरागारं करेइ, भणियं च-"अह संलिहियसरीरो जोगत्तं अप्पणो मुणेऊणं । अभिवंदिऊण देवे गुरू य कुजा अणसणं तं तु ॥१॥तिविहं चउविहं वा आहारं मुयह मुणियनियमावो । तं पुण सागारं वा करेज्ज अहवा निरागारं ॥ २॥ भवचरिमं पच्चक्खामि चउन्विहं अहव तिविहमाहारं । आगारचउक्केणं अन्नस्थिच्चाइणा संमं ।। ३ ।। एयं किल सागारं मयहरपभिइविवज्जियं इयरं । पाणाहारे कप्पड सुद्धोदगमेव से नवरं ॥ ४॥ अब्भंगाइ सव्वं समाहिहेउत्ति तस्स न विरुद्धं । जेण समाही एत्थं सारो सुगईए हेउत्ति ॥५॥ तं च करेंतो सवं संघ सत्वं च जीवसंघायं । खामेइ अप्पणा वि य खमेइ तेसिं च सन्वेसि ॥६॥ साहू य साहुणीओ सड्डा सड्डी य चउविहो संघो । आसाइओ मए जं तमहं तिविहेण खामेमि ॥७॥ सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करिय सीसे । अवराह खामेमि तस्स पसायाभिमुहचित्तो ॥८॥ खामेमि य सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएसु वेरं मज्झं न केणइ ॥९॥"त्ति ॥
तमि कए वज्जेज्जा पंचइयारे इमे उ जिणभणिए । इहपरलोए मरणे जीवियकामेसु आसंसा ॥१॥ ___ एईए गाहाए वक्खाणं-इहत्ति-इहलोगासंसप्पओगो इहलोगो-मणुस्सलोगो तम्मि आसंसा अभिलासो तीसे पओगो8| वावारणं, जहा-राया अमच्चो सेट्ठी वा भवेजामि अहं, रायाईणं रिद्धिं पत्थेइत्ति जं भणियं होइ, एवं परलोगासंसप्पओगो,
GANAGAR
॥ १४४॥
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श्रावकधर्म
पश्चाशक
अनशनदशायां भावना:
चर्णिः ।
।१४५॥
ROSCOCA
परलोगो-देवलोगो, देवो होमित्ति पत्थेइ । एवं जीवियासंसप्पओगो, जइ बहुकालं जीवामित्ति, एसो पुण एवं भवइ, तत्थ मल्लपुत्थयवायणाइपूयाबहुपरिवारदसणाओ जणसाहुसकारसवणाओ य एवं मन्नेइ, जीवियमेव मे सेयं कय अणसणस्सवि, जओ एवंविहा इमा विभूई ममुद्देसेणं बट्टइत्ति । एवं मरणासंसप्पओगो, जया तं पडिवन्नाणसणं न कोई गवेसेइ, पूर्य गुणगहण वा न कोई करेइ, तओ तस्स एवं विहो चित्तपरिणामो भवइ-जइ अहं अपुनकम्मा सिग्धं मरामि तो सुंदरंति, अवा अणिद्वेहिं फासाईहिं पुट्ठो मरिउमिच्छइ । तहा-कामभोगासंसप्पओगो, जघा जम्मतरे चक्कवट्टिवासुदेवमहामंडलियभोगो स्वस्सी वा भवेजामित्ति पत्थेइ । एस चेव पढमचरिमाइयाराणं बिसेसो-जमेत्थ कामभोगे पत्थेइ तत्थ पुण रिद्धिविसेसंति, एत्थ भदत्तो उदाहरणं ।
"इयपडिवन्नाणसणो सम्म भाविज भावणाउ सुभा । एगत्ताणिचत्तासुइत्तअन्नत्तपभिइओ ॥१॥ एगोहं नत्थि मे कोइ नयाहमवि कस्सवि । परं धम्मो जिणक्खाओ एत्थ मज्झ बिहजओ ॥ २॥ अणिचं जीवियं देहो, जोवणं पियसंगमो । नस्थि एत्थं धुवं किंपि, जत्थ राओ विहीयइ ॥३॥ देहो जीवस्स आवासो सो य सुक्काइसंभवो । धाउरूवो मलाहारो सुइनाम कहं भवे ॥ ४ ॥ एगो मे सासओ अप्पा णाणदंसणसंजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा ॥५॥ संजोगमूला जीवेणं, पत्ता दुक्खपरंपरा । तम्हा संजोगसंबंध, जावजीवाए वजए ॥ ६ ॥ जम्मजरामरणजलो अणाइमं वसणसावयाइण्णो । जीवाण दुक्खहेऊ कटुं रुद्दो भवसमुद्दो ॥ ७॥धन्नो हं जेण मए अणोरपारंमि नवरमेयंमि । भवसयसहस्सदुलह लद्धं मे धम्मजाणं तु ॥ ८॥ एयस्स य भावेणं पालिजंतस्स सइ पयत्तेणं । जम्मंतरे वि जीवो पावेति न दुक्खदोगचं ॥ ९॥ चिंतामणी अउबो एस अउद्यो य कप्परुक्खो ति । एयं परमो मंतो एयं परमामयं
पं० चू० १३
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P॥ १४५॥
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बावकधर्म
श्रावकनिवास
पश्चाशक चूर्णिः ।
योग्य
॥१४६॥
स्थाननिरूपणम्
RECORESAXCORRESS
एत्थ ॥ १० ॥ इत्थं वेयावडियं गुरुमाईणं महाणुभावाणं । जेसि पभावेणेयं पत्तं तह पालियं चेत्र ॥११॥ तेसिं नमो भावेणं पुणोवि तेसिं चेव नमो । अणुवकयपरहियरया जे एवं देंति जीवाणं ॥ १२ ॥ एमाइ भावियप्पा सुद्धज्झाणो गमेइ तं कालं । आसन्नागयमरणो गेण्हेज तो नमोकारं ॥१३ ॥ जओ-चोदसपुत्वधरावि हु सुयकेवलिणोवि मुणियसवत्था । तेवि हु सवं मोत्तुं पजंते लिंति नवकारं ॥ १४ ॥ एवं तु भावणाओ जायइ पेच्चावि बोहिलामोत्ति । अन्भासाइसयाओ तहोवमाणाउ एयाउ ॥ १५ ॥ कुसुमेहिं वासियाणं तिलाण तेल्लंवि जायह सुयंध । एओवमा हु बोही पन्नत्ता वीयरागेहि ॥ १६॥ कुसुमसमा अन्भासा जिगधम्मस्सेह होंति णायवा । तिलतुल्ला पुण जीवा तेल्लसमो पेच तब्भावो ॥१७॥ इय अपरिवडियगुणाणुभावओ बंधहासभावाओ। पुछिल्लस्स य खयओ सासयसोक्खो सयामोक्खो ॥ १८॥" अन च-विहिसेसमिमस्स वोच्छामि-भणियविहि अवेक्खाए अभणियविही विहिसेसं तं इमस्स सावगधम्मस्स वोच्छामि-भगिस्सामि ।। ४०॥ निवसेज तत्थ सड्ढो साहणं जत्थ होज संपाओ। चेइयहराई जमि य तयन्नसाहमिया चेव ॥४१॥ ___ निवसेज तत्थेव नगराइठाणे सड्डो-सावगो साहूणं जत्थ होइ संपाओ-जईणं जत्थ आगमग होइ, तहा चेइयहराई जंमि ठाणे (तहा तयन्नसाहमिया) एवंविहठाणे वसंतस्स इमो गुणो होइ, जहा-" साहूण वंदणेग नासह पावं असंकिया भावा। फासुयदाणे निजर उबग्गहो नाणमाईणं ॥१॥ मिच्छदंसणमहणं सम्ममणविपुद्धिहेउं च । चिवंदणाइ
विहिणा पन्नत्तं वीयरागेहि ॥ २॥ साहम्मियथिरकरणं वच्छल्ले सासणस्स सारोत्ति । मग्गसहायत्तगओ तहा अणासो य का धम्माओ ॥३॥ एवमाइ ॥ ४१ ॥ तत्थ निवसंतेण पइदिवसं जे कायवं तं भन्नइ
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श्रावकधर्म-12
श्रावक
पश्चाशकचूर्णिः ।
दिन
कृत्यानि
॥ १४७॥
नवकारेण वियोहो अणुसरणं सावओ वयाई मे । जोगो चिइवंदणमो पञ्चक्खाणं च विहिपुव्वं ॥४२॥
नवकारेण-परमेट्ठिपंचगनमणकिरियाए परममंगलसरूवाए विबोहो-जागरण कायवं, तत्थ इमो विही-" नवकार चिंतणं माणसंमि से जागएण कायर्छ । सुत्ताविणयपवित्ती निवारिया होइ एवं तु ॥१॥" तहा अणुसरणं-अणुचिंतणं कायवाकायवपवित्तिनिवित्तिसाहगं, किं सरूवं तं?, भन्नइ-सावगो-सड्ढोऽहं, तहा वयाणि-अणुवयाईणि मे अत्थि, उवलक्खणं च इमं तेण-अमुगकुलोऽहं अमुगसीसो एकमाइ दवओ, अमुगंमि गामघराइएत्ति खेत्तओ, पभायमिमंति एवमाइ कालओ, मुत्ताइवाहाणं मज्झे का बाहा ? एवमाइ भावओ। ततो जोगो-मुत्तपरिचागसुइकरणाइवावारो कायबो, एवं हि देहबाधापरिहारे समाहीए चेइयवंदणाईणि भावउ अणुट्ठियाणि भवंति । ततो चेइयवंदण-पूयापुरस्सरं अरिहंतबिंबवंदणं, ओकारो गाहापूरणे । तओ पच्चक्खाणं आगमपसिद्धं कायवंति, चसदो समुच्चये, विहिपुत्वं-आगमभणियविहिपुत्वगं, न पुण जहिच्छाए ।। ४२॥ तयणतरं
तह चेईहरगमणं सकारो वंदणं गुरुसगासे । पञ्चक्खाणं सवणं जइपुच्छा उचियकरणिज्जं ॥ ४३॥
तहा-विहिपुत्वगं चेइहरगमण-जिणबिंबभवणे गमणं पवेसो य विहीए कायबो, तत्थ गमणे विही-सवाए इड्डीए-आभरणादिरूवया सवाए दित्तीए सवाए जुत्तीए उचियपयस्थाण-परोप्परं संजोगेणं सबसमुदएण-परिवारादिसमुदाएण एवमाई । एवं हि पवयणपभावणा कया भवइ । पवेसविही पुण सञ्चित्ताणं दवाणं विउसरणयाए पुप्फतंबोलाईणं १, अच्चित्ताणं दवाणं अवि. उसरणयाए वत्थमुद्दियाईणं अपरिच्चाएणं २, एगसाडिएणं उत्तरासंगेणं ३, अणेगुत्तरिजसाडगनिसेहणत्थं इमं भणियं, इत्थीए पुण विणओणयाए गायलट्ठीए ३, चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं ४, मणसो एगत्तीभावेणंति ५, तत्थ य गएण सकारो-मल्लाईहिं
१४७॥
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14-SC
श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः । ॥१४८॥
पूयणं अरिहंतपडिमाए कायक्वं, वंदणं-चेहयवंदणं, तओ गुरुसगासे-गुरुसमीवे पचक्खाणं सयं गहियपच्चक्खाणस्स गुरुसक्खि- ता श्रावकगत्तकरणं, तओ गुरुसगासे चेव सवणं आगमस्स, तओ जइपुच्छा-साहुसरीरसंजमवत्ता पुच्छियवा, एवं हि विणओ पउत्तो दिनभवति, तत्थ उचियकरणिजं-साहुस्स गिलाणाइभावे ओसहपयाण उवएसाइ कायवं, अन्नहा पुच्छा नाइसफला होइत्ति ४३॥ कृत्यानि
अविरुद्धो ववहारो काले तह भोयणं च संवरणं । चेइहरागमसवणं सकारो वंदणाई य ॥४४॥
अविरुद्धो-पन्नरसकम्मादाणपरिहारेण अणवज्जो ववहारो कायम्बो, विरुद्धववहारे पुण धम्मवाहा पवयणहेला य मवेजा, काले-सरीरारोग्गाणुकूले पञ्चक्खाणतीरणसमयसरूवे य, अकालभोयणे हि धम्मस्स धम्मसाहगसरीरस्स य बाहा भवेजा, तहत्ति भणियविहिणा, तंजहा-"जिणपूजोचियदाणं परियरसंभालणा उचियकिच्चं । ठाणुववेसो य तहा पच्चक्खाणस्स संभरणं ॥१॥"ति, एवमाइ, भोयणं कायक्वं, अनहाभोयणे पावबंध एव, चसद्दो समुच्चये, संवरणंति भोयणाणंतरं जहासंभवं गंठिसहिगाइपच्चक्खाणस्स गहणं, पमायपरिहारिणो हि पच्चक्खाणं विणा न जुत्तं खणमवि अच्छेउं, तओ अवसरे चेइहरआगमणं, तओ तत्थ सवर्ण-साहुसमीवे जिणागमसुणणं, अहवा चेइहरे आगमस्स सवर्णति चेइहरे किर पाएण आगमवक्खाणं होइ, अओ आगमगहणं, चेइहरगहणं च ठाणतरोवलक्खणत्थं, जओ भणियं-" जत्थ पुण अनिस्सकडं पूरेंति तहिं समोसरणं । पूरिति समोसरणं अन्नासइ निस्सचेइएसुवि ॥१॥" इहरा लोगविरुद्धं सद्धाभंगो य होइ सड्ढाण। न च "चेइयहरे आगमसवणं कायक्वं" ति एयवयणाओ चेइयहरे चेव साहुणो निवसंति एवंविहसंका कायवा, जओ आगमे चेइयहरे निवासो वारिओ, तंजहा "जइवि न आहाकम्मं भत्तिकयं तहवि वजयंतेहिं । मत्ती खलु होइ कया इहरा आसायणा परमा ॥१॥ दुब्भिगंधमलस्सावि, २॥ १४८॥
SCA58CARRC
5.46
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः । ॥१४९
श्रावकदिनकृत्यानि
SECROSSAR
तणुरप्पेसण्हाणिया । उभओ वाउवहो चेव, तेण टुंति न चेइए ॥३॥ तिन्नि वा कडई जाव, थुइओ तिसिलोइया । ताव तत्थ अणुनाय, कारणेण परेणवि ॥ ४॥" एवमाई । तओ वियाले सकारो-जिणबिंधाणं पुथा कायव्वा, वंदणाइयत्ति अरहंतबिंबाण बंदणा, आइसद्दाओ चेइयसंबंधितकालोचियं काय घेप्पइ, साहुवसहियमणं साहुवंदणाइ वा भूमिगाणुसारेण छविहावस्सयं वा आइसघाउ लब्भइ, चसद्दो समुच्चये, न च छबिहावस्सयं सावगाणं उवासगदसाइसु न भणियंति नस्थित्ति संका कायवा, जओ अणुओगद्दारसूत्ते भणियं-"जण्णं इमे समणे वा समणी वा सावओ वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे जाव उभओ कालं आवस्सयं करेंति, से तं भावावस्सयं "ति, तहा “ समणेणं सावएण य अवस्सकायच्वयं हवइ जम्हा । अंतो अहोनिसिस्स य तम्हा आवस्सयं नाम ॥१॥" तहा आवस्सयचुण्णीएवि सावगसामाइयविहिं भणतेण भणियं, जहा" चउसु ठाणेसु नियमा कायवं, तंजहा-चेइयहरे १ साहसमीवे २ पोसहसालाए वा ३ घरे वा ४ आवस्सय करतो "त्ति, तम्हा न चेइयवंदणाइ नावि मिच्छादुक्कडमे नावि आलोयणादंडगमेतं आवस्सयं, किंतु सामाइयाइछज्झयणरूवं आवस्सयं नायवंति, जओ भणियं " अज्झयणछकवग्गो" ॥ ४४ ॥ एवमाइतहा-जइविस्सामणमुचिओ जोगो नवकारचिंतणाईओ। गिहिगमणं विहिसुवर्ण सरण गुरुदेवयाईणं ॥४५॥
जईणं-साहूणं बेयावच्चाई हिं परिस्संताणं पुढालंबणेणं तहाविहसावगाओवि खेयविणोयं इच्छताणं विस्सामणं-खेयावणयणं जइविसामण कायवं, तहा उचिओ-सभूमिगाणुरूवो जोगो-बाबारो, किंवो?, गन्नाइ-नवकारचिंतणाइओ-नवकारो पसिद्धो, आइसद्दाओ पढियपगरणगुणणाइ ददुवं, तओ गिहगमणं, तत्थ य विहिसुवर्ण-विहिणा जिणवंदणविसेसपच्चक्खाण
१४९॥
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चिन्तनम्
चूर्णिः
भावकधर्म- करणाइणा सयण कायवं, तमेव विहिं विसेसेण दरिसेइ, सरणं-चित्ते धारणं, उवलक्खणं च इमं तेण गुणवत्रणाइयं वि दट्ठवं, पञ्चाशक- गुरुदेवयाईण-धम्मायरियजिणाईणं, आइसद्दाओ अण्णेसिं च धम्माणुट्ठाणाणं पच्चक्खाणमाईणति ।। ४५ ।। तत्थ य
अबंभे पुण विरई मोहदुगंछा सतत्तचिन्ता य । इत्थीकलेवराण तबिरएसुं च बहुमाणो ।। ४६ ।।
अचंभे-थीपरिभोगे पुण विरई-निवित्ती कायवा, तहा मोहदुगुंछा-थीपरिभोगहे उपुरिसवेयाइमोहणियनिंदा कायवा-"ज जं ॥ १५०॥
नजइ असुई लजिजइ कुत्थणिजमेयंति । तं तं मग्गइ अंग नवरमणंगोत्थ पडिकूलो॥१॥" एवमाइ, तहा सतत्तचिंता यसरूवनितणं कायवं, केसिं ?,इत्थीकडेवराणं-नारीसरीराणं, जहा-"सुक्कसोणियसंभूयं,अंतो असुइपूरि। नाणावाहिसमावासो धी इत्थीण सरीरंग ॥१॥"ति, तश्विरएसुंच-अबंभनियत्तेसु साहूसु, चसद्दो समुच्चये, बहुमाणो कायक्वोत्ति ॥४६॥ तहासुत्तविउद्धस्स पुणो सुहमपयत्येसु चित्तविण्णासो। भवठिइणिरूवणे वा अहिगरणोवसमचित्ते वा ॥४७॥
सुत्तविउद्धस्स-निदावगमेण जग्गंतस्स पुण सावगस्स सुहमपयत्थेसु कम्मजीवपरिणामाईसु चित्तविन्नासोलामणनिवेसो होइ कायबो, जहा-"जीवपरिणामहेऊ कम्मत्तं पोग्गला परिणमंति । पोग्गलकम्मनिमित्तं जीवोवि तहेच परिणमइ
॥१॥" एवमाइ, भवठितिनिरूवणे वा-संसारसवपरिभावणे वा चित्तविनासो कायवो, जहा भणियं "भजा जायइ माया, 3थीया पत्ती पियावि पुण पुत्तो । दासो जायइ सामी संसारे संसरताणं ॥१॥" एवमादि, अहिगरणोवसमचित्ते वा
अहिगरणाणि किसि आदीणि णि कलहाईणि वा तेसिं उवसमाय जे चित्तं तं अहिगरणोवसमचित्तं, तत्थ केण पगारेण कम्मि वा काले मम अहिगरणोवसमचित्तं भविस्सइत्ति एवं चित्तविनासो कायवो, वासहा विगप्पे ।। ४७ ॥ तहा
W॥१५०॥
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भावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
॥१५१॥
CHARCHANA
आउयपरिहाणीए असमंजसचेठियाण व विवागे। खणलाभदीवणाए धम्मगुणेसुं च विविहेसु॥४८॥ मनुष्यादि
आउयपरिहाणीए-पइक्खणं आउयक्खए चित्तविनासो कायचोत्ति सबपएसु दट्ठवं, तहा-असमंजसचिठियाण- दुर्लभत्वे पाणवहाईणं वा विगप्पे, विवागे-नरगाइअसुभफलजणगत्ते, जहा [व किसिमाउ] "वहमारणअभक्खाणदाणपरधणविलोव-18| चुल्लकणाईणं । सव्वजहन्नो उदउ दसगुणि उ एक्कसि कयाणं ॥१॥" एवमाइ, तहा-खणे-थोवकाले वि लाभो-असुभज्झवसाएण महंतस्स दृष्टान्त: असुभकंमस्स सुभज्झवसाएण पुण सुभकम्मस्स बंधो तस्स दीवणा-पगासणा खणलाभदीवणा ताए चित्तनिवेसो कायद्यो । जहा "नरएसु सुरवरेसु य जो बंधइ सागरोवमं एकं । पलिओवमाण बंधइ कोडिसहस्साण दिवसेणं ॥१॥" अहवा खणो-अवसरो मोक्खसाहणो, सो पुण दवखेत्तकालभावभेयाउ चउविहो, तत्थ दवओ माणुस्सत्तं, खेत्तओ आरियखेतं, कालओ दूसमसुसमाइकालविसेसो, भावओ बोही, संमत्ताई गुणा इत्यर्थः, तस्स एवं विहखणस्स लाभो जुगसमिलाइनाएण किच्छेण संपत्ती तस्स दीवणा-खणलाभदीवणा ताए चित्तविनासो कायवो, जहा भणियं-"माणुस्सखेत्तजाई कुलरूवारोग्गमाउयं बुद्धी । सवणोग्गह सद्धा संजमो य लोगमि दुलहाई ॥१॥" एएसिं दुलभत्ते इमे दिटुंता-" चोल्लग १ पासग २ धण्णे ३ जूए ४ रयणे य ५ | सुमिण ६ चके य ७ । चम्म ८ जुगे ९ परमाणू १० दस दिट्ठता मणुयलंभे ॥१॥"।
चुल्लगत्ति भोयणं, तस्स दिद्रुतो, जहा-बंभदत्तस्स एगो कप्पडिओ ओलग्गओ, बहुसु आवईसु अवत्थासु य सवत्थ ससहाओ आसी, सो य रजं पत्तो, बारस संवच्छरो अभिसेओ कओ, कप्पडिओ तत्थ अल्लियापि ण लहति, ततो णेण उवाओ चिंतिओ, उवाहणाओ धए बंधिऊणं धयवाहएहि समं पहाविओ, रन्ना दिट्ठो, उत्तिण्योणं अवगूहिओ, अन्ने भणंति-"(ताहे)तेण
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः । ॥ १५२॥
पाशकधान्य
द्यूतदृष्टान्ताः
दारवाले सेवमाणेण बारसमे संबच्छरे राया दिवो", ताहे राया तं दट्टणं संभंतो, इमो सो वराओ मम सुहदुक्खसहायगो, | एताहे करेमि वित्ति, ताहे भणति-किं देमि वित्तिं ?, सो भगति-देहकर( देहि ममं ) चोल्लए घरे जाव सबंमि भरहे, जाहे | निट्ठियं होजा ताहे पुणोवि तुज्झ घरे आढवेऊण झुंजामि, राया भणति-किं ते एएण ?, देसं ते देमि तो सुहं छत्तच्छायाए हत्थिखंधवरगओ हिंडिहिसि, सो भगइ-किं मम एद्दहेण आडोवेण, ताहे से दिनो चोल्लगो, ततो पढमदिवसे राइणो घरे पजिमिओ, तेण से जुगलयं दीणारो य दिनो, एवं सो परिवाडीए सवेसु राउलेसु बत्तीसा य रायवरसहस्सेसु, तेसिं च जे भोइया, तत्थ य नगरे अणेगाउ कुलकोडीउ, णयरस्स चेव सो कया अंतं काहिति ?, ताहे पुणो गामेसु, ताहे पुणो भरहवासस्स, अवि सो वच्चेज अंतं ण य माणुसतणाओ भट्ठो पुणो माणुसत्तण लहइ १ ।
पासगत्ति चाणकस्स सुवन नत्थि, ताहे केण उवाएण विढवेज सुवन ?, जंतपासया कया, केइ भणति-वरदिन्नया, ततो एगो दक्खो पुरिसो सिक्ख विओ दीणाराण थालं भरियं, सो भणइ-जइ मम कोइ जिणइ सो थालं गेहउ, अह अहं जिणामि तो एग दीणारं जिणामि, तस्स इच्छाए जंतं पडति, अओ न तीरइ जिणिउं, जहा सो न जिप्पति एवं माणुसलंभोवि, अवि णाम सोवि जिप्पेज ण य माणुसाउ भट्ठो पुणरवि माणुसत्तणं लहइ २।।
धण्णेत्ति जेत्तियाणि भरहे धण्णाणि ताणि सवाणि पिंडियाणि, तत्थ पत्थो सरिसवाण छूढो, ताणि सव्वाणि अंबाली(अहू| यालि)याणि,तत्थेगा जुन्नथेरी सुप्पंगहाय ते वी(विय)णेज, पुणोऽवि पत्थं पूरेज,अवि सा देवयापसाएण पूरेजण य माणुसत्तण ३।
जूए, जहा-एगे राया, तस्स सभा ख मट्ठसयसंनिविठा, तत्थ तत्थ अत्थाणियं देति, एकेको य खंभो अदुसयंसिओ, तस्स
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रत्नस्वप्नदृष्टान्तौ
A
श्रावकधर्म- रन्नो पुत्तो रजकंखी, चिंतेइ-थेरो राया, मारेऊण रजं गेण्हामि, तं च अमच्चेण नाय, तेण रनो सिढुं, ततो राया पुत्तं पश्चाशक-18 भणति-अम्ह जो न सहइ अणुक्कम सो जूयं खेल्लउ, जइ जिणति रजं से दिजति, किह पुण जिणियत्वं ?, तुझं एगो आओ चूर्णिः ।
अम्हं अबसेसा आया, जइ तुमं एगेण आएण ( हारेजा पुणो मूलओ जेयवा), अट्ठसयस थंभाणं एकेक अंसिं अट्ठसए
वारा जिणसि तो तुम्भे रजं, अविय देवया विभासा ४ ।। ॥ १५३॥
रयणे जहा-एगो वाणियओ वुड्डो, रयणाणि बहुणि से अत्थि, तत्थ य महे अन्ने वाणियगा कोडिपडागाओ उब्भेति सो न उब्भवेति, तस्स पुत्तेहिं थेरे पउत्थे ताणि रयणाणि देसिविणियगाणं हत्थे विकियाणि, वरं अम्हेवि कोडिपडागाओ उन्भवेमो, ते य वाणियगा समंतओ पडिगया पारसकूलाइणि, थेरो आगओ, सुयं जहा-विक्कियाणि, ते अंबाडेइ, लहुं रयणाणि आणेह, ताहे ते सबओ हिंडिउमारद्धा, किं ते सत्वरयणाणि पिंडेज, अवि देवयापभावेण विभासा ५।
सुविणत्ति एगेण कप्पडिएण सुविणे चंदो गिलिओ, कप्पडियाण कहिय, ते भणंति-संपुग्नचंदमंडलसरिसं पावत्तियं (पूयलिय) लभिहिसि, लद्धा घरछायणियाए, अण्ोणवि दिट्ठो, सो व्हाइऊण पुष्फफलाणि दाऊणं सुविणयपाढगस्स कहेइ, तेण भणियं-राया भविस्ससि, इओ य सत्तमे दिवसे तत्थ राया मओ अपुत्तो, सो य निवण्णो अच्छति जाव आसो अहिवासिओ आगओ, तेण तं दद्वण हेसियं पयक्षिणी कओ य, तओ विलइओ पढे, एवं सो राया संजाओ, ताहे सो कप्पडिओ तं सुणेइ, जहा-तेण वि दिट्ठो, एरिसो सुमिणओ, सो आएसफलेण किर राया जाओ, सो चिंतेइ-बच्चामि जच्छगोरसोत्थ तं पिवित्ता सुवामि, जा पुणो तं चेव सुविणगं पासामि, अस्थि पुण सो पेछेन्ज ? अवि य सो० ण य माणुसाओ०६।
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5॥ १५३॥
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चक्र
श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः ।
दृष्टान्त:
ICRON-SC-OCT-CE5
॥१५४॥
चक्कत्ति दारं, इंदपुरं नगरं, इंददत्तो राया, तस्स इट्ठाण वराणं देवीणं बायीसं पुत्ता, अन्ने भणंति-"एक्काए चेव देवीए पुत्ता," राइणो पाणसमा, अन्ना एका य अमञ्चधूया, सा परं परिणतेण दिडेल्लिया, सा अन्नया कयाइ हाया समाणी अच्छइ, रण्णा दिट्ठा, का एसत्ति?, तेहिं भणियं-तुझं देवी एसा, ताहे सो ताए समं रत्तिं एकं वसिओ, सा य रिउण्हाया, तीसे गम्भो18 लग्गो, सा य अमच्चेण भणिएल्लिया-जया तब गम्भो आहूओ भवइ तया ममं साहेजासु, तीए तस्स कहितं दिवसो मुहुत्तो जं च रण्णएण उल्लवियं, तेण तं पत्तए लिहियं, सो सारवेति, णवण्हं मासाणं दारओ जाओ, तस्स दासचेडाणि तदिवसं जायाणि, तं. अग्गियओ, पवयओ, बहुलिया, सागरओ य, ताणि सहजायगाणि, तेण कलायरियस्स उवणीओ, तेण लेहाइयाइयाउ गणियप्पहाणाउ कलाउ पगाहिओ, जाहे ताउ गहेति आयरिओ ताहे ताणि तं कुटुंति पेल्लेंति य, पुवपरिसएणं ताणिति रो.ति, तेण ताणि ण चेव गणियाणि, गहियाउ कलाउ, ते अन्ने बावीसं कुमारा गाहिजंता त आयरियं पिट्ठति अवयणाणि य भणंति, जाहे ते आयरिओ पिट्टेति ताहे गंतूणं माऊगं साहंति, ताहे ताओ आयरियं खिसंति, कीस आहगसि तं, किं सुलभाणि पुत्तजम्माणि ? अओ ते न सिक्खिया, इओ य महुराए पवयी (जियसन) राया, तस्स निव्वुइ नाम दारिया, सा रणो अलंकिया उवणीया, राया भणति-जो तब रोयइ भत्तारो तं गेण्हाहि, ततो ताए भणियं जो भूरि वीरो विकंतो सो मम भत्ता होउ, सो पुण रजं देजा, ताहे सा बलवाहणं गहाय गया इंदपुरं नगरं, तत्थ इंददतस्स रन्नो बहवे पुत्ता, इंददत्तो तुट्ठो चिंतेति-गुणं अहं अन्नेहिंतो सइहितो लट्ठो जेणेसा आगया, तो णेण उस्सियपडायं णयरं कारिय, तत्य एकमि अक्खे अढ चक्काणि, तेसिं पुरओ धीउल्लिया, सा अच्छिमि विधियवा, तओ इंददत्तो राया सन्नद्धो निग्गओ सह पुत्तेहिं, सा
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CE
॥ १५४ ॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णि :
।। १५५ ।।
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विका सवालंकारविभूसिया एगंमि पासे अच्छति, सो रंगो रायाणो ते य दंडभडभोइया जारिसो दोवईए, तत्थ रन्नो जेो पुतो सिरिमाली नामकुमारो, सो भणिओ-पुत एसा दारिया रज्जं च घेत्तवं, अओ विंध एयं पुत्तलियंति, ताहे सो अककरणो तस्स समूहस्स मज्झे धणुं चेत्र गेण्दिउं न तरति कहवि गहियं तेण, जओ वच्चउ तओ वच्च उत्ति मुको सरो, hi अफिऊिण भग्गो, एवं कस्सइ एगं अरगतरं वोलीणो कस्सइ दोन्नि कस्सह तिनि अन्नेसिं बाहिरेण चैव नीति, ताहे या अधिर्ति पकओ - अहोऽहं एएहिं धरिसिउत्ति, ततो अमचेण भणियं कीस अधितिं करेह १, राया भणति - एतेहिं अहं पाणी कओ, अमचो भणति-अत्थि अन्नो तुज्झ पुत्तो मम धूयाए तगओ सुरिंददत्तो नामा, सो ममत्थो विधि, अभिणाणि से कहियाणि, कहिं है, सो दरिसिओ, ततो राइणा अवगूहितो भणिओ य- सेयं तत्र एए अड्ड रहचके तू पुतलियं अच्छमि विधेत्ता रजसहियं नेव्बुदं दारियं संपावित्तए, तओ कुमारो जं आणवेहत्ति भणिऊणं ठाणं ठाऊणं
गेहति, लक्खाभिमुहं सरं सज्जेति, ताणि य दासरूत्राणि चउदिसिं ठियाणि रोडेंति, अण्णे य उभओ पासिं गहियखग्गा, जइ कहवि लक्खस्स चुक्कड़ तो सीसं छिंदियवंति, सोवि से उवज्झाओ पासे ठिओ भयं देह-मारिजसि जा चुकसि, ते बावीसंपि कुमारा एस विंधिस्मतित्ति, ते विसेसओ उल्लंठाणि विग्वाणि करेंति, ततो ताणि चत्तारि ते य दो पुरिसे बावीसं च कुमारे अगणेंतो ताणं अट्टहं रहचकाणं अंतरं जाणिऊण तंमि लक्खे निरुद्धाए दिट्ठीए अन्नमई अकुणमाणेण सा वीवीइया वामे अच्छिमि विद्धा, तओ लोगेण कलयलुम्मिस्सो साहुकारो कओ, जह तं चकं दुक्खं मेतुं, एवं माणुसत्तणंपि७ ।चमेति सेवालो, जहा- एगो दहो जोयणसतसहस्स विच्छिष्णो चम्मेण णद्धो,, एगं मज्झे छिड, तत्थ कच्छभस्स गीवामाह,
चर्म
दृष्टान्तः
।। १५५ ।।
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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
युगपरमाणु
दृष्टान्तौ
॥१५६॥
R9516
तत्थ कच्छभो वाससए वाससए तए गीवं पसारेह, तेण कहवि गीवा पसारिया जाव तेण छिडेण निग्गया, तेण जोइसं दि8 कोमुइयाए, सो गओ सयणिज्जयाण दाएमि, आणेत्ता सबतो पलोएति ण पेच्छति, अवि सो न य माणुसाओ०८।
जुगदिदंतो जहा-" पुवंते होज जुगं अवरंते तस्स होज समिला उ । जुगछिडुमि पवेसो इय संसइओ मणुयलंभो ॥१॥ जह समिला पन्भट्ठा सागरसलिले अणोरपारंमि । पविसेज जुग्गछिडं कहवि भमंती भमंतमि ॥२॥ सा चंडवायवीई पणोल्लिया अवि लभेज जुगछिई। न य माणुसाउ भट्ठो जीवो पडिमाणुसं लहइ ॥ ३ ॥" ९।
इयाणि परमाणू, जहा-एगो खभो महप्पमाणो, सो देवेणं चुन्नेऊण अविभागिमाणि खंडाणि काऊण नलियाए पक्खितो, पच्छा मंदरचूलियाठिएण मिओ, ताणि णवाणि, अत्थि पुण कोइ तेहिं चेत्र पोग्गलेहिं तमेव खंभ णिवनेजा, नो इणद्वे समटे, एवं भट्ठो माणुस्साओ न पुणो, अहवा सभा अणेगखंभसयसन्निविट्ठा, सा कालंतरेण झामिया पडिया, अस्थि पुण कोई तेहिं चेव पोग्गलेहि करेजा ?, नो इ०१० । एवं माणुस्सत्तं दुल्लभं ।
"इय दुल्लहलंभ माणुसत्तणं पाविऊण जो जीवो। न कुणइ पारत्तहियं सो सोयइ संकमणकाले ॥ १॥ जह वारिमज्झछूढोच्च गयवरो मच्छउव गलगहिओ । वग्गुरपडिउच्च मओ संवट्टइओ जह व पक्खी ॥२॥" वारिसद्देण हत्थिबंधणं भन्नइ, संवट्टइउत्ति संवर्ल्ड-जालं तत्थ इओ संवट्टइउत्ति, " सो सोयह मच्चुजरासमोच्छुओ तुरियनिद्दपक्खित्तो। तायारमविंदतो कम्मभरपणोल्लिओ जीवो ॥३॥" सो पुण एवं मओ समाणो "काऊणमणेगाई जम्ममरणपरियट्टणसयाई । दुक्खेण माणुसत्तं जइ लहइ जहिच्छया जीवो ॥ ४॥ तं तह दुल्लहलंभं विज्जुलयाचवलं माणुसत्तं । लद्धण जो पमायइ सो काउरिसो न
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॥ १५६॥
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धर्मगुणाः चित्तविन्यासे संवेगः
श्रावकधर्म
सप्पुरिसो ॥५॥"त्ति । अहवा-खणलाभो दीवनायं च, तत्थ खणलाभो वक्खाणिओ चेव, दीवनायं पुण जहा-"अंधयारे पश्चाशक
महाघोरे, दीवो ताणं सरीरिणं । एवमन्नाणतामिस्से, भीसणमि जिणागमो ॥१॥ अहवा-" दीवो ताणं सरीरीणं, समुद्दे चूर्णिः | दुत्तरे जहा | धम्मो जिणिंदपन्नत्तो, तहा संसारसागरे ॥ २॥" तहा-धम्मस्स-सुयचारित्तरूवस्स गुणा-उवगारा फलाणि ॥१५७॥ ४
धम्मगुणा तेसु, चसद्दो समुच्चये, विविहेसु-बहुविहेसु इहलोगपरलोगरिसएसु, जहा भणियं-"तणसंथारनिसण्णोवि मुणिवरो भट्ठरागमयमोहो । जं पावइ मुत्तिसुहं कत्तो तं चक्कवट्टीवि ? ॥१॥" एवमाइ ॥ ४८॥ तहा
बाहगदोसविवक्खे धम्मायरिए य उज्जयविहारे । एमाइचित्तणासो संवेगरसायण देह ।। ४९॥
जेहिं जेहिं अत्थकामरागाइहिं धम्माहिगारी पुरिसो कुसलाणुठाणाओ पाडिजइ ते बाहगदोसा तेसिं विवक्खोपडिवक्खभावणा तत्थ चित्तविनासो कायबो, जओ भणियं-" जो जेणं वाहिजइ दोसेणं वेयणाइविसएणं । सो खलु तस्स विवक्खं तबिसयं चेव झाएजा ॥१॥" वेयणत्ति अस्थमाई-" अत्थंमि रागभावे तस्सेव उवजणाइसंकेसं । भावेज धम्महेउं अभावमो तहय तस्सेव ॥१॥" एवमाइ, तहा-धम्मायरिए-बोहिदायगे गुरुमि, एवं चित्तविनासो कायबो, जहा-" संमत्तदायगाणं दुप्पडियारं भवेसु बहुएसु । सत्वगुणमेलियाहिवि उवयारसहस्सकोडीहिं ॥१॥" एवमाइ, तहा उज्जयविहारे चित्त. विन्नासो कायबो, "जहा कइया होही सो वासरो उ गीयत्थगुरुसमीवंमि । सबविरई पवज्जिय विहरिस्सामी अहं जमि ॥१॥" एवमाइ, चित्तनासो किं करेइ ?, भन्नइ-संवेगरसायणं देह'त्ति संवेगो-संसारनिव्वेओ मोक्खाणुरागो वा सो चेव रसायणंअमयं अजरामरत्तकारणचाओ संवेगरसायणं, तं देइ-पयच्छइ, एवं चित्तविन्नासे संवेगो उप्पज्जइत्ति ।। ४९ ॥ ततो
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Plu १५७॥
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विधिरतस्य भवविरह
श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ॥१५८॥
गोसे भणिओय विही इय अणवरयं तु चिट्ठमाणस्स । भवविरहबीयभूओ जायइ चारित्तपरिणामो ॥५०॥
गोसे-पमाए भणिओ चेव विही "नवकारेण विबोहो" एमाई, पुणोवि न भन्नइ, अणवरयं तु चेट्ठमाणस्स इति पुवमणियविहिणा नवकारवियोहाइणा अणवरयं-सयाकालं चेट्ठमाणस-भणियाणुठाणं करेंतस्स सावगस्स, कि होइ ?, भन्नइ-भवविरहबीयभूओ जायइ चारित्तपरिणामोत्ति भवविरहो-संसारविओगो तस्स वीयभूओ-कारणं भवविरहबीयभूओ जायइ-उप्पजइ चारित्तपरिणामो सबविरइपरिणामो, एवं हि देसविरइमणुसीलंतस्स उवायपवित्तीए अवस्सं भवविरहवीयभूओ चारित्तपरिणामो तंमि अन्नंमि वा भवे होइत्ति ॥ ५० ॥
पंचासगवित्तीओ आवस्सगसुत्तवित्तिचुन्नीणं । नवपयसावयपन्नत्तिमाइसत्थाण मज्झाओ ॥१॥ मंदमईण हियत्थं एसा चुन्नी समुद्धिया सुगमा । सिरिचंदकुलनहंगणमयंकसिरिचंदसूरीणं ॥२॥
सिरिवीरगणिमुणीसरकप्पूरसिद्धंतसिंधुसिस्साणं । सिस्से हिं सिवमणेहि सिरिमन्जसदेवसूरीहिं ॥३॥ नयणमुणिथाणुमाणे(११७२ )काले विगयंमि विक्कमनिवाओ । संसोहिया य एसा विबुहेहि समयनिउणेहिं ॥ ४ ॥
॥ इति श्रीश्रीचन्द्रसूरिशिष्याचार्यश्रीयशोदेवदृब्धा आद्य(श्रावक)पंचाशकचूर्णिः समाप्ता॥
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परिणामो सपरिणामोतिहमाणस्म-भाग मन्नइ, अ
RECARE CRORARIES
इति श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई-जैन-पुस्तकोद्धारे ग्रन्थाङ्कः १०२॥
CHECCANCICIROO
१५८॥
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S
पुष्पिका
श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः ॥१५९॥ ४
पुष्पिका संवत् १९६४ वै शाके १८२९ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे शुभमाहाशुक्लपक्षे पुनमे(१५) लिखितं जयतारणमारवाडमाहात्मा दीपचंद । तपागच्छे विराजमानमहाराजजीपूज्यपंन्यासजी (अधुना आचार्यप्रवर) महाराजजी श्रीश्रीश्री १००८ श्रीश्रीमुनिराज आणंदसागरजी महाराजजीनी ।। शुभं भवतु ॥
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SAGAGAUCRACTROCAE%
के इति श्रीश्रीचन्द्रसूरिशिष्याचार्यश्रीयशोदेवदृब्धा ।
आद्य(श्रावक)पंचाशकचूर्णिः समाप्ता ॥ में इति श्रेष्ठि देवचन्द्र लालाभाई-जैन-पुस्तकोदारे ग्रन्थाङ्कः १०२॥
CAESARCHIRANGACASSE
॥१५९ ।।
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C
धावकधमः पश्चाशक
चूर्णिः परि.१
प्रमाणानामकारादिक्रमः
॥१६
%ARASHAR
॥
ARROCHECARECACC-MOH
प्रथमं परिशिष्टम्
->+4आद्य(श्रावक)पश्चाशकचूर्णावुद्धृतानां
गाथादिप्रमाणानामकारादिक्रमः गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि । गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिशानिर्दिष्टस्थलानि अइखद्धकारगं वा ज ६३ (ओघ० भा० २७९)* | अणभिग्गहियकुदिट्ठी १३ ( उत्त० गा० १०८६) अज्जो! संलेहिओ १३० (व्य० उ०१० गा० ४६०) अणहुयं उब्भावइ
(नव० प्र० गा० ३०) अजुयलिया अतुरंता १०७ (ओघ० गा० ३१३) अणिच्चं जीवियं देहो अज्झयणछक्कवग्गो १४९ (अनु० गा० २)| अणुबद्धविग्गहोऽविय १३९ (बृह० गा० १३२४) अट्ठारसहा बंभं नवगुत्ती ६८ (नव० प्र० गा०४८) अणुसासिय पुताई अट्टेण तं न बंधइ ८९ (आव० चू०भा०२, पृ०२९७)। अण्णंपि व अप्पाणं
१३८ अडइ बहुं वहइ भरं ७७ (नव० स्वो० ५० २७) । अत्थंमि रागभावे १५७ (पंचव० गा० ८९१)
दर्शितग्रंथेषु किंचित् पाठभेदेऽप्येतानि प्रमाणानि सन्ति केचित्स्थलेषु संस्कृतस्यापि प्राकृतं कृतं संभवति च ।
अतिपाइ
१४३
न
AN
P॥ १६०॥
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भावकधर्मपञ्चाशक
65%CEC
प्रमाणानामकारादिक्रमः
परि.१
गाथाद्याद्यशः पृष्यंकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि अनिरिक्खियापमज्जिय ९८ (श्रा०प्र० गा० ३१५) | असिणाणवियडभोई १२० (पंचा० गा० ४६२) ।४ अन्नदाणा हरे बालं ३१ (आव० चू० भा०१, पृ. ४६२) असियसयं किरियाण ४८ (आचा०टी०प०१७) अन्नाणंधा मिच्छत्त १०८ (
) असुरसुरं अचवचवं १०६ (ओघ० भा० २८९) अन्नाणं संसओ चेव ५० (नव० स्वो०, प० १२) अह भवसुहविरयमणो १०३ ( अन्ने अभिग्गहा खलु ११८ (श्रा०प्र० गा० ३७६) | अह संलिहियसरीरो १४४ ( अन्नेसि सत्ताणं
(
अहिगयजीवाजीवे १२५ (औप० सू०४१) अबुहजणपत्थणिजं
अहिगरणखामणं ११८ (श्रा० प्र० गा० ३६५) अभंगाइ सवं १४४
अंगपञ्चंगसंठाणं ७३ (उत्त० गा० ३९२) अब्भुट्ठाणे विणए परक्कमे ११४ (आव०नि०८४८) अंतो वा बाहिं वा १२९ (व्य० उ०१० गा०४२५) अभिवंदिऊण देवे
)| अंधयारे महाघोरे १५७ (पंचा० टी०, प० ३६) अयसं जीवियणासं
) आगाढजोगवाही ६२ (ओघ० गा० ५४९) अवसेसा अणगारा १३४ (व्य० उ०१० गा० ५२४) आणाईसरियं वा इड्डी ७२ ( अविराहियसामन्नस्स ९६ (श्रा०प्र० गा० ३००) | आययणसेवणा निनिमित्त० ११४ (पंचा० टी०प० २८)
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644
ESCRECISM
॥१६१।।
in Edualan
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पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः परि.१
प्रमाणानामकारादिक्रमः
॥१६२ ॥
CHOCCASHOCKI
गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः आयरियपायमूलं . १३० (व्य० उ० १० गा० ४६५) | इय गुच्छाइसु सहसा आयाराईगुणड्डाणं १३० (
) इय दुलहलंभं आरंभाणुमईओ
९५ (श्रा० प्र. गा. २९४) | इयपडिवन्नाणसणो आलोयणं अदाउं सइ १३० (पंचा० गा० ७३३) | इरिएसणभासासु आसीविसेण खेल्लइ
)| इह सावगो दुविहो आसेवियगिहिधम्मेण १४३ (श्रा० प्र०टी०, ५०२०५) | इंगालकमंति आहाकम्मियपाण १२९ (व्य० उ०१० गा०४३७) | इंगाले वणसाडी आहारगुत्ते अविभूसियप्पा ६८ (आव० सं० गा०४१) | इंगियमरणविहाण आहारपोसहो दुविहो १०२ (आव० चू० भा०२, पृ०३०४) | इंगिणिमरणं विहिणा इणमवि चिंतेयव्वं ६८ (आव० चू० भा०२, पृ०२८८) | इंदनागेण अरहया इत्तरपरिम्गहियागमणं
इंदिययबलऊसासाउ इत्थं वेयावडियं
| इंदियाणि कसाए य इय अप्परिवडिय १४६ (श्रा० प्र० गा० ३८९)| उक्कोसगा उ एसा
१५६ (आव०नि०८३६) १४५ ( ९८ (आव० चू०भा०२,पृ०३०१) ९३ (आव० चू०भा०२, पृ०२९९) ८७ (आव० चू० भा०२,०२९६)
८६ (श्रा० प्र० गा०२८७) १३९ (पंचव० गा० १६२३) १४३ (पंचव० गा.१६२२) ३५ (आव० चू०भा०१, पृ०४६६)
५० (प्रव० सा० गा० १०६६) १३० (व्य० उ०१० गा०४६४) १२८ (जीत० भा० गा० ३५५)
॥१६२॥
Jain Education
Donal
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1
श्रावकधर्म
पश्चाशक
चूर्णि
परि. १
॥ १६३ ॥
Jain Education
गाथाद्याद्यशः उग्गं तप्पंति तवं सरीर
उग्धोसणं च पावई तिए
उचियकलं मो उ जं परिमाणं
उमि सिल्लावट्टे
उद्दिट्ठकडं भपि
पृष्टांक:
११०
उप्पन्ना २ माया उप्पन्न उवसग्गे
निर्दिष्टा निर्दिष्टस्थलानि
( नव० प्र० गा० ११९ )
)
६५ (
६६ (आव० चू० भा०२, पृ०२८८) (श्रा० प्र० टी०, पृ० १५०)
८२
१३४
४७८ ) ४७६ )
१२३
( मर० गा० ( पंचा० गा० १३१ (व्य० उ० १० गा० ४७० ) १४० (व्य० उ० १० गा० ५६८) उभयन्नू िय किरियावरो १०६ ( उम्मदेसओ मग्ग
१३९
उवणीयं जो कुच्छ १३० उवभोगपरिभोगाइरिताणि ९२ उवभोगो विगईओ
८३
)
( बृह० गा० १३३० )
(व्य० उ० १० गा० ४५९) (श्रा० प्र० टी०, पृ० १५७) ( नव० स्वो०, प० ३० )
।
गाथाद्याद्यशः उवसमसम्मत्ताओ
उवसामगसेढीगयस्स उबतइ परियतइ
उस्सिया - अग्गला
एए चैव उभावे
एक्कमि निज्जवए
एगमुहुतं दिवसं राई
एतनिज्जरा से
एगेण अणेगाई एगो मे सासओ
एगोहं नत्थि मे
एहि सयंवसस्स एतो एगयरेणं संलेहणं
निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि ( विशे० गा० ५३१ )
( श्र० प्र० गा० ४५ )
१३९
( पंचव० गा० १६२५ )
१२६
(
)
११ ( उत्त० गा० १०७९ ) १२९ (व्य० उ० १० गा० ४४३) १०० ( आव० चू० भा०२, पृ०३०२) १४० (व्य० उ० १० गा० ५८६) १२ ( उत्त० गा० १०८२ )
१४५
( आतु० गा० २६ )
१४५
(
>
१३५ ( मर० गा० ३७५ ) १२८ ( जीत० भा० गा० ३५६ )
पृष्टांक:
१०
१०
प्रमाणा
नामकारा
दिक्रमः
॥ १६३ ॥
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________________
भावकधर्म
पश्चाशक
प्रमाणानामकारादिक्रमः
परि.१
॥१६४॥
गाथाद्याद्यशः एत्थ य आहारो एमाइ भावियप्पा एमेव दंसर्णमिवि एमेव सेसयाइवि एयस्स य भावेणं एयं किल सागारं एयं ससल्लमरणं मरिऊण एवं सामायारिं णाऊण एयाउ भावणाओ एयाउ विसेसेणं एयाणि य अन्नाणि एयाणि य अन्नाणि य एवं अप्परिवडिए
पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्यायंश: पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि १३८ (
) एवं उक्कोसेणं एक्कारस १२४ (पंचा० गा० ४८२)
| एवं खु जंतपिल्लण कम्मं ८७ (श्रा०प्र० गा० २८८) १३१ (व्य० उ०१० गा०४७६)| एवं च विहरिऊण १२७ (श्रा०प्र० गा० ३७७)
एवं जा छम्मासा एसो १२१ (पंचा० गा० ४६६) १४५ (भक्त० गा० १६६) एवं तु भावणाओ १४६ (
) एवं पाओवगमं १४३ (व्य० उ०१० गा०५९९) १३० (उत्त० नि० २२०) | एवं पि हु वियडतो १३१ ( ११८ (श्रा० प्र० गा० ३७५) एवं सबवएसुवि १०. (आव० चू० भा०२, पृ०३०२) १३९ (बृह० गा० १३३६ ) कइयाणु अहं दिक्खं ९९ (आव० चू० भा०२, पृ० ३०२) १३९ (पंचव० गा० १६६२) कइया होही सो वासरो २५७ (पंचा० टी०, प० ३६)
कजं अगिहिच्चगिही ९१ (आव० चू० भा०२, पृ०२९७)
कडसामइओ पुवि ४८ (श्रा०प्र० गा० ३१४) (विशे० गा० १२२३) | कम्ममसंखेजभव १३३ (व्य० उ० १० गा० ५०८)
ROC%ECIRCACANCIENCE
5॥ १६४॥
in Educatan in
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________________
AA
भावधर्मपञ्चाशक
प्रमाणा-' नामकारादिक्रमः
चूर्णिः
परि.१
GGESNESCENERGC
गाथाद्याद्यशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यंशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि कयपोसहो न अप्पडिलेहियं ११० (श्रा०प्र०टी०, पृ०१७७)। | काऊण गंठिभेयं १५ (नव०प्र० गा०१४) कयसामाइएण ९४ (आव० चू०भा०२, पृ०३००) काऊण चोरियाओ वच्चइ ६४ ( कयसामाइओ सो ९५ (श्रा०प्र० गा० २४३) काऊण तक्खणं चिय ९८, १०५ (श्रा०प्र० गा० ३१७) करकयविकत्तणं कंडुपायणं ६५ (
| काऊणमणेगाइं १५६ (आव० नि० ८३९) करेमि भंते ! पोसहं १०४ (
का य रई परदारे १ ( करेमि भंते ! सामाइयं ९४, १०४ (आव० चू०भा०२, पृ०२९९) | कालम्मि अणाईए जिवाण १०८ ( कलमोयणो य पयसा १२९ (व्य० उ० १० गा० ४५०)| कालंमि वट्टमाणे अईयकाले ११३ (आव० चू०भा०२, पृ०३०६) कहकहकहस्स १३८ (बृह० गा० १३०५) काले दिन्नस्स पहेणयस्स १११ (आव० चू०भा०२, पृ०३०६) कंखा अन्नोन्नदंसण ४६ (श्रा० प्र० गा०८७) किर सो सावगो मेहुणमेव ७५ ( कंदप्पदेवकिब्बिस
(बृह० गा० १३०२) | किह नासेज अगिओ १२९ (व्य० उ० १० गा० ४२४) कंदप्पाइ उवेच्चा
(नव० प्र० गा० ९०) किं पुण अणगारसहाय १३३ (व्य० उ०१० गा०५२०) कंदप्पे कुक्कुइए १३८ (बृह० गा० १३०४) कुक्कुडिअंडगमेतं ६३ (ओघ० भा० २७९) | काउं चेइयपूर्व
) कुणमाणो विय किरियं ४ (आचा०नि० २१९)
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Jain Educatio
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भावकधर्म -
पञ्चाशक
चूर्णिः
परि. १
॥ १६६ ॥
Jain Education
गाथाद्याद्यशः कुण माणोऽनिविसिं
समयसुईण
कुसुमसमा अब्भासा कुसुमेहिं वासियाणं
कोउ भूई कम्मे
खुरमुंडो लोएण व
खामि य सजीवे
खितिगमपि व खितिसाभावियगमणं
खीणे दंसणमोहे
ताई सह गोणे
खेते खले य रन्ने
गहणं पवज्जाए जओ
पृष्टांक:
४
४४
निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि ( आचा० नि० २२० ) ( उप० मा० गा० २७१ )
१४६
१४६
१३९
( श्र० प्र० गा० ३८८ ) ( श्र० प्र० गा० ३८७ ) (बृह० गा० १३१६ ) ( पंचा० गा० ४७९ ) ( आव० सू० गा० ८ )
१२३
१४४
१७
१६
( विशे० गा० १२०९ ) ( विशे० गा० १२०८) ( श्र० प्र० गा० ४८ )
१०
८९ (आव० चू० भा०२, पृ० २९७)
६५
१२५
गाथा याद्यशः गामागरनगराणं
१३०
७२
१०४
गारवपंकनिब्बुडा गिरिसिहरे पयलायइ गुज्झोरुवयणकक्खोरुअंतरे ७३ गुरुणाऽणुन्नायाणं किवं गुरुपारतंतनाणं सद्दहणं गुरुमूले सुयधम्मो गुरुसक्खिओ हु धम्मो गूढसिरागं पत्तं सच्छीरं घोरंमि गब्भवासे
१०४
११५
१०५
८३
( प्रज्ञा० गा० ८५ )
१३५
( मर० गा० ३८५ )
१४९ (आव० चू० भा० २, पृ० २९९)
८३
( प्रज्ञा० गा० ८४ )
६५
>
च ठाणे नियमा
(
)
चक्कागं भज्जमाणस्स
( पंचा० गा० ४८४ ) | चंडभडबद्ध कक्खडखर
पृष्टांकः
६५
निर्दिष्टशनिर्दिष्टस्थलानि
(
>
( उत्त० नि० २१९ )
(
)
(
(
(
( पंचा० गा० ९ )
( श्रा० प्र० गा० ३५१ )
(
प्रमाणा
नामकारा
दिक्रमः
।। १६६ ।।
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________________
प्रमाणा
श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः परि. १
नामकारादिक्रमः
॥१६७॥
ROCACAECAUSACRECCUSE
गाथाद्याचंशः पृष्टांकः निर्दिष्यानिर्दिष्टस्थलानि । गाथाद्याद्यंशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि चियत्तो पीतिजणगो १२६ (
) छन्नंगदंसणे फासणे य ७२ (नव० प्र० गा० ५३) चिंतामणी अउव्वो १४५ (भक्त. गा० १६७) | छेयस्स जाव दाणं ताव ९७ चिंतिति करेंति सयंति ९२ (नव० प्र० गा० ९१) | जइ आहाकम्मं देइ १११ (आव० चू० भा॰ २, पृ० ३०५) चिंतेयव्वं च नमो तेर्सि ७६ (आव० चू० भा०२, पृ० २९२) जइ जिणमयं पवज्जइ १० (विशे० गा० १३८२) चिंतेयव्वं च नमो ८२ (आव० चू० भा०२,पृ०२९५) जइ ताव सावयाउ १३३ (व्य० उ०१० गा० ५१९) चिंतेयव्वं च नमो ९२ (आव० चू० भा० २, पृ०२९८) जइवि गिही अनियत्तो ५९ (आव० चू० भा०२, पृ०२८६) चुलसीइजोणिलक्खसु १०८
जइवि न आहाकम १४८ (पंचा० टी०, ५० ३२) चोदसपुव्व
जइवि न वंदणवेला ११८ (श्रा०प्र० गा० ३७३) चोरिकं कुणमाणो
) जइवि न पावइ मरणं ६५ चोरो चोरावगो मंती ६७ (प्रश्न० टी० पृ० ५८)| जइ पज्जुवासणपरो १२३ (पंचा० गा० ४७८) चोल्लगपासगधण्णे १५१ (आव०नि० ८३२) जणयसुयाणं च जए ७७ ( नव० स्वो०, ५० २७)|8 छउमत्थो मूढमणो १०९ (
) जण्णं इमे समणे वा १४९ (अनु० सू० २७) छत्तीसगुणसमन्नागएण १३० ( व्य० उ० १० गा० ४६८ ) | जत्थ अनिस्सकडं १४८ (पंचा० टी०, प० ३२)
ACCORRECRUIRECRECRUCINE
॥१६७ ॥
in duelan In
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%
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः
परि.१
CCCCC
॥१६८॥
गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि प्रमाणाजत्थथि सत्तपीला ८१ (आव० चू० भा०२, पृ०२९४) | जह सुकुसलोवि वेजो १३० (व्य० उ० १०, गा०४६६) नामकाराजत्थ बहूर्ण घाओ जह सो चिलायिपुत्तो १४२ (व्य० उ०१०, गा० ५९२)
दिक्रमः जम्मजरामरणजलो १०८, १४५ (भक्त० गा० १६४)। जहा कुक्कुडपोयस्स ७३ (दश० गा० ३८८) जम्हा हारेण विणा १३६ (व्य० उ० १० गा० ५४१)
(व्य० उ० १० गा० ५४१) जं असियं बीभत्थं १३६ (मर० गा० २८७) जयणा उ धम्मजणणी ५५ (पंचा० गा० ३२४) जं कुणइ भावसलं १३० ( ओघ० गा० ८०५) जयणाए वट्टमाणो ५५ (पंचा० गा० ३२५) जं जह भणियं तं
(श्रा०प्र० गा०४९) जस्स नो संमं ५२ (पंचा० टी०, प०८) जं जं नज्जइ असुई
(उप० मा० गा० २०९) जस्स मूलस्स कट्ठाउ ८३ (प्रज्ञा० गा०७६) । जं जं वच्चइ जाइं ५९ जह जह अप्पो लोभो ७८ (आव० चू० भा०२, पृ०२९४) | जंतेण करकरण १३५ (मर० गा०४८१) जह बालो जपतो कज्ज १३१ (व्य० उ०१०, गा० ४६९) जं दुटुं वड्डए कोहो ४१ (आव० चू० भा० १, पृ० ४७४) जहऽवंतीसुकुमालो १४१ (व्य० उ०१०, गा० ५९५) | जं दटुं वड्डए नेहो ४१ (आव० चू० भा० १, पृ० ४७५)
जह वारिमज्झछूढो १५६ (आव०नि० ८३७ ) जं निहियमत्थजायं १२३ (पंचा० गा० ४७७) Bा जह समिला पन्भट्ठा १५६ (आव०नि० ८३४) जं मोणं तं सम्म ९ (श्रा०प्र० गा०६१) 1४।१६८॥
C
CIRCRORECACIRCANADC
CESCRECOREA
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ICA H
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः परि.१ ॥१६९॥
प्रमाणानामकारादिक्रमः
AROSAROKARSA
गाथाद्याद्यशः पृष्टांक: निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याचंशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि जं मोणंति पासहा
(आचा० सू० १५६) जे चेव अंधयारि दोसा ६३ (ओघ० भा० २७८) जाओ परवसेणं १३५ (मर० गा० ३७४) जे ताव संभरेज्जा १३१ जाणतेणवि एवं १३० (व्य० उ०१० गा० ४६७)। जे दंतसोहणंपि हु
(नव० प्र० गा०४७) जारिसओ जइमेओ ४ (आव० चू० भा०२, पृ० २७४) जे सणवावन्ना ८ (पंचव० गा० १०३९) जारिसे समणाणं १२४ (दशा० सू० ३०) जे पुण अणत्थदंड ८९ (नव० प्र० गा०८७) जाव पोसहं पज्जुवासामि १०५ (
जे मे जाणंति जिणा १३१ (व्य० उ०१० गा० ४७९) जिणपूजोचियदाणं १४८ (पंचा० टी०, पृ. ३२) जे वि य कयंजलिउडा ११८ (श्रा० प्र० गा० ३७२) जिणवयणमप्पमेयं १३३ (व्य० उ० १० गा० ५२१)। जेसिं चोरेउं जे पञ्चक्खाणं ६५ जिण वयणमेव तत्तं ९ (पंचव० गा० १०६३) | जो अस्थिकायधम्म १३ (उत्त० गा०१०८७) जीवपरिणामहेऊ १५० (
जो कुंचगावराहे १३४ (आव०नि० ८६९) जीववहं इच्छंतो जइ ५७ (
जोगाणं दुप्पणिहाणं
(नव० स्वो०, प० १२) जुत्तो पुण एस कमो १२५ (पंचा० गा० ४९३) । जो जह्वायं न कुणइ ९ (उप० मा० गा० ५०४) जे उच्चट्ठाणगया रमंति ७२ (
)| जो जारिनओ कालो १३२ (व्य० उ० १० गा०४९२)
SCHOOCHOCRACK
॥ १६९॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः परि.१
SCSSAGE
प्रमाणानामकारादिक्रमः
गाथाद्याशः पृष्टांक: निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्यायशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि जो जिणदिढे भावे (उत्त० गा० १०७८)| तम्हा कम्माणीयं
(आचा०नि० २२१) जो जेण सुद्धधम्मे
(पंचा०टी०, प०८)| तम्हा गीयत्थेणं १२९ (व्य० उ०१० गा०४३४) जो जेणं वाहिजइ १५७ (पंचव० गा०८९०)| तयभावम्मि आलोए १३० ( जो संजओ वि एयासु १३८ (बृह. गा०१३०३)| | तसपाण बीयरहिए १३९ (व्य० उ० १० गा० ५६६) जो सुत्तमहिजंतो
(उत्त० गा० १०८१)| तस्स णं बहूई सीलब्बय ११९ (दशा० सू०२०) झायइ पडिमाए ठिओ १२० (पंचा० गा० ४६३) तस्स य चरिमाहारो १३२ (व्य० उ० १० गा० ४१४) ठाणदिसिपगासणया ६२ ( ओघ० गा० ५६४) तं च करेंतो सव्वं १४४ (नव० स्वो०, ५० ३२) तं तह दुल्लहलंभं
(आव०नि०८४०) तणकट्टेहिं व अग्गी
) तं तारिसयं रयणं १३४ (व्य० उ० १० गा० ५२८) तणसंथारनिसण्णोवि १५७ (संस्ता० गा०४८)| तं दुविहं नायव्वं १३९ तण्हा छेयंमि कए १३२ (व्य० उ० १० गा० ४९७) तंमि कए वज्जेजा १४४ तचायगोलकप्पो ८१ (आव० चू० भा०२, पृ० २९४)| तंमि वि कए समाणे ११८ (श्रा०प्र० गा० ३७४) तत्थ असंपत्तो अत्थो ७० (दश०नि० २६२) तं सत्तिओ करेज्जा १०३ (आव० चू०भा०२, पृ०३०४)
ROCOLARSA5%
१७०।।
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________________
A
श्रावकधर्मपश्चाशक
प्रमाणानामकारादिक्रमः
चूर्णिः
॥ १७१
CHA%%
ARAS%%
गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि ता कइया तं सुदिणं १०८ (
) तेसिं नमामि पयओ ६१ (नव० प्र० गा० ३८) माणि भगिन ९१ (श्रा०प्र०टी०प्र० १५७) तेसिं नमो भावेणं १४६ (ताहे)तेण दारवाले १५१ (आव० चू० भा० १, पृ०४४६) | तेसिं पणिहाणाओ ११८ (श्रा०प्र० गा० ३७०) तित्थे सुत्तत्थाणं गहणं १०६ (
तो सकारेयव्वा बुहेण ११३ (आव० चू०भा० २, पृ० ३०६) | तिदुगेगाणं तियतियं १०५ (
थाणुव्व गंठिदेसो गंठिय १७ (विशे० गा० १२१०) तिन्नि वा कड्डई जाव १४९ (प्रव० सा० गा० ४३९) | थंभंति नईवेगे सावं तिन्नि सया तेसट्ठा
थूलगअदत्तादाणं ६४ (आव० चू० भा०२, पृ० २८७) ४ तिविहं चउव्विहं १४४ (
थूलगं पाणाइवायं ५२ (आव० चू० भा० २, पृ० २८२) तिविहं तिविहेण ११४ (
)| थूलं पाणाइवायं १४४ ते जं करेंति धीरा ११३ (आव० चू० भा०२,पृ० ३०६)| दद्दूण पाणिनिवहं
(श्रा० प्र० गा० ५८) ते पुण कयपणिहाणा ११८ (श्रा०प्र० गा० ३७१ ) | दट्टणं दोसजालं
( नव० प्र० गा० ८५) ते पुण दुसमयठिइयस्स ९७ (श्रा०प्र० गा० ३०८) | दवग्गी पउरिंधणे ते विय कयंजलिउडा ११८ (श्रा० प्र० गा० ३६९) । दव्वाण सव्वभावा
(उत्त० गा० १०८४)
॥१७१ ॥
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पृष्टांका
श्रावकधर्म पश्चाशक
प्रमाणानामकारादिक्रमः
चूर्णिः
॥ १७२॥
-96%ACANCIESANSKHESA)
गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि दवेण मग्गइ कलिं
दुन्भिगंधमलस्सावि १४८ (प्रव० सा० गा० ४३८) दंतवणं तंबोलं १२२ (पंचा० गा० ४६९)| दुविहं तिविहेण ११४ (आव० नि० १६५५) दसणनाणचरित्ते
( उत्त० गा० १०८५)| दुविहो खलु आलोगो ६२ (ओघ० गा० ५५०) दसणपडिमाजुत्तो
( उपा० टी०, ५० १५) देवत्ते माणुस्से १३५ (मर० गा० ३८२) दंसणवयसामाइय
(दशा० नि० ४६) | देवो नेहेण णये १४० (व्य० उ० १० गा० ५७८) दसणविराहगा
) देसविसेसपसिद्धो दिट्ठीए संपाओ दिट्ठीसेवा ६९
) देसावगासियं खलु १०१ (आव० चू० भा० २, पृ० ३०३) दिट्टे सुएऽणुभूए २२ ( आव० नि० ८४४) देसावगासियं नाम १०० (आव० चू० भा० २, पृ. ३०२) दिया कागाण बीहेसि ५४ (आव० चू० भा॰ २, पृ० ६१) देहमि असंलिहिए १२९ (पंचव० गा० १५७७ ) दीहाउओ सरूवो ५४ (
) देहो जीवस्स आवासो १४५ ( दीवो ताणं सरीरीणं १५७ (पंचा० टी०, ५० ३६) दो चेव देवयाई ३८ (आव० चू० भा० १, पृ० ४६९) दुक्खजियं च दवं ६४ (
) दोन्नि सया तेयाला ५० (नव० प्र० गा० २१) दुग्गंधो पुइमुहो
) धणसंचओ य विउलो ७८
CIEKANATARAKASARAN
५९
॥ १७२ ॥
JainEducational
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः
परि.१ |
॥१७३॥
गाथाद्याद्यशः पृष्टांक: निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि
प्रमाणाधन्ना जीवेसु दयं ९९ (आव० चू० भा० २, पृ० ३०२) | नवकारचिंतणं
| नवकारचिंतणं १४७ (पंचा० टी०प० ३१) नामकाराधन्ना परिग्गहं उज्झिऊण ८० (आव०० मा० २. प्र.२९४) | नवकारेण विबोहो ११८ (श्रा०प्र० गा० ३४३) पाकिस धन्ना सालिभद्दा १४२ (
नवमे जीवसंदेहो ७० ( धन्नो अणुग्गिहीउ संपत्ती ११३ (आव० चू० भा० २, पृ० ३०६) | नवविगइ सत्त ओयण १३२ (व्य० उ० १० गा०४९५) धन्नो हं जेण मए १४५ (भक्त. गा० १६५)| नवि तं सत्थं व विसं १३० (ओघ० गा०८०४) धम्मग्गिट्ठिग ४४ (नव० स्वो०, ५० ९)| न सरइ पमायजुत्तो ९८ (श्रा० प्र० गा० ३१६) धम्मज्झाणोवगओ ९७ (आव० चू० भा० २, पृ०३०१) न य गेण्हेज अदिन्नं १०० (आव० चू० भा०२, पृ० ३०३) धावेइ रोहणं तरइ सायरं ७८ (नव० स्वो०, प० २७) न सकं रूवमद९ ७२ ( धीरपुरिसपन्नते १३३ (व्य० उ० १० गा० ५१८) | न हु ते दवसलेहं १३० (व्य० उ० १० गा० ४६१) न भणेज रागदोसेहिं १०० (आव० चू० भा०२, पृ० ३०२) | नाणनिमित्तं अद्धाणमेइ १३१ (व्य० उ० १० गा०४७४) | न पवज्जइ पवज
) नाणनिमित्तं आसेवियं १३१ (व्य० उ० १० गा०४७३) नरएसु वेयणाओ
(मर० गा० ३८१) नाणब्भुवगमजयणाहिं १०४ ( नरविबुहेसरसोक्ख
(श्रा०प्र० गा० ५६) नाणस्स केवलीण १३९ (बृह. गा० १३१०) 2॥ १७३॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः । परि.१
456
प्रमाणानामकारादिक्रमः
॥ १७४।।
RECECR590
गाथाद्याद्यंशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाघाद्यशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि नाणीसु बंभयारिसु ११२ (आव० चू० भा०२, पृ०३०६) नो खलु अप्परिवडिए ४९ (श्रा० प्र० गा० ९५) नारयतिरियनरामरभवेसु १४ (श्रा०प्र० गा०५७) नो मे कप्पइ अन्नउत्थिए ११५ ( उपा० सू०८) नासइ इमीए नियमा १५ (श्रा० प्र० गा० ९०)| नो से कप्पइ अज्जप्पभिई १८ (आव० सू० ३६) नासेइ अग्गीओ १२९ (व्य० उ० १० गा० ४२२)| पच्चक्खाइ आहारं १३९ (पंचव० गा० १६२४) निक्खमपवेसमंडलि ६३ (ओघ० भा० २७५) | पच्चुरसि परम्मुहपट्टि ६३ (ओघ० भा० २७६ ) निक्खित्तभरो पायं १२२ (पंचा. गा. ४७४) | पच्छाकयपणिहाणा ११८ (श्रा० प्र० गा० ३६८) निग्घिणतेगंतेणं १२२ (पंचा० गा० ४७१)| पडणीययाइ कोई अग्गी १४१ (व्य० उ०१० गा०५९०) निद्दाविगहापरि
(पञ्चव० गा० १००६)| पडणीययाइ कोई १४२ (व्य० उ० १० गा० ५९१) | निप्फेडियाणि दोनिवि १३४ (आव०नि० ८७०)| पडिसेवइ विगईओ १३१ (व्य० उ० १० गा०४७५) निरवज्जाहारेणं
(नव० स्वो० ५०३२) पढमबीयकसाय ११४ (पंचा० टी०प० २८) निसग्गुवएसरुई
(प्रव० सा० गा० ९५०) पढमं तओ य पच्छा ११८ (श्राव०प्र० गा० ३६७) निहण हण गिह
(मर० गा० ३९४) पढमंमिय संघयणे १४० (व्य० उ० १० गा० ५७१) नो इहलोगट्ठयाए ४६ (
) पढमे जायइ चिंता
॥ १७४॥
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पश्चाशक
प्रमाणानामकारादिक्रमः
श्रावकधर्म गाथाद्याद्यंशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि
पणमामि अहं निच्चं ५७ (नव०प्र० गा० २९)पंचमे डज्झए अंगं चूर्णिः
पत्तपुडपडिच्छन्ने ३३ (आव० चू० भा०१, पृ०४६५)। पंचसया जंतेणं १४० (व्य० उ० १० गा० ५८८) परि.१६ पयईए कम्माणं
(श्रा० प्र० गा० ५५) पाओवगमणं भणियं १३९ (व्य० उ०१० गा० ५६५) परदारवज्जिणो पंच ७४ (पंचा० टी०प० १५) पाणाइवायअनियत्तणमि ५३ (नव०प्र० गा० २४) ॥१७५॥ परदारेसु पसचा सएसु
पाणबहे बढ्ता ५४ परघणहरणपवत्तो
पाणे आउक्कायं सचित्त १२१ (पंचा० गा० ४६८) परमत्थसंस्थवो वा १३ (उत्त० गा० १०८८) पासस्थोसन्नकुसील १३२ (व्य० उ० १० गा० ४९०) परिसुद्धजलगहणं ५४ (आव० चू० भा०२, पृ०२८४) | पिइमाइपउत्ताईसंबंधा १०८ परिसुद्धजलग्गहणं ११५ (पंचा० टी० प०२९) | पुढविदगअगणिमारुय १०० (आव० चू०भा०२, पृ०३०२) परो अन्नो जो विवाहो ७६ (पंचा० टी० ५० १५) | पुढविदगअगणि १४० (व्य० उ० १० गा० ५७४) पलंकलट्टसागा
(नव० स्वो० प० ३२) पुरिसेण भुतपुर्व नारिं १०८ पल्लग गिरिसरिउवल १६ (आव०नि० १०७) पुर्वते होज जुगं
(आव०नि०८३३) पहसंतगिलाणेसु य ११८ (
)। पुखभवियप्पेम्मेण १४० (व्य० उ० १० गा० ५७७)
CHECHANDANICAtICADEOCOM
१७५॥
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प्रमाणा
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः परि.१
नामकारादिक्रमः
%AAS 4%95-9845455
॥१७६॥
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गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि । गाथाद्याद्यंशः पृष्ठांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि पुश्वभवियवेरेणं १४० (व्य० उ० १० गा० ५६७) | बावीससंतमोहस्स पुवाउत्तं कप्पड़ १२३ (पंचा० गा०४८१)| बीओ असमिओमित्ति ९९ (पंचा० टी० प० २४) पुवावरदाहिण १४० (व्य० उ०१० गा० ५७०) बुद्धिएँ निएऊणं भासेज्जा ५९ (आव० चू० भा०२, पृ०२८६) पुवावरसंजुत्तं
(आव०नि० १३००) | भज्जा जायइ माया १५० पुर्वि सीयलगोवि
) भवचरिमं पच्चक्खामि १४४ पुबोइयगुणजुत्तो
(पंचा० गा० ४६४)| भावेऊणताणं उवेइ १२५ (पंचा० गा० ४८३) पुवोइयपडिमजुओ
(उपा० टी० ५० १५)! भावेण तदस्थित्तलक्खणेण ८० पेसेहि वि आरंभ १२२ ( पंचा० गा० ४७३) | भासइ दुयं दुयं १३८ (बृह० गा० १३०७) फलफलिपत्ते पुप्फे
(नव० प्र०प०३२)| भिक्खुगपवेसणनिमित्तं १२६ बत्तीसलक्षणधरो १४० (व्य० उ०१० गा०५७९)| भीओ भीयाए समं बहुसोवि य सो जायइ ७१ (
) भुत्तभोगी पुरा १३२ (व्य० उ० १० गा० ४८८) बंधाइ असक्किरिया ११९ (पंचा० गा० ४५४)| भुनयणवयण
(बृह. गा० १३०६) | बंधो दुपयाणं चउप्पयाणं ५५ (आव० चू० भा॰ २, पृ० २८४) | भोगे अभुंजमाणावि ५४ (उप० मा० गा० १२२)
१२०
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१७६॥
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः परि.१
प्रमाण नामकारादिक्रमः
NAGA
॥१७७॥
SAGARMACROCESSO25
गाथाद्याद्यशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि । गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि भोत्तूण वि भोगसुहं १३६ (मर० गा० ३९३) | मंसपेसिं परिचज ३३ (आ० चू० भा०१, पृ०४६५) भोयणओ सावगो फासुयं ८४ (श्रा०प्र० टी० पृ० १५२)| माणुस्सखेत्तजाई १५१
(आव०नि० ८३१) मउडं न अवणेइ ९५ (आव० चू० भा०२, पृ०३००) | मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा १२१ (आचा० टी०प० २११) मच्छियकंटाईणं ६३ (ओघ० भा० २७७)। मिच्छइंसणमहणं १४६ (श्रा० प्र० गा० ३४१) मज्जण गंधं पुप्फो १४० (व्य० उ० १० गा० ५८०)। मिच्छत्तकारणाई ४९ (नव० प्र० गा० २०) मजं मंसं महु मक्खणं ८४ (नव० स्वो० ५० ३२) मिच्छत्तपडिक्कमणं
(पंचा० टी०प०२८) मणसा मिच्छादुकडकरणं १०५ (
) | मिच्छत्तपरिच्चारण १८ ( मत्तगयमारुहतीए ३२ (आव० चू० भा० १, पृ०४६३) मिच्छत्तं जमुइण्णं
(विशे० गा० ५३२) मन्नइ तमेव सच्चं १५ (श्रा०प्र० गा०५९) मुणिसुव्वयंतेवासी १४० (व्य० उ० १० गा०५८७) ममकारेऽवोच्छिन्ने १२३ (पंचा० गा० ४८०) मूलं दारं पइट्ठाणं ४ (आव० चू०भा०२, पृ०२८१) मरणं च होइ सपरकमाण १२७ (
मेहुणमणुसरणं वासणाईय ७० ( मरिऊणऽट्टज्झाणा १२९ (व्य० उ० १० गा०४२६) | मेहुणवयभंगमि आसे ७२ (नव० स्वो० प०२३) मलमइलजुन्नवत्थो ८८ (नव० प्र० गा० ८२) मोहाउयवज्जाणं पयडीणं ९७ (श्रा०प्र० गा० ३०७)
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॥१७७॥
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श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः परि.१
प्रमाणानामकारादिक्रमः
ॐ
॥१७८॥
गाथाद्याद्यंशः पृथंकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि रयहरणेणं पमज्जइ ११० (आव० चू० भा०२, पृ०२९९) | लोहीलोहकडाहं दासीदासं ६५ ( रसा पगामं न निसेवियवा ७३ (उत्त० गा० ११६५)| विग्गहगए य सिद्धे १३४ (व्य० उ० १० गा० ५२७) रंधणकंडणपीसणदलणं ८५ (नव० स्वो० प० ३२) | बज्जइ सयमारंभं १२२ (पंचा० गा० ४७०) राइभत्तपरिन्नाएत्ति १२४ (आव० चू० भा०२, पृ० १२०)। | वज्जइ य संकिलिटुं १३८ रागदोसविउत्तो ५५ (नव० स्वो० ५० १५) वजेज्जा मोहकरणं ७३ (आव० चू० भा०२, पृ०२९१) रागद्दोसविरहिया १०६
वयाइसु जं अंतो रागोरगगरलभरो
वरदसणवयजुत्तो १२० (उपा० टी० ५० १५) रागो दोसो मोहो
(उत्त० गा० १०८०)। वरसाहुगुणसमिद्धं ११३ (आव० चू० भा०२, पृ० ३०६) रूढनहकेसमंसूविडमुत्तमि ६५
वसहिकहनिसिज्जेंदिय ६८ (आव० सं० गा०२) लज्जाए गारवेण १३० (उत्त० नि० २१८) | वसिऊणवि सुहिमज्झे १३५ (मर० गा० ३७७) लहुया तहाईजणणं १३१
) वसिऊण सुरनरीसर १३६ (मर० गा० ३९०) लोइयतित्थे पुण ४४ (नव० प्र० गा० १७) | वसिकुणंति जे १२१ (पंचा० टी० ५० १६९) लोगववहारविरओ १२२ (पंचा० गा०४७५) | वहभावाभावेवि हु
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१७८ ॥
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श्रावकधमपश्चाशक
प्रमाणानामकारादिक्रमः
परि .१
॥१७९॥
४४
४
HOROCOCCAA%%%ACCESS
गाथाद्याद्यंशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यंशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि वह मारण १५१ (उप० मा० गा० १७७) | सत्तविहालोयविवज्जिए ६१ ( विगलिंदियपंचिंदिय १३५ (मर० गा० ३८३) समणेणं सावएण
(अनु. गा०३) बिज्जाओ(सबा उ)मंतजोगा ५९
समभावंमि ठियप्पा १३९ ( वेयरणीउत्तरणं डहणं ६५
सम्मत्तदायगाणं १५७ (उप० मा० गा० २६९) वेसवणेहिं हासं १३८ (बृह० गा० १३०८) सम्मत्तपरिब्भट्ठो
(नव० प्र० गा० १५) सइ दंसणाउ पेम्म १२१ (
सम्मत्तं परपि
हु ४ ९ (नव० प्र० गा० १९) सगणे आणाहाणी १२७ (व्य० उ०१० गा०४०३) सम्मत्तमि उ लद्धे ४,८ (विशे० गा० १२२२) सच्चं सग्गद्दार
सम्मतमि उ लद्धे ठइयाई ४४ (उप० मा० गा० २७०) सच्चित्तं आहारं वजइ १२१ (पंचा० गा० ४६७ ) सम्ममिवि पत्ते ५३ (नव० प्र० गा० २३) सच्चेण परिगहिय
सम्ममणुव्वयगुणवय १२० (पंचा० गा० ४६१) सड्डो पुण संथारग १४३
सम्म अन्नायगुणे
(पंचव० गा० १०६४) सत्तण्हं पयडी] ( आव०नि० १०६) सयमिह मिच्छद्दिट्टी
(श्रा०प्र० गा० ५०) सत्तविहबंधगा होंति ९७ (श्रा०प्र० गा० ३०६) | सरणं कित्तणं केली ७० (नव० स्वो० प० २२)
॥ १७९ ॥
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4-%9C
श्रावकधर्म- | पश्चाशक
प्रमाणानामकारादिक्रमः
चूर्णिः
SECCAREERCOA
॥१८०॥
गाथाद्याद्यशः पृष्टांका निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि । गाथाद्याद्यशः पृष्टांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि सरीरमुज्झियं जेण १२६ (व्य० उ० १० गा०५४२) सव्वेसि साहूणं नमामि ८८ (आव० चू० भा०२, पृ०२८५) सल्लं कामा विसं कामा ७२ (उत्त० गा० २८०) सन्वेसि साहूणं नमामि ८८ (आव० चू० भा०२, पृ० २९७) सबजियाणं जम्हा ८ (पंचव० गा० १०३८) सव्वेसु कालपव्वेसु १०३ (आव० चू० भा०२, पृ०३०४) सव्वत्था पडिबद्धो १४० (
सव्वेहिंपि जिणेहिं २२ (आव०नि० ३३१) सव्वसुहप्पभवाओ १३४ (व्य० उ०१० गा० ५२६) | सहसभक्खाणाई
(पंचा० टी०प०१२) सव्वस्स समणसंघस्स १४४ (
सहसंमुइयाए परवागरणेणं ११४ (पंचा० टी० प० २८) | सव्वंति भाणिऊणं विरई ९५ (आव०नि०८००) | संकाइदोसविरहिय ११९ (उपा० टी० ५० १५) सब्बाओ अज्जाओ १३४ (व्य० उ० १० गा० ५२५)। संकाए मालिन्नं जायइ ४५ (श्रा० प्र० गा०८९) सव्वा य कंदजाई ८३ (पंचा० टी०प०१८) | संकप्पो संरंभो परिताव ५१ (प्रव० सा० गा० १०६०) सव्वाहिवि लद्धीहिं १३३ (व्य० उ० १० गा० ५२३) | संघयणाभावाओ १४३ (पंचव० गा० १६२१) सव्वे जीवावि इच्छंति ६१ (दश. गा० २१९) । संजोगमूला जीवेणं १४५ ( सब्वे य सव्वसंगेहिं १०२ (आव० चू० भा० २, पृ० ३०४)/ संतेसुवि अत्थेसु तं १०० (आव० चू० भा०२, पृ० ३०३) सव्वे सव्वद्धाए १३३ (व्य० उ०१० गा० ५२२)! संथारओ उ मउओ १३३ (व्य० उ० १० गा० ५१७)
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४॥ १८०॥
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प्रमाणानामकारादिक्रमः
श्रावकधर्म- गाथाद्याद्यशः पृष्ठांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि | गाथाद्याद्यशः पृष्ठांकः निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि पश्चाशकसंपन्नदसणाई
(श्रा०प्र० गा०२)| सावगस्स अट्टहासो ९१ (श्रा०प्र०टी० पृ० १५७) चूर्णिः
संबंधिबंधवेसु य १३५ ( मर० गा० ३७६) | सावगेण न संजुत्ताणि ९२ (श्रा०प्र०टी० पृ० १५७) परि.१
संभरइ वारवार मोक्कल ७८ (नव० प्र० गा० ६२) सावगेण पोसहं पारंतेणं १११ (आव० चू० भा०२, पृ० ३०५) संलेहणा उ तिविहा १२८ (जीत० भा० गा० ३४२)
(श्रा० प्र० गा० ३४२) ॥१८१॥ संसयकरणं संका ४५ (श्रा०प्र० गा०८७) साण वंदणेणं १४६ (श्रा०प्र० गा० ३४०) संसारगइदारं दारं ७१
साहूण सावगाण य ११८ (श्रा० प्र० गा० ३६६) साइयाराणुट्ठाणाओवि ९९ (पंचा० टी०५०२४) | साहूर्ण सगासाओरयहरणं ११० (आव० चू० भा०२, पृ०२९९) सा चंडवायवीई १५६ (आव०नि० ८३५) साहू य साहुणीओ १४४ सामाइयम्मिव दुविहं १०३
सिक्खा दुविहा गाहा ९५ (श्रा० प्र० गा०२९५) सामाइयंति काउं ९८ (श्रा० प्र० गा० ३१३)। | सिंगारकहाविरओ १२१ (पंचा० गा० ४६५) सामाइयंमि उ कए ९६ (आव०नि०८०१) सुक्कसोणियसंभूयं १५० (पंचा० टी०प० ३५)
सामीजीवादत्तं तित्थयरेणं ६१, ६७ (प्रभ० टी० ५० १२५)। सुगुरूणं अलामि १३० PI सावगधम्महिगारेवि १२७
|सुण्हायं ते पुच्छति ३० (आव० चू० भा०१, पृ० ४६१)
ALKAROKAASARASWASIC
RASACHECCASHARACTES
॥१८१॥
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श्रावक धर्मपश्चाशक
चूर्णिः
परि. १
॥ १८२ ॥
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गाथाद्याद्यशः सुतं गणहररइयं
सुता अत्तो
सुभगा होंतु ईओ
सुमरणमूलं च सुरजालमाइएहिं सेणं यारुवेणं
सेणं चा उद्दसमुद्दि
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निर्दिष्टशनिर्दिष्टस्थलानि
(बृह० सं० गा० १५४ )
१०६
(
)
३१ (आव० चू० भा० १, पृ० ४६२ )
४८
पृष्ठांकः
३
१३८
१२४
१२०
गाथाद्याद्यशः
सोऊण मुइयनर
सो वानरजूहवई
सो सोयइ मच्चुजरा
सो होइ अभिगमरुई हसियललिओ
( पंचा० टी० प० २३ )
( बृह० गा० १३०९ )
पृष्ठांक १३६
३०
१५६
१२
६९
( दशा ० सू० ३० )
हीणस्सरद्दीणस्सरभिन्नस्सर ५९
( दशा० सू० २३ ) । होज्ज य परिमाणकडो १०० (आव० चू० भा० २, पृ० ३०३)
निर्दिष्टानिर्दिष्टस्थलानि
( मर० गा० ३९३ )
( आव० नि० ८४७ )
( आव० नि० ८३८ )
( उ० गा० १०८३ )
(
(
>
>
प्रमाणा
नामकारा
दिक्रमः
॥ १८२ ॥
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________________
CCC CA
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः परि.२
है संज्ञास्पष्टी
करणम्
॥१८३॥
द्वितीयं परिशिष्टम् ।
प्रथमपरिशिष्टगतसंज्ञास्पष्टीकरणम् । संज्ञा स्पष्टीकरणं
संज्ञा
स्पष्टीकरण अनु० गा०= अनुयोगद्वारसूत्रगाथा
उत्त० टी०प०= उत्तराध्ययनटीका (शांतिसूरि) अनु० सू०= अनुयोगद्वारसूत्रांकः
उत्त०नि०= उत्तराध्ययननियुक्तिगाथा आचा०टी०प०= आचारांगटीकापत्रः
उप. मा. गा= उपदेशमालागाथा आचा० नि= आचारांगनियुक्तिगाथा
उपा० टी० प०% उपाशकदशाटीकापत्रः आतु० गा०= आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकगाथा
उपा० सू० = उपाशकदशासूत्रांकः आव० चू०भा० पृ०=आवश्यकचूर्णेर्भागस्य पृष्ठम्
ओघ० गा०= ओघनियुक्तिगाथा आव०नि०= आवश्यकनियुक्तिगाथा
ओघ० भा०= ओघनियुक्तिभाष्यगाथा आव० सं० गा= आवश्यकसंग्रहणिगाथा
औप० सू०= औपपातिकसूत्रांकः आव० सू०= आवश्यकसूत्रांकः
जीत० भा० गा०= जीतकल्पभाष्यगाथा उत्त० गा=3 उत्तराध्ययनसूत्रगाथा
तंदु० गा०= तंदुलवैचारिकप्रकीर्णकगाथा
R ROCOCCASS
CACANCIENCEBOROADCASTEGORONESH
१८३॥
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Al
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________________
RECA
श्रावकधर्मपञ्चाशक
चूर्णिः परि. २
संज्ञास्पष्टीकरणम्
॥१८४॥
to%-%95445%ECEIGGC
संज्ञा
स्पष्टीकरणं दश० गा= दशवकालिकसूत्रगाथा दश०नि०= दशवकालिकनियुक्तिगाथा दशा०नि०= दशाश्रुतस्कंधनियुक्तिगाथा दशा० सू०% दशाश्रुतस्कंधसूत्रांकः नव० प्र० गा= नवपदप्रकरणगाथा नव० स्वो० प०= नवपदप्रकरणस्वोपज्ञवृत्तिपत्रः पंचव० गा०% पंचवस्तुकगाथा पंचा० गा= पंचाशकप्रकरणगाथा पंचा०टी०प०= पंचाशकप्रकरणटीकापत्रः प्रज्ञा० गा०= प्रज्ञापनासूत्रगाथा
संशा
स्पष्टीकरण प्रव० सा० गा०= प्रवचनसारोद्धारगाथा प्रभ० टी०प०= प्रश्नव्याकरणटीकापत्रः बृह. गा०= बृहत्कल्पगाथा बृह० सं० गा= बृहत्संग्रहणिगाथा भक्त० गा= भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णकगाथा मर० गा०% मरणसमाधिप्रकीर्णकगाथा विशे० गा०= विशेषावश्यकभाष्यगाथा व्य० उ० गा०= व्यवहारसूत्रोद्देशकगाथा श्रा०प्र० गा= श्रावकमज्ञप्तिगाथा श्रा० प्र० टी० पृ० श्रावकप्रज्ञप्तिटीकापृष्ठं
SSHASTROCHAKRecs
॥१८॥
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श्रावकधर्म
पञ्चाशक
चूर्णिः
परि० ३
॥ १८५ ॥
Jain Education Int
ग्रन्थनाम
अनुयोगदारसुतं (अनुयोगद्वारसूत्रगाथा
आगम
आगमगाहा
( आचारांगटीका
( आचारांगनिर्युक्तिः
आयारंग
आयाराई
३, ७, ५२, ८५, ११०, ११७
९६ परि० १) परि०१)
पृष्ठादि
९
११, १२
( आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् परि० १)
( आवश्यकचूर्णिः, भा. १, २ परि०१,५ )
(
निर्युक्तिः संग्रहणि
परि०१) परि०१ )
59
१४९
परिशिष्टं १ )
99
तृतीयं परिशिष्टम् ।
प्रमाणत्वेनोद्धृतानां ग्रंथानामकारादिक्रमः ।
ग्रन्थनाम
पृष्ठादि
( आवश्यक सूत्रम् परि०१ ) आवस्सगचुन्नी ५२, ८२, १२४, १४४,
१५८
आवस्सगचुन्नी अक्खरा आवस्सगवित्ति
८७
१५८
आवस्सगसुतं
आवस्य चुन्नीमाइ उत्तरज्झयणाई
१५८ ५५ ११, १२
उत्तराध्ययनटीका (शांतिसू० ) परि० ५ )
( उत्तराध्ययननिर्युक्तिः
परि०१ ) परि०१ ) परि०१,५ )
(उत्तराध्ययन सूत्रं ( उपदेशमाला
ग्रन्थनाम
( उपाशकदश । सूत्रं सटीकं उवसमालागाहा
उबवाइयाइ
उवा सगदसा
उवासगदसाइ
( ओघनिर्युक्तिभाष्यगाथा
( औपपातिकसूत्रं चुन्नी छज्जीवणिया
पृष्ठादि परि० १,५ )
५४ १२
२३, ११९ १४९
परि०१ ) परि०१ )
६४, १००, १११ ९६
जिणभद्दगणिखमासमण विरइयगाहा १६ जोणीपाहुडाई ( जीतकल्पभाष्यं
३
परि०१)
ग्रन्थानामकारा
दिक्रमः
।। १८५ ।।
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________________
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः परि.३
ROCRACTol%C
ग्रन्थानामकारादिक्रमः
प्रन्थनाम पृष्ठादि । ग्रन्थनाम पृष्ठादि । अन्यनाम
पृष्ठादि ठाणगाहा ६२ पंचमंगलं १०४ - मयंतरमवि
१२४ णलिणगुम्म
१४२ (पंचवस्तुकप्रकरणं परि०१) (मरणसमाधिप्रकीर्णकं परि०१) (तंदुलवैचारिकप्रकीर्णकं परि०१)(पंचाशकप्रकरणं
परि०१) (विशेषावश्यकभाष्यं परि० १) (दशवैकालिकसूत्रं परि०१) (पंचाशकप्रकरणं सटीकं परि० १) वुड्डभणियासामायारी
१११ (दशवैकालिकनियुक्तिः परि०१) पंचासगपगरणवित्ती
(व्यवहारसूत्रं सनियुक्तिभाष्यं परि०१) (दशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः परि०१) पंचासगवित्ती
१५८ (श्रावकज्ञप्तिः परि० १) द्रा (दशाश्रुतस्कंधसूत्रं परि०१) पिंडेसणज्झयणं
९६ (श्रावकप्रज्ञप्तिः सवृत्तिका परि०१) दसासुतं | पुवायरियउवएसो
समयभणियपगारो
१२४ दसासुयक्खधं ११९ । (प्रज्ञापनासूत्रं
परि०१) सामाइयसामायारि दिट्टिवाओ
१२ । (प्रवचनसारोद्धारः
परि०१) सामाइयसुतं (नवपदप्रकरणं
परि०१) (प्रश्नव्याकरणं सटीकं परि०१) | सामायारी ९१, ९२, ९३, १०३, (नवपदप्रकरणं स्वोपज्ञवृत्तियुतं परि०१)। (बृहत्कल्पसूत्रं सनियुक्तिभाष्यं परि० १)
११०,११८ नवपयं १५८ (बृहत्संग्रहणि
परि०१) | सावयपन्नत्ति नायाधम्मकहा
४४ | (भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णकं परि०१) | साक्यपन्नत्तिमाइ
CORRHOESCHALEGALANCHAL
१२०
८४
4
११०
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भावकधर्म
चतुर्थ परिशिष्टम्।
पञ्चाशक
चूर्णिः परि.४
विशिष्टनाम्नामकारादिक्रमः
॥१८७॥
CROCITOCHROCCASIOCTOCOCC
चूर्णिगतविशिष्टनाम्नामकारादिक्रमः। नाम पृष्ठं । नाम पृष्टं । नाम
पृष्ठं । नाम अग्गिकुमारो १४१ | अपइट्ठाणं
२९ । अंजणगो
उज्जेणि अग्गियओ १५४
अभओ ३७, ४८ आणंदो
उज्जेणी अजियसेणो अभयदेवमुणिवइ
आवस्सगचुन्नियारो ११० उजेंतो अजसुहत्थी
अरहनयो
१३४ इब्भवहूगा (इसवडूगा) ३० उत्तरमहुरा अट्ठावयं अरहण्णत्तो १३४, १३५ इला
उमासाइवायगो अद्धमागभासा
अरमित्तो १३४ इलापुत्तो २९,४२,४३ उलूगो अन्ने ७४, ७५, ७६, | अवंतीसुकुमालो १४२ इलावद्धणो
एरावणो
इंददत्तो ८०,
असोगवणिया ८५, ९४, ।
कण्हो १००, १०५, ११०, | अंगओ
इंदनागो २९, ३४, ३५ कत्तिओ ११४, ११५, ११७, अंगरक्खसड्ढो
इंदपुरं
१५४ कत्तियसेट्ठी १२६, १५१,१५४, | अंगरिसि
२८ | इंदमहो
४१ । कयपुण्णओ
ARCISRAERASACRORG
१८७
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श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः परि.४
चारगो
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विशिष्टनाम्नामकारादिक्रमः
८२
१३
दसन्नो
॥ १८८ ॥
५४
नाम
प्रष्ट । नाम कयपुण्णगपुत्तो
गयपुरं कयपुन्नो
गंगदत्तो कविलाइ
गंगा २९, ४४, ९० कंथारकुडगो १४२
गुणचंदो कामदेवो
२३
गेरुयओ कालंजरो
गोतमो कुंभकारकडं १४०, १४१ कुरुजणवयो २२
गोबरगाम केइ
गोविंदवायगो कोसलगसावयो १३८ चम्पा कोसिउ २७ चंडकोसियो
२७, २८ कोसियज्जो
चंदकुलं १५८ खंदओ १४०, १४१,१४२ । चंदगुत्तो
४९
नाम
पृष्ठ | नाम चाणको ४९, १४२, १५३ दक्खिणपुत्तो
१९ दक्खिणमहुरावाणियओ ३९ चित्तकूडं
दत्तो चिलातीपुत्तो चिलायिपुत्तो १४२ दसन्नकूडं जत्तादमगो
दसन्नपुरं जसदेवसूरि १५८ दसन्नभद्दो जिणभद्दगणिखमासमणो १६ दंड जियसत्तू २०, १४०
दंडगारणं जोइजसा जोतिजसा
दाहिणामहुरा तगरा
१३४ दुमहुरवणिया थावच्चापुत्तो
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24 -RRECIRCASHARANAERASHAN
.००
२८
दंडगी
२८ । चना
दोवई
१८८॥
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श्रावकधर्म पश्वाशक
विशिष्टनाम्नामकारादिक्रमः
चूर्णिः
परि. ४ ॥१८९॥
5EOCOCCASIOCOCIA
नाम पृष्ठं | नाम पृष्ठं | नाम
। नाम धणावहो ३५ पारसकूलाइ १५३ ।
बाहुबलि
मरुओ धन्नंतरी २९ पालको १४० बुद्धमयाइ
महाकालो धन्नो
१४२ पुष्फसालो बुद्धाइ
महाकालाइ धारिणी २४,१४० पुप्फसालसुओ २९, ३८ बुद्धाइदंसणं
महुरा नंदमणियारो पुरंदरजसा १४०, १४१ बेण्णायडं
महुरादुगवासि नंदीसरवरं पोयणं २४, २५ बोडियओ
मंदरचूलिया नेमनाहो ५० पोयणपुरं
२४ । भद्दा ३५,३८,१३४,१४२ मंदराइ नेव्वुइ
पोयणासमो २५ भरहं २३, १५२ मंदरो पयागाइ ४४ | बंभदत्तो १४५, १५१
भरहवासं
१५२ मासतुसाई परिवायओ १९ बहुलिया १५४
मासतुसादि पश्चयओ १५४ बालचंदो
भिक्खुउवासगपुत्तो
मुणिसुबतो पसण्णचंदो २४,२५,२६,२७ | बारवइ
मगहाजणवयं
मुनिसुब्बतसामी पाडलिपुत्तो ४९ | बारवती २९, ३०, ४१ । मगहाविसयो
| मुणिसुब्बयो
mmm००४ Morno
भिक्खु
९०
का॥१८९॥
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ABAR
विशिष्ट
श्रावकधर्मपञ्चाशक
३८१
चूर्णिः
नाम्नामकारादिक्रमः
परि. ४ ॥१९॥
विंझा
२९
84tOGANIKHECCALAR
नाम पृष्ठं । नाम
पृष्ठं नाम मुणिसुब्वयसामि २० वरुणो २०, २१ सल्लरोहिणी मेयजरिसि १३४ वसंतपुरं ३०, ३४, ९० सल्लुद्धरणि रायगिहं ३४, ३५, ४८ वसुदेवो
ससरक्खाइ रायललिओ
सहस्सारं ४१ |
सावत्थी | रुदओ १९, २८, २९, विक्कमनिवो १५८
सालिभद्दो लंखगकुलं
विण्हु
१९
सिरिचंदसूरि लंखगचेडी
वीरगणि
१५८
सिवरायरिसि वइरनाभो वीरभद्दो
सिवो वक्कलचीरि २३,२४,२६,२७ वेयरणी
सुपइट्ठो वच्छबारसि ४४ संमेयो
सुबुद्धी वद्धमाणो
२०, ४२ ।
सुरिंददत्तो वद्धमाणसामी २७, ३७ | सयंभूरमणमच्छा २३ । सेज्जंसो
1111:1111111
नाम सेणिओ . सेयणओ
सेयविया २८, ३० सेयंसो १४०, १४१ सेलगराया १४२
सोमचंदो २५८ सोमप्पभो
सोरट्ठो. सोरट्टगो सद्धो
सोरट्ठसवगो २२ सोहंमो १५५ हत्थिणारं २२, २३ | हस्थिणापुरं
4CRENAKARISHALGADHAN
सको
॥ १९०॥
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S
दृष्टान्ताः
श्रावकधर्मपश्चाशक
चूर्णिः
परि.५
पृष्ठांकः
ARRERCISC-%A4%97%AHARE
विषयः राजाभियोगे गणाभियोगे देवाभियोगे गुरुनिग्रहे वृत्तिकान्तारे
पंचमं परिशिष्टम्। आद्य(श्रावकधर्म)पश्चाशकचूर्णिगतदृष्टान्ताः।
सम्यक्त्वस्याकारेषु दृष्टान्ताः। दृष्टान्तः कार्तिकः वरुणः गृहस्थः भिक्षूपासकपुत्रः सौराष्ट्रश्राद्धः
सम्यक्त्वलाभे दृष्टान्ताः श्रेयांसः आनन्दादिः वल्कलचीरी
MM ०. ०४
स्थलं (आव० चू० भा० २, पृ०२७६) ( " " , पृ० २७७) (, , , पृ०२७७)
, , , पृ०२७७) ( " " " पृ० २७८
UCARECASSESASARAL
दृष्टात् श्रुतात् अनुभूतात्
(आव० चू० भा० २, पृ०४५२)
(उपाशदशाङ्गं (आव० चू० भा०२, पृ०४५५)
१९१ ॥
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पृष्ठांकः
दृष्टान्ता
कर्मक्षयात्
9
dn
श्रावकधर्मा
विषयः पञ्चाशक-18 चूर्णिः
कमोपशमात् परि. ५
अनुकंपातः
अकामनिर्जरातः ॥१९२॥
बालतपसः सुपात्रदानतः विनयात् विभंगतः संयोगवियोगाभ्याम् व्यसनतः उत्सवात् ऋद्धिदर्शनात् असत्कारतः
ROCEROSCORRECk
दृष्टान्तः चण्डकौशिकः अङ्गर्षिः वैतरणीवैद्यः मेण्डः इंद्रनागः कृतपुन्यः पुष्पशालसुतः शिवर्षिः मथुरावणिजौ गणदत्तः आमीरः दशार्णभद्रः इलापुत्रः
स्थलं (आव० चू० भा०२, पृ० ४६०) " " , पृ० ४६०)
, , पृ० ४६०) " , पृ० ४६१) " , पृ० ४६५)
पृ० ४६६) पृ० ४६९) पृ० ४६९)
४७२) पृ०४७४) " पृ० ४७५)
पृ० ४७५) " पृ०४८४)
-NCREASEASESAROTECIA5SEX
॥१९२॥
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श्रावकध
पश्चाशक
चूर्णिः
परि. ५
॥ १९३ ॥
Jain Education Inter
विषय:
शंकायां
काङ्क्षायां
विचिकित्सायां
विद्वज्जुगुप्सायां
परपाषण्डप्रशंसायां प्राणातिपाते
अनर्थदण्डविरतौ
उष्णपरीषदे
अंतक्रियायां
पादपोपगमने मानुष्य भवदुर्लभत्वे
सम्यक्त्वातिचारेषु दृष्टान्ताः
पृष्ठांकः
४५
दृष्टान्तः
पेयापायकः
राजामात्यौ
विद्यासाधकश्राद्धः
श्रावकसुता
चाणिक्यः
पतिमारिका
यात्रादमकश्च ।
अङ्गरक्षकश्राद्धः
अर्हनक: स्कन्धकशिष्याः
अवंतिसुकुमालः चोल्लकादीनि (१०)
४६
४७
४८
४९
५३
५४
९०
१३४
१४०
१४२
१५१
:०:
स्थलं
( आव० चू० भा० २, पृ० २७६ )
(
19
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(",
(
(
(
33
33
39
99
99
39
35
39
33
39
पृ० २७९ )
पृ० २७९ )
पृ० २८० )
पृ० २८१ )
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15
पृ० ६० )
( उप० मा० गा० १२२ )
( उत्त० टी० प० ८९) ( उत्त० टी० प० ११५ )
( आव० चू० भा० २, पृ० ( आव० चू० भा० १, पृ०
१५७ ) ४४६ )
दृष्टान्ताः
॥ १९३ ॥
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________________ ఆఅఆఅఆ 1 इति श्रीश्रीचन्द्रसूरिशिष्याचार्यश्रीयशोदेवहब्धा आद्य(श्रावकधर्म)पञ्चाशकचूर्णिः समाप्ता॥ వింతగాంచింగాంచగాడి इति श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई-जैन-पुस्तकोद्धारे ग्रन्थाङ्कः 102 // MAKES