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________________ 0G3% भावकधीपश्चाशकचूर्णिः । असत्यवचनस्य दोषाः सत्यस्य गुणाश्च C4 | कड भणह-जहा एयस्स अहं एयमि विवादे सक्खिगो, एयं च परसंबंधिपावसमस्थणासरूवं विसेसं पडच पच्छिमेहिंतो मेण्ण भणियंति । जहा जायइत्ति पुत्वं भणियमेव । दोसा इमे-"जज बच्चइ जाई अप्पियवाई तर्हि तहिं होह। न य सुणड सहे सहे सणह असोयबए सद्दे ॥१॥ हीणस्सरद्दीणस्सरभिन्नस्सरअप्पियस्सरा चेव । होति य अगेज्झषयणा अलिएण परं उवहर्णता ॥२॥" हीणस्सरा-लहुयसरा, दीणस्सरा-दयाजणगसद्दा, भिन्नस्सरा-खाहुलसद्दा, अपियस्सरा-अणिसरा । तहा-" दम्गंधो पुइमुहो अणिढवयणो य फरुसवयणो अ । जलएलमयमम्मण अलियवयणपणे दोसा ॥१॥" दग्गंधोसरीरेण, पुहमहो-दग्गंधवयणो, जलत्ति जलमूगो, एलत्ति एलमूगो, जहा जलमूओ जलबुडो व बुडबुडे एरिसोधणी जस्स सो. एलगो जहा पुण बुन्धुयई एलमूओ, मम्मणो जस्स भासंतस्स वायाउ खंचिजह । मुसावायं अभासंतस्स इमे गुणा-"मंति नईवेगे साब देति गगणेण वच्चंति । कंपति माणुसा देवया य सच्चेण संजुत्ता ॥ १॥ सच्चेण परिगहियं न डहइ अग्गी विसं न मारे । न वहंति आउहाई कह नाम न उत्तम सचं? ॥ २॥ विजाओ (सबा उ) मंतजोगा सिझंती धम्मअत्थकामा य । सच्चेण परिम्गहिया रोगा सोगा य नस्संति ॥ ३॥ सच्चं सग्गद्दारं सचमत्तसमग(१) तवोकंमं । सच्चं जसस्स मलं सर्च सिद्धीए सोवाण ||३||" एवमाइ, जयणा पुण एवं-"जइवि गिही अनियत्तो निचं भयकोहलोहहासेसु । नाइपमचो तेसविन होज किंचि भणओ य ॥१॥ किंतु-बुद्धीऍ निएऊण भासेजा उभयलोगपरिसुद्ध। सपरोभयाण जं खलु न सबहा पीडजणगं तु ॥ २॥" संपयं अइयारा भन्नति इह सहसम्भक्खाणं रहसा य सदारमंतभेयं च । मोसोवएसयं कूडलेहकरणं च वजेइ ॥११॥ 545454 % % % % * Jain Education For Private & Personal Use Only Shww.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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