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________________ सम्यक्त्व श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः लामे दृष्टान्ता ॥१७॥ CHECHANICAL | थाणं थाणुसिरे वा ओरुहणं वा मुइंगाणं ॥१॥ खितिगमणंपित्र पढम, थाणूसरणं व करणमप्पुवं । उप्पयणं पिव तत्तो जीवाणं करणमनियट्टि ॥ २॥ थाणुव्व गंठिदेसो गंठियसत्तस्स तत्थऽवत्थाणं । ओयरणपिव तत्तो पुणोवि कम्मठिईविवड्डी ॥ ३ ॥" (३) । पुरिसदिटुंतो-जहा केइ तिन्नि पुरिसा किंपि महानयरं गंतुकामा महाडवि पडिवन्ना, सुदीहंअद्धाणं | अइक्कमंता कालाइक्कमभीया भयठाणं ढुकंता सिग्घयरगईए गच्छंति, ततो पुरउ उभयपासेसु गहियनिसियकरवाला पत्ता दो चोरा, ते दट्ठण एगो पच्छामुहो पलाणो, अन्नो तेहिं चेव गहिओ, तहा अवरो ते अइकमिऊण इच्छियनयरं पत्तो, एस दिट्ठतो। अयं अत्थोवणओ-एवं इह संसाराडवीए पुरिसा संसारिणो तिन्नि विवक्खिजंति, पंथो कम्मठिई अईदीहा, भयठाणं पुण गंठिदेसो, चोरदुगं पुण रागद्दोसा, तत्थ पच्छामुहगामी जो अहापवत्तकरणेण गंठिदेसं पावित्ता पुणो अणिट्ठपरिणामो होउं कम्मठिई उक्कोसं पावेइ, चोरदुगगहिओ पुण पबलरागदोसोदयगहिओ गंठियसत्तोत्ति जं भणियं होइ, अभिलसियनयरसंपन्नो पुण अपुवकरणेण रागद्दोसे चोरे निहणित्ता अनियट्टिकरणेण संपत्तसंमदंसणोत्ति (४) । एत्थ आह सीसो-स हि संमत्तं उवए. सेण लहइ उयाहु अणुवएसेण चेव लहइत्ति , एत्थ भण्णइ-दोहिवि पगारेहिं लहइ, कहं ?, पहपरिभट्टपुरिसतिगदिट्ठतेण-जहा कोइ पंथाओ परिभट्ठो उवएसं विणा चेव परिब्भमंतो सयमेव पंथं पावेइ, कोइ पुण परोवएसेण, अवरो पुण न पावइ चेव, एवं एत्थऽवि अच्चंतपणट्ठसुमग्गो जीवो अहापवत्तकरणेण संसाराडवीए परिन्भमतो कोई गंठिं पावित्ता अपुवकरणेण य गंठिमइक्कमइत्ता(ग्रं० ३००) अनियट्टिकरणं पाविऊण सयमेव संमत्ताइयं निवाणपुरस्स मग्गं लहइ, कोइ पुण परोवएसाओ, अन्नो पुण पच्छाभिमुहगामी गंठिसत्तो वा न लहइत्ति (५)। इयाणि जरदिद्रुतो-जहा जरो कोइ सयमेव अवेइ, कोइ भेसजोवओगेणं, कोइ पुण ॥१७॥ Jain Education in For Private & Personal Use Only R w .jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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