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________________ श्रावकधर्म विरत्यादि लाभक्रमः न चेव अवेइ, एवं इह मिच्छत्तमहाजरो वि कोई सयमेव अवेइ, कोई अरिहंतवयणभेसजोवओगेणं, अन्नो पुण अरिहंतवयणपञ्चाशक- भेसजोबओगेणविन अवेइ (६) । इयाणि कोवादिद्रुतो-जहा हि केसिंचि कोदवाणं मयणभावो सयमेव कालंतरे अवेइ, तहा चूर्णिः । केसिंचि गोमयाइपरिकम्मवसेणं, तहा अन्नेसि न अवेइ, एवं मिच्छत्तभावोवि, कोइ सयमेव अवेइ, कोई पुण परोवएसपरिकं मणाए, अवरो पुण नावेइ, एत्थ य भावत्थो-स हि जीवो अपुवकरणेण मयणअसुद्धअद्धसुद्धसुद्धकोदवसरिसं दरिसणं मिच्छा॥१८॥ दरिसणसमामिच्छदरिसणसम्मदरिसणभेएण तिहा काऊण तओ अनियट्टिकरण विसेसाओ संमत्तं पावेद, एवं करणतिगसहियस्स भवजीयस्स सम्मदंसणसंपत्ती, अभवस्सवि कस्सइ अहापवत्तकरणेण गंठिपत्तस्स अरिहंताइरिद्धिसंदसणेण अन्नेण वा केणइ पओयणेण पयस॒तस्स सुयसामाइयलाभो भवति, न सेसलाभो होइत्ति (७)। इयाणि जलदि₹तो-जहा जलं मलिणअद्धसुद्धसुद्धभेएण तिहा होइ, एवं दसणमवि मिच्छादसणसमामिच्छादसणसंमइंसणभेएण अपुवकरणेण तिहा करेइत्ति (८), एवं वस्थदिटुंतेऽवि जोयणा कायवत्ति (९)। संमत्तलाभविहिपसंगणं लाघवत्थं देसविरहमाईणंपि लाभविही भन्नइ एवं संमइंसणलाभुत्तरकालं सेसकम्मस्स पलिओवमपुहुत्तठिइपरिक्खयाओ उत्तरकालं देसविरई लब्भइ, पुणो सेसकम्मस्स ठिइमज्झाओ संखेजसागरोवमेसु गएसु सबविरई लगभइ, पुणो अवसेसठिईइ मज्झाओ संखेज्जेसु चेव सागरोवमेसु गएसु उवसमसेढी, पुणोऽवि संखेज्जेसु चेव सागरोवमेसु खीणेसु खबगसेढित्ति, एवं जह जायइत्ति दारं भणियं । अहवा मिच्छत्तलापरिहारेण संमत् होइ, जओ मणियं "मिच्छत्तपरिच्चाएण होइ"त्ति संमचंति तत्थाहिकयं चेव, तवजणं च एवं-समणो वासओ पुवामेव मिच्छताओ पडिक्कमह संम उवसंपजइ, "नो से कप्पइ अञ्जप्पभिई अन्नतिथिए वा अन्नतित्थियदेवयाणि %AHARANASANCES 1534564545555- 4G ॥१८॥ Jain Education For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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