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बावकधर्म
श्रावकनिवास
पश्चाशक चूर्णिः ।
योग्य
॥१४६॥
स्थाननिरूपणम्
RECORESAXCORRESS
एत्थ ॥ १० ॥ इत्थं वेयावडियं गुरुमाईणं महाणुभावाणं । जेसि पभावेणेयं पत्तं तह पालियं चेत्र ॥११॥ तेसिं नमो भावेणं पुणोवि तेसिं चेव नमो । अणुवकयपरहियरया जे एवं देंति जीवाणं ॥ १२ ॥ एमाइ भावियप्पा सुद्धज्झाणो गमेइ तं कालं । आसन्नागयमरणो गेण्हेज तो नमोकारं ॥१३ ॥ जओ-चोदसपुत्वधरावि हु सुयकेवलिणोवि मुणियसवत्था । तेवि हु सवं मोत्तुं पजंते लिंति नवकारं ॥ १४ ॥ एवं तु भावणाओ जायइ पेच्चावि बोहिलामोत्ति । अन्भासाइसयाओ तहोवमाणाउ एयाउ ॥ १५ ॥ कुसुमेहिं वासियाणं तिलाण तेल्लंवि जायह सुयंध । एओवमा हु बोही पन्नत्ता वीयरागेहि ॥ १६॥ कुसुमसमा अन्भासा जिगधम्मस्सेह होंति णायवा । तिलतुल्ला पुण जीवा तेल्लसमो पेच तब्भावो ॥१७॥ इय अपरिवडियगुणाणुभावओ बंधहासभावाओ। पुछिल्लस्स य खयओ सासयसोक्खो सयामोक्खो ॥ १८॥" अन च-विहिसेसमिमस्स वोच्छामि-भणियविहि अवेक्खाए अभणियविही विहिसेसं तं इमस्स सावगधम्मस्स वोच्छामि-भगिस्सामि ।। ४०॥ निवसेज तत्थ सड्ढो साहणं जत्थ होज संपाओ। चेइयहराई जमि य तयन्नसाहमिया चेव ॥४१॥ ___ निवसेज तत्थेव नगराइठाणे सड्डो-सावगो साहूणं जत्थ होइ संपाओ-जईणं जत्थ आगमग होइ, तहा चेइयहराई जंमि ठाणे (तहा तयन्नसाहमिया) एवंविहठाणे वसंतस्स इमो गुणो होइ, जहा-" साहूण वंदणेग नासह पावं असंकिया भावा। फासुयदाणे निजर उबग्गहो नाणमाईणं ॥१॥ मिच्छदंसणमहणं सम्ममणविपुद्धिहेउं च । चिवंदणाइ
विहिणा पन्नत्तं वीयरागेहि ॥ २॥ साहम्मियथिरकरणं वच्छल्ले सासणस्स सारोत्ति । मग्गसहायत्तगओ तहा अणासो य का धम्माओ ॥३॥ एवमाइ ॥ ४१ ॥ तत्थ निवसंतेण पइदिवसं जे कायवं तं भन्नइ
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