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आवकधर्म
पञ्चाशक
चूर्णिः
॥ ४६ ॥
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कंखा - बुद्धापणीयदरिसणेसु गाहो - अभिलासो, जओ भणियं “ कंखा अन्नोन्नदंसणग्गाहो, " सा पुण दुविहादेसखा, सङ्घखा य, देसकखा - एगदेसविसया, एगमेव किंचि बुद्धाइदंसणं कखति, एत्थवि चित्तनिरोहो मणिओ, एस चैव चित्तजओ पहाणो मोक्खहेऊ, तओ एयंपि दंसणं घडमाणगं, न अच्छंतविरुद्धंति, सङ्घकंखा सव्वाणि चैव दरिसणाणि कंखर, ससुत्र अहिंसा भासिजह, इहलोए य न अच्चंत किलेसो कहिजइ, अओ एयाणिवि सोहणाणित्ति, अहवा परलोइयफलाणि कंखइति कंखा, पडिसिद्धा य एसा तित्थगराईहिं, जओ भणियं-"नो इहलोगट्टयाए आयारमहिडेजा, नो परलोगgure आयारमहिजा नो कित्तिवन्नसहसिलो गट्टयाए आयारमहिडेजा, " कित्ती सवदिसासु पसिद्धी, बनो - एगदिसाए, सदो - अद्धदिसाए, सिलोगो - सठाणे चेव, एवमाई, अओ एयं करेंतस्स सम्मत्ताइयारो होइ, तम्हा एगंतियं अच्छंतियं निराबाहं मोक्खसुहं मोचूण अन्नत्थ न कंखा कायद्वा । तत्थोदाहरणं --राया कुमारामच्चो य अस्सेणावहिया अडवीं पविडा, छुहारा फलाणि खायंति, पडिनियत्ताण राया चिंतेति-लडुगपूयलगमाईणि खामि, आगता दोवि जणा, रन्ना सूता भणिया-जं लोए पयरति तं सवं रंधहत्ति, उबडवियं च रन्नो, सो राया पेच्छणयदित करेह, कप्पडिया बलिएहिं धाडि - अंति, एवमिस्स अवकासो होतित्ति कणकुंडगमंडगादीणिवि खाइयाणि, तेहिं स्लेण मओ, अमचेण पुण वमण विरेयणाणि कताणि, सो आभागी भोगाण जाओ, इयरो विणट्ठो ।
विचिमिच्छा-मविभभो जुत्तीए आगमेण य घडमाणे वि अत्थे फलं पइ संमोहो- किं एयस्स महंतस्स तत्रकिलेसस्स निरासाय वालुया कणचवण सरिसस्स कणगावलिरयणावलिमाइगस्स जम्मंतरे मम फलसंपत्ती भविस्सइ किं वा न भविस्सइति,
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काङ्क्षायां राजामात्यौ
॥ ४६ ॥
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