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________________ C%5 श्रावकधर्म- पश्चाशकचूर्णिः अतिचाराः, शङ्कायां पेयापायका CA% ॥४५॥ % तडागपवबंधो । पिप्पलअसंजयाणं पावारहलाइगोदाणं ॥२॥" असंजयाणंति-माहणाईणं, पावारंति-पूरहिगाई उत्तरिजगं, एवमाइ अण्णपि अन्नसिं मिच्छत्तथिरीकरणाइकारणं जहा न होइ तहा जइयवं, जओ मिच्छत्तथिरीकरणं अइअणिट्ठफलं, भणियं च-" अग्नेसि सत्ताणं मिच्छत्तं जो जणेह मृढप्पा । सो तेण निमित्तेणं न लहइ बोहिं जिणाभिहियं ॥ १॥" ___संपयं 'अइयारा', ते पुण पंच होति, तंजहा-संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथवो य, तत्थ संका-भयवंतअरहंतपणीएसु पयत्थेसु धम्मस्थिकायाइसु अचंतगहणेसु मइदुब्बल्लेण संमं अणवधारिजमाणेसु संसओ संका, किं एवं होजा न वत्ति?, जओ मणियं " संसयकरणं संका", सा पुण दुविहा-देससंका सबसंका य, तत्थ देससंका एगदेसविसया, जहा-किमेस जीवो असंखेजपएसरूवो होजा, किंवा निप्पएसो निरवयवो होजत्ति, सबसंका पुण-सवेवि अस्थिकाए संकर, जिणसासणं वा संकइत्ति, एसा पुणरेवमइयारो-" संकाए मालिनं जायइ चित्तस्सऽपञ्चओ य जिणे । संमत्ताणुचिओ खलु इति अइयारो भवे संका ॥१॥" दोसा य इत्थ इमे-" नासइ इमीए नियमा तत्ताभिनिवेसमो सुकिरिया य । तत्तो य कमबंधो संसारनिबंधणो होइ (बंधदोसो तम्हा एयं विवजिञ्जा)॥१॥" तम्हा मोक्खस्थिणा ववगयसंकेण जिणवयणं सच्चमेव सञ्चपि पडिवञ्जियवं, इहलोएवि जो अविसयं संकं करेइ सो विणस्सइ, जहा-सो पेजापायओ, पेजाए मासा जे परिभजिया छुढा, अंधकारे लेहसालाउ आगया दो पुत्ता पियंति, एगो चिंतेइ-एयाओ मच्छियाओ, तस्स संकाए वग्गुलीवाओ संजाओ मओ य, बीओ चिंतेइ न मम माया मच्छिया देइ, सो जीविओ, एए दोसा संकाएत्ति, इह पुण सवत्थ वि अइयारो परिणामविसेसाओ नयमयभेयओ वा संमत्तमालिअमेत्तं संमत्ताभावो वा नायवोत्ति । 4545454%AANEMA * ** ॥४५॥ Jain Education a l For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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