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श्रावकधर्मपश्वाशक
चूर्णिः ।
॥ १०२ ॥
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इरियाव सुद्धिअसंभवोत्ति । तत्थ य पढमा दोन्नि अइयारा अनि उणबुद्धित्तणेण सहसाकाराहणा वा, तिनि पुण अंतिमा असढायारस्स अइयारा भवंतित्ति, अन्नहा भंगा एव ॥ २८ ॥ एत्थ य भावणा इमा-" सवे य सबसंगेर्हि वज्जिए साहुणो नमंसेज्जा | सवेहिं जेहिं सवं सावजं सबहा चत्तं ।। १ ।। " भणियं बीयं सिक्खावयं । संपयं तइयं भन्न
आहारदेहसकारबंभवावारपोसहं अण्णं । देसे सब्वे य इमं चरमे सामाइयं नियमा ॥ २९ ॥
कुसलधम्मं पोसेइ-बुड्डि नेइत्ति पोसहो-पवदिवसाणुट्ठाणं, स पुण चउविहो - आहारदेहसकारबंभ चेरअवावारपोसह मेयाओ, आहारदेहसकाराणं वञ्जणं बंभचेर अवावाराणं च आसेवणमित्यर्थः, अन्नंति देसावगासियाउ अवरं तहयं सिक्खावयं, एयं चउविहंपि दुहा होइ, अओ भन्नह - देसे सब्वे यत्ति देसे - आहाराईणं देसविसए सर्व्वसु-निश्वसेसेसु आहाराइसु चसद्दो समुच्चये, इमति पोसहवयं होह, तत्थ य चरिमे-अंतिमे भेए सइओ अवावारपोसहनामगे कए सति सामाइयं-पमसिक्खावयं नियमा-अवस्संभावेण निच्छरण काय होइ, जइ न करेइ सामाइअफललाभाभावो भवेजा । एत्थ य भावत्थो पुव्वायरियमणिओ इमो
आहारपोसहो दुविहो-देसे सवे य, तत्थ देसे विवक्वियविगइए अविगईए आयंविलस्स वा एकसिं वा दो वा वारे भोयणंति, सवओ पुण चउविहस्सवि आहारस्स अहोरतं जाव पच्चक्खाणं । सरीरसक्कारपोसहो पुण ण्हाणुवत्तणवन्नगविलेवणपुष्पगंधतंबोलविसिद्धवत्था भरणपरिचाओ, सोवि दुविहो - देसे सधे य, तत्थ देसे अमुगं सरीरसकारं न करोमि, सधे पुण करेमिन्ति । बंभचेरपोसहो दुविहो - देसओ सबओ य, तत्थ देसे दिवा रतिं वा एकसिं दो वा वारे अभासेवणं, सङ्घओ पुण अहो -
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पौषधत्रस
स्वरूपम्
॥ १०२ ॥
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