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________________ श्रावकधर्म पश्चाशक चूर्णिः । ॥ १२१ ॥ Jain Education Int रापि थिरचित्तो ॥ १ ॥ " पुद्दोइयगुणजुत्तोत्ति असिणाणाइपुवभणिय गुणक लिओ दंसणवयसामाइयपोसहपडिमा सरूवगुणकलिओ वा, विजियमोहणिजोत्ति निजियकामविगारो, एगंतओति सङ्घहा, राईपत्ति सवं स्यणि, न केवलं सवदिति, एसेव पंचमछडिमाणं विसेसोत्ति, थिरचित्तो वा इमो - "सिंगारकहाविरओ इत्थीए समं रहंमि नो ठाइ । चयइ य अतिप्यसंगं तहा विभूसं च उक्कोसं ॥ १ ॥ " इत्थीए - नारीए समं - सह रहंमिति- एगंते न ठाह-न गच्छइ, एगंते चित्तविगारो भवतित्तिकाउं, जओ लोइयावि पढंति - " मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा नो विविक्तासनो भवेत् । बलवानिन्द्रियग्रामः, पंडितोऽप्यत्र मुह्यति ॥ १ ॥ " अप्पसंगति- इत्थीए समं अइपरिचयं, जओ - "सह दंसणाउ पेम्मं पेमाउ रई रई विस्सभो । विस्संभाओ पणओ पंचविहो बडूए मयणो ॥ १ ॥ " तहा- " वसीकुणंति जे लोगमिगे दंसणतंतुणा । संसग्गवागुराहिं ते, थीवाहा किं कुणति नो ॥ २ ॥ " विभूसंति - अलंकारांगरागाईहिं सरीरसकारा, उक्कोसगहणाउ सरीरठितिमेत्तसंभवं करेइत्ति, " एवं जा छम्मासा एसोऽहिगओ इहरहा दिहूं। जावज्जीवंपि इमं वजइ एयंमि लोगंमि ॥ १ ॥ " एसोति सावगो, अहिगओत्ति-छट्ठपडिमापडिवन्नओ चेव, एवं जाव छम्मासे अवंभं बजेइति, इहरहा-छट्टपडिमा पडिवन्नगाउ अन्नत्थ दिट्ठमेतं यदुत जावजीवंपि इमं - अभं वजेति, कत्थ दिट्ठे ?, उच्चते एयंमि- सध्वजणपच्चक्खे सावगलोगंमित्ति ६ । सच्चित्तेति सच्चित्ताहारवजण पडमा, तस्सरूवमिमं - " सच्चित्तं आहारं वजह असणाइयं निरवसेसं । असणे चाउलउंचिगचणगाई सवहा सम्मं ॥ १ ॥ " चाउला तंदुला उंबिगा - जवगोहुमाइणं सवहत्ति अपक्कदुपकतुच्छो सही (वजणेण) भक्खणेणं, सम्मति - भावसुद्धीए, “पाणे आउकायं सचित्तरस संयं तहन्नपि । पंचुंबरिककडगाइयं च तह खाइमे सव्वं ॥ १ ॥ " सचित्तरससंजयंति तक्खणपडियलवणाइर पं० चू० ११ For Private & Personal Use Only षष्ठी - सप्तमी - प्रतिमा वर्णनम् ॥ १२१ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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