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________________ भावकधर्म - पश्चाशक चूर्णिः ॥ १३४ ॥ २ Jain Education In सवि परीस पराइत्ता । सवेवि य तित्थयरा पाओवगया उसिद्धिगया || ४८ || अवसेसा अणगारा तीयपटुपन्नणागया स | केई पाओगया पच्चक्खाणि गिणि केई ॥ ४९ ॥ सबाओ अजाओ सवेवि य पढमसंघयणवज्जा | सवे य देसविश्या पञ्चक्खाणेण उमरंति ॥ ५० ॥ तहा - सवसुहृप्पभवाओ जीवियसाराउ सहजणियाउ । आहाराओ रयणं न विजई उत्तमं लो || ५१ || विग्गहगए य सिद्धे य मुत्तुं लोगंमि जत्तिया जीवा । सर्व्व सवावत्थं आहारे होंति आयत्ता ।। ५२ ।। तं तारिसयं रयणं सारं जं सबलोगरयणाणं । सर्व्वं परिच्चत्ता पाओवगया परिहरति ॥ ५३ ॥ तहा -निप्फेडियाणि दोनिवि सीसा वेण जस्स अच्छीणि । न य संजमाओ चलिओ मेयजो मंदरगिरिव ॥ ५४ ॥ जो कुंचगावराहे पाणिदया कुंचगं तु नाइक्खे | जीवियमणपेतं मेयज्जरिसिं नम॑सामि ॥ ५५ ॥ उण्हंमि सिलावट्टे जह तं अरहंनएण सुकुमालं । विग्वारियं सरीरं अणुचिंतेजा तमुच्छाहं ॥ ५६ ।। " तथाहि तगराए नयरीए अरहमित्तो णाम आयरिओ । तस्स समीवे दत्तो णाम वाणियओ भद्दाए भारियाए पुत्तेण य अरहण्णत्तेण सद्धिं पद्मइयो, सो तं खुड्डगं ण कयाइ भिक्खाए हिंडावेर, पढमालियादीहिं किमिच्छएहिं पोसेति, सो सुकुमालो साधूण अप्पत्तियं, ण तरंति किंचि मणिउं, अण्णया सो खंतो कालगतो, साधूहिं तस्स दो तिष्णि वा दिवसे दातुं भिक्खाए ओतारितो, सो सुकुमालसरीरो गिम्हे उचरिं हेट्ठा य डज्झतो परसेयतण्डाभिभूतो छायाए वीसमंतो उत्थपइया वणिय महिलाए दिट्ठो, ओरालसुको मालसरीशेत्ति काउं तीसे तर्हि अज्झोववातो जातो, चेडीय सदाविओ, किं मग्गसि ?, भिक्खं, दिन्ना से मोयगा, पुच्छितो कीस तुमं धम्मं करेसि ?, मणइ - सुहणिमित्तं, भणति तो मए चैव For Private & Personal Use Only अरहनक चरितम् ॥ १३४ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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