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________________ 44546 C प्रथमगुणव्रतस्वरूपम् भावकधर्म- काले गए गन्भगाहणं कारवेतस्स गन्भे दुपयाइभावाओबाहिं च अभावाओ वयसाविक्खस्स अइयारो होइ ४, तहा कुवियंपश्चाशक- आसणसयणथालकच्चोलाइ घरउवक्खरं तस्स जं माण-परिमाणं तस्स माणस्स भावेण-तप्पज्जायंतररूवेण अइक्कमो-अइयारो चूर्णिः ।| | होइ, जहा किर केणवि वइणा दस करोडगादीणि कुवियपरिमाणं कयं, तओ ताणि कहिंचि दुगुणाणि संजायाणि तओ वयभंगभएण तेसिं दुगेण दुगेण एगेगं महंत कारावेंतस्स पजायंतरकरणेणं संखापूरणाउ साहावियसंखाबाहाउ य अइयारो ॥८ ॥ होइ । अन्ने पुण भगति-" भावेण तदस्थित्तलक्खणेण विवक्खियकालावहिए परओ अहं एयं गहिस्सामि अओ न अन्नस्स ४ा देयं, एवंविहवयणेहिं तं दवं परघरे ठावेंतस्स अइयारो"५॥१८|| भंगो अइयारभावणाए दंसिओ, अओ मेएण न विवरिजइ । भावणा पुण इमा-"धन्ना परिग्गहं उज्झिऊण मूलमिह सबपावाणं । धम्मचरणं पवना मणेण एवं विचिंतेजा ॥१॥" भणियाणि मूलगुणरूवाणि अणुवयाणि । संपयं उत्तरगुणाणं अवसरो, ते पुण गुणवयसिक्खाबयरूवा, तत्थ पढमगुणवयं ताव भन्नइउड्डाहोतिरियदिसिं चाउम्मासाइकालमाणेणं । गमणपरिमाणकरणं गुणव्वयं होइ विन्नेयं ॥ १९ ॥ उड्डाहोतिरियदिसिंति उड्डे-उवरि पत्याआइविसए, अहो-भूमिहरसरकूवाइसु, तिरियदिसिं-पुवाइदिसिं एयासु दिसासु विसए, गमणपरिमाणकरणंति एवं पयं संबज्झइ । अणेण गाहावयवेण लाघवत्थं अणवसरपत्तंपि मेयदारं सूइयंति, सेसावयवेहि सरूवं भण्णइ-चाउम्मासाइकालमाणेणंति चाउम्मासं-मासचउक्कं आइसद्दाउ संबच्छराई लन्मइ, एवंविहकालमाणेण गमणस्स जं परिमाणकरणं, एत्तियाउ खेत्ताउ परओ न गंतवं एवंविहमाण करणं, गुणब्वयं होइत्ति गुणाय-अणुब्बयाणं उवगाराय वयं गुणव्वयं, भवइ य अणुत्व याणं गुणवएहिंतो उवगारो, विवक्खियखेचाईणं अन्नत्थ हिंसाइनिसेहाओ, विनेयं TECRECENCCARECRroDC OASARASI Jain Educationner For Private Personel Use Only wjainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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