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________________ श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः । चेव संदिसाविय सज्झायं उवउत्तो सुहनिसन्नो कुणइ, भावओ एगे वा अणेगे वा, गीयत्थसाहुसंभवे य सबहुमाणं तप्पज्जुवा- पौषधसणापरो अवस्सं सिद्धतसारसवणं विहिणा करेइ, भणियं च-"तित्थे सुत्तत्थाणं गहणं विहिणा उ एत्थ तिथमिणं । उभयन्न विधिः चेव गुरू विही उ विणयाइओ चित्तो॥१॥ उभयन्नूवि य किरियावरो दढं पवयणाणुरागी य । ससमयपन्नवगो परिणओ य पनो य अच्चत्थं ॥२॥" तहा "सुत्ता अत्थे जत्तो अहिययरो नवरि होइ कायवो । एचो उभयविसुद्धित्ति सूयगं केवलं सुतं ॥३॥" तओ पउणपोरिसीए खमासमणेण संदिसाविय खमासमणपुत्वमेव पडिलेहणं करेमित्ति भणिय मुहणतगं पडिलेहित्ता संभविभंडोबगरणं पडिलेहेइ, मज्झे सवत्थसज्झाओ जाव कालवेला, तओ जइ चेहहरे वंदणं न कयं तो तं करेइ । चिइवंदण हि जइ गिहीहिं अहोरत्ते सत्तहा तिहा वा कायवं, तत्थ सत्तहा-सुक्षुडिओ १ पच्चुसावस्सए २ चेहरे ३ भोत्तुकामो ४ भोचा पञ्चक्खंतो ५पओसावस्सए ६ सुविउकामो य ७ तं करेइ, तिहा पुण तिसंझं फुडमेव, जो पुण आहारपोसही देसओ सो तत्थेवर पोसहसालाए घरे वा साहुव्व गंतुं पुन्ने पञ्चक्खाणे तीरिए य खमासमण दुगेण( पुर्व )मुहपोत्ति पडिलेहिय खमासमणेण वंदिय भणइ-इच्छाकारेण संदिसह पारावह पोरिसिं पुरिमुढें चउविहार एक्कासण निवीयमायंबिलं वा कयं, जा कावि वेला ताए पारावेमि, तओ सकस्थएण चेहए वंदिय सज्ज्ञायं सोलस वीसं वा सिलोगे काउं जहासंभवं अतिहिसंविभागं दाउं मुहहत्थपाए पडिलेहिय नवकारपुवं अरत्तदुट्ठो मणवइकाएहिं अकयमकारियं फासुयं भत्तपाणं भुंजइ, भणियं च-"रागद्दोसविरहिया वण-3 लेवाइउवमाए भुंजंति । कड्डित्तु नमोकार विहीऍ गुरुणा अणुनाया ॥१।। असुरसुरं अचवच अदुयमविलंबियं अपरिसाडि । मणवयणकायगुत्तो मुंजेजऽह पक्खिवणसोहिं (इ साहुच उवउत्तो ) ॥ २॥" एवमाइ, एवं विहिणा भुंजितुं ईरियावहियं Jain Education Amional For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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