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________________ श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः । ॥ १५२॥ पाशकधान्य द्यूतदृष्टान्ताः दारवाले सेवमाणेण बारसमे संबच्छरे राया दिवो", ताहे राया तं दट्टणं संभंतो, इमो सो वराओ मम सुहदुक्खसहायगो, | एताहे करेमि वित्ति, ताहे भणति-किं देमि वित्तिं ?, सो भगति-देहकर( देहि ममं ) चोल्लए घरे जाव सबंमि भरहे, जाहे | निट्ठियं होजा ताहे पुणोवि तुज्झ घरे आढवेऊण झुंजामि, राया भणति-किं ते एएण ?, देसं ते देमि तो सुहं छत्तच्छायाए हत्थिखंधवरगओ हिंडिहिसि, सो भगइ-किं मम एद्दहेण आडोवेण, ताहे से दिनो चोल्लगो, ततो पढमदिवसे राइणो घरे पजिमिओ, तेण से जुगलयं दीणारो य दिनो, एवं सो परिवाडीए सवेसु राउलेसु बत्तीसा य रायवरसहस्सेसु, तेसिं च जे भोइया, तत्थ य नगरे अणेगाउ कुलकोडीउ, णयरस्स चेव सो कया अंतं काहिति ?, ताहे पुणो गामेसु, ताहे पुणो भरहवासस्स, अवि सो वच्चेज अंतं ण य माणुसतणाओ भट्ठो पुणो माणुसत्तण लहइ १ । पासगत्ति चाणकस्स सुवन नत्थि, ताहे केण उवाएण विढवेज सुवन ?, जंतपासया कया, केइ भणति-वरदिन्नया, ततो एगो दक्खो पुरिसो सिक्ख विओ दीणाराण थालं भरियं, सो भणइ-जइ मम कोइ जिणइ सो थालं गेहउ, अह अहं जिणामि तो एग दीणारं जिणामि, तस्स इच्छाए जंतं पडति, अओ न तीरइ जिणिउं, जहा सो न जिप्पति एवं माणुसलंभोवि, अवि णाम सोवि जिप्पेज ण य माणुसाउ भट्ठो पुणरवि माणुसत्तणं लहइ २।। धण्णेत्ति जेत्तियाणि भरहे धण्णाणि ताणि सवाणि पिंडियाणि, तत्थ पत्थो सरिसवाण छूढो, ताणि सव्वाणि अंबाली(अहू| यालि)याणि,तत्थेगा जुन्नथेरी सुप्पंगहाय ते वी(विय)णेज, पुणोऽवि पत्थं पूरेज,अवि सा देवयापसाएण पूरेजण य माणुसत्तण ३। जूए, जहा-एगे राया, तस्स सभा ख मट्ठसयसंनिविठा, तत्थ तत्थ अत्थाणियं देति, एकेको य खंभो अदुसयंसिओ, तस्स A Jan Education Inter! For Private Personal use only
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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