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________________ श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः । पौषध.. विधिः ॥ १०८॥ % 4 संदिसह राइसंथारयं संदिसावेमि, पुण खमासमणं दाउं राइसंथारए ठामित्ति वोत्तुं संथारभूमि गंतुं मुहणतंगतेण ससीसोवरियं कायं भूमि संथारयं च पमजित्ता नमोकारं सामाइयं च तिक्खुत्तो कड्डित्ता अणुजाणह निसीही नमो खमासमणाणंति भणिय संथारए ठाइ, बाहुवहाणेण वामपासेण अपमत्तो निद्दापमोक्खं कुणइ, जइ उबट्टइ पमजइ साहुत्व, कुक्कुडिदिटुंतेणं हत्थपायसंकोयपसारण करेइ, सुत्तविउद्धो सरीरचिंतं काउं इरियावहियं पडिक्कमित्ता जहन्नेणवि गाहातिगसज्झायमणुपेहेइ असंथरंतो संथारयं पमजिय निवाइ, चित्ते चिंतेइ य जहा-"जम्मजरामरणजलो अणाइमं वसणसावयाइन्नो। जीवाण दुक्खहेऊ कटुं रुद्दो भवसमुद्दो ॥१॥ कालंमि अणाईए जीवाण विचित्तकम्मवसगाणं । तं नत्थि संविहाणं संभवइ जं न भमिराणं ॥२॥ चुलसीइजोणिलक्खसु णेगकुलकोडिलक्खगहणेसु । भमिरेण इहावयसंपयाउ णताउ पत्ताउ ॥ ३ ॥ पिइमाइपउत्ताईसंबंधा वावहारियजिएहिं । सवे सोहि सया अणंतखुत्तो इहं पत्ता ॥४॥" तहेह-"रागोरगगरलभरो तरलइ चित्तं तवेह दोसग्गी। कुणइ अणुचियपवित्तिं महामईणंपि हा मोहो ॥ ५॥ पुरिसेण भुतपुत्वं नारिं दद्वण अच्चुयंतसुरो। तक्खणसेवी जायइ हहा तहिं चेव ननु रमए ॥ ६ ॥ इय गुच्छाइसु सहसारंतगदेवा जमेसि तेयतणू । अंगुलअसंखभाग मणिया मरणतसमुघाए ॥ ७॥" किं बहुणा ! पायमिह जीवा-"अन्नाणधा मिच्छत्तमोहिया कुग्गहुग्गगहगहिया । मग्गं न नियंति न सद्दहति चिट्ठति न य उचियं ॥ ८॥ ता कइया तं सुदिणं सा सुतिही तं भवे सुनक्खत्तं । जत्थ सुगुरुपरतंतो चरणभरधुरं | धरिस्समहं ॥९॥" एवमाइ । तओ राइए चरमजामे उट्ठेऊण इरियावहियं पडिकमिय पुत्वं व पोत्तिं पेहिय नमोकारपुत्वं सामाइयसुत्तं कड्डिय संदिसाविय सज्झायं कुणइ अप्पसद्देण जहा तत्तायगोलकप्पा घरकोइलगाई न जग्गंति जाव पडिक COCCACHECRUCIRCRACROCEKACROG P॥१०८॥ Jain Education in For Private Personal use only ww.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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