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________________ मुखबन्धी श्रावकधर्म पश्चाशकचूर्णिः । PHORACTEREOCHOREOGICHOCTEGCHOCIEOS केमके, श्रीआगमोद्धारकजीना समयना अधूरा कार्यो एओश्रीनी प्रेरणा, आज्ञा अने पुणीत-द्रष्टिवडे ज पूर्ण करवा हसो भाग्यशाली थया छीए. श्रीमद् आगमोद्धारकसूरीश्वरे स्वहस्ते प्रेसकोपीमां घणे स्थाने पंक्तिओनी पंक्तिओ टक टक सुधारी हती, पण एक स्थळेआना छापेला पाना ६२ नी अंदर अढी पंक्तिओ एक ज स्थळे होवाथी अमोए ते हस्ताक्षरनी यादि अने जाळवणी बदल छायाबीबुI-लाईन ब्लॉक करावी मूक्यो छे, ते अभ्यासी अने संशोधकवर्गे जोई लेवा तस्दी लेवी. पूर्वलां कोई अशुभना उदयथी आगमोद्धारकसूरीश्वरनी त्रण ब्रण वर्षनी मांदगी, अने तेमां पण केटलीक वखत गंभीररूप धारण करनार रोगना उछाळा होवा छतां पण पोते हाथमांथी लेखिनी हेठी मूकी नथी एनो आ सतत पूरावो छे. पोताना स्वरचित प्रन्थो रचवाना प्रयासो उपरांत; आबी कोपीओ शोधी आपवा माटे गंभीर-मांदगीमाये ओठींगण लीधा विना एक ज दृष्टिये दत्तचित्ते सतत श्रुतर्नु सान्निध्य आराधन करवु ए कोई ए गुरुदेवनो अजब पुन्यप्रभाव ! अजब साधना! अने अजय पुण्य सौभाग्य योग ज लेखाय ! की एओश्रीए पाना ६२ मां जे पंक्ति सुधारी छे अने जे आगमोद्धारकसूरीश्वरजीना हस्ताक्षरना ब्लोकथी मूकी छे ते पंक्तिओ आ मुजबनी छे:" भवंति, सिक्खगावि सागारियत्तिकाउं पुढो भुंजाविजंति, तहा सपायच्छित्ता आवण्णं पायच्छित्ता, ते सह न मुंजंति, जओ तेसिं सबलं चारित्तं भवइ, सबलचारित्तेहिं सह न भुंजिजइ, तहा बाला वुड्डा य असहत्ति FACROCHAKAKARANGALAS Jain Education Inter For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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