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________________ श्रावकधर्म पश्चाशक चूर्णिः । ॥ ७ ॥ Jain Education Inte " चान्द्रकुलांवरशशिनो भव्याम्बुजबोधनैकदिनपतयः । गुणगणरत्नसमुद्रा आसन् श्रीवीरगणिमिश्राः ॥ १ ॥ " " श्रीचन्द्रसूरिनामा तेषां शिष्यो बभूव गुणराशिः ॥ ३ ॥ " X X X X X X X X X x X X " श्रीचन्द्रनामसूरेः पादपङ्कजसेविना । दृब्धेयं प्रस्तुता वृत्तिः श्रीयशोदेवसूरिणा ।। ५ ।। " तथा पाक्षिकसूत्र - विवरणनो वि० सं० १९८० नो समय आडमुजब पोते नोध्यो छे: " एकादशशतैरऽधिकैरशीत्या ( ११८० ) विक्रमाद्गतेः । " आ ग्रन्थनी प्रेसकोपी स्वयं आगमोद्धारकसूरीश्वरे सुधारी हती. अने पोते ज शोधनादि कार्य पूर्ण करवाना हता, परंतु परमसौभागीए गुरुवर्य काळधर्म थवाथी, गुरुदेवनी; अहोरत, लेश पण खेद धर्या विना पूर्ण सावधपणे वैयावच्चादि करनार, सहयोगी श्री गुणसागरजी महाराजनी प्रेरणाथी, श्रीआगमोद्धार कसूरीश्वरना पट्टप्रभावक श्री माणिक्य सागरसूरीश्वरनी आज्ञावडे श्रीमत्कंचनविजयजी महाराज अने श्रीक्षेमंकरसागरजी महाराजे आ ग्रन्थनुं पूर्णपणे सम्पादन अने संशोधन करी आप्युं छे; जे बदल अमो ट्रस्टीओ एओ त्रणे गुरुवर्योनो जेटलो गुणानुवाद करीए ए ओछो ज छे. तदुपरांत विविध परिशिष्टो माटे पण एओश्रीओए खूब जहमत उठावी पूर्ण करी आध्यां छे. सौम्यमूर्त्तिसमा पुण्यप्रभावक श्री माणिक्य सागरसूरीश्वरना तो हंमेश माटे अमो ऋणी ज गणाइये, For Private & Personal Use Only मुखबन्धः । ॥ ७ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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