SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवकधर्मपश्चाशकचूर्णिः RECTECARCISI HAR कम्मविणासाओ, नहि तिव्वकम्मविगमं विणा पुत्वभणियसवणसंभवो, जओ भणियं-" सत्तण्डं पयडीणं अभितरओ उ कोडि- श्रावककोडीए । काऊण सागराणं जइ लहइ चउण्हमन्त्रयरंति ॥१॥" सुत्ति-अणंतरमणिओ जीवो, उक्कोसोत्ति-पहाणो, अहवा II लक्षणं सुक्कोत्ति-सुक्कपक्खिगो, अबद्धपोग्गलपरावत्तमंतरीभूयसंसारो इत्यर्थः, सोत्ति-मणियसरूवो, सावगोत्ति-समणोवासओ, एत्थत्ति-एयंमि सावगधम्मवियारावसरे, अन्नत्थ पुण सामन्त्रेण सुणतो सुणावेंतो वा नामादिभेदभिन्नो वा सावगो होइत्ति ॥२॥ सम्मत्ताई सावगधम्मं वोच्छंति पूवं भणियं, तत्थ सम्मत्तं सवगुणाधारोत्तिकाउं पढमं उद्दिढ, जो भणियं-" मूलं दारं पइट्ठाणं, अहारो भायणं निही । दुछक्कस्सवि धम्मस्स, सम्मत्तं परिकित्तियं ॥१॥" तत्थ मूलं महादुमस्सेव, दारं सपागारमहानगरस्सेव, पइट्ठाणति पेढं भन्नइ, तं पुण जहा पासायस्स, आधारो जहा धरणी सतपयत्थाणं, भायणं पहाणदवाणंपिव, निहाणं सुवन्नाइरयणाणंपिव, तहा सम्मत्तजुत्तस्स चेव सवावि किरिया सहलत्ति, जओ भणियं-" कुणमाणो वि य किरिय परिचयंतोवि सयणधणभोए । देंतोऽवि दुहस्स उरं न जिणइ अंधो पराणीयं ॥१॥ कुणमाणोऽवि निविर्ति परिचयंतो वि सयणधणभोगे । देंतोऽवि दुहस्स उरं मिच्छद्दिट्ठी न सिज्झइ उ ॥२॥ तम्हा कम्माणीयं जेउमणो दंसणंमि पयइज्जा। दसणवओ हि सहलाणि होति तवणाणचरणाणि ॥३॥" एएणवि कारणेण पढम उद्दिढ़ | तहा सम्मत्तलाभाणंतरं पारमत्थिया विरई होइ, जओ भणियं-" सम्ममि उ लद्धे पलियपुहत्तण सावओ होजा । " एवमाइ, अओवि पढम उद्दिटुं । तस्स-एवं पढमोवइट्ठस्स दिसिदरिसणत्थं केसिंचि वयाण य पुब्वायरियभणिएहिं नवहिं दारेहिं निरूवणं करिस्सामि, ताणि य इमाणि, तंजहा-"जारिसओ १ जइमेओ २ जह जायइ ३ जह य एत्थ दोस ४ गुणा ५। जयणा ६ जह अइयारा ७ Jain Educh an inte For Private & Personal Use Only W w.jainelibrary.org.
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy