SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ % भावधर्मपश्चाशकचूर्णिः । A65 अनुकम्पाया वैतरणी ॥२९॥ GIRR हत्थे धृणमाणो कहेइ, जहा तेण तुज्झ सुंदरसीसेण जोतिजसा मारिया, रमणे(ण्णे) विमासा, आगतो धाडिओ, वणसंडे चिंतेति | सुहझवसाणो, जाती सरिया, संजमो केवलनाणं, देवा महिमं करेंति, देवेहिं कहियं जहा एतेण अब्भक्खाणं दिन्नं, रुद्दगो लोगेण हीलिजइ, सो चिंतेति-सच्चं मे अन्मक्खाणं दिन, सो चिंतंतो संयुद्धो, पत्तेयबुद्धो जाओ, इयरो बभणो बंभणीवि दोवि पवइयाणि उप्पन्ननाणाणि सिद्धाणि चत्तारिवि । मणवयणकायजोगेहि य पसत्येहि य बोही समत्ताइ गुणकलावो लब्भइ ॥ अहवा अणुकंपाईहिं सम्मलाई लब्भइ, तंजहा-"अणुकंपऽकामनिज्जरवालतवे दाणविणयविन्भंगे । संजोगविप्पओगे वसँणू सबइडिसकोरे ॥१॥ वेज्जे मेंढे तह इंदनाग कर्यपुत्र पुप्फसोलसुए। सिव दुमहुरवणि भाउय आहीरदसैनिलापुत्ते' ॥२॥" एयासि अत्थो जुगवं कहिजइ-अणुकंपापरो जीवो सम्मत्ताद लहइ, सुहपरिणामसहिउत्ति काउं, वेजेति, विजवत् , तत्थोदाहरण-बारवत्तीए कण्हस्स वासुदेवस्स दो वेजा-धन्वंतरी य वेयरणी य, धणंतरी अभविओ, वेयरणी भविओ, सो साहूणं गिलाणाणं पिएण साहद, जं जस्स काया, फासुएण पडोयारेण, जइसे अप्पणो अस्थि ओसहाणि तो देतित्ति, धणंतरी पुण जाणि सावजाणि ताणि साहइ, असाहुपाउग्गाणि, ते उ साहुणो भणति-अम्हं कओ एयाणि ? सो भणइ न मए समणाणं अट्ठाए अज्झाइयं वेजसत्थं, ते दोवि महारंभा महापरिग्गहा, सबाए बारवतीए तिगिच्छं करेंति, अण्णया कण्हो वासुदेवो तित्थयरं पुच्छति-एए बहूणं ढंकाईणं वहकरणं काऊण कहिं गमिस्संति ?, ताहे सामी साहइ-एस धणंतरी अपइट्ठाणे नरए उववजिहिति, एस पुण वेयरणी कालंजरवत्तिणीए गंगामहानईए विंझस्स य अंतरा वानरत्ताए पच्चायाहिति, ताहे सो वयपत्तो सयमेव जूहबइत्तणं काहिति, तत्थ अण्णया साहुणो सत्थेग समं वीइवइस्संति, एगस्स य साहुस्स पाए IE3%E3 ॥२९॥ % Jain Education a l For Private & Personal Use Only SCE lwww.jainelibrary.org A
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy