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________________ चूर्णि विधिः - श्रावकधर्म-|| तत्थ सरीरे भत्तं पञ्चक्खाइउकामेण लोओ कायबो, जइ पञ्चक्खाएवि चिरजीवित्तणेण वइंति वाला तो धुवलोय करेइ भक्तप्रत्यापञ्चाशक-10 कारवेइ वा, उवगरणे पुण स्यहरणं पासे कजइ, चोलपट्टओ अग्गओ नियंसिजइ, मुहपोतियाए मुहं बज्झइत्ति । तहा ख्यानस्या___सो भत्तपच्चक्खायओ गिहीण न पगासिजइ, किं कारण ?, पगासिए जइ न नित्थरइ तओ सत्वेसिं लहुत्तं भवइ । को पुण निर्वाह तत्थ अनिव्वहणे विही ?, भन्नइ-सो एगो वा होज अणेगा वा, तत्थ जो एगो सोवि नाओ अनाओ वा होज, एवं बहुगावि, ॥१३७॥ तत्थ बहुएसु जो नाओ न नित्थरइ, तस्स ठाणे जो अनाओ सो जवणियंतरिओ ठविजइ, एगो पुण नाओ जइ न नित्थरइ तो जइ बीओ संलेहणं करितो अस्थि सो तत्थ ठावेयवो, तस्संतरेण चिलिमिली कायदा, जेहिं नाओ दिट्ठो य ते जइ वंदगा एज तो तेसिं न दंसियचो, मा जाणिए उड्डाहं करेज, ते भन्नति-बाहिं चेव ठिया बंदह, समाहीए खबगो अच्छइत्ति, अह नत्थि संलिहतो अन्नो ताहे वसभी ठविजइ, एत्थवि चिलिमिलिमाइजयणा सा चेव कायवा, ताहे बीए तइए चा दिवसे भन्नइ-रत्ति कालगतो सो परिठविओ य, जो सो न निच्छिन्नो सो पच्छन्नो धरिजइ, गिलाणपडिकम्मं च कीरइ, जाव पढमालियं करेइ, जो तं खिसइ-भत्तपञ्चक्खाणपडिभग्गोत्ति तस्स पच्छित्तं, ताहे सयं चेव निग्गच्छति, अहवा सो सहाओ अन्नत्थ पेसिञ्जद, मा तत्थ अच्छतो जणेण जाणिजिही, जो न नाउ सो जइवि न नित्थरेज तहवि नत्थि उड्डाहो, एवं सपरक्कम भणियं, एवं अपरक्कमपि एएण चेव विहिणा भाणियवं, नवरं खीणजंघाबलो वुड्डत्तणेण मरिउकामो सगच्छे भत्तं पञ्चक्खाइ, अहवा इमेहिं पगारेहिं मरिउकामो भत्तं पच्चक्खाइजा, तं जहा-विसं पडणीएण दिन्नं होजा, विसूइयाए वा अकल्लिभूओ आयको वा कोवि तहाविहो जाओ, दुभिक्खे वा भत्ते अलब्भमाणे, जहा-एगत्थ साहहिं अच्छंतेहिं ताव न नायं जाव | 3॥ १३७ ॥ RH %AA% LOCALCICRORE Jain Education For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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