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________________ ★ बावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः SCRRORSCREENA पमाओ-मजविसयकसायनिहाविगहासरूवो तेण आयरियं-अणुट्टियं पमायायरियं, अहवा पमायायरिय-जं आलस्सो- अनर्थदण्डवहएहिं किजइ, तं पुण अपिहियघयगुडतेल्लभायणअग्गिचुल्लगाइधारणं जीवोवघायकारणंति । तहा जूयरमणकुकुडहत्थि- ||स्य भेदसंडमल्लजुज्झपेच्छणगदंसणाईणिवि एत्थ चेव भाणियवाणि । तहा हिंसाजणगं हिसं-आउहअनलहलविसाइ तस्स पयाण- चतुष्कं अन्नेसिं समप्पणं हिंसप्पयाणं। तहा-पावं-पावकारणं किसिमाइकम्मं तस्स उबएसो पावोवएसोत्ति, भणियं च-"खेत्ताई अनर्थदण्डकसह गोणे दमेह एमाइ सावगजणस्स । उबइसिउं नो कप्पा जाणियजिणवयणसारस्स ॥ १॥" चसद्दो समुच्चये, एवं दोषाश्च चउमेओ अणत्थदंडोत्ति ॥ २३ ॥ जह जायइत्तिदारं जहा पुवं भणियं तहा दढवं, अहवा-"दट्ठणं दोसजालं अणत्थदंडंमि न य गुणो कोई । तविरती होइ दढं विवेगजुत्तस्स सड्ड(त्त)स्स ॥१॥" ति, एवं भावंतस्स अणत्थदंडविरह होइत्ति, दोसा पुणअणत्थदंडस्स बहुकम्मबंधाइया, जओ भणियं-" अद्वेण तं न बंधइ, जमणद्वेणंति थेबबहुभावा । अढे कालाईया, नियामगा न उ अणट्ठाए ॥१॥" अद्वेण-कुटुंबाइनिमित्तेण पबत्तमाणो तं-तेत्तियं कम्मं न बंधइ ज-जेत्तियं अणद्वेण-पओयणं विणा | पवत्तमाणो, किं कारणं ?, भन्नइ-थेवबहुभावत्ति जेण पओयणं थे-परिमियं, अपओयणं पुण बहुयं, पमायस्स परिमाणाभावाउ, जओ भन्नइ-अढे कालाईया नियामगत्ति-अढे पओयणे कालाईया नियामगा-वरिसारत्तकालाइअवेक्खं चेव किसिकम्माईवि भवइ-म उ अणहाएत्ति, पओयणं विणा पयर्ट्सतस्स नियामगं-निसेहगं किंपि नस्थित्ति अओ अणद्वेण बहु बंधति जीवो थोत्रं अद्वेणंति । गुणा पुण अणत्थदंड परिहरंतेण कमबंधाईया परिचत्ता भवंति, तहा इहलोए वि-"जे पुण अणत्थदंडं न करेंति कयंपि कहव निदति । ते अंगरक्खसड्ढो व सावया गुण(सुख)निही होंति ॥१॥" कहाणगं च इमं ॥८९॥ ********** ******* Jain Education a l For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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