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श्रावकधर्मपश्चाशकचूर्णिः
तुर्याणुव्रतस्य अतिचारभावना
॥ ७६ ॥
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तया सम्मदिद्विस्स कन्नाहललामेच्छा न संभवइ, मिच्छत्तविरउत्तिकाउं, अह भणह मिच्छद्दिट्टी तया मिच्छदिद्विस्स अणुब्बयाणं संभवो चेव नस्थित्तिकाउं कहं कन्नाहललाभिच्छा परविवाहकरणरूवाइयारकारण ति ?, सच्चमेयं, केवलं सम्रद्दिहिस्सवि अनिउणस्स सा संभवइ, तहा अहाभद्दगस्स मिच्छदिहिस्सवि सुमग्गपवेसणनिमित्तं अभिग्गहमेत्तं देतिवि गीयत्था । जहा किर अजसुहत्थिणा आयरिएण दमगस्स सबविरई दिना । एयं पुण परविवाहवजण नियअवच्चवहरित्तेसु चेव जुत्तं, अनहा जइ नियअवच्चाणि न विवाहिजंति तया अपरिणीया कन्ना सच्छंदचारिणी होइ, ततो सासणोवधाओ, कयविवाहा पुण विहियविरइबंधणत्तिकाउंन सच्छंदचारिणी होइ । जं पुण पुवं भणियं नियअवच्चेसुवि संखाभिग्गहो जुत्तो, तं जइ कोइ अन्नो चिंतगो होइ तया जुत्तं, अहवा अवच्चसंखासमत्तीए जइ अहिगावच्चुप्पत्तिपरिहारोवायं करेइ तो संखाभिग्गहो जुत्तोत्ति । अन्ने आयरिया एवं भणंति-"परो अन्नो जो विवाहो अप्पणो चेव स परविवाहो, किं भणियं होइ ?, भन्नइ-विसिद्धसंतो. सामावाओ अप्पणा अन्नाउ कन्नगाउ परिणेइति । एसो पुण अइयारो सदारसंतुट्ठस्स होइ," इत्थीए पुण सदारसंतोसपरदारवजणभेया नस्थि, सपुरिसवइरित्ता अन्ने सवे परपुरिसत्तिकाउं, तओ अणंगकीडापरविवाहकरणकामभोगतिवाभिलासलक्खणा तिन्नि अईयारा जहा सदारसंतुट्ठस्म तहा इत्थियाएवि सपुरिसविसए होंति । इत्तरपरिग्गहियागमणरूवो पढमइयारो पुण जया सपुरिसो सवक्कीए नियवारयदिवसे परिग्गहिओ होइ, तया सवक्किवारगं अइक्कमिऊण सपुरिसं परिभुजंतीए अइयारो होति । अप| रिग्गहियागमणलक्खणो बीयाइयारो पुण अइक्कमाइणा पुरिसं गच्छंतीए नायबो, बंभयारिस्स पुण सव्वत्थ अइकमाइणा सो वि अइयारा भवंति करकम्माईहि य ॥१६॥ भंगो अइयारभावणाए विभाविओ चेव । भावणा पुण इमा-" चिंतेयत्वं च नमो
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